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May 14, 2025
Ahaan News

26 सालों से लूट रही हाजीपुर विधानसभा की जनता, इस बार बदलाव के मुड में नज़र आने लगी है

हाजीपुर में ट्रिपल इंजन की सरकार फिर भी 25 वर्षों में नहीं बनी सड़कें, चुनाव आने वाला है इसलिए मौत की दुकान बंद करने का नया ड्रामा

आप अक्सर यह सुनते हैं कि डबल इंजन की सरकार होगी तो विकास राज्यों में डबल हो जाएगा। वहीं जब आप जानेंगे कि जब देश में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी और बिहार में आज की गठजोड़ वाली राजनीति दल की सरकार रही तब बिहार सरकार ने मजबूत और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया।

नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2005 से NDA सरकार लगातार 21वें साल में हैं जिसमें से दो टुकड़ों में 3 साल हटा दें तो आज की सत्ताधारी गठजोड़ में रही है। बिहार के लोगों से अगर बात होती है तो नीतीश कुमार का प्रथम चरण यानी 2005-2010 ही काम युक्त रहा है।

भारतीय जनता पार्टी के सफ़र में जबर्दस्त उछाल देखा गया और पिछले 11 वर्षों से बिहार में भी सत्ता का हिस्सा बनी हुई है लेकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ पुरा बिहार खड़ा रहा और तीनों लोकसभा चुनाव में लगभग 100% लोकसभा सीट दिया। वहीं बिहार का विकास इसी काल खंड में शुन्य और नौकरशाही के साथ साथ दलाली परम्परा मजबूत हुई है।

हां हम आप का जो शीर्षक दिए हैं अब उसपर आते हुए कहना है कि हाजीपुर में एक नगर परिषद क्षेत्र हैं और पिछले 11 वर्षों में यहां की भी सत्ता भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ या कहें उन्हीं की रही है जिसमें मात्र दो साल से भी कम बिना राजनीतिक संरक्षण के रही उसमें शहर की व्यवस्था में बड़े बदलाव हुए मगर विकास की गाड़ी कभी पटरी पर नहीं लाई गई।

नगर परिषद हाजीपुर के पूर्व कार्यपालक अधिकारी पंकज कुमार ने एक बार बताया था कि पिछले 12 वर्षों से सड़क के मामले में एक भी काम नहीं हुआ। सड़क निर्माण में पिछले 12 वर्षों में एक भी सड़क निर्माण नहीं हुआ है वहीं यह बात पंकज कुमार द्वारा कहे हुए भी लगभग अब दो साल हो चुके हैं।

आज वर्तमान परिस्थितियों में हम देखें तो हाजीपुर शहर यानी नगर परिषद हाजीपुर में एक भी सड़क मौजूद नहीं है। वहीं जिसे सरकारों ने सड़क के नाम पर जमीन कब्जा कर रखी है उसमें हर एक हाथ पर 10-20 गड्ढें बना दिए गए हैं। इसलिए यह कहना ज्यादा सही है कि नगर परिषद हाजीपुर में आज गड्ढों में ही सड़क की खोज की जा रही हैं।

नगर परिषद हाजीपुर में वर्तमान सभापति भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा पोषित हैं और हर रोज सभापति को भारतीय जनता पार्टी (BJP) का झंडा बुलंद करते हुए देखा जाता हैं। इसमें सही भी है क्योंकि समर्थन प्राप्त तो भाजपा से ही मिला था।

भारतीय जनता पार्टी (BJP) का एक ऐसा इतिहास हैं हाजीपुर में कि सन् 2000 से आज 2025 तक यानि 26वें साल में भी अकेला उन्हीं का विधायक हैं। सन् 2000 से 2014 तक जो विधायक रहे उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा हैं कि उनके बारे में कोई बात कर सकता है तो सिर्फ गुलामी जैसी लगनी चाहिए नहीं तो जीवन के लिए संकट हो जाता हैं। वहीं 2014 में जब वो उजियारपुर लोकसभा से सांसद चुने गए तो उन्होंने अच्छे भाजपा नेताओं को जगह नहीं लेने दिया और अपने मुंशी व संबंध के साले को हाजीपुर से टिकट दिया और भाजपा के नाम पर और पूर्व विधायक के डर से भाजपा उम्मीदवार की जीत लगातार आज तक हो रही है।

लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि 26वें साल में पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि पूर्व विधायक व सांसद उजियारपुर व केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री को हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र अपने हाथ से जाते दिख रहा है। पिछली बार भी महज़ 2000 वोट के आस पास से ही जीत मिली थी। इसलिए अब जब बिहार में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद और नगर परिषद सभापति भी सत्ताधारी के होने के बावजूद यानि ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बाद भी सत्ता जाती दिख रही है तब कुछ होने की उम्मीद जगी हैं।

आज हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र में 4 साल 6 महीने बाद सड़क बनाने का आश्वासन विधायक और सभापति के द्वारा दिलाया जा रहा है। आजकल हाजीपुर से विधायक बिहार के पथ निर्माण मंत्री के यहां फेसबुक पर दौड़ा करते दिखाई रहे हैं। जबकि यह दौड़ा और सड़कों का निर्माण 3 साल पहले ही पर निर्माण मंत्री के साथ मिलकर हाजीपुर विधायक ने कहा था। उस समय भी खुब अखबारों में सड़क निर्माण पर चर्चा थी।

पुनः चुनाव आने के समय सड़क निर्माण पर फोटो सूट किया जा रहा है। आज हाजीपुर शहर में कोई ऐसा सड़क नहीं है जो टूटा फूटा जर्जर स्थिति में ना हो। भारतीय जनता पार्टी (BJP) का इतिहास अब बहुत शानदार हो गया हैं जब सत्ता में नहीं रहती है तब बड़े वादे करती है और जब उसको विभाग मिलता है काम करने के लिए तब उसका सुस्त चाल देख लीजिए कि अपने ही विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में काम नहीं करवा पा रही।

अब बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है और 2 महीने बाद आचार संहिता लगनी है। विधायक परेशान जरूर दिख रहे हैं लेकिन उनके हाथ में विधायक की ताकत नहीं है। वर्तमान विधायक पूर्व विधायक के अनुकंपा पर विधायक हैं जो सर्वविदित है और किसी भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कार्यकताओं में इतनी क्षमता नहीं है कि वह वर्तमान विधायक से एक रूपए का भी काम करा सकें। वहीं केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री को पता यह हैं कि लालू प्रसाद यादव के नाम पर हाजीपुर की जनता को पुनः डरा कर भाजपा के गुलाम वोटरों को लुभाने में हम सफल ही रहेंगे। इसलिए सड़कों पर लोगों को होने वाली परेशानियों को लेकर गंभीरता नहीं है।

हाजीपुर नगर परिषद और विधानसभा की जनता को खुद सोचना होगा कि 26 सालों से जिन्हें जिम्मेवारी सौंपी वह बिल्कुल नाकारा साबित हुआ। वहीं जनता की बात सुनने का जिस विधायक और सभापति में समय नहीं हो वैसे को पुनः चुनना कितना सही होगा यह जनता विचार कर रही है। इस बार का हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र दिल्ली को बड़ा संदेश देने को भीतर ही भीतर तैयारी कर रही है।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 14, 2025
Ahaan News

अमर शहीद बैकुंठ शुक्ल के 91वें बलिदान दिवस 14 मई पर सादर पुष्पांजलि एवं श्रद्धांजलि

प्रथम बिहारी अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला उनकी पत्नी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरांगना राधिका देवी

28 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे को चूमने वाले प्रथम बिहारी अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला उनकी पत्नी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरांगना राधिका देवी तथा चाचा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का विराट व्यक्तित्व नरम दल गरम दल दोनों को स्वीकार एवं क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी के संस्थापक योगेंद्र शुक्ला  की गौरव गाथा
नाम -           बैकुंठ शुक्ल
पिता-           राम बिहारी शुक्ला
जन्म -         15 मई 19 07
जन्म स्थान-  ग्राम जलालपुर जिला
                मुजफ्फरपुर वर्तमान में
                 वैशाली जिला
मृत्यु -       14 मई 1934 को फांसी
मृत्यु स्थान -  केंद्रीय कारागार गया
*जीवन काल- 28 वर्ष लगभग  
                      _______________________________
वर्तमान वैशाली जिला जो पहले मुजफ्फरपुर के अंतर्गत आता था के ग्राम जलालपुर में अयाचक ब्राह्मण कुल में किसान राम बिहारी शुक्ला के पुत्र के रूप में 15 मई 1907 को एक बालक ने जन्म लिया। दादा मनु शुक्ला ने बालक का नाम वैकुंठ शुक्ला रखा। बचपन से ही बैकुंठ शुक्ला प्रतिभाशाली एवं होनहार थे। जिस कार्य को करते उसको पूरा करके ही छोड़ते थे।
         बैकुंठ शुक्ला की प्रारंभिक शिक्षा मथुरापुर प्राथमिक  विद्यालय में हुआ जो उनके गांव के पास में ही था। मिडिल की परीक्षा पास करने के बाद बैकुंठ शुक्ला ने शिक्षक प्रशिक्षण का भरनाकूलर कोर्स किया।
      शारीरिक दक्षता में वह एक मजबूत और गठीले बदन के स्वामी थे। अत्यंत फुर्तीला चमकता ललाट से उनका तेज झलकता था ।ललाट पर चंदन और मोटी शिखा उस तेज को चौगुना करता था। पास की गंडक नदी में घंटो -घंटो तैरते रहते वह एक कुशल तैराक थे।
           बैकुंठ शुक्ला के जीवन पर चाचा योगेंद्र शुक्ला का गहरा प्रभाव पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला जो योगेंद्र शुक्ला के सीने में धधक रही थी ज्योति से ज्योति जलाने के क्रम में वही आग बैकुंठ शुक्ल के सीने में भी जलने लगी।बैकुंठ शुक्ला ने अपना कदम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे अंग्रेजों के दासता से मुक्ति के लिए बढ़ाना शुरू किया। योगेंद्र शुक्ला भतीजे बैकुंठ शुक्ला को साथ नहीं रखना चाहते थे। क्रांतिकारी बनने के मजबूत इरादे और दृढ़ निश्चय पर आगे बढ़ते हुए बैकुंठ शुक्ला के इरादे को उनके पिता ने भाप लिया।
          इनके पिता राम बिहारी शुक्ला ने मथुरापुर के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी लगवा दिया। मथुरापुर में ही राज नारायण शुक्ला के घर पर इनके रहने खाने की व्यवस्था करा दिए।  इसके साथ ही वह उनके घर के बच्चों को भी पढ़ाते थे। इस प्रकार इनका यह क्रम चलने लगा। तब इनके पिताजी ने इनकी शादी करने का मन बनाया।
               11 मई 1927 को बैकुंठ शुक्ला(20 वर्ष) की शादी राधिका देवी (17 वर्ष )से संपन्न हुई। राधिका देवी का त्याग बलिदान आंतरिक वेदना की कहानी कम नहीं है ।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली।
      वीरांगना राधिका देवी का जन्म सारण जिले के ग्राम महमदपुर थाना परसा पिता चक्रधारी सिंह के पुत्री के रूप 1910 को पौष मास की अमावस्या तिथि को हुआ। राधिका देवी कक्षा 7 तक पढी थी। पढ़ी लिखी होने के साथ भारत की गुलामी से मुक्त कराने का सपना सजाई थी ।क्रांतिकारी परिवार में शादी होने से पहले स्वतंत्रता का बीज  सीने में था। यहां आते ही उचित वातावरण और पोषण से अंकुरित हो गया ।
     इस समय तक देश में आजादी की  अलख जग गई थी। हाजीपुर में  जगदानंद झा ने एक गांधी आश्रम की स्थापना की 7 दिसंबर 1920 को गांधीजी चंपारण जाने के क्रम में यहां आए थे ।तब स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। वैशाली जिले का गांधी आश्रम उत्तर बिहार के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का प्रमुख केंद्र था। बाबू किशोरी प्रसन्न सिंह जय नंदन झा अक्षयवट राय प्रमुख थे। यह नरम दल और गरम दल दोनों का केंद्र था। 1925 तक यह आश्रम अपना विराट रूप पकड़ लिया। भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद सहित देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों का योगेंद्र शुक्ला के यहां आना-जाना होने लगा।
   9 सितंबर 1928 को योगेंद्र शुक्ला और भगत सिंह ने मिलकर बिहार बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारियों ने मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी का गठन किया। जिसका उद्देश्य भारत को शीघ्र स्वतंत्र कराना था । योगेंद्र शुक्ला और भगत सिंह इसके प्रमुख थे। विनोद सिंह मलखा चौक और फणींद्र घोष बिहार उड़ीसा प्रांत के प्रभारी बनाए गए।


    1929 में मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बाबू राम दयालु सिंह बने उन्होंने  1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की हाजीपुर क्षेत्र का संपूर्ण जिम्मेदारी किशोरी प्रसन्न सिंह अक्षयवट राय और बाबू दीप नारायण सिंह सिंह को  सौंपी। जिस के क्रम में यह लोग गांव-गांव घूमकर कार्यकर्ताओं की भर्ती करने लगे
       क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ला और बसावन सिंह  हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकआर्मी (एचएसआरए )से जुड़ने के बाद उनका कार्यक्षेत्र बढ़ गया बनारस दिल्ली लाहौर मैं अधिक समय रहने के कारण क्षेत्रीय आंदोलन की जिम्मेदारी किशोरी प्रसन्न सिंह और उनकी पत्नी सुनीति देवी पर पड़ा। यह निरंतर भ्रमण कर युवाओं में चेतना का प्रवाह करने लगे।
                 एक दिन किशोरी प्रसन्न सिंह मथुरापुर के राज नारायण शुक्ला के घर गए जहां बैकुंठ शुक्ला रहते थे। वहीं पर किशोरी प्रसन्न सिंह की मुलाकात बैकुंठ शुक्ला से हुई। बैकुंठ शुक्ला की लंबी शिखा और त्रिपुंड चंदन हर किसी को आकर्षित कर लेता था। बैकुंठ शुक्ला तो पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी करने के लिए तैयार बैठे थे। बैकुंठ शुक्ला के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उनकी शादी हाल ही में हुई थी। इसको लेकर वह काफी परेशान  थे। बैकुंठ शुक्ला ने किशोरी प्रसन्न सिंह से प्रस्ताव रखा।किसी तरह पत्नी को भी तैयार करवाइए। पत्नी तैयार हो जाए तो दोनों मिलकर राष्ट्र की सेवा करेंगे सार्वजनिक जीवन का ही परित्याग कर देंगे।
        किशोरी प्रसन्न सिंह ने इस काम के लिए अपनी पत्नी सुनीता देवी को लगाया। सुनीता देवी और बैकुंठ शुक्ला की पत्नी राधिका देवी के दो मुलाकात में ही तैयार हो गई अपना सर्वस्व न्योछावर कर संपूर्ण जीवन देश की   सेवा में लगाने का संकल्प ले लिया। सुनीति देवी और राधिका देवी गांव से भागकर हाजीपुर आश्रम पर पहुंची जो पहले से तय था। वही बैकुंठ शुक्ला और राधिका देवी रहने लगे।
           भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाने हेतु संकल्पित होकर बैकुंठ शुक्ला नौकरी से त्यागपत्र दे दिए। शिक्षक की नौकरी छोड़कर हाजीपुर आश्रम पर पत्नी के साथ देश सेवा में लग गए। आश्रम पर सुनीति देवी के अलावा शारदा देवी कृष्णा देवी सहित कई महिलाएं रहती थी ।राधिका देवी के आने से यहां की व्यवस्था और सुदृढ़ हो गई। क्योंकि यह बहुत जिम्मेदार और समय की पाबंद थी इसके साथ ही अत्यंत दयालु और मिलनसार थी ।यहां चरखे पर सूत काटना अन्य लोगों को सूत काटने के लिए प्रेरित करना रुई देना धागा लेना  था। इसके साथ ही प्रचार करना लोगों को जोड़ने का काम भी इनको मिल गया जो अपने पति के साथ बखूबी करती थी।


                  सर्वप्रथम बैकुंठ शुक्ला को चरखा समिति के प्रचार का जिम्मा दिया गया। बैकुंठ शुक्ला और पत्नी राधिका देवी हाजीपुर मुजफ्फरपुर सारण मलखाचक महनार दलसिंहसराय के चरखा केंद्रों की जिम्मेदारी दी गई। अन्यत्र जाने के लिए राधिका देवी ने भी साइकिल चलाना सीख लिया।जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों से निरंतर बढ़ते संपर्क के क्रम में बैकुंठ शुक्ला और राधिका देवी की पहचान बन गई। सुनीति देवी और राधिका देवी व प्रभावती देवी अब दूर-दूर के कार्यक्रमों में भी जाने लगी।
       हाजीपुर आश्रम पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों का जमावड़ा रहता था ।योगेंद्र शुक्ला? बटुकेश्वर दत्त चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह का आना जाना लगा रहता था।
       1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होने से पूर्व बिहार के प्रथम सत्याग्रही श्री कृष्ण सिंह गांधी आश्रम हाजीपुर आए। श्री कृष्ण के यहां की महिलाओं का कार्य देखकर बहुत प्रभावित हुए और सुनीति देवी और राधिका देवी की कार्यों की बहुत प्रशंसा किए।
                   सविनय अवज्ञा आंदोलन के शुरुआत में आश्रम पर नमक कानून तोड़ने पर इतनी ज्यादा भीड़ हुई कि अंग्रेज सिपाही चाह कर भी विरोध नहीं कर पाए बाद में घुड़सवार पुलिस ने आकर आंदोलनकारियों को पकड़ कर ले  जाने लगी। आंदोलनकारियों के गिरफ्तारी के समय यहां उपस्थित महिला जत्था ने जोरदार विरोध किया।
          अंग्रेज सिपाही महिलाओं पर टूट पड़े उनके डंडे के प्रहार से राधिका देवी का बाया हाथ टूट गया। और उनको चोटे आई ।बैकुंठ शुक्ला सहित 72 स्वयंसेवकों को पुलिस ने पकड़ कर बांकीपुर  कैंप जेल भेज दिया। इसके 6 महीना बाद गांधी जी  और  इरविन  के  बीच  हुए समझौते के कारण सभी आंदोलनकारियों को छोड़ दिया गया।
   बैकुंठ शुक्ला की मुख्य भूमिका
              जून 1930 को योगेंद्र शुक्ला बसावन सिंह काकोरी षड्यंत्र केस और सिर्फ षड्यंत्र केस में गिरफ्तार कर लिए जाने के पश्चात हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी की कमान को बैकुंठ शुक्ला ने अपने नेतृत्व में ले लेकर कमान संभावना प्रारंभ किया।
        1931 आते आते अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को दबाने का निश्चय किया और क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलना शुरू कर दिया। 
             27 फरवरी 1931 को जब चंद्रशेखर आजाद एक विशेष व्यक्ति से मिलकर भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए सम्मिलित (नरम दल गरम दल) आंदोलन चलाने को कहा। तथा कांग्रेस द्वारा फांसी रुकवाने की पहल करने को कहा पर सहमति नहीं बनी और बातचीत के दौरान तल्ख़ियां बढ़ गई। वहीं से हुई मुखबिरी के कारण इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों ने घेर लिया दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी। क्रॉस फायरिंग में जब चंद्रशेखर आजाद के पास आखरी गोली बची तो उन्होंने स्वयं को मार कर आजाद नाम को जीवित रखा। वे देश का तथा कथित नरम दल द्वारा भगत सिंह की फांसी रोके जाने पर पहल न करने पर काफी क्षुब्ध थे।
       23 मार्च 1931 को भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को फांसी की सजा तख्ते पर लटका दिया गया। इस तिहरे फांसी ने क्रांतिकारियों को झकझोर कर रख दिया।
                        1931 में गांधीजी के आवाहन पर मुजफ्फरपुर के ऐतिहासिक तिलक मैदान में बैकुंठ शुक्ला और उनकी पत्नी राधिका देवी ने तिरंगा ध्वज फहराया बैकुंठ शुक्ला गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन उनकी पत्नी राधिका देवी भागकर हाजीपुर आश्रम पर पहुंच गई। 1933 में उनकी पत्नी राधिका देवी भी गिरफ्तार कर ली गई। जेल में बैकुंठ शुक्ला और पत्नी राधिका देवी के ऊपर बहुत जुल्म ढाए गए। 
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह  राजगुरु सुखदेव को 23 मार्च 1931 फांसी होने के बाद देश में कोहराम मच गया। इन क्रांतिकारियों को फांसी की सजा पूर्व में क्रांतिकारी रहे गद्दार फणींद्र घोष की गवाही पर हुआ। देश के क्रांतिकारियों ने फणींद्र घोष को सजा-ए-मौत का फरमान जारी किया।
        फणींद्र  घोष अंग्रेजों से इनाम पाकर बेतिया में पुलिस संरक्षण में रह रहा था। अक्टूबर 1932 में पंजाब की क्रांतिकारियों ने बिहार के क्रांतिकारियों को एक मार्मिक पत्र लिखा जिसका मूल था *कलंक धोवोगे कि ढोवोगे यह बात बिहार के क्रांतिकारियों को चुभ गई उन्होंने संकल्प लिया कि गद्दार फणींद्र घोष मौत की सजा दे कर मानेंगे।
        पंजाब के क्रांतिकारियों के संदेश का बिहार के क्रांतिकारियों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा। जिसमें क्रांतिकारियों की एक बैठक हुई गद्दार फणींद्र घोष को सजा-ए-मौत देने के लिए क्रांतिकारियों में होड़ मच गई सुनीति देवी कहती थी कि हम जाएंगे अक्षयवट राय उनको समझाएं तब भी सुनीतिदेवी नहीं मानी तब लाटरी की प्रक्रिया अपनाई गई लॉटरी मैं बैकुंठ शुक्ला का नाम निकला बैकुंठ शुक्ला का नाम निकला तो वह उछल पड़े बैकुंठ शुक्ला ने कहा ना हम गद्दारी करते हैं और ना गद्दारों को माफ  करते हैं। इस काम में उनके साथी बने चंद्रमा सिंह बैकुंठ शुक्ला ने सबके सामने फणींद्र नाथ घोष को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया।
        बेतिया जाने के लिए मुजफ्फरपुर मोतिहारी के रास्ते बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा सिंह एक साइकिल से चले क्योंकि पकड़े जाने का डर था। दरभंगा में रात्रि विश्राम गोपाल नारायण शुक्ल के यहां हुआ। जो वहां पढ़ाई कर रहे थे ।बैकुंठ शुक्ला के गांव के थे। जाते समय गोपाल नारायण शुक्ल से बैकुंठ शुक्ला ने एक धोती मांग लिए साइकिल से ही तीसरे दिन बेतिया पहुंचे।


             9 नवंबर 1932 को बेतिया मीना बाजार में 7 बजे सायं साथी चंद्रमा सिंह को रुकने का इशारा करके फणींद्र नाथ घोष की दुकान पर पहुंच गए। वहां पहुंचते ही धोती में रखे कटार को निकालकर गद्दार फणींद्र नाथ घोष के सीने पर जोरदार प्रहार करते हुए भारत माता की जय का नारा लगाए दुकान से निकलते समय गणेश प्रसाद गुप्ता ने बैकुंठ शुक्ला को पकड़ लिया। बैकुंठ शुक्ला ने गणेश प्रसाद गुप्ता के सीने में वही कटार उतार दिया और वह वहीं पर गिरकर तड़फडाने लगा एक और व्यक्ति ने बैकुंठ शुक्ला को पकड़ने का प्रयास किया तो उसे भी कटार का शिकार बना दिए। बेतिया मीना बाजार में भगदड़ मच गया चारों तरफ कोहराम हो गया। बैकुंठ शुक्ला भारत माता की जय के नारे लगाते हुए चंद्रमा सिंह के साथ भागने में सफल हुए। गंडक नदी पार कर छपरा पहुंच गए।
                 अंग्रेजों द्वारा फणींद्र नाथ घोष के सुरक्षा में लगाए गए सिपाही सहदेव सिंह के बयान पर वहां के थाने में केस नंबर 8/ 1932 दर्ज हुआ फणींद्र नाथ घोष की दिनदहाड़े पुलिस सुरक्षा में हुई हत्या से अंग्रेज काफी भयभीत हुए। उन्होंने पकड़ने वाले को इनाम देने की घोषणा कर दी। फणींद्र नाथ घोष को गंभीर रूप से घायल होने के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया लेकिन वह इतना भयभीत था कि बैकुंठ शुक्ला का नाम लेने से डरता रहा  17 नवंबर को अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई लेकिन उसने बैकुंठ शुक्ला का नाम नहीं लिया। 20 नवंबर को गणेश गुप्ता भी दम तोड़ दिया।
         बैकुंठ शुक्ला साइकिल से आते समय अपने गांव के पढ़ाई कर रहे छात्र के यहां दरभंगा में ठहरे थे और उससे एक धोती लिए थे। घटना के समय वह धोती वही छूट गई जिसके सहारे पुलिस ने दरभंगा के गोपाल नारायण शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया पुलिस के भय से उन्होंने बैकुंठ शुक्ला का नाम बता दिया।
              15 जनवरी 1933 को चंद्रमा सिंह को कानपुर से गिरफ्तार किया गया। इनाम राशि बढ़ाने के बाद भी पुलिस बैकुंठ शुक्ला को गिरफ्तार करने में विफल रही अंग्रेज के आला अधिकारी स्थानीय पुलिस पर दबाव बनाने लगी पूरे राज्य में बैकुंठ शुक्ला के गिरफ्तारी के लिए अभियान चलाया गया।
              6 जुलाई 1933को बैकुंठ शुक्ला हाजीपुर गंडक पुल जबरदस्त नाकेबंदी करके पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा सिंह को मोतिहारी जेल में रखा गया।
       मुजफ्फरपुर जिला न्यायालय में टी ल्यूबि सत्र न्यायाधीश के समक्ष सम्राट बनाम बैकुंठ शुक्ला आदि के नाम से मुकदमा चला फणींद्र घोष और उसके साथी के हत्या के आरोप में बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा को मोतिहारी जेल में रखा गया। लेकिन मुकदमा मुजफ्फरपुर सेशन कोर्ट में चला मुकदमे के दौरान सरकार की तरफ से 91 अभियोजन साक्ष्य बैकुंठ शुक्ला के विरोध में पेश किया गया और न्यायालय में बैकुंठ शुक्ला को भयानक दुर्दांत अपराधी के रूप में पेश किया गया। इस मुकदमे में गोपाल नारायण शुक्ला ने बैकुंठ शुक्ला के विरुद्ध गवाही दिया। इसके पुरस्कार में गोपाल नारायण शुक्ला को पुलिस में दरोगा बना दिया गया।
           मुकदमा ट्रायल के दौरान बैकुंठ शुक्ला ने अपना कोई वकील नहीं रखा। जिस वजह से अभियुक्त के बचाव के लिए जिला मजिस्ट्रेट ने जेएस बनर्जी को उनका वकील नियुक्त किया। अभियुक्त ने 50 सफाई साक्ष्य की सूची दी लेकिन एक भी गवाह को पेश करने की अनुमति नहीं दी गई।
       22 फरवरी 1934 को सेशन कोर्ट ने 3 सदस्यों ने बैकुंठ शुक्ला चंद्रमा सिंह को फणींद्र नाथ घोष और उनके साथी की हत्या में दोषी नहीं माना सिर्फ एक ने दोषी माना। लेकिन सेशन जज ने बैकुंठ शुक्ला को फणींद्र नाथ घोष और उनके साथी की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई और 24 फरवरी 1934 को पटना उच्च न्यायालय को सजा कंफर्मेशन के लिए पत्र लिखा। लेकिन बैकुंठ शुक्ला द्वारा इसके खिलाफ कोई अपील दाखिल नहीं किया गया वह इसके लिए अपने पत्नी को मना भी किए थे। उनका कहना था भारत को स्वतंत्र कराने के लिए पुनर्जन्म लूंगा ।
          पटना कोर्ट में 17 अप्रैल 1934 को सेशन कोर्ट के फैसले की पुष्टि किया गया। घटना की पूरी जिम्मेदारी बैकुंठ शुक्ला ने अपने ऊपर ले रखी थी। इसलिए चंद्रमा सिंह को रिहा किया गया।
               बैकुंठ शुक्ला को केंद्रीय कारागार गया में ले आया गया और उन्हें विशेष सुरक्षा के तहत काल कोठरी में रखा गया।                  
           बैकुंठ शुक्ला को फांसी होने के एक दिन पहले 13 मई 1934 को हाजीपुर गांधी आश्रम से बैकुंठ शुक्ला की पत्नी राधिका देवी गया सेंट्रल जेल अपने पति से मिलने हेतु पहुंची लेकिन उनको मिलने नहीं दिया गया। क्रूर अंग्रेजों ने अंतिम इच्छा भी पूर्ण नहीं होने दिया। मृत्यु से पहले पति-पत्नी तब को मिलने से रोका गया कितना करुण और हृदय विदारक घटना रही होगी।
                13 मई 1934 को फांसी से 1 दिन पहले बैकुंठ शुक्ला जेल में स्वतंत्रता के जागरण गीतों को गाते रहे। फांसी से पहले खुदीराम बोस द्वारा गाए गए गीतों को गाते रहे ।अंत में वंदे मातरम सुनाएं पड़ोस के बैंरकों में बंद कैदियों ने भी उनका साथ दिया। जेल का वातावरण वंदे मातरम के नारों से गूंज उठा। बैकुंठ शुक्ला को देखने और सुनने पर लगता ही नहीं था कि उनकी फांसी होने वाली है। अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक बैकुंठ शुक्ला के चेहरे पर जो तेज झलक रहा था। उसमें कोई भय पश्चाताप नहीं दिखा यह अंग्रेजों को बहुत दुखित करने वाला क्षण था कि जिसको फांसी होने वाला है। वह जरा सा भी विचलित नहीं है। उस दिन किसी कैदी ने खाना नहीं खाया। समस्त कैदियों ने उपवास रखकर उनके शहादत को नमन किया।
         14 मई 1934 को बैकुंठ शुक्ला ने फांसी से पहले भारत माता का उद्घोष करते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया। उनके अंतिम शब्द थे अब जा रहा हूं लौट के आऊंगा भारत आजाद तो नहीं हुआ वंदे मातरम फांसी से पूर्व उनके चेहरे की तेज निर्भयता देखकर वहां का सारा वातावरण अचंभित था।
          फांसी के बाद बैकुंठ शुक्ला के शव को उनके परिवार रिश्तेदार को नहीं सौंपा गया  बैकुंठ शुक्ला के पार्थिव शरीर को कुछ सिपाहियों ने सरकार के हुक्म पर फल्गु नदी के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया है ऐसा बताया गया। तब उनकी वीरांगना पत्नी राधिका देवी ने बिना रोए फल्गु नदी में स्नान कर अपने पति को तर्पण अर्पित कर पुनः हाजीपुर लौट आई।
           बैकुंठ शुक्ला के मौत के बाद उनके मायके वाले उन्हें अपने गांव ले गए। लेकिन कुछ माह के बाद ही वह पुनः वापस आश्रम लौट आई। आश्रम में 1936 में सुनीति देवी की मृत्यु हो गई जो यक्षमा से पीड़ित थी। सुनीति देवी के मृत्यु के बाद राधिका देवी अकेली हो गई।
                   1937 में योगेंद्र शुक्ला अंडमान निकोबार मे काला पानी की कठोर सजा काटकर लौटे।तब राधिका देवी को समझा-बुझाकर जलालपुर ले आए। वहां बैकुंठ शुक्ला के चाचा सूरज शुक्ला जो शिक्षक थे उन्होंने प्रयास करके राधिका देवी को खंजहाचक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक के रूप में रखवा दिया। राधिका देवी अपने घर से साइकिल द्वारा आती जाती थी।
          देश आजाद होने पर बिहार के मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह ने राधिका देवी के नाम पहलेजा घाट से बसई तक बस का रोड परमिट दिलवा दिया जिस परमिट पर चांदपुर के राघव बाबू का नीरजा बस चलता था। वह उन्हें ₹1000 महीने देते थे। 1969 में राधिका देवी शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुई। 1984 में उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का पेंशन मिलना शुरू हो गया। राधिका देवी बैकुंठ शुक्ला के छोटे भाई अपने देवर हरिद्वार शुक्ल के चारों लड़के और एक लड़की के साथ रहती थी और उन्होंने उनके साथ अपना फर्ज निभाती रही।
     राधिका देवी और उनके पति बैकुंठ शुक्ला व चाचा योगेंद्र शुक्ला ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया राधिका देवी बैकुंठ शुक्ला के शहीद स्थल निर्माण के लिए संघर्ष करती रही गया केंद्रीय जेल का नाम वैकुंठ शुक्ला के नाम पर किए जाने के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली उन्होंने इसके लिए कई बार मुजफ्फरपुर की सड़कों पर धरना भी दिया स्मारक बनाने का सपना 2017 में पूरा हुआ जिसे वह देख ना सकी 24 जनवरी 2004 को ही स्वर्ग सिधार गई।
         गया केंद्रीय   कारागार का नाम बैकुंठ शुक्ला के नाम पर किए जाने की राधिका देवी की मांग आज भी अधूरी है।
       बैकुंठ शुक्ला के पैतृक गांव जलालपुर में बैकुंठ शुक्ला की प्रतिमा स्थापित है जहां सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा 14 मई को उनका शहादत दिवस मनाया जाता है।
        मुजफ्फरपुर शहर के बैरिया गोलंबर पर शहीद बैकुंठ शुक्ला कि सरकार द्वारा आदम कद प्रतिमा लगाई गई है जहां 14 मई को शहादत दिवस और 15 मई को जन्म जयंती मनाई जाती है।
      केंद्र की अटल बिहारी बाजपेई सरकार ने बैकुंठ शुक्ला योगेंद्र शुक्ला पर डाक टिकट जारी किया गया।
      हाजीपुर जीरोमाइल रामाशीष चौक गोलंबर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम शहीद स्तंभ और बैकुंठ शुक्ला का नाम सर्वप्रथम अंकित है
                   
       वैशाली की धरती शुरू से ऊर्जावान रही है। विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली। 16 महाजनपदों में एक वैशाली। 24 वे तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि कुंड ग्राम वैशाली। बुद्ध का अंतिम उपदेश वाला  वैशाली भगवान बुध यहां तीन बार आए और जीवन में एक लंबा समय व्यतीत किए। साहित्य जगत में वैशाली की नगरवधू आम्रपाली की गूंज।
           वैशाली ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जो योगदान दिया  वह भारत के स्वर्णिम इतिहास सुनहरे पन्ने पर अंकित है।
    उसी वैशाली का लाल बैकुंठ शुक्ला जो भारतीय आन बान और शान के प्रतीक थे। 28  की उम्र में भारत माता की जय के उद्घोष के साथ फांसी के फंदे को चूम कर बिहार के प्रथम बलिदानी बने पत्नी वीरांगना राधिका देवी का महान योगदान रहा और चाचा योगेंद्र शुक्ला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कोहिनूर है।बैकुंठ शुक्ला योगेंद्र शुक्ला और वीरांगना राधिका देवी का स्मरण होते ही बरबस चाफेकर बंधुओं की याद आती है। एक परिवार का संपूर्ण योगदान भारतीय इतिहास में यदा-कदा ही दिखता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगेंद्र शुक्ला एक बहुत बड़ा नाम है 10 बरस की काला पानी की सजा काटने के बाद योगेंद्र शुक्ला कभी विचलित नहीं हुए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन योगेंद्र शुक्ला ने किया बिहार बंगाल पंजाब के क्रांतिकारियों को एक प्लेटफार्म दिया। बैकुंठ शुक्ल भारती के फंदे से विचलित नहीं हुए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर भारत माता की जय बोलते हुए चढ गये।
तो उनकी पत्नी राधिका देवी भी कभी विचलित नहीं हुई ।भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में यह एक अद्भुत मिसाल है। 
         योगेंद्र शुक्ला के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किए गए योगदान शौर्य और पराक्रम को चंद पन्नो पर नहीं लिखा जा सकता वह साहस शौर्य और धैर्य के प्रतीक थे।
       साबरमती आश्रम में योगेंद्र शुक्ला जब रहते थे वे गांधीजी के अत्यंत निकटवर्ती थे।प्रतिदिन होने वाली प्रार्थना सभा में आश्रम के सभी लोगों की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। चाहे वह कोई हो आश्रम के एक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति ने गांधी जी से जाकर कहा योगेंद्र शुक्ला कभी प्रार्थना सभा में नहीं आते।
        


         गांधीजी  से कहा प्रार्थना करने पर जो शक्ति प्राप्त होती है।वह शक्ति उससे पहले से प्राप्त है। अयाचक ब्राह्मणों की शक्ति गांधी जी को पहले से पता थी।
       1934 भूकंप के बाद  गांधी जी जब हाजीपुर आए तब उन्होंने योगेंद्र शुक्ला से मिलने की अपनी इच्छा जाहिर की और उनके घर का पता पूछा। मैं उनके घर जाकर उनसे मिलना चाहते है।
उस समय वह अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन चुके थे और अंडमान निकोबार सेल्यूलर जेल में काला पानी की सजा काट रहे थे।

                  गांधीजी के अत्यंत करीबी थे योगेंद्र शुक्ला। 1938 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने दोबारा अध्यक्ष के चुनाव पर गांधीजी नहीं चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस दोबारा अध्यक्ष बने।गांधी जी ने अबुल कलाम आजाद चुनाव लड़ने के लिए कहा। लेकिन वह सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ तैयार नहीं हुए ।जब गांधी जी ने नेहरू जी को चुनाव लड़ने के लिए कहा। नेहरू जी भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए क्योंकि उन्हें सुभाष चंद्र बोस की लोकप्रियता का पता था। इसलिए शहीद नहीं होना चाहते थे।लेकिन गांधीजी को एक नाम सुझाया पट्टाभि सीतारमैया (आंध्र प्रदेश )को चुनाव लड़ाने हेतु कहा। 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष के होने वाले चुनाव में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विरुद्ध गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदवार बनाया  29 जनवरी 1939 को चुनाव होना था । लेकिन उससे पहले कांग्रेस पार्टी ने एक पत्र जारी किया गया जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पुनः विचार करने के लिए कहा गया। पत्र का उद्देश्य था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपना पर्चा वापस ले ले और पट्टाभि सीतारमय्या निर्विरोध अध्यक्ष हो जाए। नेता जी ने कहा कि इस तरह किसी एक का पक्ष लेना उचित नहीं है। इसमें पक्षपात झलक रहा है ।जिससे बात नहीं बनी। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता जब गांधी जी के साथ थे तब योगेंद्र शुक्ला खुलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का साथ दिया।
                29 जनवरी 1939 को अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पक्ष 1580 मत पड़े जबकि गांधी समर्थित पट्टाबी सीतारमैया को 13 77 वोट मिले। प्रत्यक्ष रूप से नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभि सीतारमैया चुनाव लड़ रहे थे लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह लड़ाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गांधी जी की थी। पूरे देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पक्ष में हवा चल रही थी उनकी लोकप्रियता चरम पर थी जिससे अंग्रेज बहुत भयभीत थे।
          गांधी ने इस हार को स्वयं की हार कहा।  गांधी जी सहित देश के तमाम बड़े नेता पट्टाभि सीतारमैया के साथ थे। 
  तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सारथी या प्रबल समर्थक योगेंद्र शुक्ला स्वामी सहजानंद सरस्वती और शीलभद्र याजी के कठिन प्रयासों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस चुनाव जीतने में सफल रहे।उसके बाद इन लोगों के विरुद्ध जो षड्यंत्र हुआ वह किसी से छिपा नहीं है।
           1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय योगेंद्र शुक्ला जयप्रकाश नारायण जेल में बंद थे जयप्रकाश नारायण बहुत ही बीमार थे योगेंद्र शुक्ला जेल से भागने की रणनीति बनाएं मजबूत कद काठी और हिम्मत के धनी योगेंद्र शुक्ला ने जेल की कैदियों के धोती के सहारे जेल की 17 फीट की दीवाल पर चढ़ गए और जयप्रकाश नारायण सहित छह साथियों को जेल से भगाने में सफल रहे जयप्रकाश नारायण की बीमारी हालत में चलने की स्थिति नहीं थी योगेंद्र शुक्ला 124 किलोमीटर कंधे पर लादकर जयप्रकाश नारायण को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाएं। हाजीपुर सेंट्रल जेल के अभेद्य सुरक्षा को तार-तार कर दिया।
         काकोरी कांड आगरा कैंट के आगे चलती रफ्तार ट्रेन से कूदना अंग्रेजों से घिरा होने पर सोनपुर की उफनती गंगा में छलांग लगाना उनके शौर्य साहस और पराक्रम को दर्शाता है भारत को स्वतंत्र कराने के लिए उनके अंदर जो साहस और जज्बा दिखा वैसा तो कोई लाखों में एक ही होगा। ऐसे अनेक साहस और बहादुरी के उनके कारनामे भरे पड़े हैं।
 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली परंतु स्वतंत्रता के बाद इस महानायक को वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 13, 2025
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राष्ट्र के संबोधन में पीएम मोदी ने मुद्दे से इतर रखी बात और पुनः अमेरिकी गुलामी का परिचय दिया

आतंकवाद के साथ बात और व्यापार नहीं होगा : नरेंद्र दामोदर दास मोदी

शनिवार शाम 5:33 मिनट पर डोनल्ड ट्रांप ने X पर बताया कि अब जंग नहीं होगा। आदेश के लहज़े में डोनल्ड ट्रांप ने सुझाव या मध्यक्षता की बात नहीं कि बल्कि X पर पोस्ट कर कहा कि - मैं घोषणा करता हूं कि भारत - पाकिस्तान के बीच सीज फायर करेगा।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने आज यह नहीं कहा कि मोदी सरकार आपरेशन सिंदूर की, बल्कि आज भारत सरकार कहकर संबोधित किया जो बहुत बड़ी बात रही। प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप की भूमिका पर कुछ नहीं बोला कि किस आधार पर आदेश के लहज़े में X पर पोस्ट किया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप ने जो आदेश दिए उसमें महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार से है कि -

युद्धविराम के लिए तैयार भारत - पाकिस्तान

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का बड़ा बयान

डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर डाला अपना बयान

भारत और पाकिस्तान तुरंत और पूर्ण सीजफायर के लिए तैयार

ट्रम्प का दावा, हमने दोनों देशों के बीच कराई मध्यस्थता

ट्रम्प ने कहा, काफी लंबी चर्चा के बाद युद्धविराम के लिए तैयार हुए दोनों देश

फिलहाल ये ट्रम्प का विडियो संवाद में दोनों देशों की तरफ से पहले ऐसी कोई अधिकृत जारी नहीं की गई थी। लेकिन दोपहर से ही बड़ी ख़बर के रूप में सामने आया कि आज रात 8 बजे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी देश को संबोधित करेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के लगभग 20 मिनट के भाषण में अनर्गल बातें कर भारत माता की जय, भारत माता की जय के नारे के साथ अपनी बात खत्म कर दिया।

मोदी ने जिस तरह भारत के अधिकारिक ब्यान दिए और उसपर विचार करें तो उन्होंने अपने संवाद में अपनी ज़मीर को डोनल्ड ट्रांप के सामने घुटने टेक दिए हैं। ट्रंप का ट्वीट, वीडियो और मोदी का संबोधन सुन कर फिर से देश में गोरों की गुलामी वाली व्यवस्था को नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने स्वीकार कर लिया है।

मोदी जिस तरह से भारत में चुनाव लड़ते हैं उस स्तर का भी उनका पाकिस्तान और अमेरिका के खिलाफ अपने विचार रखने की हिम्मत नहीं कर पाए। इससे स्पष्ट है कि मोदी कहना चाहते हैं कि - युद्ध नहीं चुनाव लड़ेगी भाजपा!
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 12, 2025
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भारत के लिए आवश्यक है आरक्षण, मोदी करें आरक्षण 100% लागू ?

यह अब कहने वाली बातें ही नहीं रही कि "हम भारत के लोग ..." अब हम जाति के लोग, भारत को खंडित खंडित करने वाले सभी योजनाओं को लागू करेंगे, यहीं तो कहती हैं भारतीय संविधान और संसद।

नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व में जो तथाकथित हिंदू परंपरा की शुरुआत 2014 में वह 2025 में जातिवादी व्यवस्थाओं के साथ मजबूत हो गई। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में अब देश में जातिगत सर्वे होगा जो कि हिन्दू राष्ट्र की जिम्मेवारी से मुक्त कर देती है। आरक्षण की आवश्यकता अब व्यवस्था का ही नहीं बल्कि संसद वह संविधान का चरित्र बन गया है। ना तो भारतीय संविधान में यह ताकत और इच्छाशक्ति हैं कि वह भारत का मान बढ़ा सकें और ना ही संविधान के द्वारा संचालित भारतीय सरकार में।

देश में लगातार आरक्षण की बात मजबूत होती जा रही है और भारत सरकार जातिगत भावनाओं से ग्रसित होकर संविधान में लगातार संशोधन कर आरक्षण के दायरे को बढ़ा रही है। आरक्षण के दायरे को बढ़ाने से देश की स्थिति अयोग्य लोगों से भरने की तैयारी है। योग्यता के आधार पर देश के विकास में जो भी भागीदारी होनी चाहिए थी उसके सारे रास्ते बंद कर दिए जा रहे हैं। भारत सरकार भारत के नाम पर जिस प्रकार से वोट की राजनीति करती है वहीं भारत को विकसित एवं विकासशील देश बनाने के लिए कोई भी ऐसा कदम नहीं उठा रही जिससे देश आगे बढ़ सके।

आरक्षण की जगह जरूरत यह है कि हर एक नागरिक के लिए शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी की समुचित व्यवस्था हो ताकि हर एक व्यक्ति हर एक नागरिक निश्चित तौर पर आगे बढ़ सके। जब तक भारत शिक्षित नहीं होगा तब तक इसी प्रकार से आरक्षण की बेड़ियों में जकड़ कर समाज दर समाज और जातिगत जाति को तोड़ने में जोड़ने की राजनीति चलती रहेगी। जिसका परिणाम यह है कि आने वाले समय में एक महा विस्फोट से पूरा समाज एक दूसरे पर हावी हो जाएगा। समाज की संरचना लोकतंत्र की जिम्मेदारी होती है और आज लोकतंत्र की जिम्मेवारी भारत के सदन में या कहें कि संविधान में निहित हैं। वहीं भारतीय संविधान और भारतीय संसद दोनों इमानदार नजर नहीं आती हैं।

संविधान और भारत के सदनों की जिम्मेवारी यह होनी चाहिए कि जातिगत बातों से अलग हटकर हर एक व्यक्ति के लिए शिक्षा सुनिश्चित कराई जाए। साथ ही साथ हर एक नागरिक पढ़ें और अपनी पढ़ाई को पूर्ण करें इसके लिए उसके परिवार को आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत करने की जरूरत है। ना कि शिक्षा के नाम पर चावल, आटा, दाल बांटने से शिक्षा का स्तर सुधर जाएगा।

नरेंद्र मोदी के शब्दों में कहे तो वो अति पिछड़ा वर्ग से आते हैं और जीवन में बहुत कष्ट उठाया है। जिस कारण धीरे-धीरे एक समाज का वर्गीकरण करने का नरेंद्र मोदी ने गहरा षड्यंत्र भी किया है। भारत माता के कितने टुकड़े कर दिए जा रहे हैं शायद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को समझ नहीं है। आरक्षण के दायरे और जातिगत आधार को बनाकर जिस प्रकार से भारत को विखंडित करने का प्रयास किया जा रहा है उस विखंडन को और बेहतर बनाने का मेरा एक सुझाव है।

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को तथाकथित तौर पर भारत में जो सवर्ण जाति है उसे भारत के तमाम प्रकार के अधिकार छीन लेने चाहिए। ताकि इसके अलावा बची हुई जातियां आपस में भारत को संचालित करने के लिए टैक्स भरे और उसी टैक्स से अपनी जातियों का निर्वहन करें। भारत के प्रधानमंत्री को यह करना चाहिए कि हर एक जाति के आधार पर उन्हें शिक्षा देने वाले शिक्षक, उनका इलाज करने वाले चिकित्सक, उनके लिए वकालत करने वाले वकील, उनके लिए एक अलग से कोर्ट की व्यवस्था जिसमें उन्हीं की जाति के लोग उस कोर्ट में केस दर्ज करें।


उसी प्रकार से हरे क्षेत्र में जाति के आधार पर सभी चीजों का विभाजन कर देना चाहिए और तथाकथित तौर पर सवर्ण जातियों को देश के सभी सरकारी पदों से विमुक्त कर देना चाहिए। वही सभी सरकारी पदों पर जातिवाद के लिए होड़ लगाने वाली जातियों की पदस्थापना करनी चाहिए। जिससे भारत के मुख्य सचिव से लेकर एक पंचायत के पंचायत सचिव तक की जिम्मेवारी जातिगत आधार पर नियुक्त हो और उसी जाति के लोग उसका लाभ उठाएं।

जातिवाद की रफ्तार कम होती हुई नहीं दिख रही है इसके लिए जरूरी है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में ही जाति आधारित व्यवस्था का नीव रख देना चाहिए। प्रत्येक जातियों के लिए खुद की जाति में शादी, खुद की जाति से शिक्षा, खुद की जाति से चिकित्सा, खुद की जाति के साथ कानूनी दांवपेच एवं खुद की जाति के साथ ही उठना बैठने का प्रधान लागू करना चाहिए।


आज के दौर में जिस प्रकार से भारत में पूरे तरीके से विकास के नाम पर और जातिवाद के नाम पर देश के टुकड़े टुकड़े करने में हमारे राजनेता और हमारा संसद और संविधान सहयोग करता है उससे बेहतर है कि जाति के आधार पर ही बांट दिया जाए।

अब भारत इतना आगे बढ़ चुका है कि अब जाति के बगैर भारत की कल्पना करनी मुश्किल है। जातिगत आधारित आरक्षण ने देश को विकलांग बना कर छोड़ दिया है और जिसका परिणाम है कि आज पूरा भारत और योग्यताओं से पूर्ण सदन का नेतृत्व कर रहा है। इसलिए मेरे सुझाव पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विचार करना चाहिए और यह दिखाना चाहिए कि वह वाकई में भारत की चिंता और चिंतन में 18 से 20 घंटे काम कर रहे हैं।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 12, 2025
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वीआईपी पार्टी में अरुण कुमार मंडल

राजपा पार्टी से बिहार प्रदेश प्रवक्ता पद छोड़कर

राजपा पार्टी से बिहार प्रदेश प्रवक्ता पद छोड़कर आज वीआईपी पार्टी के माननीय सुप्रीमों व.पुर्व मंत्री बिहार सरकार सन ऑफ मल्लाह बड़े भैया मुकेश सहनी की
आमंत्रित पर मैने सिस्टाचार मुलाकात गुलदस्ता एवं शॉल पहनाकर स्वागत के वाद पार्टी सदस्यता ग्रहण करवाया गया। साथ जिला मधेपुरा प्रवक्ता के पद पर मनोनय क्या गया है।

अरुण कुमार मंडल समाजसेवी कुमारखंड बहुत संघर्ष सील युवा इनको जिला मधेपुरा प्रवक्ता बनाने पर अरुण कुमार मंडल ने कहा माननीय बड़े भैया-सह-पुर्व मंत्री बिहार सरकार? विकासशील-इंसान पार्टी सुप्रीमों अरुण कुमार मंडल ने आज अपने परिवार की तरह मुझे समझकर निषाद आरक्षण के लिए हर संभव लड़ने वह सरकार बिहार में इंडिया गठबंधन की सरकार बनायेंगे। 

हम राष्ट्रीय जनसंभावना पार्टी के बिहार प्रदेश प्रवक्ता के पद छोड़कर वीआईपी पार्टी में सामिल होने पर हम अपने और से एवं तमाम हमारे कार्यकर्ता सदस्य वो पदाधिकारी तरफ ढेरो शुभकामनाएं एवं बधाई दिया है। समस्त वीआईपी पार्टी के पदाधिकारी व माननीय सुप्रीमों विकाश शील इंसान पार्टी पुर्वमंत्री बिहार सन ऑफ मल्लाह आदरणीय मुकेश सहनी जी के निर्देशानुशार पार्टी को विस्तार से मजबूत करेंगे। वह विधानसभा चुनाव में आदरणीय बड़े भैया जी को जीताने को वह उपमुख्यमंत्री बनाने को लेकर एक अच्छा संघर्ष करेंगे।

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 11, 2025
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खंड - 03 : हाजीपुर विधानसभा @2000 से @2025

पार्ट - 3 : जिलाधिकारी से सवाल करने की हिम्मत कैसे ?

 

बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा

यह कहावत वैशाली जिले पर आज के परिप्रेक्ष्य में सत्य प्रतीत होता है। आज लगभग तीन वर्षों से जिस अधिकारी को जिला का प्रमुख बनाया गया है वह हैं यशपाल मीणा जिलाधिकारी वैशाली। जहां जिलाधिकारी के रूप में वैशाली आते ही पूरे प्रशासनिक महकमों में भारी हंगामा मचाया हुआ था। वहीं धीरे - धीरे अपनी जिम्मेदारियों से खुद को मुक्त कर जनतंत्र के नाम पर जनता का शोषण करने में लग गए।

यशपाल मीणा ने प्रारंभिक प्रभार में हाजीपुर शहर में अतिक्रमण और जाम पर एक सप्ताह काम किया और फिर अपनी उपस्थिति को शुन्य कर दिया। नगरीय प्रशासन के साथ मिलकर हाजीपुर नगर परिषद में सड़कों को गड्ढों में तब्दील कर गड्ढों को ही सड़क मानकर अवैध वसूली की दुकान चला रहे हैं। सरकार के नज़र में जो क्षेत्र सड़क माना जाता है वह आज गड्ढों का महा त्रास बना दिया गया है और निर्माण के नाम पर लोगों को मौत के मुंह में धकेला जा रहा है।

कुछ तस्वीरें आपके बीच रख रहें हैं जो कि कोविड - 19 से भी भयावह रूप लेकर आम जन का जीवन ले रहा है। महामारी को जन्म देने वाले गतिविधियों से सड़कों का निर्माण पिछले एक महीने से राजेन्द्र चौक से गुदरी रोड में चल रहा है और अब तक 200 मीटर भी सड़क का निर्णय हुआ है जिसमें 30% से ज्यादा काम अधूरे और दुर्घटना को बढ़ावा देने वाले रूप में सड़कों पर विकसित किया गया है।

यशपाल मीणा को दर्जनों बार सूचित करने के बावजूद भी जिलाधिकारी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगता है। वह इसे राजनीतिक चाटुकारिता का भी एक हिस्सा माना जाता हैं। नगर परिषद हाजीपुर की जो स्थिति बनाई गई है वह मौत का केंद्र बिंदु बनाकर रख दिया है और मौत की दुकान को कैसे समाधान की ओर ले जाया जाए यह जनता को ही पता है और चलता है।

जैसा सांसद और विधायक और सभापति का चयन लोगों ने किया है उसका परिणाम है कि नगर परिषद हाजीपुर को मौत का केंद्र बना दिया गया है।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 10, 2025
Ahaan News

मोदी जी आप सिर्फ चुनाव लड़ें,, युद्ध। रहने दे।

यूं ही कोई आयरन लेडी नहीं कहलाती हैं

मानना पड़ेगा, बड़ी शक्तिशाली थीं इंदिरा गाँधी...। इंदिरा गांधी से हर समय अपनी राजनीति शुरू करने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने आज भारत के उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सीज फायर कर नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने सिंदूर मिशन को एकबार फिर धोखा दे दिया।

वहीं एक ओर सोशल मीडिया पर मजबूत संदेश आने लगा नरेंद्र दामोदर दास मोदी को लेकर कि -

सिंदूर डाल के  पहले भाग जाना इसकी पुरानी आदत है...! 😡

सिंदूर को फिर एक बार धोखा दिया पहले 18 वर्ष की अवस्था मे अब 74 वर्ष की अवस्था मे 
74-18 =56

वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया पर एक संदेश जोड़ पकड़े हुए हैं कि -

इतिहास याद रखेगा...
एक थी आयरन PM 
एक है सायरन PM

पहलगांव हमले में दर्जनों लोगों की हत्या कर दिया गया और उसके जबाव में सिंदूर मिशन के तहत कार्रवाई की लंबी लंबी बातें हुई और अब अमेरिका के आगे घुटने टेक दिए मोदी सरकार ने जो 16 मई 2014 से अबतक भारत सरकार का संचालन करनी है या कहें नेतृत्व करती हैं।

जहां अमेरिका ने एक दिन पहले ही बता दिया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच रात भर की बातचीत कर सीज फायर करा दिया है। यह सुचना अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप ने खुद X पर पोस्ट कर बताया पुरी दुनिया को, तो वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने अपनी चुप्पी से यह साबित कर दिया कि वह अमेरिका के दबाव में आकर सीज फायर करने को मजबूर हो गए हैं।

मोदी के टीम ने पिछले कुछ दिनों से देश को नया सपना दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी कि मोदी हैं तो मुमकिन है और इस बार पाकिस्तान के तीन टुकड़े हो जाएंगे। वहीं POK को मोदी जी लेकर रहेंगे लेकिन मोदी जी ने अपनी पुरी प्रोपगंडा टीम को निराश कर दिया।

आने वाला समय नरेंद्र दामोदर दास मोदी को लेकर गंभीर कभी नहीं हो पाएगा और पहलगांव में दर्जनों हत्या के बाद सिंदूर मिशन के तहत भी दर्जनों की बलि देकर नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने सिर्फ अपने लिए राजनीतिक मजबूरी को मजबूती प्रदान करने का प्रयास किया लेकिन भारत की जनता नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नाकामियों को लेकर आहत हैं।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 09, 2025
Ahaan News

खंड - 02 : हाजीपुर विधानसभा @2000 से @2025

पार्ट - 2 : हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र में किसमें हिम्मत है जो सवाल खड़े करें ?

वैशाली जिलाधिकारी के निरंकुश शासन व्यवस्था का परिणाम है कि आज हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र में विधायक और नगर परिषद के सभापति का मनोबल बढ़ चुका है। आतंकी व्यवस्था से हाजीपुर नगर क्षेत्र में वातावरण के साथ खिलवाड़ लगभग महिने भर से हो रहा है। वहीं जिलाधिकारी और उनके अधिनस्थ पदाधिकारियों से कई बार अनुरोध करने के बावजूद यह तस्वीर जो हम आपके बीच रख रहे हैं ऐसे ही भयावह स्थिति बनाई गई हैं।

आप सभी को याद होगा कि कोविड - 19 के समय मामूली बातों में पुलिस आम लोगों पर बर्बरता पूर्ण कार्यवाही करते थे। वहीं इतना भयावह और काले धुआं से किस प्रकार से पर्यावरण को दूषित किया जा रहा हैं। यह तस्वीर जो आपके बीच रख रहे हैं वह राजेन्द्र चौक से गुदरी रोड में खाद्यी भंडार वस्त्रालय के पास का हैं। यहां लगभग एक महीने से इस अवैध और असंवैधानिक व्यवस्था के तहत लोगों को घटिया वातावरण में दिन - रात रहना पड़ता है। जिस पर दर्जनों शिकायतें होने और दिन भर में दर्जनों बार नगर थाना की गाड़ियों का आवागमन होता रहता है तो वहीं इस एक महिने में जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक व अनुमंडल स्तरीय अधिकारियों का भी कई बार आना हुआ है।

भारत में आज ऐसी व्यवस्था हो गई है कि अवैध भी वैध सरकार के मनोवृत्ति के आधार पर बन जाते हैं। वहीं बिहार जैसे राज्य में जहां शराब बंदी किए हुए लगभग 9 वर्ष से उपर हो गए लेकिन शराब आज होम डिलीवरी हो रही है। वैसे ही कोविड - 19 के कालखंड में कभी मास्क मुंह पर हो और नाक ना ढ़का रहता था तो लोगों को अपराधियों की तरह देखा जाता था। वहीं लोगों को डंडे और आर्थिक दंड से प्रताड़ित करते थे। वहीं आज इस महाविनाशक काले धुआं से लोगों का जीवन में तबाही मचाई हुई है, लेकिन जिलाधिकारी अपने दलाली स्वभाव से बाज नहीं आ रहे हैं और इसकी सूचना देने वालों का नंबर ब्लाक लिस्ट में डाल देते हैं।

यह कब तक चलता रहेगा जब जिलाधिकारी अपने दलाली स्वभाव से बाहर निकलकर मानवीय सरोकार और मानवाधिकार की रक्षा पर काम करेंगे

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 09, 2025
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बिहार सरकार पंचायतीराज विभाग मंत्री श्री केदार प्रसाद गुप्ता को माँगो का ज्ञापन सौंपा

निर्वाचित जनप्रतिनिधि हित में एक 11 सूत्री माँगो का ज्ञापन सौंपे तथा बिन्दु वार वार्ता की

बिहार प्रदेश पंच सरपंच संघ के तत्वाधान आज प्रदेश अध्यक्ष अमोद कुमार निराला ने पंचायती राज बिहार सरकार के मंत्री केदार प्रसाद से कार्यालय प्रकोष्ठ में मिलकर सूबे के ग्राम कचहरी और इसके निर्वाचित जनप्रतिनिधि हित में एक 11 सूत्री माँगो का ज्ञापन सौंपे तथा बिन्दु वार वार्ता की और सभी ज़रूरी माँग पुरा करने का आग्रह किया ।

मंत्री श्री गुप्ता ने माँग पत्र का गहराई से पुनः अवलोकन किया त्वरित कार्रवाई करते हुए लिखित रूप से निर्देशक पंचायतीराज विभाग को निर्देशित किया कि आवेदन के आलोक में आवश्यक कार्रवाई करेंगे । माँगो के आलोक में मुख्यरूप से ग्राम कचहरियों में प्रहरी सह सफ़ाई कर्मी की नियुक्ति, पंच,सरपंच,उप सरपंचों का बकाया १० दिनों के अन्दर सत प्रतिशत भुगतान,सचिव और न्याय मित्रों तथा पंच परमेश्वर के मानदेय नियत तथा विशेष भत्ता में बढ़ोतरी,ग्राम कचहरियाँ कंप्यूटर से लैस होंगे,चैकिदार की उपस्थिति हेतु उच्च स्तरीय पत्र निर्गत होंगे,न्याय पगड़ी,आदि पर आदेश किए ।

 

संघ अध्यक्ष श्री निराला ने बताया कि न्याय के साथ विकास की अवधारणा के आलोक में हमारे सभी एक ग्यारह सूत्री ग्राम कचहरी एवं निर्वाचित जन प्रतिनिधियों को सर्व सुविधा संपन्नता हेतु माँग जायज़ है सरकार बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वेतन,भत्ता,पेंशन,सुरक्षा,स्वास्थ्य, एवं बीमा सुविधा,विकासात्मक कार्यों की समीक्षा,कंप्यूटर ऑपरेटर,भूमापक अमीन,स्थानीय निकाय MLC चुनाव में पंच सरपंचों को मतदाता बनाने सहित सभी माँग पूर्ण करें अन्यथा ग्राम कचहरी प्रतिनिधि सामूहिक इस्तीफ़ा देने को बाध्य होंगे जिसकी सारी जवाब देही राज्य व केंद्र सरकार की होगी ।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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May 09, 2025
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खंड - 01 : हाजीपुर विधानसभा @2000 से @2025

पार्ट - 1 : हाजीपुर हैं क्या? क्या आप जानते हैं?

हाजीपुर नाम 13-14वीं शताब्दी के मध्य आया और लगातार लगभग आज 800 वर्षों से लूट का ही अड्डा बना हुआ है। हाजी इल्याश से प्रारंभ हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के बाद आजाद भारत के बावजूद लूटेरों का दंश झेलते हुए आज तक हम सड़क, बिजली और पानी तक के सामान्य और जरूरत के संकटों से मुक्ति नहीं पा सके हैं। अंग्रेजी हुकूमत काल में नगर क्षेत्र का विकास हुआ और 1869 ईस्वी में हाजीपुर नगर पालिका बना और आज नगर हाजीपुर का क़द राज्य सरकार ने गिराकर नगर परिषद कर दिया।

नगर का विकास जिस स्तर पर होना चाहिए था आज तक एक गांव के सामान्य जीवन स्तर को भी प्राप्त नहीं कर सका। आज़ाद भारत में सबसे बड़ा लूट का केंद्र रहा तो राजनीतिक रूप से विश्व रिकॉर्ड बनाने वाली हाजीपुर ही। हाजीपुर में नेताओं का नेतृत्व झूठ और फरेब के आगे नतमस्तक हुई और जनतंत्र में जनता के बीच से बेवस और लाचार लोगों को चंद लालच देकर अन्य समाज के संभ्रांत लोगों का मुंह बंद करा रखा है।


आज संभ्रांत समाज उद्दंड लोगों से दूरी बनाए रखता है क्योंकि उन्हें अपने मान सम्मान की चिंता व चिंतन रहती हैं। और इसी का फायदा जनप्रतिनिधि और नौकरशाह उठाते हैं। जिसका आज परिणाम यह हैं कि हाजीपुर नगर परिषद क्षेत्र आज जानवरों के रहने लायक भी नहीं रहा है।
 

हाजीपुर शहर हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र का प्रमुख केन्द्र है।
 

हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र में 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा - BJP) का हिस्सा हुआ और आज 26 वें साल में प्रवेश कर गया है। आज 25 वर्षों की ओर नज़र डालें तो हाजीपुर विधायक के रूप में एक व्यक्ति का बर्चस्व बना हुआ है भले ही 2014 में जो तत्कालीन विधायक थे वह संसद में चले गए मगर जिसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में बैठाया वह पहले जैसे 2000 से व्यक्तिगत सहायता (PA) थे वैसे भी पद पर बैठने के बावजूद पिछले 11 वर्षों से हैं।

हाजीपुर विधानसभा चुनाव 2025 में ऐसे उम्मीदवार की तलाश है जो स्वतंत्रता से अपने विधायक धर्म का पालन विधानसभा क्षेत्र में करें। जनतंत्र में जनता को जो अधिकार हैं उसका सम्मान करने वाला विधायक हाजीपुर को चाहिए ताकि लोकतंत्र की धरती वैशाली का सम्मान बरकरार रह सकें।
 

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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