खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 17

यह तो आखिरी लड़ाई की मुनादी है !

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
September 03, 2025
The Indian Elections: What Narendra ...

भारतीय राजनीति का इतना पतन कभी नहीं हुआ जितना 2014 के बाद से हुआ है। देश ने भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनेताओं का दौर भी देखा है जिन्होंने शब्दों की मर्यादाओं के भीतर रह कर सत्तापक्ष और विपक्ष की तीखी आलोचनाएं भी की हैं और सामने वाले का सम्मान भी बरकरार रखा है। मगर देश ने बीजेपी के भीतर अटल-अडवाणी दौर के बाद होने वाले बदलाव से निकलने वाले नेताओं ने जिस तरह से राजनीत को गर्त में ले जाने के लिए अमर्यादित भाषा के चलन या कहें गाली संस्कृति को जन्म दिया उसके जनक संयोग से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। कहा जा सकता है कि देश की राजनीति को पतन के रास्ते ले जाने के लिए अगर कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार है तो उसका नाम नरेन्द्र मोदी ही है। 2002 में जब गुजरात के भीतर भीषण दंगों के बाद हुए विधानसभा चुनाव के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी रैली में बेहद शर्मनाक बयानबाजी करते हुए मुस्लिम महिलाओं को "बच्चा पैदा करने की मशीन" कहा था जबकि वे खुद 7 भाई बहन हैं। इसी विधानसभा चुनाव के दौरान निकाली गई गौरव अभियान यात्रा को संबोधित करते हुए नेहरू गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी को "जर्सी गाय तथा हाईब्रीड बछड़ा" कहा था। 28 अक्टूबर 2012 को हिमाचल प्रदेश के ऊना में चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस सांसद तथा तत्कालीन मंत्री शशि थरूर की पत्नी स्वर्गीय सुनंदा पुष्कर के लिए "50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड" जैसे घटिया शब्द का उपयोग किया गया था। 2013 में अपने ही गृह प्रदेश गुजरात के मध्यम वर्ग की महिलाओं की अस्मिता को तार तार करते हुए टिप्पणी की गई थी कि "सौंदर्य के प्रति जागरूक माॅं अपनी बेटी को स्तनपान कराने से मना करती हैं क्योंकि उन्हें अपने शरीर के मोटा होने का डर होता है" । वे तो मुसलमानों की तुलना एक कुत्ते के बच्चे से करने में नहीं हिचके थे यानी जैसे वे कह रहे हैं कि "मुस्लिम मातायें कुत्ते के पिल्ले को जन्म देती हैं"। 4 दिसम्बर 2018 में राजस्थान के जयपुर में चुनावी रैली के दौरान नरेन्द्र मोदी ने बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी को "कांग्रेस की विधवा" तक कह डाला था । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का उपहास उठाते हुए "दीदी ओ दीदी" तथा कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी को "सूर्पनखा" कहा गया है। 2015 में तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की माताश्री के चरित्र पर भी उंगली उठाते हुए कह दिया गया कि इनका तो "डीएनए ही खराब" है।। 16 जनवरी 2020 को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पर तो बतौर घूस" लड़कियां सप्लाई करने" का घिनौना आरोप तक लगा दिया गया। ऐसे सैकडों उदाहरणों से इतिहास भरा हुआ है। जब भारतीय राजनीति में कटुता और निम्नस्तरीय शब्दों का समावेश करके जिन बीजों को बोया गया है और अब वे फसल बनकर लहलहा रहे हैं तो उस फसल को काटेंगे भी तो नरेन्द्र मोदी ही यानी वही शब्द अब नरेन्द्र मोदी पर ही पलटवार करते हुए दिखाई दे रहे हैं। बिहार में कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी की चल रही वोट अधिकार रैली के दौरान एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए जिस तरह के अशोभनीय, अमर्यादित शब्द का उपयोग किया उसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है। मगर जिस तरह की बातें सामने आ रही है उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने नाबर्दाश्तेकाबिल हरकत की है वह तो बीजेपी समर्थक है और बिहार में होने वाले चुनाव में मुद्दा बनाने के लिए बीजेपी ने ही प्रीप्लानिंग के तहत उस व्यक्ति को भीड़ में भेजकर अपने ही नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अपशब्द कहलवाये हैं। साधारण तौर पर कहा जा सकता है कि कोई भी कैसे इतना नीचे गिर सकता है कि चुनावी फायदा उठाने के लिए खुद को ही गाली दिलवाये। मगर नरेन्द्र मोदी कालखंड में जिस तरह से राजनीति का पतन हुआ है उसमें कुछ भी असंभव नहीं है। मोदी और उनकी टीम तो आज भी जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को मरणोपरांत तथा सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा तथा राबर्ट वाड्रा को कोसने से चूक नहीं रहे हैं। यह जानते बूझते हुए भी कि दर्द सबको होता है, चोट सबको लगती है। इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि सदायें लौट कर जरूर आती हैं।

Passing off Politics as Economics - The ...

बीजेपी भले ही लगातार चुनाव जीत रही है मगर उसने जिस तरह से राजनीति में गंदगी घोली है खासतौर पर अटल-अडवाणी दौर के बाद से मोदी कालखंड के दौरान वह अपनी वैचारिक विश्वसनीयता खो चुकी है थोड़ी बहुत विश्वसनीयता जो थी वह थी उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की उसे भी गत दिनों सरसंघचालक मोहन भागवत ने गवां दिया है। कुछ समय पहले अपने स्वयंसेवकों के बीच भागवत ने संघ स्वयंसेवक मोरोपंत पिंगले की आड़ लेकर कहा था कि "मेरी मुश्किल यह है कि मैं खड़ा होता हूं तो लोग हंसने लगते हैं, मैंनें हंसने लायक कुछ बोला नहीं है तब भी लोग हंसते हैं क्योंकि मुझे लगता है कि लोग मुझे गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब मैं मर जाऊंगा तब भी पहले लोग पत्थर मार कर देखेंगे कि सच में मर गया है या नहीं। 75 वर्ष आपने किया लेकिन मैं इसका अर्थ जानता हूं। 75 वर्ष की शाल जब ओढी जाती है तो उसका अर्थ ये होता है कि अब आपकी आयु हो गई है अब जरा बाजू हो जाओ, दूसरे को आने दो। अपनी ही बातों के भावार्थ से यू-टर्न ले लिया है। उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि इशारे - इशारे में जो संकेत नरेन्द्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए दिया गया है वह खुद के लिए भी आड़े आ रहा है। मोदी से पहले तो खुद मोहन भागवत 11 सितम्बर 2025 को 75 वर्ष की आयु पूरी करने जा रहे हैं जबकि नरेन्द्र मोदी 17 सितम्बर 2025 को 75 वर्ष के होंगे तो मोदी से पहले भागवत को सरसंघचालक की कुर्सी छोड़कर नजीर पेश करनी होगी और इतना साहस उनके पास है नहीं ! वैसे भले ही राजनीति टैक्सपेयर के पैसों से मिले वेतन-भत्ते और पेंशन से चलती है मगर इसमें रिटायर्मेंट का कोई प्रावधान नहीं है। रिटायर्मेंट का शिगूफा तो खुद नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार लालकृष्ण आडवाणी को दरकिनार करने के लिए पैदा किया था और अब वही शिगूफा नरेन्द्र मोदी के सामने सबसे बड़े सवाल के रूप में सामने खड़ा होकर कह रहा है कि "खुद भी अमल करो" मगर इसके लिए कलेजा चाहिए और 56 इंची सीना कह देने भर से मर्दानगी साहस नहीं आता है !

RIL के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने दोहा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से  की मुलाकात | Moneycontrol Hindi

सितम्बर 2025 में कुछ तारीखें बहुत महत्वपूर्ण हो गई हैं क्योंकि ये महज तारीखें नहीं हैं ये अपने भीतर बहुत सारे खेलों को समेटे हुए हैं। 01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी के ड्रीम प्रोजेक्ट ग्रीन फ्यूल जिसे एथेनाॅल का नाम दिया गया है उसको लेकर दाखिल की गई पीआईएल पर सुनवाई करेगी। 9 सितम्बर को उप राष्ट्रपति चुनाव होना है। 12 सितम्बर को कार्पोरेट मुकेश अंबानी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अमेरिका में मुलाकात होनी है। 12 सितम्बर को ही मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई 4 सदस्यीय एसआईटी कोर्ट को सौंपेगी और 15 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट उस पूरे मामले की सुनवाई करेगी। 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिन का केक काटेंगे।

मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी पर बड़ा अपडेट! सुप्रीम कोर्ट का आदेश,  वंतारा मामले की जांच करेगी SIT

जिस तरह से मुकेश अंबानी के बेटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है ठीक उसी तरह से यह पीआईएल नितिन गडकरी के मंत्रालय के खिलाफ दाखिल की गई और कोर्ट ने स्वीकार भी कर ली है। जिस पर 1 सितम्बर को सीजेआई जस्टिस बीआर गवई के साथ जस्टिस के विनोदचंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की बैंच सुनवाई कर तय करेगी कि क्या एथेनाॅल की प्लानिंग ने देश को लूटा तो नहीं है, जनता को कंगाल तो नहीं किया है या फिर पूरी प्लानिंग ही गलत तो नहीं है। पीआईएल इस बात को लेकर है कि पेट्रोल में जो एथेनाॅल मिलाया जा रहा है उससे गाड़ी कम माइलेज दे रही है, गाड़ी खराब हो रही है, कंज्यूमर का ध्यान नहीं रखा जा रहा है तथा कम हो रही तेल की कीमत का लाभ जनता को नहीं मिल रहा है, लाभ कोई और उठा रहा है, लाभ उठाने वाला कौन है। वैसे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नितिन गडकरी का बचाव करते हुए कि गन्ना और मक्का आधारित एथेनाॅल के उपयोग से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पेट्रोल की तुलना में 65 और 50 परसेंट कम हो जाता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है। गन्ने का बकाया भुगतान हो जाता है। मक्के की खेती में सुधार हो जाता है। किसानों की आय बढ़ जाती है। विदर्भ में होने वाली किसानों की आत्महत्या रुक जायेगी। यानी सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल एथेनाॅल को लेकर पेट्रोल के मद्देनजर जिक्र गाडियों के माइलेज, वाहनों के नुकसान को लेकर लगाई है और सरकार कह रही है कि एथेनाॅल के उपयोग से कच्चे तेल के आयात में कमी आयेगी। फायदा एथेनाॅल मिला पेट्रोल खरीदने वाले को नहीं किसानों को मिलेगा। 11 सालों में 1 लाख 44 हजार 87 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी मुद्रा की बचत हो गई। 245 लाख मीट्रिक टन कच्चा तेल नहीं लेना पड़ा। 736 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में कमी आई। 30 करोड़ पेड़ों के कटने के बराबर एथेनाॅल का इस्तेमाल करके काम कर लिया और जब 20% का मिश्रण होगा तो किसानों को 40 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया जायेगा। यानी सरकार से पूछा खेत के बारे में जा रहा है और सरकार खलिहान की कहानी बताने में लग गई है। एथेनाॅल को लेकर जो सवाल उठाये जा रहे हैं उसके पीछे की वजह ये है कि देश के भीतर एथेनाॅल बनाने वाली कंपनी सीआईएएन एग्रो इंडस्ट्री और किसी की नहीं बल्कि नितिन गडकरी के बेटे निखिल गडकरी की है तथा मिल रही जानकारी मुताबिक इस कंपनी में जो स्टाक था उसकी कीमत 40 रुपये से बढ़कर 668 रुपये हो गई यानी कीमत में 1570% की बढ़ोतरी हुई है। एथेनाॅल को लेकर सरकार की तरफ से गजब के तर्क दिये जा रहे हैं। तो क्या ये सब सरकार की उस प्लानिंग का हिस्सा है जो वह 15 साल पुराने वाहनों को कबाड़ में बदलने की है। जनता को एथेनाॅल मिला पेट्रोल देने के लिए भी सरकार तर्क दे रही है कि 2020-21 की तुलना में आज एथेनाॅल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा है यानी रिफाइन पेट्रोल से ज्यादा है तो फिर कीमत कम कैसे कर सकते हैं। सवाल यह है कि जब एथेनाॅल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा है तो फिर उसका उपयोग ही क्यों किया जा रहा है। किसानों को लाभ देने के लिए गाड़ी वाला अपनी गाड़ी खराब कर रहा है और एथेनाॅल बेचने वाली कंपनी 1570 फीसदी मुनाफा कमा रही है। वैसे इतनी रफ्तार से मुनाफा कमाने वाला नितिन गडकरी का लड़का भर नहीं है। इसी रफ्तार पर तो अडानी ने भी मुनाफा कमाया है। 2014 के पहले देश के भीतर अडानी को कितने लोग जानते थे। पूरा देश जानता है कि गौतम अडानी ने तो नफे की हवाई उडान नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पकड़ी है।

तुम मेरे बेटे जैसे हो...' जब नितिन गडकरी से नाराज हो गए थे धीरूभाई अंबानी,  जानें क्या थी वजह? - You are like my son When Nitin Gadkari rejected  Reliance bid and

मगर इस समय मोदी सरकार के निशाने पर मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी है वह भी उनके अपने बेटों की गर्दन पर फंदा कसके। भले ही मोदी सरकार की मंशा मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी से अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक सौदेबाज़ी करने की हो लेकिन उसने तो इस सौदेबाज़ी के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत की विश्वसनीयता को भी दांव पर लगा दिया है। बहुत साफ है कि मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी का वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र का ताला तभी खुला रह सकता है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 4 सदस्यीय हाईप्रोफाइल एसआईटी अपनी रिपोर्ट की दिशा बदल देवे अन्यथा अगर सही - सही रिपोर्ट दे दी गई तो वनतारा जू में ताला लगना तय है। ठीक इसी तरह अगर सुप्रीम कोर्ट एथेनाॅल को लेकर दाखिल की गई पीआईएल पर ढुलमुल रवैया अपनाती है तो सीजेआई और उनकी पीठ को संदेह की नजर से देखा जायेगा क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है अनंत अंबानी और निखिल गडकरी के गले में जो फंदा डाला गया है वो और कुछ नहीं मोदी सत्ता का अपनी सत्ता को मिल रही अंदरूनी चुनौती से निपटने के लिए मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी से राजनीतिक सौदेबाज़ी करना ही है। क्योंकि जहां मुकेश अंबानी के पीछे खड़ी 140 सांसदों की कतार की कहानी है तो वहीं नितिन गडकरी के पीछे खड़े आरएसएस की छाया है। भले ही अब संघ सरसंघचालक मोहन भागवत यह कह रहे हों कि बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना बीजेपी का आंतरिक मामला है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुद ही रिटायर्मेंट का फैसला लेना है। जबकि कल तक यही सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी बातों को घुमा फिराकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन और नरेन्द्र मोदी को 75 वीं सालगिरह के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए नाक में दम किये हुये थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई सरसंघचालक हुआ हो जिसने संघ का इतना अधिक राजनीतिकरण किया हो, जनता के बीच सरसंघचालक की विश्वसनीयता को कम किया हो, अपने द्वारा दिये गये बौध्दिक को विवादास्पद और आलोचनात्मक बनाया हो जितना मोहन भागवत ने सरसंघचालक की कुर्सी सम्हालने के बाद बनाया है।

सुप्रीम कोर्ट में CAA को लेकर कल सुनवाई, याचिकाओं की छंटनी के लिए दिया था 4  हफ्तों का समय - supreme court hearing on 31st october caa challenging pleas  ntc - AajTak

देश की नजर तो 01 सितम्बर, 9 सितम्बर, 11 सितम्बर, 12 सितम्बर, 15 सितम्बर और 17 सितम्बर पर टिकी हुई है जब 01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की बैंच एथेनाॅल को लेकर दायर की गई पीआईएल पर सुनवाई करेगी। 09 सितम्बर को उप राष्ट्रपति का चुनाव होगा, ऊंट किस करवट बैठेगा। 11 सितम्बर को सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी 75 वीं वर्षगांठ पर दायित्व मुक्त होकर अपने पीछे खड़े किसी स्वयंसेवक के लिए रास्ता प्रशस्त करते हैं या नहीं। 12 सितम्बर को मुकेश अंबानी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से क्या निकलता वह भी तब जब पूरी अमेरिकी सत्ता भारत के नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ी हो चुकी है। 15 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के वनतारा जू पर ताला लगाता है या नहीं। 17 सितम्बर को नरेन्द्र मोदी अपनी 75 वीं सालगिरह के बाद खुद की ही खींची गई लकीर का मान रखते हुए अपने राजनीतिक कवच लालकृष्ण आडवाणी और दूसरे वरिष्ठतम लोगों की कतार में खड़े होकर मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बनते हैं या फिर अपने ही द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर कुर्सी से चिपके रहने को प्राथमिकता देकर जग हंसाई का पात्र बनते हैं।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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