उपराष्ट्रपति के बाद राष्ट्रपति की विदाई की हो रही तैयारी, नरेंद्र दामोदर दास मोदी के लिए एकमात्र रास्ता राष्ट्रपति पद

अचानक नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने अपना उत्तराधिकारी अमित शाह को कहते हैं, लेकिन संघ की अलग तैयारी, इसलिए नहीं चुने जा रहे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
August 08, 2025

भारत जो आज हमें नक्शे पर दिखाई देता है वह अंग्रेजी काल के बाद आज के लोगों को हासिल हुआ है। गुलामी के लगभग 800 सालों के इतिहास के कारण भारत के लोगों को स्वयं पर भरोसा नहीं रहा है, जिसकी संख्या लगभग 80% से ज्यादा हैं। राष्ट्रीय जिम्मेवारी सौंपी नहीं जाती हैं बल्कि एक अच्छी सोच़ व्यक्ति आगे बढ़कर कुछ कर जाता हैं। स्वतंत्रता दिवस का आगाज़ हो चुका हैं और एक सप्ताह में 79 वर्षों का सफ़र हम पुरा करने वाले हैं और 15 अगस्त 2025 को हम 80वें साल में प्रवेश करेंगे।

आज भारत सरकार की बागडोर इसी वर्ष अपना 100 साल पुरा करने वाला दुनिया का सबसे बड़ा संगठन जो कि संघ (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के नाम से जाना जाता हैं और संघ ने राजनीतिक मजबूती के लिए आजादी के समय में जनसंघ की स्थापना कराई तो वहीं जनसंघ की असफलताओं से आगे बढ़ कर भाजपा (भारतीय जनता पार्टी) का गठन किया। संघ की अपनी स्वतंत्रता समाप्त होते देख रही हैं । संघ को भाजपा से अलग करने के लिए नरेंद्र दामोदर दास मोदी और अमित शाह के गठजोड़ों अपनी पुरी सरकारी ताक़त झोंक दी हैं। मोदी और शाह ने भाजपा को एक प्राईवेट लिमिटेड कंपनी या कहें पार्टनरशीप (मोदी और शाह) की तरह चला रहे हैं।

आज मोदी और शाह ने देश स्तर पर संयुक्त, संघ, संगठन और परिवार जैसे शब्दों को समाप्त करने की ओर क़दम बढ़ रखा हैं। मोदी और शाह नहीं चाहते की उनके बीच कोई आये और जो उम्र की सीमा 75 साल के लिए भाजपा में शामिल किया था वह खुद के लिए गले की हड्डी बन गई हैं। जिसके पहले चरण में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का अचानक हुआ इस्तीफा मोदी - शाह के दबाव के कारण हुआ वह अब स्पष्ट हो चुका हैं। जहां जगदीप धनखड़ उपराष्ट्रपति रहते हुए अपने पद की गरिमा कभी नहीं रखी, तो थोड़ा ज़मीर जागते जब देखा गया तो उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे लिया गया था।

वहीं बात करें विपक्ष की तो विपक्ष में बैठे और नेता प्रतिपक्ष के रूप में राहुल गांधी का एक नया अवतार देखने को मिल रहा है। वहीं राहुल गांधी लगातार मोदी - शाह के गठजोड़ और नीतियों का खुलकर विरोध किया है। 2024 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र दामोदर दास मोदी और अमित शाह के गठजोड़ को भारी क्षति हुई हैं जिससे आज केन्द्रीय सत्ता कई दलों के गठबंधन पर टिकी हुई है। जिसके कारण यह राहुल गांधी का प्रभाव भारतीय जनता में बढ़ा हैं और लगातार राहुल गांधी नरेंद्र दामोदर दास मोदी और अमित शाह पर हमलावर होते दिखते हैं। जिसका डर अब मोदी - शाह में बैठता था रहा कि अगर जिस दिन सत्ता से बाहर हुए और जिंदगी रहीं तो उनके कारनामे बाहर आयेंगे भी और जेल भी जाना पर सकता हैं। जिसके कारण नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पास एकमात्र विकल्प है कि वह भारत के राष्ट्रपति बने। अगर मोदी राष्ट्रपति पद अभी धारण नहीं कर पाते हैं तो 2027 में वर्तमान राष्ट्रपति के कार्यकाल खत्म होने पर वह चुनाव के माध्यम से नहीं चुने जा सकते हैं, क्योंकि अपने ही पार्टी के लोगों को ठोकर मारने और बेइज्जती करने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है।

नागपुर से हमारे कुछ पत्रकार मित्रों के अनुसार संघ राष्ट्रीय स्वाभिमान के साथ कोई समझौता नहीं चाहती हैं। संघ मोदी - शाह के अबतक के गुनाहों और लगातार संघ को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणीयों पर चुप्पी साधने को तैयार हैं। वहीं राष्ट्र की बागडोर ऐसे व्यक्ति को देना चाहती हैं जो समाज को मजबूती प्रदान करने वाला हो। आज समाज, संघ और परिवार मोदी - शाह के कारण कमजोर हुए हैं। इसलिए अब मोदी और शाह दोनों चाहते हैं कि एक प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति दुसरा बनकर एक दूसरे के रक्षक बने और कुछ दिनों बाद नया कानून लाकर दोनों अपने खिलाफ होने वाले भविष्य की सभी कार्यवाही पर संवैधानिकता के साथ रोक लगा दें। जबकि संघ ने एक संदेश के माध्यम से अमित शाह को गुजरात संभालने और नरेंद्र दामोदर दास मोदी को खाली हुई उपराष्ट्रपति पद पर सम्मान से जाने का संकेत दिया है।

लेकिन अब जब समय खराब हो गया है और पुरी दुनिया में नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के खिलाफ़ दुनिया का सबसे बड़ी शक्ति ही खड़ी हो गई है तो संघ राष्ट्रीय स्वाभिमान को ठेस पहुंचाने वाले व्यक्ति को हटाने को लेकर गंभीरता रखी हुई हैं। शेयर बाजार और काॅरपोरेट जगत में भी बड़े बदलाव एक सप्ताह में दिखाई दिए हैं जिससे बड़ी घटना और राष्ट्रीय अस्मिता को लेकर संघ चिंतित हैं। 

अगर संघ और मोदी के बीच कोई बीच का रास्ता निकलता है तो संभव होगा कि भारत के राष्ट्रपति का पद जल्दी ही खाली हो सकता हैं।

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