राहुल गांधी को निष्पक्ष राजनीति की ओर स्वतंत्रता के साथ बढ़ना चाहिए, लालू परिवार आतंक का प्रतीक

तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव के गुनाहों की दर्जनों बार मांफी मांग चुके हैं परंतु संस्कार में परिवर्तन नहीं हुआ

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
July 09, 2025

लोकतंत्र में विश्वास और विरोध बहुत महत्वपूर्ण स्तंभ होता हैं। जहां सरकार को नए कानून लाने और लागू करने से पहले जनमत संग्रह की व्यवस्था करनी चाहिए, तो वहीं विपक्ष में रहने वाले राजनीतिक दलों को भी जनमत संग्रह की लिखित व्यवस्था बनानी चाहिए। लेकिन आज़ाद भारत में जो भारत का संविधान बना वह राजनीतिक दलों और उनके साथ सदन में पहुंचने वालों पर लागू नहीं होता है। जिसका परिणाम यह है कि आज तक विरोध का शिकार सिर्फ और सिर्फ आम लोग होते हैं। हर राजनीतिक दल जैसे भाजपा हो, राजद हो, कांग्रेस हो या देश के हजारों पार्टियां वह सरकार और सत्ता का विरोध कभी नहीं करती हैं। बल्कि दोनों (सत्ताधारी और विपक्ष) मिलकर एक गठजोड़ सत्ता जनता के बीच लेकर जाती है कि एक पक्ष में रहेगा और दुसरा विरोध में, वहीं दोनों सड़कों पर उतर कर आम आदमी को उनके घरों में नज़रबंद कर देती आ रही हैं।

आज सोशल मीडिया के युग में भी सत्ता और विपक्ष के गठजोड़ को जनता भी नहीं समझ पाई है और जिसका परिणाम है कि आपस में जो एकसाथ रहकर बैठते हैं, चाय पीते और कभी पार्टी कर खाना पीना करते हैं वह आज जैसे बंदियों में एक दूसरे के खिलाफ सड़कों पर दिखाई देते हैं। आज पुनः बिहार में भारत सरकार के नेतृत्व में संचालित चुनाव आयोग के एक ग़लत फैसले की सज़ा बिहार के आम लोगों को भूगतना पड़ा। चुनाव आयोग का ग़लत फैसला इस मायने में हैं कि महज़ 13-14 महीने पहले भारत के लोकसभा का चुनाव हुआ और प्रधानमंत्री उसी मतदाताओं के मत से सत्ता भोग रहें हैं। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी को ऐसा रूप दिया गया जिससे आम आदमी भारत सरकार से शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, रोजगार, विदेश नीति, रात के अंधेरे में ऑपरेशन होने वाले तथ्यों पर बात ना करें तो बिहारियों को फोटोकॉपी योजना में फंसा दिया।

जैसा कि विपक्ष में बैठे लाभार्थी और राजनीतिक दलों को बिहार में किसी भी तरह सत्ता में आना है। जिसके लिए एक बड़ा दावा यह किया कि - "बिहार में करोड़ों दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों से उनका 'वोट का अधिकार' छीनने का षडयंत्र रचा जा रहा है। यह सरासर अन्याय है। यह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी के संविधान पर हमला है। यह लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। हम ​यह किसी कीमत पर नहीं होने देंगे।"

जिसको लेकर भारत के संसद में नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी, बिहार में राजद के प्राईवेट लिमिटेड पार्टी के अध्यक्ष पुत्र तेजस्वी यादव, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, CPI और माले ग्रुप से भी बंगाल से लोगों का हुजूम के साथ ही और INDIA गठबंधन के वरिष्ठ नेता व हजारों की संख्या में कार्यकर्ता तथाकथित अन्याय के खिलाफ सड़कों उतरे। जिसमें मुख्य वाहन पर जिसपर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चढ़ कर रैली का हिस्सा बने उसपर दर्जनों लोगों की मौजूदगी रही लेकिन पप्पू यादव जो लगभग 30 वर्षों से भी ज्यादा समय से बिहार से लेकर दिल्ली की राजनीति में सदन का सदस्य रहे और आज भी हैं को नहीं चढ़ने दिया गया और वहीं मौजूद INDIA  गठबंधन के नेताओं में युवा और सबसे विद्वान कन्हैया कुमार को राहुल गांधी अपने साथ नहीं लेकर चल पाए। 

राहुल गांधी ने बिहार की राजनीति को लालू प्रसाद यादव के एक जाति के संख्या और गुंडागर्दी के इतिहास के साथ जाना कांग्रेस की क़ब्र सीधे खोदने वाली दिखाई दी। लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में लोगों को जिन्हें असहाय और कमजोर कहकर आवाज़ देने का काम किया का दावा हकीकत में लोगों को गुंडा और अपराधी बनाने में मदद करते दिखाई देता है। आज के बिहार बंदी में भी पुरे बिहार से जो ख़बरें आ रही है उसमें यह स्पष्ट है कि लालू प्रसाद यादव और उनकी जाति के लगभग 80% लोग सड़कों पर आकर आज भी लूट और डकैती करने का काम किया। आज बिहार बंदी में अपने जाति के लोगों को तेजस्वी यादव ने माता-बहन योजना के तहत माता-बहनों के प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ खिलवाड़ करने को बल दिया।

राहुल गांधी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है और ना ही सामान्य परिवार के सदस्य हैं। इसलिए राहुल गांधी को कांग्रेस को गठबंधन वह भी राजद जैसे गुंडागर्दी करने वाली पार्टी से दूरी बनाकर स्वतंत्र रूप से बिहार के चुनाव में आना चाहिए। बिहार को एक मजबूत और दृढ़ सरकार देने की किसी दल में क्षमता है तो वह कांग्रेस ही है और कमोवेश नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन के अंत के साथ अकेले अगर भाजपा चुनाव में रहे। लेकिन दोनों गठबंधन जातिवादी और जनसंख्या वृद्धि योजना के तहत देश और राज्यों का विकास छोड़कर सत्ताधारी बनने में आम लोगों को लेकर दंगाई बना रहीं। वहीं किसी पर FIR हो जाए तो कोई राजनीतिक दल किसी को पुछने तक नहीं जाती हैं।

आंदोलन के स्वरूप में बदलाव की जरूरत है अगर राजनीतिक दल करते हैं तो :-

आम लोगों के सहुलियत और उनके शुभ चिंतक बनकर आजाद भारत में भाजपा, कांग्रेस, राजद और जो भी राजनीतिक पार्टी हैं उन्होंने दंगा करने और आतंक फैलाने का काम किया। आम आदमी को जागरूक करने में किसी भी राजनीतिक दल ने आज तक भूमिका नहीं निभाई, बल्कि सभी ने जनता के ही संसाधनों को लेकर उन्हें ही लूटेरा और गुंडा बनाकर सत्ताधारी बनते रहे हैं।

अब समय आ गया है कि अगर किसी राजनीतिक दल को किसी भी तरह का विरोध करना है तो वह भारत सरकार और राज्य सरकार के कार्यालयों में ताला बंदी करें। सत्ता लोलुपता में जो भी सत्ताधारी पार्टी हैं उनके सांसद और विधायक को बंदी बनाये और नज़र बंद करें। वहीं बड़ा हौसला और दम रखते हैं तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का घेराव करें। वहीं सत्ताधारी पार्टी और सरकार को दिक्कत है तो सीधे विपक्ष के घरों में घुसकर दंगा फ़साद करें। अब राजनीति दल जनता को बकस दें।

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