खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 15

कहाँ गुम हो गए केंचुआ को कठपुतली बनाकर नाच दिखाने वाले

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
August 25, 2025
PM मोदी के घर आई नन्ही सी 'दीपज्योति', गोद में लेकर साथ खेलते दिखे  प्रधानमंत्री, देखें VIDEO | Navbharat Live

सत्ता का वरदहस्त अगर मिल जाय तो घोड़ा ढ़ाई घर नहीं साढ़े पांच घर चलता है यानी उसे फिर किसी की परवाह नहीं होती है चाहे फिर वह सुप्रीम कोर्ट ही क्यों ना हो। सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को लगातार समझा रहा था बिहार में किये जा रहे एसआईआर की रीति-नीति को लेकर, वह एडवाइज कर रहा था स्वीकार किए जा रहे दस्तावेजों को लेकर, वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख वोटरों के नाम को लेकर। मगर चुनाव आयोग तो हवा में उड़ रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिन दस्तावेजों को स्वीकार करने का परामर्श दिया चुनाव आयोग ने उसकी अनसुनी कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख लोगों की लिस्ट शपथ-पत्र के साथ कारण बताते हुए पेश करने को कहा तो चुनाव आयोग ने शपथ-पत्र में लिख दिया कि वह कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है यानी वह सुप्रीम कोर्ट से भी सुप्रीम है। एक कहावत है कि लातों के देव बातों से नहीं मानते। कुछ यही हाल चुनाव आयोग का है और हो भी क्यों ना, जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए चुनाव आयोग को आदेश देना पड़ा कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गये हैं मय कारण उनकी सूची बूथवार लगाई जावे। यानी देशवासियों के बीच तकरीबन - तकरीबन खत्म हो चुकी चुनाव आयोग की साख को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही आगे आना पड़ा और उसने एक बार फिर अपने आदेश में साफ तौर पर कह दिया कि जो नाम हटाये गये हैं अब उसके लिए कोई जरूरी नहीं है कि मतदाता सशरीर चुनाव प्रक्रिया से जुड़े, किसी अधिकारी के सामने पेश होकर ये बताये कि मैं जिंदा हूं (सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कह कर चुनाव आयोग को इस शर्मिंदगी से बचा लिया कि वह किस मुंह से कहता है कि हमने पहले आपको मार डाला था अब जिंदा कर रहे हैं) जिलेवार लगने वाली मृतकों की कतार को खत्म करते हुए कह दिया गया कि आप जहां पर हैं वहीं से आनलाईन आवेदन कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने भी मारिया के आगे भूत भी डरता है कि तर्ज पर कह दिया कि आधार कार्ड के आधार पर भी वोटर आईडी कार्ड बना कर दे दिया जाएगा। जिस काम को चुनाव आयोग को प्रारंभ में ही कर लेना था उस काम को उसने सुप्रीम कोर्ट की डांट खाने के बाद, देश भर में अपनी छीछालेदर कराने के बाद, अपनी साख को बट्टा लगाने के बाद करना पड़ा। तो सवाल उठता है कि आधार कार्ड को नहीं मानने का फैसला किसका था ? और जिसने ऐसा करने को कहा वह चुनाव आयोग की इज्जत बचाने सामने क्यों नहीं आया ?

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बिहार की धरती पर इन दिनों चुनाव आयोग के ही दस्तावेजी विश्लेषण से निकला वोट चोरी का सच चहुंओर गूंज रहा है। चुनाव आयोग के ही दस्तावेजों का भगीरथी मंथन करने के बाद जिन चार-पांच तरीके से वोटों की हेराफेरी का खेला किया गया और उसके बाद जब मुख्य चुनाव आयुक्त अपनी टीम के साथ प्रेस कांफ्रेंस करने सामने आये तो लगा कि वे वोट चोरी जैसे घिनौनै आरोप का मुंह तोड़ जवाब देंगे लेकिन वे तो प्रेस कांफ्रेंस में अपना ही मुंह न केवल तुड़वा बैठे बल्कि कालिख तक लगा लिए। वह तो अच्छा हुआ कि उनके द्वारा जो - जो बोला गया उनने चुल्लू भर पानी में डुबकी नहीं लगाई ! चुनाव आयोग की वोट चोरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चिपक कर नारे की शक्ल में तब्दील होकर चिपक सा गया है। वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा न केवल बिहार की गलियों में चारों खूंट गूंज रहा है बल्कि गत दिनों सदन की कार्यवाही के अंतिम दिवस जब प्रधानमंत्री बतौर रस्म अदायगी सदन में दाखिल हो रहे थे तो उनका स्वागत करते हुए विपक्ष ने एक स्वर में वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा गुंजायमान किया था और इस नारे को लेकर 1 सितम्बर के बाद राज्य दर राज्य पूरे देश में ले जाने की तैयारी भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर किये जाने की खबर है। क्योंकि 2024 का लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए तमाम चुनाव में वोट चोरी का साया छा सा गया है खासतौर से महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली। वैसे देखा जाय तो नरेन्द्र मोदी न तो बिहार के रहने वाले हैं न ही बिहार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हां यह बात जरूर है कि बीजेपी के पास बिहार में एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी बदौलत बीजेपी चुनावी नैया पार लगा सके उसके पास तो गांव की पंचायत से लेकर देश की पंचायत तक की चुनावी नैया पार करने के लिए एक ही चेहरा है जिसका नाम है नरेन्द्र मोदी। और शायद इसीलिए नरेन्द्र मोदी से चिपका हुआ हर नारा चुनाव के दौरान लगाना प्रासंगिक हो जाता है।

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सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग जमीन की ओर देखने की जहमत उठाता हुआ दिखाई दे रहा है। चुनाव आयोग ने पहली बार कहा है कि सभी राजनैतिक दल मिलकर सामने आयें और काटे गये नामों को जोड़ने में सहयोग करें। जबकि बिहार में एसआईआर शुरू करने के पहले ऐसा कोई आव्हान नहीं किया गया था जो कि उसे करना चाहिए था। मजेदार बात यह है कि देश की सत्ता भी खामोश थी। तो क्या सब कुछ दिल्ली सत्ता के लिए ही किया जा रहा था ? और अब जब बिहार की जमीन से नारों की शक्ल में सीथे - सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा करती हुई आवाजें आने लगी हैं जो 2024 में हुए लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए सभी चुनावों को लपेटे में लेने लगी हैं तो इलेक्शन कमीशन सुप्रीम कोर्ट के सामने चर्चा के दौरान कहता है कि हम पर भरोसा रखिए, हमें कुछ समय दीजिए, हम बेहतर तस्वीर सामने रखेंगे और साबित करेंगे कि किसी को बाहर नहीं निकाला गया है। शायद चुनाव आयोग के जहन में ये बात आ रही है कि जब हमारी साख ही नहीं बचेगी तो फिर न तो चुनाव आयोग का कोई मतलब रह  जायेगा और न ही चुनाव का। तो क्या बिहार से ये आवाज आ रही है कि अब बीजेपी अपना बोरिया-बिस्तर समेट ले या फिर ये मैसेज है कि कुछ भी हो जाय बीजेपी जीत जायेगी ?

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बोरिया-बिस्तर समेट लेने की बात पर तो विपक्ष भी भरोसा नहीं कर रहा है इसीलिए वह कहीं भी ढील देने को तैयार नहीं है। कांग्रेस तो बकायदा एक रणनीति के तहत देश के भीतर चुनाव आयोग के दस्तावेजों के जरिए निकले सबूतों के साथ यह बताने के लिए निकलने का प्रोग्राम बनाने जा रही है जिसमें वह बताएगी कि नरेन्द्र मोदी ने फर्जी वोटों से जीत हासिल कर प्रधानमंत्री की कुर्सी हथियाई है। जिस तरह से संसद से लेकर सड़क तक नरेन्द्र मोदी को वोट चोरी में लपेटा जा रहा है उसकी काट अभी तक न तो मोदी ढूंढ पाये हैं न बीजेपी। बिहार में आकर पीएम नरेन्द्र ने जिन मुद्दों का जिक्र किया उन मुद्दों ने पीएम नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को ही नाकारा, निकम्मा करार देते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है ! प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनमानस के बीच कहा कि "देश में घुसपैठियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। बिहार के सीमावर्ती जिलों में तेजी से डेमोग्राफी बदल रही है। इसलिए एनडीए सरकार ने तय किया है कि देश का भविष्य घुसपैठियों को नहीं तय करने देंगे" । बात तो ठीक ही कर रहे हैं नरेन्द्र मोदी। लेकिन ऐसा कहते हुए वो ये भूल जाते हैं कि बीते 11 बरस से वे ही तो देश के प्रधानमंत्री हैं। सीमाओं की सुरक्षा उनकी सरकार की जिम्मेदारी है और अगर देश के भीतर घुसपैठ हो रही है तो यह पीएम मोदी और उनकी समूची सरकार का फेलुअर है। यानी आप और आपकी सरकार पूरे तरीके से नाकारा और निकम्मी है। क्योंकि ये घुसपैठिए आज दो-चार-छै महीने में नहीं आये हैं। तो इसका मतलब ये भी है कि आपकी जीत, नितीश कुमार की जीत, चिराग पासवान की जीत, आप लोगों की पार्टी की जीत घुसपैठियों के वोट से हुई है यानी आप लोगों की जीत फर्जी है।

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नरेन्द्र मोदी का घुसपैठियों को लेकर दिया गया बयान कहीं न कहीं चुनाव आयोग को सपोर्ट करता हुआ भी दिखाई देता है। दरअसल पीएम मोदी की नींद इसलिए भी उड़ी हुई है कि तमाम मुद्दों की जद में बिहार चुनाव आकर खड़ा हो गया है। इज्जत दांव पर लगी हुई है उस शख्स की जो बीते दो दशकों से ज्यादा समय से सूबे का मुखिया है तथा बीते 11 बरस से जो केंद्र की सरकार चला रहा है वह उसके साथ गलबहियाँ डाले खड़ा है इसके बावजूद भी हाई वोल्टेज चुनाव में अगर हार हो जाती है तो इसके मतलब और मायने बहुत साफ होंगे कि उस बिहार की जनता, जो देश में सबसे गरीब है, जहां सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, जहां किसानों की आय सबसे कम है, जहां की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, जहां का हर दूसरा व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है, ने केंद्र सरकार की नीतियों और तमाम दावों को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग दुनिया भर की बातें तो करता है लेकिन जब वोटर लिस्ट की बात आती है तो खामोश हो जाता है और वोटर लिस्ट को लेकर ही राहुल गांधी द्वारा रैली दर रैली सवाल उठाए जा रहे हैं और बिहार में विपक्ष द्वारा जो रैली निकाली जा रही है उसमें जो भीड़ उमड़ती है इसके बावजूद जबकि यह मुद्दा न तो बेरोजगारी से जुड़ा हुआ है, न ही मंहगाई से, न ही पिछड़े-एससी-एसटी तबके से यह मुद्दा तो देश के भीतर लोकतंत्र की रक्षा करने, संविधान के साथ खड़े होने, कानून का राज होने के साथ ही लोकतांत्रिक पिलर्स को बचाने की एक ऐसी कवायद से जुड़ा हुआ है जिसमें सबसे बड़ा पिलर कोई दूसरा शख्स नहीं बल्कि जनता ही है। यानी यह किसी भी स्कैम, किसी भी करप्शन से बड़ा मुद्दा है। मगर इन सबके बीच चलने वाली पारंपरिक राजनीति पर चलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कोशिश यह कहते हुए की कि "एनडीए सरकार भृष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा कानून लाई है जिसके दायरे में देश का पीएम भी है, इस कानून में मुख्यमंत्री और मंत्री को भी शामिल किया गया है। जब ये कानून बन जायेगा तो प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री या फिर कोई भी मंत्री उसे गिरफ्तारी के 30 दिन के अंदर जमानत लेनी होगी और अगर जमानत नहीं मिली तो 31 वें दिन उसे कुर्सी छोड़नी पड़ेगी"।

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इस दौर में यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि "जेल भेजता कौन है और जो जेल भेज रहा है क्या वही कानून ला रहा है ? सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री को जेल भेजेगा कौन ? नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और उनके तमाम सिपहसालारों ने अपने राजनीतिक जीवन में जिस तरह से हेड स्पीचें दी हैं अगर देश में कानून का राज होता तो ये तमाम लोग आज भी जेल में सड़ रहे होते मौजूदा कानून के रहते ही। मगर देश भर की पुलिस तो भाजपाई प्यादे के खिलाफ भी एफआईआर लिखने का साहस जुटाती हुई नहीं दिखती है। सबसे बड़ा अपराध तो यही है कि कानून का राज ही न रहे और सत्ता कानून का जिक्र करे। संविधान गायब होने की आवाज विपक्ष लगाये और सत्ता कहे कि हम जो कह रहे हैं यही कानून है। इमर्जेंसी काल में इंदिरा गांधी की तानाशाही का मुद्दा उभरा था लेकिन वोटर से वोट का अधिकार छीन लिया जाये ये मुद्दा नहीं बना था। इसी तरह मंडल - कमंडल के दौर में भी देश के भीतर ऐसी परिस्थिति पैदा नहीं हुई थी जैसी परिस्थिति वर्तमान दौर में देश के भीतर बनाई जा चुकी है और इसीलिए विपक्ष द्वारा देश में पहली बार डेमोक्रेसी के प्रतीक "जनता" को ही मुद्दा बना कर पेश किया जा रहा है। चुनाव आयोग पर जो दस्तावेजी वोट चोरी का आरोप लगा और चुनाव आयोग उस आरोप को दस्तावेजी तरीके से नकारने में नाकाम रहा शायद इसीलिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहारियों को समझने की कोशिश में लगे हैं कि "अगर हमें लगेगा कि चुनाव परिणाम पहले ही तय किए जा चुके हैं तो हम इस चुनाव से बाहर हो जायेंगे। तो क्या बिहार में सुलग रही आग आने वाले दिनों में पूरे देश को अपने आगोश में ले लेगी या फिर यह एक मैसेज है सचेत रहें हो जाने का मौजूदा राजनीतिक सत्ता के लिए, चुनाव आयोग के साथ ही उन तमाम संवैधानिक संस्थानों के लिए जो अपना काम नहीं कर रहे हैं। ये परिस्थिति आने वाले समय में पूरे देश को अपनी जद में नहीं लेगी, कहना मुश्किल है ये आवाज तो शुरुआत है बिहार की जमीं से।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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