
मेरे बहुतेरे भूमिहार मित्र के द्वारा लिखे गए उनके कमेंट्स पढ़कर उनके मन में उठ रहे कौतूहल के मद्देनजर आज मैं पूर्ववर्ती भूमिहार विचारधाराधारा और उसके तहत की जाने वाली राजनीति पर गहन चर्चा हेतु उपस्थित हुआ हूँ और मुझे पता है कि ये चर्चा थोड़ी लंबी होगी । सर्वप्रथम चर्चा की शुरुआत मैं आपराधिक छवि वाले भूमिहारों के विरोध के कारण पर चर्चा करना चाहूंगा और ऐसे लोगों से भूमिहार समाज को कैसे प्रत्यक्ष और परोक्ष नुकसान हो रहा है, इसपर भी प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा। बात सन 2001 की है, मेरे पंचायत में मुखिया का चुनाव होना था , बहुत सारे लोगों ने मेरे पिता को मुखिया चुनाव लड़ने के लिए अनुरोध किया लेकिन मेरे पिता ने मेरे अपने चाचा लोगों के आंतरिक विरोध और जलन की भावना को समझते हुए खुद चुनाव लड़ने की बजाए दुराचारी भूमिहारों द्वारा प्रस्तावित एक अनपढ़ और चरित्रहीन भूमिहार को ही चुनाव लड़ने हेतु अपना समर्थन दे दिया और नतीजा यह हुआ कि वह चुनाव तो जीत गया लेकिन सत्ता पाकर उसके अहंकार में आकर उसने पढ़े लिखे और संभ्रांत भूमिहारों पर ही दमन करना शुरू कर दिया। कई नौकरी पेशेवर भूमिहारों की नौकरी खत्म करवाने के उद्देश्य से उस दुराचारी भूमिहार मुखिया ने अनुसूचित जाति कानून के तहत झूठे मुकदमे पैसे देकर करवा दिए और कई अन्य तरह के आपराधिक मुकदमे उसने अन्य भूमिहारों को तंग करने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर किया जिसकी वजह से बहुत सारे भूमिहार आर्थिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए । मैं इन सारे घटनाक्रम को एक एक करके देख और परख रहा था और फिर मैंने फैसला कर लिया कि उस दुराचारी भूमिहार की सत्ता का अंत करके रहूंगा । मैने अगले ही चुनाव में एक अन्य भूमिहार के समर्थन में खुलकर उतर गया लेकिन दुर्भाग्य से वह उम्मीदवार 65 वोट के अंतर से हार गया ।
बाद में आगे के चुनाव में जब उस दुराचारी भूमिहार के राजनीति का मैंने अंत किया तो मुझपर अकेले में जानलेवा हमला उसने करवा दिया। खैर मेरे सगे संबंधी अच्छे अच्छे पद पर विराजमान हैं जिसके कारण अंततोगत्वा सामाजिक वर्चस्व और सहानुभूति मेरे पक्ष में रही । अब यहाँ सबसे गंभीर प्रश्न ये उठ खड़ा हुआ कि जब मेरे पिता जी को संभ्रांत भूमिहारों ने मुखिया चुनाव लड़ने हेतु अनुरोध किया था, तो उन्हें लड़ना चाहिए था । बजाए इसके उन्होंने चंद दुष्टात्मा भूमिहारों के दुष्टता से कुपित होकर खुद चुनाव नहीं लड़ने का जो फैसला किया उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि उस दुराचारी भूमिहार ने सत्ता पाकर तमाम झूठे मुकदमे करवाकर एक से एक पढ़े लिखे भूमिहारों का आज से 20 वर्ष पहले करोड़ों रुपए का आर्थिक नुकसान उन झूठे मुकदमों को झेलने में करवा दिया । इन घटनाओं ने मुझ जैसे लोगों को काफी अंदर से झकझोर दिया और फिर मैंने प्रण कर लिया कि ऐसे दुराचारी लोगों का अंत करके ही दम लूंगा और मेरा यह प्रयास अनवरत जारी है और आजीवन जारी रहेगा । यहां एक बड़ा ही माकूल बात मैं बताना चाहता हूँ कि जैसे ही मुझपर हुए हमले की खबर मेरे खेत को जोतकर अपनी आजीविका चलाने वाले मल्लाह जाति के दो अलग अलग लोग और दुसाध जाति के दो अन्य लोगों को मिली , तुरंत वो लोग मेरे लिए अपना जान देने की बात कह मेरे दरवाजे हाजिर हो गए और मुझसे आज्ञा मांगने लगे लेकिन मैंने उनको शांत किया । यहाँ एक बात और देखने को मिली कि दो कुर्मी जाति के भी बटाईदार मेरे थे जो मेरा खेत जोतते थे , वो लोग मजे लूटने लगे क्योंकि उनको इस बात का अब घमंड हो चुका है कि उनकी बिरादरी का अब बिहार का राजा है , इसलिए वो ज्यादा चालाक समझने लगा है। एक और दीगर बात यह थी कि एक भूमिहार जिसे कि मैंने अपनी जमीन जोतने के लिए लगभग मुफ्त में दे रखा था पिछले 20 वर्षों से वह भी मेरे साथ गद्दारी कर रहा था, चंद दुष्ट भूमिहारों के बहकावे में आकर। मुझे एक बात समझ में आई कि इस सारे घटनाक्रम में दुष्ट विचार के लोग एक साथ खड़े नजर आए तो वहीं अच्छे विचार के सभी जाति के लोग मेरे साथ खड़े नजर आए ।

बस यही मैं देखना और समझना चाह रहा था जो मुझे समझ में आ गया। अब आप ही बताइए कि आज के जमाने में कोई मल्लाह या दुसाध मुझे मालिक कहकर संबोधित करता है और मेरे लिए अपना जान न्यौछावर करने की भी पेशकश करता है तो भला मैं कैसे उसे नजर अंदाज कर सकता हूँ । यही कारण है कि आज भी मैं अपनी जमीन उन्हीं लोगों को देकर खुद की आजीविका के लिए नौकरी के साथ संघर्ष कर रहा हूं और मुझे इस बात की संतुष्टि है कि पूर्वजों द्वारा दी गई मुझे संपत्ति से 6 परिवारों का भरण पोषण मजे से हो रहा है।
यहाँ एक बात और बताना चाह रहा हूँ कि मैं अपने लीची के बगीचे को पिछले 15 वर्षों से एक गरीब भूमिहार को बहुत ही सस्ते दर पर लगातार देता आ रहा हूँ जिससे कमाई करके उसने पक्का का मकान भी बना लिया है। मुझे खुशी मिलती है कि कोई अपने पुरुषार्थ से मेरे सहयोग से कुछ अच्छा करता है तो । इस सोच का एक दूसरा पहलू यह भी है कि मैं अपनी इन्हीं सोच के कारण हमेशा आर्थिक रूप से खुद को उतना सशक्त नहीं कर पाता हूँ जितना कि मुझे होना चाहिए क्योंकि मुझे ज्यादा आक्रामकता पसंद नहीं और मैं सबका साथ सबका विकास की विचारधारा का पोषक रहा हूँ ।
यह सारे गुण मैंने अपने पिता से सीखे हैं । मेरे पिता जी जिस समय भारतीय रेल में स्टेशन प्रबंधक थे, उस समय हमलोग के सरकारी आवास पर महीने में 50 से 100 अलग अलग जगह के भूमिहार समाज के लोगों का आना जाना और उनसे मिलना जुलना और खाना पीना लगा ही रहता था। मैंने देखा कि पिताजी धन कमाने की बजाए लोगों से आशीर्वाद और उनसे प्रेम रखने के ज्यादा हिमायती थे और यही वजह थी कि बाबू जी को सभी लोग बहुत प्रेम करते थे । मैं भी पूरा प्रयास करता हूँ कि भले मुझे आर्थिक तकलीफ झेलनी पड़े लेकिन कोई मेरे संसाधनों से लाभान्वित हो रहा है , तो उसको होना ही चाहिए । अभी हाल में ही मैंने दूसरों की भलाई के लिए पैसों का प्रबंध उधार लेकर किया क्योंकि हाल में ही मेरे नियोक्ता ने मेरे वेतन के तहत मिलने वाले Fooding Allowance के तहत मुझे दी जाने वाली राशि में से 8000 रुपए मासिक की कटौती कर दी जिससे मैं आर्थिक रूप से बैक फूट पर आ गया हूँ लेकिन बावजूद इस अतिरिक्त कष्ट के मेरे अंदर का वो दानवीर वाला भाव प्रभावित नहीं हुआ है क्योंकि मुझे ईश्वर पर भरोसा है कि जिस ईश्वर ने मुझे जिंदगी दी है , वही मेरे लिए आहार की भी व्यवस्था करेंगे ।
अब आइए जरा बिहार सरकार की हालिया राजनीति और इस सरकार द्वारा लिए गए निर्णयों का भी तीक्ष्ण अवलोकन करते हैं और इसपर चर्चा करते हैं । वैसे तो 2005 से बिहार में भाजपा की सरकार है और तमाम लोगों ने ये भ्रम फैलाकर रखा हुआ है कि भाजपा यानि भूमिहारों की सत्ता और इनकी ही सरकार , जबकि असलियत यह है कि ये कुर्मी का राज चल रहा है, न कि भूमिहारों का और विगत 20 वर्षों से चल रहे इस कुर्मी राज में भूमिहार केवल इस्तेमाल हुआ है और बदनाम भी । भूमिहारों को विगत 20 वर्षों में सिर्फ कुर्बानी ही देनी पड़ी है और इनको प्राप्ति के नाम पर कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ है । हां चंद भूमिहार दलाल लोग जरूर अति धनाढ्य हुए हैं लेकिन वो केवल वैसे लोग हुए हैं जिन्होंने अपने ही भूमिहार समाज की बलि लेने में कोई कसर नहीं बाकी रखी है।
सरकारी नौकरियों को यदि देखा जाए तो पिछले 20 वर्षों में सर्वाधिक लाभ कुर्मी जाति के लोगों ने उठाया है जबकि बिहार में कुर्मी जाति की संख्या भूमिहार जाति का एक तिहाई है।
फिर भी आज कुर्मी इतनी चालाक और महत्वाकांक्षी जाति बन चुकी है कि ये भूमिहारों को इस्तेमाल कर अपना निजी लाभ लेती जा रही है । वैसे कुर्मी जाति के बारे में एक आम अवधारणा प्रचलित है कि ये लोग दरभंगा महाराज को भी बेचकर खा गया यानि उन्हें भी ठग लिया । कहने का तात्पर्य यह है कि सुनियोजित षड्यंत्र के तहत हम भूमिहारों को सरकारी नौकरियों से दूर कर दिया गया ताकि हम संघर्ष करने को मजबूर हों ।
भूमिहार चूंकि मूलरूप से कृषक जाति है, इसलिए खेती किसानी पर आज भी भूमिहारों की अधिकांश निर्भरता रहती है । बिहार में बाढ़ और सुखाड़ हर वर्ष लगा ही रहता है और इससे सुरक्षा देने के लिए ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना जैसी योजना शुरू की गई थी जो कि एक अच्छा सुरक्षा आवरण था किसानों के लिए । 2017 के खरीफ फसल तक , जबतक PMFBY योजना बिहार में लागू थी , किसान इस बात के लिए निश्चिंत रहते थे कि देर सबेर उनको हुई आर्थिक क्षति का मुआवजा उनको PMFBY के बीमा सुरक्षा योजना के तहत मिल ही जाएगा लेकिन नीतीश सरकार में बैठे शीर्ष अधिकारियों को जैसे ही इस बात की भनक लगी कि इस योजना से भूमिहार लाभान्वित हो रहा है, नीतीश सरकार ने इस योजना को फौरन यह कहकर बंद कर दिया कि बिहार सरकार को इस बीमा योजना के तहत बतौर प्रीमियम राशि सालाना 500 खर्च करनी पड़ रही है , जिसके लिए सरकार के पास पैसे नहीं हैं । आज यही नीतीश सरकार मुफ्त की पेंशन योजना और लूट खसोट वाली राशन कार्ड योजना पर बड़ी राशि बहा रही है और अभी पिछड़ी जाति की महिलाओं के खाते में 10000 की मुफ्त रेवड़ी बांटी गई है , लेकिन किसानों को उचित सुरखा आवरण देने के लिए इस सरकार के पास पैसे नहीं हैं। अब आप ही बताइए कि ये कौन सी विचारधारा की राजनीति बिहार में चल रही है जिसमें भूमिहार को बतौर मुखौटा तो आगे रखा जाता है लेकिन भूमिहारों का ही जड़ काटा जा रहा है जबकि हमलोग सभी जातियों के पोषक रहे हैं । इसलिए मैं आज के इस छद्म भूमिहार राजनीति का घोर विरोधी हूँ और पूर्वर्ती भूमिहार विचारधारा वाली राजनीति को फिर से बिहार में देखना चाहता हूँ , जहां सबका साथ और सबका विकास एक सच्चाई भरे एहसास के साथ अमल में लाया जा सके ।
इसलिए इस चर्चा को विराम देने से पहले मैं फिर अपने शुभेक्षु भूमिहार मित्रों से एक ही वही प्रश्न कर रहा हूँ जो कि इस चर्चा का शीर्षक भी है कि क्या "
बिल्कुल समाप्त हो चुकी भूमिहार विचारधारा की राजनीति की फिर से पुनर्वापसी होगी और भूमिहारों के दिन बहुरेंगे ?
अपलोगों की प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा ।
-------------------------------------------------
ब्रह्मर्षि विचारक " राजीव कुमार " की कलम से