3 से 5 अगस्त तक आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में 500 से अधिक ब्रांड्स अपने स्टॉल लगाएंगे और 40,000 से 50,000 तक आगंतुकों के आने की संभावना
पटना : राज्य के सबसे बड़े व्यापारिक आयोजन बिहार बिजनेस महाकुंभ 2025 की तैयारी अब अंतिम चरण में पहुँच चुकी है। इसी क्रम में आज राजधानी पटना के ऑर्चिड मॉल स्थित गोल्डन फ्लेवर रेस्टोरेंट में एक पूर्व-सम्मेलन (Pre-event Conference) का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में स्टॉल धारकों, उद्यमियों, मीडिया प्रतिनिधियों और कारोबार से जुड़े लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया।
सम्मेलन की शुरुआत आयोजन समिति द्वारा बिहार बिजनेस महाकुंभ के उद्देश्य, आयोजन की रूपरेखा और व्यवस्थाओं की विस्तार से जानकारी के साथ हुई। समिति ने बताया कि 3 से 5 अगस्त तक आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में 500 से अधिक ब्रांड्स अपने स्टॉल लगाएंगे और 40,000 से 50,000 तक आगंतुकों के आने की संभावना है। इसके साथ ही देशभर से निवेशक, निर्यातक, स्टार्टअप प्रतिनिधि, MSME संगठनों और मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की भी विशेष भागीदारी सुनिश्चित की गई है।
आयोजन स्थल पर लाइव डेमो ज़ोन, इन्वेस्टर पिच मंच, और MSME सहायता डेस्क जैसी सुविधाएं उपलब्ध रहेंगी। आयोजकों ने स्टॉल लगाने वालों को बताया कि स्टॉल सेटअप की तारीखें, प्रवेश पास की प्रक्रिया, ऑनग्राउंड सपोर्ट और प्रचार सामग्री कैसे उपलब्ध कराई जाएगी। इस अवसर पर स्टॉल धारकों ने भी अपने सवाल रखे, जिनका समाधान विस्तारपूर्वक किया गया। पूर्व-सम्मेलन के अंत में ओपन Q&A सेशन और टी नेटवर्किंग सेशन का आयोजन किया गया, जहाँ विभिन्न व्यापारिक क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने आपस में संवाद स्थापित किया और महाकुंभ को लेकर अपने विचार साझा किए। इस दौरान एकजुटता और सहयोग की भावना देखने को मिली, जिससे आयोजन को लेकर उत्साह और भी बढ़ गया।
मौके पर सुमन कुमार, शुभम यादव, राहुल, तनिष्क, राजा, अर्चना जी, मिली सिंह, राजेश, विपुल, गौरव पांडे, चंदन कुमार सहित कई अन्य प्रतिनिधि मौजूद रहे। आयोजकों ने सभी उपस्थितों का आभार जताते हुए कहा कि यह सिर्फ एक एग्जीबिशन नहीं, बल्कि बिहार के उद्यमिता भविष्य की नींव है, जिसे हम सब मिलकर साकार करेंगे।
चर्चित फिल्म निर्माता व उद्यमी चेतना झाम ने ली जन सुराज पार्टी की सदस्यता
पटना : चर्चित फिल्म निर्मात्री, युवा उद्यमी और समाजसेविका चेतना झाम आज जन सुराज पार्टी में शामिल हो गयी. पटना में आयोजित एक समारोह में उन्होंने प्रशांत किशोर के समक्ष औपचारिक रूप से जन सुराज की सदस्यता ग्रहण की। पार्टी कार्यालय में आयोजित संवाद के दौरान उन्होंने प्रशांत किशोर की कार्यशैली और दृष्टिकोण की खुलकर सराहना की। चेतना ने उन्हें “महात्मा तुल्य नेता” बताया जो आज के समय में दुर्लभ हैं। चेतना झाम ने कहा कि जब सभी राजनीतिक दलों के नेता एसी कमरों में बैठकर बयानबाजी करते हैं, वहीं प्रशांत किशोर गांव-गांव घूमकर जन संवाद कर रहे हैं, लोगों की पीड़ा को महसूस कर रहे हैं और बिहार के विकास की जमीन तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैंने उनमें सच्चाई, संकल्प और संघर्ष की भावना देखी है। इसीलिए मैं आज जन सुराज के साथ खड़ी हूं और आने वाले समय में इस आंदोलन की सशक्त आवाज बनूंगी।” प्रशांत किशोर के विजन से प्रभावित होकर चेतना ने कहा कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में एक जन-क्रांति लाना चाहते हैं। चेतना ने अपने संबोधन में भावुक होते हुए कहा, “जिस तरह एक माँ अपने बच्चों की चिंता करती है, वैसे ही प्रशांत किशोर बिहार के हर नागरिक की चिंता करते हैं। मैं इस मिशन की सच्ची सिपाही बनूंगी।” समस्तीपुर निवासी चेतना झाम की कहानी भी किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं है। उन्होंने 3000 रुपये से अपना करियर शुरू किया, दिल्ली में संघर्ष के दिन देखे, भूखी भी रहीं लेकिन बिहार की मिट्टी से मिले आत्मबल ने उन्हें हारने नहीं दिया। आज वे एक सफल उद्यमी, समाजसेविका और फिल्म निर्माता के रूप में देशभर में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनकी बनाई फिल्मों और अभियानों में बिहार की संस्कृति, संघर्ष और सौंदर्य प्रमुखता से उभरकर सामने आता है। जन सुराज पार्टी में शामिल होकर चेतना झाम ने न केवल बिहार की बेटियों को एक नई प्रेरणा दी है, बल्कि यह भी बताया है कि यदि नीयत साफ हो, तो राजनीति भी समाज सेवा का सशक्त माध्यम बन सकती है। अब वे पार्टी की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बिहार के विकास और बदलाव के लिए सक्रिय भूमिका में होंगी।
चर्चित फिल्म निर्माता व उद्यमी चेतना झाम ने ली जन सुराज पार्टी की सदस्यता
पटना : चर्चित फिल्म निर्मात्री, युवा उद्यमी और समाजसेविका चेतना झाम आज जन सुराज पार्टी में शामिल हो गयी. पटना में आयोजित एक समारोह में उन्होंने प्रशांत किशोर के समक्ष औपचारिक रूप से जन सुराज की सदस्यता ग्रहण की। पार्टी कार्यालय में आयोजित संवाद के दौरान उन्होंने प्रशांत किशोर की कार्यशैली और दृष्टिकोण की खुलकर सराहना की। चेतना ने उन्हें “महात्मा तुल्य नेता” बताया जो आज के समय में दुर्लभ हैं। चेतना झाम ने कहा कि जब सभी राजनीतिक दलों के नेता एसी कमरों में बैठकर बयानबाजी करते हैं, वहीं प्रशांत किशोर गांव-गांव घूमकर जन संवाद कर रहे हैं, लोगों की पीड़ा को महसूस कर रहे हैं और बिहार के विकास की जमीन तैयार कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “मैंने उनमें सच्चाई, संकल्प और संघर्ष की भावना देखी है। इसीलिए मैं आज जन सुराज के साथ खड़ी हूं और आने वाले समय में इस आंदोलन की सशक्त आवाज बनूंगी।” प्रशांत किशोर के विजन से प्रभावित होकर चेतना ने कहा कि वह शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के क्षेत्र में एक जन-क्रांति लाना चाहते हैं। चेतना ने अपने संबोधन में भावुक होते हुए कहा, “जिस तरह एक माँ अपने बच्चों की चिंता करती है, वैसे ही प्रशांत किशोर बिहार के हर नागरिक की चिंता करते हैं। मैं इस मिशन की सच्ची सिपाही बनूंगी।” समस्तीपुर निवासी चेतना झाम की कहानी भी किसी प्रेरणादायक फिल्म से कम नहीं है। उन्होंने 3000 रुपये से अपना करियर शुरू किया, दिल्ली में संघर्ष के दिन देखे, भूखी भी रहीं लेकिन बिहार की मिट्टी से मिले आत्मबल ने उन्हें हारने नहीं दिया। आज वे एक सफल उद्यमी, समाजसेविका और फिल्म निर्माता के रूप में देशभर में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनकी बनाई फिल्मों और अभियानों में बिहार की संस्कृति, संघर्ष और सौंदर्य प्रमुखता से उभरकर सामने आता है। जन सुराज पार्टी में शामिल होकर चेतना झाम ने न केवल बिहार की बेटियों को एक नई प्रेरणा दी है, बल्कि यह भी बताया है कि यदि नीयत साफ हो, तो राजनीति भी समाज सेवा का सशक्त माध्यम बन सकती है। अब वे पार्टी की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बिहार के विकास और बदलाव के लिए सक्रिय भूमिका में होंगी।
कौन सा पत्ता पहले खिसक कर एनडीए के महल को धराशायी करेगा.?
मुझे इस बात का दुख होता है कि अपने द्वारा दिये गये समर्थन का, जहां पर अपराध पूरे तरीके से बेलगाम हो चुका है, इस पर नियंत्रण पाना जरूरी हो गया है नहीं तो इस तरीके से बिहार और बिहारियों की जिंदगी से होता हुआ खिलवाड़ बिहार को बहुत बुरे अंजाम में पहुंचा देगा। ये बयान किसी ऐरे गैरे नत्थू खैरे का नहीं है ना ही ये बयान किसी विपक्षी पार्टी के नेता द्वारा दिया गया है। ये बयान एलजेपी प्रमुख चिराग पासवान का है जो दिल्ली दरबार में मोदी सरकार में मंत्री हैं और बिहार ही उनकी राजनीतिक जमीन है जो इस समय विधानसभा चुनाव को लेकर राष्ट्रीय स्तर पर एक मुद्दा बन चुका है। चिराग पासवान ने मीडिया से चर्चा करते हुए कहा कि बिहार में जिस तरीके से हत्या, अपहरण, लूटमार, डकैती, बलात्कार एक के बाद एक श्रंखलाबद्ध तरीके से हो रहे हैं। अब तो ऐसा लग रहा है कि प्रशासन पूरे तरीके से नाकामयाब है इन घटनाओं को रोकने के लिए। अगर ऐसा ही चलता रहा तो ये आने वाले दिनों में बहुत भयावह परिस्थिति उत्पन्न कर देगा। बड़ी डरावनी स्थिति हमारे प्रदेश में उत्पन्न हो चुकी है। चिराग ने मीडिया से आगे कहा कि जिन परिवारों ने अपनों को खोया है उनके हालात पूछिए, जिन बच्चियों के साथ दुष्कर्म हो रहा है उनके हालात पर गौर कीजिए। इन सब को रोकने की, नियंत्रित करने की जिम्मेदारी तो प्रशासन की है। पासवान ने सवालिया लहजे में पूछा कि कोई भी अपराधी आपके राज्य में आपराधिक घटनाओं को कैसे अंजाम दे रहा है, प्रशासन के रहते हुए। चिराग पासवान ने आरोपित लहजे में कहा कि हो रहे अपराधों में या तो प्रशासन की मिली भगत है या फिर प्रशासन इसमें लीपापोती करने में लगा हुआ है अथवा प्रशासन पूरे तरीके से निकम्मा हो चुका है और इनके बस में कुछ नहीं है।
चिराग पासवान का ये बयान नितीश कुमार की अगुवाई में चल रही डबल इंजन की सरकार और दिल्ली सल्तनत ने मुंह पर तमाचा है। चिराग पासवान की राजनीति की टोटल जमीन बिहार में ही है जिसमें उनका एकमुश्त वोट बैंक भी है जिसको ना तो जातीय समीकरण के आसरे ना ही विकास की राजनीति के आसरे डिगा पाने की स्थिति में फिलहाल तो कोई भी नहीं है। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति में चिराग पासवान का कद जितना बढ़ना चाहिए था बढ़ चुका है अब तो विधानसभा चुनाव में उनकी कोशिश अपने वोट बैंक को दूसरे हल्कों में बढ़ाने की है और चिराग पासवान को समझ में आने लगा है कि बिहार में नितीश कुमार के साथ खड़े होकर वोटों में विस्तार तो हो नहीं सकता है। उनको इसकी समझ भी आ गई है कि वे कितना भी ऐलान करते रहें कि दिल्ली दरबार में मेरी बहुत पकड़ और पहुंच है लेकिन इससे बिहार के वोटरों के हालात तो सुधरेंगे नहीं। उसके लिए तो पार्टी को विस्तार देना होगा।
एक छोटे चैनल के साथ बात करती हुई एक नन्ही बालिका ने बिहार में 20 सालों से राज कर रहे सुशासन बाबू के चेहरे पर से नकाब नोच कर भर नहीं फेंका बल्कि नितीश कुमार के घिनौने चेहरे को बड़ी मासूमियत के साथ सबके सामने नंगा कर दिया है। दरभंगा के मधुबनी में होने वाले मखाने को लेकर जिसका जिक्र पिछले दिनों खूब हुआ था वहां के स्कूल में पढ़ने वाली एक सात-आठ साल की बच्ची से जब मीडिया कर्मी ने पूछा कि तुम सुशासन बाबू की सरकार से क्या चाहती हो उसने कंपकंपाती आवाज में कहा कि सरकार स्कूल में दीवार खड़ी करवा दे, छप्पर डलवा दे, बरसात में यहां - वहां भागना पड़ता है, बरसात थमने के बाद जब फिर स्कूल आते हैं तो पढ़ने की खातिर बैठने के लिए सूखी जगह ढ़ूंढ़नी पडती है जो बमुश्किल नसीब होती है, गर्मी में झुलसाती धूप लगती है तो शीतकाल में बहुत ठंड लगती है। बच्ची की कंपकंपाती हुई आवाज बिहार सरकार को सरे बाजार दिगंबर करती है क्योंकि वह बच्ची दलगत और छल प्रपंच की राजनीति से बहुत दूर है।
राजनीतिक गलियारों में पीएम नरेन्द्र मोदी को लंबी-लंबी अविश्वसनीय बातों को फेंकने का सिरमौर माना जाता है तो स्वाभाविक है उनके पिछलग्गू कहां पीछे रहने वाले हैं वह भी मोदी की मौजूदगी में। ऐसा ही वाक्या सामने आया जब पीएम नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री नितीश कुमार की उपस्थिति में बिहार में बीजेपी के कोटे से उप मुख्यमंत्री बने सम्राट चौधरी ने मंच से खुले तौर पर कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले 10 बरस में बिहार को 14 लाख करोड़ रुपये दिए हैं। ऐसा कह कर सम्राट चौधरी ने नितीश सरकार और मोदी सरकार को भृष्टाचार के दलदल में फंसा दिया है। बिहार में पिछले 20 बरस से नितीश कुमार मुख्यमंत्री बने हुए हैं और पिछले दस बरस से बीजेपी नितीश के साथ मिलकर डबल इंजन की सरकार चला रही है। अगर एक बार सम्राट चौधरी की बात को ही सच मान लिया जाय (जबकि यह बात पूरी तरह से अस्वीकार योग्य है) तो फिर आज की तारीख में बिहार को सबसे पिछड़े राज्यों में क्यों गिना जाता है.? मतलब बहुत साफ है कि केन्द्र में मिलने वाला पैसा विकास कार्यों में लगने के बजाय भृष्टाचार की भेंट चढ़ रहा है।
पीएम नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने दसईयों बार खुलेआम कहा है कि एनडीए ताश का महल नहीं है जो एक पत्ता निकल जाने से भरभरा कर गिर जायेगा। एनडीए बहुत मजबूत है और उसके कुनबे में शामिल राजनैतिक दल पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की बिछाई बिसात पर चलते हैं। लेकिन मोदी और शाह द्वारा कही गई बात बीते दिनों की बात हो चली है। आज की स्थिति में जो नजारा नजर आ रहा है अगर उससे एक भी पत्ता सरका तो एनडीए भरभरा कर गिर जायेगी। पहला सवाल तो एक पखवाडे़ के भीतर चंद्रबाबू नायडू के जरिए निकल कर तब आया जब उनने अपने प्रदेश की राजधानी अमरावती के लिए अपने अनुकूल बजट और कार्पोरेट के साथ ही चुनाव आयोग के एसआईआर को लेकर सवाल उठाते हुए कहा कि यह हमें कतई मंजूर नहीं है। दूसरा सवाल नितीश कुमार के साथ जुड़ा हुआ है कि विधानसभा चुनाव के बाद जनता दल यूनाइटेड बचेगी या नहीं बचेगी। क्योंकि अगर चुनाव परिणाम नितीश कुमार के प्रतिकूल रहे तो क्या सब कुछ बीजेपी में शिफ्ट हो जायेगा, जेडीयू के बचे-खुचे सांसद और विधायक बीजेपी में मर्ज हो जायेंगे।
लेकिन इससे हटकर तीसरा सवाल चिराग पासवान को लेकर खड़ा हो गया है जिसमें वे खुले तौर पर ऐलानिया कहने लगे हैं कि जो हालात आज बिहार में दिखाई दे रहे हैं उसके मद्देनजर हमारी पार्टी नितीश कुमार की सरकार को समर्थन कैसे कर सकती है ? तो क्या बिहार चुनाव के पहले ही कोई खेला होगा जिसमें चिराग पासवान को यह लगने लगा है कि उनकी पार्टी एलजेपी अगर बीजेपी और जेडीयू के साथ मिलकर 50 सीटों पर भी चुनाव लड़ती है तो बिहार के भीतर उनकी स्थिति और भी दयनीय हो जायेगी ! भले ही सत्ता में उनकी भागीदारी नहीं है लेकिन अगर सत्ता के साथ खड़े है तो वोटिंग के स्तर पर भागीदारी का संदेश तो बिहार के उन बिहारियों में जायेगा ही जो चुनाव को लेकर आशा और निराशा के बीच झूल रहे हैं। बिहार के भीतर जितने भी स्कूल बिना छप्पर के चल रहे हैं अगर उन सभी में छप्पर डाल दिया जाये तो उस पर अधिकतम खर्चा होगा 60 हजार करोड़ रुपये का। बिहार पुलिस को ताकत और नैतिक बल देने के लिए जो बजट दिया जाना चाहिए उसमें भी अधिकतम एक लाख करोड़ रुपये ही चाहिए, जिसमें जीप, बंदूक, डंडे, पेट्रोल, डीजल सब कुछ आ जाएगा। यानी बिहार के 38 जिलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में एक लाख पैंतीस हज़ार करोड़ रुपये से ज्यादा नहीं होगा। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के निशाने पर अगर कोई है तो वह एकनाथ शिंदे और उनकी पार्टी शिवसेना। एकनाथ शिंदे की पार्टी शिवसेना के कोटे से बने मंत्रियों के सेक्रेटरी की पोस्टिंग मुख्यमंत्री फडणवीस की निगरानी में की जा रही है जिससे मंत्रियों को फ्री हेंड काम करने का मौका न मिल सके। एकनाथ शिंदे के मंत्री जिस तरह से खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं उसके चलते वे सोचने लगे हैं कि दोनों शिवसेना एकबार फिर एकरूप हो जाए।
एनडीए को दरकाने की शुरुआत तो चंद्रबाबू नायडू से शुरू होकर एकनाथ शिंदे और नितीश कुमार से होते हुए अपनी पराकाष्ठा पर चिराग पासवान के जरिए पहुंच चुकी है। क्योंकि बीजेपी ने अपने प्लान के मुताबिक भले ही संयोगवश ही बिहार की वोटर लिस्ट और विधानसभा चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति का मुद्दा बना दिया गया है। और अब बिहार में चुनाव नहीं जीतने का मैसेज एनडीए के उन घटक सदस्यों और बीजेपी के भीतर मोदी-शाह से दूरी बनाये हुए उन नेताओं के जमघट के लिए है जो यह मानकर चलते हैं कि जिस दिन चुनाव हारे और खासतौर पर वहां हारे जहां जीतना चाहते थे तब इनके साथ कौन खड़ा होगा ? शायद कोई नहीं। तब स्थिति उनके अनुकूल होगी या सत्ता के प्रतिकूल होगी, यह सवाल तो उठ ही सकता है । नरेन्द्र मोदी, नितीश कुमार 70 प्लस, अमित शाह 60 प्लस हैं। बिहार में बीजेपी के पास सुशील मोदी के बाद एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसके आसरे बीजेपी अपनी जमीन बिहार के भीतर बना सके या उसे उडान दे सके । उन्हें नितीश कुमार का चेहरा चाहिए।
बिहार की राजनीति को साधने के लिए इस समय तीन युवा सामने खड़े हैं। जिसमें तेजस्वी यादव, प्रशांत किशोर और चिराग पासवान शामिल हैं। इनको पता है कि आने वाले समय में राजनीति को नया मोड़ देना है या अपने अनुकूल करना है तो अपने बूते ही करना होगा। अतीत को कांधे पर लाद कर चलने से वोट मिलना असंभव सा है। बिहार की परिस्थितियां कितनी नाजुक हो चलीं है इसका अक्श नीति आयोग की रिपोर्ट दिखाती है जिसका जिक्र तेजस्वी यादव ने विधानसभा में यह कहते हुए किया - नीति आयोग की रिपोर्ट में बिहार सबसे गरीब राज्य है, बिहार में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है, बिहार में सबसे ज्यादा पलायन होता है, बिहार में न कारखाने हैं न निवेश है न उद्योग है, न धंधा है। चिकित्सा, शिक्षा सबसे निचले स्तर पर है, प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है, स्कूल ड्राप आउट रेट सबसे ज्यादा है। इसमें यह भी जोड़ दिया जाए कि बिहार दुनिया भर के राज्यों में से अकेला ऐसा राज्य है जहां का किसान दूसरे राज्य में जाकर मजदूर बन जाता है। मनरेगा का बजट सबसे कम है।
तो फिर बिहार और बिहार के चुनाव का मतलब क्या है ? जब नाउम्मीदी और इन परिस्थितियों में बिहार के चुनाव को देश की राजनीतिक सत्ता को गढ़ने या बिगाड़ने की दिशा में खड़ा हो चुका है। बिहार का चुनाव न केवल राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है बल्कि मोदी-शाह की पहचान बिहार चुनाव को जीतने से भी जुड़ गई है। तो कल्पना करें कि अगर बीजेपी बिहार में तमाम हडकंडो (जिसमें चुनाव आयोग का भी कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में सहयोग रहेगा इसके बाद भी) चुनाव हार जाती है तो एक झटके में बीजेपी और एनडीए के सहयोगियों के बीच हडकंप मच जायेगा। उन्हें यह भी समझ आ जायेगी कि मोदी-शाह का जादू खत्म हो गया है। स्वयंसेवकों के जरिए आरएसएस द्वारा बनाई गई राजनीतिक जमीन भी खिसक चुकी है तथा जिस तरह से मोदी की रैलियों में नारे लगाने के लिए दूसरे राज्यों से लोगों को आयातित किया जाता है वह भी बेमानी साबित हो जायेगा। इलेक्शन कमीशन के द्वारा एसआईआर के जरिए बनाई जा रही नई वोटर लिस्ट और इलेक्शन कमीशन की सारी मशक्कत के बाद भी अगर बीजेपी बिहार में चुनाव हार जाती है तो फिर बीजेपी को ही मोदी-शाह की कितनी जरूरत होगी ? एनडीए को मोदी-शाह की कितनी जरूरत होगी ? तय है कि मोदी-शाह का गढा गया जबरिया तिलस्मी औरा एक झटके में बिखर जायेगा।
चुनाव आयोग के आंकड़े बताते हैं कि देश में सबसे कम वोटिंग बिहार में होती है, बिहार में सबसे कम वोटिंग राजधानी पटना में होती है और पटना में सबसे कम वोट (30% से भी कम) अपर और मिडिल क्लास की आबादी वाले क्षेत्रों में पड़ते हैं। लेकिन चुनाव आयोग ने वोटिंग पर्सेंटेज बढ़ाने के लिए कभी कोई मशक्कत नहीं की। सवाल यह है कि क्या एसआईआर के जरिए नई वोटर लिस्ट बनाने का खेला इसलिए किया जा रहा है कि तकरीबन 30 फीसदी उन वोटरों के नाम हटा दिए जायें जो बीजेपी की जीत के रास्ते में कांटा बने हुए हैं ताकि बीजेपी बिहार में चुनाव जीत जाय और जीत के बाद मोदी-शाह कह सकें कि हम हैं तो सब कुछ मुमकिन है। चुनाव आयोग ने जो किया हमारी जीत के लिए किया इसमें किसी को दिक्कत क्यों होनी चाहिए? सच तो ये है कि बिहार खुली हवा में सांस लेना चाहता है। हाथ में डिग्री लिए युवा रोजगार चाहता है। खेतिहर किसान अपने अनाज की न्यूनतम कीमत तय करना चाहता है। बिहार का लोग मजदूरी करने के लिए बाहर नहीं जाना चाहता यानी वह बिहार में ही काम चाहता है। क्या ये सब कुछ हो सकता है बिहार में ?
डूबते हुए राजनीतिक भविष्य के बीच उगते हुए सूर्य की तर्ज पर बिहार को देखने की शुरुआती चाहत लिए फिलहाल तीन युवा बिहार की चुनावी नैया को खेने के लिए हाथ में पतवार लिए तैयार खड़े हैं। तेजस्वी यादव चुनाव ना लड़कर भी बड़ी राजनीतिक चुनावी बिसात को बिछा सकते हैं। प्रशांत किशोर राजनीतिक तौर पर किसी पार्टी के साथ समझौता करके नई बिसात बिछाते हुए अपने मुद्दों को राजनैतिक पटल खड़ा कर सकते हैं। चिराग पासवान एनडीए को लेकर कोई बड़ा निर्णय ले सकते हैं यानी चुनाव के पहले ही चिराग पासवान बीजेपी को खारिज कर सकते हैं। और अगर चिराग पासवान एनडीए से बाहर आते हैं तो उसका असर महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे, आंध्रप्रदेश में चंद्रबाबू नायडू और बिहार में नितीश कुमार की पार्टी पर भी पड़ेगा। सबको पता है कि देश की आर्थिक स्थिति कैसी है। सबको मोदी-शाह की तेज होती धड़कनें सुनाई देने लगी हैं दिल्ली की डगमगाती गद्दी को सम्हालते हुए। यानी इसका अह्सास मोदी सरकार में ऐश कर रहे जेडीयू, एकनाथ शिंदे की शिवसेना के मंत्रियों और खुद चिराग पासवान को हो चला है। इसीलिए चंद्रबाबू नायडू, एकनाथ शिंदे, चिराग पासवान और नितीश कुमार के जहन में यह सवाल बड़ा होता चला जा रहा है कि वो कौन सा पहला पत्ता होगा जिसके खिसकने से एनडीए रूपी ताश के पत्तों से बना हुआ शीशमहल भरभरा कर बिखर जायेगा।
सावन के पावन महीने में काँवरिया भक्तों के लिए एक नया भक्ति गीत ‘करेलु सोमरी बचपन से’ लॉन्च होते ही सोशल मीडिया पर धमाल मचा रहा है। यह कांवर गीत प्रसिद्ध भोजपुरी गायिका शिल्पी राज और युवा गायक अनिकेत अनुपम की आवाज़ में है, जिसे दर्शकों और भक्ति संगीत प्रेमियों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिल रही है। गाना टी सीरीज हमार भोजपुरी के ऑफिशियल चैनल से रिलीज हुआ है और खूब वायरल हो रहा है।
अनिकेत अनुपम ने इस मौके पर कहा, "हमारा ये गाना उन सभी भोले भक्तों को समर्पित है, जो सावन में कांवड़ यात्रा करते हैं। हमने इस गीत में भावनात्मक जुड़ाव के साथ-साथ ऊर्जा और रंगत भरने की पूरी कोशिश की है। शिल्पी राज के साथ काम करना हमेशा प्रेरणादायक रहा है और इस बार की केमिस्ट्री श्रोताओं को भी खूब पसंद आ रही है।"
गाने के तकनीकी पक्ष पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। डीओपी संतोष यादव और नवीन वर्मा ने शानदार सिनेमैटोग्राफी पेश की है, जबकि सरोज सोनकर और विवेक यादव के कैमरा वर्क ने वीडियो को भव्य रूप दिया है। श्रवण कुमार की एडिटिंग और रोहित की DI ने गाने को तकनीकी रूप से सशक्त बनाया है।
"करेलु सोमरी बचपन से" गीत सावन के भक्तों के लिए एक संगीतमय सौगात बन गया है और यह स्पष्ट है कि यह गीत पूरे महीने कांवरियों की जुबां पर छाया रहेगा। प्रोडक्शन का जिम्मा राजवीर सिंह ने संभाला है, जबकि मेकअप और हेयर स्टाइलिंग सागर गुप्ता और प्रिया ने किया है।
गीत को संगीतबद्ध किया है आशोक राव ने, जबकि इसके भावपूर्ण और भक्तिपूर्ण बोल धर्मेंद्र यादव द्वारा लिखे गए हैं। वीडियो में अनिकेत अनुपम और सोना सिंह की जोड़ी नजर आ रही है, जिन्होंने अपने अभिनय और भावभंगिमा से गीत को जीवंत बना दिया है। इसका निर्देशन और कोरियोग्राफी अनुज मौर्य ने किया है, जिनका विजुअल ट्रीटमेंट और नृत्य निर्देशन दर्शकों को खासा पसंद आ रहा है।
जरूर चले ब्रह्मर्षि के सम्मान में, परिवार के पूर्वजों और वर्तमान के साथ भविष्य को मजबूती प्रदान करने पहुंचे 17 अगस्त को श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना में
**पटना चले ।। पटना चले।।** के नारों से आज पुरा हिन्दुस्तान गुंज उठा हैं कि जैसे ही डाॅ. संजीव कुमार का संवादाताओं के साथ वार्ता हुई। उसी वार्ता में यह स्पष्ट हुआ कि 17 अगस्त 2025 को ब्राह्मण परिवार अपने स्वाभिमान के लिए एकजुट होने का निर्णय किया है। यह संदेश हर ब्रह्मर्षी परिवार तक पहुंचने चाहिए। इसी लक्ष्य को लेकर डाॅ. संजीव कुमार, विधायक, परबत्ता, खगड़िया ने लगातार बिहार विधानसभा में अपनी आवाज़ बुलंद करते रहें हैं। हर भूमिहार ब्राह्मण परिवार को लेकर एक मजबूत समाजिक एकजुटता पर जोड़ देते हुए, बिहार विधानसभा में श्री बाबू यानी श्रीकृष्ण कुमार सिंह, बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री के योगदानों को निरंतर रखते रहें। वहीं बिहार सरकार और विधानसभा के माध्यम से श्री बाबू को "भारत रत्न" से सम्मानित करने के लिए संघर्षरत रहे हैं। जिसे लेकर जब सदनों के कानों में जूं तक नहीं रेंगा तो अब एक लक्ष्य बनाकर जन-जन तक पहुंचाने में लगे हैं।
डॉ. संजीव कुमार बिहार विधानसभा के सदस्य के हैसियत से पहले ऐसे नेता और जनप्रतिनिधि हुए हैं जिन्होंने सवर्ण समाज के हितों को लेकर लगातार विधानसभा में आवाज उठाई। वहीं कई मुद्दे को सदन में उठाया गया है, लेकिन सरकार के तरफ से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। इसलिए कहा गया है कि कलियुग में संघ में ही शक्ति निहित है। इसलिए एकजुटता के साथ ही अपने हक की समूचित लड़ाई हम लड़ सकेंगे। इसलिए डॉ. संजीव कुमार अपने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से समाज यानी ब्राह्मण परिवार से आग्रह किया कि अब एकबार जुटकर हम अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं। जिसके कारण अब ब्राह्मण परिवार पूर्णतया: साथ देने को तैयार हैं और हर स्तर पर जो भी लोग सक्रिय समाजिक दायित्वों को समझते हैं। उनके द्वारा सभी सोशल मीडिया और मिल-जुलकर भी बैठकों के माध्यम से लोगों को 17 अगस्त 2025 को श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल पटना में आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के लिए अनुरोध कर रहे हैं।
डॉ. संजीव कुमार कहते हैं कि आगामी 17 अगस्त 2025 को पटना के *श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल* में "ब्रह्मर्षि स्वाभिमान सम्मेलन" का आह्वान किया है। यह सम्मेलन सामाजिक हितों से जुड़े मुद्दों को बुलंद करने के लिए बुलाया गया है। जिसमें सबसे अहम् मुद्दों को लेकर सभी समाज की उत्सुकता जगाने में लगे हैं। भूमिहार ब्राह्मण समाज के अहम् मुद्दों एवं इस समाज के महान विभूतियों के सम्मान से ही आज और आने वाले समय में हमारे पीढ़ियों को प्रेरणा मिलेगी। आगे डाॅ. संजीव कुमार कहते हैं कि इस कार्यक्रम को लेकर हम अपने सभी समाज के लोगों से भी मिलेंगे और हर एक समाज के लोगों के सुझावों पर सामुहिक निर्णय लेकर आगे की रणनीति बनाई जाएगी।
डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि हम अपने परिवार की मजबूती के लिए निम्न बातों पर प्रथम चरण में चर्चा में रख रहें हैं जो इस प्रकार से है:-
1. EWS में उम्र सीमा में छूट।
2. श्री बाबू को भारत रत्न दिलाने की मांग।
3. किसानों के नेता स्व ०स्वामी सहजानंद सरस्वती जी के नाम पे बिहटा एयरपोर्ट हो।
4. भूमिहार जाति ब्राह्मण शब्द को सरकार के द्वारा क्यों हटाया गया,अपने जमीन के पुराने पेपर खतियान में हमारी जाती भूमिहार - ब्राह्मण लिखा जाता था।
5. सवर्ण आयोग संवैधानिक दर्जा मिले विधानसभा और लोकसभा में पारित हो जिस तरह से NCBC (National Commission for Backward Class) बना हुआ उसी तर्ज पर।
उपरोक्त सभी बातें भूमिहार ब्राह्मण समाज के लिए अतिमहत्वपूर्ण है इसलिए आइये मिलते है,17 अगस्त 2025 को यह कहते हुए जनजागृति की ओर बढ़ने को तैयार हैं डॉ. संजीव कुमार।
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डॉक्टर प्रतिमा ने इंप्लांट के बारे में सभी से प्रचार प्रसार करने अनुरोध किया
मुजफ्फरपुर - विश्व जनसंख्या दिवस, पखवाड़ा के अवसर शनिवार को एसकेएमसीएच में सबडर्मल कंट्रासेप्टिव इंप्लांट की सुविधा का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम का शुभारंभ एसकेएमसीएच के प्रिंसिपल डॉक्टर आभा रानी एवं प्रस्तुति विभाग के एचओडी डॉक्टर प्रतिमा के द्वारा किया गया। साथ ही पीएसआई इंडिया के मैनेजर का सहयोग रहा। मेटरनिटी वार्ड पर आए हुए सभी लाभार्थियों को इंप्लांट के बारे में काउंसलिंग करके उनका रजिस्ट्रेशन किया गया और उनका जांच करके इंप्लांट सर्विसेज की सुविधा दिया गया। कुल चार महिलाओं को इंप्लांट की सुविधा आज दिया गया।
डॉक्टर प्रतिमा के द्वारा बताया गया यह अभी तक की सबसे नई और सफल परिवार नियोजन की अस्थाई विधि है जो महिलाओं में प्रयोग किया जाता है। यह विधि दो बच्चों के बीच में अंतराल रखने एवं अनचाहे गर्भधारण से बचने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह इंप्लांट तीन साल के लिए कारगर होता है और लाभार्थी बीच में जब चाहे इसे निकलवाकर गर्भ धारण कर सकता है। डॉक्टर प्रतिमा ने इंप्लांट के बारे में सभी से प्रचार प्रसार करने अनुरोध किया। यह इंप्लांट अभी मुजफ्फरपुर जिला के सदर हॉस्पिटल एवं एस. के. एम. सी. एच. में उपलब्ध है।
नालंदा में होने वाले इस सांस्कृतिक पुनर्जागरण के महासंगम में 50,000 से अधिक लोगों आने की है उम्मीद
बिहार की सांस्कृतिक और भाषाई धरोहर को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से "धनु बिहार" न्यास द्वारा आयोजित "नालंदा साहित्य महोत्सव - 2025" का आयोजन 21 से 25 दिसंबर तक राजगीर कन्वेंशन सेंटर, नालंदा में किया जाएगा। इस भव्य आयोजन का थीम "बिहार: एक विरासत" है, जो भारत की भाषा, साहित्य और सांस्कृतिक विविधताओं को उत्सव का रूप देगा। आयोजन में पूर्वोत्तर राज्यों की सांस्कृतिक छवियों को विशेष रूप से उकेरा जाएगा।
इसकी जानकारी आज बीआईए, पटना में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह और महोत्सव निदेशक श्री गंगा कुमार ने दी। महोत्सव की संरक्षक मंडली में शामिल डॉ. सोनल मानसिंह ने इसे "सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महा पर्व" करार देते हुए कहा कि यह आयोजन भारत के भाषाई, साहित्यिक और कलात्मक वैभव का उत्सव होगा। उन्होंने कहा, “यह महोत्सव न केवल अतीत की सांस्कृतिक समृद्धि को उजागर करेगा, बल्कि भारतीय भाषाओं और कलाओं के लिए भविष्य का मार्ग भी तैयार करेगा।” आयोजन में सूफी गायक पद्मश्री कैलाश खेर का "अतुल्य भारत" पर लाइव कॉन्सर्ट और डॉ. मानसिंह का विशेष प्रदर्शन भी आकर्षण का केंद्र होगा।
महोत्सव निदेशक श्री गंगा कुमार ने बताया कि इस आयोजन में 5000 से अधिक प्रतिभागियों के हिस्सा लेने की संभावना है, जिनमें शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी/गैर-सरकारी संगठनों, साहित्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्र के प्रतिनिधि शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि इस महोत्सव में बिहार के राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राज्यसभा उपाध्यक्ष हरिवंश, सांसद शशि थरूर, गीतकार इरशाद कामिल, मनोज मुंतशिर, अदूर गोपालकृष्णन, चंद्रप्रकाश द्विवेदी समेत कई प्रतिष्ठित हस्तियों की उपस्थिति की उम्मीद है।
इस दौरान महोत्सव की अध्यक्ष सुश्री डी. आलिया ने जानकारी दी कि यह आयोजन शाइनिंग मुस्कान फाउंडेशन के सहयोग से हो रहा है और इसमें 30 से अधिक पैनल चर्चाएं, कला प्रदर्शनी, फोटो गैलरी, संस्कृतिक कार्यक्रम, और विशेष सत्र शामिल होंगे। बोली लेखकों, कला प्रेमियों, साहित्यकारों और विद्यार्थियों के लिए यह महोत्सव एक अद्वितीय मंच होगा। महोत्सव में 1 लाख से अधिक लोगों तक प्रचार अभियान चलाया जाएगा, जबकि 50,000 से अधिक आगंतुकों की उपस्थिति की संभावना जताई गई है।
प्रेस वार्ता के दौरान कार्यकारी समिति के सदस्य और प्रख्यात लेखक श्री विनोद अनुपम ने कहा कि "बिहार की साहित्यिक चेतना को जागृत करने के लिए आज की प्रेस वार्ता केवल एक शुरुआत है। हम अगले तीन संवाद दिल्ली, मुंबई और नालंदा में आयोजित करेंगे, ताकि इस आयोजन की आवाज़ पूरे देश तक पहुँचे।"
महोत्सव के क्यूरेटर श्री पंकज दुबे, पेरिस स्थित अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ श्री अमित पांडे, समन्वयक एफ. अज़्ज़म और आयोजन समिति के कई अन्य सदस्यों की मौजूदगी में यह घोषणा हुई। सभी ने मिलकर इस कार्यक्रम को बिहार की सांस्कृतिक चेतना का भव्य उत्सव बनाने का आह्वान किया। "नालंदा साहित्य महोत्सव - 2025" निश्चित रूप से भारत के सांस्कृतिक कैलेंडर में एक ऐतिहासिक अध्याय जोड़ने जा रहा है।
23 जुलाई 2025 को स्थानीय प्रशासन के सहयोग से निचली अदालत के दिए गए निर्णय को लागू कराने के लिए रेलवे प्रशासन ने किया था अनुरोध
47 साल पहले स्मृति शेष पूर्व मुख्यमंत्री राम सुन्दर दास और तत्कालीन रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया के सहयोग से पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर की स्थापना किया था। जिसमें तत्कालीन रेलवे मंत्री मधु दंडवते के द्वारा पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर शिलान्यास किया गया था। पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर के स्थापना को लेकर सबसे बड़ी भूमिका रही हैं तो वह हैं तत्कालीन रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया की। रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया जो कि ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षा को लेकर अलख जगाने के लिए बहुत गंभीर थे और इसी उद्देश्य से अपने शिक्षा प्रेम को साबित किया।
वहीं दूसरी ओर तत्कालीन रेलवे अधीक्षक राधेश्याम केडिया की सोच़ यह थी कि इसके साथ-साथ रेलवे में कार्यरत कर्मचारियों के बच्चों को भी उच्च शिक्षा के लिए भटकना नहीं पड़ेगा और अपने ही रेलवे के कैंपस में ही पढ़ाई-लिखाई पूरी हो जाएगी। लेकिन स्थापना के 47वें साल में महाविद्यालय में 23 जुलाई 2025 को रेलवे प्रशासन ने ही पूर्ण रूपेण ताला बंदी हो गया है। पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर अपने स्थापना काल से 46 साल का सफ़र बहुत सारे झंझावात को झेलते हुए सफलता पूर्वक संचालित होती रही हैं। वहीं 47वें वर्ष में आते - आते ही महाविद्यालय विधायक तथा कार्यपालिका के बिछाए मकड़जाल में फंस गया और अब दुबारा इस जगह पर पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय सोनपुर नहीं दिखाई देगा।
एक प्रोफेसर साहब से मिली जानकारी के अनुसार कि पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय, सोनपुर के साथ जो खेला हुआ उसके लिए परिणामस्वरूप यह कह सकते हैं कि - "प्रसाद के लिए मंदिर को तोड़ने का फैसला कर लिया गया और महाविद्यालय में पूर्ण तालाबंदी सफल हो गया।"
आगे प्रोफेसर साहब बताते हैं कि महाविद्यालय को बहुत सारा नुकसान हुआ है उसके और भी कारण हैं। आपको बता दें कि महामहिम सह कुलाधिपति महोदय के आदेश, माननीय उच्च न्यायालय पटना के निर्णय तथा विश्वविद्यालय के दिशानिर्देशों के अनुसार संबद्ध महाविद्यालय में वरीय शिक्षक ही प्रभारी प्राचार्य होते हैं। इसी नीति के तहत डॉ. प्रकाश चंद गुप्ता जी को पूर्वोत्तर रेलवे महाविद्यालय का अंतिम प्राचार्य बना दिया गया। जिसके पीछे व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण कनीयतम शिक्षक को प्रभारी प्राचार्य बना दिया गया।
वहीं आपको जानकारी दें कि तत्कालीन तदर्थ समिति के कुल सात सदस्य थे लेकिन मात्र तीन सदस्य की सहमति से ही इसे लागू कर दिया गया। विश्वविद्यालय ने ऐसे निर्णय से असहमति जताई तथा उक्त समिति के स्थान पर पांच सदस्यों वाली एक तदर्थ समिति का गठन कर दिया। महत्वपूर्ण यह हो गया कि जब प्रसाद की इच्छा एक बार जागृत हो जाने के बाद उसे भूलना काफी कठिन है। ऐसे में नई समिति ने भी इस महाविद्यालय को बचाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और अंततः महाविद्यालय को पूर्ण रूप से सील कर दिया गया है। जबकि निचले अदालत के विरुद्ध महाविद्यालय उच्च न्यायालय, पटना में अपनी अर्जी लगा रखा है।
समितियों और प्रशासनिक तांडव में छात्रों का जीवन के साथ खिलवाड़ कर दिया गया है। वहीं यक्ष प्रश्न यह हैं कि छात्रों की शिक्षा और छात्रों के हुए नामांकितों के साथ अब क्या होगा?
कायस्थ कोई जाति नही , यह तो भारतीय सभ्यता और संस्कृति का वह नाम है जो समाज और राष्ट्र के सर्वांगीण विकासमें अपना अहम योगदान देता है
आज अखिल भारतीय कायस्थ महा-सभा के बिहार प्रदेश कार्यकारिणी समिति के सदस्यों की बैठक प्रदेश अध्यक्ष श्री राजीव रंजन सिन्हा की अध्यक्षता में ठाकुर प्रसाद कम्युनिटी हाॅल में शामिल 5 बजे प्रारम्भ हुआ। जिसका संचालन प्रदेश के वरिष्ठ उपाध्यक्ष रवीन्द्र कुमार रतन ने किया। सभा में मुख्य रुप से 17 अगस्त के कार्य समिति की तैयारी एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष के सम्मान समारोह की रुप रेखाऔर उपस्थिति पर विचार हुआ। प्रदेश अध्यक्ष राजीव रंजन ने अपने उद्बोधन में कहा कि"हमे पद और पैसा नहीं " अखिल भारतीय कायस्थ महासभाके स्मृतिशेष राष्ट्रीय अध्यक्षों द्वारा कायस्थों की एकता और अखंडता को कायम करने की क्षमता चाहिए। आगे उन्होने दिनांक 17 अगस्त के कार्य क्रम का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करते हुए कार्यों और विभागों का बटवारा किया ।
वरिष्ठ उपाध्यक्ष रबीन्द्र कुमार रतन ने अपने वक्तव्य में कहा कि "कायस्थ कोई जाति नही , यह तो भारतीय सभ्यता और संस्कृति का वह नाम है जो समाज और राष्ट्र के सर्वांगीण विकास में अपना अहम योगदान देता है। उन्होने आगे कहा कि 17 अगस्त के कार्यक्रम की सफलता में वे अपने अध्यक्ष राजीव रंजन जी के कदम से कदम मिलाकर कर के तन मन धन के साथ तैयार रहेंगे। उन्होने यह भी बताया कि अस्वस्थता के कारण महामंत्री बहन माया श्रीवास्तव जी आज उपस्थित नहीं हो सकी हैं। सभा में वरिष्ठ सदस्य श्री दिनेश प्रसाद सिन्हा, कृष्ण बिहारी श्री0 रुद्र देव प्रसाद, असीम कुमार सिंहा, शालिनी सिन्हा , दीप शिखा,मुकेश सिंहा, किसान कालोनी, सुनील कुमार श्रीवास्तव, अमर नाथ श्री0 सुनील कुमार वर्मा, दीपक कुमार सिन्हा (पूर्व मुखिया,बाकरपुर), जीतेन्द्र कुमार वर्मा, हाजीपुर, अक्षत प्रदेश, विनय कुमार श्रीवास्तव, अमृत सिन्हा, अभिषेक श्रीवास्तव, प्रिय रंजन सिन्हा, आदि ने भी अपने-अपने विचार रखे और समारोह की सफलता में अपना योगदान देने का वचन दिया।
सर्व सम्मति से तय हुआ कि अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष परम आदरणीय श्री अनुप श्रीवास्तव जी के मिलन सह सम्मान समारोह की सफलता के लिए कार्यो का बटवारा कर निम्न समितियों में बांटा जाए :- 1 संयोजन समिति के संयोजक राजीव रंजन, सहायक रवीन्द्र कुमार रतन सहित पांच अन्य
2 मीडिया समिति
3 कोष व लेखा समिति
4 तैयारी समिति
5 युवा समन्वय समिति
6 स्वागत समिति
7 मंच व्यवस्था समिति
8 भोजन एवं जल व्यवस्था समिति
9 यातायात समिति
10 प्रचार-प्रसार समिति
11 व्यवस्था समिति
12 पूजा सम्पर्क समिति आदि।
इस तरह से सबका साथ, सबका सहयोग के तहत सबको सामुहिक जिम्मेवारीका एहसास कराकर समारोह को सफल बनाने को अपना-अपना योगदान देनाहै। अंत में श्री दिनेश प्रसाद सिंहा जीने धन्यावाद ज्ञापन के साथ सभा की कार्रवाई समाप्त की घोषणा की गई।