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September 03, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 19

देश मरे तो मरे - सियासत जिंदा रहनी चाहिए

Aatmnirbhar bharat yojna: कोरोना की भयंकर महामारी में Life Line साबित हुआ

भारत के काबिल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कालखंड में आत्मनिर्भर भारत बनाने का सबसे नायाब नमूना है बाढ़ पीड़ितों को अपने हाल पर छोड़ देना। अगर उन्हें मदद दे दी गई तो वो आत्मनिर्भर नहीं बन पायेंगे शायद यही सोच कर राहत पैकेज की अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से तो संवेदना का ट्यूट तक देखने को नहीं मिला। पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर के साथ ही देशवासियों की नजर लगी थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन से लौटकर बाढ़ पीडित राज्यों और राज्यवासियों की चिंता करते हुए कैबिनेट की मीटिंग बुलाएगे, उसमें विचार कर विशेष राहत पैकेज की घोषणा करेंगे लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो ठीक उसी तरह से पहुंच गये बिहार और लगे चुनाव पूर्व रैली को संबोधित करते हुए करने लगे गाली पुराण का बखान करने होने वाले चुनाव में जीत की संभावनाओं को तलाशने के जैसे पहलगाम में हुए नरसंहार के बाद भी पहलगाम न जाकर पहुंच गये थे बिहार और करने लगे थे चुनाव पूर्व रैली को संबोधित करने। 

Bihar Politics: आ गई बीजेपी की सर्वे रिपोर्ट, अब सीटों को लेकर होगा फैसला; अमित  शाह बनाएंगे स्ट्रैटजी - Bihar BJP Core Committee Meeting Amit Shah to  Discuss 2025 Election Strategy

हां इस बात की चर्चा जरूर सुनाई दे रही है कि अमित शाह ने बिहार के चुनाव की रणनीति बनाने के लिए मीटिंग जरूर बुलाई है। यानी रोम जल रहा था और नीरो बांसुरी बजा रहा था। कह सकते हैं कि मोदी सत्ता की पहली प्राथमिकता सियासत है। करोना काल में भी जब देशभर में लाशों का मंजर दिखाई दे रहा था तब भी मोदी सत्ता सरकार गिराने और बनाने का सियासी खेल खेल रही थी, मध्य प्रदेश इसका सबसे बड़ा उदाहरण है और अभी भी जब पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड बाढ़ की तबाही से बर्बाद हो रहे हैं, प्रदेशवासी अपनों की जान-माल बचाने के लिए जूझ रहे हैं तो मोदी सत्ता बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की बिसात बिछाने के गुडकतान में लगी है। जिन परिस्थितियों में पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड जी रहा है उन परिस्थितियों में दुनिया का निकम्मे से निकम्मा शासनाध्यक्ष भी सब कुछ छोड़ कर सबसे पहले बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए आगे आता, अपने कैबिनेट की मीटिंग बुलाता, विचार-विमर्श कर विशेष राहत पैकेज की घोषणा करता मगर दुर्भाग्य है कि देश में एक काबिल प्रधानमंत्री है। इससे बेहतर तो वो निकला जिसके सारे खानदान को मोदी सत्ता पानी पी पी कर कोसती है लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी जो किसी राहत पैकेज का ऐलान तो नहीं कर सकता मगर पीडितों के प्रति संवेदना तो व्यक्त कर सकता है। 

Ready To Protect Constitution With My ...

राहुल गांधी ने ट्यूट करते हुए लिखा है कि "मोदी जी, पंजाब में बाढ़ ने भयंकर तबाही मचाई है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में भी स्थिति बेहद चिंताजनक है। ऐसे मुश्किल समय में आपका ध्यान और केन्द्र सरकार की सक्रिय मदद अत्यंत आवश्यक है। हजारों परिवार अपने घर, जीवन और अपनों को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। मैं आग्रह करता हूं कि इन राज्यों के लिए, खासतौर पर किसानों के लिए विशेष राहत पैकेज (Special Relief Package) की तत्काल घोषणा की जाए और राहत एवं बचाव कार्यों को तेज किया जाए। राहुल गांधी ने 31 सेकंड का वीडियो भी जारी किया है जिसमें वे मोदी जी से गुजारिश करते हुए कह रहे हैं "नमस्कार, पंजाब में बाढ़ के कारण बहुत नुकसान हो रहा है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, और उत्तराखंड में बहुत बुरे हालात हैं। बहुत दुःख होता है ये देख कर कि लोग अपने बच्चों को, अपने परिवार को बचाने के लिए इतना संघर्ष कर रहे हैं। मोदी जी सरकार की जिम्मेदारी है लोगों की रक्षा करना। आप जल्दी से जल्दी इन स्टेट के लिए एक स्पेशल रिलीफ पैकेज तैयार कीजिए और लोगों को प्रोटेक्शन दीजिए। धन्यवाद। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 03, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 18

अमेरिका के निशाने पर भारत नहीं - मोदी हैं जबकि चीन के निशाने पर मोदी नहीं - भारत है !

टैरिफ को लेकर भारत के सामने ये 3 चुनौतियां, सरकार से मांग, Plan-B पर काम  करे देश! - Tit for tat CTI On US Tariff writes letter to PM Narendra Modi  says

जबसे अमेरिका ने टेरिफ लगाया है तबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तीन बातों का जिक्र बारबार करते रहते हैं - आत्मनिर्भर भारत, स्वदेशी और मेक इन इंडिया। पीएम मोदी के लिए आत्मनिर्भर भारत का मतलब है कार्पोरेट के पास पैसा होना चाहिए, वह पैसा सफेद हो या काला सब चलेगा, कार्पोरेट के लिए रास्ता निकलना चाहिए क्योंकि अगर कार्पोरेट कमजोर पड़ गया तो मौजूदा राजनीतिक सत्ता कमजोर पड़ जायेगी। भारत की राजनीति को कमजोर कर देगी। आत्मनिर्भरता ब्लैक हो या व्हाइट कार्पोरेट के साथ खड़े होना होगा वर्ना मोदी सत्ता की आत्मनिर्भरता के सामने संकट खड़ा हो जायेगा। मोदी के स्वदेशीकरण का मतलब है कि भारत के भीतर चीन कितनी भी इंडस्ट्री लगा ले लेकिन रोजगार भारतियों को दे। मोदी ने तो स्वदेशी को पसीने से जोड़ दिया है, मजदूरी से जोड़ दिया गया है। मेक इन इंडिया का अभी तक का सच यही है कि यदि चीन कच्चा माल देना बंद कर दे तो मेक इन इंडिया डहडहा जायेगा और अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के स्वाभिमान को दरकिनार करते हुए चीन के साथ गलबहियाँ डालने को बेताब हैं तो क्या चीन भारत के मेक इन इंडिया को पूरी तरह से गोद ले लेगा और देश के भीतर एक ऐसी परिस्थिति बन जायेगी जहां पर सब कुछ चीन तय करेगा यानी आत्मनिर्भरता का नारा, स्वदेशी का नारा और मेक इन इंडिया का नारा या कहें वोकल फार लोकल वह भी ग्लोबल के दायरे से निकलेगा क्योंकि हमें हरहांल में पूंजी चाहिए, पैसा चाहिए, रोजगार चाहिए, कच्चा माल चाहिए अन्यथा देश की इकोनॉमी चरमरा जायेगी, परिस्थितियां नाजुक हैं। 
 

Indian Economy: India has become 5th largest economy of the world,  overtakes Britain | Indian Economy: भारतीय अर्थव्यवस्था बनी दुनिया की 5वीं  सबसे बड़ी इकोनॉमी, ब्रिटेन को पीछे छोड़ा

भारत की इकोनॉमी, भारत के कार्पोरेट, भारत की पाॅलिटिक्स और मौजूदा समय में चल रही फिलासफी टकराव की है तथा टकराव की राजनीति के भीतर डाॅलर है, करेंसी है। अंतरराष्ट्रीय ग्लोबलाइजेशन के तहत मल्टी नेशनल कंपनियों का होना है जिनकी पहचान तो भारत से जुड़ी है लेकिन उनके हेडक्वार्टर दुबई, सिंगापुर, लंदन, न्यूयॉर्क में खुले हुए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पहली बार अमेरिका के केन्द्र में चीन खड़ा है और चीनी डिप्लोमेटस् तथा चीनी कम्युनिस्ट पार्टी इस बात को समझ चुकी है कि नई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे, वैश्विक गवर्नेंस की परिस्थिति जो ट्रंप के बाद से नाजुक हो गई है उसको बेहतर बनाना पड़ेगा तभी सुरक्षा, इकोनॉमी, आपसी संबंध इन सभी सवालों को लेकर एससीओ की भूमिका व्यापक होगी। 2001 में चीन, रूस, कजाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान ने मिलकर शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का गठन किया गया था जिसका विस्तार करते हुए 2017 में भारत, पाकिस्तान, ईरान और बेलारूस को शामिल किया गया। तियानजिन में हो रही बैठक को एससीओ प्लस इसलिए कहा जा रहा है कि इसमें पर्यवेक्षक देश के तौर पर अजरबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, तुर्की, मिस्र, मालदीव, नेपाल, म्यांमार तथा बतौर अतिथि देश इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, वियतनाम की मौजूदगी भी है। यानी कुल मिलाकर 22 देशों के राष्ट्राध्यक्ष शिरकत कर रहे हैं। जिस तरह से ट्रंप के टेरिफ वार को लेकर भारत और अमेरिका के रिश्तों में दूरी बढ़ी है उसने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को एक सुनहरा अवसर दे दिया है इस मायने में कि अमेरिकी प्रभाव से मुक्त दुनिया को कैसे बनाया जाय। चीन उस दिशा में काम भी कर रहा है। मध्य एशिया के अधिकतर नेताओं की मौजूदगी के बीच चीन ने 3 दिसम्बर को बीजिंग में बकायदा अपने मिसाइलों और युध्दक विमानों की सैन्य परेड निकाली है और उस वक्त वहां पर 18 राष्ट्राध्यक्षों की मौजूदगी भी थी, भारत को छोड़कर । इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि दुनिया की आधी आबादी तथा 25 फीसदी जीडीपी एससीओ के साथ है साथ ही 25 फीसदी भू-भाग भी एससीओ के भीतर है। इसीलिए चीनी डिप्लोमेटस् और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एससीओ को दुनिया की सबसे अहम बैठक के तौर पर बनाने का प्रयास कर रही है।

India unemployment rate: देश में 15 फीसदी युवा बेरोजगार, जानें कितने लोगों  को नहीं मिल रहा काम - joblessness steady at above five percent in june know  youth jobless rate - Navbharat Times

भारत की जनता, वोटर, बेरोजगारी, किसान, मजदूर, 99 फीसदी वह लोग जिनकी प्रति व्यक्ति आय दुनिया में सबसे कम है और एक फीसदी की ताकत के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इतना तो समझ ही गये हैं कि अगर अमेरिका उनकी गद्दी को डिगाने की दिशा में कदम उठाता है तो उन्हें समय रहते बड़े देशों को साथ लेना पड़ सकता है। क्योंकि अंतरराष्ट्रीय तौर पर एक तरफ ट्रंप खड़े हैं तो दूसरी तरफ मोदी लेकिन इन सबके बीच अभी तक शी जिनपिंग अमेरिका के निशाने पर नहीं हैं लेकिन मोदी को शी जिनपिंग का साथ चाहिए लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी के भीतर से मोदी को लेकर सहमति बनी नहीं है। किसानी को लेकर अमेरिका के रास्ते जो संकट आता हुआ दिखाई दे रहा है वह चीन की सरपरस्ती से पूरी तरह से खत्म हो जायेगा या फिर आने वाले समय में खाद की तरह से बीज के संकट को भी दूर करेगा। क्योंकि आज भी टेक्टर के सामान से लेकर खेती के उपयोग में आने वाले तमाम संसाधन ही नहीं बल्कि हर टेक्नोलॉजी का कच्चा माल चीन से ही आता है और इस बात को हर कोई जानता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने 4 बार मिलाया फोन, PM मोदी ने बात करने से किया  इनकार... जर्मन अखबार की रिपोर्ट में बड़ा दावा - pm modi ignored trumps  calls claims ...

फ्लैशबैक में झांके तो पांच महीने पहले की ही तो बात है जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वाशिंग्टन में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ बैठकर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को ऊंचाई देने का लब्बोलुआब रखा था। इसके पहले भी जब ट्रंप ने राष्ट्रपति की शपथ ली थी जनवरी में तो सबसे पहली बैठक भारत, आस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की क्वाड को लेकर ही हुई थी जिसमें क्वाड की बैठक साल के अंत में भारत में होना तय किया गया। यह भी तय किया गया कि क्वाड की बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप भी शामिल होंगे। यानी अमेरिका के निशाने पर चीन था। भारत और अमेरिका की प्रगाढ़ता का जिक्र न्यूयार्क टाइम्स और फाक्स न्यूज के साथ ही सीएनएन ने भी खुलकर किया था। मगर पिछले पांच महीने ने प्रगाढ़ता की सारी कहानी को उलट पलट कर रख दिया है और अब साल के अंत में भारत के भीतर होने वाली क्वाड की बैठक में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी नहीं होगी । जनवरी 2025 में अमेरिकी विदेश मंत्री के साथ हुई भारतीय विदेश मंत्री की बातचीत में भारतीय विदेश मंत्री ने ऐसी कौन सी खता कर दी कि चीन में हो रही एससीओ की बैठक में मोदी ने जयशंकर को ले जाने के लायक ही नहीं समझा जबकि जयशंकर लम्बे समय तक चीन में भारत के राजदूत रह चुके हैं और इसी योग्यता के आधार पर ही तो उन्हें मोदी ने अपने मंत्रीमंडल में जगह देकर विदेश मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी है। मोदी और जिनपिंग के बीच हुई प्रतिनिधि मंडल की बैठक में चीनी विदेश मंत्री अपने राष्ट्रपति के बगल में बैठे नजर आये। मोदी के प्रतिनिधि मंडल में उस विदेश सचिव को शामिल किया गया है जो आपरेशन सिंदूर के दौरान हुए सीजफायर की ब्रीफिंग के वक्त पत्रकारों का जवाब तक नहीं दे पाया था।

अमेरिका की भूमिका, वर्ल्ड ऑर्डर और... क्या रंग दिखा सकता है भारत-रूस-चीन का  साथ ? - india russia china growing proximity should america be worried sco  showcases trilateral equation hints at ...

इस बरस के अंत तक रशिया, चाइना और भारत की बैठक होने के आसार हैं। चीनी शासनाध्यक्ष शी जिनपिंग की भी पीएम मोदी के न्यौते पर दिल्ली अगवानी की खबर है, लेकिन अभी तक कम्युनिस्ट पार्टी ने कोई सहमति जताई नहीं है (चाइना का राष्ट्रपति कम्युनिस्ट पार्टी की अनुमति के बिना पंखा भी नहीं झल सकता है)। 2025 बीतते - बीतते भारत की राजनीति के भीतर संकट, इकोनॉमी का संकट, भारत की अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में व्यापक बदलाव क्या ये सिर्फ एक परिस्थिति है जिसमें भारत ने हर बार कहा कि किसानों, पशुपालकों, छोटे व्यापारियों को नुकसान से बचाने के लिए अमेरिकी सामानों को भारत आने नहीं दिया जायेगा लेकिन अगर चीन के साथ सहमति बन जाती है तो क्या भारत के किसान, पशुपालक, छोटे व्यापारियों का संकट टल जायेगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश में तो पीएम ने खुलकर कहा है कि भारत के भीतर उद्योग लगने चाहिए पूंजी का काला या सफेद होना कोई मायने नहीं रखता है। देश के भीतर किसानों से बड़ा संकट तो उन कारपोरेटस् के सामने खड़ा दिखाई दे रहा है जिसने मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने नेटवर्थ को हवाई उड़ान दी। भारत के कार्पोरेट का लिया हुआ कर्ज डाॅलर की शक्ल में है। अमेरिका डाॅलर और करेंसी की लड़ाई लड़ रहा है। अमेरिका के वाइस प्रेसीडेंट के अलावा फाइनेंस मिनिस्टर ने तो फाक्स न्यूज पर इंटरव्यू देते समय कहा था कि आज की तारीख में रुपया बेहद कमजोर है, जैसे वह कह रहे थे कि हम चाहें तो एक झटके में एक डाॅलर को एक सौ रुपये का कर सकते हैं और इससे कारपोरेटस् हाउस की नींद उड़ जायेगी।

भारत, चीन और रूस के बीच कोई त्रिपक्षीय बैठक की नहीं हुई चर्चा, आरआईसी पर  नहीं बनी सहमति - No meeting of the RIC Russia India China format has been  agreed to

अगर भारत के अंदर कारपोरेटस् नहीं होंगे तो राजनीतिक सत्ता डांवाडोल हो जायेगी। भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चाइना पहुंचने पर न्यूयार्क टाइम्स और फाक्स न्यूज में छपी यह खबर चर्चा में बनी रही कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इसलिए निशाने पर लिया गया है क्योंकि उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का साथ नहीं दिया जो वह नोवल प्राइज के लिए चाहते थे। एससीओ और ब्रिक्स की अगुवाई चीन कर रहा है फर्क सिर्फ इतना ही है कि एससीओ में पाकिस्तान शामिल है मगर ब्रिक्स में नहीं। ग्लोबल गवर्नेंस के तौर तरीकों को बदलने की सोच के साथ एससीओ काम पर लगा हुआ है। शायद इसीलिए शी जिनपिंग ने दुनिया की दो संस्कृति का जिक्र किया है। पीएम मोदी इस बात को समझते हैं कि देश के कारपोरेटस् को अमेरिका से दरकिनार नहीं किया जा सकता है। डाॅलर की सीमा रेखा से बाहर लाना नामुमकिन है। अमेरिका द्वारा फोल्डर बंद करने के बाद भी बातचीत जारी रखने की कवायद की जा रही है। चीन इस दौर में सबसे शक्तिशाली होकर सामने आ रहा है तथा दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और रशिया के बीच की फिलासफी में चीन हासिये पर था लेकिन पहली बार चीन के जरिए एक ऐसी स्थिति उभर रही है जहां सवाल तेल का हो या गैस का, ग्रीन इनर्जी का हो या मैन्युफैक्चरिंग का, या फिर डिजिटल इकोनॉमी का ही क्यों न हो सब कुछ सम्हालने की स्थिति में चीन आकर खड़ा हो गया है।

क्या आपको पता है मुकेश अंबानी कितना देते हैं टैक्स, 14 राज्यों की जीडीपी भी  नहीं है इतनी | Patrika News | हिन्दी न्यूज

भारत के भीतर कारपोरेटर मुकेश अंबानी का अपना एक थिंक टैंक भी चलता है जिसे अमेरिका में विदेश मंत्री जयशंकर का बेटा ही देखता है तो क्या भारत के बारे में तमाम जानकारी अमेरिका तक उसी थिंक टैंक के जरिए पहुंच रही है। सवाल उठने लगे हैं कि क्या भारत की राजनीतिक परिस्थितियों के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कमजोर हो चले हैं। अगर कार्पोरेट न रहे तो क्या और कमजोर हो जायेंगे। उनको लेकर बीजेपी और आरएसएस के भीतर जो सवाल उठ रहे हैं उसके जरिए भी वे कमजोर हो रहे हैं। भारत की डेमोक्रेसी को लेकर भी ढेर सारे सवाल हैं। भारत की इकोनॉमी को लेकर भी सवाल उठाये जा रहे हैं। तो क्या इन सारी परिस्थितियों के बीच अमेरिका हस्तक्षेप कर सकता है। लगता है उठ रहे ढेर सारे सवालों का कोई जवाब पीएम मोदी के पास है नहीं,  इसलिए वे चीन के पाले में जाकर खड़े हो गए हैं और दो महीने पहले तक आपरेशन सिंदूर के बाद भारत के भीतर चीन की भूमिका को लेकर जो वातावरण बना था उसे एक झटके में बदलने की कोशिश की जा रही है । अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आजादी के बाद भारत की बदलती हुई डिप्लोमेशी के भीतर ये एक बिल्कुल नया पाठ है जिसमें भारत की राजनीतिक सत्ता, किसान, कार्पोरेटस्, इकोनॉमी के साथ ही दुनिया के अलग - अलग देशों के साथ किये जा रहे द्वि-पक्षीय व्यापार संबंध सब कुछ या तो दांव पर हैं या फिर एक नई बिसात बिछाई जा रही है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 03, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 17

यह तो आखिरी लड़ाई की मुनादी है !

The Indian Elections: What Narendra ...

भारतीय राजनीति का इतना पतन कभी नहीं हुआ जितना 2014 के बाद से हुआ है। देश ने भारतीय जनता पार्टी के शिखर पुरुष कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी के अलावा लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे राजनेताओं का दौर भी देखा है जिन्होंने शब्दों की मर्यादाओं के भीतर रह कर सत्तापक्ष और विपक्ष की तीखी आलोचनाएं भी की हैं और सामने वाले का सम्मान भी बरकरार रखा है। मगर देश ने बीजेपी के भीतर अटल-अडवाणी दौर के बाद होने वाले बदलाव से निकलने वाले नेताओं ने जिस तरह से राजनीत को गर्त में ले जाने के लिए अमर्यादित भाषा के चलन या कहें गाली संस्कृति को जन्म दिया उसके जनक संयोग से भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही हैं। कहा जा सकता है कि देश की राजनीति को पतन के रास्ते ले जाने के लिए अगर कोई एक व्यक्ति जिम्मेदार है तो उसका नाम नरेन्द्र मोदी ही है। 2002 में जब गुजरात के भीतर भीषण दंगों के बाद हुए विधानसभा चुनाव के दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चुनावी रैली में बेहद शर्मनाक बयानबाजी करते हुए मुस्लिम महिलाओं को "बच्चा पैदा करने की मशीन" कहा था जबकि वे खुद 7 भाई बहन हैं। इसी विधानसभा चुनाव के दौरान निकाली गई गौरव अभियान यात्रा को संबोधित करते हुए नेहरू गांधी परिवार की बहू सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी को "जर्सी गाय तथा हाईब्रीड बछड़ा" कहा था। 28 अक्टूबर 2012 को हिमाचल प्रदेश के ऊना में चुनावी रैली के दौरान कांग्रेस सांसद तथा तत्कालीन मंत्री शशि थरूर की पत्नी स्वर्गीय सुनंदा पुष्कर के लिए "50 करोड़ की गर्ल फ्रेंड" जैसे घटिया शब्द का उपयोग किया गया था। 2013 में अपने ही गृह प्रदेश गुजरात के मध्यम वर्ग की महिलाओं की अस्मिता को तार तार करते हुए टिप्पणी की गई थी कि "सौंदर्य के प्रति जागरूक माॅं अपनी बेटी को स्तनपान कराने से मना करती हैं क्योंकि उन्हें अपने शरीर के मोटा होने का डर होता है" । वे तो मुसलमानों की तुलना एक कुत्ते के बच्चे से करने में नहीं हिचके थे यानी जैसे वे कह रहे हैं कि "मुस्लिम मातायें कुत्ते के पिल्ले को जन्म देती हैं"। 4 दिसम्बर 2018 में राजस्थान के जयपुर में चुनावी रैली के दौरान नरेन्द्र मोदी ने बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय राजीव गांधी की पत्नी श्रीमती सोनिया गांधी को "कांग्रेस की विधवा" तक कह डाला था । पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का उपहास उठाते हुए "दीदी ओ दीदी" तथा कांग्रेस सांसद रेणुका चौधरी को "सूर्पनखा" कहा गया है। 2015 में तो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की माताश्री के चरित्र पर भी उंगली उठाते हुए कह दिया गया कि इनका तो "डीएनए ही खराब" है।। 16 जनवरी 2020 को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन पर तो बतौर घूस" लड़कियां सप्लाई करने" का घिनौना आरोप तक लगा दिया गया। ऐसे सैकडों उदाहरणों से इतिहास भरा हुआ है। जब भारतीय राजनीति में कटुता और निम्नस्तरीय शब्दों का समावेश करके जिन बीजों को बोया गया है और अब वे फसल बनकर लहलहा रहे हैं तो उस फसल को काटेंगे भी तो नरेन्द्र मोदी ही यानी वही शब्द अब नरेन्द्र मोदी पर ही पलटवार करते हुए दिखाई दे रहे हैं। बिहार में कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी की चल रही वोट अधिकार रैली के दौरान एक व्यक्ति ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए जिस तरह के अशोभनीय, अमर्यादित शब्द का उपयोग किया उसकी जितनी भी निंदा की जाय कम है। मगर जिस तरह की बातें सामने आ रही है उसके अनुसार जिस व्यक्ति ने नाबर्दाश्तेकाबिल हरकत की है वह तो बीजेपी समर्थक है और बिहार में होने वाले चुनाव में मुद्दा बनाने के लिए बीजेपी ने ही प्रीप्लानिंग के तहत उस व्यक्ति को भीड़ में भेजकर अपने ही नेता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए अपशब्द कहलवाये हैं। साधारण तौर पर कहा जा सकता है कि कोई भी कैसे इतना नीचे गिर सकता है कि चुनावी फायदा उठाने के लिए खुद को ही गाली दिलवाये। मगर नरेन्द्र मोदी कालखंड में जिस तरह से राजनीति का पतन हुआ है उसमें कुछ भी असंभव नहीं है। मोदी और उनकी टीम तो आज भी जवाहरलाल नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी को मरणोपरांत तथा सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा तथा राबर्ट वाड्रा को कोसने से चूक नहीं रहे हैं। यह जानते बूझते हुए भी कि दर्द सबको होता है, चोट सबको लगती है। इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि सदायें लौट कर जरूर आती हैं।

Passing off Politics as Economics - The ...

बीजेपी भले ही लगातार चुनाव जीत रही है मगर उसने जिस तरह से राजनीति में गंदगी घोली है खासतौर पर अटल-अडवाणी दौर के बाद से मोदी कालखंड के दौरान वह अपनी वैचारिक विश्वसनीयता खो चुकी है थोड़ी बहुत विश्वसनीयता जो थी वह थी उसके पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की उसे भी गत दिनों सरसंघचालक मोहन भागवत ने गवां दिया है। कुछ समय पहले अपने स्वयंसेवकों के बीच भागवत ने संघ स्वयंसेवक मोरोपंत पिंगले की आड़ लेकर कहा था कि "मेरी मुश्किल यह है कि मैं खड़ा होता हूं तो लोग हंसने लगते हैं, मैंनें हंसने लायक कुछ बोला नहीं है तब भी लोग हंसते हैं क्योंकि मुझे लगता है कि लोग मुझे गंभीरता से नहीं लेते हैं। जब मैं मर जाऊंगा तब भी पहले लोग पत्थर मार कर देखेंगे कि सच में मर गया है या नहीं। 75 वर्ष आपने किया लेकिन मैं इसका अर्थ जानता हूं। 75 वर्ष की शाल जब ओढी जाती है तो उसका अर्थ ये होता है कि अब आपकी आयु हो गई है अब जरा बाजू हो जाओ, दूसरे को आने दो। अपनी ही बातों के भावार्थ से यू-टर्न ले लिया है। उसका सबसे बड़ा कारण ये है कि इशारे - इशारे में जो संकेत नरेन्द्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए दिया गया है वह खुद के लिए भी आड़े आ रहा है। मोदी से पहले तो खुद मोहन भागवत 11 सितम्बर 2025 को 75 वर्ष की आयु पूरी करने जा रहे हैं जबकि नरेन्द्र मोदी 17 सितम्बर 2025 को 75 वर्ष के होंगे तो मोदी से पहले भागवत को सरसंघचालक की कुर्सी छोड़कर नजीर पेश करनी होगी और इतना साहस उनके पास है नहीं ! वैसे भले ही राजनीति टैक्सपेयर के पैसों से मिले वेतन-भत्ते और पेंशन से चलती है मगर इसमें रिटायर्मेंट का कोई प्रावधान नहीं है। रिटायर्मेंट का शिगूफा तो खुद नरेन्द्र मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के वरिष्ठ नेता और प्रधानमंत्री पद के प्रबल दावेदार लालकृष्ण आडवाणी को दरकिनार करने के लिए पैदा किया था और अब वही शिगूफा नरेन्द्र मोदी के सामने सबसे बड़े सवाल के रूप में सामने खड़ा होकर कह रहा है कि "खुद भी अमल करो" मगर इसके लिए कलेजा चाहिए और 56 इंची सीना कह देने भर से मर्दानगी साहस नहीं आता है !

RIL के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने दोहा में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से  की मुलाकात | Moneycontrol Hindi

सितम्बर 2025 में कुछ तारीखें बहुत महत्वपूर्ण हो गई हैं क्योंकि ये महज तारीखें नहीं हैं ये अपने भीतर बहुत सारे खेलों को समेटे हुए हैं। 01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार के कैबिनेट मंत्री नितिन गडकरी के ड्रीम प्रोजेक्ट ग्रीन फ्यूल जिसे एथेनाॅल का नाम दिया गया है उसको लेकर दाखिल की गई पीआईएल पर सुनवाई करेगी। 9 सितम्बर को उप राष्ट्रपति चुनाव होना है। 12 सितम्बर को कार्पोरेट मुकेश अंबानी की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से अमेरिका में मुलाकात होनी है। 12 सितम्बर को ही मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी द्वारा चलाए जा रहे वनतारा जू की जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई 4 सदस्यीय एसआईटी कोर्ट को सौंपेगी और 15 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट उस पूरे मामले की सुनवाई करेगी। 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने जन्मदिन का केक काटेंगे।

मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी पर बड़ा अपडेट! सुप्रीम कोर्ट का आदेश,  वंतारा मामले की जांच करेगी SIT

जिस तरह से मुकेश अंबानी के बेटे के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई है ठीक उसी तरह से यह पीआईएल नितिन गडकरी के मंत्रालय के खिलाफ दाखिल की गई और कोर्ट ने स्वीकार भी कर ली है। जिस पर 1 सितम्बर को सीजेआई जस्टिस बीआर गवई के साथ जस्टिस के विनोदचंद्रन और जस्टिस एन वी अंजारिया की बैंच सुनवाई कर तय करेगी कि क्या एथेनाॅल की प्लानिंग ने देश को लूटा तो नहीं है, जनता को कंगाल तो नहीं किया है या फिर पूरी प्लानिंग ही गलत तो नहीं है। पीआईएल इस बात को लेकर है कि पेट्रोल में जो एथेनाॅल मिलाया जा रहा है उससे गाड़ी कम माइलेज दे रही है, गाड़ी खराब हो रही है, कंज्यूमर का ध्यान नहीं रखा जा रहा है तथा कम हो रही तेल की कीमत का लाभ जनता को नहीं मिल रहा है, लाभ कोई और उठा रहा है, लाभ उठाने वाला कौन है। वैसे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर नितिन गडकरी का बचाव करते हुए कि गन्ना और मक्का आधारित एथेनाॅल के उपयोग से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन पेट्रोल की तुलना में 65 और 50 परसेंट कम हो जाता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है। गन्ने का बकाया भुगतान हो जाता है। मक्के की खेती में सुधार हो जाता है। किसानों की आय बढ़ जाती है। विदर्भ में होने वाली किसानों की आत्महत्या रुक जायेगी। यानी सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल एथेनाॅल को लेकर पेट्रोल के मद्देनजर जिक्र गाडियों के माइलेज, वाहनों के नुकसान को लेकर लगाई है और सरकार कह रही है कि एथेनाॅल के उपयोग से कच्चे तेल के आयात में कमी आयेगी। फायदा एथेनाॅल मिला पेट्रोल खरीदने वाले को नहीं किसानों को मिलेगा। 11 सालों में 1 लाख 44 हजार 87 करोड़ रुपये से अधिक विदेशी मुद्रा की बचत हो गई। 245 लाख मीट्रिक टन कच्चा तेल नहीं लेना पड़ा। 736 लाख मीट्रिक टन कार्बन डाई आक्साइड के उत्सर्जन में कमी आई। 30 करोड़ पेड़ों के कटने के बराबर एथेनाॅल का इस्तेमाल करके काम कर लिया और जब 20% का मिश्रण होगा तो किसानों को 40 हज़ार करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया जायेगा। यानी सरकार से पूछा खेत के बारे में जा रहा है और सरकार खलिहान की कहानी बताने में लग गई है। एथेनाॅल को लेकर जो सवाल उठाये जा रहे हैं उसके पीछे की वजह ये है कि देश के भीतर एथेनाॅल बनाने वाली कंपनी सीआईएएन एग्रो इंडस्ट्री और किसी की नहीं बल्कि नितिन गडकरी के बेटे निखिल गडकरी की है तथा मिल रही जानकारी मुताबिक इस कंपनी में जो स्टाक था उसकी कीमत 40 रुपये से बढ़कर 668 रुपये हो गई यानी कीमत में 1570% की बढ़ोतरी हुई है। एथेनाॅल को लेकर सरकार की तरफ से गजब के तर्क दिये जा रहे हैं। तो क्या ये सब सरकार की उस प्लानिंग का हिस्सा है जो वह 15 साल पुराने वाहनों को कबाड़ में बदलने की है। जनता को एथेनाॅल मिला पेट्रोल देने के लिए भी सरकार तर्क दे रही है कि 2020-21 की तुलना में आज एथेनाॅल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा है यानी रिफाइन पेट्रोल से ज्यादा है तो फिर कीमत कम कैसे कर सकते हैं। सवाल यह है कि जब एथेनाॅल की कीमत पेट्रोल से ज्यादा है तो फिर उसका उपयोग ही क्यों किया जा रहा है। किसानों को लाभ देने के लिए गाड़ी वाला अपनी गाड़ी खराब कर रहा है और एथेनाॅल बेचने वाली कंपनी 1570 फीसदी मुनाफा कमा रही है। वैसे इतनी रफ्तार से मुनाफा कमाने वाला नितिन गडकरी का लड़का भर नहीं है। इसी रफ्तार पर तो अडानी ने भी मुनाफा कमाया है। 2014 के पहले देश के भीतर अडानी को कितने लोग जानते थे। पूरा देश जानता है कि गौतम अडानी ने तो नफे की हवाई उडान नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पकड़ी है।

तुम मेरे बेटे जैसे हो...' जब नितिन गडकरी से नाराज हो गए थे धीरूभाई अंबानी,  जानें क्या थी वजह? - You are like my son When Nitin Gadkari rejected  Reliance bid and

मगर इस समय मोदी सरकार के निशाने पर मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी है वह भी उनके अपने बेटों की गर्दन पर फंदा कसके। भले ही मोदी सरकार की मंशा मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी से अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए राजनीतिक सौदेबाज़ी करने की हो लेकिन उसने तो इस सौदेबाज़ी के लिए देश की सबसे बड़ी अदालत की विश्वसनीयता को भी दांव पर लगा दिया है। बहुत साफ है कि मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी का वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र का ताला तभी खुला रह सकता है जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित 4 सदस्यीय हाईप्रोफाइल एसआईटी अपनी रिपोर्ट की दिशा बदल देवे अन्यथा अगर सही - सही रिपोर्ट दे दी गई तो वनतारा जू में ताला लगना तय है। ठीक इसी तरह अगर सुप्रीम कोर्ट एथेनाॅल को लेकर दाखिल की गई पीआईएल पर ढुलमुल रवैया अपनाती है तो सीजेआई और उनकी पीठ को संदेह की नजर से देखा जायेगा क्योंकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है अनंत अंबानी और निखिल गडकरी के गले में जो फंदा डाला गया है वो और कुछ नहीं मोदी सत्ता का अपनी सत्ता को मिल रही अंदरूनी चुनौती से निपटने के लिए मुकेश अंबानी और नितिन गडकरी से राजनीतिक सौदेबाज़ी करना ही है। क्योंकि जहां मुकेश अंबानी के पीछे खड़ी 140 सांसदों की कतार की कहानी है तो वहीं नितिन गडकरी के पीछे खड़े आरएसएस की छाया है। भले ही अब संघ सरसंघचालक मोहन भागवत यह कह रहे हों कि बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनना बीजेपी का आंतरिक मामला है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खुद ही रिटायर्मेंट का फैसला लेना है। जबकि कल तक यही सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी बातों को घुमा फिराकर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चयन और नरेन्द्र मोदी को 75 वीं सालगिरह के बाद प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए नाक में दम किये हुये थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई सरसंघचालक हुआ हो जिसने संघ का इतना अधिक राजनीतिकरण किया हो, जनता के बीच सरसंघचालक की विश्वसनीयता को कम किया हो, अपने द्वारा दिये गये बौध्दिक को विवादास्पद और आलोचनात्मक बनाया हो जितना मोहन भागवत ने सरसंघचालक की कुर्सी सम्हालने के बाद बनाया है।

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देश की नजर तो 01 सितम्बर, 9 सितम्बर, 11 सितम्बर, 12 सितम्बर, 15 सितम्बर और 17 सितम्बर पर टिकी हुई है जब 01 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट में सीजेआई की बैंच एथेनाॅल को लेकर दायर की गई पीआईएल पर सुनवाई करेगी। 09 सितम्बर को उप राष्ट्रपति का चुनाव होगा, ऊंट किस करवट बैठेगा। 11 सितम्बर को सरसंघचालक मोहन भागवत अपनी 75 वीं वर्षगांठ पर दायित्व मुक्त होकर अपने पीछे खड़े किसी स्वयंसेवक के लिए रास्ता प्रशस्त करते हैं या नहीं। 12 सितम्बर को मुकेश अंबानी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मुलाकात से क्या निकलता वह भी तब जब पूरी अमेरिकी सत्ता भारत के नहीं बल्कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ खड़ी हो चुकी है। 15 सितम्बर को सुप्रीम कोर्ट मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के वनतारा जू पर ताला लगाता है या नहीं। 17 सितम्बर को नरेन्द्र मोदी अपनी 75 वीं सालगिरह के बाद खुद की ही खींची गई लकीर का मान रखते हुए अपने राजनीतिक कवच लालकृष्ण आडवाणी और दूसरे वरिष्ठतम लोगों की कतार में खड़े होकर मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा बनते हैं या फिर अपने ही द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को लांघ कर कुर्सी से चिपके रहने को प्राथमिकता देकर जग हंसाई का पात्र बनते हैं।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 30, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 16

कारपोरेट को साथ लेकर चले और अब आमने-सामने खड़े हैं - - - अंजाम क्या होगा ?

कोयंबटूर में 12 अगस्त को मनाया जाएगा विश्व हाथी दिवस, मानव-हाथी संघर्ष कम  करने पर देशभर से जुटेंगे विशेषज्ञ

भारत और विदेशों लाये गये पशु खास तौर पर हाथियों का लाना कितना सही था या कितना गलत था ? वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 और उसके अंतर्गत बनाये गये नियमों का पालन हो रहा है या नहीं हो रहा है ? वनस्पति और विलुप्त होने वाले जीव, उन प्रजातियों के व्यापार अंतराष्ट्रीय सम्मेलन (सीआईटीआईएस) और जीवित पशुओं के एक्सपोर्ट, इम्पोर्ट के लिए जो भी कानून बनाये गये हैं उनका पालन हो रहा है या नहीं हो रहा है ? पशुपालन, पशु चिकित्सा-देखभाल, पशु कल्याण मानक, पशुओं की मृत्यु दर, उसके कारणों का भी पता लगाईये, क्या हो रहा है अंदर ? जलवायु परिवर्तन परिस्थितियों से संबंधित शिकायतें, औद्योगिक क्षेत्र अगर निकट है तो उसका पशुओं पर क्या प्रभाव पड़ेगा ?  वेनिटी या निजी संग्रह से जो प्रजनन होता है या जो संरक्षण कार्यक्रम होता है तथा जैव विविधता संसाधनों के उपयोग से संबंधित शिकायतों की जांच ? पानी और कार्बन क्रेडिट के दुरुपयोग की शिकायतों की जांच ? याचिका में सामान्यतः न बोली जाने वाली कहानियां और लेख में उल्लिखित कानून के विभिन्न प्रावधानों का उल्लंघन करने वाली शिकायतें जिसके तहत पशु और पशु उत्पादकों के व्यापार और वन्य जीव तस्वीर आदि की जांच ? वित्तीय अनुपात (मनी लॉन्ड्रिंग) और वित्तीय अनियमितता की जांच ? जो भी आरोप लगाये गये हैं यदि वे किसी दूसरे मुद्दे या मामले से जुड़ते हैं तो उसकी भी जांच ? ये वे बिंदु हैं जिनकी जांच कर 12 सितम्बर तक रिपोर्ट देनी है सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई चार सदस्यीय हाईप्रोफाइल एसआईटी को मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के द्वारा संचालित किये जा रहे वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र में। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित की गई एसआईटी हाईप्रोफाइल इसलिए भी है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जे चेलमलेश्वर (की अगुआई), जस्टिस राघवेन्द्र चौहान (पूर्व चीफ जस्टिस उत्तराखंड व तेलंगाना हाईकोर्ट), मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर हेमंत नागराले एवं कस्टम्स अधिकारी अनिश गुप्ता को शामिल किया गया है। यह एसआईटी टीम हाईप्रोफाइल इसलिए भी है कि मुकेश अंबानी जैसे कार्पोरेट के लिए भी इन सदस्यों को प्रभावित करना आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट ने जिन बिंदुओं को तय कर जांच रिपोर्ट मांगी है और जिनसे जांच रिपोर्ट मांगी है उन्हें देखकर प्रथम दृष्टया तो यही कहा जा सकता है कि उसने अंबानी परिवार और एसआईटी टीम के सामने बहुत बड़ा अग्नि परीक्षा जैसा संकट खड़ा कर दिया है। कहा जा सकता है कि यदि एसआईटी टीम ने सही रिपोर्ट दे दी तो वनतारा में ताला लग जायेगा। वनतारा का ताला तभी खुला रह सकता है जब एसआईटी टीम सही रिपोर्ट ना सौंपे।

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मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी का एक महत्वाकांक्षी ड्रीम प्रोजेक्ट है वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू रिहैबिलिटेशन सेंटर वनतारा। जिसका उद्देश्य है घायल और संकटग्रस्त वन्यजीवों को बचाकर उनका उपचार करना, उन्हें प्राकृतिक आवास जैसा माहौल प्रदान कर उनका पुनर्वास करना। यह एक विशाल एनिमल रेस्क्यू सेंटर है जिसे हाथियों, तेंदुओं, मगरमच्छों और दुर्लभ प्रजाति के जानवरों का घर कहा जाता है। यहां का सालाना खर्चा लगभग 150 से 200 करोड़ रुपये का बताया जाता है। इस वन्यजीव संरक्षण केन्द्र की जांच करने वाले एसआईटी को यह भी अधिकार दिया गया है कि वह जांच में सहयोग लेने के लिए किसी भी विशेषज्ञ को हायर कर सकती है और पूरी रिपोर्ट तैयार कर 12 सितम्बर को कोर्ट में पेश करे जिसकी सुनवाई 15 सितम्बर को की जायेगी। संयोग है कि 2 दिन बाद यानी 17 सितम्बर को नरेन्द्र मोदी का बर्थ-डे है। यह जामनगर (गुजरात) में रिफाइनरी काम्प्लेक्स के ग्रीन वेल्ट में 3000 एकड़ पर फैला हुआ है। यह वही वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास संरक्षण केन्द है जो वैसे तो फरवरी 2024 को ही खुल गया था फिर भी उसका औपचारिक उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 4 मार्च 2025 को किया था तथा वन्यजीवों के साथ तरह-तरह के पोज देकर फोटोज खिंचवाये थे और वायरल किए गये थे। ये अनंत अंबानी मुकेश अंबानी का छोटा बेटा है जिस मुकेश अंबानी से मोदी की निकटता है और अनंत की शादी में नरेन्द्र मोदी ने शिरकत की थी। इस हाईप्रोफाइल शादी में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका भी अपने पति और बेटी के साथ शामिल हुई थी तथा दुनिया भर के तमाम अतिरेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों की मौजूदगी थी। इस शादी में तकरीबन 600 मिलियन डॉलर से लेकर 01 बिलियन डॉलर तक खर्च होने का अनुमान है। सवाल उठना स्वाभाविक है कि जिस घराने से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इतनी निकटता हो और देश का कोई भी संवैधानिक संस्थान मोदी सत्ता की मर्जी के बगैर सांस भी नहीं ले सकता हो उस मुकेश अंबानी के बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट एसआईटी गठित कर दे देश के गले नहीं उतर रहा है। कहीं यह सब मोदी सत्ता के ईशारे पर सुप्रीम कोर्ट के जरिए मुकेश अंबानी पर नकेल कसने के लिए तो नहीं किया जा रहा है क्योंकि मौजूदा वक्त के हालात इस तरफ साफ-साफ इशारा कर रहे हैं।

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ये कार्पोरेट वार नहीं है। ये देश में कार्पोरेट और नैक्सस से निकली हुई ऐसी परिस्थिति है जिसमें देश के सबसे बड़े कार्पोरेट हाउस में से एक कार्पोरेट हाउस और देश की सबसे बड़ी राजनीतिक सत्ता आमने-सामने आकर खड़ी हो गई है। वह भी ऐसे वक्त जब दुनिया बदल रही है। आर्थिक तौर पर नई परिस्थितियां दुनिया के हर देश को नये संबंध बनाने की दिशा में ले जा रही है। दुनिया भर के कार्पोरेट में भी इस बात को लेकर हलचल है कि उसका अपना मुनाफा कहां पर टिका है और आगे जाकर कहां पर टिकेगा। बीते बरसों बरस जिस आसरे वह मुनाफा कमा रहा है या कहें उस कार्पोरेट ने अपनी लकीर को बड़ा किया है क्या वह एक झटके में राजनीतिक सत्ता के पाला बदलने से बदल जायेगी। भारत भर में नहीं बल्कि दुनिया भर में रिलायंस या कहें मुकेश अंबानी की पहचान भारत के सबसे बड़े कार्पोरेट घराने के तौर पर है। मुकेश अंबानी की राजनीतिक ताकत कई मौकों पर खुल कर दिखाई दी है। चाहे वह मनमोहन सिंह का दौर रहा हो या फिर राजीव गांधी का। अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में भी कार्पोरेटस ने सत्ता को बखूबी प्रभावित किया है। जिसमें अब्बल नम्बर रिलायंस का ही रहा है। यानी जब रिलायंस की का गठजोड़ राजनीतिक सत्ता से हो गया तो दोनों ताकतवर होते चले गए। यानी एक ओर राजनीतिक सत्ता मजबूत हुई और दूसरी ओर कार्पोरेट का नेटबर्थ हवाई उड़ान उड़ने लगा।

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देश के भीतर के दो सबसे बड़े कार्पोरेटस अंबानी और अडानी इसके सबसे बड़े जीते-जागते सबूत हैं खास तौर पर 2014 से जब इनके नेटबर्थ ने देखते-देखते गगनचुंबी उड़ान भरी है। पहले नम्बर पर अडानी और दूसरे नम्बर पर अंबानी का नाम आता है। 2014 के बाद से सरकार के साथ खड़े होकर अंबानी कमोबेश हर क्षेत्र में छाते चले गए। अंबानी के तकरीबन हर कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मौजूदगी देखी गई है। मसलन अस्पताल का उद्घाटन हो या फिर जियो (जियो) लांच करने का मौका हो, अखबार के पहले पन्ने पर नरेन्द्र मोदी की आदमकद फोटो चस्पा की गई थी। उसके बाद से ही दूरसंचार की सरकारी कम्पनी बीएसएनएल का ढहना और रिलायंस या कहें जियो का उठना शुरू हुआ और आज के दौर में बीएसएनएल अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और जियो शिखर पर छाया हुआ है। इस सवाल को विपक्ष ने पार्लियामेंट के भीतर अनेकों बार उठाया जरूर लेकिन उसकी आवाज़ मोदी सत्ता के नगाड़े तहत दब कर दम तोड़ गई। 2016-17 आते-आते खुले तौर पर साफ हो गया कि मोदी सत्ता देश के दो सबसे बड़े कार्पोरेटस के साथ खड़ी है। देश में कार्पोरेटस का नेटबर्थ हवाई गति से बढ़ेगा भले ही देश की जीडीपी नीचे चली जाय। जहां देश के एक परसेंटेज कार्पोरेटस के पास लगभग ढाई ट्रिलियन डॉलर है तो वहीं देश के बाकी निन्यानवे फीसदी लोगों के पास तकरीबन डेढ़ ट्रिलियन डॉलर ही है। दोनों को मिलाकर ही (चार ट्रिलियन डॉलर) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी उपलब्धियों में शामिल कर बताते रहते हैं।

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सवाल यह है कि जब दुनिया के तमाम कार्पोरेटस में इस बात को लेकर हलचल है कि टेरिफ वार के बाद राजनीतिक स्थितियां बदल रही हैं तो क्या कार्पोरेट भारत की राजनीतिक सत्ता को डिगा सकता है ? क्योंकि ये सवाल बीते एक - डेढ़ महीने से लगातार देश के भीतर तैर रहा है। यह सब कुछ रिलायंस और मुकेश अंबानी को लेकर की किया जा रहा है क्योंकि आने वाले समय में उप राष्ट्रपति का चुनाव होने वाला है और मोदी सरकार बैसाखियों के सहारे टिकी हुई है। ब्लूमबर्ग और राइटर्स की रिपोर्ट में खुलकर खुलासा किया गया कि भारत की दो कंपनियों रिलायंस और नायरा ने रशिया से सस्ती दर पर तेल खरीद कर उसे रिफाइन कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों पर बेच कर कितना फायदा कमाया। सरकार कार्पोरेट के साथ ही खड़ी है क्योंकि सरकार ने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया कि सस्ती कीमत पर खरीदे जा रहे तेल का लाभ भारतीय जनता को तेल की कीमत कम करके दिलाया जा सके। फिलहाल यह बात पीछे छूटती हुई अब इस रास्ते खड़ी हो गई है क्या वाकई मौजूदा राजनीतिक सत्ता के सामने कार्पोरेट की चुनौती खड़ी हो गई है तथा अब राजनीतिक सत्ता कार्पोरेट को ध्वस्त करने की दिशा में चल पड़ी है ? इस सवाल ने तूल तब पकड़ा जब मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी पर एसबीआई के जरिए उसके बैंक अकाउंट को फ्राड साबित करते हुए सीबीआई और ईडी की जांच और इन सबके बीच लगातार छापों की फेहरिस्त से बात आगे बढ़ते हुए मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट वनतारा वन्यजीव बचाव और पुनर्वास एवं संरक्षण केन्द्र को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रहे मुकदमे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दस बिन्दु निर्धारित करते हुए चार सदस्यीय स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम गठित करते हुए रिपोर्ट सबमिट करने की डेडलाइन 12 सितम्बर तय कर दी।

Narendra Modi: गुजरात नाराज हो जाएगा... गौतम अडाणी से पीएम नरेंद्र मोदी ने  ऐसा क्यों कहा? - pm narendra modi anger of gujarat joke in praise for  gautam adani in kerala vizhinjam

मोदी के कालखंड में अडानी का आगे बढ़ना, हर सेक्टर में अडानी की मौजूदगी ने इस सवाल को पैदा कर दिया कि मोदी के लिए अधिक महत्वपूर्ण कौन है अडानी या अंबानी ? और ये सवाल राजनीतिक चुनौती के तौर पर अमेरिका के भीतर भी गूंजा जब अंबानी के बजाय अडानी की फाइल खोली गई। बीते एक बरस से दुनिया के तमाम बैंक जो अडानी को लोन दिया करते थे उनने लोन देना बंद कर दिया है। कह सकते हैं कि यह भी एक कारक हो सकता है मोदी और अंबानी के बीच पनप रही तल्खी के बीच का । वनतारा की जांच के जरिए यह लड़ाई कार्पोरेट विरुद्ध राजनीतिक सत्ता - उस दौर में तब्दील होती हुई दिख रही है जब इस दौर में लंगडी मोदी सत्ता को बीजेपी के भीतर से ही संघ की विचारधारा व संघ की विचारधारा को समेटे सांसदों और मंत्रियों से चुनौती मिल रही है। आरएसएस मोदी सत्ता के समानांतर रूस से तेल खरीदने को लेकर अमेरिका द्वारा लगाये गये 25 फीसदी अतिरिक्त टेरिफ से भारत की इकोनॉमी, रोजगार, एक्सपोर्ट पर पड़ने वाले असर को लेकर दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिनी सेमीनार कर रहा है। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत की पारंपरिक इकोनॉमी डगमग है। अंतरराष्ट्रीय तौर पर भारत के पारंपरिक रिश्ते डगमग हैं।

नरसिम्हा राव ने किस तरह रची थी 1991 की कहानी ? - BBC News हिंदी

1991 में पीवी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्रित्व काल में जब प्लानिंग कमीशन की बागडोर प्रणव मुखर्जी के पास थी तथा मनमोहन सिंह वित्त मंत्री थे और भारत की इकोनॉमी रिफार्म कर रही थी तब धीरूभाई अंबानी की रिलायंस ने चलना शुरू किया था। भारत की अर्थव्यवस्था समाजवादी पायदान से पूंजीवादी पायदान पर खड़ा होने के लिए आगे बढ़ रही थी मगर 2025 में अमेरिका या कहें ट्रंप के साथ भारत या फिर मोदी के बीच जिन परिस्थितियों ने जन्म लिया है उससे जो एक बड़ा ट्रांसफार्मेशन भारत की इकोनॉमी को लेकर हुआ है कि भारत अब एक लेफ्ट स्टेट चाइना के करीब जा रहा है। इन सारी परिस्थितियों को लेकर कारपोरेटस भी सोचने पर मजबूर हो गया है कि उसका रास्ता किधर जायेगा। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जब भी कारपोरेटस की डील होती है या कोई भी काम पड़ता है तो वह ना तो देश की सीमा देखता है ना ही देश की करेंसी उसके लिए तो सब कुछ डाॅलर में होता है। इस समय मुकेश अंबानी का नेटबर्थ तकरीबन 105 बिलियन डॉलर यानी 9-10 लाख करोड़ रुपये है। क्या मोदी सत्ता इसे ध्वस्त करने के लिए आगे बढ़ रही है.?  यह कोई नई खबर नहीं है कि मुकेश अंबानी अपनी मुट्ठी में 140 सांसदों को रखते हैं और उन सांसदों में सबसे ज्यादा तादाद बीजेपी के उन सांसदों की है जो आरएसएस की विचारधारा से पालित-पोषित हैं। मोदी-शाह ने जो एक राजनीतिक बिसात गुजरात में बिछाई थी जिसमें अंबानी - अडानी के साथ ही गुजरात के 20 के ज्यादा कार्पोरेट तथा देश भर के तकरीबन 55 कार्पोरेट मौजूद थे।

Vantara: वनतारा पर कितना खर्च करते हैं अनंत अंबानी? जानकर हैरान रह जाएंगे आप

आज जब कार्पोरेट के बेटे पर हाथ डाला गया है जिसकी गूंज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय तौर सुनाई देने लगी है तो फिर मानकर चलिए ये जंग इतनी जल्दी खत्म होने वाली नहीं है ये किसी न किसी अंजाम पर जरूर पहुंचेगी। सवाल सिर्फ इतना है कि कार्पोरेट की पूंजी के आसरे जिस देश में राजनीति होती हो, सत्ता को बेदखल करने का काम किया जाता हो, विधायकों और सांसदों की खरीद-फरोख्त होती हो, बकायदा इलेक्टोरल बांड्स के जरिए करोड़ों के वारे-न्यारे हो चुके हों, उस देश की राजनीति को डिगा पाने की क्षमता क्या कार्पोरेट में है ? या फिर कारपोरेटस को डिगा पाने की परिस्थितियां क्या मौजूदा राजनीतिक सत्ता के पास है ? वह भी तब जब खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गुजरात में ऐलान कर रहे हों कि मुश्किल वक्त है देश की इकोनॉमी के लिए तथा मुश्किल समय है देश के किसानों, छोटे उद्योग को चलाने वालों के लिए, फिर भी हम उनके साथ खड़े हैं और स्वदेशी का राग महात्मा गाँधी को याद कर अलापा जा रहा हो इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि जब सादगी की प्रतिमूर्ति महात्मा गांधी ने स्वदेशी का नारा लगाया था तब उनके तन पर एक धोती (आधी पहने - आधी ओढ़े) के सिवाय दूसरा कपड़ा नहीं था। जिस वक्त लाल बहादुर शास्त्री ने जय जवान - जय किसान का नारा लगाते हुए देशवासियों से मदद देने और उपवास रखने की अपील की थी तब सादगी बहादुर शास्त्री के साथ जुड़ी हुई थी लेकिन आज मोदी सत्ता रईसी के साथ जुड़ कर सादगी और स्वदेशी का राग अलाप रही है। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 25, 2025
Ahaan News

" विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस " के उपलक्ष्य में वरिष्ठ नागरिक सेवा संघ ने स्वतंत्रता-सेनानियों केमान सम्मान की मांग करते हुए उनकी प्रतिमा लगाने की मांग की ।

भारत के कोई स्वतंत्रता सेनानी अपने या अपने परिवार के लिए कुर्वानी नहीं दी थी, सबने राष्ट्र के नव निर्माण के लिए अपने को न्योछावर कर दिया

“विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस ” के उपलक्ष्य में वरिष्ठ  नागरिक सेवा संघ  एस डी ओ रोड हाजीपुर के परिसर  में एक विचारणीय गौष्ठी की अध्यक्षता श्री त्रिलोकी राय  एवं संचालन  वरिष्ठ साहित्यकार एवं मीडिया प्रभारी श्री रवीन्द्र कुमार रतन  ने किया ।  विषय प्रवेश कराते हुए  साहित्य सचिव रवीन्द्र कुमार रतन  ने  " विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस "  की सार्थकता पर प्रकाश डालते हुए  कहा कि वरिष्ठ नागरिक हमारे राष्ट्र के निर्माता   होते है ।अतीत से जुड़ने और भविष्य में विकास के बीच सेतु बनकर  मार्ग दर्शक का काम करते है। उन्होने कहा कि भारत के कोई स्वतंत्रता सेनानी अपने या अपने परिवार के लिए कुर्वानी नहीं दी थी, सबने राष्ट्र के नव निर्माण  के लिए  अपने को न्योछावर कर दिया । इन्ही की त्याग तपस्या के बल पर हम आज आजादी को देख पा रहे हैं।उनके प्रति सच्चीश्रद्धांजलि तभी होगी जब हम उनके नाम से सम्बन्धित सुभाष चौक ,राजेन्द्र चोक , गांधी चौक पर क्रम सह सुभाष चंद्र वोस, डा 0राजेन्द्र प्रसाद एवं  गाँधी  चौक पर गाँधी जी की प्रतिमा लगाकर वर्षों की मांग एवं चौक के नामकरण की सार्थकता को भी पुरा किया जाएगा।


आगे  अध्यक्षता रहे त्रिलोकी राय , सचिव श्री नागेन्द्र राय , संयुक्त सचिव श्री गोविन्द  कांत  वर्मा, संगठन सचिव श्री सुरेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव  ने संयुक्त  वक्तव्य में कहा कि  अन्य चौक पर भी जयप्रकाश नारायण, विन्देश्वरी  प्रसाद वर्मा,वीर चंद्र पटेल,शहीद बैकुंठ शुक्ला जी, आदि की भी प्रतिमालगाकर उनके याद एवं उनके त्याग को प्रतिष्ठापित करें। इसके अलावेभी मुनिश्वर प्र0 सिंह,ललितेश्वर प्र0 शाही,विश्व नाथ प्रसाद श्रीवास्तव आदि की प्रतिमा को गाँधी आश्रम स्थित संग्रहालय मे जगह मिलनी चाहिए। राजेश्वर प्रसाद सिंह एवं डाॅ पूर्णिमा कुमारी श्रीवास्तव ने कोनाहारा घाट से लेकर बाला मठ तक पटना के मेरिन ड्राइव  की तरह बनाने का काम करे । सभा में  कमल किशोर प्रसाद, विष्णुदेव राय, वैद्यनाथ प्रसाद राय, आदि ने भी अपने विचार दिए । अंत में सरोज वाला सहाय ने सभी आगत अतिथियों का आभार एवं धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि  नामाकरण बाले सभी चौराहों पर सम्बंधित  स्वतंत्रता सेनानी की मूर्ति स्थापित करने की मांग बहुत पुरानी है  इसे शीघ्र कार्यन्वित किया जाय।
 

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August 25, 2025
Ahaan News

140 बच्चों की हो चुकी है सफल सर्जरी, दो बच्चे फिर हुए अहमदाबाद के लिए रवाना

अब तक 140 बच्चों का सफल ऑपरेशन हुआ है और उन्हें नया जीवन मिला है।

वैशाली- राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत मुख्यमंत्री बाल ह्रदय योजना के तहत वैशाली जिले से अब तक 140 बच्चों का सफल सर्जरी हो चुका है। विभिन्न प्रखंड की आरबीएसके टीम द्वारा 0 से 18 वर्ष के बच्चों का स्वास्थ्य जाँच आंगनवाड़ी केंद्र और सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों मे जाकर किया जाता है। साथ ही सभी स्वास्थ्य संस्थान के प्रसव केंद्रों पर भी जन्मजात रोगों से ग्रसित बच्चों की जाँच की जाती है। इसी का परिणाम है कि पूर्ण इलाज और स्वस्थ होने की उम्मीद छोड़ चुके पीड़ित बच्चे पूरी तरह स्वस्थ्य हो रहे है और बच्चों क़ो नया जीवन मिल रहा है। अब तक 140 बच्चों का सफल ऑपरेशन हुआ है और उन्हें नया जीवन मिला है। विभिन्न अस्पतालों जैसे की श्री सत्य साईं अस्पताल अहमदाबाद मे कुल 111 बच्चे, इंदिरा गाँधी ह्रदय रोग संस्थान मे 19 बच्चे, इंदिरा गाँधी आयुर्वेज्ञान संस्थान मे 9 बच्चे और मेदांता अस्पताल पटना मे 1 बच्चे का सफल सर्जरी अब तक हो चुका हैं और सभी बच्चों का सर्जरी बिल्कुल निशुल्क हुआ है। जिसमे से 21 डिवाइस क्लोजर सर्जरी और 119 ओपन हार्ट सर्जरी हैं। डीइआईसी प्रबंधक सह समन्वयक आरबीएसके डॉ शाइस्ता ने बताया के आयुष चिकित्सक और एएनएम की नियमितीकरण की वजह से बच्चों के प्रतिदिन जाँच के लक्ष्य मे कमी आई हैं लेकिन टीम पूरा प्रयास कर रही हैं के ज्यादा से ज्यादा बच्चे को चिन्हित कर उनका सही समय पर इलाज कराया जा सके। जिसमे जिलाधिकारी, सिविल सर्जन और डीपीएम डॉ कुमार मनोज का पूर्ण सहयोग मिला है। इस योजना के तहत ह्रदय रोग से ग्रसित बच्चों का मृत्यु दर कम हुआ है और बहुत गरीब परिवारों के चेहरे पर मुस्कान आई है।


डॉ शाइस्ता ने बताया कि पिछले तीन से चार सालों में वैशाली जिलें से लगभग 140 बच्चों की निशुल्क हृदय की सर्जरी एक भारी उपलब्धि है यह ऐसे बच्चे हैं जिनकी स्थिति इस लायक नहीं थी कि उनके माता-पिता निजी अस्पताल में सर्जरी करा सकें। उन्होंने कहा कि बच्चों में होने वाले जन्मजात रोगों में हृदय में छेद एक गंभीर समस्या है जो बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को काफी प्रभावित करती है, और समय रहते सर्जरी नहीं की गई तो बच्चे की जान भी जा सकती है।
वैशाली जिला से बाल ह्रदय योजना अंतर्गत 140 सफल सर्जरी कराने के बाद फिर से 2 बच्चे मानवी कुमारी और आशिक कुमार - हाजीपुर प्रखंड से को  गुरुवार क़ो श्री सत्य साईं ह्रदय अस्पताल अहमदाबाद सर्जरी हेतु, डॉ शाइस्ता डीईआईसी प्रबंधक सह समन्वयक आरबीएसके, सूचित कुमार डीडीए और अशरफुल होदा डीईओ की उपस्थिति मे जिला स्वास्थ्य समिति, वैशाली से एम्बुलेंस के माध्यम से राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार, पटना और फिर पटना एयरपोर्ट के लिए ढेर सारी शुभकामनाओं और जल्द स्वस्थ्य होने की कामनाओं के साथ रवाना किया गया। जबकि  शुक्रवार को एक बच्चा रविश कुमार प्रखंड राघोपुर को डिवाइस क्लोजर सर्जरी हेतु इंदिरा गाँधी ह्रदय रोग संस्थान भेजा जाएगा।
 

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August 25, 2025
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परिवार नियोजन के साधन एमपीए सबकुटेनियस पर स्वास्थ्यकर्मियों का हुआ प्रशिक्षण

-क्लांइट मोबलाइजेशन कर ज्यादा लाभुकों को जोड़ने की बीएचएम की अपील

वैशाली- जिला अंतर्गत गरौल प्रखंड के सीएचसी गरौल में परिवार नियोजन के अस्थाई साधन एमपीए सबकुटेनियस पर सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारी, एएनएम/जीएनएम का परिवार नियोजन के नए अस्थाई साधन एमपीए पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन स्वास्थ्य विभाग एवं पीएसआई इंडिया के तकनीकी सहयोग से सीएचसी गरौल के सभागार कक्ष में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉक्टर राजेश कुमार के द्वारा की गई। इस एक दिवसीय प्रशिक्षण में गरौल प्रखंड की सभी सीएचओ, एएनएम, जीएनएम ने प्रशिक्षण प्राप्त किया।

प्रशिक्षक के रूप में डॉ राजेश कुमार तथा डॉ सत्यनारायण के द्वारा सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों, एएनएम/जीएनएम को प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान पीएसआई इंडिया कि मैंनेजर कुमारी सुरभि के द्वारा कहा गया कि परिवार नियोजन कार्यक्रम के तहत बास्केट ऑफ चॉइस में एमपीए सबकुटेनियस एक नया साधन है  तथा इसे लगाना भी बेहद सरल है एवं यह लाभार्थियों के लिए दर्दरहित है तथा दवा की मात्रा कम होने के कारण अत्यधिक सुविधाजनक है। साथ ही इनके द्वारा अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं उप स्वास्थ्य केंद्रों पर आने वाले सभी लाभार्थियों को एमपीए सबकुटेनियस की जानकारी दी जाए। 

इसके अलावा एमपीए सबकुटेनियस की एचएमआईएस पोर्टल पर रिपोर्टिंग की चर्चा की गई। पीएसआई इंडिया के मैनेजर शिशिर कुमार के द्वारा एमपीए सबकुटेनियस के विषय में विस्तार पूर्वक चर्चा की गई तथा किन-किन संस्थानों में एमपीए सबकुटेनियस की सुविधा उपलब्ध है इसके बारे में बताया गया। प्रखंड स्वास्थ्य प्रबंधक रेणु कुमारी के द्वारा कहा गया कि क्लाइंट मोबिलाइजेशन पर फोकस करते हुए ज्यादा से ज्यादा लाभार्थियों को एमपीए सबकुटेनियस की सेवा दी जाए, साथ ही सभी एएनएम को प्रति माह एमपीए सबकुटेनियस लगवाने का लक्ष्य दिया। इस मौके पर प्रखंड स्तरीय चिकित्सा पदाधिकारी एवं अन्य सदस्य सम्मिलित हुए।
 

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August 25, 2025
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डॉ० रौशन पाण्डेय को भारत रत्नाकर पुरस्कार से सम्मानित

नमो गंगे सभागार में आयोजित16 वी आरोग्य संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों के आए होमियोपैथिक के पुरोधाओं की उपस्थिति

सिवान जिले के प्रखंड लकड़ी नवीगंज के मूसेपुर गांव के निवाशी सुप्रसिद्ध होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ० शैलेश पांडेय एवं मालती देवी के सुपुत्र तथा प्रख्यात समाजसेवी ,शिक्षाविद एवं होमियोपैथी को ग्रामीण स्तर पर उतारने वाले महान चिकित्सक स्व०  डॉ०तपेश्वर पांडेय जी के सुपौत्र डॉ० रौशन पाण्डेय जी को उनके होमियोपैथिक के क्षेत्र में रिसर्च संबंधित इलाज करने एवं जन जागरूकता के माध्यम से लोगों को स्वास्थ के प्रति सचेत एवं जागरूक करने तथा होमियोपैथिक को जन जन की चिकित्सा पद्धति बनाने के लिए किए जा रहे उनके प्रयासों के लिए उन्हें भारत रत्नाकर पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया गया है।

ये पुरस्कार उन्हें गाजियाबाद के मोहन नगर स्थित नमो गंगे सभागार में आयोजित16 वी आरोग्य संगोष्ठी में देश के विभिन्न हिस्सों के आए होमियोपैथिक के पुरोधाओं की उपस्थिति में दिया गया।। डॉ० रौशन पाण्डेय ने इस आरोग्य संगोष्ठी में होमियोपैथी दवाओं द्वारा खुद के प्रयास से किए गए रिसर्च संबंधित इलाज को प्रस्तुत भी किया गया।। डॉ० पांडेय इस रिसर्च समिट में बिहार का नेतृत्व करने वाले एक मात्र होमियोपैथिक चिकित्सक थे।


पिता डॉक्टर  शैलेश पाण्डेय ने  इस मौके पर बहुत ही खुशी जताते हुए बताया कि डॉ० रौशन ने गांव के मान सम्मान को तो बढ़ाया ही है साथ ही साथ प्रखंड जिला और पूरे बिहार को भी गौरवान्वित किया है।।माता मालती देवी ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि हमारे पूरे परिवार को गर्व है अपने बेटे पर।उनके इस सम्मान से पूरे गांव में खुशी का माहौल है ।। इस सम्मान के लिए गोरेयाकोठी के वर्तमान विधायक देवेशकांत सिंह ने बधाई देते हुए कहा कि डॉ० रौशन पाण्डेय ने न सिर्फ होमियोपैथी के सम्मान को बढ़ाया बल्कि पूरे बिहार का नेतृत्व किया है जो हम सभी के लिए गर्व का पल है, हम सभी उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामना देते है।

पटना एम्स के कैंसर विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ० जगजीत पांडेय जी ने डॉ० पांडेय के इस सम्मान पर उन्हें बधाई देते हुए कहा कि आज हम सभी बहुत खुश है साथ ही पूरे सारण समेत महराजगंज लोकसभा क्षेत्र के लोगों के तरफ से है उन्हें बधाई देते है।। डॉक्टर रौशन पाण्डेय के इस उपलब्धि पर गोरेयाकोठी के पूर्व प्रमुख सह कांग्रेस नेता अशोक सिंह,मुखिया मनोज सिंह,सरपंच लवलीन चौधरी,भाजपा मंडल उपाध्यक्ष राकेश पांडेय जी,भाजपा के क्षेत्रीय प्रभारी राजीव तिवारी,पूर्व विधायक डॉ० देव रंजन सिंह , डॉ० अन्नू बाबू, डॉ० मोतीलाल पांडेय, डॉ० अविनाश पांडे, डॉ० अमृता पांडेय,सतीश पांडेय,विकाश पांडेय,बहन डॉ० मधु पांडेय ,अधिवक्ता शिवाकांत पांडेय,कौशल सिंह,शिक्षक मोतीलाल प्रसाद समेत तमाम ग्रामीण बंधुओं ने बधाई दिया।।
 

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August 25, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 15

कहाँ गुम हो गए केंचुआ को कठपुतली बनाकर नाच दिखाने वाले

PM मोदी के घर आई नन्ही सी 'दीपज्योति', गोद में लेकर साथ खेलते दिखे  प्रधानमंत्री, देखें VIDEO | Navbharat Live

सत्ता का वरदहस्त अगर मिल जाय तो घोड़ा ढ़ाई घर नहीं साढ़े पांच घर चलता है यानी उसे फिर किसी की परवाह नहीं होती है चाहे फिर वह सुप्रीम कोर्ट ही क्यों ना हो। सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को लगातार समझा रहा था बिहार में किये जा रहे एसआईआर की रीति-नीति को लेकर, वह एडवाइज कर रहा था स्वीकार किए जा रहे दस्तावेजों को लेकर, वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख वोटरों के नाम को लेकर। मगर चुनाव आयोग तो हवा में उड़ रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा जिन दस्तावेजों को स्वीकार करने का परामर्श दिया चुनाव आयोग ने उसकी अनसुनी कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने वोटर लिस्ट से हटाये गये 65 लाख लोगों की लिस्ट शपथ-पत्र के साथ कारण बताते हुए पेश करने को कहा तो चुनाव आयोग ने शपथ-पत्र में लिख दिया कि वह कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है यानी वह सुप्रीम कोर्ट से भी सुप्रीम है। एक कहावत है कि लातों के देव बातों से नहीं मानते। कुछ यही हाल चुनाव आयोग का है और हो भी क्यों ना, जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट को कड़ा रुख अख्तियार करते हुए चुनाव आयोग को आदेश देना पड़ा कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटे गये हैं मय कारण उनकी सूची बूथवार लगाई जावे। यानी देशवासियों के बीच तकरीबन - तकरीबन खत्म हो चुकी चुनाव आयोग की साख को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट को ही आगे आना पड़ा और उसने एक बार फिर अपने आदेश में साफ तौर पर कह दिया कि जो नाम हटाये गये हैं अब उसके लिए कोई जरूरी नहीं है कि मतदाता सशरीर चुनाव प्रक्रिया से जुड़े, किसी अधिकारी के सामने पेश होकर ये बताये कि मैं जिंदा हूं (सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कह कर चुनाव आयोग को इस शर्मिंदगी से बचा लिया कि वह किस मुंह से कहता है कि हमने पहले आपको मार डाला था अब जिंदा कर रहे हैं) जिलेवार लगने वाली मृतकों की कतार को खत्म करते हुए कह दिया गया कि आप जहां पर हैं वहीं से आनलाईन आवेदन कर सकते हैं। चुनाव आयोग ने भी मारिया के आगे भूत भी डरता है कि तर्ज पर कह दिया कि आधार कार्ड के आधार पर भी वोटर आईडी कार्ड बना कर दे दिया जाएगा। जिस काम को चुनाव आयोग को प्रारंभ में ही कर लेना था उस काम को उसने सुप्रीम कोर्ट की डांट खाने के बाद, देश भर में अपनी छीछालेदर कराने के बाद, अपनी साख को बट्टा लगाने के बाद करना पड़ा। तो सवाल उठता है कि आधार कार्ड को नहीं मानने का फैसला किसका था ? और जिसने ऐसा करने को कहा वह चुनाव आयोग की इज्जत बचाने सामने क्यों नहीं आया ?

14 दिन में ही SIR का बिहार में पूरा हो गया इतना काम, अभी तो 17 दिन  बाकी..क्या है चुनाव आयोग का दावा?

बिहार की धरती पर इन दिनों चुनाव आयोग के ही दस्तावेजी विश्लेषण से निकला वोट चोरी का सच चहुंओर गूंज रहा है। चुनाव आयोग के ही दस्तावेजों का भगीरथी मंथन करने के बाद जिन चार-पांच तरीके से वोटों की हेराफेरी का खेला किया गया और उसके बाद जब मुख्य चुनाव आयुक्त अपनी टीम के साथ प्रेस कांफ्रेंस करने सामने आये तो लगा कि वे वोट चोरी जैसे घिनौनै आरोप का मुंह तोड़ जवाब देंगे लेकिन वे तो प्रेस कांफ्रेंस में अपना ही मुंह न केवल तुड़वा बैठे बल्कि कालिख तक लगा लिए। वह तो अच्छा हुआ कि उनके द्वारा जो - जो बोला गया उनने चुल्लू भर पानी में डुबकी नहीं लगाई ! चुनाव आयोग की वोट चोरी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ चिपक कर नारे की शक्ल में तब्दील होकर चिपक सा गया है। वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा न केवल बिहार की गलियों में चारों खूंट गूंज रहा है बल्कि गत दिनों सदन की कार्यवाही के अंतिम दिवस जब प्रधानमंत्री बतौर रस्म अदायगी सदन में दाखिल हो रहे थे तो उनका स्वागत करते हुए विपक्ष ने एक स्वर में वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा गुंजायमान किया था और इस नारे को लेकर 1 सितम्बर के बाद राज्य दर राज्य पूरे देश में ले जाने की तैयारी भारत जोड़ो यात्रा की तर्ज पर किये जाने की खबर है। क्योंकि 2024 का लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए तमाम चुनाव में वोट चोरी का साया छा सा गया है खासतौर से महाराष्ट्र, हरियाणा, दिल्ली। वैसे देखा जाय तो नरेन्द्र मोदी न तो बिहार के रहने वाले हैं न ही बिहार का प्रतिनिधित्व करते हैं। हां यह बात जरूर है कि बीजेपी के पास बिहार में एक भी ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी बदौलत बीजेपी चुनावी नैया पार लगा सके उसके पास तो गांव की पंचायत से लेकर देश की पंचायत तक की चुनावी नैया पार करने के लिए एक ही चेहरा है जिसका नाम है नरेन्द्र मोदी। और शायद इसीलिए नरेन्द्र मोदी से चिपका हुआ हर नारा चुनाव के दौरान लगाना प्रासंगिक हो जाता है।

सार्वजनिक हो वोटिंग डेटा'; ADR की अपील पर सुप्रीम कोर्ट की फटकार, याचिका की  टाइमिंग पर उठाए सवाल - supreme court hearing plea on actual voter numbers  form 17c election commission ...

सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग जमीन की ओर देखने की जहमत उठाता हुआ दिखाई दे रहा है। चुनाव आयोग ने पहली बार कहा है कि सभी राजनैतिक दल मिलकर सामने आयें और काटे गये नामों को जोड़ने में सहयोग करें। जबकि बिहार में एसआईआर शुरू करने के पहले ऐसा कोई आव्हान नहीं किया गया था जो कि उसे करना चाहिए था। मजेदार बात यह है कि देश की सत्ता भी खामोश थी। तो क्या सब कुछ दिल्ली सत्ता के लिए ही किया जा रहा था ? और अब जब बिहार की जमीन से नारों की शक्ल में सीथे - सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा करती हुई आवाजें आने लगी हैं जो 2024 में हुए लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए सभी चुनावों को लपेटे में लेने लगी हैं तो इलेक्शन कमीशन सुप्रीम कोर्ट के सामने चर्चा के दौरान कहता है कि हम पर भरोसा रखिए, हमें कुछ समय दीजिए, हम बेहतर तस्वीर सामने रखेंगे और साबित करेंगे कि किसी को बाहर नहीं निकाला गया है। शायद चुनाव आयोग के जहन में ये बात आ रही है कि जब हमारी साख ही नहीं बचेगी तो फिर न तो चुनाव आयोग का कोई मतलब रह  जायेगा और न ही चुनाव का। तो क्या बिहार से ये आवाज आ रही है कि अब बीजेपी अपना बोरिया-बिस्तर समेट ले या फिर ये मैसेज है कि कुछ भी हो जाय बीजेपी जीत जायेगी ?

राहुल गांधी बनाम चुनाव आयोग: सियासी रूप से मजबूत, कानूनी नजरिए से खोखला है  कांग्रेस नेता का दावा! - Rahul Gandhi vs Election Commission Politically  Loud but Legally Hollow ntc ...

बोरिया-बिस्तर समेट लेने की बात पर तो विपक्ष भी भरोसा नहीं कर रहा है इसीलिए वह कहीं भी ढील देने को तैयार नहीं है। कांग्रेस तो बकायदा एक रणनीति के तहत देश के भीतर चुनाव आयोग के दस्तावेजों के जरिए निकले सबूतों के साथ यह बताने के लिए निकलने का प्रोग्राम बनाने जा रही है जिसमें वह बताएगी कि नरेन्द्र मोदी ने फर्जी वोटों से जीत हासिल कर प्रधानमंत्री की कुर्सी हथियाई है। जिस तरह से संसद से लेकर सड़क तक नरेन्द्र मोदी को वोट चोरी में लपेटा जा रहा है उसकी काट अभी तक न तो मोदी ढूंढ पाये हैं न बीजेपी। बिहार में आकर पीएम नरेन्द्र ने जिन मुद्दों का जिक्र किया उन मुद्दों ने पीएम नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार को ही नाकारा, निकम्मा करार देते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया है ! प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनमानस के बीच कहा कि "देश में घुसपैठियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है। बिहार के सीमावर्ती जिलों में तेजी से डेमोग्राफी बदल रही है। इसलिए एनडीए सरकार ने तय किया है कि देश का भविष्य घुसपैठियों को नहीं तय करने देंगे" । बात तो ठीक ही कर रहे हैं नरेन्द्र मोदी। लेकिन ऐसा कहते हुए वो ये भूल जाते हैं कि बीते 11 बरस से वे ही तो देश के प्रधानमंत्री हैं। सीमाओं की सुरक्षा उनकी सरकार की जिम्मेदारी है और अगर देश के भीतर घुसपैठ हो रही है तो यह पीएम मोदी और उनकी समूची सरकार का फेलुअर है। यानी आप और आपकी सरकार पूरे तरीके से नाकारा और निकम्मी है। क्योंकि ये घुसपैठिए आज दो-चार-छै महीने में नहीं आये हैं। तो इसका मतलब ये भी है कि आपकी जीत, नितीश कुमार की जीत, चिराग पासवान की जीत, आप लोगों की पार्टी की जीत घुसपैठियों के वोट से हुई है यानी आप लोगों की जीत फर्जी है।

PM Modi LIVE | Narendra Modi Bihar Speech Photos Update; Nitish Kumar -  Gaya Begusarai Bridge | गयाजी में मोदी बोले- घुसपैठियों को देश से निकालकर  रहेंगे: बेगूसराय में 6 लेन ब्रिज

नरेन्द्र मोदी का घुसपैठियों को लेकर दिया गया बयान कहीं न कहीं चुनाव आयोग को सपोर्ट करता हुआ भी दिखाई देता है। दरअसल पीएम मोदी की नींद इसलिए भी उड़ी हुई है कि तमाम मुद्दों की जद में बिहार चुनाव आकर खड़ा हो गया है। इज्जत दांव पर लगी हुई है उस शख्स की जो बीते दो दशकों से ज्यादा समय से सूबे का मुखिया है तथा बीते 11 बरस से जो केंद्र की सरकार चला रहा है वह उसके साथ गलबहियाँ डाले खड़ा है इसके बावजूद भी हाई वोल्टेज चुनाव में अगर हार हो जाती है तो इसके मतलब और मायने बहुत साफ होंगे कि उस बिहार की जनता, जो देश में सबसे गरीब है, जहां सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, जहां किसानों की आय सबसे कम है, जहां की प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, जहां का हर दूसरा व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे है, ने केंद्र सरकार की नीतियों और तमाम दावों को खारिज कर दिया है। चुनाव आयोग दुनिया भर की बातें तो करता है लेकिन जब वोटर लिस्ट की बात आती है तो खामोश हो जाता है और वोटर लिस्ट को लेकर ही राहुल गांधी द्वारा रैली दर रैली सवाल उठाए जा रहे हैं और बिहार में विपक्ष द्वारा जो रैली निकाली जा रही है उसमें जो भीड़ उमड़ती है इसके बावजूद जबकि यह मुद्दा न तो बेरोजगारी से जुड़ा हुआ है, न ही मंहगाई से, न ही पिछड़े-एससी-एसटी तबके से यह मुद्दा तो देश के भीतर लोकतंत्र की रक्षा करने, संविधान के साथ खड़े होने, कानून का राज होने के साथ ही लोकतांत्रिक पिलर्स को बचाने की एक ऐसी कवायद से जुड़ा हुआ है जिसमें सबसे बड़ा पिलर कोई दूसरा शख्स नहीं बल्कि जनता ही है। यानी यह किसी भी स्कैम, किसी भी करप्शन से बड़ा मुद्दा है। मगर इन सबके बीच चलने वाली पारंपरिक राजनीति पर चलते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कोशिश यह कहते हुए की कि "एनडीए सरकार भृष्टाचार के खिलाफ एक ऐसा कानून लाई है जिसके दायरे में देश का पीएम भी है, इस कानून में मुख्यमंत्री और मंत्री को भी शामिल किया गया है। जब ये कानून बन जायेगा तो प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री या फिर कोई भी मंत्री उसे गिरफ्तारी के 30 दिन के अंदर जमानत लेनी होगी और अगर जमानत नहीं मिली तो 31 वें दिन उसे कुर्सी छोड़नी पड़ेगी"।

pm narendra says if clerk lost job after going to jail why not prime  minister जेल जाने पर क्लर्क खो देता है नौकरी तो PM की कुर्सी क्यों बचे;  विधेयक पर बोले

इस दौर में यह सवाल भी खड़ा हो गया है कि "जेल भेजता कौन है और जो जेल भेज रहा है क्या वही कानून ला रहा है ? सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री को जेल भेजेगा कौन ? नरेन्द्र मोदी, अमित शाह और उनके तमाम सिपहसालारों ने अपने राजनीतिक जीवन में जिस तरह से हेड स्पीचें दी हैं अगर देश में कानून का राज होता तो ये तमाम लोग आज भी जेल में सड़ रहे होते मौजूदा कानून के रहते ही। मगर देश भर की पुलिस तो भाजपाई प्यादे के खिलाफ भी एफआईआर लिखने का साहस जुटाती हुई नहीं दिखती है। सबसे बड़ा अपराध तो यही है कि कानून का राज ही न रहे और सत्ता कानून का जिक्र करे। संविधान गायब होने की आवाज विपक्ष लगाये और सत्ता कहे कि हम जो कह रहे हैं यही कानून है। इमर्जेंसी काल में इंदिरा गांधी की तानाशाही का मुद्दा उभरा था लेकिन वोटर से वोट का अधिकार छीन लिया जाये ये मुद्दा नहीं बना था। इसी तरह मंडल - कमंडल के दौर में भी देश के भीतर ऐसी परिस्थिति पैदा नहीं हुई थी जैसी परिस्थिति वर्तमान दौर में देश के भीतर बनाई जा चुकी है और इसीलिए विपक्ष द्वारा देश में पहली बार डेमोक्रेसी के प्रतीक "जनता" को ही मुद्दा बना कर पेश किया जा रहा है। चुनाव आयोग पर जो दस्तावेजी वोट चोरी का आरोप लगा और चुनाव आयोग उस आरोप को दस्तावेजी तरीके से नकारने में नाकाम रहा शायद इसीलिए आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बिहारियों को समझने की कोशिश में लगे हैं कि "अगर हमें लगेगा कि चुनाव परिणाम पहले ही तय किए जा चुके हैं तो हम इस चुनाव से बाहर हो जायेंगे। तो क्या बिहार में सुलग रही आग आने वाले दिनों में पूरे देश को अपने आगोश में ले लेगी या फिर यह एक मैसेज है सचेत रहें हो जाने का मौजूदा राजनीतिक सत्ता के लिए, चुनाव आयोग के साथ ही उन तमाम संवैधानिक संस्थानों के लिए जो अपना काम नहीं कर रहे हैं। ये परिस्थिति आने वाले समय में पूरे देश को अपनी जद में नहीं लेगी, कहना मुश्किल है ये आवाज तो शुरुआत है बिहार की जमीं से।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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August 25, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 14

नीति पर नहीं, नियत पर है हंगामा बरपा

सांसदों के निलंबन और संसद की सुरक्षा में सेंध के बीच कोई संबंध नहीं: लोकसभा  अध्यक्ष ओम बिरला

बुधवार की दोपहर में जैसे ही 2 बजे वैसे ही लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने कहा आइटम नम्बर 21, 22, 23 और देश के गृहमंत्री अमित शाह ने खड़े होकर कहा "भारत के संविधान में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने की अनुमति दी जाय। महोदय मैं प्रस्ताव करता हूं कि जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने की अनुमति दी जाय। महोदय मैं प्रस्ताव करता हूं कि संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने की अनुमति दी जावे"

वैसे तो गृहमंत्री अमित शाह ने सदन के पटल पर तीन विधेयक रखने का प्रस्ताव किया लेकिन सदन के भीतर हंगामा बरपा संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 में संशोधन करने वाले विधेयक को पुनर्स्थापित करने वाले प्रस्ताव को लेकर। गृहमंत्री ने प्रस्ताव में जिस संशोधन का जिक्र किया है उसमें लिखा है कि "निर्वाचित प्रतिनिधि भारत की जनता की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं उनसै उम्मीद की जाती है कि वो राजनीतिक स्वार्थों से ऊपर उठ कर केवल जनहित का काम करें। गंभीर आरोपों का सामना कर रहे, गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए किसी भी मंत्री से संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतो को नुकसान पहुंच सकता है। इससे लोगों का व्यवस्था पर भरोसा कम हो जाएगा। गंभीर आपराधिक आरोपों के कारण गिरफ्तार और हिरासत में लिए गए किसी मंत्री को हटाने का संविधान में कोई प्रावधान ही नहीं है। तो इसे देखते हुए प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र व राज्य सरकार के मंत्रियों को हटाने के लिए संविधान के अनुच्छेद 75, 164, 239 एए में संशोधन की जरूरत है।

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इसे पढ़ कर तो कोई भी कहेगा कि इसमें क्या गलत लिखा गया है। संविधान में इस तरह का संशोधन तो होना ही चाहिए। क्योंकि केंद्र हो राज्य हर किसी का मंत्रीमंडल गंभीरतम अपराधिक मामलों में आकंठ डूबे हुए माननीयों से भरा पड़ा है। देश देख रहा है कि आज के दौर में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, केंद्र और राज्य के मंत्री सभी कहीं न कहीं दागदार छबि को लिए हुए हैं। तो अगर एक ऐसा कानून बन जाय कि सिर्फ़ 30 दिन जेल में रहने पर कुर्सी चली जाय तो क्या बुरा है। इसमें तो प्रधानमंत्री को भी नहीं बख्शा गया है, उन्हें भी शामिल कर लिया गया है। सवाल है कि तो फिर विधेयक पेश होते ही सदन में हंगामा क्यों बरपा ? हंगामा बरपने के मूल में सरकार की नीति नहीं नियत है। बीते 11 सालों का इतिहास बताता है कि सरकार ने किस तरीके से अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए हर सरकारी ऐजेंसियों का खुलकर दुरुपयोग किया। यहां तक कि विरोधियों को प्रताड़ित करने के लिए अदालतों तक का उपयोग करने में कोताही नहीं बरती गई। सारे देश ने देखा कि किस तरह से ईडी, सीबीआई, आईटी के जरिए विरोधियों के सामने दो विकल्प रखे गए या तो बीजेपी ज्वाइन करिए या फिर जेल के सींखचों के पीछे जाइए। प्रधानमंत्री सरेआम जनता के बीच मंच पर खड़े होकर जिन नेताओं के लिए चक्की पीसिंग - चक्की पीसिंग का जप किया करते थे उनके बीजेपी ज्वाइन करते ही उनके सारे पाप पुण्य में बदल गये और जिन्होंने बीजेपी ज्वाइन नहीं की उन्हें लम्बे समय तक जेल में रहना पड़ा और इसमें अदालतें भी अपना योगदान देने में पीछे नहीं रहीं।

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अजीत पवार, एकनाथ शिंदे, अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, कैप्टन अमरिंदर सिंह, फारूक अब्दुल्ला, भूपेंदर सिंह हुड्डा, बी एस यदुरप्पा, अशोक चव्हाण, मायावती, अखिलेश यादव, हेमंत सोरेन, सिध्दारम्मैया जैसे न जाने कितने नाम हैं। सिध्दारम्मैया के मामले में तो अदालत को यह तक कहना पड़ा था कि आप ये क्या कर रहे हैं, यहां तक कि उनकी पत्नी को भी लपेटा गया था। ईडी ने तो बकायदा 129 नामों की लिस्ट देश की सबसे बड़ी अदालत को सौंपी जिसमें एमपी, एमएलए, एमएलसी शामिल थे लेकिन ईडी सिर्फ दो मामलों को छोड़कर किसी के भी खिलाफ मामला साबित नहीं कर सकी जिसके लिए उसे जेल भेजा गया था। झारखंड के पूर्व मंत्री हरिनारायण राय जिन्हें 2017 में मनी लांड्रिंग केस में 5 लाख का जुर्माना और 7 साल की सजा सुनाई गई थी। इसी तरह झारखंड के ही एक दूसरे पूर्व मंत्री अनोश एक्का को भी 2 करोड़ रुपए का फाइन और 7 साल कैद की सजा हुई थी। लेकिन डीएमके के ए राजा, कनींमोजी, दयानिधि मारन, टीएमसी के सुदीप बंदोपाध्याय, तपस पाल, अजय बोस, कुणाल घोष, अर्पिता घोष, शताब्दी राय, स्वागत राय, काकोली राय, अभिषेक बैनर्जी, कांग्रेस में रहते हुए नवीन जिंदल, रेवंत रेड्डी, हिमन्त विश्र्व शर्मा  आदि-आदि फेहरिस्त बड़ी लम्बी है ये सारे नाम एक-एक करके गायब होते चले गए।

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सवाल पूछा जा सकता है कि बीजेपी जब 2019 में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में थी तब उसने संघ राज्य क्षेत्र शासन अधिनियम 1963 में संवैधानिक संशोधन के बारे में नहीं सोचा और जब आज के दौर में सरकार बैसाखी के भरोसे चल रही है तब अचानक से गृहमंत्री ने मंगलवार को सदन के पटल पर अनुच्छेद 75, 164, 239 एए में संशोधन करने का विधेयक पेश कर दिया, आखिर क्यों ? इसकी टाइमिंग और परिस्थितियां बहुत महत्वपूर्ण है। उप राष्ट्रपति जगदीश धनखड को चलता कर दिये जाने के बाद खाली हुई कुर्सी को भरने के लिए चुनाव होने जा रहे हैं। एनडीए ने जहां तमिलनाडु के रहने वाले सीपी राधाकृष्णन, जो वर्तमान में महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं, को अपना उम्मीदवार बनाया है तो वहीं इंडिया गठबंधन द्वारा भी अखंडित आंध्र प्रदेश के पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज बी सुदर्शन रेड्डी को उम्मीदवार बनाया गया है। जहां एनडीए ने राधाकृष्णन को उम्मीदवार बना कर डीएमके पर मानसिक दबाव बनाने की कोशिश की है तो इंडिया गठबंधन ने भी पलटवार करते हुए सुदर्शन को मैदान में उतार कर चंद्रबाबू नायडू और जगन मोहन रेड्डी पर भावनात्मक प्रेसर डालने की चाल चली है। बैसाखी के सहारे चल रही मोदी की सबसे बड़ी बैसाखी चंद्रबाबू नायडू ही हैं। चंद्रबाबू नायडू का राजनैतिक इतिहास बताता है कि वे संभवतः रामविलास पासवान और विद्याचरण शुक्ल के बाद तीसरे राजनेता हैं जिन्होंने डूबती हुई नाव पर सवारी नहीं की है।

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जगन मोहन रेड्डी ने जैसे ही ट्यूट किया कि चंद्रबाबू नायडू हाटलाइन पर सीधे-सीधे कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी से पेंगे लड़ा रहे हैं। दिल्ली दरबार के कान खड़े हो गए। क्योंकि चंद्रबाबू नायडू सत्ता का बैलेंस बनाये रखने के लिए मोदी सरकार की नजर में एक प्यादे बतौर हैं वैसे ही जैसे नितीश कुमार, चिराग पासवान हैं। और अगर ये प्यादे बजीर बन गये तो दिल्ली में बैठी मोदी सरकार को ना केवल मुश्किल होगी बल्कि मोदी सरकार अल्पमत में आकर भूतपूर्व भी हो सकती है । जिस तरह की खबरें इंडिया गठबंधन के खेमे से छनकर आ रही हैं वे मोदी सरकार की धड़कनों को असामान्य बनाने के लिए काफी हैं। खबर है कि बतौर उप राष्ट्रपति पद के लिए पूर्व जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी का नाम चंद्रबाबू नायडू के कहने पर ही फाइनल किया गया है। यानी अब मामला अटकलबाजियों से बाहर निकल कर हकीकत में बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। अगर चंद्रबाबू नायडू इंडिया गठबंधन के साथ खड़े हो रहे हैं तो मतलब साफ है कि मोदी की नाव डूब रही है तो फिर डूबती नाव पर सवार क्यों रहा जाय ? राजनीति का सच भी यही है। कल तक उप राष्ट्रपति चुनाव को औपचारिक प्रक्रिया मानने वाले नरेन्द्र मोदी की सांसें तस्वीर पलट जाने से फूली हुई है कि अगर नायडू इंडिया गठबंधन के साथ चले गए तो एनडीए की पूरी राजनीति ध्वस्त हो जायेगी और इंडिया गठबंधन को एक ऐसी जीत मिल जायेगी जो एक झटके में मोदी की बची खुची छबि को भी धूमिल कर देगी क्योंकि राजनीति में प्रतीक बहुत मायने रखते हैं। खुदा ना खास्ता इंडिया गठबंधन ने उप राष्ट्रपति का चुनाव जीत लिया तो यह माना जायेगा कि मोदी अपराजेय नहीं है। विपक्ष में ताकत है और वह एकजुट होकर जीत सकता है और यही डर मोदी सहित बीजेपी नेताओं की नींद उड़ा रहा है।

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दिल्ली से लेकर चैन्नई और हैदराबाद तक हर गलियारे में यही चर्चा है कि क्या नायडू सच में पलटी मार चुके हैं। मगर राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि नायडू पलटी मारने का फैसला तो तब ले सकेंगे न जब उनको ये फुल कांफीडेंस होगा कि पलटी मारने के बाद उनकी अपनी कुर्सी बची रहेगी। अमित शाह द्वारा लाये गये विधेयक के बारे में कहा जा रहा है कि क्यों न ऐसी व्यवस्था कर ली जाय कि पलटी मारने वाला भी गद्दी विहीन हो जाय। वैसे तो चंद्रबाबू नायडू के मामलों की सूची लम्बी है फिर भी तीन बड़े मामलों का जिक्र तो किया ही जा सकता है। पहला मामला ही 371 करोड़ रुपये के सरकारी धन के गबन का ही है। दूसरा मामला स्किल डवलपमेंट स्कैम का है और तीसरा मामला आंध्र प्रदेश की राजधानी अमरावती में एक हजार एक सौ एकड़ जमीन घोटाले से जुड़ा हुआ है। इसमें तो नायडू सहित चार लोगों पर बकायदा आईपीसी की धारा 420, 409, 506, 166, 167, 217, 109 के साथ ही एससी एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया था। वो तो राजनीतिक हवा का रुख भांप कर नायडू ने मोदी की गोदी में बैठकर अंगूठा चूसने में ही भलाई समझी और सारी फाइलों को बस्ते में बांध दिया गया। अगर उन फाइलों को खोल दिया जाय और राज्यपाल को सशक बनाने वाला नया कानून आ जाय और राज्यपाल पहले से दर्ज आपराधिक मामले में संज्ञान लेने की अनुमति दे दें तधा अदालत भी कोताही बरते बिना जेल भेज दे, ठीक वैसे ही जैसे एक वक्त अरविंद केजरीवाल को जेल भेज दिया गया था, ठीक वैसे ही जैसे एक वक्त हेमंत सोरेन को जेल भेज दिया गया था और सरकार के रुख को भांपते हुए 30 दिन जेल की रोटियाँ खिलाई जाती रहें यानी जमानत ना मिले तो 31 वें दिन कुर्सी चली जायेगी।

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तो सवाल उठता है कि क्या चंद्रबाबू नायडू मौजूदा सत्ता की नजर में खलनायक के रूप में सामने आना चाहेंगे या फिर मोदी सत्ता की बैसाखी बने रह कर दक्षिणी राजनीतिक अस्मिता की नजर में खलनायक बनना पसंद करेंगे। चंद्रबाबू के सामने मुश्किल तो है अपनी कुर्सी और अपनी राजनीति, अपने वोट बैंक को बचाये रखने की। फिलहाल गृहमंत्री द्वारा पेश विधेयक जेपीसी को भेज दिया गया है। जिस पर 31 सदस्यीय कमेटी (लोकसभा के 21 एवं राज्यसभा के 10) विचार कर अपनी रिपोर्ट शीतकालीन सत्र में पेश करेगी। अगर इस बीच एक झटके में नायडू अपना समर्थन वापस ले लेते हैं और हिचकोले खाती सरकार की नजाकत को समझते हुए नितीश कुमार, चिराग पासवान, एकनाथ शिंदे और अजित पवार ने भी नायडू की राह पकड़ ली तो इनकी सारी मुश्किलों का समाधान भी हो जायेगा। मोदी सत्ता के सहयोगियों का यह कदम केंचुआ को भी राहत की सांस दे सकता है क्योंकि इस दौर में जिस तरीके से देश भर में केंचुआ की छीछालेदर हो कर साख पर बट्टा लग रहा है उससे बाहर निकलने का रास्ता भी मिल जायेगा। सदन में रोचक परिस्थिति तब पैदा हो गई जब कांग्रेसी सांसद वेणुगोपाल की टिप्पणी पर गृहमंत्री अमित शाह नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे तो ऐसा लगा जैसे कालनेमि शुचिता का उपदेश दे रहा हो। देश में नैतिकता का पाठ पार्लियामेंट के भीतर से निकले इसकी तो कल्पना भी नहीं करनी चाहिए क्योंकि पूरा देश जानता है कि 16 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा इलेक्टोरल बांड्स के दोषी कौन हैं, हर कोई जानता है कि 10 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा प्रधानमंत्री केयर फंड का दोषी कौन है, हर कोई जानता है कि गुडग़ांव से द्वारका के बीच बनी सड़क में किस तरह से सरकारी खजाने को लूटा गया है, पूरा देश जानता है कि किस तरह से एक ही टेलिफ़ोन नम्बर 9..9..9..9 (दस बार) से 7.50 लाख लाभार्थियों के नाम खास अस्पतालों ने प्रधानमंत्री आयुष्मान योजना से पैसे लिये हैं। इन सारे घपलों घोटालों पर न सरकार ने कोई कार्रवाई की न ही अदालतों ने। यही कारण है कि सदन के भीतर विधेयक पेश होते ही हंगामा होने लगा क्योंकि मोदी सत्ता ने विधेयक पेश कर विपक्ष के साथ ही अपनी बैसाखियों और अपने सांसदों तक को ये मैसेज दे दिया है कि हमको सत्ता से उठाने का आपने तय किया तो चाहे यह कानून न्याय विरोधी, संविधान विरोधी ही क्यों न हो कोई मायने नहीं रखेगा। असली परीक्षा और उसके नतीजे की तारीख 9 सितम्बर तय है जब तय हो जायेगा कि चंद्रबाबू नायडू किस करवट बैठे हैं। फिलहाल तो बीजेपी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। मोदी का कुनबा और कुर्सी दोनों हिल रही है और इसे हिला रहा है एक ही नाम।

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चलते-चलते

      आईना वही रहता है चेहरे बदल जाते हैं

दूसरों थूका गया थूक खुद पर ही पलट कर आता है या यूं कहें कि इतिहास खुद को दुहराता है केवल किरदार बदल जाते हैं इसका नजारा संसद सत्र के आखिरी दिन लोकसभा और राज्यसभा में उस समय जीवंत हो गया जब लोकसभा में सत्र समापन दिवस पर रस्म अदायगी के लिए पहुंचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए विपक्ष ने एक स्वर में नारे लगाये "वोट चोर गद्दी छोड़" तथा राज्यसभा में उपस्थित गृहमंत्री अमित शाह के लिए नारे लग रहे थे" तड़ीपार गो बैक - गो बैक" । जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह को ही जरूरत है शुचिता और नैतिकता का पाढ़ पढ़ने की। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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