सरजी, हमारे संविधान में "धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद" सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं के हिस्से के देश से सनातन और सनातनियों को समाप्त करने के लिये हीं ठूंसा गया, जिसे देश की परिस्थितियां चीख चीखकर कर साबित कर रहीं हैं। देश का एक बड़ा तबका संविधान की जगह शरीयत को महत्व देता है, जिस देश में रहता है,सारी सुविधाओं का लाभ उठाता है,उस देश का जयकारा नहीं लगाता, भारत माता की जय कहने,राष्ट्रीय गीत गाने से परहेज़ करता है। ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है जिसमें धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की रेखा खींची गई है!! धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर एक समुदाय को, बहुसंख्यकों के प्रति, नफरती शिक्षा देने हेतु सरकारी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। उनके धार्मिक पर्यटन जैसे हज आदि करने के लिए सरकारी सहायता दी जाती है वही अन्य को नहीं।--सुरेंद्र भाई बैठते हीं अपनी कहे।

ये तो कुछ भी नहीं भाईजी, भारत में धर्मनिरपेक्षता की खुबसूरती देखिये! एचआर एण्ड सीई अधिनियम 1951(हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951) लागू करके लगभग चार लाख मंदिरों को और उन मंदिरों के पैसों को हिंदुओं से छीन लिया गया। इसके ठीक उलट मुसलमानों के मस्जिदों का और ईसाईयों के चर्चों का प्रबंधन स्वतंत्र रूप से उन्हीं समुदायों के हाथों में होता है। डा.अंबेदकर साहब ने भी ऐसे संशोधन को गैर सेक्युलर कहा था। यह अधिनियम और ऐसे हीं राज्य सरकारों द्वारा पारित कानून, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है।--डा.पिंटु मुंह बनाये।

ए भाई,इ त हिंदुए के देश में हिंदुअने के संग,बड़ा घोर अन्याय आ धोखाबाजी हो रहल बा।--मुखियाजी गंभीर लगे।
मुखियाजी, बाहरी पंथ वाले आक्रांताओं द्वारा सदियों से छल बल से हिंदूओं पर अत्याचार होता आया है और धर्मांतरण कराते रहे हैं। जो हिंदुओं के साथ अत्याचार करते रहे हैं उन्हीं समुदायों को मंदिरों की आय से विषेश सहायता दी जाती है। आंध्र और कर्नाटक में हिन्दू मंदिरों की आय से हज सब्सिडी देने की बात,कई बार साबित हो चूकी है। धर्मनिरपेक्ष संविधान में मुस्लिम पार्टी कांग्रेस ने ऐसे संशोधन किये कि हिंदूओं को मुसलमानों और ईसाईयों की तुलना में कम धार्मिक, शैक्षणिक एवं कानूनी अधिकार हैं।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में...........

आज पुरे देश में हिन्दू युवतियों के विरुद्ध लव-जिहाद का षड्यंत्र चल रहा है फिर उनका धर्मपरिवर्तन कर दिया जाता है ताकि मुसलमानों की संख्या बढ़े और हिंदुओं की घटे। मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों का शिकार कर सके इसके लिए कांग्रेस ने 1954 में "विषेश विवाह अधिनियम लाया। छोड़िये न, हिंदू परिवार को नष्ट करने के लिये 1956 में कांग्रेस ने "हिंदू कोर्ट बिल" ले आयी ताकि हिंदू एक से अधिक विवाह न कर सकें और उनकी जनसंख्या सीमित रहे । लेकिन वहीं पर लाख गंदगी और बुराइयों के बावजूद "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को नहीं छुआ गया। मुसलमानों को तीन-तीन, चार-चार विवाह की छुट रही ताकि जनसंख्या विस्फोट करके भारत का "गजवा-ए-हिंद" किया जा सके। जिसका परिणाम आज हिंदूओं के लिये चिंता का सबब बन गया है। जिस शहर या गांव में इनकी संख्या बीस प्रतिशत हुई नहीं कि हिंदूओं का जीना हराम कर रहें हैं।--उमाकाका हाथ चमकाये।
काकाजी,हम भुले नहीं है 1975 की इमरजेंसी। उस इमरजेंसी काल में कांग्रेस ने जबरन लाखों हिंदुओं नवजवानों की नसबंदी करवा दिया था ताकि भारत की डेमोग्राफी बदल दी जाय।आज उसका परिणाम दिख रहा है। रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या रेशियो साढ़े सात प्रतिशत के करीब घटा है वहीं मुसलमानों का साढ़े तैंतालीस प्रतिशत के करीब बढ़ा है।--सुरेंद्र भाई बोल पड़े।

कांग्रेस मुस्लिम परस्त पार्टी है इसमें अब किसी को शंका नहीं रह गई है। प्रमाणित है कि गांधी पुर्णत: मुस्लिम परस्त थे जबकि नेहरू छद्म हिंदू। इंदिरा गांधी ने भी अफगानिस्तान में बाबर के मकबरे पर जाकर इसे प्रमाणित किया है। देखा नहीं आपलोगों ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय करोड़ों बंग्लादेशी मुसलमानों को कांग्रेस ने भारत में शरण दी और राजीव गांधी ने भारतीय नागरिकता। कोई भी मुस्लिम राष्ट्र, मुस्लिम शरणार्थियों को शरण नहीं देता।वो गैर मुस्लिम देश में शरण लेते हैं और जबरदस्त जनसंख्या विस्फोट करके उसे जबरन इस्लामिक राष्ट्र बना देते हैं। 57 मुस्लिम राष्ट्र इसी ढ़र्रे पर बने हैं। छोड़िये न!! आज से 100 साल पहले परसिया नामक देश था। वहां 4 हजार मुसलमानों ने शरण ली। नतीजा!!वहां के मूल निवासी पारसी खत्म हो गये और आज वो इस्लामिक राष्ट्र "इरान" है।--डा. पिंटू पैर फैलाते हुए।
कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता देखिये! सिर्फ मुसलमानों के हितार्थ,भले हीं नाम सिख, ईसाई,जैन, बौद्ध का जुड़ा हो,1992 में अल्पसंख्यक आयोग कानून बनायी ताकि मुसलमानों को हर तरह का सरकारी संरक्षण एवं आर्थिक एवं कानूनी सुविधाएं मुहैया कराया जा सके।
भला बताइये!! धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म और पंथ के नाम पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक होता है क्या!! लेकिन उद्देश्य तो परोक्ष में दुसरा है। याद आया, इस्लामिक आक्रांताओं ने हजारों हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बना दी हैं तो स्वतंत्र भारत में हिंदू, कानूनी तरीके से अपना मंदिर वापस न ले सके, इसके लिए धर्मनिर्पेक्ष देश में सत्ताधारी कांग्रेस ने पूजा स्थल अधिनियम-1992 लायी। फलस्वरूप हिंदुओं के 40 हजार मंदिर छीन लिये गये।--मास्टर साहब भी अपनी कहे।

ए मास्टर साहब, हमरा त बुझाता कि अब हमरो देश 25-30 बरीस के मेहमान रह गईल बा।--मुखियाजी निराश दिखे।
मुखियाजी,देख नहीं रहे हैं! हमारे देश में हिंदुओं के देवी-देवताओं पर भद्दी भाषा, देवियों की अश्लील चित्रकारी, रामायण जलाना, मनुस्मृति फाड़ना, हमारे सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया कहना, हिंदुओं की आस्था गौ माता की हत्या करना,आम बात हो गई है। हमारे देश में मुस्लिमों द्वारा,देश विरोधी नारे लगाना, दुश्मन देश पाकिस्तान की जयकारें लगाना, उनके लिए जायज है क्योंकि पाकिस्तान इस्लामिक देश है। इनके मुल्ला मौलवी कहते हीं हैं कि हमारे लिए संविधान नहीं शरीयत प्रमुख है। देश के कानून और न्यायालय को भी इसमें अभिव्यक्ति की आजादी दिखती है। लेकिन यदि कोई हिन्दू इन मुल्लों, इस्लाम परस्तों, उनके अमानवीय रसुलों, गंदे व्यवहार प्रतिमानों पर टिप्पणी करे तो सर धड़ से अलग करने की खुल्लमखुल्ला धमकी मिलती है। देश विरोधी घुसपैठियों के संरक्षण में कई मुस्लिम संगठन एक्टिव हैं। इनके पक्ष को लेकर कांग्रेस माइंडेड हिंदू वरिष्ठ वकील, न्यायालय में गुहार लगाते हैं और न्यायालय भी उनकी सुनता है। तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहां दिखेगी!!--उमाकाका क्षुब्ध थे।
ए भाई लोग,आज अब अतने रहे दिल जाव। हमार मुड खराब हो गईल।--कहकर मुखियाजी उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.....!!!!
आलेख - लेखक
प्रोफेसर राजेंद्र पाठक (समाजशास्त्री)