खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 07

गेंद भारत के पाले में - क्या करेगा भारत

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
August 08, 2025

क्या अमेरिका आक्रामक टेरिफ नीतियों के आसरे और वर्ल्ड ट्रेड आर्गनाइजेशन की नियम और नियतों को खारिज करने मैदान में खुले तौर पर उतर चुका है और निशाने पर भारत है ? क्या भौगोलिक, राजनीतिक अव्यवस्था खास तौर से साउथ एशिया में अमेरिका पैदा करना चाह रहा है ? क्या अमेरिका और पश्चिमी गुट अपने फायदे के लिए रूस के साथ इस दौर में प्राक्सी वार कर रहे हैं, जहां वे एक ओर यूक्रेन पर हाथ फेर रहे हैं और दूसरी ओर रूस से अपनी जरूरतों को पूरा भी करते हैं और भारत को धमकी देते हैं ? इनर्जी को जब कभी भी प्रतिबंध के दायरे में नहीं लाया गया और खुद अमेरिका रूस से अपने जरूरत के सामानों की खरीद - फरोख्त करता है और भारत को रूस से तेल खरीदने से  रोक रहा है, जिसकी जानकारी और तेल खरीदने को अमेरिका ने ही कहा था आखिर क्यों ? क्या इस दौर में भारत के भीतर रिलायंस और नायरा कंपनी ने भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, विदेश नीति और रूस के साथ संबंधों का खूब लाभ उठाया लेकिन तेल की कम कीमत (30 फीसदी) का लाभ भारतीय नागरिकों को नहीं दिया यानी जो कीमत युद्ध के पहले थी वही कीमत आज भी बाजार में है तो क्या ये पूरा खेल भारत सरकार ने कार्पोरेटस को फायदा पहुंचाने के लिए खेला है ? भारत ने रशिया से तेल अमेरिका के चाहने पर खरीदा, भारत तय प्राइज गैप पर बिना उल्लंघन किये तेल खरीद रहा था, तो क्या अमेरिका खुद नहीं चाहता था कि तेल की कीमत बढ़े और अब इंटरनेशनली उसके टेरिफ के तले हर कोई खड़ा हो जाय खासकर भारत और चीन ? रूस के साथ तो तुर्की, यूनाइटेड अरब अमीरात, साउदी अरब, कतर भी बिजनेस कर रहे हैं इनको तो अमेरिका या ट्रंप ने टेरिफ वार की धमकी नहीं दी, सिर्फ भारत को टेरिफ वार की धमकी दी जा रही है आखिर क्यों ? क्या अमेरिका भारत की बढ़ती इकोनॉमी से ईर्ष्या करके, भारत ब्रिक्स को जिंदा कर सकता है, चाइना और रशिया के साथ खड़ा हो सकता है तो क्या यह सोच कर अमेरिका भारत को निपटाने के लिए चाल चल रहा है ? क्या ऐसा तो नहीं है कि पाकिस्तान ने जिस तरीके से ट्रंप को शांति का नोबेल पुरस्कार दिलाने के लिए नामिनेशन किया और भारत ने पाकिस्तान को आतंकवाद को पनाह देने वाला देश मानते हुए खारिज कर दिया इस कारण भारत को लाल आंखें दिखाई जा रही है ? क्या अब ये टकराव चरम पर पहुंच गया है जहां दोनों देशों के बीच भरोसा खत्म हो चुका है क्योंकि ट्रंप ने जिस तरीके से भारत को निशाने पर लिया है वैसा तो चीन को नहीं कहा है ? भारत जिस तरीके से अलग - अलग देशों के बीच संतुलन बनाकर चलता है चाहे वह एससीओ, ब्रिक्स, आसियान, क्वाड हो क्या सारी चीजें धराशायी हो गई हैं ?

ये वो सवाल हैं जिसकी पैदाइश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के द्वारा अपने ट्रूथ अकाउंट पर लिखी पोस्ट और भारत द्वारा काउंटर करते हुए जारी किए गए पर्चे से हुई है। India is not only buying massive amount of Russia oil, they are then, for much of the oil purchased, selling it on the open market for big profits. They don't care how many people in Ukraine are being killed by the Russian war machine. Because of this, I will be substantially raising the Tariff paid by India to the USA. Thank you for your attention to this matter !!! President DJT (Donald J Trump) और भारत द्वारा जारी परचा कहता है India has been targeted by the United States and the European Union for importing oil from Russia after the commencement of the Ukraine conflict. In fact India began importing from Russia because traditional supplies were diverted to Europe after the outbreak of the confict, the United States at that time activity encouraged such imports by India for strengthening global energy markets stability India's imports are meant to ensure predictable and affordable energy costs to the Indian consumer. They are a necessity compelled by global market situation. However it is revealing that the very hations criticizing India are them selves indulging in trade with Russia. Unlike our case such trade is not even a vital national compulsion. The European Union in 2024 had a bilateral trade of Euro 67.5 billion in goods with Russia. In addition, it had trade in service estimated at Euro 17.2 billion in 2023. This is significantly more than India's total trade with Russia that year or subsequently. EUROPEAN imports of LNG in 2024, in fact reached a record 16.5mn tonnes, surpassing the last record of 15.21mn tonnes in 2022. Europe-Russia trade includes not just energy, but also fertilizers, mining products, chemicals, Iron and steel and machinery and transport equipments. Where the United States is concerned, it continues to import from Russia uranium hexa fluoride for its nuclear industry, palladium for its EV industry. Fiertilizers as well as chemicals. In this background the targeting of India is unjustified and unreasonable. Like any major economy, India will take all necessary measures to safeguard its national interests and economy security.

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने ट्रूथ पर लिखी चार लाईनों में भारत को अमानवीय करार दे दिया। अंतरराष्ट्रीय तौर पर युद्ध करने वाले देश के साथ खड़ा करते हुए युद्ध में मारे गए लोगों के गुनहगार बतौर भारत को कटघरे में खड़ा कर दिया है। ट्रंप ने लिखा है कि भारत को परवाह नहीं है कि रूस की युद्ध मशीन में यूक्रेन के कितने लोग मारे जा रहे हैं। भारत रूस से न केवल तेल खरीद रहा है बल्कि खरीदे हुए तेल का बड़ा हिस्सा खुले बाजार में बेचकर भारी मुनाफा कमा रहा है। अमेरिका की यह बात सही है कि भारत के भीतर की दो प्राइवेट कंपनियां रिलायंस और नायरा ने भी रूस से 30 फीसदी कम कीमत पर तेल खरीद कर उसे रिफाइन करके यूरोप के बाजार में अपनी तय कीमतों पर बेचा मगर कम कीमत पर खरीदे गये तेल का लाभ भारतवासियों को नहीं दिया। व्हाइट हाउस के डिप्टी चीफ आफ स्टाफ स्टीफन मिलर ने भारत को रूस के साथ ही चीन के साथ खड़ा करने में कोई कोताही नहीं बरती। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि रूस से तेल खरीदने में भारत चीन के लगभग बराबर है और चीन और अमेरिका के बीच दुश्मनी है जबकि भारत खुद को अमेरिका का सबसे करीबी दोस्त बताता है लेकिन हमारे प्रोडक्ट नहीं खरीदता है। भारत इमीग्रेशन में गड़बड़ी करता है जो अमेरिकी कामगारों के लिए बहुत खतरनाक है। भारत का रूस से तेल खरीदना बिल्कुल भी स्वीकार नहीं है। राष्ट्रपति ट्रंप भारत से अच्छे रिश्ते चाहते हैं लेकिन हमें सच्चाई समझनी होगी। इसलिए मैं भारत पर टेरिफ बढ़ाने जा रहा हूं।

जिसका जबाब देते हुए भारत ने कहा कि ये चेतावनी अनुचित है, तर्कहीन है क्योंकि अमेरिका खुद अपने परमाणु उद्योगों, इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री आदि के लिए जरूरी सामानों की खरीद-फरोख्त रूस से कर रहा है। अमेरिका भी तो रूस से खरीदे गए सामानों की कीमत चुकाता है तो फिर उस पैसे से रूस हथियार खरीदकर यूक्रेन पर इस्तेमाल करता है। तो फिर भारत पर ये एकतरफा आरोप क्यों लगाया जा रहा है ? लगता है अमेरिका न्यू वर्ल्ड ऑर्डर को शिफ्ट करते हुए एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश कर रहा है। एक तरफ वह भारत को रूस और चीन की ओर धकेल भी रहा है और दूसरी ओर चीन को काउंटर करने के लिए भारत को फुसला भी रहा है। 1962 के बाद ये पहली बार हो रहा है कि भारत चीन के बेहद करीब जा रहा है। न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में नये रिश्ते बनाने के लिए रूस, चीन, ईरान, ब्राजील, मिडिल ईस्ट के कई देश साथ आ रहे हैं।

भारत ने जिस परचे को जारी किया है वह इंगित करता है कि भारत हमेशा से अमेरिका के साथ है। रूस और यूक्रेन के बीच भारत को जिस इनर्जी की जरूरत थी उसे रूस से खरीदने की सहमति अमेरिका ने दी थी।वैसे भी इनर्जी पर पाबंदी नहीं लगाई जा सकती है। अमेरिका खुद चाहता था कि भारत रूस से तेल खरीदे ताकि अंतरराष्ट्रीय तौर पर कच्चे तेल की कीमतों में उछाल ना आने पाये। वैसे भी भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी तेल दुनिया के बाजार से खरीदता है और खासकर मिडिल ईस्ट के देशों से।

दुनिया के भीतर जो हलचल मची हुई है उसमें समूची दुनिया भारत के रुख का इंतजार कर रही है। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में कहा कि हम जटिल और अनिश्चित समय में जी रहे हैं। हमारी सामूहिक इच्छा एक वैश्विक व्यवस्था देखने की है ना कि कुछ देशों के दबदबे वाली और इस कोशिश को राजनीतिक और आर्थिक संतुलन के रूप में देखा जाना चाहिए। परम्परायें खास मायने रखती हैं क्योंकि आखिरकार वे हमारी पहचान तय करती हैं। मतलब बहुत साफ है कि किसी एक देश का दबदबा अब न्यू वर्ल्ड ऑर्डर में नहीं चलेगा।

भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने 11 बरस के शासनकाल में 11बार अमेरिका की यात्रा की है। आजादी के बाद से भारत का कोई प्रधानमंत्री अमेरिका के इतने करीब नहीं गया जितना पीएम मोदी चले गए हैं। नरेन्द्र मोदी ने तो बकायदा अमेरिकी चुनाव में रिपब्लिकन नेता के हाथ में हाथ डालकर अबकी बार ट्रंप सरकार के नारे लगाये थे। जबकि दुनिया में ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष दूसरे देश के चुनाव में किसी उम्मीदवार को वोट देने की अपील करे। 1962 के बाद से भारत और चीन कभी अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक साथ खड़े नहीं हुए। 1971 में पहली बार भारत रूस के साथ खुलकर खड़ा हुआ। क्या 2014 से शुरू हुए सफर का पटाक्षेप 2025 में होने जा रहा है।। यह सवाल इसलिए बड़ा हो चला है कि अब एक दूसरे को दोस्त कहने वाले देशों के राष्ट्राध्यक्ष एक दूसरे से दो - दो हाथ करने के लिए आमने सामने खड़े हो गए हैं ! अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 100 फीसदी दुश्मनी का संकेत देते हुए भारत पर 50 फीसदी टेरिफ की घोषणा कर दी है। जिसमें 25 फीसदी बेस टेरिफ है तथा 25 फीसदी रूस से तेल खरीदने की पेनाल्टी है । टेरिफ के मामले में भारत को ब्राजील के बराबरी पर रखा गया है। ब्राज़ील के राष्ट्रपति लुला ट्रंप से दो - दो हाथ कर अब शांत बैठ गए हैं और भारतीय प्रधानमंत्री मोदी ने अभी तक तो मौन साध रखा है। क्या अब अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में ऐसा कुछ हो होने जा रहा है जो अब तक नहीं हुआ है ? 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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