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September 17, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 23

प्रधानमंत्री मोदी और मणिपुर का दौरा बनाम मोदी के लिए सितम्बर का इम्तहानी महीना

Modi in Manipur: PM pays first visit since ethnic violence in state;  inaugurates developmental projects worth Rs 7,300 crore | India News - The  Times of India

सत्ता और सत्ताधारी वाकई बड़ा बेरहम और बेदिल होता है। भले ही वह लाशों के मंजर को देखने या फिर मातपुरसी के लिए जाय मगर उसका ध्यान अपने सम्मान के लिए होने वाले नृत्य संगीत पर होता है। ऐसा ही नजारा गत दिनों मणिपुर में हुए नर संहार और महिलाओं के साथ हुई दरिंदगी पर औपचारिक मातम पुरसी के लिए घटना के 865 दिन बाद जब देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी गये तब देखने को मिला जहां उनका स्वागत आदिवासियों के जरिए नृत्य संगीत से होता रहा और वे आत्ममुग्ध होकर देखते रहे। न तो उन्होंने मणिपुर जाने के पहले न ही मणिपुर पहुंचने पर इस तरह से स्वागत सत्कार नहीं कराये जाने के निर्देश दिए हों। भरी बरसात खुद तो बेशकीमती गाड़ियों के उस काफिले के साथ कार में विराजमान रहे जिनकी कीमत शायद मणिपुर के सारे समाज को हड़प सकती है और आम आदमी के हाथों में राष्ट्रवाद के प्रतीक तिरंगे वाली झंड़ियां पकड़ा कर जबरिया रास्ते के किनारे बरसते पानी में खड़ा कर दिया गया। यह मणिपुर के भीतर का पहला शर्मनाक पहलू है प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान का। दूसरा शर्मनाक पहलू है जब प्रधानमंत्री कुछ चुनिंदा पीडितों के साथ बंद कमरे में बातचीत कर रहे थे जिसे न्यूज़ ऐजेंसी एएनआई के जरिए दूरदर्शन ने दिखलाया जिसमें एक बच्ची रोते हुए अपना दर्द बयां कर रही है। वहां मौजूद महिलायें आंसू बहाते हुए कुछ कह रही है उनकी आवाज को बंद कर दिया गया है। मतलब साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी नहीं चाहते होंगे कि किसी भी पीडित की आवाज देशवासियों को सुनाई दे सिवाय उनके भाषण के और उनकी शान को बढ़ाने वाले नारों के तथा कसीदे पढ़ रहे बयानों के अलावा। तीसरा शर्मनाक पहलू है प्रधानमंत्री ने दो साल दो महीने से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद मणिपुर जाकर लोगों के घावों पर मरहम लगाने के बजाय 7300 करोड़ रुपये की सरकारी रईसी वाली योजनाओं का जिक्र करते रहे यानी नरसंहार और महिला अस्मिता की कीमत रुपयों में आंकते रहे। इसी कड़ी में चौथी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थिति थी जब दिल्ली दरबार की पसंद के तौर पर मुख्यमंत्री की कुर्सी से घटना के लगभग 21 महीने तक चिपके रहने वाले एन वीरन सिंह ने अपने राज्य के पीडितों की पीड़ा का इजहार करने के बजाय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शान में कसीदे पढ़ रहे थे। वाकई प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सटीक वाक्य कहा था "आपदा में अवसर"

मणिपुर में जातीय हिंसा के धार्मिक हमलों में बदलने की कहानी - BBC News हिंदी

करीब दो बरस पहले मोबाइल पर एक वीडियो वायरल हुआ था जिसने पूरे देश को एकबार फिर झकझोर कर रख दिया था। वीडियो को देखने के बाद पता चला कि किस तरह मानवीय संवेदनाएं खत्म हो जाती हैं या यूं कहें कि मानवीय त्रासदियां कैसे हिंसक और अमानवीय हो जाती है। अगले दिन वह तस्वीर अखबारों की सुर्खियां बनकर छपी, न्यूज चैनलों के स्क्रीन पर भी वह वीडियो रेंगता हुआ दिखाई दिया और पहली बार इस वीडियो ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा। 19 जुलाई 2023 को वायरल हुए इस वीडियो में साफ दिखाई दे रहा था कि दो महिलाओं को निर्वस्त्र करके उनके प्राइवेट पार्ट पर आपत्तिजनक हरकतें करते हुए सार्वजानिक तौर पर जुलूस की शक्ल में सडकों पर घुमाया जा रहा है। इस वीडियो को प्रधानमंत्री ने भी देखा और अपनी वही प्रचलित प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि उनका हृदय पीड़ा से भरा हुआ है और दोषियों को बख्शा नहीं जायेगा। 19 जुलाई को जब यह वीडियो सामने आई तब मणिपुर पुलिस ने जांच की तो पता चला कि इस वीडियो में कैद घटना तो ढाई महीने पहले यानी 4 मई 2023 को थोबला जिले में घटी थी। अगर इस घटना का वीडियो वायरल नहीं होता तो देश जान ही नहीं पाता कि मणिपुर में ऐसी वीभत्स और शर्मनाक घटना को अंजाम दिया गया है। इस बात पर तो विश्वास ही नहीं किया जा सकता कि सरकार और पुलिस को इस घटना की जानकारी नहीं थी। मतलब बहुत साफ है कि सरकार और पुलिस को इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस घिनौनी घटना का वीडियो भी बनाया गया है और उसे वायरल भी किया जा सकता है।

ब्रिटिश संसद में उठा मणिपुर का मुद्दा, विदेश मंत्री कैमरन ने हिंसा में  'धर्म की भूमिका' की ओर किया इशारा - BBC News हिंदी

इस वीडियो ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया। जिसकी गूंज ब्रिटेन की संसद के भीतर बकायदा सवाल के तौर पर गूंजी, यह अलग बात है कि ब्रिटेन के विदेश मंत्री का जबाव भारत सरकार के अनुकूल था। कुछ सवाल तो पश्चिमी देशों में भी ईसाईयत को लेकर भी उभरे। अमेरिका में भी मणिपुरी घटना की चर्चा रही। मणिपुर में घटी घृणित, निंदनीय, अमानवीय, मानवता को शर्मसार करने वाली घटना के बाद भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की प्राथमिकता मणिपुर ना होकर कर्नाटक में होने वाले विधानसभा चुनाव रहे। जैसा कि उनका मानना रहता है कि चुनावी जीत उनके हर दुष्कर्मों, कुकर्मों को वाशिंग मशीन की तरह धो देती है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव की जीत भी मणिपुर की कालिख को धो डालेगी लेकिन बीजेपी वहां चुनाव हार गई। इसके बावजूद देश और विदेश से भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मणिपुर नहीं जाने को लेकर तीखी टिप्पणियां आती रहीं और प्रधानमंत्री मोदी उन्हें कपड़े में लगी धूल की तरह झटकारते रहे। मणिपुर की बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री एन वीरेन सिंह ने भी तकरीबन 21 महीने बाद 10 फरवरी 2025 को राज्यपाल अजय कुमार भल्ला को इस्तीफा सौंपा।

Manipur High Court revokes 2023 order on including Meiteis in Scheduled  Tribe list | India News – India TV

23 मार्च 2023 को मणिपुर हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में मैतेई समाज को आदिवासी यानी सेड्यूल ट्राइव का दर्जा देने की वकालत करते हुए राज्य सरकार को इस पर ध्यान देने को कहा। जिससे मैतेई और कुकी समुदाय के बीच पहली बार 3 मई को संघर्ष की परिस्थितियां बनी और 4 मई को थोबल जिले में 2 महिलाओं को निर्वस्त्र कर प्रताड़ित करते हुए सड़कों पर जुलूस निकाला गया जिसका वीडियो 19 जुलाई को वायरल किया गया और वह तस्वीर दुनिया भर के पटल पर था गई लेकिन देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री तो मदहोश होकर कर्नाटक में चुनाव प्रचार करने में व्यस्त और मस्त थे। हां घटना के बाद लीडर आफ अपोजीशन ने जरूर मणिपुर के लोगों का दर्द साझा करने के लिए दौरा किया। मणिपुर में आज भी मैतेई और कुकी समुदाय के लगभग 57 हजार लोग अलग - अलग विस्थापितों के लिए बनाये गये शिविर में रहकर अपने ही हाथों अपने ही घावों पर मरहम लगाने की स्थिति में नहीं हैं। इस बीच सरकार ने बहुत कुछ छुपाया, बहुत कुछ नहीं बताया। 2 साल 2 महीने से ज्यादा समय गुजर जाने के बाद प्रधानमंत्री मणिपुर आकर मणिपुरवासियों को सपना दिखा रहे हैं, उन सपनों के आसरे ताना-बाना बुनकर यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि दिल्ली आपके कितने करीब है। प्रधानमंत्री ने आदिवासी वेषभूषा सज्जित रासरंग से अभिभूत होकर कई जगहों पर भाषण देते हुए आश्वासन और भरोसा दिलाने की कोशिश की कि केंद्र सरकार यानी दिल्ली की सरकार आपके साथ खड़ी है लेकिन जब उन्होंने उन दर्द भोगने वाले विस्थापितों में से चुनिंदा लोगों के बीच बंद कमरे में बैठकर बातें की जो पिछले ढाई बरस से हर दिन ऐसा जीवन जी रहे हैं जैसा उन्होंने न तो पहले कभी जिया है न ही इसकी कल्पना की थी उनके बीच एक रोती हुई बच्ची ने पीड़ा का इज़हार किया, दूसरे लोगों ने भी अश्रुपूरित होकर अपनी बातें रखीं जिन्हें दूरदर्शन ने देश को सुनने, जानने नहीं दिया जबकि उन्हें सुनना, जानना देशवासियों का हक भी है और अधिकार भी है।

मणिपुर हिंसा: जो पहले एक-दूसरे के दुश्मन थे, आज एक होकर मैतेई से लड़ रहे  हैं... क्यों? - Manipur Violence Those who were earlier enemies of each  other today unitedly fighting Meitei

देशवासियों को तो यह सुनाया गया जो प्रधानमंत्री कह रहे थे कि मणिपुर में किसी भी तरह की हिंसा दुर्भाग्यपूर्ण है। ये हिंसा हमारे पूर्वजों और हमारी भावी पीढ़ी के साथ भी बहुत बड़ा अन्याय है। अब 21वीं सदी ईस्ट की है नार्थ ईस्ट का है। इसीलिए मणिपुर के विकास को भारत सरकार ने निरंतर प्राथमिकता दी है और मणिपुर के नाम में ही मणि है (वैसे ही जैसे गुजरात के नाम में गु है) ये वो मणि है जो आने वाले समय में पूरे नार्थ ईस्ट की चमक को बढाने वाली है। देखा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी के पास तो एक सा रटा रटाया भाषण होता है जिसे वे जैसा देश वैसा भेष धारण कर सुना आते हैं फिर वह चाहे बिहार हो या बंगाल, असम हो या उत्तर प्रदेश और अब वही लोकलुभावनी फेहरिस्त लेकर मणिपुर में लगे घोषणा करने जैसे वे आरबीआई से नोट छपवाकर पोटली में बांधकर लाये हों, कर दी 7300 करोड़ की योजनाओं की घोषणा। जिस तरीके से प्रधानमंत्री घोषणा कर रहे थे उससे तो ऐसा लग रहा था कि वे मणिपुर के घावों पर मरहम लगाने के साथ ही उन घावों को कुरेद कर और छलनी किये जा रहे हैं। क्योंकि मणिपुरवासियों को तात्कालिक तौर पर शांति चाहिए, अपना घर चाहिए, अपना समाज चाहिए, माहौल चाहिए, सुरक्षा चाहिए, कानून का राज चाहिए, संविधान से मिले हुए हक चाहिए। ठीक है 7300 करोड़ से ड्रेनेज सिस्टम ठीक हो जायेगा, स्कूल, छात्रावास, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, एयरपोर्ट बन जायेंगे लेकिन सवाल है कि भावनाओं का जुडाव इस दौर में गायब क्यों हो गया है? आज जब प्रधानमंत्री मणिपुर आये और भावनाओं के जुडाव की दिशा में कदम बढ़ सकते थे और उन्हें बढ़ाने का दायित्व दिल्ली की इच्छा पर सरकार के मुखिया रहे एन वीरन सिंह को उठाना चाहिए था वह उन्होंने गवां दिया प्रधानमंत्री की चापलूसी करते हुए। प्रधानमंत्री जी बड़ी हिम्मत वाले हैं जो बरसते पानी में सड़क के रास्ते यहां तक आ गये। यहां तक का मतलब है चूराचांदपुर का इलाका जहां 260 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है। 280 रिलीफ कैम्प चल रहे हैं। 57 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित जीवन जी रहे हैं।

पूर्वोत्तर भारत में आरएसएस की घुसपैठ | The Caravan

1960 से नार्थ ईस्ट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने से जुड़े संगठन विश्व हिन्दू परिषद, बनवासी आश्रम, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, राष्ट्र सेविका समिति, विद्या भारती, के जरिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल विकास, पर्यावरण आदि के लिए काम कर रहा है। आज की स्थिति में 4 हज़ार से ज्यादा प्रकल्प काम कर रहे हैं। मोदी ने भी दिल्ली सत्ता सम्हालते समय ईस्ट फर्स्ट का नारा दिया था और इस ईस्ट फर्स्ट के नारे के पीछे थी आरएसएस की मौजूदगी। अगस्त 1999 में नेशनल लिब्रेशन आफ त्रिपुरा (एनएलएफटी) ने अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री और लाल कृष्ण आडवाणी के गृह मंत्री रहते संघ के क्षेत्र कार्यवाह श्यामल कांति सेनगुप्ता, विभाग प्रचारक सुधामयदत्त और देवेन्द्र डे तथा जिला प्रचारक शुभांकर चक्रवर्ती का अपहरण किया था और 28 जुलाई 2001 को खबर आई थी कि चारों अपहरित स्वयंसेवकों की हत्या कर दी गई है। तो संघ के भीतर इस बात को लेकर आक्रोश था कि दिल्ली में हमारी सत्ता होते हुए भी ऐसी घटना घटित कैसे हो गई ? गृहमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी ने नागपुर स्थित संघ हेडक्वार्टर में जाकर बकायदा श्रध्दांजलि अर्पित की थी। उस वक्त भी संघ नार्थ ईस्ट को लेकर गुस्से में था इस वक्त भी संघ नार्थ ईस्ट को लेकर गुस्से में है। संघ ने भी प्रधानमंत्री मोदी के मणिपुर नहीं जाने पर सवाल उठाये हैं। शायद संघ की नाराजगी को दूर करने के लिए ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अचानक से बतौर संघ प्रचारक अखबारों में लेख लिख कर संघ प्रमुख मोहन भागवत का जन्मदिन मनाते हैं और लालकिले की प्राचीर से संघ को सबसे बड़ा सेवक भी बताते हैं।

UK Parliament Update; British MP Fiona On Manipur Violence and BBC  Reporting | ब्रिटेन की संसद में उठा मणिपुर का मुद्दा: सांसद ने कहा- हिंसा  में चर्च भी जलाए जा रहे, 100

देश के भीतर एक अजीब सी परिस्थिति पैदा हो गई है जहां देश की राजनीति खुद को जिंदा रखने के लिए नाटक करती है। जो कि अपने आप में किसी त्रासदी से कम नहीं है। क्या सितम्बर का महीना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इम्तिहान का महीना है ? जिसमें दिल्ली के भीतर राजनीतिक तौर पर, संघ के भीतर वैचारिक तौर पर और राष्ट्रीय स्तर पर कूटनीतिक तौर पर उठ रहे सवालों को हल करने के लिए वहां जाना पड़ रहा है जिसको उन्होंने अनदेखा किया है। वह चीन, रूस, अमरिका, इजराइल, ईरान, मिडिल ईस्ट, फिलिस्तीन कोई भी हो सकता है। यह एक ऐसा कालखंड है जिसमें बहुत कुछ छुपा हुआ है इसीलिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का मणिपुर जाना एकाएक नहीं हुआ है। ऐसा नहीं है कि पीएम ने सोचा हो कि चलो चलकर मणिपुर में तफरी कर आते हैं। ये परिस्थितियां तो उनके द्वारा बनाये गये उस कटघरे से उपज रही है कि अभी तक जो भी हुआ है उसकी भरपाई आपको ही करनी होगी और मणिपुर उसी दिशा में उठाया गया एक कदम है।


अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

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September 12, 2025
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बिहार में बहुजन समाज पार्टी की ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ 10 सितम्बर से : अनिल कुमार

आज जातीय जनगणना के बाद भी बड़े राजनीतिक दल इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि वे उतनी ही सीटें और उतनी ही राजनीतिक भागीदारी दें, जितनी जनसंख्या किसी समाज की है


पटना : बहुजन समाज पार्टी (बसपा), 10 सितम्बर से पार्टी के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद और सांसद रामजी गौतम के नेतृत्व में ‘सर्वजन हिताय जागरूकता यात्रा’ निकालेगी। ये जानकारी आज पार्टी के पटना स्थित प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मलेन के दौरान केंद्रीय प्रदेश प्रभारी अनिल कुमार एवं अन्य पदाधिकारियों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी। उन्होंने बताया कि आगामी 10 सितम्बर से यह यात्रा कैमूर ज़िले से प्रारंभ होगी और कैमूर, बक्सर, रोहतास, अरवल, जहानाबाद, छपरा, सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी, मुजफ्फरपुर होते हुए वैशाली में समाप्त होगी।

अनिल कुमार ने स्पष्ट किया कि यह यात्रा महज़ शक्ति प्रदर्शन नहीं है, बल्कि जनता की वास्तविक समस्याओं को उठाने और अधिकार दिलाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि बिहार की मौजूदा सरकार जनता को गुमराह करने और ठगने का काम कर रही है, जबकि बसपा स्पष्ट रूप से यह वादा करती है कि “जिसकी जितनी जनसंख्या, उसकी उतनी हिस्सेदारी” सुनिश्चित की जाएगी।

अनिल कुमार ने कहा कि आज जातीय जनगणना के बाद भी बड़े राजनीतिक दल इस बात के लिए तैयार नहीं हैं कि वे उतनी ही सीटें और उतनी ही राजनीतिक भागीदारी दें, जितनी जनसंख्या किसी समाज की है। जबकि बसपा यह वचन देती है कि विधानसभा की 243 सीटों पर सामाजिक न्याय की यही नीति अपनाई जाएगी।

अनिल कुमार ने भाजपा और महागठबंधन दोनों पर निशाना साधते हुए कहा कि बीते 40 सालों में इन दलों ने सिर्फ बिहार की जनता को ठगा है। न पलायन रुका, न बेरोजगारी की समस्या हल हुई। नीतीश कुमार द्वारा तीन डिसमिल ज़मीन देने की घोषणा आज भी अधूरी है। वहीं, बसपा ने आश्वस्त किया कि सत्ता में आने पर उत्तर प्रदेश की तर्ज पर सरकारी ज़मीन दलित, पिछड़े और वंचित समाज के लोगों को उपलब्ध कराई जाएगी।

अनिल कुमार ने यह भी कहा कि बिहार में शिक्षा और रोजगार की स्थिति बदहाल है। गरीब, दलित और पिछड़े वर्ग को न्याय दिलाना और उन्हें आगे बढ़ाना पार्टी की प्राथमिकता होगी। इसी उद्देश्य से यह जागरूकता यात्रा पूरे प्रदेश में निकाली जा रही है। इस दौरान बसपा नेताओं में मंजू चौहान, संतोष पाल सहित कई सामाजिक प्रतिनिधियों ने भी कार्यक्रम में अपनी भागीदारी दर्ज कराई और कहा कि यह यात्रा जनता के हक और अधिकार की आवाज बनेगी।

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September 12, 2025
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हाजीपुर पीएचसी में हुआ औषधीय वृक्षारोपन

ये सेंदुआरी में शिविर लगाकर की गयी स्वास्थ्य जांच

वैशाली : लायंस क्लब आफ पाटलीपुत्रा सेनेटेनियल पटना द्वारा हाजीपुर पीएचसी में औषधीय वृक्षारोपन किया गया। वृक्षारोपन पीएचसी के एमओआईसी डॉ संजय दास एवं डीएफवाई के डॉ शिव कुमार रावत के द्वारा किया गया। 


वहीं इसी उपलक्ष्य में सेंदुआरी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर शिविर लगातार टीबी, मधुमेह एवं ब्लड प्रेशर की जांच कर दवा का वितरण किया गया। मौके पर डॉक्टर फॉर यू के निरज कुमार भी थे उन्होंने टीबी जांच के लिए बलगम संग्रह भी किया।
 

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September 12, 2025
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मोबाइल एकेडमी में बेहतर कार्य को लेकर डीसीएम हुईं पुरस्कृत

आशा कार्यकर्ताओं ने 95 प्रतिशत ऑनलाइन कार्य पूरा किया

वैशाली : राज्य स्तरीय एआरसी की मीटिंग में वैशाली जिले को मोबाइल एकेडमी में बेहतर उपलब्धि के लिए एसपीओ डॉ सरिता कुमारी एवं प्रणय कुमार के द्वारा डीसीएम निभा रानी सिन्हा को सम्मानित किया गया। इस सम्बंध में डीसीएम ने बताया कि जिले में मातृ और शिशु मृत्युदर में कमी लाने के साथ-साथ संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रतिबद्ध है। इसके लिए समय समय पर आशा कार्यकर्ताओं को हाई टेक तरीके से दक्ष किया जा रहा है। जिसके तहत आशा कार्यकर्ताओं को मोबाइल एकेडमी कोर्स कराया जा रहा है। इस संबंध में डीपीएम डॉ कुमार मनोज ने बताया कि चिकित्सा सेवा को और सुदृढ़ करने की नीयत से विभाग के द्वारा आशा कार्यकर्ताओं के लिए मोबाइल एकेडमी योजना संचालित है। जिसमें आशा कार्यकर्ताओं को मोबाइल एप की मदद से गर्भवती महिलाओं और पांच साल तक के बच्चों की देखभाल संबंधी ट्रेनिंग दी जाती है। 

इसके माध्यम से आशा जिले की गर्भवती महिलाओं एवं बच्चों की विशेष तरह से देखभाल कर सकेंगी। इस ट्रेनिंग कोर्स में गर्भावस्था से लेकर जन्म के बाद दो साल तक की संपूर्ण जानकारी मौजूद है। इसके जरिए मां-बच्चे की जिंदगी बचाने में सहायता मिलेगी। साथ ही संस्थागत प्रसव को बढ़ावा भी मिलेगा। मोबाइल एकेडमी में वैशाली की सभी आशा के द्वारा कोर्स पूरा कर लिया गया है। मोबाइल एकेडमी आशा कार्यकर्ताओं के लिए एक ऑनलाइन कोर्स है जिसमें महिला चिकित्सक के द्वारा स्वास्थ्य संबंधी सभी जानकारी दी जाती है। उसी के बेहतर कार्य हेतु डीसीएम को सम्मानित किया गया है।
 

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September 12, 2025
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मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत अब तक 142 ह्रदय रोग से ग्रसित बच्चों को मिला जीवनदान

दो बच्चों को इलाज के लिए भेजा गया अहमदाबाद


वैशाली : जिले से मुख्यमंत्री बाल ह्रदय योजना अंतर्गत अब तक 142 बच्चों का उपचार किया जा चुका है। इसी कड़ी में गुरुवार को हृदय रोग से ग्रसित दो बच्चे प्रीति कुमारी प्रखंड महुआ और प्रियांश कुमार बिदुपुर प्रखंड को जिला स्वास्थ्य समिति से पटना भेजा गया। इनका इलाज श्री सत्य साईं हृदय अस्पताल अहमदाबाद में निशुल्क कराया जाएगा। 

दोनों बच्चों को आरबीएसके चलंत चिकित्सा दल के वाहन से राज्य स्वास्थ्य समिति और फिर पटना एयरपोर्ट के लिए भेजा गया। वहां से वह हवाई माध्यम से अहमदाबाद जाएगें। मौके पर डीआईसी प्रबंधक सह आरबीएसके डीसी डॉ शाइस्ता, डीसीएम डॉ निभा रानी सिन्हा, डीडीए सूचित कुमार, डीईओ श्रवण कुमार, मो शाहनवाज समेत अन्य लोग मौजूद थे।
 

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September 12, 2025
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जनसंख्या स्थिरीकरण पर जागरूक समाज के लिए स्वास्थ्य मेले का आयोजन

चार स्टॉलों और दो कैनोपी में परिवार नियोजन के विविध उपायों पर मिली जानकारी


- 90 महिला बंध्याकरण का मिला है लक्ष्य

वैशाली : मिशन परिवार विकास की राह आसान करने तथा जनसंख्या स्थिरीकरण पर जिलेवासियों को जागरूक करने के लिए सोमवार को सदर अस्पताल परिसर में स्वास्थ्य मेले का आयोजन किया गया। इस स्वास्थ्य मेले की खासियत रही कि इसके चार स्टॉलों और दो कैनोपी में नव विवाहितों के परिवार नियोजन से लेकर जनसंख्या स्थिरीकरण तक की सामग्री और उसकी जानकारी उपलब्ध थी। मेले का उद्घाटन सिविल सर्जन डॉ श्यामनंदन प्रसाद ने किया। इसके बाद सिविल सर्जन ने डीपीएम और डीसीएम से परिवार नियोजन पर चल रही गतिविधियों और वर्तमान स्थिति की जानकारी सहित स्टॉलों का मुआयना किया। सीएस ने कहा कि जनसंख्या स्थिरीकरण पर हमारा समाज जागरूक हो इसके लिए समय समय पर परिवार नियोजन के लिए अभियान और स्वास्थ्य मेले का आयोजन किया जाता रहा है। हमें अभी भी समाज में पुरूषों को परिवार नियोजन के लिए आगे लाना होगा, बिना उनकी भागीदारी के यह अभियान सफल नहीं हो सकता। 

डीसीएम निभा रानी सिन्हा ने बताया कि मिशन परिवार विकास अभियान दिनांक 01 से 20 सितंबर तक आयोजित किया जा रहा है, जिसके तहत स्वास्थ्य मेले का आयोजन सोमवार को किया गया। चार स्टॉल में परिवार नियोजन के स्थायी और अस्थायी साधन के बारे में पूर्ण जानकारी और उपलब्धता रही। जिले में 90 महिला बंध्याकरण तथा 15 पुरूष नसबंदी का लक्ष्य भी मिला है। 
मौके पर सिविल सर्जन श्याम नंदन प्रसाद, जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ उदय नारायण सिन्हा, एनसीडीओ, जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ कुमार मनोज, डीसीएम निभा रानी सिन्हा, जिला अनुश्रवण एवं मूल्यांकन पदाधिकारी रितुराज सुचित सहित अन्य लोग उपस्थित थे।

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September 12, 2025
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खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 22

क्या सांसद अपढ़, अयोग्य, मूर्ख हैं ?

9 सितम्बर को उप राष्ट्रपति का चुनाव सम्पन्न हो गया, नतीजा भी आ गया, एनडीए समर्थित आरएसएस वाले सी पी राधाकृष्णन अपने प्रतिद्वंद्वी इंडिया एलायंस समर्थित जस्टिस वी सुदर्शन रेड्डी से चुनाव जीत गये। जहां राधाकृष्णन को 452 वोट मिले वहीं जस्टिस सुदर्शन को 300 वोट मिले। यानी राधाकृष्णन ने 152 वोटों से जीत हासिल की है। मामला खत्म हो गया।

लेकिन दूसरे दिन से ही मीडिया में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई कि उप राष्ट्रपति चुनाव में क्रास वोटिंग हुई वोट रिजेक्ट हुए और यह बात सही भी है लेकिन क्रास वोटिंग किसने की है किनके वोट केंसिल हुए हैं उन पार्टियों के और उन सांसदों के नामों पर ना केवल कयास लगाए जाने लगे बल्कि बकायदा पार्टियों और सांसदों के नामों तक का खुलासा किया जाने लगा है । जबकि जो मतदान हुआ है वह गुप्त मतदान है। क्रास वोटिंग किसने - किसने की है इसका खुलासा क्रास वोट करने वाले के अलावा कोई भी नहीं कर सकता है और जिनने क्रास वोटिंग की है वे बताने से रहे।

समाचार पत्र - भारतकोश, ज्ञान का हिन्दी महासागर

कुछ अखबारों में प्रकाशित खबरों पर गौर किया जाना चाहिए जो क्रास वोटिंग पर रिपोर्टिंग कर रहे हैं। The Indian Express - - Where did the numbers go ? Day after Vice President poll, Opposition parties have a math problem. दि हिन्दुस्तान - - उध्व गुट में सेंध लगाने वाला कौन ? इंडिया गठबंधन के सांसदों से कैसे करवा दी क्रास वोटिंग। दि हिन्दुस्तान - - उध्व ठाकरे के 5 और शरद पवार की पार्टी के कुछ सांसदों ने किया क्रास वोट, किसने किया ? एनडीए उम्मीदवार को पड़े 452 विपक्षी उम्मीदवार जस्टिस वी सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। क्रास वोटिंग के संकेत मिले। दि हिन्दुस्तान - - भाजपा ने 20 करोड़ में खरीदा एक सांसद, टीएमसी ने बताया कौन कर सकता है क्रास वोटिंग। दि हिन्दुस्तान - - किसके ईशारे पर क्रास वोटिंग का खेल ?

समाचार पत्र तो यह सब कुछ भी लिख रहे हैं। संजय निरूपम ने दावा किया है कि उध्व गुट के पांच सांसदों ने क्रास वोटिंग की है ! ऐसे में चर्चा इस बात की भी हो रही है कि इस खेल का मुख्य खिलाड़ी कौन था ? इंडियन एक्सप्रेस के डेल्ही कांफिडेंसियल के मुताबिक भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व ने महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के सांसद बेटे श्रीकांत शिंदे को केन्द्रीय नेतृत्व ने एनडीए के उप राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सी पी राधाकृष्णन के लिए समर्थन जुटाने के लिए चुना था। रिपोर्ट में अंदरूनी सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि श्रीकांत शिंदे ने ना केवल एनडीए के सांसदों को एकजुट रखा बल्कि महाराष्ट्र से राधाकृष्णन के लिए कुछ अतिरिक्त वोट जुगाड़ करने में भी कामयाबी हासिल की। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 38 वर्षीय श्रीकांत शिंदे ने ऐसा इसलिए सफलता पूर्वक किया क्योंकि सभी दलों में उनके दोस्त हैं। एकनाथ शिंदे ने भी बाद में सोशल मीडिया मंच एक्स पर इसका ईशारा करते हुए लिखा "इंडिया गठबंधन और महा विकास आघाड़ी (एमवीए) में हमारे उन दोस्तों का विशेष धन्यावाद जिन्होंने अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनी और एनडीए का समर्थन किया। कभी-कभी अंतरात्मा की आवाज पार्टी व्हिप पर भारी पड़ जाती है।

Vote Chori' Sarkar

कहा तो यहां तक जाता है कि 15 वोटों का नहीं घपला तो 26 वोटों का है। 15 वोटों की हेराफेरी में 10 वोट बीजेपी के हैं और 5 वोट कांग्रेस के हैं। जितने मुंह उतने दावे हो रहे हैं । लेकिन पुख्ता सबूत किसी के पास नहीं है केवल हवा हवाई अटकलबाज़ी हो रही है । मगर इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी ने मध्यप्रदेश में कैसे हार्स ट्रेडिंग कर कमलनाथ की सरकार के दोपाये माननीयों को अपने पाले में लाकर अपनी सरकार बनाई थी । कैसे बाला साहब ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी के दोपायों को अलग कर पार्टियों का दो फाड़ कराया गया था। उस समय भी कहा गया था कि हरएक  विधायक को 50  खोखे यानी 50 करोड़ रुपये देकर खरीदा गया था। अब अगर सांसद को 20 खोखे दिये गये हैं तो फिर यह सांसदों का शर्मनाक अवमूल्यन है। वह इसलिए भी कि एक संसदीय क्षेत्र में कम से कम 4 विधानसभा क्षेत्र ही मान लिए जांय यानी 4 दोपाये। तब भी हरएक सांसद को कम से कम 200 खोखे तो मिलने ही चाहिए। बाकी तो उन दोपायों की मर्जी है कि वे कितने में बिकने को तैयार हैं।

vp election cross voting new vice president cp radhakrishnan क्रॉस वोटिंग  के शक की सुई किस पर? उपराष्ट्रपति चुनाव में किन सांसदों ने बदला पाला, India  News in Hindi - Hindustan

फिलहाल बात की जाय इस सबूत विहीन लगाये गये आरोपों पर की गई कुछ नेताओं की प्रतिक्रियात्मक टिप्पणियों पर। कांग्रेस के सांसदों पर भी क्रास वोटिंग करने - रिजेक्ट हुए वोटों को लेकर आरोप लगाये जा रहे हैं। जिस पर प्रतिक्रियात्मक टिप्पणी करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कहे जाने वाले मनीष तिवारी ने न केवल पार्टी के सांसदों की निष्ठा और विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा किया बल्कि पार्टी नेतृत्व यानी कहा जाय तो सीधे तौर पर राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा दिया है। मनीष तिवारी से जब एक पत्रकार ने क्रास वोटिंग को लेकर सवाल किया तो वे क्रास वोटिंग क्यों की जाती है उसके प्रकार बताने लगे। मनीष ने कहा कि व्यक्तिगत लालच के वशीभूत होकर क्रास वोटिंग किया जाता है, पार्टी से विश्वासघात करने की मंशा से क्रास वोटिंग की जाती है। पार्टी की लीडरशिप कमजोर होने पर भी क्रास वोटिंग की जाती है। अब अगर कांग्रेस सांसदों पर लगाया जा रहा क्रास वोटिंग का आरोप सही है या वह बीजेपी के सांसद हों या फिर वह किसी भी पार्टी के सांसद हों जिनने भी क्रास वोटिंग की है भले ही वह अंतरात्मा की आवाज पर ही क्यों न करी हो वे लालची हैं, विश्वासघाती हैं और उनकी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व कमजोर है। ऐसे सांसदों को एकबार फिर अपनी अंतरात्मा को टटोल कर अपनी सांसदी और पार्टी से इस्तीफा दे देना चाहिए या फिर अपनी पार्टी के हाईकमान को हलफनामा देते हुए बताना चाहिए कि उसने न तो क्रास वोटिंग की है न ही रिजेक्ट किये जाने लायक वोट डाला है।

जहां तक डाले गये वोटों को रिजेक्ट किये जाने का सवाल है उसमें भी बीजेपी पहले से ही आरोपित होती रही है। हरियाणा और उत्तराखंड इसके सबसे बड़े जीते-जागते उदाहरण हैं। जहां वोट गिनने वाले ही शाजिशकर्ता के रूप में सामने आये थे । सरकार के लिए भी चुल्लू भर पानी में डूब मरने वाली बात है कि वोटों की हेराफेरी पकड़ी गई थी और इस पर देश की सबसे बड़ी अदालत को दखलंदाजी करनी पड़ी थी । अगर उप राष्ट्रपति के चुनाव में भी जो वोट रिजेक्ट किये गये हैं और उन पर संदेहात्मक ऊंगली उठाई जा रही है तो इसको नजरअंदाज करने के बजाय विश्वसनीयता कायम रखने के लिए हकीकत देश के सामने लाया जाना चाहिए।

एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए तैयार कैसे हो गए? -  BBC News हिंदी

महाराष्ट्र के ढाई वर्षीय मुख्यमंत्री रह चुके एकनाथ शिंदे ने जिस तरह की टिप्पणी की है वह भी इस बात की ओर ईशारा करती है कि महाराष्ट्र की विपक्षी पार्टियों मसलन शिवसेना (उध्व ठाकरे गुट), एनसीपी (शरद पवार गुट) के सांसदों ने क्रास वोटिंग की है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे ने जिस तरह से 20-20 करोड़ में सांसदों के बिकने और बीजेपी द्वारा खरीदे जाने का आरोप लगाया है तो क्या उनकी अपनी पार्टी टीएमसी के सांसद भी बीजेपी ने खरीदे हैं इसका खुलासा भी करना चाहिए पार्टी सुप्रीमो सीएम ममता बनर्जी को। भले ही हार्स ट्रेडिंग का खेल बीजेपी 2014 के बाद से बकायदा दोपायों की मंडी सजा कर करती आ रही हो !

रिजेक्ट हुए वोट भी  सांसदों की योग्यता पर सवालिया निशान लगाते हैं। क्या सांसद अपढ़, अयोग्य, मूर्ख हैं जो सही तरीके से अपना वोट भी नहीं डाल पाते वह भी तब जब उन्हें उनका हाईकमान तोते की तरह पढ़ाता-सिखाता है। जनता तो यही मानकर चलती है कि उसके द्वारा चुने गए माननीय पढ़े लिखे न सही समझदार तो हैं। मगर जब संसद के भीतर इस तरह से वोट रिजेक्ट होते हैं तो जनता की भावनाओं पर कुठाराघात होता है और वह ऐसे जाहिलों को चुनकर पछताती है।

जिस तरह से उप राष्ट्रपति चुनाव के बाद से क्रास वोटिंग को लेकर खबरें चलाई जा रही है उसमें इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह सब सत्ता के ईशारे पर किया जा रहा हो इंडिया एलायंस और विपक्षी एकजुटता को विखंडित करने के लिए। इसका कारण भी है कि सत्ताधारी के कैंडीडेट जगदीप धनखड़ को उप राष्ट्रपति चुनने में तब जितने प्रतिशत वोट मिले थे अब जब सी पी राधाकृष्णन को चुना गया है उसमें भारी प्रतिशत की गिरावट आई है। जो इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त है कि इंडिया एलायंस में एकजुटता है और सत्ताधारी उस एकजुटता से भयभीत है और उस एकजुटता को विखंडित करने के लिए इस तरह की खबरें (इंडिया गठबंधन में गद्दार कौन ?) चलवा रही हो तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 09, 2025
Ahaan News

सी.पी. राधाकृष्णन बने देश के 15वें उपराष्ट्रपति

जीवन यात्रा ने गढ़ी विशेष पहचान

भारत ने आज अपने नए उपराष्ट्रपति का स्वागत किया है। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (NDA) के उम्मीदवार सी.पी. राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज कर देश के 15वें उपराष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त किया। उन्हें 452 वोट मिले, जबकि विपक्षी इंडिया ब्लॉक के प्रत्याशी और पूर्व न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट प्राप्त हुए। यानी राधाकृष्णन ने 152 मतों के अंतर से यह चुनाव जीता। परिणाम की घोषणा राज्यसभा के महासचिव प्रमोद चंद्र मोदी ने की।

किसान परिवार से राष्ट्रीय राजनीति तक
20 अक्टूबर 1957 को तमिलनाडु के तिरुपुर में जन्मे चंद्रपुरम पोनुसामी राधाकृष्णन का जीवन सफर एक किसान परिवार से शुरू होकर राष्ट्रीय राजनीति के शीर्ष पद तक पहुंचा। उन्होंने वी. ओ. चिदंबरम कॉलेज, तुलूकोड़ी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (BBA) की पढ़ाई की। शुरुआती दिनों में उनका जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से हुआ और वे 1974 में जनसंघ की राज्य कार्यकारिणी समिति में शामिल हुए।

राजनीति और संसदीय अनुभव
भाजपा में संगठनात्मक जिम्मेदारियों के साथ उन्होंने अपने राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाया। 1996 में वे तमिलनाडु भाजपा के सचिव और 2004 से 2007 तक राज्य अध्यक्ष रहे। 1998 और 1999 में वे कोयंबटूर लोकसभा सीट से लगातार दो बार सांसद चुने गए और हर बार डीएमके के उम्मीदवार को बड़े अंतर से हराया। संसद में रहते हुए वे वित्त, वस्त्र और सार्वजनिक उपक्रम जैसी समितियों के सदस्य और अध्यक्ष भी रहे। 2003 में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में किया।

तमिलनाडु में जन्म, RSS से जुड़ाव, 40 साल का सियासी सफर... जानें- कौन हैं  NDA के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन - Who is CP Radhakrishnan  Maharashtra ...

प्रशासनिक और संवैधानिक भूमिकाएँ
राजनीति से आगे बढ़कर राधाकृष्णन ने प्रशासनिक जिम्मेदारियाँ भी संभालीं। 2016 से 2020 तक वे कोइर बोर्ड के अध्यक्ष रहे और इस दौरान कोइर उत्पादों के निर्यात को रिकॉर्ड 2,532 करोड़ रुपए तक पहुंचाया। 2020-22 में उन्हें भाजपा का केरल प्रभारी बनाया गया। फरवरी 2023 में वे झारखंड के राज्यपाल नियुक्त हुए और बाद में तेलंगाना के राज्यपाल व पुडुचेरी के उपराज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार संभाला। जुलाई 2024 में उन्होंने महाराष्ट्र के राज्यपाल पद की शपथ ली।

उपराष्ट्रपति पद की ओर
पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के स्वास्थ्य कारणों से इस्तीफे के बाद अगस्त 2025 में भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा ने राधाकृष्णन को एनडीए का उम्मीदवार घोषित किया। विपक्ष की ओर से न्यायमूर्ति बी. सुदर्शन रेड्डी मैदान में उतरे। 9 सितंबर को हुए मतदान में राधाकृष्णन को स्पष्ट बहुमत मिला और उन्होंने जीत दर्ज की।

आगे की जिम्मेदारी और राजनीतिक संकेत
अब राधाकृष्णन न केवल देश के उपराष्ट्रपति होंगे बल्कि राज्यसभा के सभापति के रूप में सदन का संचालन भी करेंगे। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह परिणाम संसद में एनडीए की संख्यात्मक मजबूती और विपक्ष की सीमित एकजुटता का संकेत देता है। साथ ही, राधाकृष्णन का संगठनात्मक अनुभव और संयमित व्यक्तित्व उन्हें इस नई भूमिका में मजबूती प्रदान करेगा।
 

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September 09, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 21

पेंच भी फंसा है - इज्ज़त भी दांव पर लगी है !

बीजेपी का लक्ष्य केवल सत्ता हासिल करना नहीं, देश को बड़ा बनाना है: पीएम  मोदी - BJP s goal is not just to gain power it is to make the country bigger

"ऐसा कोई सगा नहीं जिसको हमने ठगा नहीं" लगता है कि यह वाक्य बीजेपी का मूल मंत्र सा बन गया है और अब यही वाक्य भाजपा के गले की फांस बनता हुआ दिखाई दे रहा है। वैसे तो उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को चींटी समझकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने मसला था मगर वो चींटी मरी नहीं बल्कि हाथी की सूंढ में घूसने के माफिक गुजरात लाॅबी की नाक में दम कर रही है वह भी तब जब धनखड़ से ही खाली हुई उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठने के लिए आज चुनाव होने जा रहा है। जिस तरह से देशी राजनीति के भीतर हलचल हो रही है वो इस बात को बताने के लिए काफी है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह या कहें पूरी गुजरात लाॅबी अपनी कुर्सी और अपनी राजनीति को बचाने के लिए जद्दोजहद करती हुई दिखाई दे रही है। एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें जिस समाजवादी नेता राजीव राय के घर पर 2022 के चुनाव के पहले इनकम टैक्स का छापा डलवाया गया है उसी राजीव राय को अमित शाह जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं। जबकि बीमारी के चलते पद त्याग करने वाले धनखड़ की तबीयत का हालचाल जानने की फुर्सत न तो गृहमंत्री अमित शाह के पास है न प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के पास है। ऐसा ही एक वीडियो और वायरल हो रहा है जिसमें अमित शाह बाढ़ पीड़ितों से मिलने गए हैं लेकिन वहां पर एक भी आम नागरिक नहीं है तो अमित शाह कह रहे हैं कि अरे यार इस तरफ जाकर 4-5 लोगों को तो पकड़ लाओ। कैसी हालत हो गई है नरेन्द्र मोदी के सेनापति की या कहें भाजपा के चाणक्य की कि अब उन्हें खुद आगे आकर लोगों से व्यक्तिगत संबंध बनाने पड़ रहे हैं। वर्ना मोदी-शाह की जोड़ी तो बीते 11 सालों से रिंग मास्टर की तरह पार्टी और पंचायत से लेकर संसद तक के माननीयों को चाबुक से हांक रहे हैं।

Anish Kumar على X: ""ये दौलत भी ले लो.. ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे  मेरी जवानी… मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन …. बचपन की जवानी…. वो

जिस तरह से जिंदगी में पीछे लौटने का साधन नहीं होता भले ही गीतकार ये गाता रहे कि "ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी, मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी" ठीक इसी तरीके से राजनीति में भी कोई रिवर्स गेयर नहीं होता है। यदि होता तो वर्तमान परिस्थिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह और गुजरात लाॅबी जगदीप धनखड़ का चरणामृत पान करते हुए उन्हें फिर से उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा देती। जिस अहंकार से ग्रसित होकर पीएम और एचएम ने देश को जिस तरह का मैसेज देने के लिए जगदीप धनखड़ को चंद मिनटों के भीतर उपराष्ट्रपति की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर किया था वही मैसेज अब इनके गले की फांस बन गया है। राजनीतिक गलियारों में तो इस तरह की भी चर्चाओं का बाजार गर्म है कि उपराष्ट्रपति का चुनाव परिणाम कहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फेयरवेल पार्टी में तो तब्दील नहीं हो जायेगा। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि अपने 11 वर्षीय शासनकाल में बीजेपी को अंगुली पर नचाने वाले नरेन्द्र मोदी को इतने बुरे दिन देखने पड़ेंगे जैसे उपराष्ट्रपति का चुनाव दिखा रहा है। पहले तो एनडीए के सहयोगियों को लेकर माथे पर चिंता की लकीरें थीं कि कहीं चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान, महाराष्ट्र की दल तोडू पार्टियां बिदग ना जायें लेकिन ये तो नरेन्द्र मोदी सहित किसी ने भी सपने में भी कल्पना नहीं की होगी कि भारतीय जनता पार्टी के भीतर से भी बगावती स्वर सुनाई दे सकते हैं। बीजेपी के सांसद अपनी अंतरात्मा की आवाज पर उपराष्ट्रपति चुनने के लिए वोट कर सकते हैं। इसमें उन सांसदों की संख्या सारी बाजी पलटने के लिए पर्याप्त है जो कहीं न कहीं पीएम मोदी और एचएम शाह से गाहेबगाहे अपमानित होते रहे हैं या कहें जिनके साथ मोदी - शाह ने हाथ में छड़ी लेकर हेड मास्टर की तरह बर्ताव किया है।

अडानी और अंबानी एक दूसरे के कर्मचारियों को नहीं देंगे नौकरी, दोनों के बीच  हुआ 'नो पोचिंग एग्रीमेंट', जानिए क्या है? - Adani and Ambani will not give  jobs to each ...

बीजेपी के अंदर से जो कहानी निकल कर आ रही है वह यही कहती है कि दोनों मास्टर तो अंबानी अडानी की यारी से अपने आर्थिक हित साधते रहते हैं लेकिन बाकी को हरिश्चन्द्र की औलाद बनने को मजबूर करते हैं। कांग्रेस के इस व्यक्तव ने देश के भीतर कुछ इस तरह का मैसेज दिया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मोदी के माध्यम से भारत की हैसियत चपरासी से भी बदतर कर रखी है। "अमेरिका वालों अपने कान और आंख खोल कर सुन देख लो ये अलग बात है कि हमारे प्रधानमंत्री ट्रंप के सामने कमजोर पड़ते हैं लेकिन भारत बहुत ताकतवर राष्ट्र है। दो महीने में तो आप ही माफी मांगेंगे। भारत न किसी के दबाव में झुका है न झुकेगा। भारत अपनी अर्थव्यवस्था को स्वयं देख सकता है। अपनी सैन्य शक्ति के दम पर विजय प्राप्त कर सकता है। ये तो बीजेपी के नरेन्द्र मोदी की सरकार है जो आप ऐसा कह रहे हैं। काश आज कांग्रेस की सरकार होती तो आपको मुंह की खानी पड़ती। जिस तरह से आपका सातवां बेड़ा वापस कर जबाब दिया गया था वैसा ही करारा जबाब आज भी दिया जाता"। भारत ने पहले भी पाबंदियां झेली हैं। सवाल यह है कि क्या देश अपने आत्मसम्मान को छोड़ कर अमेरिका के सामने सरेंडर कर देगा ? क्या हमारा स्वाभिमान खत्म हो जायेगा ? लगता है कि नरेन्द्र मोदी का कोई पर्सनल मामला डोनाल्ड ट्रंप के पास फंसा हुआ है। सोशल मीडिया पर भी कहा जा रहा है कि डोनाल्ड ट्रंप के पास नरेन्द्र मोदी की कोई खुफिया जानकारी है। अब यह कहां तक सही और गलत है ये तो मोदी और ट्रंप ही बता सकते हैं। वैसे कुर्सी बचाये रखने के लिए नरेन्द्र मोदी बहुत बड़ा दिल रखते हैं उसका सबसे बड़ा उदाहरण आप से भाजपा हो चुके कपिल मिश्रा है। कपिल मिश्रा ने आप पार्टी का विधायक रहते हुए दिल्ली विधानसभा में आन रिकार्ड प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का किस तरीके से चरित्र चित्रण किया था उसे भूल कर बीजेपी ज्वाइन करा लिया गया। और अब वही कुर्सी उपराष्ट्रपति चुनाव में आकर फंस गई है।

आंध्र प्रदेश में मुख्यमंत्री पिता की सरकार में बेटा बना मंत्री, जानिए देश  में कब-कब पिता की सरकार में बेटा मंत्री बना है | Moneycontrol Hindi

कुछ दिनों पहले ही आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की थी। इस बात की बहुत चर्चा है कि नारा लोकेश ने साफ तौर पर मांग की है कि केन्द्र में चंद्रबाबू नायडू को गृह या रक्षा मंत्रालय तथा खुद के लिए आंध्र प्रदेश की राजगद्दी के साथ ही प्रदेश को भारी भरकम पैकेज दिया जाय। इसे एक प्रकार की राजनीतिक ब्लैकमेलिंग ही कहा जा सकता है। कहा जाता है कि आज की तारीख में चंद्रबाबू नायडू से बड़ा कोई दूसरा राजनीतिक ब्लैकमेलर नहीं है। जब भी मोदी की कुर्सी डांवाडोल होती दिखती है वह दिल्ली आकर अपना हिस्सा बसूल कर ले जाते हैं। तो क्या अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को ब्लैकमेल कर रहे हैं। जिस तरह से पीएम मोदी पर चौतरफा प्रहार किया जा रहा है उसमें एक कड़ी अमेरिका की भी भारत के सबसे बड़े कार्पोरेट घराने में से एक मुकेश अंबानी के जरिए जुड़ती हुई दिख रही है। जबसे मुकेश अंबानी के छोटे बेटे अनंत अंबानी के ड्रीम प्रोजेक्ट वनतारा की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी गठित की है जिसने वनतारा पर ताला लटकने तक का अंदेशा पैदा कर दिया है तबसे नरेन्द्र और मुकेश के बीच दरार पैदा होने की खबरें हैं और 12 तारीख को अमेरिका में मुकेश अंबानी की राष्ट्रपति ट्रंप के साथ मुलाकात होना तय बताया जा रहा है। यह भी बताया जाता है कि उपराष्ट्रपति चुनाव के पूर्व मुकेश अंबानी की कंपनी ने बीजेपी के 140 सांसदों से सम्पर्क भी किया है। दर्शन शास्त्र कहता है कि धुआँ वहीं उठता है जहाँ आग होती है। तो क्या ये माना जाय कि आग चंद्रबाबू, नितीश की तरफ से नहीं बल्कि अमेरिका की तरफ से लगाई गई है और मोदी के दाहिने हाथ कहे जाने वाले मुकेश अंबानी इसका बड़ा आधार बन गये हैं।

Why Nitish and Naidu unlikely to abandon NDA; Does Congress and I.N.D.I.  have anything to offer?

उपराष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर एनडीए के सबसे बड़े सहयोगी चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान आदि पर नजर रखने के लिए इंटेलिजेंस लगाने तथा फोन टेपिंग किये जाने तक की चर्चाएं हैं। कहते हैं कि इसी समय एक ऐसी रिपोर्ट निकल कर आई जिसने पूरी गुजरात लाॅबी को झकझोर कर रख दिया है। कहा जाता है कि रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि सहयोगी दलों के सांसद तो एक रह सकते हैं लेकिन बीजेपी के बहुत सारे सांसद टाटा टाटा-बाय बाय करने वाले हैं। रिपोर्ट में इस बात का जिक्र होना भी बताया जाता है कि इसकी पटकथा संघ प्रमुख मोहन भागवत के कहने पर लिखी गई है। उस अपमान का बदला लेने के लिए जो 2024 के लोकसभा चुनाव के पूर्व बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने यह कह कर किया था कि अब बीजेपी बहुत मजबूत हो गई है, वह अपने फैसले खुद कर सकती है अब हमें संघ के साथ की जरूरत नहीं है। तो क्या इस नाजुक घड़ी में जब उपराष्ट्रपति के चुनाव का पेंच फंसा हुआ है तब संघ बीजेपी को अपनी हैसियत का अह्सास कराना चाह रहा है। अपनी पृष्ठभूमि बताना चाहता है कि अगर हम पर कोई नकारात्मक कमेंट करता है तो हम उसको कैसे निपटाते हैं। इस रिपोर्टात्मक खबर की शुरुआत राजस्थान की सबसे बड़ी कद्दावर नेता तथा पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सरसंघचालक मोहन भागवत के बीच हुई गुफ्तगू से होने की खबर है। इसी बीच बीजेपी के संस्थापक सदस्य वयोवृद्ध मुरली मनोहर जोशी की भी संघ प्रमुख के साथ गुफ्तगू हुई है। स्वाभाविक है इस खबर से मोदी-शाह की नींद उडनी ही थी। आनन-फानन तय किया गया कि राजस्थान के सभी सांसदों को दिल्ली बुलाया जाय। बताते हैं कि इसकी जिम्मेदारी एक प्रभावशाली अफसर को यह कहते हुए दी गई कि एक चार्टर्ड प्लेन को हायर कर सभी सांसदों को दिल्ली लाया जाय।

NDA की एकजुटता पर क्या बोले नीतीश, चंंद्रबाबू नायडू और चिराग पासवान - PM  Modi as NDA Parliamentary party Leader all Alliance leaders Endorsed Modi  Name ntc - AajTak

नरेन्द्र मोदी को भी यह बात समझ में आ गई कि मामले को सुलझाना वजीर के बस में नहीं रह गया है इसलिए लगाम अब वजीरेआजम को ही संभालनी होगी। इसीलिए तय किया गया कि पहली डिनर पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के आवास पर होगी तथा दूसरा डिनर पीएम मोदी ने आवास पर आयोजित किया जायेगा जहां पर खुद पीएम मोदी सांसदों से रूबरू होकर चर्चा कर उनकी नाराजगी दूर करेंगे। लेकिन कहते हैं न कि "जब दुर्दिन आते हैं तो ऊंट पर बैठे व्यक्ति को भी कुत्ता काट लेता है" । यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसने बेड़ा गर्क करके रख दिया। खबर आई कि डिनर पार्टी में बीजेपी के दो दर्जन से ज्यादा सांसद नहीं आ रहे हैं। जिसने नरेन्द्र मोदी को साफ - साफ मैसेज दे दिया कि अब आपके रिटायर्मेंट प्लान को लागू करने का समय आ गया है। अमित शाह को भी यही संदेश था कि आप भी किताबें पढ़ने और पेड़ लगाने के लिए तैयार रहिये। इसलिए तत्काल नड्डा और मोदी आवास पर तय डिनर पार्टी को केंसिल कर दिया गया। जिसके लिए बहुत ही हास्यास्पद कारण बताया गया जिसे देश ने तत्काल खारिज भी कर दिया ! पंजाब और दूसरे सूबों में आई भीषण बाढ़ के कारण डिनर का आयोजन केंसिल किया गया है। हकीकत यह है कि यदि डिनर पार्टी होती और उसमें दो दर्जन से अधिक पार्टी सांसदों की भागीदारी नहीं होती तो एनडीए के भीतर यही संदेश जाता कि बीजेपी के भीतर बगावत हो चुकी है और एनडीए के प्रमुख सहयोगी चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, चिराग पासवान एवं अन्यों को पल्टी मारने में दस मिनट भी नहीं लगता और इंडिया एलायंस के उम्मीदवार का जीतना तय हो जाता। वैसे भी चंद्रबाबू नायडू पर बहुत दबाव है क्योंकि इंडिया एलायंस का उम्मीदवार आंध्रप्रदेश का है। जिसके साथ आंध्रप्रदेश की अस्मिता भी जुड़ी हुई है। अब आंध्र और आंध्र के लोगों का सवाल है। नायडू को लगने लगा है कि यदि वे खुलकर आंध्रप्रदेश की अस्मिता को बचाने मैदान में नहीं आते हैं तो फिर उनकी भविष्य की राजनीति मुश्किल भरी हो जायेगी। यानी उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर बीजेपी का संकट बड़ा तो है।

लोकसभा चुनाव 2024 परिणाम LIVE: चंद्रबाबू नायडू, नीतीश कुमार के बीच अहम  बैठक, कल एनडीए की बैठक: सूत्र

नरेन्द्र मोदी के दिमाग में ये बात बखूबी दर्ज होगी कि जब 2024 में लोकसभा के चुनाव परिणाम आये थे और पार्टी 240 पर सिमट कर रह गई थी तो उनके लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने का संकट आकर खड़ा हो गया था। तय था कि अगर बीजेपी संसदीय दल की बैठक में नेता चुना जाता तो नरेन्द्र मोदी आज प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान नहीं होते इसीलिए रणनीति के तहत एनडीए की बैठक बुलाकर अपने नाम पर मोहर लगवाई गई। बीजेपी संसदीय दल की बैठक तो आज तक नहीं बुलाई गई। जैसे ही ये खबर सामने आई कि राजस्थान सांसदों के साथ ही दो दर्जन से ज्यादा सांसद डिनर करने नहीं आ रहे हैं तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तत्काल राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मुलाकात करना उचित समझा। मोदी की राष्ट्रपति से मुलाकात को गोदी मीडिया ने भाटगिरी करते हुए चीन यात्रा से जोड़ कर सौजन्य भेंट बताया है। राजनीतिक विश्लेषक जानते हैं कि न तो नरेन्द्र मोदी इतने भोले हैं न ही उनमें राष्ट्रपति पद का इतना लिहाज है कि वे विदेश यात्रा से लौटकर राष्ट्रपति को ब्रीफिंग करने जायें, वह भी डिनर छोड़ कर। वैसे भी प्रधानमंत्री उसी दिन चीन से लौटकर तो आये नहीं। वे तो चीन से लौटकर बिहार हो आये। वहां जाकर रुदन कर आये। हां बाढ़ पीडित सूबों में जरूर नहीं गए ठीक उसी तरह जैसे वे मणिपुर, पहलगाम नहीं गये थे। जैसे उनके मुखारबिंद से मणिपुर का म नहीं निकला था वैसे ही बाढ़ का ब भी नहीं निकला है। हां कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान जरुर पंजाब गये मगर वे भी नागरिक उड्डयन मंत्री और रेल मंत्री की तरह रील बनाने में लग गए। लगता है जैसे मोदी सरकार रीलबाज सरकार बन गई है।

नीतीश, नायडू और चिराग...मोदी सरकार के बजट से NDA के सहयोगियों को क्या-क्या  मिला? | Budget 2025 NDA allies get Modi government Nitish Kumar chandrababu  naidu or chirag paswan

मोदी को जैसे ही ये बात समझ में आई कि जरा सी चूक भी राजनीति की आखिरी पारी साबित हो सकती है तो उन्हों अपने मित्र गौतम अडानी को इंडिया एलायंस के संकटमोचन कहे जाने वाले शरद पवार को साधने के लिए भेजा कारण गौतम अडानी का शरद पवार से भी याराना है। बंद कमरे क्या बातें हुईं पता नहीं मगर समझा जा सकता है कि बीजेपी को बहुत करीब से समझ चुके शरद पवार ने किस तरह से उनकी पार्टी को तोड़ा, किस तरह से उस बाला साहब ठाकरे की शिवसेना का दो फाड़ किया जिसने महाराष्ट्र में बीजेपी को पैर रखने के लिए जमीन दी। जबकि नागपूर में आरएसएस का हेडक्वार्टर होने के बाद भी वह महाराष्ट्र में खड़ी नहीं हो पा रही थी। बीजेपी ने कैसे पंजाब में अकाली दल के साथ गठबंधन करने के बाद अकाली दल को ही निगल लिया। तो सवाल यही है कि क्या शरद पवार मैनेज हो पायेंगे ? चंद्रबाबू नायडू भी समझ गये हैं कि अमित शाह द्वारा हाल ही में लाया गया बिल उन्हें ही आईना दिखाने के लिए लाया गया है क्योंकि उन्हें पता है कि उनके कई मामले बहुत ही संवेदनशील हैं। विपक्ष तो समझ ही गया है कि मोदी-शाह पूरा गेम विपक्ष की राजनीति खत्म करने के लिए ही खेल रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुलाकात आने वाले संभावित राजनीतिक खतरों, मसलन पीएम की कुर्सी से बेदखल करना, से बचने के लिए बी प्लान तैयार की संभावना तलाशने के लिए हुआ होगा। सवाल है कि बी प्लान क्या हो सकता है? क्या देश में एक बार फिर से सत्ता बरकरार रखने के लिए इमर्जेंसी लगाई जायेगी? इस पर भी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेन्द्र मोदी न तो इतने परिपक्व हैं न ही उनमें इतना साहस कि वे इमर्जेंसी लागू करा सकें।

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बीजेपी के भीतर ही अमित शाह को छोड़ कर कोई दूसरा नेता नहीं है जो नरेन्द्र मोदी के साथ खड़ा हो सके। अब तो बीजेपी के भीतर से ही ये आवाज आने लगी है कि नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक क्षमता खत्म हो गई है। नरेन्द्र मोदी की राजनीतिक पारी का दि एंड होने की कगार पर है इसलिए उन्हें 17 सितम्बर 2025 को स्वयं ही ससम्मान पीएम पद को छोड़ कर उन्हीं वरिष्ठ जनों की कतार में जाकर बैठ जाना चाहिए जहां उन्होंने 11 साल पहले 75 पार कर चुके पार्टी के वरिष्ठ जनों को बैठाया था। वहां पर रखी खाली कुर्सी आपका बेसब्री से इंतजार कर रही है। उपराष्ट्रपति के पद से इस्तीफा देने के बाद अदृश्य हो चुके जगदीप धनखड़ के 10 सितम्बर को प्रगट होने की खबर आ रही है। हो सकता है वे इस्तीफा दिये जाने की परिस्थितियों का खुलासा करें। इस बात की भी खबर मिल रही है कि 10 सितम्बर को ही राहुल गांधी द्वारा एक बार फिर वोट चोरी जैसे किसी कांड का खुलासा किया जायेगा जिसमें हरियाणा और उत्तर प्रदेश की बनारस (पीएम नरेन्द्र मोदी का संसदीय क्षेत्र) शामिल हो सकता है। देश के भीतर राजनीतिक दलों द्वारा अमेरिका को छोड़ कर उस चीन के साथ, जो पाकिस्तान से भी ज्यादा खतरनाक है, पीएम द्वारा दोस्ती का हाथ बढ़ाने को लेकर आलोचना की जा रही है।यानी "आंधियों से इतने बदहवास हुए लोग, जो तने खोखले थे उनसे ही लिपट कर रह गए" । उत्तर प्रदेश में संघ और बीजेपी की छात्र विंग विद्यार्थी परिषद के लोग सड़कों पर प्रदर्शन करते हुए योगी आदित्यनाथ के खिलाफ नारे लगा रहे हैं - "जब जब योगी डरता है पुलिस को आगे करता है" ।

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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September 09, 2025
Ahaan News

खरी-अखरी (सवाल उठाते हैं पालकी नहीं) - 20

प्रकृति से लड़ेंगे तो प्रकृति आपको खत्म कर देगी

Uttarakhand Landslide Hinders Chardham Yatra Uttarkashi Cloudburst Dharali  - Amar Ujala Hindi News Live - Uttarakhand:आपदा से थम गईं चारधाम यात्रा की  रफ्तार, धराली में आई आपदा के साथ जगह-जगह ...

पहली बार लोगों के मुंह से सुनने में आ रहा है अब उत्तरांचल खत्म हो गया है, सब कुछ तहस - नहस हो गया है। भृष्टाचार और पूंजी से बड़ा सवाल हो गया है मानसिकता का जिसमें पूरी प्रकृत्ति को अपनी मुट्ठी में कैद कर लेने की ख्वाहिश है। इसके लिए न तो सुरंगों को खोदने से परहेज है ना ही बड़े-बड़े होटल, घर बनाने से परहेज है। मगर अब जब प्रकृत्ति ने नजर टेढ़ी की है तो पहाड़, उस पर खड़े वृक्ष, भवन ऐसे बिखर रहे हैं जैसे माचिस की डिबिया से तीलियां बिखर जाती हैं। चाहे वह उत्तराखंड हो, पंजाब हो, हिमाचल प्रदेश हो, हरियाणा हो या फिर जम्मू-कश्मीर ही क्यों न हो। इन राज्यों में आधुनिक होने और सब कुछ पैसों से खड़ा कर लेने की सोच के बीच परिस्थिति ने ऐसे हालात लाकर खड़े कर दिए हैं कि हर कोई सिर्फ और सिर्फ त्रासदियों को देख रहा है। त्रासदी ने उत्तरांचल, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली तक को अपनी गिरफ्त में समेट लिया है। दिल्ली से सटा हुआ है गुरुग्राम जहां पर जिसे आधुनिकतम तरीके से डवलप किया गया है। इस बार तो यहां का बजट ही तीन हज़ार करोड़ रुपये का है। लेकिन वहां की तस्वीर भी डरा रही है क्योंकि वह भी पानी - पानी हो चुकी है। पंजाब के 12 जिले के हाल बेहाल हैं या फिर हरियाणा का हिसार, सिरसा, यमुना नगर, कुरुक्षेत्र, पंचकूला ही क्यों ना हो यहां पर भी तबाही का मंजर नजर आ रहा है। अभी तक इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं होने की बात होती थी लेकिन इस वक्त तो जिस इंफ्रास्ट्रक्चर को खड़ा किया गया है वही लोगों को अपने आगोश में ले रहा है। अजब विडंबना है कि सब कुछ भोगने के बाद भी किसी की कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं हो रही है न ही आंखों के आंसू से, न ही दिल की भड़ास से न ही जुबां से। जैसे हर कोई सामान्य परिस्थितियों में जी रहा हो या कहें इन सारी परिस्थितियों में जीने का आदी हो चुका है।

भारत के खिलाफ ट्रम्प टैरिफ: जब विदेश नीति सोशल मीडिया पर बड़बोलेपन तक सीमित  हो गई

ऐसे ही जैसे देश के भीतर अब जो नई स्थिति विदेश नीति, कूटनीति और टेरिफ वार के जरिए पैदा हो रही है वह भी इस मायने में हैरतअंगेज है कि अकेले उत्तर प्रदेश में 20 लाख से ज्यादा लोगों के पास काम नहीं बचेगा। टेक्सटाइल्स का क्षेत्र हो या लेदर का सभी के मन में सवाल है कि संघर्ष करें तो कैसे करें। सरकार के बनाये इंफ्रास्ट्रक्चर पर चल कर उसे क्या और कैसे मिलेगा। शायद देश में ऐसी परिस्थिति पहली बार पैदी हुई है। एक तरफ लोग इन विषम परिस्थितियों में अपने भविष्य के बारे मे सोचना शुरू करते हैं तभी देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राजनीतिक गालियों (जिसके वे स्वयं जन्मदाता हैं!) को अपने दिल पर लेकर, अपने साथ जोड़कर उस राजनीति को साधने निकल पड़ते हैं जहां पर सिर्फ और सिर्फ उनका दर्द है । जबकि देश के भीतर हर दिन सैकड़ों माओं की मौत के बाद उनके बच्चे अपने दर्द को दिल में समेटे अस्थि विसर्जन करते हैं। देश के भीतर तो राजनीति और दिये गये भाषण हर कोई हर दिन सुन रहा है। जनता को पता है कि गालियां अब पारंपरिक नहीं रहीं, उनकी शैली बदल गई है। पंजाब के किसानों ने जब आंदोलन किया था तब उसमें 600 से ज्यादा किसानों की मौत हुई थी जिसमें 70 महिलायें भी थीं और वे सभी किसी न किसी की मां ही थीं तब पीएम मोदी की जुबान से संवेदना का सं तक नहीं निकला था लेकिन आज नरेन्द्र मोदी सिर्फ और सिर्फ अपनी मां को याद कर रहे हैं और वह भी ऐसे समय में जब देश के आधा दर्जन सूबों में पानी ही पानी है। इन प्रांतों में जो बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया गया है उसकी तबाही का खुला मंजर है।

हिमालय - विकिपीडिया

सरकार उस हिमालय की जमीन को बांध कर अपने अनुकूल करना चाहती है जिसकी इजाजत प्रकृति देती नहीं है। लेकिन उसके बावजूद भी विकसित भारत के नाम पर सपने बेचे जा रहे हैं। आसमान से बरसता पानी और कंक्रीट की सड़कों को सीमेंट की सड़कों में बदलने का कैबिनेट मिनिस्टर का ऐलान जिस पर दौड़ाई जायेंगी सरपट गाडियां तथा पेट्रोल में कैसे मिलाया जायेगा एथेनाॅल लेकिन इकोनॉमी का सच क्या है कोई नहीं जानता है। कोई इसलिए नहीं जानता है क्योंकि किसी को पता ही नहीं है कि इस देश में कितने गरीब हैं, कितनों के पास गाडियां हैं, कितनों की जेब टोल वाली सडकों पर रेंगने की इजाजत देती है, कितने व्हाइट कालर वालों की नौकरी कैसे गायब हो गई। उन्हें पता ही नहीं चला कि लाखों नौकरियां सरकार की नजर अमेरिका से हटकर चीन की तरफ चले जाने के बाद चली गई। डाॅलर की जगह रूबल देखने में गुम हो गई। एससीओ की बैठक के आसरे खुद को अंतरराष्ट्रीय राष्ट्राध्यक्ष के तौर पर मान्यता देने के लिए खुद ही आगे आये लेकिन देश के भीतर की हकीकत क्या है इसका पता ही नहीं है। 2021 में होने वाली जनगणना 2025 तक (5 साल बाद) भी शुरू नहीं हो पाई अब शायद 2031 का इंतजार है। सरकार को ही पता नहीं है कि देश के भीतर का डाटा क्या है। सवाल जन्म - मृत्यु दर से आगे का है, सरकार ही नहीं जानती कि कितने लोगों की मौत हो जाती है प्राकृतिक आपदा से, नौकरियां चली जाने से। सरकार अपने जिस इंफ्रास्ट्रक्चर के रास्ते देश को बनाना चाहती है क्या वो रास्ता इतना घातक है कि हर किसी को अस्थि विसर्जन के लिए घाटों पर खड़ा कर रहा है। ऐसा हो सकता है। क्योंकि सरकार का मुखिया अपनी आंखें बंद कर सिर्फ और सिर्फ अपने दर्द को ही देश का दर्द बताना चाहता है। शायद उसने मान लिया है कि वह ही देश है। इसीलिए डूबता हुआ पंजाब, तैरता हुआ हरियाणा, मिटता हुआ हिमाचल, दम तोड़ता हुआ जम्मू-कश्मीर मदद कीजिए की गुहार लगा रहे हैं लेकिन खुद को देश का प्रधान सेवक कहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बात से चिंतित हैं कि उनकी मां को लेकर उन्हें गाली दी गई जिसका जिक्र पूरी नाटकीयता के साथ बिहार की एक सभा में किया गया। पीएम की भर्राई आवाज पर प्रदेशाध्यक्ष को भी तो कुछ करना जरूरी था सो उन्होंने अपनी आंखों से पानी बहाना शुरू कर दिया क्योंकि चंद महीने के भीतर ही बिहार में चुनाव होना है। वह भी उस बिहार में जिसकी आर्थिक स्थिति देश में सबसे नाजुक है, हर दूसरा आदमी गरीबी रेखा के नीचे है, गरीब है, बेरोजगार है, सबसे ज्यादा विस्थापन बिहार में ही होता है। बिहारी शब्द का राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल करने से सियासत भी चूकती नहीं है ।

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पहाडों से, नदियों से, पूंजी बनाने के लिए जमीनों से खिलवाड़ और उसके आसरे चकाचौंध और दुनिया की बड़ी इकोनॉमी बनने के सपने की राजनीति ने देश को कितना खोखला कर दिया है। देश अपने सबसे बुरे हालात में जी रहा है। हिमाचल में 60 बरस का रिकॉर्ड टूट रहा है। किस तरह से पहाड़ ने पूरे गाँव को लील लिया। कल तक जो गांव था वहां पर धड़कनें बची ही नहीं। जम्मू-कश्मीर के भीतर प्राकृतिक आपदा ने चौतरफा तहस नहस कर रखा है। हरियाणा के भीतर का पानी विभाजन के दौर की याद दिला रहा है। इस तरह की भयावह परिस्थितियों के बीच क्या किसी ऐसे नेता की जरूरत है जिसे दिल से यह महसूस हो रहा हो कि उसे राजनीतिक दलों के मंचों से मां की गाली दी गई जिसे वह राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर देश को ऐसे समझा रहे हैं जैसे देश में अपढ - कुपढ लोगों की जमात है। जिन पांच राज्यों में तबाही का मंजर खुलेआम नजर आ रहा है उनमें बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर ही 20 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किये गये हैं। इसके भरोसे जमीनों की कीमत को आसमान की ओर उछाल कर उसे उन दरवाजों की चौखट पर उतारा गया जहां पर रोटी - पानी तक के लाले पड़े हैं तो वह अपनी रोटी - पानी के जुगाड़ में जमीन बेच देगा। पैसा है तो आप सब कुछ खरीद बेच सकते हैं और रईसी में जी रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने बचपन की गरीबी के इमोशनल ब्लैकमेलिंग का कार्ड फेंट रहे हैं। भारत के भीतर न तो गरीबी की कोई लकीर है न ही खींची जा सकती है। गरीबी रेखा का मतलब आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक के आंकड़े नहीं हैं। गरीबी की हकीकत सुल्तान की नाक के नीचे देखी जा सकती है। गाजीपुर में लगे कूड़े के पहाड़ पर कूड़ा चुनते लोगों को देख कर, कूड़ा घर में सुबह - सुबह वहां पर फेके गए खाने को बटोर कर खाते हुए लोगों को देख कर समझा जा सकता है देश की गरीबी का आलम यानी गरीबी का कोई पैमाना नहीं है। देश तो सिर्फ और सिर्फ इतना जानता है कि 140 करोड़ की आबादी में 80 करोड़ की आबादी ऐसी है जो 5 किलो आनाज भी खरीदने की हालत में नहीं है इसलिए उसे 5 किलो अनाज मुफ्त दे दिया जाता है।

Bharat ki janganana-2011 | Census of India-2011 | भारत की जनगणना-2011

2011 में हुई जनगणना के अनुसार देश में 120 - 121 करोड़ लोग थे और उसके बाद शामिल हुए 19 - 20 करोड़ लोगों के बाद से एक तरफ देश की अर्थव्यवस्था तथा सामाजिक आर्थिक स्थिति ने जितना विपन्न बनाया दूसरी तरफ भारत की राजनीति उतनी ही रईस हुई । कोविड काल में जब देश के चारों खूंट लोग मर रहे थे तो उसी समय दिल्ली के भीतर हजारों करोड़ रुपये का सेंट्रल विस्टा सिर्फ और सिर्फ इसलिए बन रहा था क्योंकि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जिद थी कि अब संसद नई इमारत में ही सजेगी। उसी दौर में पीएम केयर फंड में जिसमें हजारों करोड़ों रुपये बिना किसी हिसाब - किताब के कारपोरेस्, इंटरनेशनल इंडस्ट्रिलिट्स, देशभर के सरकारी कर्मचारियों के वेतन से जबरिया कटौती कर जमा किया गया यानी एक नैक्सस सिस्टम के लिहाज से तैयार किया कि कोई कुछ कहे नहीं और एक ही शक्स वही देश है, सिर्फ और सिर्फ उसकी माँ ही देश की मां है। आजादी के सौ बरस होने पर विकसित भारत का सपना है, अगले पांच साल में तीसरे नम्बर की इकोनॉमी बनने की सोच है यानी सब कुछ पूंजी के आसरे है लेकिन वह जमीन नहीं है जहां पर देशवासी सांस लेते वक्त ये सोच कर सांस ले पायें कि वो सुरक्षित हैं, उनकी जमीन सुरक्षित है, कोई उन्हें लालच देकर घर से बेदखल नहीं करेगा। उनके इर्द गिर्द के पेड़, पहाड़, नदियां सब कुछ सुरक्षित रहेगी। लोगों की नौकरियां और देश की इकोनॉमी पालिसी पटरी पर चलेगी लेकिन इस दौर में ये सब कुछ गायब है क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी रुदन कर रहे हैं। 

अश्वनी बडगैया अधिवक्ता 
स्वतंत्र पत्रकार

Manish Kumar Singh By Manish Kumar Singh
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