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August 18, 2025
Ahaan News

बैठकी ~~~~~ "सावधानी हटी, दुर्घटना घटी"

कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस समझ रही है या उसे मलाल है कि मोदी "वोट चोरी" करके प्रधानमंत्री बन गये हैं

सरजी,15 अगस्त को 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिल्ली के लालकिला से प्रधानमंत्री मोदीजी ने तिरंगा फहराया। ये राष्ट्रीय कार्यक्रम था लेकिन इस राष्ट्रीय कार्यक्रम में लोकसभा के विपक्ष के नेता राहुल गांधी,कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, सोनिया गांधी या सांसद प्रियंका वाड्रा आदि नहीं दिखाई दिये। ये तो राष्ट्रीय कार्यक्रम था जिसमें उपस्थित रहना इन लोगों का राष्ट्रीय नैतिक दायित्व था लेकिन कोई दिखाई क्यों नहीं दिया! कहीं ऐसा तो नहीं कि कांग्रेस समझ रही है या उसे मलाल है कि मोदी "वोट चोरी" करके प्रधानमंत्री बन गये हैं,नहीं तो शासन कांग्रेस का होता और लालकिले से 15 अगस्त का ध्वजारोहण, राहुल गांधी स्वयं कर रहे होते!!--बैठकी जमते हीं मास्टर साहब मुस्कुराते हुए।

मास्टर साहब, मुगलिया सल्तनत बाबर के वारिस,उर्फ भारत का शाही नेहरू परिवार, जिसे सिर्फ शासन करने की,अपनी सुनाने की आदत पड़ गई हो उसे एक चाय वाले ने सिंघासन से 11 बर्षों से दूर कर रखा है और उसके प्रधानमंत्री बन जाने से तथा जो  कभी उनकी प्रजा रहें हों,उन्हें भारत का शासक,क्यों मान लें! उसके नेतृत्व में श्रोता और दर्शक क्यों बनें! ये तो तथाकथित गांधी परिवार की सरासर तौहीनी सिद्ध होगी न!! वो भी तब जब राहुल के शब्दों में,वैसा प्रधानमंत्री जो, वोट चोरी करके बना हो!!--उमाकाका भी मुस्कुराते हुए।

हां काकाजी,इधर चुनाव आयोग द्वारा बिहार में वोटर पुनरीक्षण कार्यक्रम के मद्देनजर सभी विपक्षियों को आपने कोर वोटर , "घुसपैठियों" की छंटनी का डर समा गया है।इसी क्रम में राहुल गांधी ने चुनाव आयोग और भाजपा पर, कर्णाटक, महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में फर्जी वोटरों की बढ़ौतरी को लेकर,"वोट चोरी" का आरोप लगाया है। जब चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया और उनसे शपथपत्र के साथ प्रमाण देने की बात कही तो ऐसा नहीं कर रहे क्यों!!लेकिन आज भी अपनी बात पर अड़े हैं और  उड़ा रहे हैं कि विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा "वोट चोरी" नहीं करती तो कांग्रेस को 25 लोकसभा सीटों का और फायदा होता जिससे सरकार, कांग्रेस की बनती।पुरे देश में इंडी गठबंधन,चुनाव आयोग के वोटर पुनरीक्षण कार्यक्रम का विरोध कर रही है।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में........

कुंवर जी, वोट चोरी की शुरुआत हीं मोहन दास करमचंद गांधी और नेहरू ने की थी। भुल गये क्या! देश विभाजन के बाद कौन प्रभारी प्रधानमंत्री बनेगा! इसके लिए उस समय के प्रदेश कांग्रेस कमिटी के 15 सदस्यों को वोट देना था। सरदार वल्लभ भाई पटेल को 15 में 12 वोट मिले और कृपलानी को 2 वोट, एक ने वोटिंग में भाग नहीं लिया। 12 वोट लेकर जीते पटेल जी, लेकिन गांधी और नेहरू ने वोट चोरी कर ली और नेहरू प्रधानमंत्री बन गये। जब छद्म हिन्दू को हीं विभाजित भारत की बागडोर सौंप कर "ग़ज़व ए हिन्द" करने का प्लान था तो देश का विभाजन हीं क्यों हुआ फिर प्रभारी प्रधानमंत्री के लिए,चुनाव हीं क्यों करवाया गया!!--सुरेंद्र भाई ने याद दिलाया।

भाईजी, कांग्रेस तो देश के प्रथम लोकसभा चुनाव में हीं वोट चोरी की मिशाल कायम कर दी थी।--डा. पिंटू बोल पड़े।
उ कईसे ए डाक्टर साहब!!--मुखियाजी डा. साहब से।

मुखियाजी,1952 के चुनाव में अंबेडकर साहब के विरुद्ध कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी मिलकर धोखाधड़ी करके, मात्र 14 हजार 5 सौ 61 वोटों से हराया था जिसमें 74336 वोटों को रद्द करवा दिया गया था,जो वोट अंबेडकर साहब के पक्ष के थे।भला बताइये! "वोट चोरी" की इससे बड़ी शाजिस कहीं देखा जा सकता है क्या!! भारत के चुनाव में,पहली चुनावी याचिका भी अंबेडकर साहब ने डाली थी लेकिन उस समय,आयोग से लेकर कोर्ट तक तो कांग्रेस की हीं चलती थी न!!--डा. साहब मुंह बनाये।

जानते हैं! कांग्रेस किस तरह की चुनावी घपला करती थी उसका उदाहरण सोनिया गांधी है। पहली बार जनवरी 1980 में सोनिया गांधी का नाम,भारत के वोटर लिस्ट में दर्ज हुआ था लेकिन उस समय वो भारत की नागरिक हीं नहीं थी। बवाल होने पर नाम हटाया गया। फिर 1 जनवरी 1983 में नई दिल्ली का वोटर लिस्ट रिवाइज हुई।उस लिस्ट में बुथ नंबर -140 और क्रम संख्या 236 में पुनः सोनिया गांधी का नाम शामिल किया गया।उस समय भी वो इटली की नागरिक थीं। दो-दो बार नागरिकता की शर्तों का उलंघन करके सोनिया गांधी का नाम वोटर लिस्ट में जोड़ा गया जबकि विवाह के 15 साल बाद 30 अप्रैल 1983 को, सोनिया गांधी को भारत की नागरिकता मिली। इसको क्या कहियेगा!!--सुरेंद्र भाई हाथ चमकाये।

भाईजी, राहुल गांधी के चुनाव आयोग पर बम फोड़ना उन्हीं पर भारी पड़ गया है।--डा.पिंटू बोल पड़े।

उ कईसे डा. साहब!!--मुखियाजी खैनी ठोकते हुए।

भाजपा ने डेटा सामने ला दिया है जिससे राहुल और विपक्षियों की बोलती बंद हो गई है। इसके अनुसार रायबरेली जहां से राहुल गांधी सांसद हैं,2 लाख 89 हजार वोटर संदिग्ध हैं। इसमें 19512 वोटर डुप्लीकेट हैं,71977 वोटरों के पत्ते फर्जी हैं, और 92747 वोटर एक साथ जोड़े गये हैं।इसी तरह वायनाड जहां से प्रियंका वाड्रा सांसद हैं,93499 वोटर संदिग्ध हैं। कन्नौज जहां से अखिलेश यादव सांसद हैं,291798 वोटर संदिग्ध हैं। मैनपुरी जहां से डिंपल यादव सांसद हैं,255214 वोटर संदिग्ध हैं। पश्चिम बंगाल का डायमंड हार्बर संसदीय सीट जहां से ममता बनर्जी के भतीजे, अभिषेक बनर्जी सांसद हैं,259779 वोटर संदिग्ध हैं। तो ऐसी स्थिति में ये विपक्षी कौन सा मुंह लेकर मोदी सरकार और चुनाव आयोग पर उंगली उठा रहे हैं। अरे,इन गड़बड़ियों को ठीक करने के लिये हीं तो चुनाव आयोग वोटर पुनर्निरीक्षण का कार्यक्रम चला रही है!! फिर आपत्ति करने का क्या मकसद है!!--मैं भी बहस में भाग लेते हुए।

ए भाई, मोदीजी,अपना भाषण में आरएसएस के सौ बरीस पुरा होंखे के उपलक्ष्य में,आरएसएस के राष्ट्र के प्रति योगदान के भी चर्चा कईले हा।--मुखियाजी बहस में भाग लेते हुए।

लेकिन ये बात कांग्रेस और अखिलेश को पची नहीं न! इस बात को लेकर विपक्षियों की आरएसएस विरोध और मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति,सामने आ हीं गयी न!!--कुंवरजी अखबार रखते हुए।

कुंवर जी, एक बात समझने की है कि कांग्रेस या विपक्षी पार्टियां, हमेशा राष्ट्रवाद को लेकर चलने वाली संस्था,"आरएसएस" के विरुद्ध और उसे समाप्त करने का हीं संकल्प क्यों व्यक्त करतीं हैं!! पाकिस्तानी आतंकवादी संगठनों, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, रोहिंग्या, घुसपैठियों या भारत के संसाधनों का दोहन कर रहे लाखों पाकिस्तानी बहुयें और उनके दस-दस बच्चों आदि को लेकर कुछ क्यों नहीं बोलते। इनके मुंह में दही क्यों जम जाती है!!--डा.पिंटू बुरा सा मुंह बनाये।

मुखियाजी,अब तो सारा देश जान गया है कि चुनाव आयोग के बिहार में वोटर पुनरीक्षण का विपक्षियों द्वारा विरोध करने के पिछे उनका अपने कोर वोटरों को बचाना है,जो मुस्लिम घुसपैठियें हैं।--उमाकाका हाथ चमकाये।

काकाजी, हमने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देखा है कि ये अमरीका, डीप स्टेट और यूरोपीय संघ अपने कठपुतलियों को किसी राष्ट्र की सत्ता पर बैठाने के लिए "वोट चोरी" जैसे इल्जाम, हथियार के रूप में प्रयोग करती रही है जैसे ---
जाॅर्जिया(2003) में "वोट चोरी" के आरोपों के कारण रोज क्रांति हुई और अमरीका समर्पित सरकार सत्ता में आ गई। इसी तरह यूक्रेन(2014)  में "वोट चोरी" के आरोपों के कारण यानुकोविच की सत्ता चली गई और अमरीका समर्थक जोकर जेलेंस्की सत्ता में आ गया। किर्गिस्तान (2005) में भी "वोट चोरी" के आरोपों के कारण अकायेव को हटाया गया और अमरीका समर्थक सरकार बनी। आइये, बंगलादेश को लिजिये,"वोट चोरी" के आरोपों के कारण शेख हसीना के सरकार को हटाया गया और अमरीका का तलवा चाटने वाली सरकार आ गई। लगभग यही स्थिति इमरान खान को हटाने के संदर्भ में,पाकिस्तान की भी समझिये।
मुखियाजी, मुझे शक है कि भारत में भी "वोट चोरी" के आरोपों को मोदी सरकार के विरुद्ध, कांग्रेस अर्थात डीप स्टेट के एजेंटों द्वारा फैलाया जा रहा है। हिंसकता भी फैलाई जा सकती है। आज के डेट में अमरीका और भारत के बीच टैरिफ को लेकर बने गंभीर संबंधों और अमरीका की पाकिस्तान परस्ती से भी अनुमान लगाया जा सकता है।--कुंवरजी ने आशंका प्रगट की।

मुखियाजी, देश में परिवारवादी पार्टियां झूठ बोलकर देश में अराजकता फैलाना चाहतीं हैं और यदि उस पार्टी में कोई सच कहें तो उसकी खैर नहीं!--सुरेंद्र भाई बोले।

भाईजी, बात त सौ टके के बोलनी हा बाकि केवना बात प,उहो कहीं।--मुखियाजी पुछ दिये।

कर्णाटक में वोटर लिस्ट को लेकर जब राहुल गांधी चुनाव आयोग पर बम फोड़ते हुए लोकसभा चुनाव में  धांधली को लेकर,बैंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट का मुद्दा उठाया, तब उन्हीं की पार्टी के कर्नाटक सरकार के मंत्री,के एन राजन्ना ने कह दिया कि राहुल गांधी को ऐसा नहीं कहना चाहिए था क्योंकि जब वोटर लिस्ट बनी थी तो उस समय कांग्रेस की हीं सरकार थी।उस समय किसी ने यह बात क्यों नहीं कही!! फिर क्या था,


मंत्री राजन्ना जी को ये सत्य कहना भारी पड़ा और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। दुसरी घटना यूपी से है।

अखिलेश यादव की पार्टी सपा की विधायक पूजा पाल ने (जिनके पति की हत्या अतीक अहमद ने करवाया था।)सदन में मुख्यमंत्री योगीजी के अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति की तारीफ क्या की,सपा नेतृत्व नाराज होकर पूजा पाल को पार्टी से हीं निष्कासित कर दिया। ये है परिवारवादी पार्टियों की तानाशाही। पार्टी नेतृत्व झूठ पर झूठ बोले,वो ठीक है लेकिन पार्टी के दुसरे, सत्य कह दे तो खैर नहीं।--सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।

छोड़िये , लालकिले से अपने भाषण के दौरान मोदीजी ने घुसपैठियों और बाहरी ताकतों के संदर्भ में भी आगाह किया था। इतना तो सत्य है कि आज भारत ऐसे हाथों में है जहां  भीतरी या बाहरी दुश्मन,लाख षड्यंत्र करें,सबकी काट मोदीजी के पास है। इसी लिये न लोग कहते हैं कि "मोदी है तो मुमकिन है"। फिर भी हम भारतवासी को सावधान रहना जरूरी है क्योंकि सावधानी हटी, दुर्घटना घटी।अच्छा अब चला जाय।--कहकर मास्टर साहब उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.......!!!!!
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 18, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 12

सच स्वीकारा है तो नजीर बनिये दीजिए इस्तीफा

प्रधानमंत्री कार्यालय जो काम अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में नहीं कर सका उसे उसने नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में करके दिखा दिया है और अपने उद्बोधन में जिस संस्था का नाम अटल बिहारी वाजपेयी अपने प्रधानमंत्री रहते नहीं ले सके उस संस्था का नाम प्रधानमंत्री नरेन्द्र ने आजादी की 78वीं वर्षगांठ पर देश को संबोधित करते हुए लाल किले की प्राचीर से लेकर न केवल आजादी के जश्न को दागदार किया बल्कि आजादी के सेनानियों की शहादत को भी शर्मसार कर दिया। देश को आजाद कराने के लिए जिन भारतवासियों ने हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम कर अपने ही हाथों अपने गले में पहन लिया और वंदेमातरम कहते हुए शहीद हो गए निश्चित रूप से उनकी मृत आत्माओं को असीम वेदना सहनी पड़ी होगी जब उन्होंने पीएम मोदी के मुंह से एक ऐसी संस्था का नाम सुना होगा जिसके बारे में आजादी के पन्ने कोरे हैं। इतना ही नहीं मोदी सरकार के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने तो सारी सीमाओं को लांघते हुए एक ऐसा विज्ञापन प्रकाशित कर दिया जिसने देश के सिर को गर्दन के भीतर ही घुसेड़ कर रख दिया। प्रधानमंत्री का 103 मिनट का ऊबाऊ भाषण तैयार करने वाले पीएमओ कार्यालय ने प्रधानमंत्री के हाथों में वे सारे दस्तावेज पकड़ा दिये जिसका जिक्र प्रधानमंत्री बीते 100 दिनों से अलग अलग मौकों पर करते रहे हैं। बीते 100 दिनों के भीतर प्रधानमंत्री ने देश भर में की गई तकरीबन 7 रैलियों में, 4 बार सेनाओं के बीच में जाकर और बंद कमरों में होने वाली लगभग दो दर्जन बैठकों में जिस बात को कहा है वहीं बाते एक बार फिर से समेट कर प्रधानमंत्री ने लाल किले की प्राचीर से 103 मिनट में देश के सामने रखीं हैं।

प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों को बलिदान कर देने वाले भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद का नाम नहीं लिया, प्रधानमंत्री को न तो महात्मा गांधी की याद आई न ही उस दौर के किसी नेता की उन्हें याद आई राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की जिसका आजादी के इतिहास में शायद ही कहीं संघर्ष करते हुए जिक्र होगा और अगर होगा भी तो फिरंगियों की मुखबिरी करते हुए या माफीनामा लिखते हुए। दस्तावेज तो यही कहते हैं कि उस दौर में आरएसएस सावरकर की राह पर चल रही थी और सावरकर भी मोहम्मद अली जिन्ना की तरह टू नेशन थ्योरी के पक्षधर थे यानी एक मुसलमानों का देश चाहता था तो दूसरा हिन्दुओं का जबकि महात्मा गांधी और उस दौर के दूसरे सभी बड़े नेता टू नेशन थ्योरी के खिलाफ थे उनकी सोच हिन्दू - मुस्लिम से हटकर हिन्दुस्तान की थी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने भाषण में आरएसएस का जिक्र करके जहां आजादी के शहीदों के परिवारों की दुखती रग पर नमक छिड़क दिया है तो दूसरी तरफ़ इस सवाल को भी जन्म दे दिया है कि क्या वे संघ का नाम लेकर संघ से मर्सी अपील कर रहे हैं 17 सितम्बर के आगे के लिए या फिर ये मोदी का लालकिले की प्राचीर से बतौर प्रधानमंत्री अंतिम और विदाई भाषण है?

प्रधानमंत्री कार्यालय के भाषण लिखितकर्ता ने पूरे भाषण को ही हंसी का पात्र बना डाला है, लगता है उसने किसी खुन्नस का बदला लिया तभी तो उसने प्रधानमंत्री से झूठ पर झूठ कहलवा दिया है ! आरएसएस में स्वयंसेवकों के रूप में युवाओं की कतार, राजनीतिक पार्टियों की रैलियों में युवाओं की कतार, रोजगार के लिए संघर्ष करते युवाओं की कतार जिनमें खासकर 19 से 29 साल आयु वर्ग के युवाओं की भरमार खुलकर नजर आती है। प्रधानमंत्री ने लालकिले पर खड़े होकर जिन बातों का जिक्र किया है वो हैरान करने वाली हैं मसलन विकसित भारत, आत्म निर्भर भारत, वोकल फार लोकल, आदि इनकी चर्चा प्रधानमंत्री तकरीबन 112 बार कर चुके हैं लेकिन उनकी किसी भी बात को देश गंभीरता से नहीं ले रहा है, आखिर क्यों ? प्रधानमंत्री की अमेरिका से हो रही बातचीत चीन तक पहुंच जाती है। देश की जिस इकोनॉमी को फोकस करते हुए प्रधानमंत्री विकसित भारत का सपना परोसने से नहीं चूकते। जिस 4 ट्रिलियन डालर वाली इकोनॉमी को लेकर सरकार छाती फुलाये घूमती है उसकी हकीकत यह है कि अगर इसमें से देश के अंबानी - अडानी, टाप पर बैठे कार्पोरेटस और इंडस्ट्रियलिस्ट की पूंजी को निकाल दिया जाय तो भारत की प्रतिव्यक्ति आय दुनिया के सबसे गरीब देशों की कतार में खड़ी हो जाती है। प्रधानमंत्री देश के किसानों, मछुआरों और पशुपालकों पर दरियादिली दिखाने वाली बातें इसलिए कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर किसान, मछुआरे, पशुपालक रूठ गया तो बीजेपी को मिलने वाला 23 करोड़ वोट सिर्फ और सिर्फ 3 करोड़ पर सिमट जायेगा। जबकि यह भी देश का डरावना सच है कि किसानों की हालत यह है कि उन्हें फर्टिलाइजर्स खाद के लिए तीन दिनों तक दिन रात खड़ा रहना पड़ता है तब भी खाद नहीं मिल पाती है। कल्पना कीजिए अगर चीन फर्टिलाइजर पर रोक लगा दे तो भारत के किसानों के हालात कैसे होंगे? यानी भारत अपने बूते किसानों को फर्टिलाइजर खाद तक मुहैया कराने की स्थिति में नहीं है।

प्रधानमंत्री ने लालकिले की प्राचीर से अपने भाषण में जो बातें कही हैं उससे तो ऐसा ही लगता है कि भारत को विकसित होने की जरूरत ही नहीं है वह तो आलरेडी विकसित हो चुका है। तीन करोड़ लखपती दीदी, भरपूर आय के साथ जीने वाले 9 करोड़ किसान, 3.5 करोड़ युवाओं की व्यवस्था प्रधानमंत्री ने कर ही दी है, 3 करोड़ से ज्यादा बुजुर्गो और दिव्ययांगों को मुद्रा योजना के साथ जोडते हुए तकरीबन 60 करोड़ लोगों को प्रधानमंत्री सबकुछ दे चुके हैं। जो बचते हैं उनमें से 18 साल से कम उम्र के बच्चों को माइनस कर दिया जाय तो हथेली में समा जाने लायक चंद करोड़ लोग ही तो बचते हैं। मगर हकीकत इसके उलट है। एक ओर उत्पादन के क्षेत्र में भारत सबसे नीचे के पायदान पर खड़ा होता है, मैन्यूफैक्चरिंग में उसका अपना विकास रेट निगेटिव में है इसके बाद भी भारत का कार्पोरेट दुनिया में सबसे रईसों की कतार में खड़ा हो गया है, वर्ल्ड बैंक तथा एमआईएफ ने लाखों लोगों को गरीबी रेखा से निकाल दिया है फिर भी प्रधानमंत्री बीते 10 सालों से लेकर अभी भी आत्मनिर्भरता का जिक्र कर रहे हैं। हकीकत भी यही है कि प्रधानमंत्री ने बीते 10 सालों में केवल और केवल सपने ही परोसे हैं। इसीलिए आज भी भारत को अपने ही भीतर भूख के खिलाफ, गरीबी के खिलाफ, बेरोजगारी के खिलाफ लड़ाई लड़नी पड़ रही है। इस बात को लेकर प्रधानमंत्री के माथे पर भी शिकन दिखाई दे रही है। एक ओर अमेरिका रूठा हुआ है तो दूसरी ओर चीन से गलबहियाँ होने लगी है, रशिया से भी कई क्षेत्रों में निकटता दिख रही है। रशिया के राष्ट्रपति पुतिन निकट भविष्य में भारत आने वाले हैं। चीन के विदेश मंत्री भी भारत आयेंगे। भारत के प्रधानमंत्री इसी महीने के अंत में चीन जाने वाले हैं। विदेश मंत्री भी हफ्ते भर बाद रशिया जायेंगे। नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर चीन और रशिया घूम कर लौट आये हैं। रक्षा मंत्री भी तमाम जगह की तफरी कर चुके हैं।

देश के कार्पोरेट की पूंजी वेस्टर्न कंट्रीज और अमेरिका के रास्ते ही गुजरती है। बीते 7 वर्षों में एक्सपोर्ट घटकर कार्पोरेट और बड़े इंडस्ट्रलीज के हिस्से में आकर खड़ा हो गया है। यहां तक कि दुनिया के बाजार में बेचे जाने वाला बासमती चावल भी कार्पोरेट के जरिए बेचा जा रहा है। मतलब दुनिया में टेरिफ वार का असर जनता पर नहीं कार्पोरेट पर पड़ रहा है। चूंकि सरकार को पता है कि कार्पोरेट के लिए मुनाफा कितना जरूरी है तो उसके लिए नये रास्ते बनाने पड़ेंगे। लालकिले से प्रधानमंत्री कहिन कि "भारत के किसान, भारत के मछुआरे, भारत के पशुपालक उनसे जुड़ी किसी भी अहितकारी नीति के आगे मोदी दीवार बनके खड़ा है"। दरअसल इस सबके पीछे कार्पोरेट का जो मुनाफा संकट में है वह खड़ा है तभी तो प्रधानमंत्री भारत की नीति से हटकर चाइना के साथ यह कहते हुए खड़े हो रहे हैं कि यह हमारी जरूरत है और हमारी जरूरत उस कार्पोरेटस को मुनाफा देने के लिए है जो सिर्फ और सिर्फ 15 लाख रोजगार दे पाता है और इसमें टाप हंड्रेड कार्पोरेटस शामिल हैं। जितना पैसा देश के 99 फीसदी लोगों के पास है उससे ज्यादा पैसा देश के 200 बड़े कार्पोरेटस के पास है। सरकार ने पब्लिक सेक्टर और जिम्मेदारी लेने से मुंह मोड़ लिया है। जिसका असर यह हुआ है कि रोजगार गायब हो गया है और प्रधानमंत्री लालकिले पर खड़े होकर प्रचार कर रहे हैं एमएसएमई का, स्टार्टअप का, स्किल इंडिया का।

पार्लियामेंट में पेश की जाने वाली मंत्री और संसदीय समितियों की रिपोर्ट्स को खंगाला जाय तो पैरों तले जमीन खिसकने लगती है तभी लगता है कि प्रधानमंत्री का भाषण कौन तैयार करता है ? क्या उन्हें पता नहीं है कि लाखों स्टार्टअप क्यों बंद हो गये हैं ? क्या उन्हें पता नहीं है कि बैंक लोन देने से कतराने लगे हैं ? क्या उन्हें पता नहीं है कि देश के भीतर करोड़ों की तादाद में एमएसएमई बंद हो गये हैं ? आज का दौर टेरिफ वार और इकोनॉमिकली वार का है। जिसका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि "आज की परिस्थितियों में आर्थिक स्वार्थ दिनों-दिन बढ़ रहा है तब समय की मांग है कि हम उन संकटों का हिम्मत के साथ मुकाबला करें" । इस हकीकत को भी समझना जरूरी है कि भारत एग्रीकल्चर के जरिए ही देश को खिला भी रहा है और कमा भी रहा है। शायद इसीलिए मोदी सरकार ने तीन काले कृषि कानून लाकर सब कुछ कार्पोरेटस के हाथों सौंप देने की चाल चली थी। बरसात और सूखे से बर्बाद होती फसलों का जिम्मा लेने से सरकारें हमेशा भागती रहती हैं। बर्बाद फसलों की जिम्मेदारी बीमा कंपनियों को सौंप दी जाती है। हाल में ही वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि बीमा क्षेत्र में शतप्रतिशत भागीदारी विदेशी कंपनियों के लिए खोली जा रही है। फसल बीमा की हकीकत यह है कि किसान के हाथ में 22 परसेंट पैसा आता है और बीमा कंपनी 78 फीसदी पैसा कमाती है।

प्रधानमंत्री अपने भाषण में आपरेशन सिंदूर का भी जिक्र करने से नहीं चूके। उन्होंने पाकिस्तान का भी खुलकर जिक्र किया। भारत डिफेंस के क्षेत्र में भी कमाल करने वाला है यह कहते हुए उम्मीद और आस जगाने की कोशिश की, मगर उन्होंने इस सच को देश से नहीं बताया कि डिफेंस के क्षेत्र में अंबानी और अडानी के अलावा सवा सैकड़ा से ज्यादा प्राइवेट सेक्टर की घुसपैठ हो चुकी है और कमाई भी दूसरे क्षेत्रों की तुलना में लगभग 72 परसेंट से ज्यादा हो गयी है। आपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री इस हकीकत को बयान करते हुए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह के साथ ही खुद को भी कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूके "मेरे प्यारे देशवासियों मैं आज देश के सामने एक चिंता - एक चुनौती के संबंध में आगाह करना चाहता हूं। षड्यंत्र के तहत, सोची-समझी साजिश के तहत देश की डेमोग्राफी को बदला जा रहा है। एक नये संकट के बीज बोये जा रहे हैं। घुसपैठिए मेरे देश की बहन-बेटियों को निशाना बना रहे हैं। ये घुसपैठिए भोले-भाले आदिवासियों को भ्रमित करके उनकी जमीनों पर कब्जा कर रहे हैं। ये देश सहन नहीं करेगा। मोदी ये भूल गए कि बीते 11 सालों से वे ही देश के प्रधानमंत्री हैं और उनके ही कार्यकाल में देश में पुलवामा और पहलगाम जैसी असहनीय घटनाएं घटी हैं। जबकि सेना, बीएसएफ, पैरामिलिट्री फोर्स, पुलिस सब कुछ तो उनके ही अधीन है। तो फिर घुसपैठ रोकने की जिम्मेदारी भी आपकी ही है मगर आपने और आपकी सरकार ने कभी भी कोई जवाबदेही ली ही नहीं है। अगर ली होती तो ना आप प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होते ना आपके मंत्री राजनाथ सिंह और अमित शाह। अभी भी समय है जब आपने लालकिले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए यह स्वीकार कर ही लिया है कि देश के भीतर घुसपैठिए आ रहे हैं यानी आप और आपकी सरकार घुसपैठियों को रोकने में सक्षम नहीं है तो भाषणबाजी छोड़कर जबावदेही लेते हुए आप तत्काल प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा क्यों नहीं दे देते हैं ? अगर इतना साहस नहीं है तो क्या इतना साहस है कि राजनाथ सिंह और अमित शाह का इस्तीफा ले सकेंगे या बर्खास्त कर सकेंगे ? आपके भाषण के इस हिस्से को सुनकर आपके द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव में दिये गये भाषणों के वे अंश देश के जहन में तरोताजा होकर आ गये "मंगलसूत्र छीन लेंगे, भैंस खोलकर ले जायेंगे, सम्पत्ति छीनकर ज्यादा बच्चे पैदा करने वालों में बांट देंगे"। मजेदार बात यह है कि जब प्रधानमंत्री घुसपैठ का जिक्र कर रहे थे तब गृहमंत्री अमित शाह ताली बजा रहे थे।

अब आप अमेरिका के साथ डिफेंस डील नहीं कर रहे हैं क्योंकि आपने रास्ता बदल लिया है। अब आप रशिया के ऊपर निर्भर हैं। चीन के ऊपर आप निर्भर होने जा रहे हैं। इस दौर में ईरान के साथ भी आपकी निकटता सामने आने लगी है। इजराइल को लेकर आपने खामोशी बरत ली है। फिलिस्तीन की आवाज आपके जहन से निकलने लगी है। शायद अब आपको समझ में आने लगा होगा कि पारंपारिक परिस्थितियों में गुटनिरपेक्ष का मतलब होता क्या है ? क्यों नेहरू ने भारत को गुटनिरपेक्ष खड़ा कर कहा था कि हम किसी गुट में नहीं रहेंगे। लेकिन आपने तो नेहरू से ऐसी नफरत निबाही कि गुटनिरपेक्ष के मायने ही बदलकर रख दिये। आपने तो अपनी जरूरत का हवाला देकर पाला बदलना ही शुरू कर दिया कुछ इस तरह से जैसी साड़ियां बदली जाती हैं। यही कारण है कि आपकी ये राष्ट्रीय नीति अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को रास नहीं आई और शायद किसी को भी रास नहीं आयेगी।

क्या प्रधानमंत्री दो करोड़ लखपति दीदी की कतार देश में खड़ी कर पायेंगे तथा चुनाव आयोग की तर्ज पर (बिहार में जिन 65 लाख वोटरों के नाम काटे गये हैं) 2 करोड़ लखपति दीदी के नाम बेवसाइट पर डालेंगे ? क्या मोदी सरकार प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत जिन 40 करोड़ लोगों को 28 लाख करोड़ रुपये दिये गये हैं उनकी पूरी सूची बेवसाइट डालेगी ? मोदी सरकार ने घोषणा की थी कि 2022 में किसानों की आय दुगनी हो जायेगी तो क्या मोदी सरकार उन किसानों पूरी सूची बेवसाइट पर अपलोड करेगी जिनकी आय 2022 से लेकर 15 अगस्त 2025 तक दुगनी हो गई है ? इसके साथ ही क्या यह भी बतायेंगे कि 2016-17 की तुलना में 2024-25 में खेती के सामानों की कीमत में कितना इजाफा हुआ है ? प्रधानमंत्री जिस वोकल फार लोकल का स्वर अलापते हुए कहते हैं कि छोटी आंख वाले गणेश जी मत लेना तो क्या पीएमओ को जानकारी है कि 15 अगस्त 2025 के दिन कितनी संख्या में चीन में निर्मित तिरंगा झंड़े बिके हैं ? देश में जब महात्मा गांधी ने इंग्लैंड में बने कपड़ों के बहिष्कार का आव्हान किया था तब से लेकर अब तक खादी की महत्ता है ? देश में जो कपास किसान हैं उनको लेकर क्या काम किया गया है ? कपास किसानों की हालत क्या है ? खादी कपड़े की दशा और दिशा क्या है ? कहीं अमेरिकी टेरिफ के असर से तमिलनाडु और नार्थ-ईस्ट में बनने वाले कपड़े बनना बंद तो नहीं हो गये ? सूरत के डायमंड इंडस्ट्री की हालत कहीं सबसे बुरी तो नहीं हो गयी है ? प्रधानमंत्री का भाषण जिसने भी तैयार किया है (7 रेसकोर्स जिसे अब 7 लोक कल्याण मार्ग कहा जाता है) क्या उसे पता है कि जिन 6 बड़ी इमारतों को प्रधानमंत्री के घर में तब्दील किया गया है, देश तो छोड़ दीजिए, 100 किलोमीटर के दायरे में जिसमें हरियाणा, उत्तर प्रदेश का इलाका आता है उसकी परिस्थितियां कैसी है ? दिल्ली से गाजियाबाद-मेरठ, फरीदाबाद से नूंह तक किन परिस्थितियों में पहुंचा जाता है ? क्या वो सिर्फ और सिर्फ गुरुग्राम को देखते हैं जहां पर एक लंबी कतार में दुकानें बंद पड़ी हैं ?

मुश्किल तो इस बात की है कि प्रधानमंत्री को उनके निवास से गंतव्य तक पहुंचाने वाला जहाज भी एक लंबी सुरंग से होकर गुजरता है। तो फिर प्रधानमंत्री कैसे देख पायेंगे कि बाहर लोगों के क्या और कैसे हालात हैं  ? प्रधानमंत्री इतना तो कर ही सकते हैं - बैंकों से लिस्ट मंगाकर उनको एकबार परख लें कि बैंकों ने कितनों को मुद्रा योजना के तहत लोन दिया है, कितने किसानों को कर्ज दिया है और कितनी बसूली की है। बैंकों ने कितने कार्पोरेटस को कितना - कितना लोन दिया है और सरकार ने उसके एवज में कितना रिटर्न आफ कर दिया है। कुछ मंगाकर देखेंगे भी या फिर यूं ही लच्छेदार भाषण ही देते रहेंगे ? यह अलग मसला है कि इस दौर में चुनाव आयोग कटघरे में खड़ा है जिसका जिक्र आपने लालकिले की प्राचीर से देशवासियों से नहीं किया है। देशवासियों के मन में परसेप्शन बड़ा हो चला है। बीते 11 सालों में घड़ी की सुई को उल्टा घुमाते हुए देश को उन्हीं परिस्थितियों में लाकर खड़ा कर दिया गया है जो 78 साल पहले थीं लेकिन इन सबसे हटकर प्रधानमंत्री लालकिले की प्राचीर से भाषण देने में व्यस्त हैं। यही सोच महात्मा गांधी के भीतर भी थी इसलिए आजादी के दिन वो पार्लियामेंट हाउस नहीं पहुंचे थे। नेहरू जब लालकिले की प्राचीर से भाषण दे रहे थे तब महात्मा गांधी बंगाल के नोआखाली में एक अंधेरे कमरे में बैठे हुए थे वहां पहुंचे राजगोपालाचार्य ने बापू से कहा था "रोशनी कर दूं" तो बापू ने कहा "नहीं, अभी अंधेरा कहीं ज्यादा घना है"। 78 साल बीत चुके हैं मगर कोई नहीं जानता कि वे कहां खड़े हैं और देश कहां खड़ा है ?


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार
 

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August 17, 2025
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वीर बसावन सिंह की स्मृति संस्थान पर पहली बार ध्वजारोहण

"बसावन सिंह विचार मंच" की स्थापना, संयोजक मनीष कुमार सिंह, अध्यक्ष रामानंद गुप्ता और सचिव मुकेश कुमार सर्वसम्मति से नियुक्त किए गए।

15 अगस्त 2025 को वैशाली जिले के मुख्यालय हाजीपुर में निर्मित स्वतंत्रता सेनानी बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम में 25 सालों बाद पहली बार वैशाली जिले के आम लोगों के द्वारा किया गया ध्वजारोहण।  वैशाली जिले के समाजिक दायित्वों को लेकर गंभीर रहने वाले एक समूह ने यह निर्णय लिया कि 15 अगस्त 2025 को पहली बार सभी लोगों को सूचित कर ध्वजारोहण किया जाएं। इस कड़ी में जिला परिषद अध्यक्ष से मुलाकात कर एक पत्र देकर सम्मानित अध्यक्ष की सहमति और सहयोग का आश्वासन प्राप्त किया गया। वहीं सोशल मीडिया और व्यक्तिगत रूप से भी लोगों को आमंत्रित किया गया था।

तद पश्चात् स्वतंत्रता सेनानी बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम में प्रथम बार ध्वजारोहण का कार्यक्रम संपन्न किया गया। पिछले 25 वर्षों से बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम हाजीपुर में ध्वजारोहण या झंडोत्तोलन का कार्यक्रम कभी नहीं हुआ। जिसको लेकर जन भावनाओं में यह पीड़ा थी कि स्वतंत्र सेनानियों के नाम से बने इस भवन में सरकारी स्तर पर ध्वजारोहण या झंडोत्तोलन की व्यवस्था होनी चाहिए थी। समाज के गणमान्य लोगों की सोच के कारण कुछ लोगों की सहयोग से पहली बार 2025, 15 अगस्त को ध्वजारोहण की व्यवस्था की गई और सफलतापूर्वक और लोगों के सम्मान के साथ ध्वजारोहण का कार्यक्रम संपन्न किया गया। इस कार्यक्रम में ध्वजारोहण की जिम्मेवारी प्रोफेसर बालेंद्र प्रसाद सिंह जो की सोनपुर कॉलेज के प्राचार्य से सेवानिवृत्ति हैं और मुकेश कुमार जो बसावन सिंह के नाती द्वारा सम्पन्न किया गया।

वहीं पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्मृति शेष रघुवंश प्रसाद सिंह के पुत्र सत्य प्रकाश जी दिल्ली से हाजीपुर आकर बसावन सिंह इंडोर स्टेडियम में लगे बसावन सिंह के मूर्ति पर माल्यार्पण किया। वहीं स्वतंत्रता सेनानीयों को लेकर लोगों के विचारों पर अपनी सहमति सहित क़दम से क़दम मिलाकर बढ़ने का वादा भी किया। ध्वजारोहण के लिए सत्य प्रकाश जी को वैशाली गढ़ पर दशकों से उनके पिता द्वारा ध्वजारोहण और झंडोत्तोलन की जिम्मेवारी को अब निभाने के लिए जाते हुए लगभग एक घंटा का समय देकर उपस्थिति सभी लोगों से बात की और पुष्पांजलि अर्पित कर वैशाली गढ़ प्रस्थान किए।

ध्वजारोहण के उपरांत उपस्थिति लोगों ने अपने संवाद कार्यक्रम में स्वतंत्रता सेनानीयों के लिए अपना श्रद्धा-सुमन अर्पित किया। वहीं सभी का यह विचार आया कि वैशाली जिले के सभी स्वतंत्रता सेनानीयों के सम्मान के लिए एक स्वतंत्रता सेनानी पार्क का निर्माण होना चाहिए। उस पार्क में वैशाली जिले के तमाम स्वतंत्रता सेनानीयों की मूर्ति और उनका जीवन परिचय सहित अंकित किया जाना चाहिए। इसके लिए "बसावन सिंह विचार मंच" की स्थापना की गई।

बसावन सिंह विचार मंच के संयोजक मनीष कुमार सिंह, अध्यक्ष रामानंद गुप्ता और सचिव मुकेश कुमार (बसावन सिंह के नाती) होंगे। वहीं तीनों लोकों की जिम्मेवारी होगी कि 11 सदस्यों की कमिटी बनाकर भारत सरकार व राज्य सरकार से जमीन और स्वतंत्रता सेनानीयों के लिए पार्क बनाने के लिए फंड स्वीकृति के लिए आवेदन करें। आवेदन भेजने में जिलाधिकारी, वैशाली के माध्यम से सरकारों को सूचित किया जाए ताकि 26 जनवरी 2026 को झंडोत्तोलन के साथ भूमि पूजन और शिलान्यास एक साथ सम्पन्न कराया जा सकें।

वही महत्वपूर्ण भूमिका में प्रोफेसर प्रेम सागर सिंह, प्रोफेसर रामनाथ सिंह, प्रोफेसर जितेंद्र कुमार शुक्ला, रामानंद गुप्ता, पंकज कुमार सिंह, पुष्पांजलि कुमारी, राजीव रंजन, नीरज कुमार, प्रभाष कुमार, ब्रजेश कुमार, राज किशोर चौधरी, भारतेन्दु प्रसाद सिंह, हीरा लाल पंडित, विवेक सिंह, शैलेन्द्र कुमार सिंह, विभूति शर्मा, अरूण कुमार सिंह, गौतम कुमार, मनीष तिवारी, नीरज सिंह, राधामोहन शर्मा, लवकुश शर्मा, शैलेन्द्र कुमार सिंह, पुतुल सिंह कुशवाहा, महेश तिवारी, रितु राज शर्मा, राजीव रंजन, सुनील गुप्ता, सब्बीर आलम, शिव राम, मनोज पासवान, राहुल कुमार, प्रमोद झा, मनोज कुमार सिन्हा और अवधेश सिंह की भी उपस्थिति के साथ लगभग सैकड़ों लोगों की उपस्थिति हुई।

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August 14, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 11

खुले तौर पर चुनौती दे रहा है सोशल मीडिया... गोदी मीडिया को !

"भारत का प्रधानमंत्री चोर है" ना तो ये सवाल नया है और ना ही नारा। याद कीजिए एक वक्त भारत की राजनीतिक बस्तियों में एक ही नारा सुनाई देता था "गली - गली में शोर है......" और ये नारा धीरे-धीरे राजनीति के भीतर समाविष्ट होकर राजनीति का अभिन्न अंग सा बन गया। और जिस तरह से मौजूदा समय में चोर शब्द प्रधानमंत्री के साथ जोड़ा जा रहा है तो क्या वाकई संविधान संकट में है ? देश का लोकतंत्र खतरे में है ? क्या मौजूदा वक्त में जो देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी पर जिन सीटों के भरोसे विराजमान हैं अगर उन सीटों पर ईमानदारी के साथ चुनाव लड़ा गया होता और देश के चुनाव आयोग ने निष्पक्षता के साथ चुनावी प्रक्रिया को पूरा किया होता तो जिस पार्टी का व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठा हुआ है उस पार्टी को उतनी सीटें नहीं मिल पाती जितनी मिली हैं और वह व्यक्ति प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठ पाता ? क्या बीते 10 बरस की सत्ता ने देश के लोकतंत्र को अपनी मुठ्ठी में कैद कर लिया है ? क्या मौजूदा समय में लोकतंत्र के जितने भी पायदान हैं उन सबको मौजूदा सत्ता ने एक-एक करके धराशायी कर दिया है ? ये सवाल देश के भीतर देश की आजादी के 78 वीं सालगिरह में इसलिए बड़ा और खड़ा हो गया है क्योंकि बीते दस बरस में देश ने देश के भीतर जिस तरह से संवैधानिक और स्वायत्त संस्थाओं का ढ़हना, देश के भीतर में लोकतांत्रिक तौर पर मौजूद संस्था का काम ना करना या काम करना तो केवल सत्ता के लिए काम करना, और बात यहां से बढ़ते हुए देश के लोकतंत्र का सबसे बड़ा असल पहरुआ चुनाव आयोग का कटघरे में खड़ा होना देखा है। और जब चुनाव आयोग ही आकर कटघरे में खड़ा हो गया है तो फिर उसके बाद कुछ बचता नहीं है यानी देश के संविधान और लोकतंत्र की हथेली खाली है।

चुनाव आयोग ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर ना केवल अपनी साख को दांव पर लगाया बल्कि देश के लोकतंत्र, संविधान के साथ ही प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को भी दांव पर लगा दिया है। इतना ही नहीं अब जबकि मामला सुप्रीम कोर्ट के पाले में खो-खो खेल रहा है तो उससे सुप्रीम कोर्ट की भी स्थिति सांप-छछूंदर जैसी होकर रह गई है। सुप्रीम कोर्ट के सामने सबसे बड़ा संकट तो यही दिख रहा है कि वह पिछले कई वर्षों से हो रही अपनी धूमिल छबि को उजला बनाकर अपनी साख को बचाने के साथ ही लोकतंत्र और संविधान की साख को बचाये या फिर चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री पद की प्रतिष्ठा को बचाये। अगर पलड़ा सत्तानूकूल हुआ तो देश के भीतर यही संदेश जायेगा कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर बैठे हुए न्यायमूर्ति भलै ही चाहे नैतिकता की कितनी भी बातें करते हों लेकिन उनके फैसले सत्तानूकूल होने का दामन नहीं छोड़ पा रहे हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह के मैन्यूपुलेशन का खुलासा चुनाव आयोग के ही दस्तावेजों से निकल कर सामने आया है और अब यह बात संसद भवन के गलियारों से निकलकर खुले तौर पर सड़कों पर रेंगने लगा है तो उसने इस सवाल को भी जन-जनतक पहुंचा दिया है कि क्या नरेन्द्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री देशवासियों के वोट से बनने के बजाय चुनाव आयोग द्वारा मैनेज किये गये वोटों की बदौलत बने हैं ? तो क्या 2024 का लोकसभा चुनाव ऐसा चुनाव है जो लड़ा ही नहीं गया बल्कि मैनज (चोरी) कर लिया गया है ?

देश में एक तरफ वो मीडिया है जिसे सत्ता की विरुदावली गायन करने के कारण गोदी मीडिया कहा जाता है और दूसरी तरफ उसके समानांतर खड़ा हुआ है सोशल मीडिया। सोशल मीडिया के भीतर जो शोर, हंगामा है वह पहली बार मेनस्ट्रीम मीडिया या कहें गोदी मीडिया को खुलेआम चुनौती दे रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो भी संवाद भारत से निकल कर बाहर जा रहा है वो तो पहला मैसेज यही दे रहा है कि नरेन्द्र मोदी गलत तरीके से प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हैं। इतना भर नहीं 2024 के लोकसभा चुनाव में जो भी सांसद जीता है या हारा है अपनी जीत-हार को संदेह की दृष्टि से देखने लग गया है ! ये सवाल न तो ईवीएम का है न ही बैलेट पेपर से चुनाव कराने का है बल्कि ये सवाल तो देश के भीतर में जिसकी अगुआई में या कहें जिसकी छत्रछाया में या कहिये जिसकी अम्पायरिंग में लोकतंत्र का जो खेल चुनाव के तौर पर खेला जाता है उस खेल को ही अम्पायर ने अपने अनुकूल कर लिया और अम्पायर सत्ता के अनुकूल हो गया। इस तरह की परिस्थिति देश के सामने आजादी के बाद से कभी नहीं आई है। क्या वाकई देश की जनता अपने नुमाइंदों के भरोसे उस संसद को देख रही है जिसमें बीजेपी के जो सांसद (240) हैं तो उससे कहीं ज्यादा सांसद (320) बीजेपी से हटकर हैं, जितने वोट बीजेपी को मिले हैं (37 फीसदी) उससे ज्यादा वोट (63 फीसदी) दूसरों को मिले हैं। बीजेपी को मिली 240 सीटों में से लगभग 35-40 सीटें ऐसी है जो खुले तौर पर चुगली कर रहीं हैं कि उन्हें जीतने के बजाय मैनेज (चोरी) किया गया है। जिसकी झलक चावल के एक दाने की तर्ज पर बेंगलुरू सेंट्रल (लोकसभा सीट) का परीक्षण कर देश के सामने कांग्रेस नेता और लीडर आफ अपोजीशन राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में रखा। इसकी कल्पना तो देश ने कभी की ही थी कि चुनाव भी चोरी हो सकता है। लोकतंत्र को इस रास्ते पर भी चल कर खत्म किया जा सकता है।

शायद यही कारण है कि पहली बार विपक्ष की सभी पार्टियों ने अपने मतभेदों को दरकिनार कर एक साथ संसद से सड़क तक बबाल काटा है। जिसमें पुलिस द्वारा लगाए गए अवरोध भी नाकारा साबित हुए ! विपक्षी नेताओं का कहना था कि यह राजनीति नहीं है बल्कि संविधान बचाने की परिस्थितियों के बीच खेला जा रहा खेल है। सांसदों ने जिस तरह से सड़क पर उतर कर प्रदर्शन किया उससे पहली बार पार्लियामेंट और उसके बाहर उठाए गए तमाम मुद्दे बेमानी से होकर रह गये 2024 के लोकसभा चुनाव में चुनाव आयोग द्वारा किये गये वोटों के मैनेजमेंट के मुद्दे के सामने। क्योंकि 2024 का चुनाव एक फेक चुनाव था और उस चुनाव में जिस तरह से जनादेश को बताया गया उसमें चुनाव आयोग की भूमिका खलनायक की तर्ज पर उभर कर सामने आयी है ! चुनाव मैनेज को लेकर वरिष्ठ कांग्रेस नेता (राज्यसभा सदस्य-पूर्व मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश) दिग्विजय सिंह के वे कथन लोगों के जेहन में रेंगने लगे हैं जो उन्होंने मध्यप्रदेश की धरती पर खड़े होकर एक वक्त विधानसभा चुनाव के दौरान कहा था कि चुनाव जनता के वोट से नहीं प्रशासनिक मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। एक वक्त इंदिरा गांधी ने देश में घोषित इमर्जेंसी लगाई थी और उसका खामियाजा भी भुगता था । वर्तमान सत्ता ने उससे सबक लेते हुए घोषित इमर्जेंसी से परहेज करते हुए देश के भीतर कुछ ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी जिसने देश के भीतर घोषित इमर्जेंसी से ज्यादा भयावह हालात पैदा कर दिए।

परंपरागत रूप से कार्पोरेट खुले तौर पर सत्तानशीन पार्टी को फंडिंग करता रहा है चाहे वह छत्रपों की पार्टी ही क्यों न रही हो। बीते दस बरस में ऐसी परिस्थिति निर्मित कर दी गई है कि कोई भी कार्पोरेट किसी भी हालत में बीजेपी को छोड़कर किसी भी दूसरी पार्टी को फंडिंग नहीं कर सकता है। अगर किया तो ईडी, सीबीआई, आईटी नामक जिन्न तो हैं ही उसे सबक सिखाने के लिए। यह भी शायद पहली बार हो रहा है कि बीजेपी के सांसदों को छोड़कर किसी भी दूसरी पार्टी के सांसद का काम बिना सत्ता की इजाजत के नहीं हो सकता है और हो भी क्यों जब सत्ता अपने तौर पर अपने आप को इस रूप में रखने के लिए तैयार है कि देश में एक ही राजनीतिक दल है, एक ही जीत है, एक ही जनादेश है और उसी जनादेश के आसरे सत्ता उसी तरह बरकरार रहेगी। देश के भीतर में जनता से जुड़े हुए हर मुद्दे का अस्तित्व हरहाल में चुनावी जीत से तय होगा चाहे वह कितना भी अहम और बड़ा मुद्दा क्यों न हो। देश के भीतर जिस किसी ने भी अपने गले में बीजेपी और आरएसएस का तमगा लटकाकर रखा हुआ है तो देश के भीतर कोई भी थाना उसके खिलाफ एफआईआर लिखने की हिमाकत नहीं कर सकता है। सड़क पर उतरे हुए विपक्ष ने शायद यही संदेश देने की कोशिश की है कि देश के भीतर देश की संसदीय राजनीति ध्वस्त हो चुकी है। देश के संविधान के तहत जो चैक एंड बैलेंस की व्यवस्था थी उसे भी धराशायी कर दिया गया है।

ऐसी परिस्थिति में देश के पास एक ही रास्ता बचता है संविधान की व्याख्या करने वाली संवैधानिक संस्था सुप्रीम कोर्ट के पास जाने का। लेकिन बीते 10 बरस में जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट ने देश को मृगमरीचिका में भरमाते हुए अपने फैसले के तराजू के एक पलड़े को सत्ता की तरफ झुकाया है उसने अफलातून की इसी बात को सच साबित किया है कि "यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है कि न्याय सबके लिए बराबर होता है। कानून के जाल में केवल छोटी मछलियां फंसती हैं, मगरमच्छ तो जाल फाड़ कर बाहर निकल आते हैं"। अब तो ऐसा लगने लगा है कि सत्ता के गिरफ्त से बची हुई देश की सबसे बड़ी अदालत भी सत्ता की गिरफ्त में आती जा रही है। अदालतें अब न्याय नहीं निर्णय करने लगी हैं सामने वाले की हैसियत (औकात) को देखकर। पीएम मोदी की सरकार तो यही मैसेज देती हुई दिखाई दे रही है कि हमें जनता ने चुना है तो अगले चुनाव तक हम ही इंडिया हैं, हमसे कोई सवाल मत पूछिए। अगर सवाल पूछना ही है तो उस जनता से पूछिए जिसने हमें चुना है। जनता से पूछने के लिए चुनाव में जाना होगा और चुनाव में जाने के मायने और मतलब बहुत साफ है कि संवैधानिक पद पर बैठा हुआ व्यक्ति संविधान से मिली हुई ताकत का उपयोग अपनी राजनीतिक सत्ता को बचाने के लिए संवैधानिक संस्थाओं को ही धराशायी करता चला जा रहा है। शायद देश में परोसी गई शून्यता का जवाब ही है पार्लियामेंट से निकलकर सड़क पर जमा हुई सांसदों की कतार। शायद  इसका जवाब किसी के पास नहीं होगा क्योंकि ये भारत के भीतर अपने तरह की पहली परिस्थिति है और शायद ये परिस्थिति ही मौजूदा सत्ता के लिए लास्ट वार्निंग भी है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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August 14, 2025
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जिला अस्पताल में करुणा आधारित प्रशिक्षण कार्यशाला संपन्न

कार्यशाला का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों में रोगियों व सहकर्मियों के प्रति करुणा, संवेदनशीलता और आपसी सहयोग की भावना को बढ़ावा देना

हाजीपुर : जिला अस्पताल, हाजीपुर में पिरामल स्वास्थ्य द्वारा दो दिवसीय कॉग्निटीवेली बेस्ड कंपेशन ट्रेनिंग (सी बी सी टी) कार्यशाला का सफल आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन मुख्य अतिथि सिविल सर्जन, डीपीएम, डीभीबीडीसीओ और एसीएमओ द्वारा किया गया। कार्यशाला का उद्देश्य स्वास्थ्यकर्मियों में रोगियों व सहकर्मियों के प्रति करुणा, संवेदनशीलता और आपसी सहयोग की भावना को बढ़ावा देना था। इसमें प्रतिभागियों ने व्यावहारिक गतिविधियों के माध्यम से सीखा कि कैसे रोज़मर्रा की कार्यशैली में करुणा को शामिल कर, स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता को और बेहतर बनाया जा सकता है।


प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण को प्रेरणादायक एवं उपयोगी बताते हुए कहा कि इससे कार्यस्थल का वातावरण और सकारात्मक बनेगा तथा रोगियों के प्रति सेवा भाव और मज़बूत होगा। इस अवसर पर जिला गुणवत्ता आश्वासन अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर, नर्सें, लैब टेक्नीशियन व अन्य स्वास्थ्यकर्मी मौजूद रहे। पिरामल स्वास्थ्य की ओर से राज्य प्रतिनिधि त्रिप्ता मिश्रा, शर्ली, अमरेश, शिवम तथा ज़िले से दीपिका, अभिषेक, शशि, मनोज, मधुबाला सहित गांधी फ़ेलोज़ ने भाग लिया।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 14, 2025
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दिल में छेद वाले 16 बच्चों को जांच के लिए भेजा गया आईजीआईएमएस

बीमारी की पुष्टि के बाद होगा ऑपरेशन

वैशाली : मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना अंतर्गत दिल के छेद वाले चिन्हित 16 बच्चों को जांच के लिए मंगलवार को इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान, पटना भेजा गया है। यहां पर विशेषज्ञ चिकित्सकों के द्वारा स्क्रीनिंग की जाएगी, उसके उपरांत जिन बच्चों को ऑपरेशन की आवश्यकता होगी उन सभी का निशुल्क इलाज व ऑपरेशन कराया जाएगा। सिविल सर्जन डॉक्टर श्याम नंदन प्रसाद ने बताया के विभिन्न स्वास्थ्य प्रखंडों में राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम अंतर्गत डॉक्टर, फार्मासिस्ट और एएनएम द्वारा प्रत्येक कार्य दिवस को जिले के सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों एवं आंगनबाड़ी केंद्रों पर जाकर 0- 18 वर्ष के जन्मजात रोगों से ग्रसित बच्चों की निशुल्क जांच कर चिन्हित किया जाता है। हृदय रोगियों के लिए मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना वरदान साबित हो रही है। इस योजना का लाभ दिल के छेद वाले बच्चों को मिल रहा है। जिले में एक अप्रैल 2021 से लेकर जुलाई 2025 तक अब तक 138 से अधिक दिल के छेद रोग से ग्रसित बाल हृदय रोगियों को चिन्हित कर ऑपरेशन कराया गया है। 

जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉक्टर कुमार मनोज ने बताया के वैशाली राज्य में सबसे अधिक ऑपरेशन करने वाले जिले में तीसरे स्थान पर है। आईजीआईएमएस पटना में अभी तक 20 बच्चों का स्क्रीनिंग किया गया था जिसमें से 8 बच्चों का सफलतापूर्वक ऑपरेशन कराया गया है। डीसी आरबीएसके डॉ शाइस्ता ने बताया कि आईजीआईएमएस पटना के आरबीएसके नोडल डॉ प्रियंकर सिंह, अस्पताल समन्वयक डॉ विवेकानंद और विशेषज्ञ डॉक्टरों की टीम द्वारा बच्चों का सफल ऑपरेशन में प्रमुख योगदान दिया गया है। इसी क्रम में वैशाली से फिर 16 बच्चों को निशुल्क जांच के लिए आज आईजीआईएमएस पटना भेजा जा रहा है। बीमारी की पुष्टि होने के उपरांत बच्चों को डिवाइस क्लोजर एवं सर्जरी हेतु भेजा जाएगा। मौके पर डीईआईसी प्रबंधक सह समन्वयक आरबीएसके डॉ शाइस्ता, फार्मासिस्ट अभिषेक कुमार और नवीन कुमार उपस्थित थे, जबकी आईजीआईएमएस पटना में फार्मासिस्ट राजीव कुमार और शशिकांत कुमार उपस्थित होकर बच्चों और अस्पताल संस्थान के साथ समन्वय स्थापित करते हुए बच्चों का आगमन, ससमय इको, जांच और एंबुलेंस के द्वारा प्रस्थान सुनिश्चित करेंगे।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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August 13, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 10

जब हार (तय) सामने दिखाई दे रही हो तो साजो-सामान समेट कर लौट जाना ही समझदारी है (बड़े बुजुर्गों की सीख)

बिहार में चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही है प्रक्रिया को लेकर जिन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के भीतर से जिस तरह की टिप्पणियां निकल कर देश के सामने आ रही हैं वे साफ - साफ संकेत दे रही है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है। यह अलग बात है कि बीच-बीच में सुप्रीम कोर्ट इस तरह की टिप्पणियां भी करता रहता है कि आम लोगों को लगे कि सुप्रीम कोर्ट निष्पक्षता के तराजू में तौल कर फैसले देगा मगर अधिकांशत: जब भी अंतिम फैसला आया तो वह सत्तानुकूल ही आया। कुछ फैसले तो ऐसे आये जो न इधर के रहे न उधर के यानी न तुम जीते न हम हारे फिर भी पलडा सत्ता की तरफ ही झुका दिखाई दिया। बिहार में चल रही एसआईआर के मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर तथ्यों के साथ गडबडियां सामने आई तो पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाई जा सकती है। 

सुप्रीम कोर्ट ने ही आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड पर भी विचार करने को कहा था लेकिन चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को हवा हवाई बना दिया। मगर अब जब सुनवाई आगे बढ़कर फैसले के करीब आती जा रही है तो न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां एक - एक करके चुनाव आयोग की प्रक्रिया को हरी झंडी देती हुई दिखाई दे रही है। तो क्या ये मान लिया जाय कि अब जो भी हो रहा है और आगे होने वाला है वह केवल औपचारिक ही होगा और फैसला भी वही आयेगा जिसके संकेत न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां दे रही हैं। चुनाव आयोग ने जिस तरह का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है उसने खुद की साख के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की साख को भी दांव पर लगा दिया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भूसे में से एक सुई ढूंढने की तर्ज पर जिस तरीके से 2024 के लोकसभा चुनाव को प्रभावित किये जाने का खुलासा किया है और वह भी चुनाव आयोग के द्वारा ही दिए गए दस्तावेजों के जरिए। तो उसने तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी की साख को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। 

अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है देखना है कि वह अपने फैसले से किस तरह लोकतंत्र को जिंदा रहने का रास्ता प्रशस्त करता है, लोगों के मन में संविधान पर आस्था कायम रहेगी, देश की आवाम चुनाव आयोग और चुनाव पर विश्वास कर पायेगी, या फिर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से सब कुछ धराशायी हो जायेगा। क्योंकि सवाल तो दो ही हैं क्या नरेन्द्र मोदी फर्जी वोटों के आसरे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं ? चुनाव आयोग की सारी मशक्कत के बाद भी बिहार के अंदर अगर बीजेपी चुनाव हार गई तो उसका पूरा परसेप्शन जो उसने तथाकथित राष्ट्रवाद के जरिए बनाया है एक झटके में बिखर जायेगा ? मतलब एक तरफ 2024 के लोकसभा का चुनाव परिणाम है तो दूसरी तरफ बिहार में नम्बर के महीने में होने वाला विधानसभा चुनाव है। 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी आये मगर इतना तो तय है कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है उसके अनुसार वह दोनों परिस्थितियों में भारत की राजनीति की जडों से हिलाकर रख देगा। राजनीतिक विश्लेषकों के भीतर जो विचार मंथन चल रहा है उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट के भीतर जिन याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है उन समस्त याचिकाकर्ताओं को बिना शर्त अपनी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट से वापस ले लेना चाहिए। क्योंकि यही एक रास्ता है जो सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख के साथ ही उनकी खुद की (याचिकाकर्ताओं की) साख को बचा सकता है। 



अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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August 12, 2025
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अभाकाम - बिहार प्रदेश के कार्य समिति की बैठक में 'राष्ट्रीय अध्यक्ष का भव्य स्वागत और परिवार मिलन समारोह" का आयोजन 17 अगस्त को पटना में

एकता के सूत्र में बंध कर हम एक है,नेक है का प्रदर्शन करने के लिए अधिक से अधिक संख्या मे पधार कर कार्यक्रम को सफल बनाना

अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, बिहार प्रदेश के कार्य समिति की बैठक में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अनूप श्रीवास्तव IRS का हर्षोल्लास के साथ स्वागत सह परिवार  मिलन समारोह  का आयोजन दिनांक 17 अगस्त रोज रविवार को पटना के श्री कृष्ण चेतना परिषद, दरोगा राय पथ आर ब्लाक में किया गया है। प्रदेश अध्यक्ष ने सभी  कायस्थ बंधुओं सेआग्रह किया है कि व्यक्तिगत ईष्या द्वेष से ऊपर उठकर, हर्ष और उल्लास के वातावरण  में एकता के सूत्र में बंध कर हम एक है,नेक है का प्रदर्शन करने के लिए अधिक से अधिक संख्या मे पधार कर कार्यक्रम  को सफल बनाना है।


राजीव  जी ने बताया कि उस दिन उद्घाटन  माननीय विधायक  श्री अरुण कुमार सिन्हा, मुख्य अतिथि, डाॅ अनूप श्रीवास्तव IRS राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, अति विशिष्ट अतिथि श्री निर्मल शंकर श्रीवास्तव, पूर्व राष्ट्रीय. महा मंत्री अभाकाम ,विशिष्ट अतिथि श्रीमती रश्मि वर्मा ,विधायक नरकटियागंज  एवं  श्री अरविन्द श्रीवास्तव राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, अभाकाम  के अलावे 5-6 अन्य विशिष्ट  अतिथियों का आना तय है। वरिष्ठ प्रदेश उपाध्यक्ष रवीन्द्र कुमार रतन ने कहा कि कायस्थ कोई जाति नही यह तो भारत की सभ्यता और संस्कृति है जिसके तहत हम समाज और राष्ट्र  के सर्वांगीण विकास में लगे रहते है,आगे वे बोले -

'ईर्ष्या-द्वेष  को भूला कर के हम ,
नफरती  दीवार को  ढहा देंगे।
हम सब कलम के सिपाही  है    ,
भारत को स्वर्ण विहग बना देंगे।।'


महासचिव श्रीमती माया श्रीवास्तव ने खास कर महिलाओं से आग्रह किया  कि वे निश्चित रुप से अपनी भागीदारी सुनिश्चित  करें। सभा के अन्त में अभाकाम के सचिव  श्री अशोक कुमार  ने आगत अतिथिओं का स्वागत  करते हुए इस वरसात के मौसम में भी इतनी बड़ी संख्या  में उपस्थित  होने के लिए आभार प्रकट किया।सभा समाप्त होने की घोषणा किए।
 

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August 12, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 09

बिहार में भी हजार - दो हजार नहीं तीन लाख से ज्यादा वोटरों के मकान का नम्बर शून्य (जीरो)

तुरही बजंती, डुगडुगी पिटंती, सर्व डंका फटवावहै

देश की नजरें देश की सबसे बड़ी अदालत की चौखट पर

Election Regulation - EC replaces digital draft voter list in Bihar with scanned images that make finding errors harder - Data on digital rolls can be extracted and organised quickly using computer programmes and artificial intelligence tools. Ayush Tiwari. The Election Commission today removed digital machine-readable Bihar draft voter list from website which were uploaded on August 1. They have been replaced with their scanned. Machine-readable version that makes scrutning hader. @ SCROLLING @ECISVEEP. CHIEF ELECTORAL OFFICER BIHAR - @CEOBIHAR - Fact chek - There is no change in the draft electoral roll published since 1 August 2025 changes will be made after disposal of claims and objection by the concerned EROs. The draft electoral roll is available on the voters. eci. gov. in website. @ECISVEEPx.com. Ayush Tiwari - we're not reporting that the draft electoral roll changed, @CEOBihar, we're reporting that the format has changed - from Machine-readable. This is not a fact-check. This is a bad-faced denial which is demonstrably false. @ scroll. in.

ये वो सवाल जवाब की चैटिंग है जो एक ऐजेंसी वाले पत्रकार आयुष तिवारी और बिहार के मुख्य चुनाव अधिकारी के बीच हुई है। पहली बार जब आयुष तिवारी ने जांच-पड़ताल के बाद लिखा कि इलेक्शन कमीशन ने एक झटके में उस फार्मेट को ही बदल दिया है जिसमें मशीन पढ करके सारी विसंगतियों को चंद मिनट में सामने रख सकती है जो चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई वोटर लिस्ट के भीतर होती है और डिजिटल वोटर लिस्ट की जगह स्कैन की गई वोटर लिस्ट को अपलोड कर दिया गया है। जिससे चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई वोटर लिस्ट के भीतर की गई धांधलियां एक झटके में पकड़ में आने से बच जाय। तो इलेक्शन कमीशन ने कहा कि हमने ऐसा नहीं किया है। इलेक्शन कमीशन के जवाब पर काउंटर करते हुए आयुष तिवारी ने लिखा कि उसने जो स्टोरी फाइल की है वह पूरी तरह से सही है। और इस काउंटर के बाद इलेक्शन कमीशन में सन्नाटा पसर गया। उसे समझ ही नहीं आया। उसने सोचा होगा कि जब डिजिटल वोटर लिस्ट गायब कर दी गई है तो उसे तुरंत तो कोई पकड़ ही नहीं पायेगा। मगर पांसा उल्टा पड़ गया।


कुछ दिनों पहले अखबारों में एक खबर छपी थी कि जालंधर में रहने वाली बसंत कौर भारत की सबसे उम्रदराज महिला हैं जिनकी उम्र 124 साल है। इस खबर के बाद एक दूसरी खबर मिली कि मध्यप्रदेश के सिवनी में भी 115 साल की शांति देवी रहती है। इस खबर के बाद लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड को अपना खाता-बही दुरुस्त करना पड़ा क्योंकि उसने चंद दिनों पहले जानकारी दी थी कि आंध्र प्रदेश की कुंजनम भारत की सबसे उम्रदराज महिला थीं जिनकी 112 वर्ष में मृत्यु हो गई है। उम्रदराज महिलाओं का भले ही कोई महत्व ना हो लेकिन वर्तमान में इनका जिक्र करना प्रासंगिक है क्योंकि बिहार चुनाव आयोग द्वारा जो नई वोटर लिस्ट तैयार की जा रही है वह बताती है कि गोपालगंज में एक मनपुरिया देवी रहती हैं जिनकी आयु 119 साल है। इसी तरह भागलपुर की आशा देवी की उम्र 120 वर्ष, सिवान की मिंतो देवी की उम्र 124 साल है। मतलब उम्रदराजी के सारे रिकॉर्ड बिहार में आकर चुनाव आयोग द्वारा बनाई जा रही वोटर लिस्ट तैयार करते वक्त टूट रहे हैं।

चुनाव आयोग का दोगलापन भी बिहार में उजागर होकर सामने आ रहा है। बिहार के डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा के नाम पर दो वोटर आईडी कार्ड हैं जो कि अलग अलग जिले और अलग अलग विधानसभा क्षेत्र के हैं। एक वोटर आईडी कार्ड पटना जिले की 182 बांकीपुर विधानसभा क्षेत्र का है तो दूसरा लखीसराय जिले की 168 लखीसराय विधानसभा क्षेत्र का है। वह भी अलग अलग लिपिक नम्बर से दर्ज हैं। एक कार्ड में उम्र 60 साल दर्ज है तो दूसरे पर 57 साल दर्ज है। दोनों वोटर आईडी कार्ड में डिप्टी सीएम और उनके पिता का वही नाम दर्ज है जो कि उनके नाम हैं। ये मामला सामने आने के बाद चुनाव आयोग को सांप सूंघ गया है और वह कोमा में चला गया है जबकि कुछ दिनों पहले बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने बताया था कि उनको दो वोटर कार्ड जारी किए गए हैं तो चुनाव आयोग ने अपना पल्ला झाड़ते हुए कहा था कि हमने वो वोटर कार्ड जारी नहीं किए हैं और दो वोटर कार्ड रखना अपराध है मगर जब उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा के पास दो वोटर कार्ड सामने आये तो वह उसे अपराध कहने का साहस नहीं जुटा पाया उल्टे मुंह में दही जमा बैठा। तेजस्वी यादव भी राहुल गांधी की तरह हाथ में लिस्ट लेकर पत्रकारों के सामने आये और बताया कि बिहार में भी हजार - दो हजार नहीं तीन लाख से ज्यादा वोटरों के मकान का नम्बर शून्य (जीरो) लिखा हुआ है चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट में। जिसने भी इस तरह की जानकारी वोटर लिस्ट में दर्ज कराई है या की है, और यह चुनाव आयोग की धाराओं के तहत गंभीर अपराध है। मगर इस पर भी चुनाव आयोग मौन है। यह जानकारी भी सामने आ रही है कि बिहार में भी हजारों स्थानों पर एक कमरे के मकान में अद्भुत समाजवाद (हर आयु वर्ग, हर जाति वर्ग, हर आय वर्ग) का नजारा पेश करते हुए 250 लोग तक रह रहे हैं। मतलब चुनाव आयोग की वोटर लिस्ट में दर्ज है। ये कर्नाटक या बिहार भर की बात नहीं है ये नजारा तो कमोबेश भारत के हर राज्य में नजर आ जायेगी। मध्य प्रदेश के भीतर भी वोटर लिस्ट में तकरीबन 1700 ऐसे पते दर्ज हैं जहां पर एक कमरे के मकान में 50 से ज्यादा लोग रहते हैं। यहां तक कि सरकार और चुनाव आयोग की नाक के नीचे राजधानी भोपाल में ही वोटर लिस्ट में 80 से ज्यादा ऐसे अड्रेस हैं जहां एक कमरे के मकान में 50 से ज्यादा वोटर निवास करते हैं। नेल्लोर सिटी (आंध्र प्रदेश) से एक अजूबे की भी खबर मिल रही है जहां पर वोटर लिस्ट में 01 वर्ष से लेकर 352 वर्ष की उम्र दर्ज है। इसी तरह के आंकड़े महाराष्ट्र और उडीसा से सामने आ रहे हैं। और आगे चल कर देश के हर राज्य से इस तरह की खबर निकल कर आने लगे तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।

अगर ये गल्ती से हुई गड़बड़ियां हैं तो इन्हें डिजिटली जमाने में चुटकी बजाते दुरुस्त किया जा सकता है। मगर चुनाव आयोग जिस तरह की मशक्कत करते हुए नजर आ रहा है उससे ऐसा नहीं लगता है कि इस तरह की गड़बड़ियां गल्ती से हुई गड़बड़ी है। यह सब कुछ जानबूझकर सत्ता के इशारे पर सत्ता की सत्ता को बरकरार रखने के लिए किया जा रहा है। बिहार में विधानसभा चुनाव के पूर्व जिस तरह से वोटर लिस्ट तैयार की जा रही है और विपक्षी दलों से लेकर विभिन्न संगठनों द्वारा विरोध दर्ज कराया जा रहा है और मामला देश की सबसे बड़ी अदालत तक पहुंच गया और जो तकरीबन 65 लाख से अधिक लोगों ने नाम अलग - अलग तौर पर हटाये गये हैं उसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को हलफनामा दर्ज करने को कहा और चुनाव आयोग ने जो हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा जमा किया और उसमें जो लिखा है वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि चुनाव आयोग की नजर में सुप्रीम कोर्ट की कोई औकात नहीं है। चुनाव आयोग का हलफनामा बताता है कि देश में लोकतंत्र नहीं बल्कि राजशाही काम कर रही है। और राजशाही को कायम रखने के लिए भारत का चुनाव आयोग सभी लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचलने के लिए तैयार है।

चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे के चौथे और पांचवें पेज में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि बिहार में जिन 65 लाख लोगों के नामों को वोटर लिस्ट से हटाया गया है ना तो उनकी सूची को साझा किया जायेगा, ना ही इसका कारण बताया जायेगा और ना ही वह यह सब बताने के लिए बाध्य है। वैसे यह कोई चौंकाने वाली बात नहीं है और ना ही इस तरह का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में पहली बार दर्ज किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने जब मोदी सरकार से पेगासस को लेकर जानकारी मांगी थी तब सरकार की तरफ से अटार्नी जनरल ने देश की सुरक्षा की आड़ लेकर साफ - साफ कह दिया था कि हम आपको नहीं बता सकते हैं। इसी तरीके से जब राफेल का मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया और सुप्रीम कोर्ट ने उच्चतम कीमत पर राफेल खरीदने की विस्तृत जानकारी देने को कहा तो एकबार फिर सरकार ने देश की सुरक्षा की चादर के पीछे खड़े होकर कह दिया कि हम आपको कोई जानकारी नहीं देंगे। और सुप्रीम कोर्ट खामोशी से सरकार के आगे अपनी औकात की तुलना करता रह गया। कुछ इसी तरह का मामला मोदी सरकार द्वारा लिए गए चुनावी चंदे को लेकर था बड़ी ना-नुकुर के बाद बैंक ने जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी और सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनावी चंदे को असंवैधानिक बताया मगर असंवैधानिक काम करके काली कमाई करने वालों को ना तो सलाखों के पीछे भेजा गया ना ही उस अवैध पैसों को जप्त किया गया। आज भी उसी अवैध पैसों (ब्लैक मनी) से ठप्पे के साथ ऐश किया जा रहा है।

मगर अब तो सवाल देश के आम नागरिक के अधिकारों का है। और किसी चीज में हो ना हो कम से कम वोटिंग के लिए दिए गए समानता के अधिकार का सवाल है। और आजादी के बाद पहली बार आम आदमी के वोटिंग पर आंच आ गई है और वह भी चुनाव आयोग के जरिए। और तपन भी इतनी जबरदस्त है कि चुनाव आयोग अपने हलफनामे के जरिए देश की सबसे बड़ी अदालत को भी अपने आगोश में लेने के लिए तैयार है। तो क्या एकबार फिर सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग द्वारा दी जा रही चुनौती के आगे घुटने टेक कर अपनी औकात का आंकलन करेगा या फिर स्व संज्ञान लेकर चुनाव आयोग को सीधे तौर पर कहेगा कि आप इस तरह की बातों का जिक्र हलफनामे में नहीं कर सकते आपके द्वारा जिन 65 लाख लोगों के नाम हटाये गये हैं उन नामों की सूची साझा करनी होगी, आपको हटाये गये नामों का कारण बताना होगा, आप कोर्ट और नागरिकों को सब कुछ बताने के लिए बाध्य हैं। और जब तक आप सारी बातें साझा नहीं करते तब तक चल रही प्रक्रिया पर रोक लगाई जाती है। क्योंकि अब मामला लोकतंत्र, संविधान और सुप्रीम कोर्ट की साख से जोड़ दिया है चुनाव आयोग ने हलफनामा दाखिल करके।

देश भी अब सुप्रीम कोर्ट की ओर देख रहा है कि आम आदमी के अधिकारों पर आई आंच को रोकने के लिए चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करने के लिए स्व संज्ञान लेगा या नहीं ? ऐसा नहीं है कि पहले कभी सुप्रीम कोर्ट ने स्व संज्ञान ना लिया हो। देश में जब पेपर लीक होने की खबर आई थी तब और जब पश्चिम बंगाल के आर जी कर मेडिकल कॉलेज में एक लड़की के साथ हुए बलात्कार की खबर आई थी तब सुप्रीम कोर्ट ने स्व संज्ञान लेते हुए सुनवाई की थी यह बात दीगर है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले पीड़ित पक्ष के हक में नहीं आये। इसके बावजूद भी देश में मौजूद सुप्रीम कोर्ट को ही संविधान द्वारा आम आदमी को प्रदत्त अधिकारों की व्याख्या करनी होगी। देश उम्मीद लगाए बैठा है कि सुप्रीम कोर्ट अब ऐसी गलती नहीं करेगा जो उसने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए बनाये गये पैनल को मोदी सरकार ने कानून बनाकर सीजेआई को किनारे कर दिया और सुप्रीम कोर्ट संसद द्वारा बनाये गये कानून की समीक्षा करने के बजाय मूकदर्शक बनकर रह गया।

देश के भीतर तो इस तरह का माहौल बना दिया गया है जहां सत्ता खुद को ही भारत मानने लग गई है। हम ही भारत हैं और कोई भी हमारे खिलाफ सवाल नहीं कर सकता और ऐसा ही संवैधानिक संस्थान भी सोचने लग गये हैं इसमें चुनाव आयोग भी शामिल है। तभी ना चुनाव आयोग अपने ही दस्तावेजों के आधार पर विपक्ष के नेता द्वारा उठाए गए सवालों को सुनने के बजाय हलफनामा दिये जाने की बात कर रहा है। हमसे माफी मांगिए क्योंकि हम ही तो देश हैं। इस तरह का भ्रम एक जमाने में श्रीमती इंदिरा गांधी को भी हो गया था तभी तो कहा गया था कि इंदिरा इज इंडिया - इंडिया इज इंदिरा। और ऐसा ही भ्रम शायद पीएम नरेन्द्र मोदी को हो गया लगता है। इलेक्शन कमीशन ने जिस तरह की प्रक्रिया शुरू की और बीजेपी-मोदी-शाह ने जो मुगालता पाला उसमें 2024 के आम चुनाव के दौरान कई सवालों को खड़ा किया और चुनाव परिणाम ने उसके जवाब भी दिए। पहला सवाल तो यही खड़ा हुआ कि क्या धर्म के आसरे वोट मिलेगा, इसका उत्तर अयोध्या से निकल कर आया। दूसरा सवाल यह निकला कि जिस तरह से नरेन्द्र मोदी खुद को पिछड़े तबके का कहते हैं तो क्या पिछड़ा तबका बीजेपी को वोट करेगा और वह तब जब देश के भीतर पिछड़ी और इसी क्रम की दूसरी जातियों से जुड़े तबके के अधिकारों का जिक्र देश की गवर्नेंस में होता ही नहीं है तो इसका जवाब 240 सीटों ने दिया। तीसरा सबसे बड़ा सवाल संविधान को लेकर था कि क्या मोदी सरकार ने जो 400 पार की रट लगाई है और अगर वह सच हो गया तो वह संविधान को बदल देगी इसका जवाब भी देश की जनता ने दे दिया बीजेपी को 240 सीटों पर समेट कर। सवालों का उठना यहीं पर नहीं रुका। सवाल तो लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनाव में भी हरियाणा, महाराष्ट्र, दिल्ली से भी उठे। मगर देश का दुर्भाग्य है कि चुनाव आयोग हर सवाल पर गांधी के तीन बंदरों की भूमिका में नजर आया।

बार - बार कटघरे में खड़ा होते ही चुनाव आयोग ने डिजिटल फार्मेट को ही हटा दिया, देश की सबसे बड़ी अदालत को ही कह दिया कि हम आपको कुछ नहीं बतायेंगे। अब ये मामला राजनीतिक नहीं रह गया है अब ये मामला लोकतंत्र, संविधान और एक व्यक्ति-एक वोट के अधिकार की रक्षा की लड़ाई का हो गया है। इसीलिए अब सुप्रीम कोर्ट की भूमिका अहम हो गई है क्योंकि लोकतंत्र, संविधान और आम आदमी के संविधान प्रदत्त अधिकारों की रक्षा करने का उत्तरदायित्व देश की सबसे बड़ी अदालत के ही जिम्मे है। बीजेपी या कहें मोदी-शाह जिस तरीके का देश चाहती है और उसी विचारधारा के लोगों को चुनाव आयोग सहित तमाम संवैधानिक संस्थानों में नियुक्त किया जा रहा है कि उसे जीत की गारंटी मिल जाय क्या इसीलिए बहुमत के साथ ऐसी व्यवस्था करने में चुनाव आयोग लगा हुआ है। अगर विरोध के स्वर देश के भीतर गांव से लेकर राज्य के साथ हर निर्वाचन क्षेत्र से उठने लगे तो यह स्थिति दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत के लिए ठीक हो या ना हो लेकिन इतना तो तय है कि लोकतंत्र का तमगा भारत के हाथ से छिन जायेगा।

चलते-चलते

आपरेशन सिंदूर को लेकर संसद में हुई डिबेट में जिस तरह से मोदी सरकार दिगम्बर हुई है और उसके बाद से अचानक सैन्य प्रमुखों द्वारा बयानबाजी की जा रही है कहीं वह राजनीतिक तौर पर मुसीबत में फंसी हुई सरकार को संकट से उबारने का प्रयास तो नहीं है, क्या कहीं सेना का राजनीतिकरण तो नहीं किया जा चुका है और अगर ऐसा है तो यह देश के लिए सबसे बड़े संकट का दुर्भाग्यपूर्ण ऐलान है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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August 12, 2025
Ahaan News

होमियोपैथिक दवाइयां डेंगू को फैलने से रोकती है साथ ही हमें सम्पूर्ण सुरक्षा प्रदान करती है : डॉ० रौशन पाण्डेय

डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है

आज कल बरसात के मौसम में कई बड़े शहरों एवं गांव में बरसात के पानी जमा होने से हमारे आसपास मच्छरों का उत्पादन ज्यादा होने लगता है।।इन मच्छरों के द्वारा कई संक्रमित बीमारियां हमारे स्वास्थ को प्रभावित करती है।।जिसमें मुख्य रूप से डेंगू का प्रकोप अत्यधिक देखने को मिलता है।।आइए जानते है डेंगू क्या है और इसके कारण और लक्षण क्या है :-

डेंगू बुख़ार एक संक्रमण है जो डेंगू वायरस के कारण होता है। डेंगू का इलाज समय पर करना बहुत जरुरी होता हैं। मच्छर डेंगू वायरस को फैलाते हैं। डेंगू बुख़ार को "हड्डीतोड़ बुख़ार" के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि इससे पीड़ित लोगों को इतना अधिक दर्द हो सकता है कि जैसे उनकी हड्डियां टूट गयी हों।

डेंगू आमतौर पर मादा एडीज़ इजिप्टी मच्छर के काटने से फैलता है। ये खास तरह के मच्छर होते हैं, जिनके शरीर पर चीते जैसी धारियां पाई जाती हैं। ये मच्छर खासतौर पर सुबह के समय काटते हैं।

जो आदमी डेंगू से पीड़ित होता है, उसके शरीर में काफी मात्रा में डेंगू वायरस पाया जाता है। इसके अलावा जब कोई एडीज़ मच्छर किसी डेंगू के मरीज़ को काटता है तो उसका खून भी चूसता है। इसके बाद जब यह मच्छर किसी स्वस्थ शख्स को काटता है, तो उसे भी डेंगू हो जाता है। क्योंकि मच्छर के काटने से उसके शरीर में भी वायरस पहुंच जाता है। जिससे वह आदमी भी डेंगू से संक्रमित हो जाता है।

#डेंगू के लक्षण:-


डेंगू के पहले कुछ लक्षण केवल फ्लू की तरह होते हैं और मच्छर के काटने के चार से दस दिनों के बाद दिखाई देने लगते हैं। डेंगू बुखार को तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है: क्लासिक डेंगू बुखार, डेंगू रक्तस्रावी बुखार और डेंगू शॉक सिंड्रोम। जिसमें से डेंगू रक्तस्रावी बुखार सबसे घातक और जानलेवा माना जाता है।

डेंगू के शुरुआती लक्षणों में 104 डिग्री तक तेज बुखार, ठंड लगना, शरीर में तेज दर्द और जोड़ों में दर्द, आंखों के पीछे केंद्रित दर्द, थकान, मतली, चकत्ते और उल्टी शामिल हो सकते हैं। डेंगू बुखार से पीड़ित रोगी आमतौर पर पांच दिनों के भीतर ठीक हो जाता है लेकिन सही इलाज न मिलने पर स्थिति और खराब हो सकती है।

डेंगू रक्तस्रावी बुखार के लक्षणों में अत्यधिक बेचैनी, उल्टी की संख्या में वृद्धि, पेट में तेज दर्द और मल या उल्टी में रक्त शामिल हैं। ये लक्षण आमतौर पर बुखार दूर होने के एक से दो दिन बाद दिखाई देते हैं। ऐसी परिस्थितियों में स्वास्थ्य कर्मियों से परामर्श करना चाहिए क्योंकि इस प्रकार का डेंगू जानलेवा हो सकता है।
#डेंगू_से_बचाव:-


डेंगू से बचाव के कुछ आसान उपाय जिससे आप खुद को और अपने परिवार के सदस्यों को डेंगू होने से बचा सकते है।

- डेंगू का मच्छर दिन के समय काटता है इसलिए दिन में मच्छर के काटने से बचे
- बारिश के दिनो में पुरे कपड़े पहने और शरीर को ढक कर रखे 
- घर के आस पास पानी ना जमा होने दे 
- जमा हुए पानी में मिट्टी का तेल डाले
- मच्छरदानी का उपयोग करे
- पीने के पानी को साफ़ रखे 
- डेंगू होने पर डॉक्टर के पास जाये और खून की जांच कराये 
- नियमित दवा लेते रहे

यदि आपको या आपके परिवार के किसी सदस्य को डेंगू के लक्षण दिखाई दे रहें हो तो तुरंत अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में जांच कराये  । इसमें लापरवाही करना हानिकारक हो सकता है।

#इलाज:-

#होमियोपैथिक  सिस्टम में ऐसे कई सारी दवाइयां है जिनके  माध्यम से हम डेंगू का इलाज करते है।।साथ ही होमियोपैथी  दवाइयों के माध्यम से हम डेंगू को फैलने से रोक सकते है जिस किसी भी एरिया में  पानी का जमाव ज्यादा हो या डेंगू ज्यादा फैल रहा हो या किसी परिवार का अन्य कोई भी सदस्य इस गंभीर बीमारी से ग्रस्त है तो इस व्यक्ति के साथ साथ परिवार के अन्य सदस्यों को भी होमियोपैथिक दवा के माध्यम से बचाया जा सकता है।होमियोपैथिक में इस बीमारी से बचाव के साथ साथ इसके संपूर्ण इलाज के लिए दवाइयां मौजूद है,जो की व्यक्ति के लक्षण के आधार पे दिया जाता है।होमियोपैथिक दवाइयां डेंगू के जीवाणु को हमारे शरीर में फैलने से रोकती है ।साथ ही हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाकर इन बीमारियों से बचाव करती है।

..अगर आपके एरिया में डेंगू का फैलाव हो रहा है या आपके आसपास लोग डेंगू से परेशान है तो इसके बचाव के लिए आप संपर्क करे या चिकित्सा कैंप के माध्यम से हम उनलोगो को बचा सकते है।

डॉ० रौशन पाण्डेय
पूर्व चिकित्सा पदाधिकारी,मध्यप्रदेश।।
 

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