खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 30

इतना तो तय है कि पीएम ने सीजेआई को सद्भाविक टेलिफ़ोन तो किया नहीं होगा !

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
October 12, 2025
Close Down Parliament If Supreme Court Has To Make Law: Nishikant Dubey  News In Hindi - Amar Ujala Hindi News Live - Sc Row:निशिकांत दुबे बोले-  सीमा से बाहर जा रहा सुप्रीम

भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे उवाच - यहां पूरा जजमेंट लिखा हुआ है, राष्ट्रपति का क्या अधिकार है, प्रधानमंत्री का क्या अधिकार है, हमारे पार्लियामेंट का क्या अधिकार है, हमारे सुप्रीम कोर्ट का क्या अधिकार है, हाईकोर्ट का क्या अधिकार है सब कुछ लिखत-पढ़त है। तो तुम नया कानून कैसे बना दिये, तीन महीना कहां से लेकर आ गये कि राष्ट्रपति को तीन महीने के अंदर फैसला करना है। ये किस कानून में लिखा हुआ है। इसका मतलब ये है कि आप देश को एन आर सी की तरफ ले जाना चाहते हो और एन आर सी इस देश में बर्दास्त नहीं होगी। जब नया कानून आयेगा, जब नया पार्लियामेंट बैठेगा इस पर विस्तृत चर्चा होगी और फिर से नेशनल ज्यूडीसरी अकाउंटबिलटी सिस्टम जो हमने NJSE बनाया था जिसमें राष्ट्रपति का चुनाव कैसे होगा, प्रधानमंत्री का कैसे चुनाव होगा वो तो संविधान में लिखा हुआ है लेकिन आपके भाई भतीजावाद के आधार पर जज का चुनाव नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट में एससी जज नहीं है, एसटी जज नहीं है, ओबीसी जज नहीं है। मैक्सिमम 78-80 पर्सेंटेज जो हैं केवल और केवल जो हैं स्वर्ण जाति के जज बैठे हुए हैं और अपना कानून चलाओगे, ये कानून नहीं चलेगा। ये प्रतिक्रिया है भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे की सुप्रीम कोर्ट की क्रिया पर जो उसने जनता द्वारा अपने वोट के माध्यम से चुनी हुई राज्य सरकारों द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा मंजूरी दिये जाने की समय सीमा तय करने में की थी। अप्रैल 2025 - निशिकांत दुबे उवाच - आज जो है ये देश राम, कृष्ण, सीता, राधा, द्वादश ज्योतिर्लिंग से लेकर 51 शक्ति पीठ का है। सनातन की परम्परा है। आप जब राम मंदिर का विषय होता है तो आप राम मंदिर से कहते हो कागज दिखाओ-कागज दिखाओ। कृष्ण जन्मभूमि का मामला आये मथुरा में तो कहोगे कि कागज दिखाओ। आप जब शिव की बात होगी, ज्ञानव्यापी मस्जिद की बात आयेगी तो कागज दिखाओ और आज केवल आप मुगलों के आने के बाद जो मस्जिद बने हैं उसके लिए कहते हैं आप कागज कहां से दिखाओगे। इस देश में धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए केवल और केवल सुप्रीम कोर्ट जिम्मेवार है। सुप्रीम कोर्ट का एकमात्र उद्देश्य है।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का ट्यूट जो उन्होने सीजेआई गवई से टेलिफ़ोन पर बात करने के बाद एक्स पर साझा किया - - Spoke to Chief Justice of India Justice BR Gavai ji. The attack on him earlier today in the Supreme Court premises has angered every Indian. There is no place for such reprehensible acts in our society. It is utterly condemnable. I appreciated the claim displayed by Justice Gavai in the face of such a situation. It highlights his commitment to volues of justice and strengthening the sprit of our constitution. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कैमरे के सामने आकर कहा - - देखिए घटना निंदनीय है। कोई भी भारतीय इसके पक्ष में नहीं हो सकता है। कोर्ट चल रहा था। उस समय इस तरह की घटना हुई और हम इसकी निंदा करते हैं लेकिन साथ में जिस तरह से माननीय प्रधान न्यायाधीश ने संयम दिखाया उसकी भी हम सराहना करते हैं।

TNP News - CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना पर पीएम मोदी का सख्त रिएक्शन –  “हर भारतीय आहत है, न्याय पर हमला बर्दाश्त नहीं”

हर कोई को लगेगा कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री ने चीफ जस्टिस के साथ घटी घटना की निंदा की भले ही घंटों बाद की। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हों या कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल किसी ने भी अपने व्यक्तव्य में सीजेआई गवई पर जूता उछालने वाले वकील पर कार्रवाई करने की बात नहीं कही है ना ही घटना कारित करने वाले के द्वारा लगाये गये नारे "सनातन का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान" की निंदा की है । जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री ने बिहार चुनाव में पड़ सकने वाले नकारात्मक प्रभाव के मद्देनजर डेमेज कंट्रोल को साधने के लिए सिर्फ और सिर्फ रस्म अदायगी की है। भाजपाई सांसद निशिकांत दुबे ने जिस तरह से खुले आम न केवल सुप्रीम कोर्ट, चीफ जस्टिस आफ इंडिया और संविधान पर अपमानजनक व्यक्तव्य दिया तब तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोई व्यक्तव्य देने के बजाय चुप्पी साध कर अपने सांसद की पीठ ही थपथपाई थी। प्रधानमंत्री और कानून मंत्री कह रहे हैं कि कोई भी भारतीय इस घटना के पक्ष में नहीं हो सकता तो जो बीजेपी और आरएसएस की टोल आर्मी सोशल मीडिया पर जूताजीवी का महिमामंडन कर रहे हैं तो क्या ये माना जाय कि वे सारे लोग भारतीय नहीं हैं। फिर तो उन सभी पर देशद्रोह वाली धाराओं के तहत मामला दर्ज कराने की बात प्रधानमंत्री और कानून मंत्री को करनी चाहिए थी जो वो नहीं कर रहे हैं।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सीजेआई बीआर गवई को टेलिफ़ोन करना भी सद्भाविक ना होकर अपने भीतर बहुत कुछ समेटे हुए है। ध्यान दें तो पीएम मोदी ने सीजेआई रहे रंजन गोगोई को रिटायर्मेंट के बाद राज्यसभा मेम्बर बनाया। उसके बाद चीफ़ जस्टिस आफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड के घर गणेश पूजा करने चले गए। इनके ही कार्यकाल में सीजेआई गवई से पहले वाले सीजेआई संजीव खन्ना पर इनकी ही पार्टी के सांसद निशिकांत दुबे और तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अमर्यादित शब्दों का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट की भूमिका को कटघरे में खड़ा करते हुए देश में अराजकता और धार्मिक दंगा करवाने वाले अनर्गल आरोप लगाये। इसी कालखंड में सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार चार सीनियर मोस्ट जजों ने सार्वजनिक तौर पर प्रेस कांफ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट के भीतर की नंगी हकीकत को रोस्टर सिस्टम के जरिए उजागर किया। इसी दौर में जजों को भर्ती करने वाले सुप्रीम कोर्ट के कालेजियम सिस्टम की जगह नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन बनाया गया और पीएम मोदी के कालखंड में सुप्रीम कोर्ट के भीतर चल रही सुनवाई के दौरान ही एक वकील ने चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई के ऊपर जूता उछाला।

बेहद निंदनीय': प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीफ जस्टिस बीआर गवई पर हमले की  निंदा की

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सीजेआई गवई को टेलिफ़ोन करने से कई सवाल खड़े हो गए हैं। क्या पीएम मोदी ने सीजेआई गवई से सिर्फ इसलिए टेलिफ़ोन पर बात की कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर उन पर जूता उछाला गया या फिर बात इसलिए की कि सुप्रीम कोर्ट इस समय देश के भीतर बड़े बन चुके उस मुद्दे की सुनवाई कर रही है, अगर उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के खिलाफ फैसला दे दिया तो एक झटके में भारत की समूची संसदीय राजनीतिक व्यवस्था जिसे चुनाव के जरिए चुनाव आयोग चला रहा है ना सिर्फ मटियामेट हो जायेगी बल्कि 2024 के आम चुनाव को लेकर विपक्ष जो सवाल उठा रहा है उस पर भी सही का निशान लग जायेगा। जिसका सीधा इफेक्ट प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन पर पड़ेगा ? यह भी सवाल खड़ा हो जायेगा कि क्या वाकई सरकार ने चुनाव आयोग को मैनेज कर लिया है ? चुनाव आयोग ने वोटर को मैनेज कर लिया है ? वोटर लिस्ट जिस तरीके से बनाई जा रही है वहां पर जनता कोई भी फैसला दे लेकिन हर फैसला सत्ताधारी बीजेपी, पीएम मोदी के हक में होगा ? सुप्रीम कोर्ट के भीतर जिस तरह से भरी अदालत में सीजेआई गवई पर जूता उछाला गया उसने भी इस सवाल को फिर खड़ा कर दिया है कि "क्या भारत में वाकई कानून का राज है ? क्योंकि चंद दिनों पहले किसी और शख्स ने नहीं बल्कि खुद सीजेआई गवई ने मलेशिया में इस सवाल पर कहा था कि रूल आफ लाॅ कोई बंच आफ नियम नहीं है। रूल आफ लाॅ का मतलब है कानून के हिसाब से चलना। यानी बुलडोज़र कानून नहीं है। लेकिन जिस वक्त सीजेआई गवई मलेशिया में रूल आफ लाॅ का जिक्र कर रहे थे उसी समय यूपी के हिस्सों में सीएम योगी का बुलडोज़र कानून अल्पसंख्यकों की छाती रौंद रहा था।

सुरक्षा जांच में सबूत का बोझ

रूल आफ लाॅ के जरिए ही चैक एंड बैलेंस की परिस्थिति होती है ताकि कोई ताकतवर तानाशाह के रूप में उभर कर सामने ना आ जाए और यही चैक एंड बैलेंस इस दौर में गायब हो गया है । जूता कांड को अंजाम देने वाले 71 वर्षीय एडवोकेट राकेश किशोर का कहना है कि यह क्रिया की प्रतिक्रिया है। मैंने कोई गुनाह नहीं किया है इसलिए मुझे कोई पछतावा भी नहीं है। उसका पूरा आंकलन धर्म के लिहाज से था। एडवोकेट राकेश किशोर - - मैं भी कम पढ़ा लिखा नहीं हूं। मैंने भी बी एससी, पीएचडी, एल एलबी किया है। मैं भी गोल्डमेडलिस्ट हूं। ऐसा नहीं है कि मैं नशे में था या मैंने कोई गोलियां खा रखी थी। उन्होने एक्शन किया मेरा रिएक्शन था। वैसे क्रिया-प्रतिक्रिया वाली बात पहली बार नहीं कही जा रही है इसके पहले भी 2002 में आरएसएस के सर संघचालक सुदर्शन गुजरात के भीतर घटी अति निंदनीय घटनाओं के संदर्भ में क्रिया-प्रतिक्रिया का जिक्र कर चुके हैं।

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नोटबंदी का मामला सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर गया। नोटबंदी जिस बात को कह कर की गई थी (ब्लैकमनी वापस आयेगी) वह तो हुआ नहीं फिर भी सुप्रीम कोर्ट नोटबंदी के पक्ष में खुलकर खड़ा हो गया। व्यापारियों और बनियों के साथ कदमताल करने वाली बीजेपी ने जीएसटी लागू करके उसी तबके को हिलाकर रख दिया। सुप्रीम कोर्ट के भीतर सवाल जबाव होते रहे नतीजा सिफर रहा आखिरकार सरकार ने 8 साल बाद खुद मान लिया कि स्लैब 5-6 नहीं 2 होने चाहिए। मगर इससे बड़ा बेशर्मी भरा लतीफा दूसरा नहीं होगा कि मोदी सरकार ने अपने ही फैसले के खिलाफ जाकर दूसरा फैसला ले आई वह भी आठ साल बाद इसके बाद भी उत्सव मनाते हुए कह रही है कि हमने मंहगाई दूर कर दी, मुश्किल हालात कम कर दिए। पैगासस के जरिए हो रही जासूसी का मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जानकारी मांगी। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा - राष्ट्रहित की आड़ लेकर जानकारी देने से मना कर दिया। सुप्रीम कोर्ट को सांप सूंघ गया। इलेक्ट्रोरल बांड्स का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। लम्बी ना नुकुर के बाद सरकार ने जानकारी मुहैया कराई। अदालत ने इलेक्ट्रोरल बांड्स को गैरकानूनी ठहराया यानी बसूली गई सारी रकम एक झटके में ब्लैकमनी में तब्दील हो गई। सुप्रीम कोर्ट ने ब्लैकमनी जप्त करने के बजाय उसे पार्टियों के पास ही रहने दिया। राफेल की डील गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट थी। अचानक अनिल अंबानी की एंट्री हुई और कीमत आसमान पर पहुंच गई। मामला न्याय हित में न्यायपालिका गया। अदालत ने सरकार से जानकारी चाही। सरकार ने एकबार फिर राष्ट्रीय सुरक्षा - राष्ट्रहित की आड़ लेकर जानकारी देने से मना कर दिया। अदालत ने भी खामोशी बरत ली। महाराष्ट्र में उध्व ठाकरे की सरकार गिरा दी गई। शिवसेना का जरासंधी वध कर दिया गया। राज्यपाल की भूमिका संदिग्ध थी। मामला सुप्रीम कोर्ट गया। अदालत ने फैसला दिया कि सब कुछ गैरकानूनी हुआ है फिर भी गैरकानूनी सरकार को बेधड़क चलने दिया गया। कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों से भृष्टाचार को मान्यता दी, नैतिकता को मरने दिया, विचारधारा को समाप्त होने दिया, संवैधानिक मूल्यों की अर्थी निकलने दी। चैक एंड बैलेंस को गधे के सींग माफिक गायब होने दिया गया। सत्ता को अपने अनुकूल वातावरण बनाने दिया गया। ये प्रक्रिया ऊपर से नीचे तक फैलती चली गई, तभी तो बिना हिचकी लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीफ जस्टिस आफ इंडिया को राज्यसभा की मेम्बरी देते हैं, पूजा करने घर पहुंच जाते हैं, टेलिफ़ोन पर बात करने लगते हैं और अपने ही सांसद के जरिए यह कहलवाने से भी नहीं कतराते कि दरअसल हर मुसीबत की जड़ सुप्रीम कोर्ट है।

Supreme Court of India | India

100 साल से बोये गए विष बीज ने पिछले साढ़े ग्यारह साल में ऐसी फसल पैदा कर दी है जो उस मानसिकता की शिकार नहीं बल्कि उसी मानसिकता में जीने लगी है। तभी न पीएम मोदी दबी जबान में बोल रहे हैं। चुनाव आयोग पर लगने वाले आरोपों पर सफाई देने उतर पड़ने वाली पीएम मोदी की पूरी टीम सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई के ऊपर उछाले गये जूते की निंदा करने क्यों नहीं उतरी उल्टा जूताजीवी के साथ खड़ी दिख रही है। इन सब डरावनी परिस्थितियों के बावजूद भी भारत उस संविधान के आसरे चलता है जिसमें समानता का जिक्र है, हर किसी को बराबरी का हक देने-दिलाने का जिक्र है और शायद यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर हो रही ऐसे मुद्दे की सुनवाई जिस पर अगर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़े कर दिए तो मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था में पूरी चुनावी प्रक्रिया की पोल पट्टी खुल जायेगी शायद इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर चीफ जस्टिस आफ इंडिया के साथ खड़े नजर आने लगे हैं, टेलिफ़ोन करने लगे हैं। शायद इसीलिए 2014 के बाद से सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस आफ इंडिया को लेकर सार्वजनिक तौर पर खुलकर बयानबाजी होने लगी है और बयानबाजी होते - होते बात इतना आगे निकलकर आ गई कि वह जूता उछालने में तब्दील हो गई है। तो क्या अब लोकतंत्र के हर पिलर को लगने लगा है कि क्या कल हमारा नम्बर आने वाला है ? मतलब देश दोराहे पर खड़ा है और चाबी विशेष विचारधारा में पक चुकी ट्रोल आर्मी जिसने देश की सबसे बड़ी अदालत का नामकरण किया है सुप्रीम कोठा (सुप्रीम कोर्ट) के पास है।

Acted under Divine Force : Lawyer who attacked (J) shows no remorse, says Ready to face Jail - Rakesh Kishore, who tried to hurt a shoe at CJI Gavai in the Supreme Court, claimed he acted under a divine force and was ready to face Jail, adding that he had no remorse.

अब अगर जूताजीवी वकील की बात पर यकीन किया जाय तो फिलहाल एक व्यक्ति है जिसने खुद को अवतारी घोषित किया है यानी ब्रम्हा, विष्णु, महेश और तमाम देवी-देवताओं का मिलाजुला स्वरूप तो क्या उसी ने वकील राकेश किशोर को सीजेआई बीआर गवई पर जूता फेंकने को कहा है? उसी ने अवतारी ने तमाम कथावाचकों को सनातन के नाम पर चीफ जस्टिस आफ इंडिया को अपमानित करने, चीर फाड़ करने की धमकियां दिये जाने की सुपारी दी हुई है? संदेश की सुईयां इसलिए उस ओर घूम रही हैं क्योंकि अभी तक सनातन के तथाकथित ठेकेदार कहे जाने वालों के खिलाफ सत्ता के द्वारा एफआईआर तक दर्ज नहीं कराई गई है बल्कि उनके साथ मंच साझा करते हुए जरूर दिखाई दे रहे हैं।

सुप्रीम कोर्ट में हंगामा: एडवोकेट ने CJI बीआर गवई की तरफ जूता फेंकने की  कोशिश की - lawyer rakesh kishor tried to throw shoe at cji br gavai in supreme  court -


सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस आफ इंडिया बीआर गवई की कोर्ट नम्बर एक के भीतर वो हुआ जो भारत के इतिहास में पिछले साढ़े ग्यारह साल में देखना बचा था। वैसे देखा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन जजों ने भी दूसरे संवैधानिक संस्थानों और उसके मुखियाओं की माफिक सत्ता के सामने घुटने टेक दिए हैं फिर भी कोई न कोई ऐसा जज सामने आ ही जाता है जो देशवासियों की नजरों में न्याय के शासन के टूटते बजूद के बावजूद किसी कोने में न्याय पर आस्था को जिंदा रखता है। ऐसे ही जजेज के रूप में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और वर्तमान सीजेआई जस्टिस बीआर गवई को कुछ हद तक रखा जा सकता है। 6 अक्टूबर 2025 दिन सोमवार सुप्रीम कोर्ट ही नहीं बल्कि भारत के माथे पर कभी न मिट सकने वाले काले धब्बे की मानिंद चिपकर रह गया है। वैसे जो भी घटनाक्रम घटित हुआ उसके लिए वर्तमान सत्ता तो जिम्मेदार है ही लेकिन खुद सुप्रीम कोर्ट और जस्टिस भी बराबर से जिम्मेदार हैं। सोमवार की घटना से यह भी साफ हो गया है कि जिस तरह का वातावरण मौजूदा सत्ता ने पिछले साढ़े ग्यारह साल में देश के भीतर बना दिया है उसमें देश को रंजन गोगोई, डीवाई चंद्रचूड जैसे जजेज की ही जरूरत है जो संविधान का राग तो पूरे लय के साथ अलापें लेकिन फैसले सत्तानुकूल दें ना कि तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना और देश के दूसरे दलित, प्रथम बौध्दिस्ट सीजेआई जस्टिस बीआर गवई की तरह। नहीं तो वर्तमान सत्ता के सांसद निशिकांत दुबे, तत्कालीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे लोगों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के मान सम्मान को पैरों तले रौंदने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी जायेगी और वह भी तब जब खुद ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा अपने मान सम्मान पर की जा रही क्रिया पर प्रतिक्रिया देने से आंखे चुराई जा रही हो। सही मायने में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट की कोर्ट नम्बर एक में जो हमला हुआ वो हमला सीजेआई जस्टिस बीआर गवई पर नहीं बल्कि भारत के संविधान पर खीझ भरा हमला है और इसके लिए कहीं न कहीं भारत की आवाम भी जिम्मेदार है अगर उसने वर्तमान सत्ता को 400 पार सीटें दे दी होती तो सांप भी मर जाता और लाठी भी नहीं टूटती यानी जब वर्तमान संविधान ही नहीं होता तो संविधान पर हमला भी नहीं होता।

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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्यूट पर ही रिट्रीट कर आलोचनाओं की झड़ी सी लग गई है यानी कहा जा सकता है कि सीजेआई जस्टिस बीआर गवई को लेकर किये गये ट्यूट से प्रधानमंत्री अपने ही पितृ संगठन द्वारा पैदा की गई और खुद के द्वारा खाद-पानी देकर जवान की गई फौज के निशाने पर आ गये हैं। घटना घटित होने के तकरीबन 6 घंटे से भी ज्यादा समय गुजर जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ट्यूट किया - Spoke to Chief Justice of India Justice BR Gavai ji. The attack on him earlier today in the Supreme Court premises has angered every Indian. There is no place for such reprehensible acts in our society. It is utterly condemnable. I appreciated the claim displayed by Justice Gavai in the face of such a situation. It highlights his commitment to volues of justice and strengthening the sprit of our constitution. जिस पर देश भर में साढ़े ग्यारह साल से लहलहा रही नफरती फसलें प्रधानमंत्री के ट्यूट पर रिट्यूट करते हुए लिख रही हैं Don't just tweet - take action against those celebrating the incident many of those celebrating are people you follow on Twitter. Tatuvam asi - You should have condemned when Gavai insulated our Sanatana Dharma modiji. 

हर भारतीय गुस्से में… सुप्रीम कोर्ट में CJI गवई पर जूता फेंकने की घटना पर  PM मोदी की तीखी प्रतिक्रिया | Today News


Kanimoshi - With all due respect Prime Minister, please don't diminish your office by tweeting like a by stander. I apologize for my bluntness, but silence when the chief justice brazenly demanded Hindu gods was deafening. And now when Hindus veact with justified outrage, you appear suddenly alarmed ? It any one deserves reprimand, it is the CJI - who, through his vile and disgraceful remarks. Insulted a billion Hindus. Don't misplace your moral compass. ब्लागर ध्रुव राठी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ट्यूट पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए लिखा है कि Tweeting will not do anything. If you are truly against this, slap NSA and UAPA against the Anti-nationals who are supporting this attack online and encouraging mob violence.

आज के समय में भी हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में ऐसे न्यायाधीशों की बहुतायत हो चली है जो एक विशेष विचारधारा से पोषित पल्लवित हैं और यह उनके द्वारा दिये जा रहे फैसलों से साफ साफ परिलक्षित होता है। तत्कालीन सीजेआई जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस बेला त्रिवेदी तो इसके जीते जागते नमूने हैं। जस्टिस दीपांकर दत्ता ने भी राहुल गांधी पर कमेंट करके सुर्खियां बटोरी है। होने वाले चीफ जस्टिस आफ इंडिया को भी उसी कतार में इसलिए खड़ा किया जाने लगा है कि हाल ही में उनकी कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हुई हैं जो सत्ता पक्ष के साथ उनकी अंतरंगता को बखूबी प्रदर्शित करती हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज ने सत्तापक्ष से जुड़े एक संगठन के कार्यक्रम में तो खुलेआम जो कुछ कहा निश्चित तौर पर उसे समाज विघटन के रूप में देखा गया और सुप्रीम कोर्ट की चुप्पी इसे मौन समर्थन देती है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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