सुल्तानपुर जिले की घटना है के बाद परिवार को आर्थिक सामाजिक और प्रशासन से मदद फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष आशुतोष उपाध्याय के द्वारा कराया गया
लगातार उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण हत्या जारी है जिसका एक और घटना ने साबित कर दिया है। आपको बताएं कि सुल्तानपुर जिले के जयसिंहपुर विधानसभा में चंदन शर्मा 21 वर्ष जो घर का इकलौता लड़का था। इसी सप्ताह में देर शाम को वहां के दबंग और खनन माफिया जो गरीब ब्राह्मण को गाड़ी से कुचलकर बेरहमी से हत्या कर दिए। उत्तर प्रदेश में खनन माफिया का बड़ा बोलबाला हो चुका हैं और इसका सबसे ज्यादा खामियाजा ब्राह्मण परिवारों को झेलना पड़ता है। वहीं पुलिस ने सक्रिय होकर सुल्तानपुर पुलिस प्रशासन और पुलिस निरीक्षक सुल्तानपुर के आश्वासन पर दो दिन में सभी आरोपियों को पकड़ा जाएगा। वहीं मिली जानकारी के अनुसार अब तक पांच आरोपी पकड़े गए हैं।
परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है। परिवार को आदर्श ब्राह्मण फाउंडेशन की तरफ से 21000 रुपए और छोटी बहन के पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने का जिम्मेदारी लिया गया है। आदर्श ब्राह्मण फाउंडेशन के प्रदेश अध्यक्ष धीरेंद्र त्रिपाठी और आदर्श ब्राह्मण फाउंडेशन के कार्यकर्ता के साथ पहुंचकर उस परिवार को सांत्वना देखकर हर एक संभव मदद किया जाएगा का विश्वास दिलाया।
आगे आशुतोष उपाध्याय, राष्ट्रीय अध्यक्ष, आदर्श ब्राह्मण फाउंडेशन ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 18 परसेंट ब्राह्मणों की आबादी होकर भी संगठित ना होने का परिणाम यह है कि कोई भी घटना हमारे परिवार के साथ आसानी से हो रहा है। वहीं अधिकतर घटना अपने समाज और अपने परिवार को देखने को मिल रहा है। वहीं जागरूक रहने का अनुरोध करते हुए आशुतोष उपाध्याय राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते हैं कि यह समस्या आपके घर और अपने परिवार में हो सकती है इसलिए संगठित रहें।
आदर्श ब्राह्मण फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष आगे बताते हैं कि राजनीतिक पार्टियों ब्राह्मणों को इस्तेमाल करती हैं यह उदाहरण देखने को मिल रहा है और कहीं ना कहीं ब्राह्मणों की हत्या एक राजनीतिक और जाति के आधार पर हो रही है। इसका परिणाम हमें राजनीतिक शिकार हो कर मिल रहा है।
आदर्श ब्राह्मण फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अपने साथियों के साथ परिवार से मिले। वहीं पूरे परिवार को आर्थिक सामाजिक और प्रशासन से मदद फाउंडेशन की। राष्ट्रीय अध्यक्ष आशुतोष उपाध्याय के द्वारा और उनके संगठन के कार्यकर्ता और प्रदेश अध्यक्ष देवेंद्र त्रिपाठी के माध्यम से सारी व्यवस्था किया गया।
ऐतिहासिक और मनोरम योगेश्वर नाथ धाम में शाम ढलने के बाद यात्रियों की सुरक्षा की समस्या
जहानाबाद : जिले के अति प्राचीन और ऐतिहासिक शिवालयों में से एक हुलासगंज प्रखंड के जारु - बनवरिया गांव के पास 400 मीटर ऊंचे पहाड़ पर अवस्थित योगेश्वरनाथ धाम मंदिर के रास्ते में बुनियादी सुविधाओं के अभाव के बावजूद दूर-दूर से कावड़ यात्री और श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने आ रहे हैं।प्राकृतिक सौंदर्य से आच्छादित ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से सुविख्यात इस मंदिर के विकास और पुनरुद्धार का कार्य स्थानीय लोग और योगेश्वर नाथ धाम ट्रस्ट की ओर से तो किया गया लेकिन बुनियादी सुविधा जिसमें आवागमन के रास्ते ,बिजली, शौचालय और यात्रियों के ठहरने के लिए धर्मशाला आदि की व्यवस्था जिला प्रशासन और सरकार के स्तर से आज तक नहीं की गई।
हालाकि इसके बावजूद दूर-दूर से श्रद्धालु यहां सावन महीने में जलाभिषेक करने आ रहे हैं। सावन के अंतिम सोमवारी पर बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने बाबा योगेश्वरनाथ को जलाभिषेक किया। पटना जिले के फतुहा से कावड़ में जल भरकर श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करने आते हैं ।सोमवार को यहां पर श्रद्धालुओं की विशेष भीड़ उमड़ी । बाबा योगेश्वर नाथ धाम ट्रस्ट के प्रबंधक रविंद्र कुमार, सचिव शैलेंद्र कुमार के साथ- साथ सलेमपुर गांव के सेवानिवृत्त सेना के जवान रजनीश कुमार उर्फ मुन्ना के सहयोग से प्रत्येक सोमवार को सभी शिव भक्तों के बीच प्रसाद वितरण किया गया। अंतिम सोमवारी पर बड़ी संख्या में महिलाएं ढोल- झाल के साथ भोलेनाथ का भजन और गीत प्रस्तुत करते नजर आए। इस दौरान एलओसी सेना भर्ती ट्रेनिंग सेंटर मखदुमपुर में होमगार्ड के लिए चयनित सफल युवाओं अभिषेक कुमार, लाल बाबू , सौरभ कुमार, आदि को सम्मानित किया गया।
हालांकि देखा जाए तो ऐतिहासिक और मनोरम योगेश्वर नाथ धाम में शाम ढलने के बाद यात्रियों की सुरक्षा की समस्या और आवागमन के कच्चे रास्ते के कारण लोग शाम ढलने से पहले ही अपने अपने गंतव्य की ओर रवाना होने लगे। क्योंकि वीरान इस स्थल पर श्रद्धालुओं को आवागमन में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। स्थानीय लोगों ने इसके लिए जिला प्रशासन से लेकर सरकार के स्तर पर कई बार गुहार लगाया लेकिन इसके बावजूद इस क्षेत्र के विकास के लिए कोई ठोस योजना अब तक नहीं बनाई जा सकी है।
- स्तनपान के विश्व रैंकिंग में भारत 79वें स्थान से उछलकर 41वें स्थान पर पहुँचा - बिहार में भी विशेष स्तनपान दर 10 अंक सुधरा, 53.5% से बढ़कर 63.3% हुआ - शहरी मातृत्व की विविध चुनौतियों के बावजूद स्तनपान को है समर्थन की ज़रूरत
पटना : स्तनपान बढ़ाने और इस सम्बन्ध में माताओं के बीच जागरूकता के सरकार के प्रयासों ने देश को बड़ी उपलब्धि दिलाई है. स्तनपान की विश्व रैंकिंग में भारत ने 38 स्थानों की छलांग लगाई है और 41वें स्थान पर पहुंच गया है. वर्ल्ड ब्रैस्टफीडिंग ट्रेंड्स इनिशिएटिव की असेस्मेंट रिपोर्ट के अनुसार, स्तनपान में भारत 79वें स्थान से उछलकर 41वें स्थान पर पहुँच गया है. इन प्रयासों का बिहार में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में बिहार में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की दर 23.5% थी जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में बढ़कर यह 26.4% हो गयी. इसी प्रकार छह महीने तक विशेष स्तनपान की दर 53.5% से बढ़कर 63.3% हो गई.
वैसे अभी भी ‘अर्बन ब्रेस्टफीडिंग गैप’ ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में नौकरीपेशा महिलाओं को कार्यालय में सहजता से स्तनपान कराने में परेशानी होती है. इसका प्रमुख कारण दफ्तरों में स्तनपान कक्ष का नहीं होना है. मलिन बस्ती में रहने वाली महिलाओं की समस्या अलग है. ऐसी महिलाओं को परिवार चलाने के लिए काम के लिए निकलना पड़ता है. ऐसे में वह सामान्यतः घर से शिशु को स्तनपान कराकर काम पर चली जाती हैं. बाद में घर में रहने वाले लोगों को शिशु के लिए बोतल का दूध, पानी अथवा डिब्बाबंद पूरक आहार पर निर्भर रहना पड़ता है. जबकि जन्म के बाद पहले छः महीने तक सिर्फ स्तनपान के अलावा नवजात को किसी अन्य ऊपरी आहार की जरुरत नहीं पड़ती, पानी की भी नहीं. जन्म के प्रथम घंटे का स्तनपान किसी भी नवजात के लिए पहला टीका माना जाता है. माँ के पीले गाढ़े दूध में कई पोषक तत्वों का समावेश होता है.
एम्स, पटना में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदिरा प्रसाद बताती हैं कि स्तनपान नवजात शिशु को जीवन के पहले छह महीनों तक पूर्ण पोषण प्रदान करता है, जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और वह डायरिया, निमोनिया जैसे गंभीर संक्रमणों से सुरक्षित रहता है. इसी के मद्देनजर बिहार में स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान करवाना सुनिश्चित किया है. इसके लिए सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में स्तनपान कक्ष स्थापित किए गए हैं. जल्दी ही सभी संस्थानों को “बोतल मुक्त परिसर” घोषित किया जाना है. सामुदायिक स्तर पर लोगों को स्तनपान के महत्त्व से अवगत कराने के लिए अभी “विश्व स्तनपान सप्ताह” (1 से 7 अगस्त) मनाया जा रहा है. अभियान के दौरान व्यापक पैमाने पर स्तनपान के फायदों के बारे में प्रचार प्रसार किया जा रहा है.
- स्तनपान के विश्व रैंकिंग में भारत 79वें स्थान से उछलकर 41वें स्थान पर पहुँचा - बिहार में भी विशेष स्तनपान दर 10 अंक सुधरा, 53.5% से बढ़कर 63.3% हुआ - शहरी मातृत्व की विविध चुनौतियों के बावजूद स्तनपान को है समर्थन की ज़रूरत
पटना : स्तनपान बढ़ाने और इस सम्बन्ध में माताओं के बीच जागरूकता के सरकार के प्रयासों ने देश को बड़ी उपलब्धि दिलाई है. स्तनपान की विश्व रैंकिंग में भारत ने 38 स्थानों की छलांग लगाई है और 41वें स्थान पर पहुंच गया है. वर्ल्ड ब्रैस्टफीडिंग ट्रेंड्स इनिशिएटिव की असेस्मेंट रिपोर्ट के अनुसार, स्तनपान में भारत 79वें स्थान से उछलकर 41वें स्थान पर पहुँच गया है. इन प्रयासों का बिहार में भी सकारात्मक प्रभाव पड़ा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में बिहार में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान की दर 23.5% थी जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में बढ़कर यह 26.4% हो गयी. इसी प्रकार छह महीने तक विशेष स्तनपान की दर 53.5% से बढ़कर 63.3% हो गई.
वैसे अभी भी ‘अर्बन ब्रेस्टफीडिंग गैप’ ज्यादा है. शहरी क्षेत्रों में नौकरीपेशा महिलाओं को कार्यालय में सहजता से स्तनपान कराने में परेशानी होती है. इसका प्रमुख कारण दफ्तरों में स्तनपान कक्ष का नहीं होना है. मलिन बस्ती में रहने वाली महिलाओं की समस्या अलग है. ऐसी महिलाओं को परिवार चलाने के लिए काम के लिए निकलना पड़ता है. ऐसे में वह सामान्यतः घर से शिशु को स्तनपान कराकर काम पर चली जाती हैं. बाद में घर में रहने वाले लोगों को शिशु के लिए बोतल का दूध, पानी अथवा डिब्बाबंद पूरक आहार पर निर्भर रहना पड़ता है. जबकि जन्म के बाद पहले छः महीने तक सिर्फ स्तनपान के अलावा नवजात को किसी अन्य ऊपरी आहार की जरुरत नहीं पड़ती, पानी की भी नहीं. जन्म के प्रथम घंटे का स्तनपान किसी भी नवजात के लिए पहला टीका माना जाता है. माँ के पीले गाढ़े दूध में कई पोषक तत्वों का समावेश होता है.
एम्स, पटना में स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. इंदिरा प्रसाद बताती हैं कि स्तनपान नवजात शिशु को जीवन के पहले छह महीनों तक पूर्ण पोषण प्रदान करता है, जिससे उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और वह डायरिया, निमोनिया जैसे गंभीर संक्रमणों से सुरक्षित रहता है. इसी के मद्देनजर बिहार में स्वास्थ्य विभाग ने सभी सरकारी अस्पतालों में जन्म के पहले घंटे में स्तनपान करवाना सुनिश्चित किया है. इसके लिए सभी सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में स्तनपान कक्ष स्थापित किए गए हैं. जल्दी ही सभी संस्थानों को “बोतल मुक्त परिसर” घोषित किया जाना है. सामुदायिक स्तर पर लोगों को स्तनपान के महत्त्व से अवगत कराने के लिए अभी “विश्व स्तनपान सप्ताह” (1 से 7 अगस्त) मनाया जा रहा है. अभियान के दौरान व्यापक पैमाने पर स्तनपान के फायदों के बारे में प्रचार प्रसार किया जा रहा है.
-पटना के सार्वजनिक स्थल पर आदमकद प्रतिमा की स्थापना को फिर से लिखी चिठ्ठी
वैशाली : डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह स्मृति संस्थान, पटना की ओर से एक बार पुनः बिहार सरकार से आग्रह किया गया है कि स्वर्गीय डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह जी की आदमकद प्रतिमा राजधानी पटना में किसी उपयुक्त सार्वजनिक स्थल पर स्थापित की जाए, जिससे उनकी विचारधारा, कार्यशैली और समाजवादी संघर्षों को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जा सके। इस संबंध में संस्थान की ओर से दिनांक 29 जुलाई 2025 को बिहार के माननीय मुख्यमंत्री को औपचारिक पत्र प्रेषित किया गया है, जिसमें वैशाली स्थित नवनिर्मित बुद्ध स्तूप के उद्घाटन के अवसर पर उनके योगदान को याद करते हुए प्रतिमा स्थापना का अनुरोध किया गया है।
संस्थान के सचिव रघुपति सिंह ने बताया कि इस विषय में पूर्व में भी भारत के प्रधानमंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री को पत्र भेजा जा चुका है। दोनों पत्रों में यह आग्रह किया गया था कि स्वर्गीय डॉ. रघुवंश बाबू के बहुआयामी योगदान को देखते हुए उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए जाने हेतु राजधानी पटना में उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की जाए। डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह न केवल एक वरिष्ठ समाजवादी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री थे, बल्कि उन्होंने ग्रामीण विकास, मनरेगा जैसे योजनाओं के क्रियान्वयन और वैशाली के ऐतिहासिक स्तूप के संरक्षण हेतु भी अग्रणी भूमिका निभाई थी। उन्होंने न केवल संसद और अदालतों में इस दिशा में आवाज उठाई, बल्कि स्वयं स्थल पर जाकर आंदोलन और जन-जागरूकता के माध्यम से भी पहल की। बुद्ध स्तूप की आधारभूमि को सुरक्षित कराना उनके इन्हीं प्रयासों का प्रत्यक्ष परिणाम है।
संस्थान ने यह भी स्मरण कराया कि डॉ. सिंह के निधन के उपरांत मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी स्वयं महनार में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित हुए थे, और उन्होंने स्पष्ट रूप से यह कहा था कि डॉ. रघुवंश बाबू द्वारा अस्पताल से लिखे गए पत्र में उल्लिखित सभी माँगों को पूरा किया जाएगा, जिसमें प्रतिमा स्थापना का वादा भी शामिल था।
संस्थान को आशा है कि सरकार शीघ्र इस प्रस्ताव पर सकारात्मक निर्णय लेकर स्वर्गीय डॉ. सिंह की स्मृति को उचित सम्मान प्रदान करेगी।
-स्वास्थ्य जांच के बाद निशुल्क दवा का भी हुआ वितरण
-बच्चों के स्वाद की भी हुई जांच
वैशाली : हाजीपुर सदर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के द्वारा दिल्ली पब्लिक स्कूल करणपुरा में बुधवार को स्वास्थ्य शिविर का आयोजन किया गया। इस शिविर में करीब 350 बच्चों के स्वास्थ्य का परीक्षण किया गया। स्वास्थ्य जांच के तहत बच्चों के नेत्र, दांत, स्वाद जांच एवं अन्य स्वास्थ्य जांच के बाद निशुल्क दवा का वितरण किया गया। स्कूल की प्राचार्या निलांजनी करमाकर ने बताया कि स्वास्थ्य जांच के बाद बच्चों को हाइजीन, हैंड वॉश के तरीकों के साथ पोषण पर विस्तृत जानकारी दी गयी।
जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉक्टर कुमार मनोज ने बताया कि स्वास्थ्य जांच में दो चिकित्सा दलों को लगाया गया था ताकि अधिक से अधिक बच्च्चों की जांच हो सके। प्राचार्या ने बताया कि इस प्रकार के स्वास्थ्य शिविर के माध्यम से बच्चे बेहतर स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होते हैं। मौके पर जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ कुमार मनोज, अकाउंटेंट रितेश, आरबीएसके डीसी डॉ शाइस्ता, डॉ अशोक, डॉ सोनी, फार्माशिस्ट अभिषेक कुमार, एलटी विजेता, शिक्षक शीतल सिंह, रीना राय, विशाल, बादल सहित अन्य लोग उपस्थित थे।
-प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हुई गर्भवतियों की प्रसव पूर्व जांच
-प्रत्येक महीने की 9 ,15 और 21 तारीख को होती मनता है अभियान
पटना : राज्य में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के माध्यम से व्यापक और गुणवत्तापूर्ण प्रसवपूर्व देखभाल की जा ही है। इसी कड़ी में राज्य ने वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही में एक लाख 87 हजार से ज्यादा प्रसवपूर्व जांच की जा चुकी है। कुछ महीने पहले ही राज्य में इस अभियान को दो दिन से बढ़ाकर प्रत्येक महीने में तीन दिन किया गया है। इस अभियान के तहत उच्च जोखिम वाली गर्भावस्थाओं का शीघ्र पता लगाकर उनका उचित इलाज किया जाता है, ताकि मातृ एवं नवजात मृत्युदर को कम किया जा सके। राज्य में पहली तिमाही में सबसे ज्यादा एएनसी करने वाले जिलों में बांका, पटना, नवादा और सहरसा शामिल है।
13 हजार से अधिक उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों की हुई पहचान :
पहली तिमाही में एचएमआईएस के जारी हुए आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में कुल 13 हजार 691 उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों की पहचान की गयी है। यह आंकड़ा वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही के आंकड़े से 1.3 प्रतिशत ज्यादा हैं। इन सभी गर्भवतियों को फॉलोअप कर बेहतर उपचार के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं से जोड़ दिया गया है। पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष उच्च जोखिम वाली गर्भवतियों की पहचान में भागलपुर, कैमुर, कटिहार, पुर्णिया और जमुई बेहतर पांच जिले हैं। पटना की मुन्नी देवी (बदला हुआ नाम) ने बताया कि मुझे आशा द्वारा प्रसव पूर्व जांच की सुविधा के बारे में पता चला था। मुझे गर्भधारण किए 7 महीने बीत चुके हैं और मैं अभी दो दिन पहले तीसरा प्रसव पूर्व जांच करवाया है. मैं और मेरा गर्भस्थ बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ है और डॉक्टर ने मुझे बताया कि मुझे चौथे जांच के लिए कब आना है।
प्रसव प्रबंधन में होती है आसानी :
पीएमएसएमए की शुरुआत 2016 में प्रधानमंत्री के द्वारा किया गया था। इसमें प्रत्येक माह के 9, 15 एवं 21 तारीख को स्वास्थ्य केंद्रों पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के द्वारा हीमोग्लोबिन, एचआईवी, शुगर अल्ट्रासाउंड जैसी जांचे की जाती है। जरूरत पड़ने पर गर्भवती महिलाओं को उच्चतर स्वास्थ्य केंद्रों पर भी रेफर किया जाता है। पीएमएसएमए के तहत होने वाली प्रसव पूर्व जांच के बारे में फॉग्सी की पूर्व अध्यक्ष डॉ मीना सावंत कहती हैं गर्भावस्था की पहली तिमाही में प्रसव पूर्व जांच के तहत हीमोग्लोबिन स्तर, मधुमेह, थायरॉइड, ब्लड प्रेशर, एचआईवी और अल्ट्रासाउंड की जांच अनिवार्य होती है, ताकि हाई-रिस्क फैक्टर जैसे प्री-एक्लेम्पसिया, गर्भावस्था का मधुमेह और एनीमिया को प्रारंभिक चरण में ही पहचाना जा सके। विशेषकर किशोरियों और नवविवाहित महिलाओं में फर्स्ट ट्राइमेस्टर रजिस्ट्रेशन और चार अनिवार्य प्रसव पूर्व जांच की पूर्ति मातृ मृत्यु रोकने की कुंजी है। सिस्टम को जरूरत है कि पीएमएसएमए और वीएचएनडी डेटा का समेकित विश्लेषण कर सेवा अंतराल की पहचान करें और जरुरी सेवा प्रदान करना सुनिश्चित करें।
किसान की पोशाक पहने होर्डिंग्स में नजर आयें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तो चौंकियेगा मत
एक माँ अपने बच्चे को लेकर महात्मा के पास गई और कहा मेरा लड़का गुड़ खाता है आप कह दीजिए कि वह गुड़ न खाया करे। महात्मा ने कहा कि सात दिन बाद आना। माॅं आठवें दिन महात्मा के पास लड़के को लेकर गई और महात्मा ने बालक से कहा बेटा गुड़ मत खाया करो। बालक की मॉं ने महात्मा से कहा कि ये बात तो आप सात दिन पहले भी कह सकते थे तो महात्मा ने कहा कि सात दिन पहले मैं खुद गुड़ खाया करता था इसलिए नहीं कह सकता था। अब जब मैंने खुद गुड़ खाना छोड़ दिया है तभी मैं बालक को गुड़ न खाने के लिए कहने का साहस पैदा कर सका हूं। महात्मा गांधी ने देश के आखिरी छोर पर खड़े आदमी को अध नंगा देखकर ही आधी धोती पहनना और आधी ओढना शुरू किया था। लाल बहादुर शास्त्री ने जब खुद एक टाईम खाना और सप्ताह में एक दिन उपवास रखना शुरू किया था तब जाकर उन्होंने आवाम से सप्ताह में एक दिन उपवास रखने की अपील की थी। कहने का मतलब ये है कि उंचाई पर खड़े व्यक्ति को पहले खुद आदर्श पेश करना होता है तब वह दूसरों से अपेक्षा कर पाता है। और एक भारत के प्रधानमंत्री हैं नरेन्द्र मोदी जो अपने गिरेबां में झांकने के बजाय, जब वे खुद विदेशी वस्त्राभूषणों से सुसज्जित हैं, उनके आवागमन के सारे साधन विदेशी हैं, उनका खानपान रईसी ठाठबाट का है, देश की जनता को राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित की घूंटी पिलाकर स्वदेशी अपनाने का भाषण दे रहे हैं। अगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी में वाकई राष्ट्रवाद और राष्ट्रहित की जरा भी समझ और इज्जत है तो उनको सबसे पहले खुद विदेशी वस्तुओं का, विदेशी साधनों का और राजसी ठाठ-बाट का त्याग करना चाहिए और उसके बाद ही उन्हें आवाम से स्वदेशी अपनाने की बात कहनी चाहिए। इसके पहले भी उन्होंने 29 मई को गुजरात के गांधीनगर से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की अपील की थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो 2014 के बाद से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक शाखा स्वदेशी जागरण मंच को अस्तित्वहीन करके रखा हुआ है जबकि उसी स्वदेशी जागरण मंच ने एक समय अटलबिहारी बाजपेई की आर्थिक नीतियों का विरोध करते हुए सरकार की चूलें हिलाकर रख दी थी और तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा की कुर्सी डगमगा गई थी। पिछले दस बरस में मोदी सरकार की आर्थिक नीतियां लगातार फेल होती चली गई और अब जब अमेरिका से डील लगभग फेल सी हो गयी है और अमेरिका भारत पर 25 फीसदी टेरिफ और जुर्माना लगाने जा रहा है तो अमेरिका परस्त मोदी को स्वदेशी याद आने लगा है जो कि हथेली में सरसों जमाने से भी ज्यादा मुश्किल काम है और वह भी तब जब खुद पीएम मोदी की करनी और कथनी में जमीन आसमान का अन्तर साफ़ - साफ़ दिखाई दे रहा है। पीएम मोदी का मेक इन इंडिया तकरीबन पूरी तरह से चाइना के कच्चे माल पर आश्रित है। जिस दिन चीन कच्चे माल की सप्लाई रोक देगा उसी दिन मेक इन इंडिया की मौत हो जायेगी। यही हाल वोकल फार लोकल का है। अपने कार्पोरेट मित्र को फायदा पहुंचाने के लिए तुगलकी तीन किसान बिल लाकर मोदी सरकार ने पिछले दस बरसों से जिन किसानों को खून के आंसू रुलाये आज वे उसी किसान के पसीने की खुशबु की बात कर रहे हैं पीएम नरेन्द्र मोदी का कथन तो मगरमच्छों को भी शर्मिंदा करके रख देगा, ऐसा न हो कि कुछ मगरमच्छ आत्महत्या न कर लें।
कश्मीर की वादियों का आनंद लेते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कह रहे हैं कि "हमारे किसान, हमारे लघु उद्योग, हमारे नवजवानों के रोजगार, इनका हित ही हमारे लिए सर्वोपरि है। देशवासियों के अंदर एक भाव जगाना होगा और वो है हम स्वदेशी का संकल्प लें। अब हम कौन सी चीजों को खरीदेंगे, कौन से तराजू से तौलेंगे। मेरे भाईयो बहनों मेरे देशवासियों अब हम कुछ भी खरीदें तो एक ही तराजू होना चाहिए। हम उन चीजों को खरीदेंगे जिसे बनाने में किसी न किसी भारतीय का पसीना बहा है"। 2014 में दिल्ली की सल्तनत हथियाने के लिए लोक लुभावने वादे किये गये थे चुनाव प्रचार के दौरान पीएम वेटिंग नरेन्द्र मोदी के द्वारा। वादा था किसानों की आय दुगनी करने का, वादा किया गया था किसानों से न्यूनतम लागत पर खरीद करने का, वादा किया गया था देश के भीतर में दिहाड़ी मजदूरी मनरेगा से ज्यादा करने का, मगर यह सब कुछ हो नहीं पाया। 15 लाख, अच्छे दिन जुमला करार दे दिए गए मोदी के खासम-खास कहे जाने वाले अमित शाह द्वारा। झारखंड और बिहार की त्रासदी तो यह है कि यहां का किसान दूसरे राज्य में जाकर मजदूर में तब्दील हो जाता है। देश के भीतर रोजगार के अवसर भी 12 हज़ार से 22 हज़ार महीने के बीच अटक कर रह गये। एमएसएमई के जरिए मिलने वाले रोजगार की हालत इतनी खस्ताहाल इसलिए हो गई कि उसको चलाने वाले छोटे और मझोले उद्योगों को चलाने वालों के सामने ही संकट खड़ा हो गया। और दूसरी तरफ कार्पोरेटस् की आय बढ़ती चली गई। देश के भीतर हर प्रोडक्ट पर बड़े-बड़े कार्पोरेट हाउस कब्जा करते चले गए। एक - एक करके देश के पीएसयू प्राइवेट हाथों में चलते चले गए। सरकार अपनी जिम्मेदारी से भागती रही और देश खामोशी से देखता रहा। लोगों की आय नहीं बढ़ी लेकिन कार्पोरेटस् के खजाने के भीतर उनके अपने नेटवर्थ को बढ़ता हुआ दिखाया गया जिससे दुनिया के बड़े - बड़े रईसों की लिस्ट में भारत के भी 100 से ज्यादा नाम शुमार हो गये लेकिन देश के करोड़ों लोग कहां पर कैसे खड़े हैं इसे नजरअंदाज कर दिया गया।
दुनिया के भीतर मान्यता प्राप्त व्हाइट कालर में रोजगार पाने वाला युवा टेक्नोलॉजी और कम्प्यूटर साइंस की नौकरी पाने की तलाश में भटकता हुआ दुनिया की बड़ी - बड़ी कंपनियों के बीच घुसता चला गया और देश ने ये मान लिया कि उसने प्रगति कर ली है। बीते 10 बरस में भारत के जो भी लाखों छात्र पढ़ाई के लिए दुनिया के दूसरे देशों में गये हैं वे लौटकर भारत नहीं आये हैं। वे वहीं के होकर रह जा रहे हैं। कोई अमेरिका में बस गया तो कोई जर्मनी, फ़्रांस, आस्ट्रेलिया में रह गया। लेकिन चीन के साथ ऐसा नहीं है। वहां के बच्चे शिक्षा प्राप्त करने के बाद अपने देश चाइना ही लौटते हैं और चीन अपने तौर पर डवलपमेंट का पूरा प्रोसेस शुरू करता है लेकिन भारत में ऐसा नहीं होता है। भारत में मोदी सरकार तो बीते 10 बरस में हेट, नफरती और अंधविश्वासी शिक्षा देने के लिए किताबों से लेकर शिक्षा पध्दति ही बदलने में लगी हुई है। पुरातन परिस्थितियों को नई हिस्ट्री के साथ पेश करने की बखूबी कोशिश की गई। आज के दौर में स्वदेशी के मायने बदल गए हैं।
आज स्वदेशी का मतलब है हमें पश्चिमी पूंजी चाहिए, पश्चिमी इंवेस्टमेंट चाहिए, पश्चिम का बाजार चाहिए, पश्चिम के हिसाब से क्वालिफिकेशन चाहिए जिससे उसी रास्ते चलकर उद्योग चलें, प्रगति हो। लेकिन जिस तरह से पीएम मोदी ने स्वदेशी का जिक्र किया उसका साफ मतलब है कि संकट बड़ा हो चला है। इस संकट का मतलब है अमेरिका के साथ जिस टेरिफ डील को लेकर बातचीत चल रही थी वह टूट चुकी है। क्योंकि जिस छठवें चक्र की बातचीत करने के लिए अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल 25 अगस्त को भारत (दिल्ली) आने वाला था अब वो नहीं आयेगा। अमेरिका जिस तरह से भारत पर टेरिफ लगाने और भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने के रास्ते पर चल रहा है उससे आने वाले समय में रोजगार का संकट खड़ा होगा क्योंकि कंपनियां छटनी करेंगी। भारत को अपनी इकोनॉमी बचाने के साथ ही अपने माल को दुनिया के बाजार में पहुंचाना होगा। तो क्या अमेरिका से नाता टूटकर चीन के साथ जुड़ जायेगा? टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आने वाले चीनी माल का प्रतिशत 22 से लेकर 70 तक होता है। कह सकते हैं कि पूरा का पूरा मेक इन इंडिया चीन पर टिका हुआ है। और आज जब पीएम मोदी मेक इन इंडिया और वोकल फार लोकल का जिक्र कर रहे हैं तो उनके जहन से ये सवाल गायब हो गया है कि बीते 10 बरस में जिस रास्ते चलकर उन्होंने भारत की अर्थ नीति को सहेजा, संवारा है ग्यारहवें बरस में उनकी हथेली खाली है। बात भी सौ फीसदी सही है क्योंकि मोदी सरकार ने बीते दस बरस में ऐसा कुछ नहीं किया है कि देश के ही कच्चे माल से देश में ही माल तैयार हो। टेलीकॉम और स्मार्टफ़ोन बनाने में इस्तेमाल होने वाला 44 फीसदी माल चीन से आता है। लैपटॉप और पीसी में लगने वाला 77 परसेंट माल चीन से आता है। इसके अलावा अन्य सामानों की असेम्बलिंग में यूज होने वाला सामान भी 94 परसेंट तक चीन से ही आता है। जो इस बात को इंगित करते हैं कि भारत अपनी इकोनॉमी और इकोनॉमी पालिसी को लेकर फंसा हुआ है। उसके सामने कोई दूसरा रास्ता नहीं है इसलिए आने वाले वक्त में उसे चीन पर और ज्यादा निर्भर होना पड़ेगा, रशिया से अपने संबंधों को प्रगाढ़ बनाना पड़ेगा। पीएम नरेन्द्र मोदी को आज नहीं तो कल तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के रास्ते चलना ही पड़ेगा जहां उन्होंने भारत की अर्थ नीति को मजबूती देने के लिए न तो अमेरिका की ओर देखा था न ही चाइना की ओर उन्होंने दुनिया के छोटे छोटे देशों के साथ संबंध और सम्पर्क बनाये थे।
अमेरिका साफ - साफ संकेत दे रहा है कि दुनिया की कोई भी इकोनॉमी अमेरिका के साथ धंधा करके अब उस रईसी को नहीं जी सकती जो जी रही थी और अब यह अमेरिका की नेशनल पालिसी में तब्दील होगी फिर चाहे सत्ता में रिपब्लिकनस् रहें या डेमोक्रेटस्। अमेरिका के भीतर चल रही बहस बहुत साफ तौर पर बता रही है कि अमेरिका किसी भी देश को लाभ उठाने का मौका देगा नहीं। अमेरिका की टार्गेटेट निगाहों में जो टाप सिक्स देश हैं उनमें शामिल हैं चीन, रशिया, भारत, फ्रांस, जर्मनी और जापान। क्या अमेरिका भारत की बढ़ती हुई इकोनॉमी को टार्गेट पर लेने जा रहा है और इसीलिए छठवें दौर की बातचीत बंद कर दी गई है। पैदा हुई नई परिस्थिति के बाद पीएम मोदी खुद मान रहे हैं कि मुश्किल घड़ी है तभी तो कह रहे हैं "आज दुनिया की अर्थव्यवस्था कई आशंकाओं से गुजर रही है। अस्थिरता का माहौल है। ऐसे में दुनिया के देश अपने अपने हितों पर फोकस कर रहे हैं। अपने - अपने देश के हितों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं" । बीते 10 बरस में मोदी सरकार देश से पलायन कर रही योग्यता को रोक पाने में असक्षम रही है। राष्ट्रीय सम्पत्ति, राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय रोजगार भी चुनावी जुमला बनकर रह गये हैं। बीते 11 बरसों का सरकारी आंकड़ा बताता है कि देश के भीतर का 1.3 परसेंट एग्रीकल्चर लैंड रियल एस्टेट को दे दिया गया है। 7 परसेंट कटे जंगल भी उसी रियल एस्टेट के कब्जे में हैं और अब वहां कंक्रीट का जंगल उगा दिया गया है। पब्लिक सेक्टर प्राइवेट सेक्टर के हाथों सौंपे जा चुके हैं। मोदी गवर्नमेंट ने बीते 11 सालों में एकबार भी न तो ह्यूमन रिसोर्स का जिक्र किया है न ही उन्हें रोजगार से जोड़ने का जिक्र किया है। सर्विस सेक्टर पर आने वाला संकट बेंगलुरु, दिल्ली, हैदराबाद, तमिलनाडु आदि शहरों की चमक खत्म कर देगा। सोचने वाली बात है कि 140 करोड़ का देश चीन पर निर्भर है।
पीएम मोदी स्वदेशी का जिक्र कर रहे हैं, देशी पसीने की बात कह रहे हैं मगर सरकारी आंकड़ा बताता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुख सुविधा वाला 8.5 करोड़ रुपए के विमान के रखरखाव के सारे कलपुर्जे विदेशी हैं। पीएम मोदी के आगे - पीछे जो 6 गाड़ियों का काफिला चलता है वे सारी गाड़ियां विदेशी हैं। पुराने इंफ्रास्ट्रक्चर को हटाने के लिए जो खरीदारी की जा रही है वह देशी मिजाज की नहीं है। जो यह बतलाता है कि मोदी अभी भी केवल कह ही रहे हैं, करने का इरादा नहीं है। क्योंकि करने की शुरुआत खुद से करनी होगी विदेशी साजो सामान को त्याग कर। हर देश अपना राष्ट्रहित देख रहा है तो भारत को भी अपना राष्ट्रहित देखना होगा। 140 करोड़ की जनसंख्या में 80 से 90 करोड़ लोग एग्रीकल्चर सेक्टर से जुड़े हुए हैं। इंडस्ट्री सेक्टर से जुड़ी हुई तादाद 8 से 10 करोड़ के बीच में है। सरकार ने राष्ट्रवाद का जिक्र किया और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सेनानी की वर्दी में खड़े हो गए तो राष्ट्रहित की बात करने के बाद क्या कल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किसान के कपड़ों की शक्ल में पोस्टर पर लटके नजर आयेंगे और राष्ट्रहित हो जायेगा ? टेक्सटाइल, एग्रीकल्चर का 90 फीसदी सामान विदेशों से आता है। मतलब भारत के पास कुछ भी नहीं है। तो सवाल है कि क्या सरकार तैयार है देश के किसानों, मजदूरों को मुख्यधारा की इकोनॉमी से जोड़ने के लिए ? क्या सरकार ऐसी नेशनल पालिसी बनाने को तैयार है जहां पहली प्राथमिकता देश के लोगों की हो (ह्यूमन सोर्स) ? अगर कार्पोरेटस् सरकार के साथ खड़े नहीं होते हैं तो बीते 11 बरसों में मोदी सरकार ने खड़ा किया क्या है ? जिस दिन कार्पोरेटस् ने सरकार से हाथ खींच लिया, जिस पूंजी से देश की राजनीति चलती है, चलाई जा रही है, सत्ता का खेल बनाया और बिगाड़ा जाता है अगर वह डहडहाकर गिर गई तब कौन बचेगा, कौन सम्हलेगा ?
जयपुर के प्रस्तावित प्रेमचंद सम्मान समारोह में इन्हे 2023 में भी सिर्फ कविता में ही सम्मानित किया गया था
वैशाली : बिहार के हिन्दी, बज्जिका के वरिष्ठ कवि,साहित्यकार रवीन्द्र कुमार रतन को "मुंशी प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान समिति-2025 जयपुर (राजस्थान)द्वारा काव्य और कहानी के क्षेत्र में अलग-अलग सम्मानित होने का आमंत्रण मिला है। विदित हो कि महान साहित्यकार, उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 145वीं जयंती के उपलक्ष्य में जयपुर के प्रस्तावित प्रेमचंद सम्मान समारोह में इन्हे 2023 में भी सिर्फ कविता में ही सम्मानित किया गया था।
विदित हो कि रवीन्द्र कुमार रतन हिन्दी कविता, कहानी, समीक्षा लिखने के साथ- साथ बज्जिका जो यहां की मातृभाषा है, उसमें भी लिखते हैं और उसकी मान्यता की संयुक्त संघर्ष समिति के उपाध्यक्ष पद पर संघर्षरत है। अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,राजस्थान, जयपुर की ओर से राष्ट्रीय स्तर पर इस "प्रेमचंद साहित्य रत्न सम्मान " का आयोजन संस्था के महामंत्री अरुण सक्सेना के मुताबिक यह सम्मान बगैर किसी भेदभाव केउत्कृष्ठ काव्य पाठ और कहानी में चयनित उम्मीदवार को ही दिया जाता है।
राष्ट्रीय स्तर पर " प्रेमचंद साहित्य रत्न से सम्मानित होने के लिए आमंत्रित होने पर स्थानीय सुरेन्द्र प्रसाद श्रीवास्तव, डाॅ रंजन,आयकर अधिकारी कामेन्द्र कुमार श्रीवास्तव, डाॅ पूर्णिमा कुमारी श्रीवास्तव, सरोज वाला सहाय, अनिल कुमार गुड्डू, अधिवक्ता, डाॅ सुधांशु चक्रवर्ती, ओम प्रकाश साह ,सुरेश चंद्र वर्मा, अधिवक्ता दीपक कुमार सिंहा, पूर्व मुखिया एवं अभाकाम के प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन सिन्हा आदि प्रमुख है।
कांके रोड स्थित ऑड्रे हाउस में किया गया, कार्यक्रम में तराना, बंदिश, सरगम , तत्कार पर अच्छी प्रस्तुति
फिदा डांस अकैडमी के द्वारा नित्यध्वनि कार्यक्रम का आयोजन कांके रोड स्थित ऑड्रे हाउस में किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य कथक की प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना है। कार्यकम में नन्हे कलाकारों से लेकर बड़े कलाकारों ने हिस्सा लिया और अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। कार्यक्रम में तराना, बंदिश, सरगम, तत्कार पर अच्छी प्रस्तुति दी।
बच्चों को आज के आधुनिक दुनिया में क्लासिकल और कत्थक जैसे शास्त्रीय नृत्य को सीखना और प्रसारित करना ही फिदा का मुख्य उद्देश्य है। कार्यकम में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ राजकुमारी सिंहा, डॉ कुलदीप ट्रिकी, यश एन सिंहा, विजय छाबड़िया, आनंद शाही उपस्थित हुए और दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरुआत की। फिदा डांस एकेडमी के निर्देशक श्रीमति नमिता सिन्हा जी, संदीप सिन्हा जी एवं नृत्य शिक्षिका नीना श्रीवास्तव जी के द्वारा कार्यक्रम नित्यध्वनि की रूप रेखा तैयार की गई।
आज के कार्यक्रम नित्यध्वनि महान कथक नर्तक पंडित बिरजू महाराज को समर्पित किया गया ।
कार्यक्रम की शुरुआत गणेश वंदना के साथ हुई, इसके बाद गुरु वंदना, मालकौंस , मोहे पनघट पर नंदलाल छेड़ गयो रे, ओरे सलोनी तेरे नैन ठुमरी, कथक सरगम, मधुबन में राधिका नाचे रे, तीन ताल, पायलिया, गिरधर कृष्ण भजन जैसे गीतों पर बच्चों ने अपनी बेहतरीन प्रस्तुति दी। इन बच्चों ने कार्यक्रम में अपनी प्रतिभा को प्रदर्शित किया। फूल कुमारी, अंजली, इतिशा, वागीसा, ईशान्वी, आराध्या, अभ्या, रिद्धिमा, शानवी, अनीशा, शानविका, ज्योतिका, अमायरा, मिहिका, तूलिका एवं अन्य कई बच्चों ने अपनी प्रस्तुति दी।