.jpeg)
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जिस तरीके से चुनाव आयोग द्वारा सत्ता के साथ मिलकर या कहें मोदी सत्ता को बनाये रखने के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था चुनाव को हाईजैक किये जाने के ताने-बाने को मय दस्तावेजी सबूतों के साथ देश के सामने खोलकर रखा है और 24 घंटे से ज्यादा वक्त गुजर जाने के बाद देश की सबसे बड़ी अदालत खामोश है तो फिर मानकर चला जाय कि जनता की हथेली खाली है। 2014 के बाद से आम चुनाव के हालात इतने भयानक और डरावने बना दिए गए हैं जिसके सामने न तो कोई मुद्दा मायने रखता है न ही कोई सवाल, तो फिर जनता क्या करे ? सही मायने में यह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के अस्तित्व के संकट का सवाल है जिस पर खड़े होकर देश का हर व्यक्ति देश को चलाने वाले अपने प्रतिनिधि को अपने वोट के जरिए चुनता है। लेकिन यहां तो सत्ता को गारंटी दे दी गई लगती है कि उसके लिए वोट की शक्ल में जनता का फैसला कोई मायने नहीं रखता है। फैसला तो पहले से ही तय कर दिया जाता है जनता तो अपनी उंगली में लगी स्याही को देखकर इस अह्सास के जीती है कि उसने वोट डाल दिया है और देश में लोकतंत्र जिंदा है।
.jpeg)
राहुल गांधी ने चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई सूची में से हांडी के चावल में से एक दाने की तरह उस सच को देश के सामने रख दिया जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि यह वोटों की चोरी नहीं बल्कि यह तो वोटों का आतंकवाद है और आतंकवादी और कोई नहीं बल्कि सत्ता के वरदहस्त के नीचे खुद चुनाव आयोग ही है ! भारत का संविधान कहता है कि चुनाव लोकतंत्र का प्रतीक है और चुनाव कराना चुनाव आयोग के हिस्से में आता है तथा संविधान की व्याख्या करना सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आता है। मगर अगर सारे संवैधानिक संस्थान सिर्फ और सिर्फ सत्ता को बरकरार रखने के लिए जुट जायेंगे तो तय है कि पूरी प्रक्रिया और पूरा सिस्टम चरमरा कर धराशायी हो जायेगा। 2014 के बाद से एक के बाद एक संवैधानिक संस्थान के चरमराने की आवाज लगातार देश के भीतर सुनाई देती रही है। देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि संविधान और लोकतंत्र को बचाये और बनाये रखने की अहम जिम्मेदारी जिसके कांधे पर है वह सुप्रीम कोर्ट भी खामोशी के साथ केवल टिकुर - टिकुर निहारता नजर आता है। जबकि सवाल डेमोक्रेसी का है, हर व्यक्ति के वोट का है, देश के भीतर लोकतांत्रिक हालातों को जिंदा रखने का है। देश में 2014 के बाद से चुनाव परिणाम के दौरान सत्ता विरोधी लहर गदहे के सींग माफिक गायब हो गई। जबकि चुनाव दर चुनाव नोटबंदी, जीएसटी, मिडिल क्लास पर टैक्स का बोझ, पीएसयू'स को बेचना, बेरोजगारी, मंहगाई आदि को लेकर सत्ता के खिलाफ जनता के बीच जबरजस्त विरोधी स्वर, चुनाव पूर्व और वोटिंग के तत्काल बाद आये सर्वेक्षण सब कुछ बेमानी साबित होते चले गए और चुनाव परिणाम सत्तानुकूल होते चले गए। विपक्षी पार्टियों ने हरबार चुनाव आयोग के सामने गुहार लगाई मगर चुनाव आयोग कान में रूई ठूंसे हर विपक्षी आवाज को अनसुना करता रहा यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी निरीह दिखाई दिया। चुनाव आयोग ने सत्तानुकूल चुनाव प्रक्रिया अपनाई। डिजिटल युग में भी डाटा डिलीट करता रहा जिसने न केवल विपक्षी पार्टियों के बीच बल्कि जनता के बीच भी चुनाव आयोग अपनी विश्वसनीयता खोता चला गया।
.jpeg)
कांग्रेस पार्टी ने कर्नाटक राज्य की बेंगलूरु सेंट्रल लोकसभा सीट की डिजिटल वोटर लिस्ट की मांग की लेकिन चुनाव आयोग ने कांग्रेस को मेनुअल वोटर लिस्ट का जखीरा पकड़ा दिया। फिर भी कांग्रेस ने हिम्मत न हारते हुए 6 महीने की कड़ी मशक्कत के बाद वह खुलासा कर डाला जिसने चुनाव आयोग को देश के सामने नंगा करके रख दिया ! गौरतलब यह है कि चुनाव आयोग ने अपने तन ढकने के लिए बीच प्रेस कांफ्रेंस कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने शपथ पत्र देने की मांग कर डाली जबकि राहुल गांधी चुनाव आयोग द्वारा दिए गए दस्तावेजी साक्ष्य का विश्लेषण कर मात्र एक विधानसभा सीट की जानकारी पत्रकारों के बीच साझा कर रहे थे। कायदे से तो चुनाव आयोग को हलफनामा देकर देश को सच्चाई बताना चाहिए मगर यहां तो चोर की दाड़ी में तिनका दिखाई दे रहा है।
.jpeg)
बेंगलुरु सेंट्रल के भीतर आने वाले विधानसभा क्षेत्र सर्वज्ञ नगर, सी वी रमन नगर, शिवाजी नगर, शांति नगर, गांधी नगर, राजाजी नगर, चामराजपेट, महादेवपुरा में से कांग्रेस महादेवपुरा छोड़ कर सभी में आगे रहती है मगर महादेवपुरा में वह इतने ज्यादा वोटों से जीतती है कि बाकी सारी विधानसभाओं के वोट उस बढ़त के भीतर समा जाते हैं जो बढ़त महादेवपुरा में मिलती है और कांग्रेस कैंडीडेट चुनाव हार जाता है। कांग्रेस ने बेंगलूरु सेंट्रल की महादेवपुरा सीट का विश्लेषण किया और पाया कि यहां पर 5 तरीके से चुनाव को हाईजैक किया गया है। जिसको राहुल गांधी ने प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों के सामने सिलसिले बार रखा। इस विधानसभा क्षेत्र में डुप्लीकेट वोटर्स की संख्या 11965 पाई गई। फेक इनवेलिड अड्रेस में वोटरों की संख्या 40009 पाई गई। इसी तरह से वल्क वोटर्स इन सिंगल अड्रेस वाले वोटर्स मिले 10452 इसी तरह चौथे क्रम में इनवेलिड फोटोज वालों को रखा गया जो कि 4132 पाये गये सबसे ज्यादा चौंकाने वाला आंकड़ा रहा मिसयूज फार्म्स - 6 का जिसमें 33692 वोटर्स पाये गये। इसमें उन वोटरों को शामिल किया जाता है जो पहली बार मताधिकार का प्रयोग करते हैं तथा इसमें अधिकांशतः 18 से 22 आयु वर्ग के युवाओं को शामिल किया जाता है लेकिन इस लिस्ट में जिनको शामिल किया गया है उनकी उम्र तो 90, 92, 95, 97 के आसपास है। भारत दुनिया का शायद पहला देश होगा जहां पर नौ दशक के बाद लोगों ने पहली बार मताधिकार का प्रयोग किया है। और खासतौर पर इन्हीं वोटरों के लिए नरेन्द्र मोदी कहते फिरते हैं कि यह वोटर तो हमें ही वोट करता है। यह भी संभवतः भारत में ही संभव है कि एक ही व्यक्ति चार-चार विधानसभा तो छोडिए चार-चार स्टेट में वोटिंग कर सकता है। एक सिंगल बेड रूम वाले कमरे में 80 लोग निवास करते हैं वह भी अलग - अलग मां-बाप की संतानें। दुनिया में शायद ही कोई मकान होगा जिसका मकान नम्बर जीरो (शून्य) हो। दुनिया में यह भी कहीं नहीं होगा जिनके बाप का नाम एबीसीडी, आईजेकेएल या डब्ल्यू एक्स वाई जेड हो मगर इस असंभव को भी भारत के चुनाव आयोग ने संभव कर दिखाया है। और ये सब कुछ तभी संभव हो सकता है जब चुनाव आयोग खुद जीतने के लिए चुनाव लड़ रहा होता है।
.jpeg)
तो क्या फिर लोगों को सुप्रीम कोर्ट के जाग्रत होने की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए ? वह इसलिए भी कि न सही आर्थिक तौर पर परन्तु वोटिंग के तौर पर तो हर एक को बराबरी का अधिकार है और यही लोकतंत्र की खूबसूरती और ताकत है। जिस तरह का खुलासा राहुल गांधी ने किया है उसको देखते हुए प्रथम दृष्टया सुप्रीम कोर्ट को स्वसंज्ञान लेते हुए सभी डाक्यूमेंट अपने हाथ में ले लेना चाहिए। जांच की प्रक्रिया तय करते हुए चुनाव आयोग से सभी लोकसभा क्षेत्रों के संबंधित दस्तावेज शपथ-पत्र के साथ कोर्ट में जमा करने का निर्देश दिया जाना चाहिए मगर क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसा करेगा ? चुनाव जीतने का जो माॅडल और फार्मूला सामने आया है वह तो यही बताता है कि देश की डेमोक्रेसी को एक लिहाज से हाईजैक कर लिया गया है। 2014 के बाद राजनीति ने जैसी करवट ली है उसने सबसे ज्यादा नुकसान तो उन्हीं का किया है जिन्होंने मौजूदा सत्ता को चुना है। देश में एक ऐसी टोली पैदा हो गई है जो लोकतंत्र को लेकर सवाल पूछने वालों को ही निशाने पर लेने लगी है और इस टोली में स्ट्रीम मीडिया भी शामिल दिखाई देता है। जो लोकतंत्र हर 5 साल में ये बताता था कि ये जनादेश जनता का है अब अगर वो जनादेश चुनाव आयोग का हो गया है और चुनाव आयोग सत्ता का हो गया है तो फिर जनता की हथेली खाली है।
.jpeg)
जिस माॅडल और फार्मूले को आत्मसात किया गया है उससे आज जो सत्ता के साथ खड़े होकर मलाई चाट रहे हैं उनके सामने भी यह संकट तो कल खड़ा हो ही जायेगा कि न तो छत्रप बचेंगे न ही उनकी पार्टी ! फिर चाहे वह चंद्रबाबू नायडू हों या फिर नितीश कुमार, वो एकनाथ शिंदे, अजीत पवार हों या फिर चिराग पासवान। सवालों का पूरा झुंड एक ऐसे गुलदस्ते में तब्दील किया जा चुका है जिसकी खुशबू सत्ता के लिए ही बहती है और उसको पूरी तरह से ये आश्वासन और भरोसा दिला देती है कि किसी भी चुनाव में आपको कोई भी बेदखल नहीं कर सकता है। कांग्रेस की प्रेस कांफ्रेंस ने इन सवालों को भी खड़ा कर ही दिया है कि - विपक्ष क्या करेगा ? कांग्रेस कौन सा कदम उठाएगी ? क्या कांग्रेस का नेता राहुल गांधी एक बार फिर जनता के बीच जाकर गांधीवादी तरीके से लोगों जागरूक करेगा ? क्या देश की जनता इस बात को समझ पायेगी कि उसके वोट से जो सरकार बनती बिगड़ती है दरअसल ये उसका वहम है असल में तो ये सब चुनाव आयोग के हिसाब से होता है और चुनाव आयोग सत्ता के लिए है, सत्ता का है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार