खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 27

जुआरी की जेब का फटे नोट की तरह आखिरी दांव लगाने जैसा निकला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जीएसटी को लेकर दिया गया राष्ट्र के नाम संदेश !

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
September 24, 2025
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश - Ravivar Delhi

जब भी ये खबर आती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देने वाले हैं तो पूरे देश में एक अजीब सी सनसनी फैल जाती है कि दूरदर्शन पर आकर प्रधानमंत्री मोदी क्या घोषणा करने वाले हैं। अब वे क्या बंद करने की घोषणा करेंगे या किस बात के लिए ताली-थाली, शंख-घडियाल बजाने को कहने वाले हैं या फिर दिया-बाती-मोमबत्ती जलाने को कहने वाले हैं। देशवासियों के जहन में ये डर नोटबंदी के बाद से ज्यादा खौफजदा हो गया है। ऐसे ही हालात 21 सितम्बर को देशभर में पसर गये जब खबर आई कि शाम 5 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों को संबोधित करने वाले हैं। मगर अपने 21 मिनट के भाषण में ऐसा कुछ नहीं हुआ और देशवासियों ने राहत की सांस ली। अब्बल तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस बात को राष्ट्र के नाम संबोधन का नाम देकर कह रहे थे कहने के लिए आना ही नहीं चाहिए था क्योंकि जिस बात का जिक्र प्रधानमंत्री ने किया उस बात को वे स्वयं 15 अगस्त को लालकिले में दिये गये भाषण में कर चुके थे इसके बाद इसी बात का जिक्र वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन भी कर चुकी हैं। पूरे देश में गली-कुलियों तक में रहने वाले भिक्षाटन करने वाले को भी पता था कि जीएसटी की जो दरें कम की गई हैं वे 22 सितम्बर यानी 21 सितम्बर की आधी रात से लागू होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब जीएसटी की कम दरों से देशवासियों को रूबरू करा रहे थे तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई हारा हुआ जुआरी अपने जेब में बचाकर रखा हुआ फटा नोट दांव पर बतौर अंतिम बाजी के रूप में लगा रहा है।

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30 जून 2017 दिन जुमेरात (शुक्रवार) को आधी रात का वक्त संसद के सेंट्रल हाल में सजी संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी - आज इस मध्य रात्रि के समय हम सब मिल करके देश का आगे का मार्ग सुनिश्चित करने जा रहे हैं। कुछ देर बाद देश एक नई व्यवस्था की ओर चल पड़ेगा। सवा सौ करोड़ देशवासी इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं। जीएसटी की ये प्रक्रिया सिर्फ अर्थ व्यवस्था के दायरे तक सीमित है ऐसा मैं नहीं मानता हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो इसे दूसरी आजादी का नाम तक दिया था। और इस दूसरी आजादी का धम्मन सिर्फ और सिर्फ महज आठ साल में ही फूलने लगेगा शायद इसकी कल्पना तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी नहीं की होगी। जिसे यह कह कर लागू किया गया था कि एक देश एक टैक्स वाली जीएसटी सिर्फ अर्थव्यवस्था का प्रतीक भर नहीं है बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और भारत के संघीय ढांचे को मजबूत बनाते हुए विकसित भारत की दिशा में उठने वाला एक ऐसा कदम है जो ना सिर्फ रिफार्म है बल्कि भारत की रगों में मुश्किल हालातों से सरलता के साथ देश को चलाने के तौर तरीके हैं। जिसमें खुली भागीदारी देश की जनता की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित दो टैक्स स्लैब वाले जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा था प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हुए उसी गब्बर सिंह टैक्स को कई स्लैबों पर दूसरी आजादी कहते हुए थोप दिया। इन आठ सालों में जीएसटी में आधे सैकडा से ज्यादा संशोधन करने पड़े। देश के लघु और मध्य श्रेणी के व्यापारियों के काम धंधे चौपट होते चले गए। और अब जीएसटी की दरों को संशोधित करते हुए दो स्लैबों में समाहित कर दिया गया है और उसमें तुर्रा यह कि इसे रिफार्म का नाम देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए देशवासियों से क्षमा याचना करने के बजाय बचत उत्सव मनाने का बेशर्मी भरा संबोधन देना देशवासियों को पचा नहीं है। देशवासियों से माफी इसलिए कि अब जब इसे बचत उत्सव कहा जा रहा है तो तय है कि मोदी सरकार द्वारा पिछले 8 सालों से जीएसटी का लूट उत्सव मनाया जा रहा था।

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अब ये सवाल कोई नहीं पूछ रहा है कि देश में जीएसटी कौन लेकर आया, कौन है जिसने जीएसटी के जरिए व्यापारियों के सामने मुश्किल हालात पैदा किये, किसने जीएसटी के जरिए देश के रईसों को राहत इस तरह से दी कि टैक्स के मामले में गरीबों और रईसों को एक कतार पर खड़ा कर दिया गया । ऐसा तो महात्मा ने भी कभी  नहीं सोचा होगा। प्रधानमंत्री जब राष्ट्र के नाम संदेश देने सामने आये तो देश के सामने बहुतेरे सवाल थे। किसानों की आय 2014 की तुलना में कम हो चुकी है, लागत बढ़ चुकी है। वह मंड़ियों की पहुंच से दूर हो गया है। उसकी अपनी कमाई उसे मजदूर की कतार में खड़ा कर चुकी है। देश के छोटे और मझोले उद्योग धंधों, व्यापारियों की कमर तो पहले ही नोटबंदी लागू कर तोड़ दी गई थी। नोटबंदी ने पूरे असंगठित क्षेत्र को तहस- नहस करके रख दिया है। नोटबंदी के बाद से एमएसएमई जो डगमगाया वो आज भी ना तो सम्हल पाया है ना ही सम्हलने की स्थिति में आ पा रहा है। देश के भीतर रोजगार को लेकर, उत्पादन को लेकर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर सरकार ने एक नायाब लकीर खींच डाली है। मुद्रा योजना के तहत 30 - 35 लाख करोड़ रुपये बांट कर कह दिया कि अब किसी को रोजगार की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति खुद का रोजगारी है और दूसरे को रोजगार देने की स्थिति में है। आज तक कोई समझ नहीं पाया है कि रुपया आता कहां से है और जाता कहां है। क्या आरबीआई नोट छाप रहा है और बैंक उसी आधार पर कर्ज दे रहे हैं। देश के अगर 40 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुद्रा योजना का लाभ मिला है तो इसका मतलब यह है कि हर तीसरा व्यक्ति जिसमें नाबालिक हो या 75 पार का सबको इसका लाभ मिला है लेकिन भारत तो आईएमएफ की लिस्ट में बेरोजगारी के क्षेत्र में बड़ी बुरी गति के साथ खड़ा है। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक यह कहने से चूक नहीं रहे हैं कि भारत तो कर्ज में डूबा हुआ देश है और जल्द ही इसकी जीडीपी से ज्यादा कर्ज हो सकता है। क्योंकि बीते 10 बरसों में भारत पर कर्ज का बोझ डेढ़ सौ लाख करोड़ से ज्यादा बढ़ गया है। 2014 में भारत पर तकरीबन 50 लाख करोड़ का कर्जा था जो आज की स्थिति में 200 लाख करोड़ को पार कर गया है।

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ये कैसी हास्यास्पद स्थिति है कि प्रधानमंत्री एक ऐसा संदेश राष्ट्र के नाम देने सामने आये जो देश के गांव, शहर की बस्तियों से लेकर, पंचायत के समूह के बीच, विधायक, सांसद अपने - अपने क्षेत्र में करते चले आ रहे हैं उसके सामने प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम दिया गया संदेश शायद ज्यादा खोखला और पोपला है। और ये इसलिए है कि जीएसटी लेकर कौन आया ? 5 स्लैबी जीएसटी को क्रांतिकारी कदम किसने कहा ? जीएसटी के 5 क्रांतिकारी कदम महज 8 बरस में ही देश को मुश्किल हालात में ढकेल कर हांफने लगे। इस सच से सरकार इंकार नहीं कर सकती इसीलिए वह 2 स्लैब वाला जीएसटी ले आई। इसके बाद भी शर्माने के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़ी बेशर्मी के साथ इसे अपनी उपलब्धियों के खाखे में जोड़कर ऐलान करते हैं। दूसरी ओर राज्यों को उनके हिस्से की जीएसटी की रकम देने के लिए तरसाया जाता है। भारत किस तरह से टैक्स में समाया हुआ है उसको इस तरह भी समझा जा सकता है। इस साल जो बजट रखा गया है वह कितना सच है या उससे हटकर बड़ी लूट टैक्स के जरिए ही हो रही है । इस साल का बजट 50 लाख करोड़ से ज्यादा का है। इनकम टैक्स से 14 लाख 38 हजार करोड़, कार्पोरेट टैक्स से 10 लाख 82 हजार करोड़, जीएसटी के जरिए 11 लाख 78 हजार बसूले जायेंगे। जीएसटी के जरिए जो पैसा अभी तक बसूला गया है 12 महीने में बसूले जाने वाले 11 लाख 78 हजार करोड़ एवज में यह आंकड़ा सरकार ने जारी किया है - अप्रैल में 2 लाख 36 हजार 716 करोड़, मई में 2 लाख 1 हजार 50 करोड़, जून में 1 लाख 85 हज़ार करोड़, जुलाई में 1 लाख 95 हजार 735 करोड़, अगस्त के महीने में 1 लाख 86 हज़ार करोड़ यानी इन 5 महीने में ही 10 लाख करोड़ से ज्यादा बसूल लिया गया है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता को देव की श्रेणी में रख दिया है तो सवाल ये है कि जो टैक्स जनता से बसूला गया है उससे जनता को राहत और रियायत मिलती है क्या ? टैक्स बसूली से चल रहे देश में किसानों, मजदूरों को कितनी राहत, रियायत दी जा रही है ? हकीकत तो यही है कि सरकार जनता से बसूले गये टैक्स का 80 फीसदी से ज्यादा वह अपने ऊपर ही खर्च करती है। 50 लाख करोड़ के बजट में सरकार का एक्सपेंडीचर ही 39 लाख 29 हजार 154 करोड़ का है। प्रधानमंत्री ने नागरिक देवो भव: का जिक्र करते हुए कहा कि हमने इनकम टैक्स में 12 लाख तक की छूट दी है और जीएसटी की दरें कम कर दी है। यह साल भर में 2.50 लाख करोड़ हो जाता है लेकिन इसका भीतरी सच ये है कि इससे ज्यादा की रियायत तो बतौर बैंको से लिए गए कर्जे को माफ करके कार्पोरेट को दे दी गई है। मंत्रालय के मंत्री से कहा जाता है कि सरकारी तरीके से काम करने के बजाय आप ये बताइये कि इन कामों को कौन - कौन से प्राइवेट सेक्टर कर सकते हैं। और इस दौर में पब्लिक सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर के हाथों में सौंपते चला गया। जो राहत रियायत पब्लिक सेक्टर के जरिए जनता को मिलने वाली थी वह प्राइवेट सेक्टर के लाभालाभ में समाहित होती चली गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस हुनर की तो दाद देनी चाहिए कि जिस तबके के सामने संकट होता है वे उसी तबके की वाहवाही यह कह कर करने लगते हैं कि देखिए हमने आपकी हालत ठीक कर दी। देश में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर कर दिया गया जिसके भीतर का सच ये है कि पीएम की लाभार्थी योजना के आंकडों जोड़ दिया गया है और कहा जा रहा है कि उसके पास घर है, टायलेट है, सिलेंडर है। जबकि देश का सच ये है कि इस तबके की सबसे बड़ी कमाई सरकार द्वारा गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत (बतौर खैरात जैसे) दिया जा रहा 5 किलो अनाज ही है। अगर उस गरीब कल्याण अन्न योजना को खत्म कर दिया जाय तो एक झटके में भूखे मरने जैसी परिस्थिति पैदा हो जायेगी। मिडिल और न्यू मिडिल क्लास की जीएसटी दरों को कम करके वाहवाही की जा रही है।

'स्वदेशी' है आत्मनिर्भर भारत का मंत्र : छोटी-छोटी पहलें जरूरी -

बड़े हुनर के साथ स्वदेशी और आत्मनिर्भरता, मेक इन इंडिया का जिक्र किया गया। मेक इन इंडिया का अंदरूनी सच यह है कि देश की जो टापमोस्ट 30 कंपनियां जरूरतों का सामान बनाती हैं उसमें लगने वाला लगभग 82 फीसदी कच्चा माल चीन से ही आता है। अगर चीन अपने सामानों को भेजना बंद कर दे तो मेक इन इंडिया धराशायी हो जायेगा लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि चाइना को अपना माल खपाने के लिए बाजार चाहिए और दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत उसके लिए एक बाजार ही है। पीएम नरेन्द्र मोदी जब स्वदेशी का जिक्र करते हैं तो लोगों के मन में घृणात्मक भाव पैदा होते हैं। उनको तो महात्मा गांधी का स्वदेशी के पीछे कपास और सूत को काट कर धोती की शक्ल में बुना गया कपड़ा याद आता है जिसे पहन कर उन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वहीं पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ तो ब्रिटिश कंपनी की लक्जरियश गाड़ी रेंजरोलर का काफिला चलता है। वे तो खुद नख से शिख तक विदेशी वस्तुओं से सजे धजे होते हैं। सेंट्रल विस्टा के निर्माण में भी विदेशी कंपनियों का योगदान था। यहां तक कि सरदार पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा भी चीनी कंपनी ने ही बनाई है। इन सबका जिक्र करना कोई मायने रखता नहीं है कारण यह हुनर सबके पास होता नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। राष्ट्रवाद जगाने के लिए नैतिक बल की जरूरत होती है। खुद को उसमें ढालने की जरूरत होती है जो नरेन्द्र मोदी में दूर - दूर तक दिखाई नहीं देता है। अभी ही तो गुजरा है 15 अगस्त। उस दिन भारत का राष्ट्रीय तिरंगा झंड़े की शक्ल में हर हाथों में था वह भी चाइना से बनकर आया है।

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लेकिन देखिए पीएम नरेन्द्र मोदी अपने राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में किस हुनर के साथ कह रहे हैं - हमें हर घर को स्वदेशी का प्रतीक बनाना है, हर दुकान को स्वदेशी से सजाना है। गर्व से कहो ये स्वदेशी है, गर्व से कहो मैं स्वदेशी खरीदता हूं, मैं स्वदेशी सामान की बिक्री भी करता हूं। ये हर भारतीय का मिजाज बनना चाहिए। जब ये होगा तो भारत तेजी से विकसित होगा। प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में तो, भारत के ऊपर लगातार बढ़ रहे कर्जे की परिस्थितियों से कैसे निपटा जायेगा, भारत में बढ़ रही बेकारी, बेरोजगारी से कैसे बाहर निकला जायेगा, भारत के भीतर डूब रहे मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की परिस्थितियों से उबरने की क्या पालिसी है, अब तो अमेरिका के द्वारा H1B  बीजा के रास्ते जिस संकट को खड़ा कर दिया गया है उसका समाधान किस रास्ते पर चलकर होगा, यह सब कुछ समाहित होना चाहिए था। लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक क्षण में सब कुछ इसलिए मटियामेट कर दिया क्योंकि वे जान गए हैं कि वे देश की परिस्थितियों को सम्हाल पाने की स्थिति में नहीं हैं। तो क्या वाकई राष्ट्र के नाम संबोधन आज जीएसटी को लेकर आया है और कल किसी दूसरे विषय पर आ जायेगा। पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहचान चुनावी भाषण के अलावा उपलब्धियों के आसरे खुद को बचाये रखने के लिए राष्ट्रीय संबोधन को एक हथियार के तौर पर उपयोग में लाने की बनकर सामने आई है ! इस दौर में देश के भीतर के सारे संस्थान जिसमें नौकरशाही, ज्यूडसरी, मीडिया आदि शामिल हैं सभी की साख लगातार डूबती चली गई है। इन सारी परिस्थितियों के बीच क्या राष्ट्र के नाम संदेश भी सिवाय भाषण के वह भी गली - कूचे, बस्ती - मुहल्ले में दिये गये भाषण से भी हल्का और सस्ता होगा। प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक पर रख कर, देश के सच को छुपाने के लिए ये सारी चीजें नहीं होती हैं मगर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास एक अनोखा हुनर तो है जिसके आगे देश, देश का गौरव, राष्ट्रवाद सभी कुछ बौना हो जाता है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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