घायल और अधमड़े बिहार को कोमा से बाहर निकालने का अंतिम उम्मीद ही जन सुराज और प्रशांत किशोर

बिहार की राजनीति में जातिवादी व्यवस्थाओं को पहली बार अपने परिवार के लिए वोट करने को कहां तो वह हैं जन सुराज

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
July 11, 2025

बिहार की राजनीति देश में कुछ अलग ही चलता है। भारत को हर वक्त एक नया नेतृत्व देने के प्रयास में अव्वल रहती बिहार स्वयं के लिए कभी आवाज़ नहीं बन पाया। जातिवादी व्यवस्थाओं के कारण और द्वेष को बढ़ावा देकर बिहार से कई राष्ट्रीय नेता जरूर बने लेकिन सब अपने परिवार में ही सिमटकर रह गए। बिहार में दलितों के नेता के रूप में पिछले 50 वर्षों से राम विलास पासवान अकेले चेहरा बने हुए हैं और आज स्मृति शेष होने के बावजूद भी उनके पुत्र पिता का चेहरा लेकर अपने चाचा, भाई, बहनोई के अलावा कई रिश्ते को संसद से लेकर विभिन्न आयोगों में स्थापित कर दिया। वहीं दूसरी ओर देखेंगे तो दलितों के लिए दलित सेना बनाकर रामविलास पासवान ने पुरे समाज को जिन्हें दलितों के नाम से पुकारा और उन्हें एक जुटकर वंशज को सदनों में अय्याशी का हिस्सा बनाया और लगातार बनाये रखने का माध्यम बनाकर रखा हुआ है जो बीज के रूप में था वह फसल परिवार को ही फायदा पहुंचा रही हैं। स्मृति शेष रामविलास पासवान ने अपने भाईयों, दमादों, भतीजे और सारी शक्ति सभी से लेकर पुत्र चिराग पासवान को सुपूर्द कर दिया। वहीं चिराग पासवान ने जातिवादी व्यवस्थाओं को लेकर बिहार में पिता के विरासत को बढ़ाकर दलितों का उत्थान नहीं होने दे रहे हैं और शोषण के विभिन्न आयामों को केंद्रीय मंत्रिमंडल से लागू कराते हैं। दलितों के लिए मतदाता बनने का भी संकट मंडरा रहा है।

वहीं पिछड़ा और गरीब - गुरबों के नेता लालू प्रसाद यादव ने भी लगभग 50 वर्षों से बिहार से लेकर देश की राजनीति में गहरा प्रभाव डाला। यादवों की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव खुद एक अच्छी शिक्षा ली लेकिन बिहार के यादवों को दारू, बालू, चरस, गांजा जैसे अवैध धंधों में झोंके रखा और 15 साल संरक्षक बनकर उनकी तीन पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया। अगर बिहार में यादवों में शिक्षित, व्यवसायी और सभ्यताओं के साथ ढ़ुढ़ेंगें तो 5-10% ही मिलेंगे और वह भी वो लोग हैं जो लालू प्रसाद यादव से कभी प्रभावित नहीं हुए और ना ही उस सिद्धांत पर चलने का प्रयास किया। लालू प्रसाद यादव ने खुद चारा घोटाले के बाद जेल जाते हुए पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया जिसका शिक्षा जैसे शब्द से कोई वास्ता नहीं था। इसी कारण अपने दोनों बेटे जो कि सभी बहनों में छोटे हैं पढ़ाई-लिखाई से वंचित रहें, क्योंकि जिस समय दोनों पुत्रों (तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव) का जन्म हुआ बिहार में शिक्षा के लिए जगह नहीं था। 

कोई भी नेता यह नहीं कर सका जिसके लिए लोगों ने इतना बड़ा व्यक्तित्व बनाया उसने अपने ही जातियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, रोजगार और सुरक्षा से वंचित रखा। रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार यह सब देश की सत्ता से लेकर बिहार की सत्ता अपने जेब में रखा, लेकिन जनता के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जो याद रखें जाएं। दलितों, पिछड़े और गरीबों के उपरोक्त तीनों मसीहा स्वयंभू हुए लोगों के लिए सिर्फ भाषण दिए। वहीं इन तीनों के अलावें भी छिटपुट नेताओं का बिहार में आगमन हुआ और वह भी जाति के आधार पर जैसे उपेन्द्र कुशवाहा, नागमणि कुशवाहा, वहीं ताजा ताज़ा हुए मुकेश सहनी जो स्वयं के जातियों के लिए खतरा बने बढ़ें है। वहीं आपको याद होगा कि उपेन्द्र कुशवाहा नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ पहले कार्यकाल में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री, भारत सरकार रहें और शिक्षा पर ही आंदोलन करने सड़कों पर उतरे, जो बड़े आश्चर्य की बात रही। सदन और सत्ता में बैठकर मलाई खाने वाले उपेन्द्र कुशवाहा किसी ना किसी गठबंधन को जाति के आधार पर प्रभावित करतें हैं लेकिन जाति का भला से ज्यादा अपने लिए सत्ता लोलुपता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

वहीं कांग्रेस के बाद भारत की राजनीति में हिन्दुत्व के मुद्दे के सहारे दुसरी बार केन्द्रीय सत्ता में आने वाले बड़ी राजनीतिक दल भाजपा हैं। भारतीय जनता पार्टी ने लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार के सहयोगी बनकर बिहार को लगातार लूटने में लगे हैं। वहीं पिछले एक दशक में केंद्रीय नेतृत्व में बिहार से 80-90% तक लोकसभा सीट और विधानसभा चुनाव में 60-80% सीट लेने के बावजूद मजदूर सप्लाई राज्य बनाकर गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश (नोएडा), हरियाणा, राजस्थान के साथ देश के दर्जनों राज्यों को मजबूत करने का काम किया। भारतीय जनता पार्टी आज भारतीय जुगार पार्टी बनकर किसी भी तरह सत्ता हासिल करने के सिद्धांत के साथ लगातार 11 वर्षों से लगी है। भारत के राज्यों में डबल इंजन की सरकार बनाना ही लक्ष्य लेकर भाजपा चल रही है और उसमें कई बार देखा गया कि सत्तारूढ़ होने से वंचित हो गए मगर केन्द्रीय सत्ता के बल पर सत्ता को जबरदस्ती छिन्न - भिन्न कर प्राप्त किया।

भारतीय जनता पार्टी के पास लगभग 06 अप्रैल 1980 से आज तक बिहार में एक भी नेता तैयार नहीं कर सका। नवनिर्मित राजनीतिक दल के रूप में भाजपा ने पहले लालू प्रसाद यादव को मदद कर बिहार सरकार में स्थापित कराया तो वहीं लालू प्रसाद यादव से तंग होकर नीतीश कुमार को बिहार सरकार की बागडोर में सहयोगी बनी हुई हैं। आज भाजपा को जब से नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संभाला हैं तब से राजद यानी लालू प्रसाद यादव के द्वारा सींचें गए गुलाम नेताओं को लेकर संगठन चला रही हैं। नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को भाजपा विहीन कर राजद युक्त बना दिया है। बिहार भाजपा के लगातार प्रदेश अध्यक्ष राजद से उधार लेकर बनाया गया है जिसका कोई भी फायदा अब तक नहीं हुआ और भाजपा के कोर वोटर व संगठनकर्ताओं को मार्गदर्शन मंडल में बैठने को मजबूर कर दिया है। 

बिहार में एक सुदृढ़ सरकार की आवश्यकता है और आम आदमी भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा कर भी रही थी क्योंकि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के विकल्प में वहीं मौजूद थे। लेकिन भाजपा बिहार अपने पैरों पर 45 वर्षों में खड़ा नहीं हो सकी और संगठन को बर्बाद कर दिया गया जिसे सींचने में बिहार के महत्वपूर्ण लोगों का योगदान था। 

लेकिन अब बिहार के लिए एक बड़ी उम्मीद और अंतिम उम्मीद जन सुराज और जन सुराज के सुत्र धार प्रशांत किशोर हैं।

अब तक बिहारियों के पास लालू प्रसाद यादव का डर था और उस डर के विपक्ष में नीतीश कुमार और भाजपा (NDA) पर भरोसा कर लेती थी। वहीं प्रशांत किशोर ने बिहारियों के अंतिम उम्मीद के रूप में आकर बिहार के लोगों को संजीवनी देने का काम किया है। यहीं प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने दो विपरीत ध्रुवों को नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को एकजुट कर नरेंद्र दामोदर दास मोदी के घमंड को चकनाचूर कर दिया था बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में। वहीं प्रशांत किशोर ने लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे को सदन में बिठाकर सुधरने का मौका दिया लेकिन परिवार से मिली लूट नीति काम और सैद्धांतिक सहमति के लिए बाधा बनकर खड़ी हो जाती है और राजनीतिक दृष्टिकोण से अब अंतिम दौर चल पड़ा है।

बिहार की राजनीति को समझने के लिए धरातल पर उतरने की आवश्यकता थी और हर घर तक जाकर बिहारियों को समझने के लिए उनके साथ समय देना आसान डगर नहीं था। लेकिन प्रशांत किशोर ने अमेरिका से लेकर भारत स्तर पर अपनी सोच़ और सुझबुझ का लोहा मनवाया है। बिहार में अब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार व (NDA) का विकल्प बनकर प्रशांत किशोर ने ऐसी लकीर खींच दी हैं कि अगर बिहारियों में थोड़ी भी समझ बची रही और स्वयं के साथ अपने परिवार के बारे में सोच़ ली तो सच मानिए बिहार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। वहीं प्रशांत किशोर के नेतृत्व में बिहार एक ऐसी व्यवस्था के साथ जन सुराज पार्टी को विकल्प से हटाकर उम्मीद बनाकर रख देगी।

आज एक फेसबुक से प्राप्त श्लोगन है कि -

घायल तो यहां हर परिंदा है..

मगर जो फिर से उड़ सका वहीं जिंदा है..

जन-जन की यही पुकार. 

अबकी बार जन सुराज..

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