खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 02

क्या मेघवाल के व्यक्तव्य को मोदी सरकार का ओरीजनल चेहरा माना जा सकता है ? भूल ही होगी संविधान सुरक्षित है पर भरोसा करना !

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
July 26, 2025

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे नम्बर के नेता (नेता इसलिए कि संघ अब खुलकर राजनीति करने लगा है!) दत्तात्रेय होसबोले ने इमर्जेंसी के अर्धशतकीय वर्षगांठ के दौरान पूरे होशोहवास में बोला था कि 1976 में श्रीमती इंदिरा गांधी के शासनकाल में संविधान संशोधन के जरिए संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गये दो शब्द "समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष" शब्द को हटाने पर व्यापक रूप से विचार विमर्श करते हुए समीक्षा किया जाना चाहिए। संघ द्वारा विचार विमर्श करने का सुझाव बीजेपी के लिए किसी हुक्म से कम नहीं होता ! इसी के तहत बीजेपी के मंत्रियों - संतत्रियों ने जिस संविधान की शपथ लेकर सत्ता सुख भोगते चले आ रहे हैं उसी संविधान की आत्मा को कुचलने का व्यक्तव्य अखबारों की सुर्खियां बनने लगा। बकौल केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान (ये वही हैं जिन्होंने संविधान की शपथ लेकर दो दशक तक मध्यप्रदेश की कमान संभालते हुए सत्ता सुख भोगा है तथा 2014 में भाजपा के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवाणी ने शिवराज सिंह चौहान को नरेन्द्र मोदी की तुलना में ज्यादा सक्षम प्रधानमंत्री कैंडीडेट घोषित करने की वकालत की थी और शायद उसी का खामियाजा आडवाणी को राजनीतिक बनवास के रूप में भोगना पड़ रहा है, कुर्सी लोलुपता में कभी संघ निष्ठ रहे शिवराज आज मोदी निष्ठ बनकर रह गये हैं !) भारत में समाजवाद की कोई जरूरत नहीं, धर्मनिरपेक्षता हमारी संस्कृति का मूल नहीं (द न्यू इंडियन एक्सप्रेस)। द इंडियन एक्सप्रेस - प्रस्तावना में समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ना सनातन की भावना का अपमान (उपराष्ट्रपति धनखड़ - जिन्हें हाल ही में आजाद भारत के इतिहास में ऐतिहासिक बेइज्जती के साथ जबरिया इस्तीफा लेकर घर पर नजरबंद कर दिया गया है !) asianet news - संविधान पर फिर से गहराते दिखे सवाल ? प्रस्तावना के शब्दों पर गरमाई बहस में केन्द्रीय मंत्री जितेन्द्र सिंह ने रखी राय - पुनर्विचार का किया समर्थन। abp न्यूज - भारत के विचार के खिलाफ है धर्मनिरपेक्षता (मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा - कांग्रेस से उधार लिया गया सिंदूर !)

संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए "समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष" शब्द को लेकर देश की सबसे बड़ी अदालत में चुनौती दी गई जिस पर निर्णय देते हुए अदालत ने सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि समाजवाद शब्द कल्याणकारी राज्य को इंगित करता है तथा धर्मनिरपेक्ष शब्द संविधान की आत्मा में निहित है। इसी बात को लेकर राज्यसभा में भी सवाल पूछा गया जिस पर जबाब देते हुए केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने सदन में कहा कि संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए शब्द "समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष" को हटाने के लिए फिलहाल सरकार का कोई इरादा नहीं है। जिसे अखबारों ने अपने-अपने तरीके से हेडलाइन बनाकर छापा है। सत्य ने लिखा - मोदी सरकार पीछे हटी : संसद को बताया संविधान से सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द नहीं हटेंगे - कानून मंत्री मेघवाल। नव भारत टाइम्स ने हेडलाइन बनाई है - संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटेंगे ? सरकार ने संसद में क्या बताया ? आजतक ने हेडलाइन छापी - संघ से सरकार का अलग स्टैंड - समाजवाद - सेकुलर शब्द प्रस्तावना से हटाने पर क्या बोले कानून मंत्री ? संविधान की प्रस्तावना से समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द हटाने पर संघ और सरकार का नजरिया अलग - अलग। कानून मंत्री ने अपने जबाब में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र भी किया है।


मगर सरकार के नजरिए पर सहजता से विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके पहले सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से इतर जाकर संंसद में अपने मनमाफिक कानून बना चुकी है। जिसे सरकार की करनी और कथनी के अंतर यानी दोगले चरित्र के रूप में देखा जाता रहा है। कानून मंत्री मेघवाल के जबाब ने एक नये सवाल को खड़ा कर एक नई बहस छेड़ दी है कि जब सरकार "समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष" शब्द को यथावत रख रही है तो फिर "समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष" को हटाने की वकालत करने वाले संविधान की शपथ खाकर मंत्री बने लोगों को मंत्रीमंडल में क्यों रखा जा रहा है ? क्या पीएम मोदी संविधान के सम्मान, कानून मंत्री के जवाब और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनजर शिवराज सिंह चौहान, जितेन्द्र सिंह को मंत्री परिषद से बाहर का रास्ता दिखाने का साहस करेंगे ? क्या मोदी-शाह की जोड़ी हिमंत बिस्वा सरमा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटायेगी ?

मोदी सरकार ने अपने 11 बरस में जिस तरह से अपने दोगलेपने का इजहार किया है उससे देशवासियों के मन में उसके प्रति अविश्वास पैदा हो चुका है। 2014 के कार्यकाल में गृहमंत्री रहते हुए राजनाथ सिंह ने सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था कि जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35ए को नहीं हटाया जाएगा। लेकिन 2019 के कार्यकाल में अपने ही हलफनामे के विपरीत जाकर सरकार ने जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और 35ए को न केवल हटाया गया बल्कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा समाप्त कर केन्द्र शासित प्रदेश बनाते हुए तीन टुकड़ों में बांट दिया गया। एक तरफ मोदी सरकार गांधी की 150वीं जयंती मनाती है और दूसरी तरफ उन्हीं की पार्टी बीजेपी का सांसद गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को रोड़ माॅडल मानता - बताता है। एक तरफ बीजेपी की सरकार मुसलमानों की मस्जिदों से ध्वनि प्रदूषण के नाम पर लाउडस्पीकर उतारती है और दूसरी तरफ कांवड़ यात्रा के दौरान पूरे रास्ते फुल साउंड डीजे बजाने वालों के ऊपर पुष्प वर्षा करती है। व्यक्तिगत आस्था को इवेंट बनाया जाता है। एक ओर सरसंघचालक मोहन भागवत हर मंदिर में मस्जिद नहीं ढूढ़ने की बात कहते हैं वहीं दूसरी ओर हर मस्जिद में खोदा-खादी की जाती है मंदिर ढूंढने के लिए। वोट के लिए मुसलमान बीजेपी की सबसे बड़ी जरूरत भी है, वोट के लिए मोदी सहित तमाम नेताओं द्वारा गोल टोपी भी पहन ली जाती है और उसके बाद सबसे ज्यादा घृणा का पात्र भी मुसलमान ही है। संघ प्रमुख कहते हैं भारतीय मुसलमान और हमारा DNA एक जैसा है लेकिन बीजेपी उसे विजातीय मानती है। दूसरे दल का भृष्टाचारी महापापी और बीजेपी में आते ही वह संत बन जाता है। महिला खिलाड़ियों का यौन शोषण करने वाले बीजेपी सांसद को संसद में बैठने की अनुमति है मगर सांसद भाई - बहन को आपस में बातचीत करने की इजाजत नहीं है उस पर टोकाटाकी की जाती है। मोदी बिना बुलाए बिरयानी खाने पाकिस्तान जा सकते हैं लेकिन विपक्षी पाकिस्तान के फेवर में एक शब्द नहीं बोल सकता है। चीन जब भारतीय सैनिकों की हत्या करे और कोई उस पर सवाल उठाये तो उसे चाइना परस्त करार दे दिया जाता है और मोदी चाइना राष्ट्राध्यक्ष को झूला झुलाते हैं तो राष्ट्र प्रेमी हो जाते हैं। मोदी एक ओर चाइना के माल का बहिष्कार करने की अपील करते हैं और दूसरी ओर चीन से व्यापारिक डील भी करते हैं। अब इसे बीजेपी, मोदी सरकार और आरएसएस का दोगलापन न कहा जाय तो फिर क्या कहा जाय?

मेघवाल के जबाब को इस नजरिए से भी देखा जा रहा है कि अनंत हेगड़े, ज्योति मिर्धा, अरूण गोविल, लल्लू सिंह, दिया कुमारी, धरमपुरी अरविंद द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान की गई संविधान बदलने हेतु 400 पार कराने के लिए की गई अपील, देवेन्द्र फडणवीस का कहा गया "संविधान की किताब दिखलाना नक्सली सोच है" के परिणामस्वरूप जनता द्वारा 240 पर सिमटा दिया जाना है। बीजेपी को शायद ये समझ में आ गया है कि यदि संविधान बदलने की बात करेंगे तो सत्ता से बाहर कर दिया जाएगा इसलिए पहले संविधान से दो शब्द "समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष" हटाकर जनता के रूख को भांपा जाय। पूर्ववर्तीय झांका जाय तो आरएसएस ने संविधान लागू होने के पहले से ही संविधान का प्रखर विरोध शुरू कर दिया था। वह तो मनुस्मृति को लागू करने का पक्षधर रहा है शायद इसीलिए अम्बेडकर की उपस्थिति में मनुस्मृति की प्रतियाँ जलाई गईं थीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संविधान लागू होने के बाद से ही संविधान को रिप्लेस कर मनुस्मृति लागू करने का प्रयास किया जाता रहा है। बीजेपी की सत्ता बनाये रखने के लिए अपनी ही सोच को जरा सा यू-टर्न देते हुए तय किया गया है कि संविधान के नाम पर सत्ता में बने रहो और उसकी आड़ में मनुस्मृति को लागू करने का प्रयास भी जारी रखो, जनता को तो ऐसा ही समझ आ रहा है ।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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