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October 16, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 31

कैसे मिलेगी सुप्रीम कोर्ट आ रही न्यायिक सड़ांध से निजात ?

Bharat ki Nyaypalika,Judiciary of india,भारत की न्यायपालिका

भारतीय न्यायपालिका की पहचान तो यही रही है कि न्याय का ककहरा लिखते वक्त जाति, धर्म, लिंग, सम्प्रदाय कुछ भी मायने नहीं रखता है लेकिन मौजूदा वक्त में उछाले जा रहे राजनीतिक जूते ने इस नकाब को भी नोचकर फेंक दिया है और चंद दिन पहले ही भावी सीजेआई ने उस पर अपनी मोहर भी लगा दी है ! गजब का देश है भारत जहां दैवीय शक्तियां पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, दलितों का मानमर्दन करने का हुक्म दे रही हैं, हालात यहां तक हो चले हैं कि अल्पसंख्यक, आदिवासी, पिछड़ा, दलित देश की सबसे बड़ी अदालत का मुखिया हो या देश का प्रथम नागरिक उसकी औकात जूते से भी कम आंकी जा रही है । दुनिया में एक ओर तानाशाही देश में लोकतंत्र की लौ को जलाये रखने वाले को नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा जा रहा है तो वहीं दूसरी ओर लोकतांत्रिक देश की डींगे भरने वाले देश में मौजूदा राजनीतिक सत्ता द्वारा खुद को बरकरार रखने के लिए लोकतंत्र को जूते की नोक पर रखा जा रहा है। लोकतंत्र के पिलर और लोकतांत्रिक संस्थानों ने एक - एक करके मौजदा राजनीतिक सत्ता की चौखट पर अपना माथा टेक चुके हैं बाकी रह गया था न्यायालय तो उसने भी अपना जमीर मौजूदा राजनीतिक सत्ता के आगे गिरवी रखने के संकेत देने शुरू कर दिये हैं। चंद दिनों बाद तो पूरा सरेंडर देखने को मिलने वाला है !

वर्ष 1861 में खुला था दिल्ली पुलिस का पहला थाना, चोरी की हुई थी पहली  रिपोर्ट - ncr Delhi Police first police station was opened in year 1861  first report was of theft

सेवा में, 

थाना प्रभारी, पुलिस स्टेशन, सेक्टर 11, चंडीगढ़ - विषय - श्री शत्रुजीत सिंह कपूर डीजीपी हरियाणा और नरेन्द्र विजारिणिया आईपीएस एसपी रोहतक के खिलाफ धारा 108 बीएनएस 2023, एससी-एसटी एक्ट एवं अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत श्री वाई पूरन कुमार की दुखद मौत के संबंध में एफआईआर दर्ज करने का अनुरोध। सर/मैडम - अकथनीय दुख से दबे हुए हृदय, न्याय में हिलते विश्वास के साथ मै श्रीमती अवनीत पी कुमार आईएएस 2021 बैच हरियाणा स्वर्गीय वाई पूरन कुमार आईपीएस की पत्नी आपको न केवल एक लोकसेवक के रूप में बल्कि सबसे बढ़कर एक शोक संतप्त पत्नी और एक माँ के रूप में लिखती हूं, जो एक परिवार पर पड़ने वाली सबसे बड़ी त्रासदी का अनुभव कर रही हूं। मैं एफआईआर दर्ज करने, अभियुक्त की तत्काल गिरफ्तारी के लिए शिकायत प्रस्तुत कर रही हूं। मेरे पति को उनके दलित पहचान की वजह से इतना सताया और उकसाया गया कि 7 अक्टूबर 2025 को उन्होंने आत्महत्या कर ली। उस दिन मैं जापान की आधिकारिक यात्रा पर थी और दुर्भाग्यपूर्ण घटना के बारे में जानकारी मिलने पर भारत वापस आ गई। इसलिए मैं आज यानी 8.10.2025 को शिकायत दर्ज करा रही हूं। मेरे पति जो बेदाग ईमानदारी और असाधारण सार्वजनिक भावना वाले एक आईपीएस अधिकारी थे। 7 अक्टूबर 2025 को हमारे घर पर गोली चलने से मतृ पाये गये। हालांकि आधिकारिक कहानियां खुद जान देने का संकेत देती हैं। मेरी आत्मा एक पत्नी के रूप में न्याय के लिए रोती है, जिसने वर्षों तक व्यवस्थित अपमान देखा और सहा है। हरियाणा के डीजीपी श्री शत्रुजीत सिंह कपूर सहित वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मेरे परिवार पर किये गये उत्पीड़न की कई शिकायतें हैं। मेरे पति का दर्द छिपा हुआ नहीं था और ये उनके द्वारा दायर की गई अनेक शिकायतों से स्पष्ट है कि उन्होंने जाति आधारित भेदभाव को सहन किया और करते ही जा रहे थे। मेरे पति को ये बात पता चली और उन्होंने मुझे इसकी जानकारी दी कि डीजीपी हरियाणा श्री शत्रुजीत सिंह कपूर के निर्देश पर उनके विरुद्ध एक षड्यंत्र रचा जा रहा है और झूठे साक्ष्य गढ़कर उन्हें तुच्छ और शरारतपूर्ण शिकायत में फंसाया जायेगा। डीजीपी हरियाणा श्री शत्रुजीत सिंह कपूर के निर्देश पर उनको मृत्यु से ठीक पहले क्रूरता पूर्वक धारा 308 (3) बीएनएस 2023 के तहत एक झूठी एफआईआर पुलिस स्टेशन अर्बन स्टेट रोहतक में दिनांक 6.10.2025 को मेरे पति के स्टाफ सुशील के खिलाफ दर्ज की गई। सुनियोजित साजिश के तहत उनके खिलाफ सबूत गढ़ के उक्त मामले में मेरे पति को फंसाया जा रहा था। जिसमें उन्हें अपनी जान देने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस संबंध में उन्होंने डीजीपी श्री शत्रुजीत सिंह कपूर से सम्पर्क किया था, उनके साथ बातचीत की थी लेकिन डीजीपी ने इसे दबा दिया। इसके अलावा मेरे पति ने नरेन्द्र विजारिणिया एसपी रोहतक को भी फोन किया था लेकिन उन्होंने जानबूझकर उनके फोन का जबाब नहीं दिया। आठ पन्नों का उनका अंतिम नोट एक टूटे हुए मन का दस्तावेज है, जो इन सच्चाइयों और कई अधिकारियों के नामों को उजागर करता है जिन्होंने उन्हें इस हद तक पहुंचा दिया। मेरे पति को जो उत्पीड़न सहना पड़ा उसके बारे में वो मुझे बताया करते थे। मेरे बच्चों और मैंने जो खोया उसके लिए शब्द ढूंढ़ना असंभव है। एक पति, एक पिता, एक ऐसा व्यक्ति जिसका एकमात्र अपराध सेवा में ईमानदारी थी। एक अधिकारी के रूप में जिसने अपना सब कुछ अपने कैरियर की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया है। मुझे अब उन्हीं संस्थानों पर भरोसा रखना चाहिए, जिन्हें मैंने और मेरे पति ने अपने सर्वश्रेष्ठ वर्ष दिए हैं। उपरोक्त के अतिरिक्त मेरे पति ने बार-बार जाति आधारित गालियों, पुलिस परिसर में पूजा स्थलों से बहिष्कार, जाति आधारित भेदभाव, लक्षित मानसिक उत्पीड़न और सार्वजनिक अपमान तथा वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए गए अत्याचार को बर्दाश्त किया। मैं आपके ध्यान में ये भी लाना चाहती हूं कि ये स्थापित कानून है कि उत्पीड़न, अपमान और मानहानि के निरंतर कृत्य भी उकसावे के दायरे में आ सकते हैं केवल तत्कालिक घटनाओं की ही नहीं बल्कि समग्र परिस्थितियों की भी जांच की जानी चाहिए कि प्रशासनिक उत्पीड़न किसी व्यक्ति को किस हद तक जान देने पर मजबूर कर सकता है। दलित पहचान के आधार पर मेरे पति को परेशान करना अनुसूचित जाति एवं जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत एक गंभीर अपराध है। मैं सिर्फ अपने परिवार के लिए ही नहीं बल्कि हर ईमानदार अधिकारी के जीवन और सम्मान के मूल्य के लिए भी गुहार लगा रही हूं। ये कोई साधारण मामला नहीं है बल्कि मेरे पति जो अनुसूचित जाति से आते थे, ताकतवर और उच्च पदस्थ अधिकारियों द्वारा उनके व्यवस्थित उत्पीड़न का सीधा नतीजा है, जिन्होंने अपने पद का इस्तेमाल करके उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया और अंततः उन्हें इस हद तक धकेल दिया कि उनके पास जान देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। इसलिए मैं आपसे अनुरोध करती हूं कि कृपया हरियाणा के डीजीपी श्री शत्रुजीत सिंह कपूर और रोहतक के एसपी नरेन्द्र विजारिणिया आईपीएस के खिलाफ धारा 108 बीएनएस 2023 और अनुसूचित जाति - जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम और अन्य प्रासंगिक प्रावधानों के तहत एफआईआर दर्ज करें और बिना किसी देरी के उन्हें तुरंत गिरफ्तार करें क्योंकि दोनों आरोपी शक्तिशाली व्यक्ति हैं और प्रभावशाली पदों पर बैठे हुए हैं, वो स्थिति को अपने पक्ष में करने के लिए सभी प्रयास करेंगे जिससे सबूतों से छेड़छाड़ और गवाहों को प्रभावित करने सहित जांच में बाधा डालना भी शामिल है। न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए। हमारे जैसे परिवारों के लिए जो शक्तिशाली लोगों की क्रूरता से टूट गये हैं। मेरे बच्चों को जबाब मिलना चाहिए। मेरे पति के दशकों की जनसेवा सम्मान की हकदार है, खामोशी की नहीं। अवनीत पी कुमार आईएएस स्वर्गीय वाई पूरन की पत्नी।

Justice BR Gavai: कौन हैं बुल्डोजर एक्शन पर सवाल उठाने वाले जज बीआर गवई, जो  बनेंगे देश के अगले मुख्य न्यायाधीश | Moneycontrol Hindi

ये उस पत्र का हिन्दी मजमून है जो उन्होंने अंग्रेजी में लिखा है। ये मामला ठीक उस घटना के बाद घटित हुआ है जिसकी स्याही अभी सूखी भी नहीं है। चीफ जस्टिस आफ इंडिया जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई जो कि दलित समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं उन पर वकील राकेश किशोर द्वारा सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही सुनवाई के दौरान जूता फेंकने से पहले एक दलित युवक हरिओम बाल्मीकि को पीट-पीट कर मार डाला गया। यह भी गजब का संजोग है कि तीनों घटनायें दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश (रायबरेली) में घटी हैं जहां पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। इसके पहले भी मध्यप्रदेश में एक आदिवासी युवक पर बीजेपी विधायक के प्रतिनिधि द्वारा पेशाब करने, बिहार में दलित नाबालिक लडकियों के साथ दुष्कर्म और चाकू से गोदकर हत्या करने के मामले सामने आ चुके हैं। जहां तक आरोपियों को सजा दिये जाने का सवाल है उसका उत्तर नकारात्मक ही है और जिन दो हाई प्रोफाइल व्यक्तियों के साथ घटित घटना पर होने वाली सजा का सवाल है उसका उत्तर भी नकारात्मक ही होने वाला है। इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है कि जिस देश का प्रथम नागरिक आदिवासी हो और उसे भी समुचित सम्मान न मिल रहा हो तो फिर बाकी तो कीड़े मकोड़े की कतार पर ही खड़े किये जा सकते हैं। जातिवाद के इस घिनौने खेल में न तो आईएएस, आईपीएस की कुर्सी कोई मायने रखती है न चीफ जस्टिस आफ इंडिया की कुर्सी और न ही राष्ट्रपति की। इन ऊंची कुर्सियों पर बैठा हुआ एक भी दलित, पिछड़ा, आदिवासी, अल्पसंख्यक उच्च जातिवादी गिरोह को आजादी के 75 साल बाद भी बर्दास्त नहीं हो पा रहा है और ये मामले वहां ज्यादा दिखाई देने लगते हैं जहां पर संविधान तथा तिरंगे को आंतरिक रूप से ना मानने वाली विचारधारा की पार्टी राज कर रही हैं।

राष्ट्रपति के महिला, दलित या आदिवासी होने से ज़मीन पर क्या असर होता है? -  BBC News हिंदी

यह भी कम सोचनीय नहीं है कि अल्पसंख्यकों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों के वोट से सरकार में हिस्सेदार बने बैठे नेताओं की सेहत पर भी जरा सा फर्क नहीं पड़ता है। सोशल मीडिया पर एआई से बनाई हुई शर्मनाक तस्वीर जिसमें सीजेआई के चेहरे पर नीला रंग पोत कर, गले में मटकी लटकाकर गाल पर जूता मारते हुये वायरल की गई और नीले रंग की झंडावरदार नेता उसी भगवा पार्टी का गुणगान कर रही है जिसकी आईटी आर्मी पर इन शर्मनाक हरकतों को अंजाम देने के आरोप लग रहे हैं। इस कतार में बहुजन समाज पार्टी के साथ ही लोक जनशक्ति पार्टी, हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा, सुभासपा, निषाद पार्टी, अपना दल सभी खड़ी हैं। इनको तो इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ता है कि जिस भीमराव अम्बेडकर का नाम लेकर सत्ता सुख भोग रहे हैं उसी भीमराव अम्बेडकर को मनुवादी विचारधारा के लोग देश का गद्दार कहने से नहीं चूक रहे हैं। तो क्या ये मान लिया जाय कि दलित, पिछड़ा, आदिवासी और अल्पसंख्यक चीफ जस्टिस आफ इंडिया की कुर्सी पर बैठे या राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे सभी की औकात जूते से भी कम है। मोदी सरकार में दलितों के वोट से जीत कर ऐश कर रहे चिराग पासवान हों या जीतन राम माझी या फिर सुप्रिया पटेल किसी ने भी अपना मुंह खोलने की औकात नहीं दिखाई लेकिन मोदी सरकार में मंत्री रामदास अठावले ने सीजेआई पर किये गये हमले के तार को आरएसएस से जोड़ते हुए कहा है कि सीजेआई बीआर गवई पर फेंका गया जूता उनकी माँ द्वारा आरएसएस के कार्यक्रम में जाने से मना करने से जुड़ता है। उन्होंने कहा कि इस समय दिव्य शक्तियां दलितों, अल्पसंख्यकों, पिछड़ों, आदिवासियों, को अपमानित करने का आदेश दे रही हैं। तो क्या देश में वाकई राम राज्य मोदी राज्य में तब्दील हो चुका है। हरियाणा में भले ही मरने वाला आईपीएस अधिकारी हो लेकिन है आखिर है तो वह दलित ही ना तो फिर वही हुआ है जो होना चाहिए था। एफआईआर दर्ज तो की गई लेकिन नाम किसी का नहीं लिखा गया। धारायें ऐसी लगाई गईं जिससे आरोपी आसानी से बरी हो जायें। सुसाइड नोट में नामित किसी भी अधिकारी को सस्पेंड नहीं किया गया है। सरकार ने लाश को भी अपनी संवेदनहीनता का शिकार बनाने से परहेज नहीं किया शायद का परिणाम है कि वाई पूरन कुमार का अंतिम संस्कार 9 दिन बाद हो सका। डबल इंजन की सरकार की जिद के आगे उसकी पत्नी की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की तरह समाती चली गई ।

भारत में लोकतंत्र का राग गाया जाता है मगर लोकतंत्र के क्या मायने होते हैं और लोकतंत्र की रक्षा करने के लिए तानाशाही के खिलाफ संघर्ष का क्या मतलब होता है इसकी एक झलक उस समय देखने को मिली जब नाॅर्वेजियन नोबेल समिति सामने आई और उसने ऐलान किया कि इस बार का नोबेल शांति सम्मान एक ऐसी महिला को दिया जा रहा है जिसने गहराते अंधेरे के बीच लोकतंत्र की लौ को जलाये रखा है। नोबेल कमेटी ने कहा जब लोकतंत्र खतरे में हो और हर जगह उसका खतरा बहुत साफ तौर पर दिखाई दे रहा हो तब ये सबसे ज्यादा जरूरी हो जाता है कि उसकी रक्षा की जाए। इस कसौटी पर खरी उतरने वाली वेनेजुएला की मारिया कोरिना मचाडो को 2025 का नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा रहा है।

Nobel Peace Prize 2024: नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान, जापान के इस संगठन को  मिला | Norwegian Nobel Committee decided to award the Nobel Peace Prize  2024 to the Japanese organisation Nihon Hidankyo

नाॅर्वेजियन नोबेल समिति की इस घोषणा ने दुनिया भर में इस सवाल को पैदा तो कर ही दिया है कि दुनिया का सबसे ताकतवर देश और उस देश का राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप जिसने अपनी दूसरी पारी खेलते हुए पूरी दुनिया को अपनी ऊंगली पर नचाना शुरू कर दिया है और उस खेल में दूसरे ताकतवर देशों को भी चुनौती देते हुए एक नई व्यवस्था का निर्माण भी किया जा रहा है। जिसमें लोकतंत्र के अलावा पूंजी है, मुनाफा है। तब ये सवाल भारत के सामने भी आकर खड़ा हो जाता है कि न्यायपालिका क्या आज कुछ इस तरह से चल रही है जैसे देश में कुछ भी असामान्य नहीं है ? इन परिस्थितियों में भारत के भीतर अलग-अलग मुद्दों को लेकर अलग-अलग मापदंडों के आसरे लोकतंत्र, न्यायपालिका और संविधान पर सवाल खड़े होते रहते हैं। समाज के भीतर नफरत की खींची लकीरें, राजनीतिक तौर पर मुद्दों के आसरे देश के संवैधानिक संस्थानों का ढ़हना और इन सबके बीच न्यायपालिका की एक ऐसी भूमिका जो बार- बार अपने फैसलों से सब कुछ सामान्य होने का अह्सास कराती है जबकि कुछ भी ऐसा है नहीं। देश में शेयर बाजार चलाने वाली संस्था सेबी, देश की जांच ऐजेसियां ईडी, सीबीआई, आईटी, सरकारी विभागों पर आर्थिक निगरानी रखने वाली सीएजी यहां तक देश की राजनीतिक सत्ता ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति वाले पैनल से चीफ जस्टिस आफ इंडिया को बाहर कर दिया है, कहने को तो वह तीन सदस्यीय पैनल है उसमें एक सदस्य विपक्ष के नेता का होना कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि उसमें दो सदस्य (बहुमत) तो सत्ताधारी ही हैं खुद प्रधानमंत्री और गृहमंत्री।

सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि बात उस मानसिकता पर आकर खड़ी हो गई है जहां पर जज की कुर्सी पर तो कोई भी बैठ सकता है लेकिन न्याय तभी होगा जब संविधान के हिसाब से फैसले सुनाये जायें। सुप्रीम कोर्ट के भीतर सीजेआई के ऊपर जिस वकील ने जूता फेंका उस वकील के खिलाफ कोई भी कार्यवाही देश की किसी भी जांच ऐजेंसी (प्रशासन, पुलिस, सरकार) ने कुछ भी नहीं किया। यानी न्यायपालिका, संविधान और लोकतंत्र की रक्षा सब कुछ गायब हो चुकी है। जिस संविधान और लोकतंत्र की वजह से न्यायपालिका का अस्तित्व है उस पर रोज हमला हो रहा है और ये हमला होते - होते अदालत के भीतर जूता उछालने तक पहुंच गया है। देश संविधान से चलता है, संविधान के मातहत कानून का राज है, कानून का पालन कराने के लिए सरकारी ऐजेसियां हैं, संविधान की शपथ लेने वाली सरकार है यहां तक कि संविधान को माथे पर लगाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं और ये सब इस दौर में गायब हो गये हैं। तो क्या वाकई न्यायपालिका, लोकतंत्र, संविधान के अस्तित्व पर सबसे बड़ा संकट है। यानी सवाल लोकतंत्र की लौ को जलाये रखने का भी है।

भारत में न्यायपालिका की भूमिका क्या है? | Khan Global Studies Blogs

हर किसी को पता है कि बीते दशक में जनता से जुड़े हुए महत्वपूर्ण मामले सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर गये और उन पर दिये गये फैसलों से ऐसी हरकत कभी नहीं हुई जैसी बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के भीतर हुई। न्यायपालिका की सार्थकता तभी होती है जब वह लोकतंत्र के साथ खड़ा हो और लोकतंत्र के साथ खड़े होने का मतलब है संवैधानिक महत्व के मुद्दों को, नागरिक स्वतंत्रता के सवालों को प्राथमिकता के आधार पर ना सिर्फ सुना जाय बल्कि स्पष्ट और साफ शब्दों में ऐसे फैसले निकल कर आयें जो बतायें कि देश संविधान के हिसाब से चलता है। सीजेआई गवई इससे ज्यादा कुछ कह नहीं सकते थे तो कह दिया कि वो बात पुरानी हो गयी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने टेलिफ़ोन पर सीजेआई से बात करके कह दिया कि उनकी खामोशी ने बहुत अच्छा काम किया है। इनसे बेहतर बात तो सीजेआई की बहन ने कही - ये एक व्यक्ति के ऊपर नहीं संविधान, लोकतंत्र के ऊपर हमला है और ये कहना सीजेआई की बहन भर का नहीं है बल्कि ये कहना तो सारे देशवासियों का है। कुछ ऐसी ही बात सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की पीठ के सदस्य रहे जस्टिस उज्जवल भुइंया ने भी कही है - - "जस्टिस बीआर गवई देश के चीफ जस्टिस हैं। यह कोई मज़ाक की बात नहीं है। जूता फेंकना पूरे संस्थान का अपमान है" । यहां यह कहना प्रासंगिक होगा कि सुप्रीम कोर्ट की सुरक्षा का दायित्व दिल्ली पुलिस का है और दिल्ली पुलिस गृह मंत्रालय यानी गृहमंत्री अमित शाह के अधीन है। गृहमंत्री अमित शाह के मुख से तो 'जूते' का "जू" तक सुनाई नहीं दिया देश को। संविधान सभा में लंबी चर्चा के बाद एक ऐसा संविधान देश को सौंपा गया है जिसके आसरे भारत में तानाशाही नहीं रेंग सकती है। भारत लोकतंत्र के आसरे ही दुनिया में अपनी पहचान बनायेगा।

नोबेल समिति ने नोबेल शांति पुरस्कार का ऐलान करते हुए बहुत साफ तौर पर कहा कि जिस महिला को नोबेल शांति पुरस्कार दिया जा रहा है (मारिया कोरिना मचाडो) उसने हालिया समय में लेटिन अमेरिका में साहस का सबसे असाधारण उदाहरण पेश किया है। वह भी तब जब दुनिया भर में लोकतंत्र को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं, लोकतंत्र के ऊपर काली छाया मंडरा रही है। तो क्या भारत में भी एक असाधारण तरीके से हिम्मत दिखाने की परिस्थितियां जन्म लेने लगी हैं। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि भारत की न्यायपालिका के फैसलों में न्यायकर्ता की निजी आस्था की परछाईं भी नहीं पड़नी चाहिए लेकिन कई ऐसे फैसले सुप्रीम कोर्ट की चौखट से बाहर आये हैं जिन्होंने इस आस्था को भोथरा किया है उसमें से अयोध्या का रामजन्मभूमि - बाबरी मस्जिद वाला फैसला भी एक है। राजनीति के लिए जाति, धर्म, लिंग, समुदाय, भाषा,प्रांत सब कुछ मायने रखता है लेकिन जब न्याय का ककहरा यानी फैसला लिखते हैं तो उस वक्त जाति, धर्म, समुदाय, लिंग, भाषा, प्रांत कोई मायने नहीं रखता है लेकिन जिस तरीके से राजनीतिक विचारधारा का जूता उछाला जा रहा है उससे सुप्रीम कोर्ट की चौखट से निकलने वाला हर फैसला भोथरा दिखाई दे रहा है।

Supreme Court Cji Br Gavai Man Tries To Throw Object During Proceedings  News And Updates - Amar Ujala Hindi News Live - Sc:चीफ जस्टिस गवई पर जूता  उछालने की कोशिश करने वाला

सीजेआई जस्टिस बीआर गवई पर फेंके गये जूते की छाया सुप्रीम कोर्ट में वोट चोरी को लेकर सुनवाई कर रही जस्टिस सूर्यकांत (भावी चीफ जस्टिस आफ इंडिया) एवं जस्टिस जे बागची की बैंच के फैसले पर साफ - साफ दिखाई दी । व्यवस्थापिका और कार्यपालिका ने तो वर्षों पहले अपनी विश्वसनीयता खो दी है लेकिन अब न्यायपालिका भी अपनी विश्वसनीयता खोती दिखाई दे रही है जो लोकतंत्र के खात्मे का ऐलान करती नजर आती है। दुनिया में सबसे पुराने लोकतांत्रिक देश के तौर पर अमेरिका की पहचान है। उसी देश का मौजूदा राष्ट्रपति पूरी दुनिया को अपनी ऊंगली पर नचाते हुए खुद को नोबेल शांति पुरस्कार देने की गुहार लगा रहा था और लोग मानने भी लगे थे कि हो सकता है नोबेल शांति पुरस्कार अमेरिकी राष्ट्रपति को मिल जायेगा लेकिन उसी शांति पूर्ण तरीके से नोबेल समिति ने यह कह कर नकार दिया कि न तो ये नोबेल के विचारों से मेल खाता है और न ही नोबेल सम्मान की पहचान के दायरे में फिट बैठता है। 14 जनवरी 2012 को मारिया कोरिना मचाडो उस समय सुर्खियां में आई थी जब उसने उस वक्त के राष्ट्रपति को उनके भाषण के बीच खड़े होकर उन्हें चोर कहते हुए लोगों की जप्त की गई सम्पति को वापस करने की मांग की थी। भले ही राष्ट्रपति ने मारिया को महिला कहते हुए नजरअंदाज कर दिया लेकिन दुनिया की तमाम बड़ी हस्तियों द्वारा वेनेजुएला के गले में तानाशाही का पट्टा लटका दिया गया। 2024 में मचाडो ने राष्ट्रपति की दावेदारी की जिसे शाजिसन खारिज कर दिया गया। तब मारिया ने दूसरी पार्टी को समर्थन देकर राष्ट्रपति का चुनाव जितवा दिया लेकिन तानाशाही सरकार ने चुनाव परिणाम को मानने से इंकार कर दिया।

वेनेजुएला की मारिया मचाडो को नोबेल शांति पुरस्कार - dainiktribuneonline.com

वेनेजुएला  सरकार की तानाशाही पर नोबेल समिति ने मारिया कोरिना मचाडो को यह कहते हुए नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा कि लोकतंत्र की लौ बुझनी नहीं चाहिए। इसने मौजूदा वक्त में दुनिया की हर सत्ता और शासन व्यवस्था के सामने कई सवाल खड़े कर दिए हैं जिसमें भारत भी अछूता नहीं है। भारत सरकार की तानाशाही प्रवृत्ति, संविधान, लोकतंत्र और न्यायपालिका को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। सवाल ये नहीं है कि सीजेआई जस्टिस बीआर गवई दलित हैं या ब्राह्मण दरअसल वे देश की सबसे बड़ी अदालत के सबसे बड़े न्यायमूर्ति हैं और असहमति का जूता हर मुद्दे पर हर दम उछाला जा रहा है क्योंकि भारत की संसदीय राजनीति उन मुद्दों में उलझ चुकी है जहां उसे लगने लगा है कि राजनीतिक तौर पर चुनावी जीत हार में ही उसकी मौजूदगी उसके अस्तित्व से जुड़ी हुई है। जिसके चलते वे सोच भी नहीं पा रहे हैं कि सवाल तो लोकतंत्र के अस्तित्व का है, सवाल तो संविधान के अस्तित्व का है, सवाल तो आने वाली पीढ़ी को कौन सा भारत सौंपने का है ? यानी भारत में लोकतंत्र, संविधान और न्यायपालिका बचेगा या नहीं बचेगा। क्योंकि देश राजनीतिक सत्ता के आदेशों तले या फिर उसके ईशारों तले एक खामोशी को ओढ़कर राजनीतिक तंद्रा में खो चुका हो तो फिर सवाल खड़े होते हैं कि संसद लोकतंत्र का मंदिर कैसे हो सकती है?, सुप्रीम कोर्ट न्याय का मंदिर कैसे हो सकता है ? जाति, धर्म, सम्प्रदाय, लिंग, भाषा, प्रांत कोई भी हो महत्वपूर्ण तो संविधान ही है और मौजूदा राजनीतिक सत्ता उसका ही बलात्कार करने पर आमदा है ! 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
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बिल्कुल समाप्त हो चुकी भूमिहार विचारधारा की राजनीति की फिर से पुनर्वापसी होगी और भूमिहारों के दिन बहुरेंगे ?

अगले ही चुनाव में एक अन्य भूमिहार के समर्थन में खुलकर उतर गया लेकिन दुर्भाग्य से वह उम्मीदवार 65 वोट के अंतर से हार गया ।

मेरे बहुतेरे भूमिहार मित्र के द्वारा लिखे गए उनके कमेंट्स पढ़कर उनके मन में उठ रहे कौतूहल के मद्देनजर आज मैं पूर्ववर्ती भूमिहार विचारधाराधारा और उसके तहत की जाने वाली राजनीति पर गहन चर्चा हेतु उपस्थित हुआ हूँ और मुझे पता है कि ये चर्चा थोड़ी लंबी होगी । सर्वप्रथम चर्चा की शुरुआत मैं आपराधिक छवि वाले भूमिहारों के विरोध के कारण पर चर्चा करना चाहूंगा और ऐसे लोगों से भूमिहार समाज को कैसे प्रत्यक्ष और परोक्ष नुकसान हो रहा है, इसपर भी प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा। बात सन 2001 की है, मेरे पंचायत में मुखिया का चुनाव होना था , बहुत सारे लोगों ने मेरे पिता को मुखिया चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया लेकिन मेरे पिता ने मेरे  अपने चाचा लोगों के आंतरिक विरोध और जलन की भावना को समझते हुए खुद चुनाव लड़ने की बजाए  दुराचारी भूमिहारों द्वारा प्रस्तावित एक अनपढ़ और चरित्रहीन भूमिहार को ही चुनाव लड़ने हेतु अपना समर्थन दे दिया और नतीजा यह हुआ कि वह चुनाव तो जीत गया लेकिन सत्ता पाकर उसके अहंकार में आकर उसने पढ़े लिखे और संभ्रांत भूमिहारों पर ही  दमन करना शुरू कर दिया। कई नौकरी पेशेवर भूमिहारों की नौकरी खत्म करवाने के उद्देश्य से उस दुराचारी भूमिहार मुखिया ने अनुसूचित जाति कानून के तहत झूठे मुकदमे पैसे देकर करवा दिए और कई अन्य तरह के आपराधिक मुकदमे उसने अन्य भूमिहारों को तंग करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर किया जिसकी वजह से बहुत सारे भूमिहार आर्थिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए ।  मैं इन सारे घटनाक्रम को एक एक करके देख और परख रहा था और फिर मैंने फैसला कर लिया कि उस दुराचारी भूमिहार की सत्ता का अंत करके रहूंगा  । मैने अगले ही चुनाव में एक अन्य भूमिहार के समर्थन में खुलकर उतर गया लेकिन दुर्भाग्य से वह उम्मीदवार 65 वोट के अंतर से हार गया ।


बाद में आगे के चुनाव में जब उस दुराचारी भूमिहार के राजनीति का मैंने अंत किया तो मुझपर अकेले में जानलेवा हमला उसने करवा दिया। खैर मेरे सगे संबंधी अच्छे अच्छे पद पर विराजमान हैं जिसके कारण अंततोगत्वा सामाजिक वर्चस्व और सहानुभूति मेरे पक्ष में रही । अब यहाँ सबसे गंभीर प्रश्न ये उठ खड़ा हुआ कि जब मेरे पिता जी को संभ्रांत भूमिहारों ने मुखिया चुनाव लड़ने हेतु अनुरोध किया था, तो उन्हें लड़ना चाहिए था । बजाए इसके उन्होंने चंद दुष्टात्मा भूमिहारों के दुष्टता से कुपित होकर खुद चुनाव नहीं लड़ने का जो फैसला किया उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि उस दुराचारी भूमिहार ने सत्ता पाकर तमाम झूठे मुकदमे करवाकर एक से एक पढ़े लिखे भूमिहारों का आज से 20 वर्ष पहले करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान उन झूठे मुकदमों को झेलने में करवा दिया । इन घटनाओं ने मुझ जैसे लोगों को काफी अंदर से झकझोर दिया और फिर मैंने प्रण कर लिया कि ऐसे दुराचारी लोगों का अंत करके ही दम लूंगा और मेरा यह प्रयास अनवरत जारी है और आजीवन जारी रहेगा । यहां एक बड़ा ही माकूल बात मैं बताना चाहता हूँ कि जैसे ही मुझपर हुए हमले की खबर मेरे खेत को जोतकर अपनी आजीविका चलाने वाले मल्लाह जाति के दो अलग अलग लोग और दुसाध जाति के दो अन्य लोगों को मिली , तुरंत वो लोग मेरे लिए अपना जान देने की बात कह मेरे दरवाजे हाजिर हो गए और मुझसे आज्ञा मांगने लगे लेकिन मैंने उनको शांत किया । यहाँ एक बात और देखने को मिली कि दो कुर्मी जाति के भी बटाईदार मेरे  थे जो मेरा खेत जोतते थे , वो लोग मजे लूटने लगे  क्योंकि उनको इस बात का अब घमंड हो चुका है कि उनकी बिरादरी का अब बिहार का राजा है , इसलिए वो ज्यादा चालाक समझने लगा है। एक  और दीगर बात यह थी कि एक भूमिहार जिसे कि मैंने अपनी जमीन जोतने के लिए लगभग मुफ्त में दे रखा था पिछले 20 वर्षों से वह भी मेरे साथ गद्दारी कर रहा था, चंद  दुष्ट भूमिहारों के बहकावे में आकर। मुझे एक बात समझ में आई कि इस सारे घटनाक्रम में दुष्ट विचार के लोग एक साथ खड़े नजर आए तो वहीं अच्छे विचार के सभी जाति के लोग मेरे साथ खड़े नजर आए ।

जमींदार 🚩🚩 #jamindar #jamin #bhumihar ...


बस यही मैं देखना और समझना चाह रहा था जो मुझे समझ में आ गया। अब आप ही बताइए कि आज के जमाने में कोई मल्लाह या दुसाध मुझे मालिक कहकर संबोधित करता है और मेरे लिए अपना जान न्यौछावर करने की भी पेशकश करता है तो भला मैं कैसे उसे नजर अंदाज कर सकता हूँ । यही कारण है कि आज भी मैं अपनी जमीन उन्हीं लोगों को देकर खुद की आजीविका के लिए नौकरी के साथ संघर्ष कर रहा हूं और मुझे इस बात की संतुष्टि है कि पूर्वजों द्वारा दी गई  मुझे संपत्ति से  6 परिवारों का भरण पोषण मजे से हो रहा है।


यहाँ एक बात और बताना चाह रहा हूँ कि मैं अपने लीची के बगीचे को पिछले 15 वर्षों से एक गरीब भूमिहार को बहुत ही सस्ते दर पर लगातार देता आ रहा हूँ जिससे कमाई करके उसने पक्का का मकान भी बना लिया है। मुझे खुशी मिलती है कि कोई अपने पुरुषार्थ से मेरे सहयोग से कुछ अच्छा करता है तो । इस सोच का एक दूसरा पहलू यह भी है कि मैं अपनी इन्हीं सोच के कारण हमेशा आर्थिक रूप से खुद को उतना सशक्त नहीं कर पाता हूँ जितना कि मुझे होना चाहिए क्योंकि मुझे ज्यादा आक्रामकता पसंद नहीं और मैं सबका साथ सबका विकास की विचारधारा का पोषक रहा हूँ ।


यह सारे गुण मैंने अपने पिता से सीखे हैं । मेरे पिता जी जिस समय भारतीय रेल में स्टेशन प्रबंधक थे, उस समय हमलोग के सरकारी आवास पर महीने में 50 से 100   अलग अलग जगह के भूमिहार समाज के लोगों का आना जाना और  उनसे मिलना जुलना और खाना पीना लगा ही रहता था। मैंने देखा कि पिताजी धन कमाने की बजाए लोगों से आशीर्वाद और उनसे प्रेम रखने के ज्यादा हिमायती थे और यही वजह थी कि बाबू जी को सभी लोग बहुत प्रेम करते थे । मैं भी पूरा प्रयास करता हूँ कि भले मुझे आर्थिक तकलीफ झेलनी पड़े लेकिन कोई मेरे  संसाधनों से लाभान्वित हो रहा है , तो उसको होना ही चाहिए । अभी हाल में ही मैंने दूसरों की भलाई के लिए पैसों का प्रबंध उधार लेकर किया क्योंकि हाल में ही मेरे नियोक्ता ने मेरे वेतन के तहत मिलने वाले  Fooding Allowance के तहत मुझे दी जाने वाली राशि में से 8000 रुपए मासिक की कटौती कर दी जिससे मैं आर्थिक रूप से बैक फूट पर आ गया हूँ लेकिन बावजूद इस अतिरिक्त कष्ट के मेरे अंदर का वो दानवीर वाला भाव प्रभावित नहीं हुआ है क्योंकि मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि जिस ईश्वर ने मुझे जिंदगी दी है , वही मेरे लिए आहार की भी व्यवस्था करेंगे ।


अब आइए जरा बिहार सरकार की हालिया राजनीति और इस सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का भी तीक्ष्ण अवलोकन करते हैं और इसपर चर्चा करते हैं । वैसे तो 2005 से बिहार में भाजपा की सरकार है और तमाम लोगों ने ये भ्रम फैलाकर रखा हुआ है कि भाजपा यानि भूमिहारों की सत्ता और इनकी ही सरकार , जबकि असलियत यह है कि ये कुर्मी का राज चल रहा है, न कि भूमिहारों का और विगत 20 वर्षों से चल रहे इस कुर्मी राज में भूमिहार केवल इस्तेमाल हुआ है और बदनाम भी । भूमिहारों को विगत 20 वर्षों में सिर्फ कुर्बानी ही देनी पड़ी है और इनको प्राप्ति के नाम पर कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है । हां चंद भूमिहार दलाल लोग जरूर अति धनाढ्य हुए हैं लेकिन वो केवल वैसे लोग हुए हैं जिन्होंने अपने ही भूमिहार समाज की बलि लेने में कोई कसर नहीं बाकी रखी है।


सरकारी नौकरियों को यदि देखा जाए तो पिछले 20 वर्षों में सर्वाधिक लाभ कुर्मी जाति के लोगों ने उठाया है जबकि बिहार में कुर्मी जाति की संख्या भूमिहार जाति का एक तिहाई है।

भूमिहार समाज ...


फिर भी आज कुर्मी इतनी चालाक और महत्वाकांक्षी जाति बन चुकी है कि ये भूमिहारों को इस्तेमाल कर अपना निजी लाभ लेती जा रही है । वैसे कुर्मी जाति के बारे में एक आम अवधारणा प्रचलित है कि ये लोग दरभंगा महाराज को भी बेचकर खा गया यानि उन्हें भी ठग लिया । कहने का तात्पर्य यह है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हम भूमिहारों को सरकारी नौकरियों से दूर कर दिया गया ताकि हम संघर्ष करने को मजबूर हों ।


भूमिहार चूंकि मूलरूप से कृषक जाति है, इसलिए खेती किसानी पर आज भी भूमिहारों की अधिकांश निर्भरता रहती है । बिहार में बाढ़ और सुखाड़ हर वर्ष लगा ही रहता है और इससे सुरक्षा देने के लिए ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजना शुरू की गई थी जो कि एक अच्छा सुरक्षा आवरण था किसानों के लिए । 2017 के  खरीफ फसल तक , जबतक PMFBY योजना बिहार में लागू थी , किसान इस बात के लिए निश्चिंत रहते थे कि देर सबेर उनको हुई आर्थिक क्षति का मुआवजा उनको PMFBY के बीमा सुरक्षा योजना के तहत मिल ही जाएगा लेकिन नीतीश सरकार में बैठे शीर्ष अधिकारियों को जैसे ही इस बात की भनक लगी कि इस योजना से भूमिहार लाभान्वित हो रहा है, नीतीश सरकार ने इस योजना को फौरन यह कहकर बंद कर दिया कि बिहार सरकार को इस बीमा योजना के तहत बतौर प्रीमियम राशि सालाना 500 खर्च करनी पड़ रही है , जिसके लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं । आज यही नीतीश सरकार मुफ्त की पेंशन योजना और  लूट खसोट वाली राशन कार्ड योजना पर बड़ी राशि बहा रही है और अभी पिछड़ी जाति की महिलाओं के खाते में 10000 की  मुफ्त रेवड़ी बांटी गई है , लेकिन किसानों को उचित सुरखा आवरण देने के लिए इस सरकार के पास पैसे नहीं हैं। अब आप ही बताइए कि ये कौन सी विचारधारा की राजनीति बिहार में चल रही है जिसमें भूमिहार को बतौर मुखौटा तो आगे रखा जाता है लेकिन भूमिहारों का ही जड़ काटा जा रहा है जबकि हमलोग सभी जातियों के पोषक रहे हैं । इसलिए मैं आज के इस छद्म भूमिहार राजनीति का घोर विरोधी हूँ और पूर्वर्ती भूमिहार विचारधारा वाली राजनीति को फिर से बिहार में देखना चाहता हूँ , जहां सबका साथ और सबका विकास एक सच्चाई भरे एहसास के साथ अमल में लाया जा सके ।


इसलिए इस चर्चा को विराम  देने से पहले मैं फिर अपने शुभेक्षु भूमिहार मित्रों से एक ही वही प्रश्न कर रहा हूँ जो कि इस चर्चा का शीर्षक भी है कि क्या " 
बिल्कुल समाप्त हो चुकी भूमिहार विचारधारा की राजनीति की फिर से पुनर्वापसी होगी और भूमिहारों के दिन बहुरेंगे ?

अपलोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।


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ब्रह्मर्षि विचारक " राजीव कुमार " की कलम से  
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 30

इतना तो तय है कि पीएम ने सीजेआई को सद्भाविक टेलिफ़ोन तो किया नहीं होगा !

Close Down Parliament If Supreme Court Has To Make Law: Nishikant Dubey  News In Hindi - Amar Ujala Hindi News Live - Sc Row:निशिकांत दुबे बोले-  सीमा से बाहर जा रहा सुप्रीम

भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे उवाच - यहां पूरा जजमेंट लिखा हुआ है, राष्ट्रपति का क्या अधिकार है, प्रधानमंत्री का क्या अधिकार है, हमारे पार्लियामेंट का क्या अधिकार है, हमारे सुप्रीम कोर्ट का क्या अधिकार है, हाईकोर्ट का क्या अधिकार है सब कुछ लिखत-पढ़त है। तो तुम नया कानून कैसे बना दिये, तीन महीना कहां से लेकर आ गये कि राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर फैसला करना है। ये किस कानून में लिखा हुआ है। इसका मतलब ये है कि आप देश को एन आर सी की तरफ ले जाना चाहते हो और एन आर सी इस देश में बर्दास्त नहीं होगी। जब नया कानून आयेगा, जब नया पार्लियामेंट बैठेगा इस पर विस्तृत चर्चा होगी और फिर से नेशनल ज्यूडीसरी अकाउंटबिलटी सिस्टम जो हमने NJSE बनाया था जिसमें राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होगा, प्रधानमंत्री का कैसे चुनाव होगा वो तो संविधान में लिखा हुआ है लेकिन आपके भाई भतीजावाद के आधार पर जज का चुनाव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में एससी जज नहीं है, एसटी जज नहीं है, ओबीसी जज नहीं है। मैक्सिमम 78-80 पर्सेंटेज जो हैं केवल और केवल जो हैं स्वर्ण जाति के जज बैठे हुए हैं और अपना कानून चलाओगे, ये कानून नहीं चलेगा। ये प्रतिक्रिया है भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट की क्रिया पर जो उसने जनता द्वारा अपने वोट के माध्यम से चुनी हुई राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दिये जाने की समय सीमा तय करने में की थी। अप्रैल 2025 - निशिकांत दुबे उवाच - आज जो है ये देश राम, कृष्ण, सीता, राधा, द्वादश ज्योतिर्लिंग से लेकर 51 शक्ति पीठ का है। सनातन की परम्परा है। आप जब राम मंदिर का विषय होता है तो आप राम मंदिर से कहते हो कागज दिखाओ-कागज दिखाओ। कृष्ण जन्मभूमि का मामला आये मथुरा में तो कहोगे कि कागज दिखाओ। आप जब शिव की बात होगी, ज्ञानव्यापी मस्जिद की बात आयेगी तो कागज दिखाओ और आज केवल आप मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बने हैं उसके लिए कहते हैं आप कागज कहां से दिखाओगे। इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए केवल और केवल सुप्रीम कोर्ट जिम्मेवार है। सुप्रीम कोर्ट का एकमात्र उद्देश्य है।

फ्री, फ्री, फ्री... मुफ्त में मिलेंगी ये सभी चीजें, चुनाव से पहले PM नरेंद्र  मोदी का बड़ा ऐलान - Free Bijli to muft ration PM Narendra Modi big  announcement in BJP Manifesto

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ट्यूट जो उन्होने सीजेआई गवई से टेलिफ़ोन पर बात करने के बाद एक्स पर साझा किया - - Spoke to Chief Justice of India Justice BR Gavai ji. The attack on him earlier today in the Supreme Court premises has angered every Indian. There is no place for such reprehensible acts in our society. It is utterly condemnable. I appreciated the claim displayed by Justice Gavai in the face of such a situation. It highlights his commitment to volues of justice and strengthening the sprit of our constitution. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कैमरे के सामने आकर कहा - - देखिए घटना निंदनीय है। कोई भी भारतीय इसके पक्ष में नहीं हो सकता है। कोर्ट चल रहा था। उस समय इस तरह की घटना हुई और हम इसकी निंदा करते हैं लेकिन साथ में जिस तरह से माननीय प्रधान न्यायाधीश ने संयम दिखाया उसकी भी हम सराहना करते हैं।

TNP News - CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना पर पीएम मोदी का सख्त रिएक्शन –  “हर भारतीय आहत है, न्याय पर हमला बर्दाश्त नहीं”

हर कोई को लगेगा कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री ने चीफ जस्टिस के साथ घटी घटना की निंदा की भले ही घंटों बाद की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल किसी ने भी अपने व्यक्तव्य में सीजेआई गवई पर जूता उछालने वाले वकील पर कार्रवाई करने की बात नहीं कही है ना ही घटना कारित करने वाले के द्वारा लगाये गये नारे "सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान" की निंदा की है । जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री ने बिहार चुनाव में पड़ सकने वाले नकारात्मक प्रभाव के मद्देनजर डेमेज कंट्रोल को साधने के लिए सिर्फ और सिर्फ रस्म अदायगी की है। भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे ने जिस तरह से खुले आम न केवल सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस आफ इंडिया और संविधान पर अपमानजनक व्यक्तव्य दिया तब तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोई व्यक्तव्य देने के बजाय चुप्पी साध कर अपने सांसद की पीठ ही थपथपाई थी। प्रधानमंत्री और कानून मंत्री कह रहे हैं कि कोई भी भारतीय इस घटना के पक्ष में नहीं हो सकता तो जो बीजेपी और आरएसएस की टोल आर्मी सोशल मीडिया पर जूताजीवी का महिमामंडन कर रहे हैं तो क्या ये माना जाय कि वे सारे लोग भारतीय नहीं हैं। फिर तो उन सभी पर देशद्रोह वाली धाराओं के तहत मामला दर्ज कराने की बात प्रधानमंत्री और कानून मंत्री को करनी चाहिए थी जो वो नहीं कर रहे हैं।

CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना से पूरे देश में आक्रोश, PM मोदी ने की कड़ी  निंदा, बोले - हर भारतीय नाराज

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सीजेआई बीआर गवई को टेलिफ़ोन करना भी सद्भाविक ना होकर अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए है। ध्यान दें तो पीएम मोदी ने सीजेआई रहे रंजन गोगोई को रिटायर्मेंट के बाद राज्यसभा मेम्बर बनाया। उसके बाद चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड के घर गणेश पूजा करने चले गए। इनके ही कार्यकाल में सीजेआई गवई से पहले वाले सीजेआई संजीव खन्ना पर इनकी ही पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे और तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अमर्यादित शब्दों का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को कटघरे में खड़ा करते हुए देश में अराजकता और धार्मिक दंगा करवाने वाले अनर्गल आरोप लगाये। इसी कालखंड में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार चार सीनियर मोस्ट जजों ने सार्वजनिक तौर पर प्रेस कांफ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट के भीतर की नंगी हकीकत को रोस्टर सिस्टम के जरिए उजागर किया। इसी दौर में जजों को भर्ती करने वाले सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम सिस्टम की जगह नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन बनाया गया और पीएम मोदी के कालखंड में सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही सुनवाई के दौरान ही एक वकील ने चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई के ऊपर जूता उछाला।

बेहद निंदनीय': प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ जस्टिस बीआर गवई पर हमले की  निंदा की

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सीजेआई गवई को टेलिफ़ोन करने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या पीएम मोदी ने सीजेआई गवई से सिर्फ इसलिए टेलिफ़ोन पर बात की कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर उन पर जूता उछाला गया या फिर बात इसलिए की कि सुप्रीम कोर्ट इस समय देश के भीतर बड़े बन चुके उस मुद्दे की सुनवाई कर रही है, अगर उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ फैसला दे दिया तो एक झटके में भारत की समूची संसदीय राजनीतिक व्यवस्था जिसे चुनाव के जरिए चुनाव आयोग चला रहा है ना सिर्फ मटियामेट हो जायेगी बल्कि 2024 के आम चुनाव को लेकर विपक्ष जो सवाल उठा रहा है उस पर भी सही का निशान लग जायेगा। जिसका सीधा इफेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन पर पड़ेगा ? यह भी सवाल खड़ा हो जायेगा कि क्या वाकई सरकार ने चुनाव आयोग को मैनेज कर लिया है ? चुनाव आयोग ने वोटर को मैनेज कर लिया है ? वोटर लिस्ट जिस तरीके से बनाई जा रही है वहां पर जनता कोई भी फैसला दे लेकिन हर फैसला सत्ताधारी बीजेपी, पीएम मोदी के हक में होगा ? सुप्रीम कोर्ट के भीतर जिस तरह से भरी अदालत में सीजेआई गवई पर जूता उछाला गया उसने भी इस सवाल को फिर खड़ा कर दिया है कि "क्या भारत में वाकई कानून का राज है ? क्योंकि चंद दिनों पहले किसी और शख्स ने नहीं बल्कि खुद सीजेआई गवई ने मलेशिया में इस सवाल पर कहा था कि रूल आफ लाॅ कोई बंच आफ नियम नहीं है। रूल आफ लाॅ का मतलब है कानून के हिसाब से चलना। यानी बुलडोज़र कानून नहीं है। लेकिन जिस वक्त सीजेआई गवई मलेशिया में रूल आफ लाॅ का जिक्र कर रहे थे उसी समय यूपी के हिस्सों में सीएम योगी का बुलडोज़र कानून अल्पसंख्यकों की छाती रौंद रहा था।

सुरक्षा जांच में सबूत का बोझ

रूल आफ लाॅ के जरिए ही चैक एंड बैलेंस की परिस्थिति होती है ताकि कोई ताकतवर तानाशाह के रूप में उभर कर सामने ना आ जाए और यही चैक एंड बैलेंस इस दौर में गायब हो गया है । जूता कांड को अंजाम देने वाले 71 वर्षीय एडवोकेट राकेश किशोर का कहना है कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है। मैंने कोई गुनाह नहीं किया है इसलिए मुझे कोई पछतावा भी नहीं है। उसका पूरा आंकलन धर्म के लिहाज से था। एडवोकेट राकेश किशोर - - मैं भी कम पढ़ा लिखा नहीं हूं। मैंने भी बी एससी, पीएचडी, एल एलबी किया है। मैं भी गोल्डमेडलिस्ट हूं। ऐसा नहीं है कि मैं नशे में था या मैंने कोई गोलियां खा रखी थी। उन्होने एक्शन किया मेरा रिएक्शन था। वैसे क्रिया-प्रतिक्रिया वाली बात पहली बार नहीं कही जा रही है इसके पहले भी 2002 में आरएसएस के सर संघचालक सुदर्शन गुजरात के भीतर घटी अति निंदनीय घटनाओं के संदर्भ में क्रिया-प्रतिक्रिया का जिक्र कर चुके हैं।

Supreme Court Decision Today On Demonetisation 10 Facts to know what  happened since Govt Note Ban Move | देश में हुई नोटबंदी के बाद से क्या हुआ?  10 प्वॉइंट्स में जानें सुप्रीम

नोटबंदी का मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर गया। नोटबंदी जिस बात को कह कर की गई थी (ब्लैकमनी वापस आयेगी) वह तो हुआ नहीं फिर भी सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के पक्ष में खुलकर खड़ा हो गया। व्यापारियों और बनियों के साथ कदमताल करने वाली बीजेपी ने जीएसटी लागू करके उसी तबके को हिलाकर रख दिया। सुप्रीम कोर्ट के भीतर सवाल जबाव होते रहे नतीजा सिफर रहा आखिरकार सरकार ने 8 साल बाद खुद मान लिया कि स्लैब 5-6 नहीं 2 होने चाहिए। मगर इससे बड़ा बेशर्मी भरा लतीफा दूसरा नहीं होगा कि मोदी सरकार ने अपने ही फैसले के खिलाफ जाकर दूसरा फैसला ले आई वह भी आठ साल बाद इसके बाद भी उत्सव मनाते हुए कह रही है कि हमने मंहगाई दूर कर दी, मुश्किल हालात कम कर दिए। पैगासस के जरिए हो रही जासूसी का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जानकारी मांगी। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा - राष्ट्रहित की आड़ लेकर जानकारी देने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट को सांप सूंघ गया। इलेक्ट्रोरल बांड्स का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लम्बी ना नुकुर के बाद सरकार ने जानकारी मुहैया कराई। अदालत ने इलेक्ट्रोरल बांड्स को गैरकानूनी ठहराया यानी बसूली गई सारी रकम एक झटके में ब्लैकमनी में तब्दील हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैकमनी जप्त करने के बजाय उसे पार्टियों के पास ही रहने दिया। राफेल की डील गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट थी। अचानक अनिल अंबानी की एंट्री हुई और कीमत आसमान पर पहुंच गई। मामला न्याय हित में न्यायपालिका गया। अदालत ने सरकार से जानकारी चाही। सरकार ने एकबार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा - राष्ट्रहित की आड़ लेकर जानकारी देने से मना कर दिया। अदालत ने भी खामोशी बरत ली। महाराष्ट्र में उध्व ठाकरे की सरकार गिरा दी गई। शिवसेना का जरासंधी वध कर दिया गया। राज्यपाल की भूमिका संदिग्ध थी। मामला सुप्रीम कोर्ट गया। अदालत ने फैसला दिया कि सब कुछ गैरकानूनी हुआ है फिर भी गैरकानूनी सरकार को बेधड़क चलने दिया गया। कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से भृष्टाचार को मान्यता दी, नैतिकता को मरने दिया, विचारधारा को समाप्त होने दिया, संवैधानिक मूल्यों की अर्थी निकलने दी। चैक एंड बैलेंस को गधे के सींग माफिक गायब होने दिया गया। सत्ता को अपने अनुकूल वातावरण बनाने दिया गया। ये प्रक्रिया ऊपर से नीचे तक फैलती चली गई, तभी तो बिना हिचकी लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीफ जस्टिस आफ इंडिया को राज्यसभा की मेम्बरी देते हैं, पूजा करने घर पहुंच जाते हैं, टेलिफ़ोन पर बात करने लगते हैं और अपने ही सांसद के जरिए यह कहलवाने से भी नहीं कतराते कि दरअसल हर मुसीबत की जड़ सुप्रीम कोर्ट है।

Supreme Court of India | India

100 साल से बोये गए विष बीज ने पिछले साढ़े ग्यारह साल में ऐसी फसल पैदा कर दी है जो उस मानसिकता की शिकार नहीं बल्कि उसी मानसिकता में जीने लगी है। तभी न पीएम मोदी दबी जबान में बोल रहे हैं। चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों पर सफाई देने उतर पड़ने वाली पीएम मोदी की पूरी टीम सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई के ऊपर उछाले गये जूते की निंदा करने क्यों नहीं उतरी उल्टा जूताजीवी के साथ खड़ी दिख रही है। इन सब डरावनी परिस्थितियों के बावजूद भी भारत उस संविधान के आसरे चलता है जिसमें समानता का जिक्र है, हर किसी को बराबरी का हक देने-दिलाने का जिक्र है और शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर हो रही ऐसे मुद्दे की सुनवाई जिस पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े कर दिए तो मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में पूरी चुनावी प्रक्रिया की पोल पट्टी खुल जायेगी शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर चीफ जस्टिस आफ इंडिया के साथ खड़े नजर आने लगे हैं, टेलिफ़ोन करने लगे हैं। शायद इसीलिए 2014 के बाद से सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस आफ इंडिया को लेकर सार्वजनिक तौर पर खुलकर बयानबाजी होने लगी है और बयानबाजी होते - होते बात इतना आगे निकलकर आ गई कि वह जूता उछालने में तब्दील हो गई है। तो क्या अब लोकतंत्र के हर पिलर को लगने लगा है कि क्या कल हमारा नम्बर आने वाला है ? मतलब देश दोराहे पर खड़ा है और चाबी विशेष विचारधारा में पक चुकी ट्रोल आर्मी जिसने देश की सबसे बड़ी अदालत का नामकरण किया है सुप्रीम कोठा (सुप्रीम कोर्ट) के पास है।

Acted under Divine Force : Lawyer who attacked (J) shows no remorse, says Ready to face Jail - Rakesh Kishore, who tried to hurt a shoe at CJI Gavai in the Supreme Court, claimed he acted under a divine force and was ready to face Jail, adding that he had no remorse.

अब अगर जूताजीवी वकील की बात पर यकीन किया जाय तो फिलहाल एक व्यक्ति है जिसने खुद को अवतारी घोषित किया है यानी ब्रम्हा, विष्णु, महेश और तमाम देवी-देवताओं का मिलाजुला स्वरूप तो क्या उसी ने वकील राकेश किशोर को सीजेआई बीआर गवई पर जूता फेंकने को कहा है? उसी ने अवतारी ने तमाम कथावाचकों को सनातन के नाम पर चीफ जस्टिस आफ इंडिया को अपमानित करने, चीर फाड़ करने की धमकियां दिये जाने की सुपारी दी हुई है? संदेश की सुईयां इसलिए उस ओर घूम रही हैं क्योंकि अभी तक सनातन के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वालों के खिलाफ सत्ता के द्वारा एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई गई है बल्कि उनके साथ मंच साझा करते हुए जरूर दिखाई दे रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में हंगामा: एडवोकेट ने CJI बीआर गवई की तरफ जूता फेंकने की  कोशिश की - lawyer rakesh kishor tried to throw shoe at cji br gavai in supreme  court -


सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई की कोर्ट नम्बर एक के भीतर वो हुआ जो भारत के इतिहास में पिछले साढ़े ग्यारह साल में देखना बचा था। वैसे देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जजों ने भी दूसरे संवैधानिक संस्थानों और उसके मुखियाओं की माफिक सत्ता के सामने घुटने टेक दिए हैं फिर भी कोई न कोई ऐसा जज सामने आ ही जाता है जो देशवासियों की नजरों में न्याय के शासन के टूटते बजूद के बावजूद किसी कोने में न्याय पर आस्था को जिंदा रखता है। ऐसे ही जजेज के रूप में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और वर्तमान सीजेआई जस्टिस बीआर गवई को कुछ हद तक रखा जा सकता है। 6 अक्टूबर 2025 दिन सोमवार सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि भारत के माथे पर कभी न मिट सकने वाले काले धब्बे की मानिंद चिपकर रह गया है। वैसे जो भी घटनाक्रम घटित हुआ उसके लिए वर्तमान सत्ता तो जिम्मेदार है ही लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट और जस्टिस भी बराबर से जिम्मेदार हैं। सोमवार की घटना से यह भी साफ हो गया है कि जिस तरह का वातावरण मौजूदा सत्ता ने पिछले साढ़े ग्यारह साल में देश के भीतर बना दिया है उसमें देश को रंजन गोगोई, डीवाई चंद्रचूड जैसे जजेज की ही जरूरत है जो संविधान का राग तो पूरे लय के साथ अलापें लेकिन फैसले सत्तानुकूल दें ना कि तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और देश के दूसरे दलित, प्रथम बौध्दिस्ट सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की तरह। नहीं तो वर्तमान सत्ता के सांसद निशिकांत दुबे, तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मान सम्मान को पैरों तले रौंदने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जायेगी और वह भी तब जब खुद ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने मान सम्मान पर की जा रही क्रिया पर प्रतिक्रिया देने से आंखे चुराई जा रही हो। सही मायने में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नम्बर एक में जो हमला हुआ वो हमला सीजेआई जस्टिस बीआर गवई पर नहीं बल्कि भारत के संविधान पर खीझ भरा हमला है और इसके लिए कहीं न कहीं भारत की आवाम भी जिम्मेदार है अगर उसने वर्तमान सत्ता को 400 पार सीटें दे दी होती तो सांप भी मर जाता और लाठी भी नहीं टूटती यानी जब वर्तमान संविधान ही नहीं होता तो संविधान पर हमला भी नहीं होता।

BT Markets Survey: BJP को कितनी सीटें? मार्केट एक्सपर्ट्स ने सर्वे में कहा-  '400 पार' का लक्ष्य आसान नहीं... बताया क्या संभव - lok sabha election 2024  BT Markets survey bjp Target 400 paar not a piece of cake tuta - AajTak

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्यूट पर ही रिट्रीट कर आलोचनाओं की झड़ी सी लग गई है यानी कहा जा सकता है कि सीजेआई जस्टिस बीआर गवई को लेकर किये गये ट्यूट से प्रधानमंत्री अपने ही पितृ संगठन द्वारा पैदा की गई और खुद के द्वारा खाद-पानी देकर जवान की गई फौज के निशाने पर आ गये हैं। घटना घटित होने के तकरीबन 6 घंटे से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्यूट किया - Spoke to Chief Justice of India Justice BR Gavai ji. The attack on him earlier today in the Supreme Court premises has angered every Indian. There is no place for such reprehensible acts in our society. It is utterly condemnable. I appreciated the claim displayed by Justice Gavai in the face of such a situation. It highlights his commitment to volues of justice and strengthening the sprit of our constitution. जिस पर देश भर में साढ़े ग्यारह साल से लहलहा रही नफरती फसलें प्रधानमंत्री के ट्यूट पर रिट्यूट करते हुए लिख रही हैं Don't just tweet - take action against those celebrating the incident many of those celebrating are people you follow on Twitter. Tatuvam asi - You should have condemned when Gavai insulated our Sanatana Dharma modiji. 

हर भारतीय गुस्से में… सुप्रीम कोर्ट में CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना पर  PM मोदी की तीखी प्रतिक्रिया | Today News


Kanimoshi - With all due respect Prime Minister, please don't diminish your office by tweeting like a by stander. I apologize for my bluntness, but silence when the chief justice brazenly demanded Hindu gods was deafening. And now when Hindus veact with justified outrage, you appear suddenly alarmed ? It any one deserves reprimand, it is the CJI - who, through his vile and disgraceful remarks. Insulted a billion Hindus. Don't misplace your moral compass. ब्लागर ध्रुव राठी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्यूट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है कि Tweeting will not do anything. If you are truly against this, slap NSA and UAPA against the Anti-nationals who are supporting this attack online and encouraging mob violence.

आज के समय में भी हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ऐसे न्यायाधीशों की बहुतायत हो चली है जो एक विशेष विचारधारा से पोषित पल्लवित हैं और यह उनके द्वारा दिये जा रहे फैसलों से साफ साफ परिलक्षित होता है। तत्कालीन सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस बेला त्रिवेदी तो इसके जीते जागते नमूने हैं। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने भी राहुल गांधी पर कमेंट करके सुर्खियां बटोरी है। होने वाले चीफ जस्टिस आफ इंडिया को भी उसी कतार में इसलिए खड़ा किया जाने लगा है कि हाल ही में उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं जो सत्ता पक्ष के साथ उनकी अंतरंगता को बखूबी प्रदर्शित करती हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज ने सत्तापक्ष से जुड़े एक संगठन के कार्यक्रम में तो खुलेआम जो कुछ कहा निश्चित तौर पर उसे समाज विघटन के रूप में देखा गया और सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी इसे मौन समर्थन देती है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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October 12, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 29

विक्रम के काधे से उतरने को तैयार नहीं हो रहा बेताल

Modi@20: कैसे एक कार्यकर्ता से गुजरात के सफल CM फिर देश के PM बने नरेंद्र  मोदी, अमित शाह ने बताया सफर - amit shah praises PM narendra modi on Release  of the

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह (गुजरात लाॅबी) को ये मुगालता हो गया है कि वो ही बीजेपी के पर्यायवाची बन गये हैं और उनके ना रहने पर बीजेपी खत्म हो जायेगी जबकि हकीकत ये है कि बीजेपी मोदी-शाह के रहते खत्म हो चुकी है ! बीजेपी का केवल नाम रह गया है सही मायने में बीजेपी कांग्रेस पार्ट टू बन चुकी है। बीजेपी के साथ चिपका लेबल "पार्टी विथ डिफरेंट" को मोदी-शाह की सत्ता लोलुपता ने बहुत पहले निगल लिया है। बीजेपी के खांटी नेता और कार्यकर्ता दूसरी पार्टी के भृष्ट आयातित नेताओं की वजह से खुद को अपमानित और दोयम दर्जे का महसूस कर रहे हैं। सौ टके की बात तो ये है कि जिस दिन बीजेपी मोदी-शाह के साये से मुक्त होगी उसके अच्छे दिन शुरू हो जायेंगे। गुजराती जोड़ी ने पार्टी को पार्टी की जगह गेंग (गिरोह) बना दिया गया है। इस जोड़ी का खौफ इतना ज्यादा है कि बीजेपी का पितृ संगठन आरएसएस मोदी-शाह की पसंद से इतर जिसको भी पार्टी की कमान सौंपने की सोचता है उसी की चड्डी का नाड़ा टूटने लगता है। कहावत है लोहे को लोहा ही काटता है तो तय है कि गुजरात लाॅबी को निपटाने के लिए गुजरात का ही कोई ऐसा बंदाबैरागी चाहिए जिसको इस गुजरात लाॅबी से कोई पुराना हिसाब चुकता करना हो और ये गुजरात लाॅबी के भीतर भी कहीं न कहीं उसका खौफ़ जदा हो। आरएसएस के तरकश में एक ही ऐसा तीर है जो ना केवल इस गुजरात लाॅबी से बीजेपी को मुक्ति दिला सकता है बल्कि सही मायने में लकवाग्रस्त  हो चुकी पार्टी में जान फूंक कर फिर वही पार्टी विथ डिफरेंट की पोजिशन पर लाकर खड़ा कर सकता है। उस शक्स का नाम है संजय जोशी। जिसके अच्छे खासे समर्थकों का जमावड़ा पार्टी के भीतर मौजूद है। मगर आरएसएस भी कहीं शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, नितिन गडकरी के नाम उछाल कर मोदी-शाह की पसंद के धर्मेंद्र प्रधान, भूपेन्द्र यादव, मनोहर लाल खट्टर से मुर्गे लड़ा कर मजे ले रहा है और एक खूंट में बैठकर संजय जोशी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।

मोदी-शाह के दौर में आरएसएस के आगे क्यों सरेंडर हुई बीजेपी, लोकसभा से  उपराष्ट्रपति चुनाव तक पूरी बदल गई - bjp surrender to rss in era of modi-shah  everything changed from lok

राजनीतिक गलियारों में इस बात की कानाफूसी हो रही है कि आरएसएस की नजरों के तारे नितिन गडकरी को निपटाने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी उनके मंत्रालय की फाइलों को खखांलने लगी है क्योंकि एक बार फिर से गडकरी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने या फिर मोदी के विकल्प बतौर प्रधानमंत्री बनाने के पत्तों को संघ ने फेंटना शुरू कर दिया है। आरएसएस और मोदी-शाह के बीच चल रही रस्साकशी में फंस कर नितिन गडकरी ऊंची कुर्सी पर बैठेंगे या फिर बलि का बकरा बनकर सलाखों के पीछे बैठकर चक्की पीसिंग करेंगे ये तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही है । नितिन गडकरी ने बीते दिनों कहा भी है कि पैसे देकर मेरे खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। गत दिनों सुप्रीम कोर्ट में ऐथॅनाल को लेकर दायर की गई याचिका में नितिन गडकरी के लड़कों की कंपनी को घसीटने की चर्चा आम हो चली थी।

PM Modi@75: नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में अर्थव्यवस्था ने कैसे भरी रफ्तार,  किस सेक्टर में किया है कमाल | PM Narendra Modi How Indian economy gained  momentum during his tenure

नरेन्द्र मोदी का 75 साल पूरा करना अब उनको ही डराने लगा है कारण उन्होंने जिन्हें 75 साल पूरा करने पर बीजेपी के मार्गदर्श मंडल में बैठाया है उन्होंने अपने बगल में एक खाली कुर्सी रख छोड़ी है नरेन्द्र मोदी के लिए। बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी तो खुलकर नरेन्द्र मोदी को मार्गदर्शक मंडल की खाली कुर्सी पर बैठने का न्यौता दे रहे हैं मगर वहां बैठे वरिष्ठों द्वारा कहीं मुड़थपड़ी न खेली जाने लगे इससे डर कर मोदी बिदकते हुए दिख रहे हैं। संघ अपने शताब्दी वर्ष में एक बार फिर सत्ता के त्रिशूल को अपने हाथों में लेकर एक दूसरी लाइन पर चलना चाहता है। सत्ता त्रिशूल का वर्तमानी मतलब है मोदी की सत्ता, बीजेपी और राज्यों के पर्ची मुख्यमंत्रियों की सत्ता। जो आज की तारीख में मोदी-शाह की मुठ्ठी में कैद है। खबर तो यह भी कहती है कि कि संघ त्रिशूल का एक शूल (केंद्र की सत्ता) मोदी को देने के लिए तैयार है क्योंकि वह जानता है कि बैसाखी के सहारे चलने वाली सत्ता को वह जब चाहेगा लंगड़ी मार कर गिरा सकता है। मगर बीजेपी की कमान वह पूरे तरीके से अपने हाथ में लेना चाहता है। कहने को तो संघ ध्यान भटकाने के लिए कहता रहता है कि पार्टी का अध्यक्ष चुनना बीजेपी का काम है हम तो केवल सलाह देते हैं। मोदी-शाह की जोड़ी लम्बे समय से टार्च जला कर अध्यक्ष ढ़ूढ़ रही है लेकिन संघ की सलाह के अंधियारे या कहें भारी भरकम उजियारे से मोदी-शाह को अध्यक्ष ढ़ूढ़े नहीं मिल रहा है। मोदी-शाह जिन नामों को लेकर संघ के पास सलाह लेने जाते हैं संघ उन नामों को एक सिरे खारिज करके अपनी तरफ से कुछ नाम बतौर सलाह रख देता है। ये छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल लगाने वाले खेल को लम्बे समय देश देख रहा है। वैसे अब इस सांप-छछूंदर के खेल का पटाक्षेप करते हुए संघ प्रमुख को अपने तरकश के अमोघ तीर (संजय जोशी) को सामने रख देना चाहिए।

RSS Vyakhyan Mala: संघ का निर्माण भारत को केंद्र में रखकर हुआ है और इसकी  सार्थकता भारत के विश्वगुरु बनने में है - डॉ. मोहन भागवत - India Post News

संघ के फ्लैशबैक में झांकियेगा तो पता चलता है कि संघ अपने 3 दर्जन से ज्यादा अनुशांगिग संगठनों को अपनी विचारधारा के अनुसार चलाता है और उन संगठनों में जो भी अपनी उपयोगिता खो देता है उसे जोंक की तरह से उपयोग करने के बाद छोड़ देने या कहें किनारे लगाने से परहेज नहीं करता है। इसके सबसे  सटीक उदाहरण के तौर पर विश्व हिंदू परिषद के तात्कालिक अंतरराष्ट्रीय महासचिव गुजरात से आने वाले प्रवीण भाई तोगड़िया को पेश किया जा सकता है। कैसे उन्हें एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। कैसे आडवाणी को किनारे लगाया गया यह भी सभी ने देखा है। बीजेपी के भीतर मोदी-शाह को लेकर उठ रहे बगावती स्वर भले ही वे अभी फुसफुसाहट की तरह सुनाई दे रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फेल हो रही भारत की विदेश नीति, कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति, सुरसा के मुंह माफिक पसर रही बेकारी, बेरोजगारी, मंहगाई, संगठन में सत्ता लोलुपता के चलते आयातित किये गये चरित्रहीन नेताओं से पार्टी विथ डिफरेंट की छबि पर लग रहे दाग-धब्बों से लगता है कि अब संघ के लिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह अनुपयोगी हो चुके हैं और संघ अब उनसे पिंड छुड़ाना चाहता है। यह अलग बात है कि मोदी-शाह बेताल की भांति विक्रम (संघ) के कांधे से उतरे के लिए तैयार नहीं हैं।

Narendra Modi BJP Parliamentary Party Meeting Update | MP Rajasthan  Chhattisgarh CM Face | दिल्ली में BJP संसदीय दल की बैठक: पीएम बोले- मोदी जी  नहीं मोदी कहिए, तीन राज्यों में जीत

इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि खबर है कि निखालिस संघ-बीजेपी की विचारधारा पर चलने वाले बीजेपी के 3 दर्जन से अधिक सांसद मोदी को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि संघ की समझाईस के कारण वे आवाजें हलक से बाहर नहीं निकल रही हैं। ध्यान दीजिए 2019 में जो मुरली मनोहर जोशी नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए आशीर्वाद दे रहे थे वो आज मुखर होकर नरेन्द्र मोदी को मार्गदर्शक मंडल में लाने के लिए मोर्चा खोल चुके हैं। आखिर मुरली मनोहर जोशी में इतनी हिम्मत आई कहां से ? जाहिर है इसके पीछे संघ का सपोर्ट है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल होने पर जिस तरह से नरेन्द्र मोदी संघ और सरसंघचालक के कसीदे पढ़ रहे हैं उससे यही संदेश निकल रहा है कि नरेन्द्र मोदी अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपना आखिरी दांव चल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में यह भी भूल जाते हैं कि पिछले 11 सालों से तो वे ही भारत के भाग्य विधाता बने हुए हैं तो फिर देश के भीतर घुसपैठियों का आना किसकी शह पर हो रहा है ? क्या इसके लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं ? और अगर हैं तो वे आज तक कुर्सी पर कैसे बैठे हुए हैं ? क्या मंत्रीमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के सिध्दांत पर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या उन्हें घुसपैठ की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए.? या फिर ये विशुद्ध रूप से जुमलेबाजी है और अगर यह जुमलेबाजी है तो सर्वाधिक शर्मनाक और शर्मशार करने वाली जुमलेबाजी है।

OPINION: 1982 में हुई पहली मुलाकात और भारतीय राजनीति में ऐसे जोड़ी नंबर 1  बन गए मोदी-शाह - News18 हिंदी

लगता है कि गुजराती जोड़ी का तरकस खाली हो चुका है और उसने आखिरी हथियार के रूप में रथ का पहिया उठा लिया है और रथ के पहिये से युद्ध नहीं जीता जाता है वह भी तब जब सामने से ब्रह्मास्त्र चल रहे हों। नरेन्द्र मोदी की बाॅडी लेंग्वेज बताती है कि अब उनका औरा अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर चुका है। मोदी-शाह की अंतिम जीवन दायनी बिहार का विधानसभा चुनाव है। जीते तो नैया पार वरना बिहार का चुनाव ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। वैसे अब मोदी-शाह का औरा खत्म करने के लिए विपक्ष की कतई जरूरत समझ में नहीं आती क्योंकि बीजेपी के भीतर ही मोदी-शाह के खिलाफ विपक्ष जन्म ले चुका है और यही कारण है कि आज तक बीजेपी संसदीय दल की बैठक नहीं बुलाई गई है और न ही बीजेपी के संसदीय दल ने नरेन्द्र मोदी को आज तक अपना नेता चुना है। भारत के भीतर जिस पार्टी को "सिध्दांतवादी पार्टी" कहा जाता था वह भारतीय जनता पार्टी 2014 के बाद से न तो "पार्टी विथ डिफरेंट" रही न ही अब उसके पास ऐसे प्रभावशाली प्रवक्ता हैं जिन्हें लोग सुनना पसंद करते थे क्योंकि वे तथ्यों के साथ अपनी बात रखते थे लेकिन आज के प्रवक्ता फूहड़बाजी के अलावा कुछ करते ही नहीं हैं इसे भाजपा का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। जिसका अह्सास मोदी-शाह को बखूबी हो गया है और इसी की घबराहट को उजागर करती दिख रही है मोदी-शाह की बाॅडी लेंग्वेज !


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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October 12, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 28

अपना गला बचाने नायक को बनाया खलनायक

अपना गिरेबां भूल चिंटू भी लगाने लगे आरोप

केंद्र सरकार ने रद्द किया सोनम वांगचुक के NGO का विदेशी फंडिंग लाइसेंस,  लद्दाख हिंसा के बाद लिया एक्शन – Money9live

सत्ता का चरित्र ही ऐसा होता है कि वह अपनी घिनौनी करतूतों का ठीकरा दूसरे के सिर पर फोड़ता है । और यही एक बार फिर लद्दाख में किया जा रहा है। लद्दाख के लोगों की जायज मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार करने के बजाय उन पर दमनात्मक रवैया अपनाया जा रहा है। पर्यावरणविद सोनम वांगचुक पर हिंसात्मक आंदोलन के लिए देशद्रोह का आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर जैन-जी को और हवा दी जा रही है जो कहीं सरकार पर ही भारी ना पड़ जाए ! सोनम वांगचुक के एनजीओ स्टूडेंट एज्युकेशन एंड कल्चरल मूवमेंट आफ लद्दाख का विदेशी फंडिंग लाइसेंस यह कह कर रद्द कर दिया गया है कि उन्होंने विदेशी दान लेने के लिए विदेशी अंशदान विनियमन एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया है जिस पर वांगचुक का कहना है कि हमें विदेशी फंडिंग की जरूरत ही नहीं है तो हमने लाइसेंस नहीं लिया। है न कितनी हास्यास्पद बात कि जो लाइसेंस ही नहीं लिया गया सरकार उस लाइसेंस को रद्द कर रही है तो सरकार को बताना चाहिए कि वह कौन सा लाइसेंस रद्द कर रही है.? इसी तरह से सीबीआई ने वांगचुक की एक संस्था हिमालयन इंस्टिट्यूट आफ अल्टरनेट लद्दाख (HIAL) पर विदेशी चंदा लेने वाले कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाते हुए जांच शुरू की है। पहले ये जांच 2022 से 2024 तक की करनी थी लेकिन अब उसमें 2020 और 2021 भी जोड़ दिया गया है। कहा जा रहा है कि सीबीआई शिकायत से बाहर जाकर दस्तावेज मांग रही है। सरकार ने HIAL को दी गई जमीन की लीज को यह कहते हुए रद्द कर दिया है कि लीज की रकम जमा नहीं की गई है जबकि वांगचुक कह रहे हैं कि उनके पास दस्तावेजी साक्ष्य हैं जिसमें उन्हें जमीन बिना लीज के देने का उल्लेख है। लद्दाख में इनकम टैक्स नहीं लगने के बाद भी वांगचुक इनकम टैक्स भर रहे हैं इसके बाद भी उन्हें इनकम टैक्स के नोटिस दिये जा रहे हैं।

ये Gen Z- जेन जी क्या है…? – Karmveer

GEN - Z एक वैश्विक नामाकरण है। इसका मतलब है वह पीढ़ी जिसने डिजिटल युग में ही आंखें खोली हैं। इस पीढ़ी को यह पता नहीं है कि राजनीतिज्ञों का चरित्र ही जन्मजात दोगला होता है ! वे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाकर झूठ बोल सकते हैं और बाद में बड़ी बेशर्मी के साथ किये गये वादों को जुमला करार भी देने से नहीं चूकते हैं । GEN-Z पीढ़ी नेताओं की कही गई बात को सच मानकर चलती है और जब वे पूरा नहीं होती हैं तो वह उसे वादाखिलाफी मानती है। उन वादों को पूरा कराने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती है। 2014 से बीते 10 सालों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनाव दर चुनाव अपनी कुर्सी बरकरार रखने के लिए इस पीढ़ी को चांद से तारे तोड़कर लाने के सब्जबाग दिखाये। आज अब जब 11 बरसों में उनकी आकांक्षाएं पूरी नहीं हो पाई। बेकारी बेरोजगारी चरम पर है जो कि सरकार की वादाखिलाफी का ही परिणाम है और सरकार अगर अपनी वादाखिलाफी का समाधान दमनात्मक रवैया अपना कर करेगी तो युवा पीढ़ी का आक्रामक होना स्वाभाविक है और वह भी तब जब सरकार गांधीवादी तरीके से किये जा रहे आंदोलनों पर अंध-मूक-बधिर बनी रहती है। लद्दाख, देहरादून, कर्णप्रयाग, बैंगलुरू में युवाओं ने सड़क पर उतर कर अपनी मांगों को लेकर आंदोलनात्मक रवैया अख्तियार कर लिया है। खबर है कर्नाटक की सिध्दारमैया सरकार को छोड़ कर बाकी सरकारें आंदोलनकारी युवाओं पर दमनात्मक कार्रवाई कर रही हैं जबकि कर्नाटक गवर्नमेंट ने युवाओं की मांगों से अपनी सहमति जताते हुए उसके समाधान की बात कही है। उत्तराखंड की गलियों में तो "वोट चोर गद्दी छोड़" की तर्ज पर "पेपर चोर गद्दी छोड़" के नारे लगा कर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का इस्तीफा मांगा जा रहा है। लद्दाख की वर्तमान परिस्थितियों के लिए केन्द्र सरकार के साथ ही कुछ हद तक सुप्रीम कोर्ट भी जिम्मेदार है।

Sonam Wangchuk NGO FCRA License Suspended: सोनम वांगचुक पर केंद्र का बड़ा  एक्शन, लेह हिंसा के बाद रद्द किया NGO का विदेशी फंडिंग लेने वाला लाइसेंस

5 अगस्त 2019 की सुबह संसद से एक ऐसा ऐलान किया गया जिसने एक पूरे राज्य की पहचान और लोकतांत्रिक संरचना को बदल कर रख दिया। 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम पारित करते हुए जम्मू-कश्मीर राज्य के दो टुकड़े कर उन्हें यह कहते हुए केंद्र शासित प्रदेशों में बदल दिया गया कि इससे आतंकवाद खत्म होगा, विकास की रफ्तार बढ़ेगी, जनता मुख्यधारा से जुड़ेगी लेकिन इन 6 सालों में ना तो इस क्षेत्र में आतंकवाद खत्म हो पाया है न विकास रफ्तार पकड़ पाई है और ना ही जनता को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सार्थक पहल की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार कहा कि दोनों केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा उचित समय पर बहाल कर दिया जायेगा लेकिन 6 बरस में भी प्रधानमंत्री का उचित समय अभी तक नहीं आया है। सुप्रीम कोर्ट ने भी आर्टिकल 370 हटाये गये मामले की सुनवाई करते हुए आर्टिकल 370 हटाये जाने को न्याय संगत माना साथ ही जम्मू-कश्मीर में सितम्बर 2024 विधानसभा चुनाव कराने तथा जल्द राज्य का दर्जा दिये जाने का आदेश दिया लेकिन इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य का दर्जा दिये जाने की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की और यही वह वजह है जहां न्यायपालिका की भूमिका सवालों के घेरे में आती है तथा यही केन्द्र सरकार को अनंतकाल तक मामले को लटकाये रखने का औजार बन गया। लद्दाख को तो उसकी विधानसभा भी नहीं मिली।

eiting the said direction the application states : even after passing of 10 months the order dated 11.12.2023 till date the status of statehood of Jammu and Kashmir has not yet been restored which is gravely affecting the rights of the citizens of Jammu and Kashmir and also vailating the idea of federalism. Court has been further told that this issue is of grave urgency and importance as Jammu and Kashmir held the Legislative election in three phases to elect 90 members of the Jammu and Kashmir Legislative Assembly after a period of 10 years. The results of the said elections are to be pronounced on 8.10.2024.

Press Release:Press Information Bureau

केंद्र सरकार द्वारा गठित की गई डी-लिमिटेशन कमेटी ने भी मार्च 2022 में अपनी रिपोर्ट सम्मिट कर दी फिर भी वही ढाक के तीन पात होने से लोगों का केंद्र सरकार से भरोसा उठता चला गया। कांग्रेस, नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी पार्टी भी जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिये जाने में की जा रही हीलाहवाली करने पर मोदी सरकार पर जानबूझकर टालने का यह कहकर इल्जाम लगा रही हैं कि दिल्ली लम्बे समय तक अपना नियंत्रण बनाये रखना चाहती है।

Congress President Mallikarjun Kharge at a presser in Pune said 'Amit Shah claims the Congress wants to bring back Article 370, but who in the Congress ever states this ? Seconding Mr. Kharge' s position, J&K PCC President Tariq Hamid Karra said the only thing left to demand after the Supreme Court verdict on Arctic 370 was statehood for J&K. The top court had in December 2023 upheld the abvogation of Article 370, which had given special status to the erstwhile state. Former Chief Minister and peoples Democratic Party (PDP) President Mehbooba Mufti said 'People reposed faith in this government and gave it a huge mandate. People's sentiments are attached to Article 370. The resolution passed by NC was vague and not clear on the restoration of Article 370. The NC and Congress government should clarity their stand. Indian Express 2025 January - The Prime Minister said that he fulfils the promises he makes and that one should simply believe in him he even referred to the z-morth tunnel as an example of his dedication to the people.

Breaking News: Amit Shah Announces ...

Supreme Court seeks Union's reply in plea seeking statehood for Jammu and Kashmir - solicitor General Tushar Mehta has told court that peculiar considerations emerge from Jammu and Kashmir that have to be considered by the government. The Supreme Court while hearing an application seeking appropriate devections to the Union of India for restoration of the statehood of Jammu and Kashmir in a time bound manner told the applicants before it that ground rectifies cannot be ignored. You cannot ignore what has happened in pahalgam ground realities have to be considered. CJI BR Gavai has said.

इन दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन राज्यपाल के जरिए केंद्र के द्वारा चलाया जाता है। यहां पर भी बिहार जैसे राज्यों की तरह बेकारी बेरोजगारी की दर सबसे ज्यादा है। विकास के नाम पर बड़े प्रोजेक्ट घोषित तो होते हैं लेकिन जमीन पर कुछ नहीं दिखाई देता है। इंटरनेट आये दिन बंद कर दिया जाता है। नेताओं की नजरबंदी भी आम है। पत्रकारों पर नियंत्रण रहता है। यानी लोकतांत्रिक अधिकारों पर पाबंदी रहती है। सरकार के कथन राज्यों को चिढ़ाते रहते हैं कि शांति बहाल हो रही है क्योंकि हर महीने सुरक्षाकर्मियों, नागरिकों की मौत की खबरें आती रहती हैं। लगता तो यही है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का वादा एक रणनीति के तहत चुनावी जुमला भर है। एक तो बिना किसी सहमति के एक राज्य को दो टुकड़ों में बांट कर अपने अधीन कर लिया गया ऊपर से यह भी कह दिया गया कि फिर से पूर्ण राज्य की बहाली की जायेगी और एक लम्बे इंतजार के बाद भी वादापरस्ती न हो और जनता गांधीवादी तरीके से सरकार को याद दिलाये फिर भी सरकार कुंभकर्णी निद्रा में बनी रहे तो जनता क्या करे.? लद्दाख की जनता अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत ही तो मांग रही है कि उसे संविधान की 6 वीं सूची में शामिल किया जाय। पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाय जिससे वह अपने शासक को चुन सके।

लद्दाख में शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक रुप ले लिया। पूर्ण राज्य का दर्जा देने  और इस क्षेत्र को छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग अचानक से तेज ...

Does the Prime Minister have any intention of upholding his "MODI KI GUARANTEE" it not, why did he make the promise in the first place ? Ten years after he first took office, why is this issue still pending he asked. Ramesh also said that since the dissolution of the BJP. PDP government in the erstwhile state of Jammu and Kashmir in 2018, the people of Ladakh have had no representative government at the state level. On August 5, 2019, by converting Ladakh into a separate Union Territory without a legislative assembly, the MODI Sarkar closed the possibilities of any self government for the people of Ladakh. What vision did the Prime Minister have for Ladakh when he declared it a separate Union Territory ? Were the people of Ladakh ever consulted during the development of this vision, be asked. Ramesh also alleged that under Prime Minister Modi's governance, India has lost prime pasture land in the ehangthang plains in the north of Ladakh to Chinese encroachment. In addition to a hational security erisis this is also a serious socio-economic issue for the nomads of Ladakh. The Prime Minister, however, gave a clean chit to China on June 19 th 2020, at the all-party meet on China, when he declared that "not a single Chinese soldier had crossed over into Indian territory" he said, asking whether the people of Ladakh are lying while claiming that their lands had been encroached upon by the Chinese PLA. Ramesh elaimed that the proposed Ladakh lndustrial land allotment policy 2023 has suggested single window elearance committees that have only government official and Industry representative. There are no council members, civil society groups and panchayat representatives in these committees, he claimed. The document does not even layout the environmental or cultural criteria for considering an Industrial project nor does it provide for any public consultation.... In a sensitive ecosystem such as Ladakh in a region populated by nomadic tribes and other sensitive demographic groups. What is the cynical motive that underlines this proposed Land Allotment policy ? Is it yet another attempt by the Prime Minister to favour his Industrilist friends at the cost of the people, Ramesh asked. Using the hashtag (chuppi todo pradhan mantriji)

लद्दाख: सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी पर लोगों की बढ़ती नाराजगी

इसी मांग को लेकर ही पर्यावरणविद सोनम वांगचुक क्लाइमेट फास्ट कर रहे हैं जिसमें वह 15 दिनों से 15 डिग्री तापमान में बर्फ पर बैठकर केंद्र सरकार से लद्दाख को संविधान की 6 वीं अनुसूची में शामिल करने और पूर्ण राज्य का दर्जा देने की गुजारिश कर रहे हैं। इसके पहले भी वांगचुक ने 21 दिन और 15 दिनों की भूख हड़ताल की थी। देखा जाय तो लद्दाखवासियों की मांग संविधान सम्मत है क्योंकि यहां की 95 फीसदी आबादी जनजातीय है इसीलिए वे संविधान की 6 वीं अनूसूची में शामिल करने की मांग कर रहे हैं ताकि विशेष स्वायत्तता मिल सके और वहां की संस्कृति, पारिस्थितिक और जनजातीय पहचान अक्षुण्ण रह सके। मगर वादा करने के बाद भी मोदी सरकार के कान में जूं तक नहीं रेंगी और बकौल जयप्रकाश नारायण "जिंदा कौमें 5 साल इंतजार नहीं करती" और जैन-जी तो बिल्कुल भी नहीं करता तो फिर वही हुआ जिसका अंदेशा था । वांगचुक ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति मांगी तो नहीं दी गई जिससे दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करनी पड़ी। यह लोकतंत्र पर भी सवाल खड़ा करता है। मोदी सरकार की टालमटोल वाली नीति से लद्दाखवासी खासतौर पर युवा पीढ़ी खुद को लोकतंत्र से बाहर समझने लगी है जबकि वहां का युवा केवल वोटर भर नहीं बल्कि नीति निर्माण में भागीदारी चाहता है।

Vilent protests breakout at BJP office in Ladakh's Leh amid shutdown seeking statehood. Violent protests erupted outside the BJP office in Leh town during a shutdown call issued by the Leh Apex Body (LAB) in the Union Territory (UT) of Ladakh over the Centre's delay to holl result oriented talks over several long pending demands, which include granting statehood and Sixth Schedule status to the region. Leh's District Magistrate has imposed restrictions under section 163 of the Bhartiya Nagrik Suraksha Sanhita (BNSS) 2023...... which bars assembly of more than four people in the region--citing possible disturbance to public peace and danger to human life. Preliminary reports a suggested that supporters of LAB, an amalgam of religious social and political organisations, assembled outside the BJP office in Lah to register their protest over the centre not resuming talks with representatives of Ladakh over a series of demands, with statehood and sixth schedule status topping the list.

Patriot card backfires on Ladakh BJP MP ...

केंद्र सरकार जिस तरह से लद्दाख और लद्दाख की आवाज उठाने वालों पर क्रूरतापूर्ण व्यवहार कर रही है वह राष्ट्रीय सुरक्षा, पारिस्थितिक और सामाजिक न्याय तीनों के लिए खतरनाक संकेत है। लद्दाख में लम्बे समय से चल रहे संवैधानिक संघर्ष का निष्कर्ष यही है कि भारत के लोकतंत्र में जनता की राय के बिना किसी भी राज्य का दर्जा छीना जा सकता है, संविधान बदला जा सकता है। अदालत भी बिना समय सीमा तय किये आदेश देकर न्यायालय होने का बस अह्सास करा सकती है। जनता को अगर अपने हक के लिए भूख हड़ताल-आमरण अनशन आदि करना पड़े तो इसे लोकतंत्र नहीं बल्कि इसे एक तरह का धीमी गति का प्रशासकीय आपातकाल कहा जा सकता है । मोदी सरकार जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी विदेश नीति, कूटनीति में लगातार फेल हो रही है। अमेरिका टेरिफ वार के जरिए चौतरफा हमला कर रहा है। भारत के पड़ोसी देशों में जिस तरह की उठापटक हो रही है। भारत के अपने पड़ोसियों से जिस तरह के संबंध हैं उसने मोदी सरकार की नींद तो उड़ाई हुई है ही उसमें तड़के का काम कर रही है भारत की अंदरूनी राजनीति। माना जा रहा है कि इसी सबसे पार पाने के लिए मोदी सत्ता किसी भी हद तक जा सकती है। उसका नजारा एकबार फिर लद्दाख में दिखाई दिया जहां मोदी सत्ता ने अपनी कुर्सी को बनाये रखने के लिए सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट (NSA) के तहत गिरफ्तार कर लिया है। और सोनम वांगचुक को बदनाम करने के लिए ना जाने क्या - क्या ट्रोल किया जा रहा है। जबकि मोदी सत्ता के दौरान ही सोनम वांगचुक को 2016 में रोलेक्स अवाॅर्ड फाॅर एंटरप्राइज, 2017 में ग्लोबल अवाॅर्ड फाॅर सस्टेनेबल आर्किटेक्चर तथा 2018 में रमन मेग्सेसे अवाॅर्ड से सम्मानित किया गया है इसी तरह से कांग्रेस सत्ता के दौरान भी उन्हें 2008 में रियल हीरोज अवाॅर्ड एवं 2002 में अशोक फेलोशिप फार सोशल एंजरप्रेन्योरशिप दिया गया था। सोनम वांगचुक की सोच पर ही 3 इडियट्स फिल्म बनाई जा चुकी है। इंजीनियर, इनोवेटर और समाजसेवी के तौर पर भी वांगचुक का बेमिसाल योगदान है।

आज से एक देश, एक विधान, एक निशान- देश के नक्शे पर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दो  नए केंद्र शासित प्रदेश - Jammu and Kashmir and Ladakh two new union  territories on map

2019 में जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया था तब सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा था कि लद्दाख की जनता द्वारा एक लम्बे वक्त से देखा गया सपना पूरा हो गया है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि 30 साल पहले अगस्त 1989 में लद्दाख के नेताओं ने लद्दाख को केन्द्र शासित प्रदेश बनाये जाने की मांग को लेकर आंदोलन की शुरुआत की थी। यह भी बड़ा गजब का संयोग है कि जब 1989 में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने के लिए सोनम वांगचुक के पिता सोनम वांगयाल की अगुवाई में आंदोलन हुआ था तब पुलिस की गोली से 3 लोग मारे गए थे और 36 साल बाद जब केंद्र शासित प्रदेश को पूर्ण राज्य बनाने के लिए सोनम वांगचुक के नेतृत्व में आंदोलन हुआ तो 24 सितम्बर 2025 को एकबार फिर से पुलिस की गोली ने 4 लोगों की इहलीला समाप्त कर दी। यह एक ऐसी परिस्थिति है जो आंदोलन की दिशा और लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन को लेकर जब वो हिंसा में प्रवेश कर जाता है तो आंदोलन भारत में चल नहीं पाता है वो खत्म हो जाता है तो क्या एक लम्बे समय से चले आ रहे आंदोलन का पटाक्षेप ऐसी हिंसा से हो सकता है या फिर एक लम्बे वक्त से चले आ रहे आंदोलन में हिंसा के जरिए ही उस जैन-जी के संघर्ष को पनपाया जा सकता है जो नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में नजर आया। ये दो बिल्कुल अलग - अलग रास्ते हैं आंदोलन को खत्म करने की दिशा में ले जाने की और आंदोलन को आगे बढ़ाने की दिशा में।

Jammu Kashmir Laddakh, Know History Of This State Which Is Now Union  Territories - Amar Ujala Hindi News Live - चर्चा में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख:आइए  जानते हैं इसका इतिहास और राजनीतिक ...

मौजूदा परिस्थितियों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तौर पर पडोसी देशों, अमेरिका को लेकर जिन मुश्किल हालातों से भारत गुजर रहा है उससे क्या अब राजनीतिक सत्ता किसी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है ? इसीलिए लद्दाख (लेह) का पूरा ठीकरा सोनम वांगचुक पर फोड़ा गया है। यह भी कहा गया कि यहां पर नेपाली, सोशल एक्टिविस्ट और एडवोकेट सक्रिय हैं। पैसा भी बाहर से आ रहा है। यानी पडोसी देशों में हो रही तमाम परिस्तिथियों को लद्दाख (लेह) से जोड़ने की कोशिश मोदी सत्ता ने अपने तौर पर की है। लद्दाख को लेकर भारत की अंदरूनी राजनीति उबाल पर है इसीलिए लद्दाख में इंटरनेट को रोक दिया गया है, कर्फ्यू लगा देने से सन्नाटा पसरा पड़ा है। इस सन्नाटे के बीच से सवाल निकलता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा एक्ट के तहत जो गिरफ्तारी सोनम वांगचुक की हुई है क्या वह पहली और अंतिम गिरफ्तारी है या यह एक शुरुआत है ? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका को लेकर भारत की जो विदेश नीति और कूटनीति चल रही है वो आखिरी मोड़ पर आकर खड़ी हो गई है क्या ? भारत की अंदरूनी राजनीति जो छात्र, युवाओं और जैन-जी के जरिए देश के राजनीतिक घटनाक्रमों को प्रभावित करने की दिशा में बढ़ने के लिए चल तो रही है लेकिन अभी तक सड़कों पर नजर नहीं आ रही है क्या घरेलू राजनीति उसे आगे बढ़ायेगी या फिर राजनीतिक सत्ता उसे रोक देगी ?

इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारत की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों ने भारत के भीतर उस आंदोलन की शक्ल को ही बदल डाला है जो इससे पहले राजनीतिक दलों के जरिए चला करते थे । क्या उसकी कमान कहीं और है, रास्ते कहीं और से निकल रहे हैं, मदद कहीं और से आ रही है ? यही वो परिस्थिति है जो ताकतों और डीप स्टेट को लेकर दुनिया भर में बहस का हिस्सा बन रही है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 24, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 27

जुआरी की जेब का फटे नोट की तरह आखिरी दांव लगाने जैसा निकला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जीएसटी को लेकर दिया गया राष्ट्र के नाम संदेश !

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश - Ravivar Delhi

जब भी ये खबर आती है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राष्ट्र के नाम संदेश देने वाले हैं तो पूरे देश में एक अजीब सी सनसनी फैल जाती है कि दूरदर्शन पर आकर प्रधानमंत्री मोदी क्या घोषणा करने वाले हैं। अब वे क्या बंद करने की घोषणा करेंगे या किस बात के लिए ताली-थाली, शंख-घडियाल बजाने को कहने वाले हैं या फिर दिया-बाती-मोमबत्ती जलाने को कहने वाले हैं। देशवासियों के जहन में ये डर नोटबंदी के बाद से ज्यादा खौफजदा हो गया है। ऐसे ही हालात 21 सितम्बर को देशभर में पसर गये जब खबर आई कि शाम 5 बजे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देशवासियों को संबोधित करने वाले हैं। मगर अपने 21 मिनट के भाषण में ऐसा कुछ नहीं हुआ और देशवासियों ने राहत की सांस ली। अब्बल तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिस बात को राष्ट्र के नाम संबोधन का नाम देकर कह रहे थे कहने के लिए आना ही नहीं चाहिए था क्योंकि जिस बात का जिक्र प्रधानमंत्री ने किया उस बात को वे स्वयं 15 अगस्त को लालकिले में दिये गये भाषण में कर चुके थे इसके बाद इसी बात का जिक्र वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन भी कर चुकी हैं। पूरे देश में गली-कुलियों तक में रहने वाले भिक्षाटन करने वाले को भी पता था कि जीएसटी की जो दरें कम की गई हैं वे 22 सितम्बर यानी 21 सितम्बर की आधी रात से लागू होने वाली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जब जीएसटी की कम दरों से देशवासियों को रूबरू करा रहे थे तो ऐसा लग रहा था जैसे कोई हारा हुआ जुआरी अपने जेब में बचाकर रखा हुआ फटा नोट दांव पर बतौर अंतिम बाजी के रूप में लगा रहा है।

BJP MPs Workshop Begins Today in Parliament PM Modi to Be Honored for GST  Reforms | संसद में आज से भाजपा सांसदों की कार्यशाला, PM मोदी को GST सुधारों  के लिये होंगे

30 जून 2017 दिन जुमेरात (शुक्रवार) को आधी रात का वक्त संसद के सेंट्रल हाल में सजी संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी - आज इस मध्य रात्रि के समय हम सब मिल करके देश का आगे का मार्ग सुनिश्चित करने जा रहे हैं। कुछ देर बाद देश एक नई व्यवस्था की ओर चल पड़ेगा। सवा सौ करोड़ देशवासी इस ऐतिहासिक घटना के साक्षी हैं। जीएसटी की ये प्रक्रिया सिर्फ अर्थ व्यवस्था के दायरे तक सीमित है ऐसा मैं नहीं मानता हूं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो इसे दूसरी आजादी का नाम तक दिया था। और इस दूसरी आजादी का धम्मन सिर्फ और सिर्फ महज आठ साल में ही फूलने लगेगा शायद इसकी कल्पना तो प्रधानमंत्री मोदी ने भी नहीं की होगी। जिसे यह कह कर लागू किया गया था कि एक देश एक टैक्स वाली जीएसटी सिर्फ अर्थव्यवस्था का प्रतीक भर नहीं है बल्कि यह भारत के लोकतंत्र और भारत के संघीय ढांचे को मजबूत बनाते हुए विकसित भारत की दिशा में उठने वाला एक ऐसा कदम है जो ना सिर्फ रिफार्म है बल्कि भारत की रगों में मुश्किल हालातों से सरलता के साथ देश को चलाने के तौर तरीके हैं। जिसमें खुली भागीदारी देश की जनता की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए कांग्रेस द्वारा प्रस्तावित दो टैक्स स्लैब वाले जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स कहा था प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठते हुए उसी गब्बर सिंह टैक्स को कई स्लैबों पर दूसरी आजादी कहते हुए थोप दिया। इन आठ सालों में जीएसटी में आधे सैकडा से ज्यादा संशोधन करने पड़े। देश के लघु और मध्य श्रेणी के व्यापारियों के काम धंधे चौपट होते चले गए। और अब जीएसटी की दरों को संशोधित करते हुए दो स्लैबों में समाहित कर दिया गया है और उसमें तुर्रा यह कि इसे रिफार्म का नाम देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र के नाम संदेश देते हुए देशवासियों से क्षमा याचना करने के बजाय बचत उत्सव मनाने का बेशर्मी भरा संबोधन देना देशवासियों को पचा नहीं है। देशवासियों से माफी इसलिए कि अब जब इसे बचत उत्सव कहा जा रहा है तो तय है कि मोदी सरकार द्वारा पिछले 8 सालों से जीएसटी का लूट उत्सव मनाया जा रहा था।

New GST Rate: 'किसानों पर पहली बार लगाया गया टैक्स', कांग्रेस ने जीएसटी 2.0  को कहा 'गब्बर सिंह टैक्स' | 56th GST Council Meeting, New GST Rates on on  Car, Health Insurance,

अब ये सवाल कोई नहीं पूछ रहा है कि देश में जीएसटी कौन लेकर आया, कौन है जिसने जीएसटी के जरिए व्यापारियों के सामने मुश्किल हालात पैदा किये, किसने जीएसटी के जरिए देश के रईसों को राहत इस तरह से दी कि टैक्स के मामले में गरीबों और रईसों को एक कतार पर खड़ा कर दिया गया । ऐसा तो महात्मा ने भी कभी  नहीं सोचा होगा। प्रधानमंत्री जब राष्ट्र के नाम संदेश देने सामने आये तो देश के सामने बहुतेरे सवाल थे। किसानों की आय 2014 की तुलना में कम हो चुकी है, लागत बढ़ चुकी है। वह मंड़ियों की पहुंच से दूर हो गया है। उसकी अपनी कमाई उसे मजदूर की कतार में खड़ा कर चुकी है। देश के छोटे और मझोले उद्योग धंधों, व्यापारियों की कमर तो पहले ही नोटबंदी लागू कर तोड़ दी गई थी। नोटबंदी ने पूरे असंगठित क्षेत्र को तहस- नहस करके रख दिया है। नोटबंदी के बाद से एमएसएमई जो डगमगाया वो आज भी ना तो सम्हल पाया है ना ही सम्हलने की स्थिति में आ पा रहा है। देश के भीतर रोजगार को लेकर, उत्पादन को लेकर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को लेकर सरकार ने एक नायाब लकीर खींच डाली है। मुद्रा योजना के तहत 30 - 35 लाख करोड़ रुपये बांट कर कह दिया कि अब किसी को रोजगार की जरूरत नहीं है। हर व्यक्ति खुद का रोजगारी है और दूसरे को रोजगार देने की स्थिति में है। आज तक कोई समझ नहीं पाया है कि रुपया आता कहां से है और जाता कहां है। क्या आरबीआई नोट छाप रहा है और बैंक उसी आधार पर कर्ज दे रहे हैं। देश के अगर 40 करोड़ से ज्यादा लोगों को मुद्रा योजना का लाभ मिला है तो इसका मतलब यह है कि हर तीसरा व्यक्ति जिसमें नाबालिक हो या 75 पार का सबको इसका लाभ मिला है लेकिन भारत तो आईएमएफ की लिस्ट में बेरोजगारी के क्षेत्र में बड़ी बुरी गति के साथ खड़ा है। आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक यह कहने से चूक नहीं रहे हैं कि भारत तो कर्ज में डूबा हुआ देश है और जल्द ही इसकी जीडीपी से ज्यादा कर्ज हो सकता है। क्योंकि बीते 10 बरसों में भारत पर कर्ज का बोझ डेढ़ सौ लाख करोड़ से ज्यादा बढ़ गया है। 2014 में भारत पर तकरीबन 50 लाख करोड़ का कर्जा था जो आज की स्थिति में 200 लाख करोड़ को पार कर गया है।

मैं देश नहीं झुकने दूंगा.. यही समय है', व्यंग्य धार से लेकर काव्यधारा तक से  सजे हैं मोदी की संघर्षगाथा के पन्ने; पढ़ें.. - PM Narendra Modi Turns 75  Exploring ...

ये कैसी हास्यास्पद स्थिति है कि प्रधानमंत्री एक ऐसा संदेश राष्ट्र के नाम देने सामने आये जो देश के गांव, शहर की बस्तियों से लेकर, पंचायत के समूह के बीच, विधायक, सांसद अपने - अपने क्षेत्र में करते चले आ रहे हैं उसके सामने प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम दिया गया संदेश शायद ज्यादा खोखला और पोपला है। और ये इसलिए है कि जीएसटी लेकर कौन आया ? 5 स्लैबी जीएसटी को क्रांतिकारी कदम किसने कहा ? जीएसटी के 5 क्रांतिकारी कदम महज 8 बरस में ही देश को मुश्किल हालात में ढकेल कर हांफने लगे। इस सच से सरकार इंकार नहीं कर सकती इसीलिए वह 2 स्लैब वाला जीएसटी ले आई। इसके बाद भी शर्माने के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़ी बेशर्मी के साथ इसे अपनी उपलब्धियों के खाखे में जोड़कर ऐलान करते हैं। दूसरी ओर राज्यों को उनके हिस्से की जीएसटी की रकम देने के लिए तरसाया जाता है। भारत किस तरह से टैक्स में समाया हुआ है उसको इस तरह भी समझा जा सकता है। इस साल जो बजट रखा गया है वह कितना सच है या उससे हटकर बड़ी लूट टैक्स के जरिए ही हो रही है । इस साल का बजट 50 लाख करोड़ से ज्यादा का है। इनकम टैक्स से 14 लाख 38 हजार करोड़, कार्पोरेट टैक्स से 10 लाख 82 हजार करोड़, जीएसटी के जरिए 11 लाख 78 हजार बसूले जायेंगे। जीएसटी के जरिए जो पैसा अभी तक बसूला गया है 12 महीने में बसूले जाने वाले 11 लाख 78 हजार करोड़ एवज में यह आंकड़ा सरकार ने जारी किया है - अप्रैल में 2 लाख 36 हजार 716 करोड़, मई में 2 लाख 1 हजार 50 करोड़, जून में 1 लाख 85 हज़ार करोड़, जुलाई में 1 लाख 95 हजार 735 करोड़, अगस्त के महीने में 1 लाख 86 हज़ार करोड़ यानी इन 5 महीने में ही 10 लाख करोड़ से ज्यादा बसूल लिया गया है।

सरकार की कमाई का 5वां हिस्सा ब्याज चुकाने में साफ, सरकार लेगी इस बार 15 लाख  करोड़ कर्ज! - Budget 2025 to whom does govt pay interest and from where it  collect

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनता को देव की श्रेणी में रख दिया है तो सवाल ये है कि जो टैक्स जनता से बसूला गया है उससे जनता को राहत और रियायत मिलती है क्या ? टैक्स बसूली से चल रहे देश में किसानों, मजदूरों को कितनी राहत, रियायत दी जा रही है ? हकीकत तो यही है कि सरकार जनता से बसूले गये टैक्स का 80 फीसदी से ज्यादा वह अपने ऊपर ही खर्च करती है। 50 लाख करोड़ के बजट में सरकार का एक्सपेंडीचर ही 39 लाख 29 हजार 154 करोड़ का है। प्रधानमंत्री ने नागरिक देवो भव: का जिक्र करते हुए कहा कि हमने इनकम टैक्स में 12 लाख तक की छूट दी है और जीएसटी की दरें कम कर दी है। यह साल भर में 2.50 लाख करोड़ हो जाता है लेकिन इसका भीतरी सच ये है कि इससे ज्यादा की रियायत तो बतौर बैंको से लिए गए कर्जे को माफ करके कार्पोरेट को दे दी गई है। मंत्रालय के मंत्री से कहा जाता है कि सरकारी तरीके से काम करने के बजाय आप ये बताइये कि इन कामों को कौन - कौन से प्राइवेट सेक्टर कर सकते हैं। और इस दौर में पब्लिक सेक्टर को प्राइवेट सेक्टर के हाथों में सौंपते चला गया। जो राहत रियायत पब्लिक सेक्टर के जरिए जनता को मिलने वाली थी वह प्राइवेट सेक्टर के लाभालाभ में समाहित होती चली गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस हुनर की तो दाद देनी चाहिए कि जिस तबके के सामने संकट होता है वे उसी तबके की वाहवाही यह कह कर करने लगते हैं कि देखिए हमने आपकी हालत ठीक कर दी। देश में 25 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर कर दिया गया जिसके भीतर का सच ये है कि पीएम की लाभार्थी योजना के आंकडों जोड़ दिया गया है और कहा जा रहा है कि उसके पास घर है, टायलेट है, सिलेंडर है। जबकि देश का सच ये है कि इस तबके की सबसे बड़ी कमाई सरकार द्वारा गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत (बतौर खैरात जैसे) दिया जा रहा 5 किलो अनाज ही है। अगर उस गरीब कल्याण अन्न योजना को खत्म कर दिया जाय तो एक झटके में भूखे मरने जैसी परिस्थिति पैदा हो जायेगी। मिडिल और न्यू मिडिल क्लास की जीएसटी दरों को कम करके वाहवाही की जा रही है।

'स्वदेशी' है आत्मनिर्भर भारत का मंत्र : छोटी-छोटी पहलें जरूरी -

बड़े हुनर के साथ स्वदेशी और आत्मनिर्भरता, मेक इन इंडिया का जिक्र किया गया। मेक इन इंडिया का अंदरूनी सच यह है कि देश की जो टापमोस्ट 30 कंपनियां जरूरतों का सामान बनाती हैं उसमें लगने वाला लगभग 82 फीसदी कच्चा माल चीन से ही आता है। अगर चीन अपने सामानों को भेजना बंद कर दे तो मेक इन इंडिया धराशायी हो जायेगा लेकिन ऐसा होगा नहीं क्योंकि चाइना को अपना माल खपाने के लिए बाजार चाहिए और दुनिया के दूसरे देशों की तरह भारत उसके लिए एक बाजार ही है। पीएम नरेन्द्र मोदी जब स्वदेशी का जिक्र करते हैं तो लोगों के मन में घृणात्मक भाव पैदा होते हैं। उनको तो महात्मा गांधी का स्वदेशी के पीछे कपास और सूत को काट कर धोती की शक्ल में बुना गया कपड़ा याद आता है जिसे पहन कर उन्होंने विदेशी कपड़ों की होली जलाई थी। वहीं पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ तो ब्रिटिश कंपनी की लक्जरियश गाड़ी रेंजरोलर का काफिला चलता है। वे तो खुद नख से शिख तक विदेशी वस्तुओं से सजे धजे होते हैं। सेंट्रल विस्टा के निर्माण में भी विदेशी कंपनियों का योगदान था। यहां तक कि सरदार पटेल की सबसे बड़ी प्रतिमा भी चीनी कंपनी ने ही बनाई है। इन सबका जिक्र करना कोई मायने रखता नहीं है कारण यह हुनर सबके पास होता नहीं है जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। राष्ट्रवाद जगाने के लिए नैतिक बल की जरूरत होती है। खुद को उसमें ढालने की जरूरत होती है जो नरेन्द्र मोदी में दूर - दूर तक दिखाई नहीं देता है। अभी ही तो गुजरा है 15 अगस्त। उस दिन भारत का राष्ट्रीय तिरंगा झंड़े की शक्ल में हर हाथों में था वह भी चाइना से बनकर आया है।

मेक इन इंडिया रंग ला रहा है... 10 साल पूरे होने पर PM मोदी ने देशवासियों का  जताया आभार | Make In India ten years completed PM Modi Manufacturing Sector  Semiconductor

लेकिन देखिए पीएम नरेन्द्र मोदी अपने राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में किस हुनर के साथ कह रहे हैं - हमें हर घर को स्वदेशी का प्रतीक बनाना है, हर दुकान को स्वदेशी से सजाना है। गर्व से कहो ये स्वदेशी है, गर्व से कहो मैं स्वदेशी खरीदता हूं, मैं स्वदेशी सामान की बिक्री भी करता हूं। ये हर भारतीय का मिजाज बनना चाहिए। जब ये होगा तो भारत तेजी से विकसित होगा। प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए राष्ट्र के नाम दिये गये संदेश में तो, भारत के ऊपर लगातार बढ़ रहे कर्जे की परिस्थितियों से कैसे निपटा जायेगा, भारत में बढ़ रही बेकारी, बेरोजगारी से कैसे बाहर निकला जायेगा, भारत के भीतर डूब रहे मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर की परिस्थितियों से उबरने की क्या पालिसी है, अब तो अमेरिका के द्वारा H1B  बीजा के रास्ते जिस संकट को खड़ा कर दिया गया है उसका समाधान किस रास्ते पर चलकर होगा, यह सब कुछ समाहित होना चाहिए था। लेकिन लगता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक क्षण में सब कुछ इसलिए मटियामेट कर दिया क्योंकि वे जान गए हैं कि वे देश की परिस्थितियों को सम्हाल पाने की स्थिति में नहीं हैं। तो क्या वाकई राष्ट्र के नाम संबोधन आज जीएसटी को लेकर आया है और कल किसी दूसरे विषय पर आ जायेगा। पहली बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहचान चुनावी भाषण के अलावा उपलब्धियों के आसरे खुद को बचाये रखने के लिए राष्ट्रीय संबोधन को एक हथियार के तौर पर उपयोग में लाने की बनकर सामने आई है ! इस दौर में देश के भीतर के सारे संस्थान जिसमें नौकरशाही, ज्यूडसरी, मीडिया आदि शामिल हैं सभी की साख लगातार डूबती चली गई है। इन सारी परिस्थितियों के बीच क्या राष्ट्र के नाम संदेश भी सिवाय भाषण के वह भी गली - कूचे, बस्ती - मुहल्ले में दिये गये भाषण से भी हल्का और सस्ता होगा। प्रधानमंत्री पद की गरिमा को ताक पर रख कर, देश के सच को छुपाने के लिए ये सारी चीजें नहीं होती हैं मगर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास एक अनोखा हुनर तो है जिसके आगे देश, देश का गौरव, राष्ट्रवाद सभी कुछ बौना हो जाता है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 23, 2025
Social Activities

ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर और ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन, श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल, पटना से समाज को क्या मिला ?

ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर के सभा मंच से दो प्रमुख बातों की घोषणा हुई थी या यूं कहें कि वादे किए गए थे ।

ब्रह्मर्षि चिंतन सम्मेलन सह सम्मान समारोह

चर्चा की शुरुआत मैं आशीष सागर दीक्षित द्वारा लिखी गई पंक्तियों से करना चाहूंगा जो इस प्रकार है:-


छद्म समाजवाद आज, सियासत की भेंट चढ़ गया ।
होर्डिंग वाला नेता भी, राजनीति पढ़ गया ।।
                                                                     चालबाज अवसरों को,  सुनियोजित तलाशते फिरे ।
                                                                     सत्य पथ के सरल पथिक, अब चक्रव्यूह मे घिरें  ।।
झूठ के प्रपंचियों का, छल आग्नेयास्त्र है। 
पीठ पर खंजर उतारना ही, आज समाजशास्त्र  है ।।

उपरोक्त पंक्तियों में ही इस चर्चा का पूरा सार निहित है ।


07 मार्च 2021 को मुजफ्फरपुर के महेश प्रसाद सिंह साइंस कॉलेज के मैदान  में ब्रह्मर्षि  चिंतन शिविर का आयोजन किया गया था जिसमें बिहार के कोने कोने से तमाम ब्रह्मर्षि भाई लोग उपस्थित हुए थे। मैं भी उस सभा का एक हिस्सा था और अपने सैकड़ों मित्रों एवं  सगे संबंधियों के साथ वहां मौजूद था। सभा में उपस्थित सभी ब्रह्मर्षि की आंखों में उस सभा को लेकर तमाम तरह की आशाएं  दिखाई दे रहे थे जैसे मानो कि बिहार में फिर से श्री बाबू का युग लौट गया हो। मैं भी काफी रोमांचित था उस सभा को लेकर और मेरे अंदर भी गजब का उत्साह और उमंग था क्योंकि सभा में उपस्थित सभी लोग उत्साह से लबरेज दिखाई पड़ रहे थे।


ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर के सभा मंच से दो प्रमुख बातों की घोषणा हुई थी या यूं कहें कि वादे किए गए थे ।

Lord Parshuram Jayanti - Onlinepuja.com

पहला वादा था कि यदि कोई विजातीय किसी भूमिहार को तंग करता है या नुकसान पहुंचाता है तो 50 गाड़ियों के काफिले से जाकर उस भूमिहार के मान सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा हेतु समुचित पहल की जाएगी। दूसरा और सबसे महत्वपूर्ण और  क्रांतिकारी घोषणा यह थी कि गरीब प्रतिभाशाली भूमिहार छात्रों की पढ़ाई के लिए 1 करोड़ का कॉरपस फंड बनाया जाएगा । लेकिन उस घोषणा के आज 4 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ । आश्चर्य की बात यह थी कि सभा में मंच पर उपस्थित लोगों के लिए 1 करोड़ का फंड चंद मिनटों में इकट्ठा कर देना एक तुच्छ बात थी लेकिन वो कहते हैं न कि नियत में ही जब खोट हो तो कुछ भी नहीं हो सकता।

ब्रह्मर्षि  चिंतन शिविर, मुजफ्फरपुर की सभा के मंच पर जितने धनाढ्य लोग मौजूद थे, अगर वो लोग ईमानदारी से चाहते तो एक करोड़ क्या 100 करोड़ का भी फंड गरीब भूमिहार छात्रों के शैक्षणिक उत्थान के लिए मिनटों में इकट्ठा हो जाता जिससे समाज में क्रांतिकारी परिवर्तन होता जो आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होता और  साथ ही साथ इन राजनैतिक लोगों को ब्रह्मर्षि समाज के एकमुश्त वोट के लिए इतना दर - दर भटकना भी नहीं पड़ता और न ही इतना कठिन परिश्रम और छल प्रपंच करने की भी जरूरत होती । लेकिन धूर्त और  स्वार्थी लोग जहां सामाजिक सिरमौर बनने लगे, उस सभा और समाज का वही हस्र होता है जो आज भूमिहार समाज का हो रहा है।

ब्रह्मर्षि चिंतन शिविर के उपरांत मुजफ्फरपुर में ही एक भूमिहार समाज की बेटी को एक विजातीय द्वारा बेच दिया गया , और यह खबर आग की तरह फैली लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई । मुजफ्फरपुर में ही एक भूमिहार बेटी को जिंदा जला दिया गया एक विजातीय द्वारा , लेकिन चहुं ओर चुप्पी छाई रही । इसके अलावा अनेकों घटनाएं ऐसी हुई जिनका अलग अलग उल्लेख करना इस संक्षिप्त लेख में संभव नहीं है ।

ऐसी अनेकों घटनाएं इस बात का गवाह हैं कि ये सारे आयोजन केवल समाज की आंखों में धूल झोंकने के उद्देश्य से किए जाते हैं जिसपर मुझे फिर से किसी सज्जन की लिखी हुई पंक्तियां याद आ रही है, जो इस प्रकार है : -

   जो दिख रहा है  सामने, वो दृश्य मात्र है।
   लिखी रखी है पटकथा, मनुष्य पात्र है।।
                                                          नए नियम समय के हैं, कि असत्य सत्य है।
                                                          भरा पड़ा है छल से जो, वही सुपात्र है।।
  है शाम दाम दंड भेद, का नया चलन।
  कि जो यहां कुपात्र है, वही सुपात्र है ।।
                                                          विचारशील मुग्ध हैं, कथित प्रसिद्धि पर ।
                                                          विचित्र है समय, विवेक शून्य मात्र है।।
  दिलों में भेद भाव हो, घृणा समाज में ।
  यही तो वर्तमान, राजनीतिशास्त्र है ।।
                                                          घिरा हुआ है पार्थ पुत्र, चक्रव्यूह में ।
                                                          असत्य साथ और सत्य, एक मात्र है।।

चलते चलते इस चर्चा को विराम देने से पहले एक अपील अपने समाज के बुद्धिजीवियों से करना चाहूंगा कि आप सभी लोग निद्रा से जागिए और अपनी अपनी आँखें खोलिए और इस तरह के प्रपंच से लबरेज आयोजनों की समीक्षा कीजिए ताकि इसपर विराम लग सके और इस तरह के आयोजनों के आयोजनकर्ताओं को  आईना दिखाया जा सके जिससे उनके अंदर एक सकारात्मक परिवर्तन हो सके।

ब्रह्मर्षि विचारक की कलम से 


" राजीव कुमार "

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 22, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 26

1942 बनाम 1973 बनाम 2025 कुछ तो समान है

Rahul Gandhi के Gen Z बयान पर विवाद, क्या बढ़ेगा भारत में विद्रोह? - News18  हिंदी

राहुल गांधी ने GEN-Z का जिक्र क्या किया तो कुछ लोगों को देश में गृह युद्ध के आसार नजर आने लगे तथा राजनीतिक दल के तौर पर भारतीय जनता पार्टी भी कहने से नहीं चूकी कि वे देश के भीतर एक ऐसा संघर्ष सड़क पर पैदा करना चाहते हैं जिससे अराजकता की स्थिति में जाकर देश खड़ा हो जाय। सवाल लाजिमी भी है। ऐसा कहते वक्त पहली बार लगा कि एक तरफ राजनीतिक सत्ता खड़ी है तो दूसरी तरफ विपक्ष का नेता खड़ा है। क्योंकि प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने एक बार भी ना तो कांग्रेस का नाम लिया ना ही इंडिया गठबंधन का नाम लिया। राहुल गांधी ने देश की मौजूदा राजनीतिक सत्ता से संविधान और लोगों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों को बचाये रखने के लिए देश के युवाओं, छात्रों को आगे आने का आव्हान किया। चूंकि हाल ही में भारत के पड़ोसी राज्य नेपाल में जिस तरीके से सत्ता परिवर्तन हुआ उसने देश के भीतर भी नेपाल, श्रीलंका तथा बांग्लादेश में हुए तख्तापलट की यादों को ताजा कर दिया है। सवाल यह भी आकर खड़ा हो गया कि क्या भारत की राजनीतिक परिस्थिति इस मुहाने पर आकर खड़ी हो गई है कि सम्पूर्ण क्रांति के तर्ज पर, जैसा कभी लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने नारा दिया था, युवाओं तथा छात्रों को आगे आने का आव्हान करना पड रहा है। यह बात अलहदा है कि भारत में लोकतंत्र की जड़े इतनी गहरी हैं कि यहां पर भले ही राजनीतिक परिस्थितियां बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल की तरह बद से बदतर भी हो जाएं तब भी इन देशों में हुआ तख्तापलट भारत में संभव नहीं है। मगर यह बात सौ टका सही है कि अगर देश का युवा और छात्र एकजुट होकर राजनीतिक सत्ता की खिलाफत करने सड़क पर उतर आये तो किसी भी सत्ता को भले ही वह तानाशाही सत्ता ही क्यों न हो उसे गद्दी छोड़नी ही पड़ती है और ऐसा भारत के भीतर भी हो चुका है। भारत के भीतर राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के लिए युवाओं, छात्रों को सामने आने का ऐलान जिस तर्ज पर राहुल गांधी ने किया उससे पहले ऐसा ही आव्हान 1942 के बाद पहली बार 1973 में जयप्रकाश नारायण ने किया था और भारत के भीतर सत्ता परिवर्तन को सफल करके भी दिखाया था। तो सवाल यह भी है कि क्या 50 साल बाद फिर से वैसी ही राजनीतिक परिस्थिति देश के सामने आकर खड़ी हो गई है जहां विपक्ष के नेता को राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के लिए युवाओं, छात्रों को एकजुट होकर सामने आने का आव्हान करना पड़ रहा है।

सम्पूर्ण क्रान्ति की खोज में मेरी विचार-यात्रा - My Journey in Search of  Complete Revolution (Set of 2 Volumes) | Exotic India Art

जयप्रकाश नारायण ने अपनी किताब "विचार यात्रा" में इसका उल्लेख भी किया है। 1973 के आखिरी महीनों में जब जयप्रकाश नारायण आचार्य विनोबा भावे के आश्रम पहुंचे तो वहां पर उन्होंने एक परचा लिखा था या कह सकते हैं कि एक अपील की थी देश के छात्रों और युवाओं के नाम जिसे उन्होंने नाम दिया था "यूथ फार डेमोक्रेसी" यानी "लोकतंत्र के लिए युवा"। जयप्रकाश नारायण की उस अपील का असर बहुत जल्द गुजरात के भीतर ही एक कालेज में बढ़ी हुई फीस के विरोध में देखने को मिला जिसने आगे चलकर स्थानीय मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीय मुद्दों को अपने में समेट लिया और बिहार आते - आते तो यह सम्पूर्ण क्रांति के रूप में तब्दील हो गया था। 1973 के दौर में देश की बागडोर सम्हालने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी एक तानाशाह की तरह राज कर रही थीं, राज्यों के मुख्यमंत्री साड़ियों की तरह बदले जा रहे थे, बेरोजगारी थी, मंहगाई थी और इन सबसे बढ़कर कानून के राज के ऊपर इंदिरा का राज चल रहा था। इन परिस्थितियों को लेकर जयप्रकाश नारायण चिंतित और निराश थे लेकिन उन्होंने महसूस किया कि जिस तरह से दुनिया भर के युवाओं के भीतर एक बैचेनी भरी छटपटाहट है। एक सूत्र में पिरोकर उसे एक दिशा देकर अराजक सत्ता से देश को मुक्ति दिलाई जा सकती है। यही सोचकर उन्होंने विनोबा भावे के आश्रम में बैठकर एक परचा लिखा जिसे "यूथ फार डेमोक्रेसी" का नाम दिया गया। उन दिनों गुजरात में भी चिमनभाई पटेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सत्ता थी। जिसका पूरा मंत्रीमंडल भृष्टाचारियों से भरा पड़ा था। बेकारी, बेरोजगारी, मंहगाई से जनता परेशान थी। युवा सड़कों पर उतरकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर इस्तीफे की मांग कर रहे थे मगर उनके पास मार्गदर्शक नहीं था। जेपी के परचे में उन्हें आगे का रास्ता दिखा। उन्होंने एक समिति बनाई जिसे "नव निर्माण समिति" का नाम दिया गया। उन्होंने जयप्रकाश नारायण को आमंत्रित किया और जेपी उनके बीच गये भी। वहां उन्होंने युवाओं -छात्रों से संवाद करते हुए पूछा कि आपने समिति तो बना ली उसका नामाकरण भी कर दिया "नव निर्माण समिति" लेकिन आपका विजन क्या है, रूप रेखा क्या है और आप जिस तरह से विधानसभा भंग कर चुनाव की मांग कर रहे हैं तो क्या चुनाव पुरानी लीक पर होंगे। सारी बातों पर गहन विचार विमर्श हुआ जेपी ने उन्हें टिप्स दिये। और गुजरात के छात्रों ने पहली बार अपनी मांगों के साथ राष्ट्रहित की मांगों को शामिल कर संघर्ष की शुरुआत की। उन्हें जनता का भी समर्थन मिला। चिमनभाई पटेल को गद्दी छोड़नी पड़ी। चुनाव में सत्ता कांग्रेस से निकलकर कांग्रेस (आर्गनाइजेशन) के पास चली गई। जिस पर जयप्रकाश नारायण ने कहा कि स्वराज के बाद पहली बार एक राजनीतिक परिवर्तन गुजरात में हुआ है। गुजरात आंदोलन ने भारत में लोकतंत्र के विकास की दिशा में मार्ग संशोधन का एक पुरुषार्थ किया है और इस शोध का सार तत्व यह है कि संसदीय लोकतंत्र में भी केवल इसके निष्क्रिय वाहक ही नहीं बने रहने चाहिए, चुने हुए प्रतिनिधियों से जवाब तलब करने वाले सक्रिय और अंत में प्रतिनिधियों की कार्यवाहियों पर अंकुश लगाने वाले सही मायने में डेमोस हैं यानी लोग हैं। गुजरात आंदोलन ने भारत में पहली बार लोकतंत्र के तंत्र में लोक का महत्व स्थापित किया, आम जनता की आकांक्षाओं का प्रतिपादन किया और वह भी तमाम संगठित राजनीतिक दलों के बावजूद उनसे ऊपर उठकर। और शायद इसीलिए आखिर में उन्होंने लिखा भी राजशक्ति से जनशक्ति सर्वोपरि है, राजशक्ति जनशक्ति के अधीन है। गुजरात आंदोलन के बाद भारत और भारतीय लोकतंत्र का स्वरूप आंदोलन के पहले वाला नहीं रहेगा यह तय है और हुआ भी वही।

जानें 18 मार्च 1974 को ऐसा क्या हुआ, जिस कारण पड़ी जेपी आंदोलन की नींव -  jayprakash movement jp aandolan bihar movement of student started from 18  march 1974 tedu - AajTak

गुजरात के बाद जब बिहार में आंदोलन शुरू हुआ और पटना कालेज के भीतर जब लाठियां चली तो छात्र जयप्रकाश नारायण के पास (कदम कुआं) गये और उनसे अपने आंदोलन की अगुवाई करने का निवेदन किया तब जयप्रकाश नारायण ने छात्रों से केवल और केवल सिर्फ एक ही वादा लिया कि छात्र हिंसा नहीं करेंगे और छात्रों ने भी कहा कि वे हिंसा नहीं करेंगे। इसके बाद जेपी ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ली। जयप्रकाश नारायण की अगुवाई में आंदोलन युनिवर्सिटी के संकट, राज्य के मुख्यमंत्री के सवालों से होता हुआ राष्ट्रीय तौर पर आगे बढ़ता चला गया। इस दौर में देश ने इमर्जेंसी को भी देखा। इसी दौर में ही देश के भीतर ये नारा गली-गली गूंजायमान हुआ "सिंहासन खाली करो कि जनता आती है"। इंदिरा गांधी के तालिबानी शासन का तख्तापलट हुआ। जयप्रकाश नारायण ने जब आंदोलन शुरू किया था तो उनके जहन में कुछ इस तरह के सवाल रहे होंगे। दुनिया भर में युवकों के बीच बेचैनी है, भारत में लोकतंत्र पर खतरा है, निर्वाचन प्रणाली दूषित हो चुकी है, चुनाव बहुत मंहगा हो गया है, राजनीति में जातिगत स्वार्थों की शह पर होने वाला बल प्रयोग बड़ा मायने रखता है। यह भी बहुत महत्वपूर्ण है कि उस समय जेपी के दिमाग में 1942 में महात्मा गांधी द्वारा किया गया "भारत छोड़ो" आंदोलन भी था। उन्होंने कहा कि 1942 1973 नहीं हो सकता लेकिन देश के भीतरी हालात तो आज भी (1973) ऐसे ही बने हुए हैं जैसे 1942 में थे तो इनको निपटाने के लिए आंदोलन की शक्ल में आगे बढ़ा जा सकता है। इसीलिए उन्होंने विनोबा भावे के आश्रम में बैठकर परचा लिखा यानी युवाओं और छात्रों से सामने आने की अपील की और नाम दिया "यूथ फार डेमोक्रेसी" यानी "लोकतंत्र के लिए युवा"।

Removed Indira Gandira Government under the leadership of JP Lalu Nitish  are the product of movement Why student organizations marginalized today  जेपी के नेतृत्व में पलट दी थी सत्ता, लालू-नीतीश उसी आन्दोलन

जयप्रकाश नारायण 1973 की जिन परिस्थितियों में राजनीतिक सत्ता को डिगाने का जिक्र कर रहे थे तो उन परिस्थितियों में और मौजूदा परिस्थितियों में क्या कोई तालमेल हो सकता है ? इंदिरा राज को मोदी राज के समकक्ष रखा जा सकता है क्या ? हाँ कहा जा सकता है कि मौजूदा राजनीतिक सत्ता उसी तर्ज पर चल पड़ी है। यानी 50 बरस पहले की परिस्थितियां फिर से आकर मुंह बाये खड़ी हो गई हैं। इसीलिए राहुल गांधी बतौर लीडर आफ अपोजीशन बार-बार छात्रों और युवाओं से इस बात का जिक्र करते हुए कह रहे हैं कि जब उन्हें यह समझ आ जायेगा कि उनको ही लोकतंत्र को बचाने के लिए, संविधान की रक्षा करने के लिए आगे आना है तो वे जरूर आगे आयेंगे। यानी भारत इंदिरा गांधी से नरेन्द्र मोदी तक की परिस्थितियों, जयप्रकाश नारायण से राहुल गांधी तक की परिस्थितियों और देश के भीतर लोकतंत्र तथा चुनाव के बीच की राजनीतिक परिस्थितियों के चक्रव्यूह में फंस चुका है। पिछले 8-10 बरस से एक सिस्टम के जरिए हिन्दुस्तान की डेमोक्रेसी को हाईजैक किया जा चुका है। इसीलिए राहुल गांधी एक परिवर्तन का जिक्र तो करते हैं लेकिन वो ये भी जानते हैं कि मौजूदा समय में कांग्रेस सहित तमाम राजनीतिक दलों में भृष्ट नेताओं की एक लम्बी कतार है। यह कतार संसदीय विशेषाधिकार पाने के कारण इतनी करप्ट हो चुकी है कि एक भी नेता ऐसा नहीं मिलेगा जो करोडपति से कम हो, उसका जुड़ाव जनता से कट चुका है वह अपने में ही मस्त है। इसीलिए विधानसभा और संसद में विधायक और सांसद के भीतर जनता को लेकर जो बेचैनी 
होनी चाहिए नदारत रहती है। शायद यह बात राहुल गांधी को अपनी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बखूबी समझ आई होगी और हो सकता है वहीं से जनता के लिए बेचैनी पैदा हुई हो।

questioned Democracy what agents doing Rahul Gandhi allegations caused stir  within Congress 'लोकतंत्र पर ही सवाल उठा दिए, एजेंट क्या कर रहे थे?' राहुल  गांधी के आरोपों से कांग्रेस में ...

राहुल गांधी को यह भी समझ में आने लगा है कि तमाम राजनीतिक प्रयोगों के बाद मिल रही लगातार चुनावी असफलता के बाद भी अगर बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हुआ है तो वह आंदोलन के जरिए ही हुआ है, युवाओं की भागीदारी से ही सुनिश्चित हुआ है चाहे वह इमर्जेंसी के बाद की परिस्थिति रही हो या मंडल-कमंडल की परिस्थिति रही हो। मौजूदा वक्त में राहुल गांधी को इतना तो समझ में आ गया है कि अगर बिहार में समूची जनता साथ खड़ी नहीं होती है तो तेजस्वी यादव केवल जातीय समीकरण के आसरे अपने बलबूते चुनाव नहीं जीत सकते हैं क्योंकि चुनाव आयोग ने चुनाव के सारे तौर तरीके मौजूदा सत्ता को लाभ पहुंचाने के लिए तैयार कर रखे हैं। यही स्थिति उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के सामने भी है। राहुल गांधी को यह भी पता है कि तमाम राजनीतिक दल अपने-अपने बूते जहां भी आगे बढ़ेंगे वहां पर राजनीतिक सत्ता उन्हें रोक देगी क्योंकि वह खुद भी कभी न कभी राजनीतिक सत्ता का हिस्सा रह चुके हैं । हां अगर जनता तय कर ले तो एक फिर नये तरीके की राजनीतिक परिस्थितियां देश में पनप सकती हैं शायद इसीलिए बार बार जिक्र किया जा रहा है युवा ताकत का, भारत के नागरिकों का तथा खुले तौर पर चुनाव आयोग को चुनौती भी यह कहते हुए दी जा रही है कि जिस दिन जनता जाग गई उस दिन आपका क्या होगा ? राहुल गांधी का कहना है कि मैं हिन्दुस्तान की जनता को, हिन्दुस्तान के युवाओं को सच्चाई दिखा सकता हूं ये मेरा काम है। उनके जो इंट्रेस्ट हैं, ये जो संविधान है वह हिन्दुस्तान की जनता का रखवाला है। सुरक्षा कवच है। मैं संविधान को बचाने में लगा हुआ हूं। हिन्दुस्तान की जनता को, युवाओं को एकबार ये पता लग गया कि वोट चोरी हो रही है तो उनकी पूरी ताकत लग जायेगी उसे रोकने के लिए।

Lok Nayak Jaiprakash Narayan Biography Death Anniversary Struggle For Life  400 Dacoit Surrender In Front Of Government Officials-जय प्रकाश नारायण के  घर अचानक पहुंच गया था चंबल का इनामी डकैत, अड़ गया

जिस बात को 50 बरस पहले जयप्रकाश नारायण ने लिखा था कि दुर्भाग्य से लोगों के नागरिक जीवन के लिए जरूरी यह स्थिति आज अनेक तरफ से खतरे में है। सबसे गंभीर खतरा निर्वाचन प्रणाली के दूषित होने से है। लोकतंत्र में चुनाव का महत्व जनता की वजह से ही है। जनता ही बीज स्वरूप है। चुनाव से ही लोग अपने शासक को चुनने के लिए अपने सर्वोपरि जन्मसिद्ध अधिकार का इस्तेमाल करते हैं लेकिन आज चुनाव का केन्द्र बिंदु लोक और लोकतंत्र की प्रक्रिया से अलग हट गया है ना ये जनता से जुड़ा है ना ये डेमोक्रेसी से जुड़ा है आज भी वही परिस्थिति देश के सामने मुंह बाये खड़ी है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी चंदे की प्रक्रिया को असंवैधानिक तो करार दे दिया मगर असंवैधानिक तरीके से लिये गये रुपयों जप्ती तो की नहीं तो राजनीतिक दल आज भी उसी अवैधानिक रुपयों के बल पर चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित करते रहते हैं। दोपायों की खरीद फरोख्त करते रहते हैं। यानी एक पूरी प्रक्रिया करप्ट और तानाशाही तरीके से पूरे सिस्टम को खत्म कर चुकी है। ये सवाल जेपी के दौर में भी था आज भी है। जेपी ने लिखा है कि वास्तव में लोकतंत्र के लिए युवा को संगठन के बजाय आंदोलनजदा होना चाहिए।  तब के दौर में इंदिरा गांधी की खिलाफत करने वाले सारे राजनीतिक दल जेपी के पीछे खड़े हो गए थे यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी जेपी आंदोलन को समर्थन दे रहा था। लेकिन इस दौर में कई राजनीतिक दल अपनी स्वार्थपूर्ति के चलते वैचारिक मतभेद के बाद भी सत्ताधारी पार्टी के साथ गलबहियाँ डाले ईलू-ईलू कर रहे हैं। सवाल किसी राजनीतिक दल या उससे जुड़े नेता का नहीं है सवाल देश को सम्हालने का है। सवाल देश की राजनीतिक परिस्थितियों में एक बड़े बदलाव और ट्रासंफार्मेशन का है। क्या उस दिशा में युवा बढ़ेगा ? उस दौर और इस दौर की परिस्थिति में सामंजस्य यही दिखता है कि जयप्रकाश नारायण की राह पर राहुल गांधी हैं तो उस वक्त की इंदिरा गांधी की राह पर नरेन्द्र मोदी हैं लेकिन दोनों परिस्थितियों में इस दौर का युवा उस दौर के युवाओं से इसलिए मात खा रहा है क्योंकि उस वक्त का युवा मौजूदा वक्त में राजनीतिक सत्ता के साथ खड़ा है वो बिहार के नेताओं की कतार है।

लोकसभा में राहुल गांधी के उठाए सवाल लोकतंत्र के लिए क्‍यों जरूरी हैं -  Junputh

शायद इसीलिए इतिहास अपने आपको दुहराते हुए 50 बरस बाद आकर ड्योढ़ी पर खड़ा होकर एकबार फिर युवाओं को लेकर सवाल खड़े कर रहा है। वह भी तब जब इस वक्त भारत दुनिया में सबसे युवा देश है और युवाओं की ताकत, युवाओं की संख्या, युवाओं का संकट, युवाओं की त्रासदी ये सब कुछ युवाओं से ही जुड़ी हुई है तो फिर देश की जनता को, युवाओं को, छात्रों को और GEN - Z को ही तय करना पड़ेगा और यह भारत के राजनीतिक बदलाव की यह एक अनोखी और सुखद हवा होगी। क्योंकि इस दौर में युवाओं से जुड़े मुद्दों को मौजदा सत्ता द्वारा कहीं आंका ही नहीं जाता है। असमानता, मंहगाई, बेकारी, बेरोजगारी कोई मायने ही नहीं रखती है । सत्ता की करीबी कार्पोरेट के साथ है। उसके लिए उनका मुनाफा और मुनाफे की अर्थनीति ही मायने रखती है। लोक कल्याण लाभार्थी में तब्दील हो गया है यानी सत्ता के ऊपर निर्भर मौजूदा वक्त की परिस्थिति में देश टिका हुआ है और मौजूदा सत्ता को बनाये रखने के लिए देश के संवैधानिक संस्थान काम कर रहे हैं। जयप्रकाश नारायण ने कहा था कि हो सकता है सत्ता में बैठे हुए (जो कुर्सियों पर बैठे हुए) हैं उनको ऐसा संघर्ष गैर संवैधानिक और लोकतांत्रिक विरोधी लगे (मौजूदा वक्त में सत्ताधारी दल बीजेपी यही कह रही है) लेकिन मुझे ये लगता है कि इसे भले ही संविधान के दायरे से बाहर का चाहे कह लो लेकिन इसे गैर संवैधानिक नहीं कह सकते यह लोकतांत्रिक विरोधी भी नहीं है। वास्तव में जब संवैधानिक परिस्थितियां या लोकतांत्रिक संस्थायें लोगों के दुख दर्द को मिटाने या उनके सवालों का उपयुक्त जवाब प्रस्तुत करने में असफल हो जाती हैं तो जनता इसके अलावा कर भी क्या सकती है। 
 


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
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September 22, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 25

हैरान भर नहीं आखिरी उम्मीदों को तोड़ते दिख रहे हैं अदालती आदेश

Adani Videos Takedown: सच, कानून और सेंसरशिप? - YouTube

17 सितम्बर का दिन भारत के इतिहास में "अदाणी वीडियो टेकडाउन" दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। यू-ट्यूबरों पर विजय प्राप्ति के उपलक्ष्य में महान अदाणी भी अपने चैनलों पर कार्यक्रम कर सकते हैं। मोमबत्ती प्रज्वलन के साथ पथ संचलन कर सकते हैं। जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने अदाणी से जुड़े मुद्दों पर बनाये गये 138 वीडियो के टेकडाउन के आदेश दिए हैं। भारत के लाखों यू-ट्यूबर प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं तो भेजें ही अदाणी जी की तस्वीर के सामने अगरबत्ती जला कर प्रार्थना करें कि उनका वीडियो सलामत रहे। टेकडाउन का नोटिस नहीं आए। ये टिप्पणी वरिष्ठ पत्रकार रविश कुमार की है जो उन्होंने दिल्ली की एक अदालत के बाद भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के संदर्भ में की है। दरअसल भारत के सबसे धनाढ्यपतियों में से एक गौतम अदाणी ग्रुप की एक कंपनी अदाणी इंटरप्राइजेज ने दिल्ली की एक अदालत में देश के प्रतिष्ठित यू-ट्यूबर्स के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था जिस एक पक्षीय सुनवाई करते हुए अदालत ने एक पक्षीय निर्णय पारित करते हुए आरोपी बनाये गये यू-ट्यूबर्स को आदेश दिया कि अदाणी के खिलाफ बनाये गये 138 वीडियो तथा 83 इंट्राग्राम पोस्ट को डिलीट कर दिया जाय। इसी तारतम्य में भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने भी एक आदेश जारी कर अदालत द्वारा दिये गये आदेश का पालन करने को कहा है।

Government of India, Ministry of Information and Broadcasting 16.09.2025 - Digital News publishare - Subject - Compliance to court order - Adani Enterprise Ltd. V Paranjoy Guha Thakur आता & Ors. (order dated 06.09.2025) take Down of Defamatory content. Reg. I am directed to refer to the order dated 06.09.2025 in the matter of Adani Enterprise Ltd. V Paranjoy Guha Thakurata & Ors. (C. S. SCJ 1066 of 2025) before the Hon'ble Senior Civil Judge Rohini Court Delhi (copy enclosed) the lists of links are also enclosed herewith. The Hon'ble Court vide aforementioned order has directed defendents no 01 to 10 to expunge/remove all defamatory material from their respective articles/Social media posts within 5 days of the said order. However it has come to notice of this ministry that the above said order has not been complied with within the stipulated timeline. Accordingly you are directed to take appropriate action for compliance of the aforementioned order and submit the action taken to the ministry within 36 hours of the issue of this communication. This issue with the approval of the competent Authority.

गौतम अडाणी से जूड़े हुए मामले में सूचना प्रसारण मंत्रालय ने सक्रियता दिखाई है उससे मीडिया जगत में इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 75 वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर दिया गया रिटर्न गिफ्ट माना जा रहा है वह भी अपरोक्ष रूप से गौतम अडाणी के अदृश्य हाथों।

US SEC seeks help from indian authorities on gautam adani case

The Union Ministry of Information and Broadcasting on Tuesday (September 16) sent notices to two media houses and a number on you Tube channels ordering them to take down a total of 138 videos and 83 Instagram posts that mentioned the Adani Group. These orders the ministry stated in a letter dated Tuesday, was based on an ex part order issued by the The North West Delhi district court on September 6 in a defamation case filled by Adani Enterprises. The court had told a number of journalists and activists including Paranjoy Guha Thakurata, Ravi Nair, Abir dasgupta, Ayaskanti Das and Ayush Joshi to take down articles and social media posts that allegedly defamed the Adani Group. As ex part order is issued when some parties to case - in this case the journalists and activists involved are not heard. Those who received notices from the Information and Broadcasting Ministry on Tuesday however, are not party to that case.

The wire too has been served this notice on Tuesday for a solitary Instagram post that referred to allegation levelled by the US securities and Exchange commission against the Adani Group, which are matters of record, others who have been included in the take down orders are News laundry, Ravish Kumar, Ajit Anjum, Dhruv Rathee, Akash Banerjee, aka Deshbhakt and others. Several of the videos flagged did not necessarily contain any new reportage or opinion. For in stance one of the News laundry videos that is listed is a subscription appeal that merely features a screen shot of an article about the Adani Group. The ministry's letter states that the publications had failed to take action in the time frame stipulated by the court order. Accordingly, you are directed to take appropriate action for compliance of the aforementioned order, and submit the action taken to the ministry within 36 hours of the issue of this communication it reads. Copies of the notice were also worked to meta platforms Inc and Google Inc. 
Episode of TV Newsance along with an explaine on how the cases against NDTVs former owner Pranv Roy and Radhika Roy were closed after the Adani takeover of the Channel also featured on the list. Roposts on the Dharavi Project and episodes of News laundry's weekly podcast NL Haffa, NL charcha and NL Tippani also feature on the list. Three videos of journalist Atul Chaurasia, includes ones where he discusses the case against Adani in the US. The ministry has also asked the interviews of NCP leaders Sharad Pawar and Ajit Pawar by journalist Sreenivasan Jain to be removed. In these interviews both leaders confirmed that Gautam Adani hosted a High-profile meeting in 2019, in which the possibility of the Nationalist Congress Party supporting the Bharatiya Janta Party was discussed. It also includes three videos done by the News minute including one episode case of South Central and Let Me Explain, which were hosted on the News laundry YouTube channel.

US कोर्ट से आई Adani पर बड़ी खबर... इन मामलों की होगी एकसाथ सुनवाई, टूट गए  ये शेयर! - Adani bribery case US court orders joint criminal civil trial  against tycoon these

Adani wins court order that flip free speech on its head. A Delhi Judge let the company compile its own blacklist of 'defamatory' journalism platforms must deletes flagged content within 36 hours.

On September 6 a Delhi district court granted Adani Enterprises Ltd's prayer for an ex part injunction to restrain nine journalists and organisations, along with unnamed others, from publishing or circulating 'unverified, unsubstantiated and exfacie defamatory' material about the company. The court ordered takedowns across platforms. It is a 'John Deo' order, which restrains even those not specifically named in the case. More striking Senior Civil Judge Anuj Kumar Singh of the Rohini District Courts handed Adani a censorship pipeline. He allowed the company to keep sending URLs and links of articles or posts that the company considers "alleged defamatory material" to interact inter mediaries or government agencies, who must then take them down within 36 hours. Adani has been given blanket liberty to compile its own rolling blacklist and have platforms erase it without further judicial serutiny, until the court says otherwise.

Wire - - I&B Ministry orders Takedown of 138 Videos, 83 Instagram Posts About Adani Using Ex-Part Court Order Aakas Banerjee, aka Deshbhakt, amongst other youTubers have been named this order.

गुजरात में भी एक कोर्ट ने भी अडाणी ग्रुप द्वारा दायर एक मानहानि के मामले में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा सहित राजू पारूलेकर को समंस जारी कर अदालत में तलब किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने Adani Group जमीन मामले में गुजरात हाईकोर्ट के फैसले पर  लगाई रोक

Gujarat court issues notices to two Journalists on Adani Group's defamation complaint. Adani Groups accused Abhishar Sharma, a youTuber and Raju Parulekar a blogger of spreading false and defamatory content to malign its reputation. A court in Gandhinagar has issued notices to journalists Abhishar Sharma and Raju Parulekar for personal appearance September 20 after criminal defamation complaints were filled against them by Adani Group. The business conglomerate accused Mr. Sharma, a youTuber and Mr. Parulekar, a blogger, of spreading false and defamatory content to malign its reputation. The court of Judicial Magistrate First Class, Gandhinagar, P. S. Adalat has issued notices to both individuals and directed them to appear on September 20 according to release issued by Adani Group. The group has invoked Section 356 (1, 2 and 3) of the Bhartiya Nayay Sanhita (BNSS) 2023, which are equivalent to the Indian Penal Code Section 499, 500 and 501 it said. The complaints point to a youTube video uploaded on August 18, 2025 by Sharma alleging that thousand of big has of land in Assam had been allotted to Adani and tying the company to a pattern of supposed political favours, as well as to a series of tweets and retweets by Parulekar since January 2025 making similar claims of land grabs, scams and undue benefits. The release said.

अदालत द्वारा जिस तरह का एक पक्षीय आदेश किया गया है वह अपने आप में चौंकाने वाला है। सवाल किया जा रहा है कि कोई भी अदालत इस तरह का पावर किसी को कैसे दे सकती है कि वह चुन चुन कर सोशल मीडिया से वीडियो को डिलीट करवाये। सवाल यह भी है कि लोकतंत्रात्मक गणराज्य में जब प्रधानमंत्री के कामों को लेकर आलोचनात्मक कमेंट किये जा सकते हैं और देश की सबसे बड़ी अदालत भी इसे लोकतंत्र के जिंदा रहने के तौर पर देखती है तो फिर गौतम अडाणी जैसे कारोबारी के अनैतिक लग रहे कारोबार को लेकर आलोचनात्मक टिप्पणी क्यों नहीं की जा सकती है ? अदालत दूसरे पक्ष की बात को सुने बिना इस तरह के आदेश क्यों कर कैसे दे सकती है? क्या गौतम अडाणी का रुतबा देश के सबसे बड़े कारोबारी होने के कारण राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से भी ऊपर हो गया है? क्या लोकतंत्र पर धनतंत्र हावी हो चुका है? इसी तरह से कारोबारी रुतवे से प्रभावित होने वाला दूसरा मामला है देश के सबसे बड़े सेठ मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू का । इस पर भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को लेकर सवाल उठने लगे हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश में जो लिखा है वो वाकई चौंकाने वाला तो है ही वह यह भी बताता है कि देश की सबसे बड़ी अदालत भी बड़े-बड़े प्रभावशाली कारोबारियों को किस हद तक जाकर संरक्षित कर सकती है।

No further complaint of proceedings based upon such same set of allegations shall be entertained before any judicial statutory or administrative forum was to secure finality, obviate repetitive inquiries and investigation on issues concluded by the SIT.

We may leave it open to the respondent - vantara to pursue its remedies in accordance with law for the deletion of any offending publication or for any action against those responsible for the misinformation or for action for defamation or private complaints under the BNS, 2023 and if any such proceedings are initiated, they shall be dealt with on their own merits by the competent court/authority.

ये हैं वनतारा वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित किये गये आदेश के कुछ अंश। इस पर अंजली भारद्वाज ने लिखा है

Adani Ports को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, गुजरात सरकार को अभी नहीं लौटानी  पड़ेगी 108 हेक्‍टेयर जमीन - Big relief to Adani Ports as Supreme Court  stays Gujarat HC decision to

Absolutely shocking and disappointing that the SIT headed by Justice Chelameswar submitted its report on Vantara in SEALED cover! This is the same Judge who refused to attend Supreme Court Collegium meeting because of lack of transparency. How the mighty have fallen! 
The SIT was constituted by the court on August 25 to probe allegations of unlawful procurement of animals. Mistreatment in captivity and financial irregularities. Says Justice Chelameswar - As a Collegium member and the lone dissenting judge, his dissent is a historic as it is revealing of the Collegium's opacity.

The SIT formed in the Anant Ambani owned Vantara has submitted a report in a sealed cover. The investigating part is the bench composition. Before that note that the order for the SIT came really quickly...... after just one hearing. Unusual given how the courts function and the billionaire it involves. Now the bench hearing the case is headed by Justice Pankaj Mithal and consists of Prasanna B Vavale. However as per the Roster of Judges published on in July 2025, the presiding Judge, Justice Mithal does not here "Environmental Laws" in his roster. However, the two petitions basis which the SIT order was passed were categorised 'Environment Laws". So why was it listed before Justice Mithal's bench? As master of the Roster Chief Justice Gavai seems to have used his exclusive powers to' Specially assign' the case, as written in the Roster Document. The overall case of Vantara, with serveval High Court and Supreme Court orders intersecting to with each other, suggests something more is at play here.

Vantara Acquisition of Animals as per Regulation : Supreme Court Accept SIT Report - - The Supreme Court today (September 15) observed that the acquisition of animals in Vantara (Geens Zoological Rescue and Rehabilitation Centre) run by the Reliance Foundation Jamnagar Gujrat is prima facie within the regulatory mechanisms. There was no foul play found by the Special Investigation Team (SIT) constituted by the court to inquire in to various allegations. Including whether..........

Gautam Bhatia - -  Rubbing my eyes at these SC directions in the Vantara SIT case, especially (vi) - kept confidential but complete copy of the same be furnished to the respondent - Vantara, may be electronic copy of the same for its own use and record subject to an undertaking that it shall not be disclosed to third parties. The summary of the report which is exhaustive in it sat a sit does not carry comparable sensitiveness or attract the same degree of confidentiality but provides a faithful account of the conclusions reached by the SIT, shall not be treated as confidential. 

Actor Saurav Das was expelled ...


Saurav Das... Executive - - Minded was one thing. What phrase can one coin for this? Alarming stuff happening in the supreme Court. Much like Loya judgement that closed all avenues of Criminal Cases in future, this too, has closed any such future possibility against Vantara and its affairs.

सुप्रीम कोर्ट का आदेश हो या लोवर कोर्ट का आदेश दोनों अफलातून की इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि दुनिया का यह सबसे बड़ा झूठ है कि कानून सबके लिए बराबर है। कानून के जाल में तो केवल छोटी मछलियां फंसती हैं मगरमच्छ तो जाल फाड़ कर बाहर निकल आते हैं। मगर यहां तो कानून के कर्णधार खुद एक कदम आगे बढ़ कर मगरमच्छों को भविष्य में भी कानून के जाल में नहीं फंसने का इंतजाम करते हुए दिख रहे हैं। लोकतंत्र के तीन पाये तो बहुत पहले से ही नपुंसकता से ग्रसित दिख रहे थे। एक न्यायपालिका ही लोगों का आखिरी उम्मीद भरा आसरा होता है लेकिन जब वह भी जब इस तरह के आदेश पारित करता है तो कहीं न कहीं अदालतों पर से भरोसा डगमगाता है। वनतारा पर दिया गया आदेश सुप्रीम कोर्ट की नियत पर गंभीर सवाल तो खड़ा करता है?  तो क्या देशवासियों को यह नारा लगाना चाहिए - - अमृत काल का एक ही नारा सेठ बचाओ धर्म हमारा। लोकतंत्र के चारों पाये बोलें सेठ बचाओ कार्य हमारा।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 17, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 24

मोदी का पर्चा सुप्रीम कोर्ट ने जांचा नम्बर दिये सिफर

PM Modi set to take holy dip at ...

सितम्बर का महीना वाकई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए इम्तिहान का महीना रहा है और अभी तक उनने जो मुख्यतः चार परीक्षाएं दी हैं उन परीक्षाओं के नतीजे सामने आये हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन चारों परीक्षाओं में फेल हो गये हैं। मसलन एथेनाॅल के जरिए केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी को घेरने की परीक्षा हो या फिर वनतारा जू के मार्फत कार्पोरेट मुकेश अंबानी को घेरे में लेने की कवायद हो या कह लें केंचुआ के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के कांधे पर बंदूक रखकर सुप्रीम कोर्ट और संविधान को चुनौती देने का सवाल हो तथा वक्फ कानून के नाम पर राजनीतिक पहेलियों को हल करने के सवाल हों उनकी कापियां जांच कर सुप्रीम कोर्ट ने 15 सितम्बर यानी 17 सितम्बर के दो दिन पहले या कहें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जन्मदिन के 48 घंटे पहले रिजल्ट डिक्लेयर कर दिया है। जिसका लब्बोलुआब यही है कि चारों पर्चों में पीएम मोदी फेल हो गये हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका, अब बिकता रहेगा 20% एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल  - Alert Star News

एथेनाॅल को लेकर जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उनके बेटे को कटघरे में खड़ा किया गया था और उसको लेकर देश में तो यही संदेश गया कि दिल्ली सत्ता नितिन गडकरी को यही मैसेज देना चाह रही है कि पार्टी के भीतर और संघ तथा कार्पोरेट के साथ मिलकर आप जो खेल खेल रहे हैं उसको बंद कर हट जाईये वरना आपको पता ही है कि सरकार के हाथ बहुत बड़े और पैने होते हैं। उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। इसी तरह की एक याचिका देश के सबसे बड़े रईसों में शुमार मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू में हो रही अनियमितताओं को लेकर दाखिल की गई थी। जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने आनन-फानन में एक हाई लेबल एसआईटी गठित करते हुए 12 सितम्बर को जांच रिपोर्ट दाखिल करने की समय सीमा निर्धारित की थी जिसकी रिपोर्ट भी तय समय पर कोर्ट में पेश कर दी गई। उस याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट ने एक झटके में यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोई मामला नहीं बनता इसलिए अब इस पर आगे कोई सुनवाई नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट में वनतारा जू को लेकर दाखिल की गई याचिका को लेकर भी यही मैसेज कन्हवे हुआ था कि असल में इसके पीछे मुकेश अंबानी पर नकेल कसना था। यह बात अलहदा है कि एथेनाॅल और वनतारा जू पर आया फैसला संदेह के घेरे में है। फैसला आने के पहले ही कयास लगाए जाने लगे थे कि सुप्रीम कोर्ट इन दोनों मामलों में कोई भी ऐसा फैसला सुनाने से परहेज करेगा जिससे सत्ता असहज हो जाये और देश के भीतर राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने जैसी परिस्थिति पैदा हो। वैसे सुप्रीम कोर्ट को अपनी विश्वसनीयता बनाये रखने के लिए एथेनाॅल और वनतारा जू में एसआईटी की रिपोर्ट के जरिए जो तथ्य सामने आये हैं उन्हें जनसामान्य के लिए सार्वजनिक करना चाहिए।

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, 3 प्रावधानों पर लगाई रोक, जानिए  हर अपडेट | Supreme Court interim decision on Wakf Amendment Act today  hearing on three issues

वक्फ कानून में किये जा रहे संशोधनों के जरिए सरकार की मंशा तो यही दिख रही थी, वह ही तय करेगी कि भारतीय मुसलमानों को कैसे रहना है, कैसे जीना है, उसके तौर तरीके क्या होंगे। वक्फ की संपत्ति भी सरकार तय करेगी तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संदेश दे दिया है कि सरकार अपनी मनमर्जी से सब कुछ तय नहीं कर सकती है। वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया था जिसे 15 सितम्बर को डिक्लेयर करते हुए कहा गया कि हम अंतरिम तौर पर वक्फ़ कानून को पास कर देते हैं लेकिन उसमें जोड़े गए कई प्रावधानों पर तब तक के लिए रोक लगा देते हैं जब तक केन्द्र और राज्यों से नियम दिशानिर्देश बनकर नहीं आ जाते हैं। जहां पर मस्जिद है वो जमीन कोई सी भी हो मस्जिद वहीं रहेगी। इसी तरह से मंदिर, गुरूद्वारा भी वहीं पर रहेंगे। सरकार चाहती थी कि कलेक्टर के जरिए यह तय किया जाय कि कौन सी जमीन किसकी है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा नहीं यह कलेक्टर तय नहीं करेगा। सरकार वक्फ के भीतर यह सोचकर जिन प्रावधानों को लेकर आई थी कि चलेगी तो उसी की, जिले में कलेक्टर ही सर्वेसर्वा होगा, गवर्नेंस के तौर तरीके जिस तरह से देश के भीतर सामाजिक और धार्मिक संगठनों पर रोक लगाने की ओर कदम बढ़ा रहे थे सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उन पर रोक लगा दी है।

चित्र:All India Muslim Personal Law Board.jpg - विकिपीडिया

वक्फ कानून में लाये जा रहे कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने के बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के सदस्य सैय्यद कासिम रसूल ने त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारे द्वारा ध्यानाकर्षित कराते समय व्यक्त की गई आशंकाओं पर भी गौर फर्माते हुए कई बातों को स्वीकार किया है। मसलन वक्फ वाय यूजर वाली हमारी बात मान ली गई है। कोई थर्ड पार्टी क्लेम नहीं होगा इसे भी मान लिया गया है। 5 साल की कैद को हटा दिया गया है। आर्विटरी खत्म नहीं होगा। कौन सी सम्पति वक्फ की है इसका फैसला वक्फ बोर्ड ही करेगा। राज्य आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या तीन और केन्द्रीय आल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्यों की संख्या चार से ज्यादा नहीं होगी। इस बात का जिक्र किया गया था कि कलेक्टर को यह तय करने का अधिकार दिया जाना चाहिए कि घोषित वक्फ सम्पत्ति सरकारी है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा बिल्कुल नहीं। नागरिकों के व्यक्तिगत अधिकारों पर फैसला देने की अनुमति कलेक्टर को नहीं दी जा सकती है। अगर ऐसा किया गया तो इससे अधिकारों का प्रतिकरण सिद्धांत यानी सेपरेशन आफ पावर का उल्लंघन होगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि जब तक नियम नहीं बन जाते तब तक वक्फ सम्पत्ति घोषित करने से पहले 5 साल तक इस्लाम का अनुयायी होने की जो शर्त है उस पर भी स्टे लगाया जाता है। सरकार ने प्रावधान किया था कि ऐसी सम्पत्ति या जमीन जिस पर सरकार काबिज हो और उस पर वक्फ बोर्ड भी वक्फ सम्पत्ति होने का दावा कर रहा हो तब दावा किसका माना जायेगा इसका फैसला करने का अधिकार कलेक्टर को उसके विवेक पर करने दिया जाय सुप्रीम कोर्ट ने कहा बिल्कुल नहीं ये डीएम अपने विवेक पर कैसे कर सकता है। यह भी प्रावधान किया गया था कि कलेक्टर की रिपोर्ट के बाद अगर सम्पत्ति को सरकारी सम्पत्ति मान लिया गया तो वह सम्पत्ति हमेशा के लिए राजस्व रिकार्ड में सरकारी सम्पत्ति के दर्ज हो जायेगी इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने असहमति जताई है । जगह - जगह हो रहे सर्वे अब नहीं होंगे। वक्फ बोर्ड अब यह बताने के लिए बाध्य नहीं होगा कि सर्वे की जाने वाली सम्पत्ति वक्फ की है या नहीं। सेंट्रल वक्फ काउंसिल के सदस्यों का मुस्लिम होना अनिवार्य है इसको लेकर भी विवाद था। तो कहा गया कि काउंसिल में दो गैर मुस्लिम व्यक्तियों को बतौर सदस्य शामिल किया जा सकता है तथा मुस्लिम सदस्यों में से दो मुस्लिम महिलाओं का होना अनिवार्य है।

आदिवासियों की तरह मुस्लिमों को भी मिले छूट | SamayLive

केन्द्र सरकार द्वारा वक्फ़ कानून में शामिल किये गये प्रावधानों की आंख मूंदकर वकालत कर रहे ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी के अध्यक्ष रहे जगदंबिका पाल से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये अंतरिम आदेश पर प्रतिक्रिया चाही गई तो उन्होंने कहा कि जो कानून पारित हुआ है वह वैध है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ प्रावधानों पर रोक लगाई है उस पर निश्चित तौर पर सरकार विचार करेगी तथा सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर कार्रवाई करेगी। सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश से सत्ता किस तरह से घुटने के बल आ गई है कि उसे डेमोक्रेसी की दुहाई देते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सर्वोपरि कहना पड़ रहा है। जरा फ्लैश बैक में झांके तो बीजेपी पार्लियामेंट के भीतर और ज्वाइंट पार्लियामेंट कमेटी के अंदर जिन सवालों को उठा रही थी उन सारे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने अंतरिम फैसले द्वारा रोक लगा दी है। देश को यह भी समझ में आ गया है कि मोदी सरकार का नजरिया पालिटिकल टार्गेट का था। वह राजनीतिक तौर पर लाभ लेना चाहती थी जिस लाभ के पीछे हिन्दू एकजुटता का सवाल जो बीजेपी और मोदी सत्ता बार - बार खड़ा करती है शायद उसमें सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर सेंध लगा डाली है कि आप हर जगह हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।

आइये Chronology समझते है: कौन है श्रीमान ज्ञानेश कुमार गुप्ता❓ 📌 2018 से  21 → गृह मंत्रालय में अमित शाह के नीचे सचिव रहते हुए काम किया। 📌 2022 से  24 →

यह हकीकत है कि केंचुआ के मुख्य आयुक्त चाहे राजीव कुमार रहे हों या फिर ज्ञानेश गुप्ता हों इनकी इतनी हैसियत नहीं है कि वे देश के संविधान और सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनौती पेश कर सकें जब तक उनके सिर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का हाथ ना हो ! केंचुआ जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट की नसीहत के बाद भी बेधड़क बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वोटर लिस्ट पुनरीक्षण कार्यक्रम एसआईआर चला रहा है उसके पीछे प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के वरदहस्त को नकारा नहीं जा सकता है। और यह तब और प्रगाढ़ हो गया जब केंचुआ ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर देश की सबसे बड़ी अदालत को ही चुनौती दे डाली कि हमें आर्डर देने वाले आप कौन होते हो। केंचुआ का हलफनामा संविधान की आड़ लेकर उस सुप्रीम कोर्ट को चुनौती दे रहा है जिस सुप्रीम कोर्ट के दायरे में ही संविधान की व्याख्या करना आता है। ऐसा नहीं है कि विधायिका और न्यायपालिका में टकराव की परिस्थिति कोई पहली बार बन रही है लेकिन 2014 के बाद से जबसे बीजेपी और नरेन्द्र मोदी ने दिल्ली की सल्तनत सम्हाली है तबसे निरंतर न्यायपालिका को कमजोर करने का काम सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है। अब तो आने वाले 10 सालों तक के लिए सुप्रीम कोर्ट के भीतर ऐसी व्यवस्था कर दी गई है जहां से बीजेपी के अनुकूल फैसले आने की संभावना बलवती बनी रहेगी। क्योंकि हाईकोर्ट के अलावा अब तो सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्तियों की प्रगाढ़ता की खबरें और तस्वीरें गाहे-बगाहे मीडिया में वायरल होती रहती हैं। इसके बावजूद भी देशवासियों के लिए न्याय की अंतिम चौखट सुप्रीम कोर्ट ही बना हुआ है।

बिहार SIR: राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट का आदेश-जिनके नाम छूट गए BLA से  उनकी मदद कराएं | Supreme Court Hearing on Bihar Voter List SIR update 22  august election commission

हां तो बिहार में हो रहे एसआईआर को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बीच केंचुआ ने सुप्रीम अदालत में एक हलफनामा पेश करते हुए कहा है कि अदालत इस मामले में हस्तक्षेप न करे। जिसके मजमून को अखबारों ने अपनी हेडलाइन बनाते हुए छापा - - -  सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को नहीं दे सकता एसआईआर कराने का निर्देश, चुनाव आयोग ने दाखिल किया जवाबी हलफनामा - - निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल किया है। अदालत से इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करने को कहा है। यानी वोटर लिस्ट में हमें क्या करना है, कब करना है, ये हम ही तय करेंगे। कोई दूसरा नहीं तय कर सकता है। कहा जा सकता है कि देश की एक संवैधानिक संस्था लोकतंत्र के एक पाये सुप्रीम कोर्ट की सुप्रीमेशी को सीधे-सीधे चेलेंज कर रही है। अंग्रेजी अखबार The Hindu ने भी हेडलाइन बनाई है - - Election Commission, and no other authority decides when to conduct SIR : ECI tells SC - - A direction to conduct SIR at regular intervals throughout the country would encroach the exclusive jurisdiction of the Election Commission.

Supreme Court orders political parties on bihar Special Intensive Revision  1.60 लाख से ज्यादा बूथ लेवल एजेंट लेकिन आपत्तियां सिर्फ दो, SIR के मामले  में सुनवाई करते हुए सुप्रीम ...

इलेक्शन कमीशन ने अपने हलफनामा में लिखा कि वोटर लिस्ट अपडेट करने की सीमा तय नहीं है। हर चुनाव से पहले वोटर लिस्ट का वेरिफिकेशन करना हमारी जिम्मेदारी है। बदलाव छोटा हो या बड़ा ये हमारा फैसला है। वोटर लिस्ट सही और भरोसेमंद रखना हमारी जिम्मेदारी है। कब समरी रिवीजन हो, कब इन्सेंटिव रिवीजन हो ये हम ही तय करेंगे। यानी सब कुछ हम ही तय करेंगे। उसने संविधान की धारा 121 का जिक्र करते हुए लिखा कि वोटर लिस्ट में बदलाव करने की कोई तय समय सीमा नहीं है बल्कि ये सामान्य जिम्मेदारी है जिसे हर आम चुनाव, विधानसभा चुनाव या किसी सीट के खाली होने पर होने वाला चुनाव हो उससे पहले होना जरूरी है। चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में नियम 25 का भी जिक्र करते हुए लिखा कि मतदाता सूची में छोटे या बड़े स्तर पर बदलाव करना है या नहीं पूरी तरह से हमारे फैसले पर निर्भर करता है। इतना ही नहीं जनप्रतिनिधि अधिनियम 1950 का जिक्र करते हुए लिखा कि चूंकि मतदाता सूची को सही और भरोसेमंद रखना हमारी कानूनी जिम्मेदारी है इसलिए राज्य में एसआईआर कराने का निर्णय हम लेंगे। इसके बाद लिखा कि मतदाता पंजीकरण नियम 1960 के अनुसार चुनाव आयोग को छूट है कि वो तय करे कि कब समरी रिवीजन तथा कब इन्सेंटिव रिवीजन किया जाय इतना ही नहीं उसने तो यह भी लिख दिया अपने हलफनामे में कि इसमें हस्तक्षेप करने अधिकार किसी दूसरी संस्था के साथ ही अदालत को भी नहीं है।

नियमित अंतराल पर एसआईआर का निर्देश चुनाव आयोग के विशेष अधिकार क्षेत्र का  अतिक्रमण करता है: चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा - द इकोनॉमिक ...

अश्वनी कुमार उपाध्याय द्वारा "चुनाव आयोग को भारत में विशेष रूप से चुनाव के पहले एसआईआर कराने का निर्देश दिया जाय ताकि देश की राजनीति और नीति केवल भारतीय नागरिक ही तय करें" वाली याचिका पर सुनवाई करने के दौरान चुनाव आयोग द्वारा दाखिल किए गए हलफनामे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने (मुद्दे, मुद्दों के बाद जनता की भावना, जनता की भावना से होने वाले चुनाव, चुनाव में वोटर लिस्ट को लेकर चुनाव आयोग द्वारा उठाए जा रहे सवाल) खुले तौर पर यह कह दिया "हम यह मानकर चलेंगे कि चुनाव आयोग अपनी जिम्मेदारी को जानता है अगर कोई गड़बड़ी हो रही है तो हम इसको देखेंगे और अगर बिहार में एसआईआर के दौरान चुनाव आयोग द्वारा अपनाई गई कार्यप्रणाली में कोई अवैधता पाई जाती है तो पूरी प्रक्रिया को रद्द किया जा सकता है। जब याचिकाकर्ता ने कहा कि चुनाव आयोग प्रक्रिया का पालन नहीं कर रहा है, उसकी अनदेखी कर रहा है तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलेक्शन कमीशन बिहार में हो रहे एसआईआर और देश के दूसरे राज्यों में होने वाले वोटर लिस्ट रिवीजन को अलग - अलग नजरिये से ना देखे। इसलिए बिहार में हो रहे एसआईआर पर टुकड़ों - टुकड़ों में राय मत दीजिए। अंतिम फैसला बिहार भर में ही नहीं पूरे देश में होने वाले एसआईआर पर लागू होगा। यानी बिहार में जिन 65 लाख लोगों को आपने मतदाता सूची से बाहर निकाल दिया है और आप पर गड़बड़ी करने का आरोप लगा और हमने आधार कार्ड को भी बतौर पहचान के रूप में शामिल करने का निर्देश दिया तो आपको क्या दिक्कत थी यदि आधार कार्ड को लेकर किसी तरह की शंका थी तो उसकी जांच करा सकते हैं क्योंकि देश में कोई नहीं चाहता है कि चुनाव आयोग अवैध प्रवासियों को मतदाता सूची में शामिल करे। यानी जिस बात का जिक्र प्रधानमंत्री अपनी हर रैली में करते रहते हैं कि विपक्षी पार्टियों अवैध प्रवासियों के आसरे चुनाव जीतने की कोशिश करती हैं। बीजेपी भी लगातार अवैध प्रवासियों की घुसपैठ का सवाल खड़ा करती रहती है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि कोई भी अवैध प्रवासियों को वोटर लिस्ट में शामिल कराना नहीं चाहता है। केवल वास्तविक नागरिक को ही वोट देने की अनुमति होनी चाहिए। जो लोग फर्जी दस्तावेज के आधार पर शामिल हो रहे हैं उन्हें मतदाता सूची से बाहर रखा जाना चाहिए लेकिन आप इस रूप में कोई काम नहीं कर सकते हैं कि फलां अवैध प्रवासी है तो है क्योंकि हमने कह दिया सो कह दिया। आप किसी भी दस्तावेज को इस तरह से खारिज नहीं कर सकते हैं कि हमने खारिज कर दिया सो कर दिया। शायद इसीलिए सुप्रीम कोर्ट को इस तरह की टिप्पणी करनी पड़ गयी कि बिहार में आप जिस तरह की कार्यप्रणाली अपना रहे हैं और अगर हमको लगता है कि उसमें जरा सी भी गड़बड़ी या अवैधता हुई है तो हम एक झटके में सब कुछ रद्द कर देंगे।

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कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने बहुत ही साफ और शार्प तरीके से सरकार को ये मैसेज देने की कोशिश की है कि आप अपने तौर पर गवर्नेंस के तौर तरीकों के तौर पर किसी धार्मिक - सामाजिक संगठन में हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं कि वो कैसे और किस रूप में चले तथा एक झटके में गवर्नेंस बाड़ी को सारे पावर भी नहीं दे सकते हैं। इलेक्शन कमीशन को चेताते हुए कहा कि गड़बड़ी मत कीजिए। ऐसा नहीं है कि संविधान ने अगर आपको कुछ अधिकारों से नवाजा है तो आप संवैधानिक संस्था के तौर पर संविधान का जिक्र करते हुए जो मन ने चाहा वही करेंगे। जनता की आवाज याचिकाकर्ता के तौर पर अगर हमारी चौखट पर पहुंचेगी तो हम उसको सुनेंगे भी और फैसला भी देंगे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले और उसकी टिप्पणियों का मैसेज तो यही समझा जा सकता है कि उसने चुनाव आयोग को सीधी चेतावनी दी है कि आप आखिरी संस्था नहीं है, संविधान से बड़ा कोई नहीं है और संविधान की व्याख्या करना सुप्रीम कोर्ट का अधिकार है उसमें हस्तक्षेप करने का अधिकार किसी को नहीं है। भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। देश संविधान के तहत चलता है जो पूरे तरीके से धर्म निरपेक्षता में आस्था रखता है। धर्म निरपेक्षता के आधार पर हर धर्म की अपनी एक प्रक्रिया है उसमें हस्तक्षेप करना ठीक नहीं है। देश की संवैधानिक संस्थायें चैक एंड बैलेंस करना जानती हैं और सुप्रीम कोर्ट को चैक एंड बैलेंस करने में महारत हासिल है। और उसने एथेनाॅल, वनतारा जू, वक्फ कानून और चुनाव आयोग के एसआईआर के मामलों में चैक एंड बैलेंस का नजारा नट की तरह हवा में रस्सी पर चलते हुए पेश कर दिया है। सारी परिस्थितियों के बीच से यह संदेश भी उभर कर सामने आ रहा है कि मौजूदा समय में सब कुछ ठीक नहीं है और सब कुछ ठीक करने के लिए जो भी प्रयास मौजूदा राजनीतिक सत्ता कर रही है उसके लिए भी हालात बहुत अच्छे नहीं है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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