बैठकी ~~~~~~ अंतरराष्ट्रीय वैद्यता महत्वपूर्ण या आंतरिक

बाकी इ डेलिगेशन तैंतीसे देशवन में काहे!!--मुखियाजी फिर पुछे।

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
May 28, 2025


सरजी, आप्रेशन सिंदूर और पाकिस्तान को दुनिया के सामने बेपर्दा करने के उद्देश्य से देश के 59 सांसदों को परसो से 33 देशों में भेजा जा रहा है। 59 सांसद 7 सर्वदलीय टीमों में बंटें हैं। इन सांसदों का अभियान,पाकिस्तान को बेपर्दा करने और उसके आतंकवादी प्रवृत्ति को दुनिया के सामने उजागर करने का मोदी प्लान है जिसका हर हिंदुस्तानी समर्थन करता है ऐसा नहीं है।इसको लेकर भी विपक्षियों के पेट में मरोड़ उठ रही है।--मास्टर साहब बैठकी जमते हीं मुद्दा रख दिये।

ठीक बोले मास्टर साहब, सांसदों के डेलिगेशन भेजने पर सवाल खड़े किये जा रहें हैं। पाकिस्तान के मिडिया में हेड लाइन बनने का स्टंट खेला जा रहा है। अब कांग्रेस के प्रवक्ता जयराम रमेश को हीं लिजिये, कहते हैं कि " ये विदेशों में डेलिगेशन भेजना,सरकार का अपनी नाकामियों से ध्यान भटकाने का एक स्टंट है जिसमें मोदीजी, मास्टर माइंड हैं।जो असली मुद्दे हैं उसपर मोदी सरकार,संसद में,सर्वदलीय बैठक में चर्चा नहीं करायेंगी।
अब प्रश्न उठता है कि भारत के इस सर्वदलीय डेलिगेशन पर सवाल उठाकर विपक्ष, पाकिस्तान का हित साधने में क्यों तत्पर है!!--डा.पिंटु ने सही कहा।

डा. साहब, कांग्रेस से कोई पुछे कि क्यों तुम्हारे नेता राहुल गांधी तो जब भी विदेश का दौरा करते हैं तो मोदी विरोध करते करते भारत का हीं विरोध शुरू कर देते हैं, देश विरोधी वक्तव्य देने लगते हैं!! 26/11 के मुंबई आतंकी हमले के पश्चात कांग्रेस ने तो मोदी सरकार की तरह "आप्रेशन सिंदूर" जैसी तो नहीं, हां "आप्रेशन मजबूर" जरुर लॉन्च किया था।पाकिस्तान को सबक सिखाने की हिम्मत तो नहीं कर सकी लेकिन उसने भी पाकिस्तानी आतंकवाद को लेकर सर्वदलीय डेलिगेशन विदेशों में भेजा था तो वो क्या था। वो तो सच में ध्यान भटकाने वाला साबित हुआ था।--उमाकाका हाथ चमकाये।

काकाजी, शुक्र रहल जे 26/11 के मुंबई आतंकी हमला में आतंकवादी कसाब जिंदा पकड़ा गईल। मुसलमान होके कसाब, हिंदू धर्म के रक्षासूत्र कलाई में बंधले रहे ताकि कसाब के लाश के कलाई में रक्षासूत्र देखके कांग्रेस साबित कर सके जे इ हमला पाकिस्तानी भा मुस्लिम आतंक ना "भगवा आतंकवाद" रहल हा।--मुखियाजी सफेद मूंछों पर हाथ फेरते हुए।

मुखियाजी, अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने लिखा है कि "26/11 मुंबई हमले के बाद मनमोहन सिंह (असल में सुपर पीएम-सोनिया गांधी), पाकिस्तान पर कार्रवाई करने से इसलिये बच रहे थे कि इससे मुस्लिम विरोधी भावनायें बढ़ने से बीजेपी की ताकत बढ़ सकती है।"
मतलब साफ है! कांग्रेस को देश से अधिक सत्ता की मलाई से मतलब रहा है। इसी कांग्रेस के मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है जबकि कांग्रेस, धार्मिक आधार पर मुस्लिमों को पाकिस्तान दे चूकी है। लोग ठीक कहते हैं कि कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ मुस्लिम पार्टी है।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।

अच्छा सरजी, मोदीजी के सर्वदलीय सांसद डेलिगेशन, विदेश भेजला के का औचित्य बा!!--मुखियाजी मेरी ओर देखकर।

मुखियाजी,आज के समय में युद्ध में जीतने के साथ साथ वैश्विक स्तर पर कुटनीतिक स्पष्टता और नैरेटिव का महत्व बहुत बढ़ गया है। मौजूदा दौर में धारणाओं के युद्ध का विषेश महत्त्व है। इस डेलिगेशन के माध्यम से भारत विश्व को स्पष्ट संदेश देगा कि "आप्रेशन सिंदूर" सिर्फ विजय के लिये लड़ा गया युद्ध नहीं था बल्कि दशकों से आतंकवाद से पीड़ित मुल्क का, आतंकवाद की जन्मस्थली,शरणस्थली एवं निर्यातस्थली के गंभीर उकसावे के उत्तर में एक सुनियोजित सैन्य कार्रवाई थी।--मैं चुप हुआ।

लेकिन सरजी, पाकिस्तान से भी बड़ा और खतरनाक पाकिस्तान, भारत में है। अन्य तो हैं हीं लेकिन इसी कैटेगरी में कांग्रेस और विपक्षी भी हैं जिनके स्टेटमेंट, पाकिस्तान के हित में होते हैं। भारत सर्वदलीय सांसदों का डेलिगेशन, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की करतुतों को विश्व के समक्ष उजागर करने के लिए भेज रहा है वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ में पहलगाम आतंकी हमले को लेकर जो निंदा प्रस्ताव पेश किया गया उसमें पाकिस्तान एक क्लाज डलवाने में सफल हो गया कि "आतंकियों ने धर्म पुछकर नहीं मारा....।" इसके लिए पाकिस्तान ने इन विपक्षियों के 12 नेताओं के ट्वीट्स और विडियो को सबुत के तौर पर दिखाया। जिसमें कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बिहार की लालू पार्टी राजद और अन्य विपक्ष के नेताओं के बयान शामिल थे। इसके बाद चीन ने यह क्लाज, संयुक्त राष्ट्र संघ के निंदा प्रस्ताव में से हटवा दिया।
अब सोचिये! भारत का विपक्ष कितना हिंदू विरोधी, राष्ट्रद्रोही और गद्दार है!!--सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।

अच्छा इ बतायीं जे भारत सरकार, सर्वदलीय डेलिगेशन काहे भेजतीया! भाजपा खाली आपन योग्य सांसद के भेजीत!!--मुखियाजी प्रश्न किये।

मुखियाजी, सर्वदलीय डेलिगेशन विदेशी सरकारों और रणनीतिक समूहों के समक्ष यह दिखलाता है कि यह एक गंभीर विचारों के आदान-प्रदान करने का  समग्रतापूर्ण प्रयास है जिसे देश के संपूर्ण राजनीतिक विचारधारा का समर्थन प्राप्त है। ये डेलिगेशन,सत्ताधारी से लेकर विपक्ष तक, राष्ट्रीय दलों से लेकर क्षेत्रीय दलों तक का प्रतिनिधित्व करता है। इससे ये साबित किया जाता है कि इस प्रतिनिधिमंडल को सभी भारतवासियों के प्रतिनिधि के तौर पर देखा जाय, सिर्फ भारतीय सत्ताधारी के रूप में नहीं। इसलिये सर्वदलीय डेलिगेशन, एक अच्छी कूटनीतिक सोंच और वैश्विक और आंतरिक स्तर पर सुंदर शासन कला है।--मैं चुप हुआ।

बाकी इ डेलिगेशन तैंतीसे देशवन में काहे!!--मुखियाजी फिर पुछे।

मुखियाजी, भारत ने उन्हीं देशों को प्राथमिकता दी है जो वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी या अस्थायी सदस्य हैं और ये वैश्विक सुरक्षा और आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर अहम् भूमिका निभाते हैं तथा भारत के रणनीतिक साझेदार हैं या भारत के साथ उनके आर्थिक, रक्षा और सांस्कृतिक संबंध हैं। इन देशों को पाकिस्तान के आतंकवादी समर्थन के विरुद्ध ठोस सबूत और दृष्टिकोण से अवगत कराना है। मोटे तौर पर मुखियाजी, खास देशों में डेलिगेशन भेजने का लक्ष्य,उन देशों का वैश्विक और क्षेत्रीय मंचों पर प्रभावशाली होना है ताकि पाकिस्तान को बेनकाब करने के साथ साथ अपनी कूटनीतिक स्थिति को मजबूत किया जाय।--कुंवरजी अखबार रखते हुए।

कुछ भी हो,भले हीं हम पाकिस्तान जैसे दुश्मन को सैन्य बल में या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चीत कर दें लेकिन आजादी के बाद से हीं देश के भीतर बना घाव आज नासूर बन चूका है। जिसके पोषक और संरक्षक भी खुलेआम कुलांचे भर रहे हैं। ऐसे राष्ट्र और सनातन विरोधियों से निपटना जटिलतम होता जा रहा है। भारत के भीतर हीं कितने पाकिस्तान और पाकिस्तानी भरे पड़े हैं और हमारे हीं पैसों पर मजे की रोटी तोड़ते हुए, हमें हीं नष्ट करने में दिन-रात लगे हैं। इनसे कैसे निपटा जाय!! मोदी को ये भी सोचना होगा और वो भी उस स्थिति में जब खुद अपने हीं, षड्यंत्रकारियों से गलबहियां खेल रहें हों। ये आज सबसे बड़ा मुद्दा है। खैर, देखिये आगे क्या होता है!अब तो सिर्फ ईश्वर हीं जानता है भारत और सनातनियों का भविष्य क्या होगा !! अच्छा अब चला जाय। कहकर मास्टर साहब उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी......!!!!!


आलेख - लेखक


प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)

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