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बिहार और बिहारी एक वक्त में गाली बन गया था या बना दिया गया था यह आज समझने की जरूरत है। जहां 1990 के बाद जातिवादी व्यवस्थाओं को मजबूती मिली और एक विशेष जाति जो कि सत्तारूढ़ थे उनका आतंक बिहार में बढ़ा। दारू, बालू से लेकर व्यापारियों के साथ दिन दहाड़े लूट पाट करने वाली सरकारों द्वारा अघोषित तौर पर पोषित होने लगे थे। आतंक का ऐसा प्रभाव था कि आज भी कुछ जातियां और समूह 1990 वाली राजनीति दल जो सत्ताधारी थी उससे आज भी बचना चाहती हैं।
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वहीं 2005 के साथ ही नये राजनीतिक दलों का गठजोड़ हुआ और उसकी सत्ता आज बिहार से लेकर भारत स्तर पर खड़ी हो गई है। 1990 के सरकार को राजनीतिक रूप से दर्जनों संगठनों ने अत्याचार के बुनियाद पर सरकार से ना टकराकर बिहार को ही बदनाम कर दिया। बिहार की ऐतिहासिक, समाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण को बदलकर रख दिया गया। जिस बिहार ने पुरे विश्व को संदेश देने का काम किया उसे विपक्ष में रहकर वर्तमान सत्ताधारी गठजोड़ कर बदनाम कर दिया। सत्ता लोलुपता के चलते ही आम लोगों पर हो रहे अत्याचार को मुद्दा नहीं बनाया गया बल्कि राजनीतिक सत्ता को हासिल करने के लिए बिहार को बिहारी कहकर अभद्र व्यवहार और टिप्पणी झेलनी पड़ी।
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सत्ता में आने के बाद वर्तमान सत्ताधारी गठजोड़ ने जहां 1990 के समयों के जातिगत प्रभाव को कम किया तो वहीं जातिवादी व्यवस्थाओं को और मजबूत किया। शोषण करने के विभिन्न तरीकों से बिहार के समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग को प्रताड़ित करने में भागीदारी सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज वर्तमान सत्ताधारी भी गठजोड़ों के बल पर खड़ा हैं और युवा जोश को अपराध की ओर धकेलने में लगी है।
लेकिन अब समय बदल रहा है और बिहार में एक नई उम्मीद आई है। वह उम्मीद है प्रशांत किशोर और प्रशांत किशोर पहले व्यक्ति हैं जिन्होंने पुरे विश्व स्तर की राजनीति में अपना दबदबा कायम किया। भारत की राजनीति को समझने में समय लगाया और राज्यों की क्षेत्रीय राजनीति को भी गंभीरता से समझा और तब जाकर एक बड़ा संदेश लेकर बिहार के गांव - गांव पहुंचे और हर उस नागरिकों को जागरूक किया जो घर के अंदर चुपचाप बैठे राजनीतिक दलों के खेल को समझ रहा था मगर अपराधिकरण हो चुकी सत्ता और राजनीति पर चुप्पी साधे हुए था।

प्रशांत किशोर ने जन सुराज पार्टी की स्थापना की और दो दिन पहले ही चुनाव चिह्न के रूप में स्कूल बैंग मिला। स्कूल बैंग चुनाव चिह्न के रूप में मिलने पर प्रशांत किशोर की खुशी और उनके संदेश कि हमें मिला नहीं है बल्कि हमने लड़कर स्कूल बैंग लिया है। शिक्षा एक समाज को मजबूती प्रदान करने का सबसे बड़ा आधार होता है और प्रशांत किशोर ने एक नींव जरूर रख दी है।
बहुत गंभीरता से यह समझने की जरूरत है कि हर कोई सभी जगह एक व्यक्ति का नाम लेते हैं और प्रशांत किशोर की जन सुराज में भी सिर्फ प्रशांत किशोर ही चेहरे के रूप में दिख रहे हैं तो यह बहुत अच्छा है। एक नेतृत्व से ही मजबूती मिलेगी और प्रशांत किशोर का सामुहिक प्रयास और संवाद एक ठोस कदम और निर्णय के लिए बहुत आवश्यक है। प्रशांत किशोर की रणनीति से बिहार की तकदीर और तस्वीर दोनों बदलने वाली हैं।
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नये राजनीतिक दलों को मौका देना समाजिक दायित्वों में आता है और समाज को खुले तौर पर प्रशांत किशोर को चुनना चाहिए और मौका देना चाहिए। शिक्षा, रोज़गार के साथ सुरक्षित समाज निर्माण की जिम्मेवारी लेकर कोई पहली बार बिहार में कार्यक्रम कर जागरूक कर रहा है।