47 साल बाद पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय सोनपुर को पूर्णतया किया गया सील

23 जुलाई 2025 को स्थानीय प्रशासन के सहयोग से निचली अदालत के दिए गए निर्णय को लागू कराने के लिए रेलवे प्रशासन ने किया था अनुरोध

Manish Kumar Singh
Manish Kumar Singh
July 26, 2025

47 साल पहले स्मृति शेष पूर्व मुख्यमंत्री राम सुन्दर दास और तत्कालीन रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया के सहयोग से पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर की स्थापना किया था। जिसमें तत्कालीन रेलवे मंत्री मधु दंडवते के द्वारा पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर शिलान्यास किया गया था। पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर के स्थापना को लेकर सबसे बड़ी भूमिका रही हैं तो वह हैं तत्कालीन रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया की। रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा को लेकर अलख जगाने के लिए बहुत गंभीर थे और इसी उद्देश्य से अपने शिक्षा प्रेम को साबित किया।

वहीं दूसरी ओर तत्कालीन रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया की सोच़ यह थी कि इसके साथ-साथ रेलवे में कार्यरत कर्मचारियों के बच्चों को भी उच्च शिक्षा के लिए भटकना नहीं पड़ेगा और अपने ही रेलवे के कैंपस में ही पढ़ाई-लिखाई पूरी हो जाएगी। लेकिन स्थापना के 47वें साल में महाविद्यालय में 23 जुलाई 2025 को रेलवे प्रशासन ने ही पूर्ण रूपेण ताला बंदी हो गया है। पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर अपने स्थापना काल से 46 साल का सफ़र बहुत सारे झंझावात को झेलते हुए सफलता पूर्वक संचालित होती रही हैं। वहीं 47वें वर्ष में आते - आते ही महाविद्यालय विधायक तथा कार्यपालिका के बिछाए मकड़जाल में फंस गया और अब दुबारा इस जगह पर पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय सोनपुर नहीं दिखाई देगा। 

एक प्रोफेसर साहब से मिली जानकारी के अनुसार कि पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर के साथ जो खेला हुआ उसके लिए परिणामस्वरूप यह कह सकते हैं कि - "प्रसाद के लिए मंदिर को तोड़ने का फैसला कर लिया गया और महाविद्यालय में पूर्ण तालाबंदी सफल हो गया।"

आगे प्रोफेसर साहब बताते हैं कि महाविद्यालय को बहुत सारा नुकसान हुआ है उसके और भी कारण हैं। आपको बता दें कि महामहिम सह कुलाधिपति महोदय के आदेश, माननीय उच्च न्यायालय पटना के निर्णय तथा विश्वविद्यालय के दिशानिर्देशों के अनुसार संबद्ध महाविद्यालय में वरीय शिक्षक ही प्रभारी प्राचार्य होते हैं। इसी नीति के तहत डॉ. प्रकाश चंद गुप्ता जी को पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय का अंतिम प्राचार्य बना दिया गया। जिसके पीछे व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण कनीयतम शिक्षक को प्रभारी प्राचार्य बना दिया गया।

वहीं आपको जानकारी दें कि तत्कालीन तदर्थ समिति के कुल सात सदस्य थे लेकिन मात्र तीन सदस्य की सहमति से ही इसे लागू कर दिया गया। विश्वविद्यालय ने ऐसे निर्णय से असहमति जताई तथा उक्त समिति के स्थान पर पांच सदस्यों वाली एक तदर्थ समिति का गठन कर दिया। महत्वपूर्ण यह हो गया कि जब प्रसाद की इच्छा एक बार जागृत हो जाने के बाद उसे भूलना काफी कठिन है। ऐसे में नई समिति ने भी इस महाविद्यालय को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और अंततः महाविद्यालय को पूर्ण रूप से सील कर दिया गया है। जबकि निचले अदालत के विरुद्ध महाविद्यालय उच्च न्यायालय, पटना में अपनी अर्जी लगा रखा है। 

समितियों और प्रशासनिक तांडव में छात्रों का जीवन के साथ खिलवाड़ कर दिया गया है। वहीं यक्ष प्रश्न यह हैं कि छात्रों की शिक्षा और छात्रों के हुए नामांकितों के साथ अब क्या होगा?

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