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नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व में जो तथाकथित हिंदू परंपरा की शुरुआत 2014 में वह 2025 में जातिवादी व्यवस्थाओं के साथ मजबूत हो गई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब देश में जातिगत सर्वे होगा जो कि हिन्दू राष्ट्र की जिम्मेवारी से मुक्त कर देती है। आरक्षण की आवश्यकता अब व्यवस्था का ही नहीं बल्कि संसद वह संविधान का चरित्र बन गया है। ना तो भारतीय संविधान में यह ताकत और इच्छाशक्ति हैं कि वह भारत का मान बढ़ा सकें और ना ही संविधान के द्वारा संचालित भारतीय सरकार में।
देश में लगातार आरक्षण की बात मजबूत होती जा रही है और भारत सरकार जातिगत भावनाओं से ग्रसित होकर संविधान में लगातार संशोधन कर आरक्षण के दायरे को बढ़ा रही है। आरक्षण के दायरे को बढ़ाने से देश की स्थिति अयोग्य लोगों से भरने की तैयारी है। योग्यता के आधार पर देश के विकास में जो भी भागीदारी होनी चाहिए थी उसके सारे रास्ते बंद कर दिए जा रहे हैं। भारत सरकार भारत के नाम पर जिस प्रकार से वोट की राजनीति करती है वहीं भारत को विकसित एवं विकासशील देश बनाने के लिए कोई भी ऐसा कदम नहीं उठा रही जिससे देश आगे बढ़ सके।
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आरक्षण की जगह जरूरत यह है कि हर एक नागरिक के लिए शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी की समुचित व्यवस्था हो ताकि हर एक व्यक्ति हर एक नागरिक निश्चित तौर पर आगे बढ़ सके। जब तक भारत शिक्षित नहीं होगा तब तक इसी प्रकार से आरक्षण की बेड़ियों में जकड़ कर समाज दर समाज और जातिगत जाति को तोड़ने में जोड़ने की राजनीति चलती रहेगी। जिसका परिणाम यह है कि आने वाले समय में एक महा विस्फोट से पूरा समाज एक दूसरे पर हावी हो जाएगा। समाज की संरचना लोकतंत्र की जिम्मेदारी होती है और आज लोकतंत्र की जिम्मेवारी भारत के सदन में या कहें कि संविधान में निहित हैं। वहीं भारतीय संविधान और भारतीय संसद दोनों इमानदार नजर नहीं आती हैं।
संविधान और भारत के सदनों की जिम्मेवारी यह होनी चाहिए कि जातिगत बातों से अलग हटकर हर एक व्यक्ति के लिए शिक्षा सुनिश्चित कराई जाए। साथ ही साथ हर एक नागरिक पढ़ें और अपनी पढ़ाई को पूर्ण करें इसके लिए उसके परिवार को आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है। ना कि शिक्षा के नाम पर चावल, आटा, दाल बांटने से शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा।

नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहे तो वो अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं और जीवन में बहुत कष्ट उठाया है। जिस कारण धीरे-धीरे एक समाज का वर्गीकरण करने का नरेंद्र मोदी ने गहरा षड्यंत्र भी किया है। भारत माता के कितने टुकड़े कर दिए जा रहे हैं शायद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को समझ नहीं है। आरक्षण के दायरे और जातिगत आधार को बनाकर जिस प्रकार से भारत को विखंडित करने का प्रयास किया जा रहा है उस विखंडन को और बेहतर बनाने का मेरा एक सुझाव है।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तथाकथित तौर पर भारत में जो सवर्ण जाति है उसे भारत के तमाम प्रकार के अधिकार छीन लेने चाहिए। ताकि इसके अलावा बची हुई जातियां आपस में भारत को संचालित करने के लिए टैक्स भरे और उसी टैक्स से अपनी जातियों का निर्वहन करें। भारत के प्रधानमंत्री को यह करना चाहिए कि हर एक जाति के आधार पर उन्हें शिक्षा देने वाले शिक्षक, उनका इलाज करने वाले चिकित्सक, उनके लिए वकालत करने वाले वकील, उनके लिए एक अलग से कोर्ट की व्यवस्था जिसमें उन्हीं की जाति के लोग उस कोर्ट में केस दर्ज करें।
उसी प्रकार से हरे क्षेत्र में जाति के आधार पर सभी चीजों का विभाजन कर देना चाहिए और तथाकथित तौर पर सवर्ण जातियों को देश के सभी सरकारी पदों से विमुक्त कर देना चाहिए। वही सभी सरकारी पदों पर जातिवाद के लिए होड़ लगाने वाली जातियों की पदस्थापना करनी चाहिए। जिससे भारत के मुख्य सचिव से लेकर एक पंचायत के पंचायत सचिव तक की जिम्मेवारी जातिगत आधार पर नियुक्त हो और उसी जाति के लोग उसका लाभ उठाएं।
जातिवाद की रफ्तार कम होती हुई नहीं दिख रही है इसके लिए जरूरी है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही जाति आधारित व्यवस्था का नीव रख देना चाहिए। प्रत्येक जातियों के लिए खुद की जाति में शादी, खुद की जाति से शिक्षा, खुद की जाति से चिकित्सा, खुद की जाति के साथ कानूनी दांवपेच एवं खुद की जाति के साथ ही उठना बैठने का प्रधान लागू करना चाहिए।
आज के दौर में जिस प्रकार से भारत में पूरे तरीके से विकास के नाम पर और जातिवाद के नाम पर देश के टुकड़े टुकड़े करने में हमारे राजनेता और हमारा संसद और संविधान सहयोग करता है उससे बेहतर है कि जाति के आधार पर ही बांट दिया जाए।
अब भारत इतना आगे बढ़ चुका है कि अब जाति के बगैर भारत की कल्पना करनी मुश्किल है। जातिगत आधारित आरक्षण ने देश को विकलांग बना कर छोड़ दिया है और जिसका परिणाम है कि आज पूरा भारत और योग्यताओं से पूर्ण सदन का नेतृत्व कर रहा है। इसलिए मेरे सुझाव पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विचार करना चाहिए और यह दिखाना चाहिए कि वह वाकई में भारत की चिंता और चिंतन में 18 से 20 घंटे काम कर रहे हैं।