संरक्षक और मार्ग दर्शक विपिन चन्द्र विपल्वी भी सभा में उपस्थित रहे
'बौद्धिक विचार मंच ' हाजीपुर, बैशाली के जिला ईकाई की बैठक पटेल सेवा संघ के परिसर में जिलाध्यक्ष रवीन्द्र कुमार रतन की अध्यक्षता में तथा संचालन जिला ईकाई कै सचिव चन्द्र भूषण सिंह शशि के द्वारा किया गया। इसके संरक्षक और मार्ग दर्शक विपिन चन्द्र विपल्वी भी सभा में उपस्थित रहे। विषय प्रवेश कर समारोह का श्रीगणेश करते हए विपिन चन्द्र विपल्वी ने बौद्धिक मंच के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आने बाले 11 सितंबर को हाजीपुर में बौद्धिक विचार मंच का रजत जयंती समारोह मनाया जाएगा।
जिसमें स्थानीय और राजधानी पटना के कई चिंतक, साहित्यकार और राजनेताओ के पधारने की संभावना है। अध्यक्ष रवीन्द्र कुमार रतन ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रतिभावान छात्र- छात्राओं का चयन कर उन्हे पुरस्कृत, और सम्मानित किया जाएगा। इसके लिए स्थानीय विद्यालयों के प्राध्यापक एवं प्राचार्यों से संपर्क कर तय विषय पर आलेख आमंत्रित कर सर्वश्रेष्ठ एवं प्रथम, द्वित्तीय एवं तृतीय को पुरस्कृत और सम्मानित किया जाएगा। मार्गदर्शन विपिन जी एवं अध्यक्ष की राय से समिति में डाॅ शिवालक राय प्रभाकर जी को उपाध्यक्ष एवं प्रो0 जनार्दन प्रसाद सिंह को सलाह कार नियुक्त किया गया। समिति में आज मुख्य रुप से उपस्थित प्रो0 जनार्दन प्रसाद सिंह, कवि शिवालय राय प्रभाकर, ओम प्रकाश साह, विपिन चन्द्र विपल्वी, रवीन्द्र कुमार रतन, चन्द्र भूषण सिंह शशि, अधिवक्ता रघुवीर प्रसाद सिंह, सुधीर कुमार सिंह, घूरन राय, शंभू प्रसाद सिंह, हृषीकेश कुमार सिंह एवं नीतेश कुमार सिंह आदि ने भी अपने-अपने विचारों एवं सुझावों से समिति को अवगत कराया ।
वरिष्ठ सदस्य अधिवक्ता रघुवीर सिंह ने आए सदस्यों का आभार एवं धन्यवाद प्रकट करते हुए सभा की कार्रवाई समाप्त होने की घोषणा की ।
11 सितंबर को मोहन भागवत होंगे 75 साल के तो वहीं अगले 6 दिन बाद 17 सितंबर को नरेंद्र दामोदर दास मोदी होंगे 75 साल के
राजनीति एक ऐसी जगह है जहां नियम और कानून सिर्फ और सिर्फ जनता के लिए होता हैं। जनता को हर काम समय पर करना होगा नहीं तो आर्थिक दंड तो पहले और फिर मानसिक प्रताड़ना भी रखा गया है। वहीं भारत सरकार का सही संचालन भी बहुत बड़ी बात है क्योंकि संविधान सरकार पर लागू होता नहीं है। भारतीय संविधान को गंभीरता से देखते हैं तो आज तक भारत सरकार के संचालन की जिम्मेवारी जिसे सौंपी गई है वह पद होता हैं प्रधानमंत्री का। वहीं भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के कार्यकाल पर नज़र डालें तो भारत की जनता के लिए वादों के अलावा कुछ नहीं किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने पिछले 11 वर्षों में इतनी योजनाओं का शिलान्यास किया कि उसे सही से लागू कर दिया जाता तो अमेरिका, चीन, रूस, जापान जैसे देशों की 10 वर्षों का संयुक्त बजट भी कुछ कम पड़ जाती। लेकिन भारतीय संविधान ने भारत की आम जनता को जिम्मेदार ठहराया है ना कि प्रधानमंत्री को, इसलिए प्रधानमंत्री कुछ भी बोले या कुछ भी करें उसे हटाया जा सकता है राजनीतिक दल की प्रतिष्ठा बचाने के लिए मगर सजा नहीं दी जाएगी।
इससे आगे बढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने RSS के प्रमुख एजेंडों को पिछले 11 वर्षों में लागू कराया जिसके लिए लोगों ने मतदान किया था। जिसके बाद धीरे-धीरे परिस्थितियों में बदलाव हुआ और प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को यह लगने लगा कि उनके ही नाम पर सबकुछ संभव हुआ है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने स्वयं को भगवान तक घोषित करने में देरी नहीं की और भाजपा और RSS के संगठनात्मक संरचना को भी स्वयं के भरोसे दिखाने का हर संभव प्रयास किया। जिसका परिणाम ही था कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (जे. पी. नड्डा) ने लोकसभा चुनाव के दौरान कहा कि - "वाजपेयी के समय में पार्टी को खुद को चलाने के लिए RSS की जरूरत थी क्योंकि उस समय भाजपा कम सक्षम और छोटी पार्टी हुआ करती थी।"
जगत प्रकाश नड्डा उर्फ जे. पी. नड्डा के वक्तव्य के साथ ही RSS और BJP में बड़ा खाईं बन गई। जिसका परिणाम रहा कि लोकसभा चुनाव 2024 में 400+ पार का नारा और RSS की जरूरत अब भाजपा को नहीं ने भाजपा को रोड पर खड़ा कर दिया। यह सब नरेंद्र दामोदर दास मोदी के इशारों पर उनकी कुछ जुमला टीम जैसे अमित शाह, जे. पी. नड्डा और सोशल मीडिया सब मिलकर RSS को ही बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। RSS के साथ हुए खेल को धरातल पर खड़े स्वयंसेवकों ने थोड़ा आंख दबा दिया और स्वयंसेवकों की चुप्पी ने आम मतदाताओं को जोड़ने की जगह छोड़ दिया। भारतीय जनता पार्टी की स्थापना और उसे मजबूती करने में RSS ने पूरी दुनिया झोंककर लगातार मजबूत करने का काम किया।
भारतीय जनता पार्टी को सींचने और मजबूती प्रदान करने के लिए जो ताकत नरेंद्र दामोदर दास मोदी को RSS ने दिया और उस ताक़त के आर में 75 साल से उपर के नेताओं का रिटायरमेंट तय करने की हिम्मत जुटा सकें थे 2014 में सत्ता में आने के साथ ही। वहीं 10 साल तो नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने बड़े मजे से काटे लेकिन अपनी ही लकीर में खुद ही फंस गए। नरेंद्र दामोदर दास मोदी को इतना घमंड हो गया था कि खुद को भगवान और सबसे ताकतवर मान लिया और सोशल मीडिया और मिडिया नेटवर्क का प्रयोग कर जन मानस के मन में मोदी और सिर्फ मोदी नाम बसा दिया। यहीं नरेंद्र दामोदर दास मोदी का घमंड आज उनके राजनीतिक भविष्य को अंधेरे में धकेल दिया और अब मोदी का भी अब रिटायरमेंट तय हो गया है क्योंकि अब वह पूर्ण बहुमत में नहीं आ पाए और वहीं भाजपा को मजबूत रख पाने में विफलता पाई है।
आपको जानना चाहिए कि भारतीय राजनीति में उम्र की सीमा नहीं रही हैं और भारतीय संविधान में कोई कानूनी व्यवस्था भी नहीं की गई हैं। लेकिन RSS ने जो ताक़त देकर नरेंद्र दामोदर दास मोदी मजबूत किया वहीं मोदी RSS के प्रमुख सर संघचालक मोहन भागवत के ही उपर हमलावर अपने गैंग के माध्यम से शुरू कर दिया। जिसमें यह बात उठाई गई कि नरेंद्र दामोदर दास मोदी तो 17 सितंबर को 75 साल के हो रहे है वहीं मोहन भागवत तो मोदी से 6 दिन पहले ही 11 सितंबर को 75 साल पुरा कर रहे हैं। लेकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने अपने उपर वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को मार्गदर्शन में रखा था और यह सोच़ कर की उनका दबाव नहीं रहें। उसी तरह मोहन भागवत को भी मार्गदर्शन मंडल में बैठाने में अपनी ताक़त और प्रोपगंडा टीम के माध्यम से ट्रोल करना शुरू कर दिया।
लेकिन अब यह तय है कि मोहन भागवत पर 75 साल का कोई बैरियर नहीं है लेकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने जो खेला किया था उनके साथ वैसा ही होना तय है। बस देखना है कि नरेंद्र दामोदर दास मोदी ताक़त के घमंड में स्वयं का सम्मान ना खत्म कर लें। इसलिए 17 सितंबर को नरेंद्र दामोदर दास मोदी की इज्जत के साथ विदाई समारोह हो जाए और साथ ही साथ RSS हमेशा मजबूत स्तंभ बनकर भाजपा को पोषित करती रहें यही समाज की ओर से आती आवाज़ हैं।
(नोट :- बिहार विधानसभा चुनाव तक संभवतः नरेंद्र दामोदर दास मोदी को रखा जा सकता हैं और उसके बाद ही नया प्रयोग शुरू हो)
संगोष्ठी के दौरान उपस्थित छात्रों, शोधार्थियों और आम जनों ने विभिन्न सत्रों में अत्यंत रुचि दिखाई और संवाद-सत्रों में उत्साहपूर्वक भाग लिया।
पुरातत्व निदेशालय, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार द्वारा बिहार संग्रहालय, पटना के ऑडिटोरियम सभागार में “भारत के शैलचित्र एवं पुरातत्व” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में देशभर से पुरातत्व, इतिहास एवं शैलचित्र विषयों के विख्यात विशेषज्ञों, विद्वानों, शोधार्थियों तथा छात्रों ने सक्रिय सहभागिता की।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन से की गई, तत्पश्चात अतिथियों को पुष्पगुच्छ एवं अंगवस्त्र भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का स्वागत भाषण श्रीमती रचना पाटिल, निदेशक, पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, द्वारा दिया गया, जिसमें उन्होंने संगोष्ठी की अवधारणा, महत्व एवं उद्देश्य पर प्रकाश डाला। शैक्षणिक सत्रों में प्रो. वी. एच. सोनावाने, पूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, बड़ोदरा विश्वविद्यालय, गुजरात द्वारा “Glimpse of Indian Rock Art” विषय पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता एक जीवंत सभ्यता है।
प्रो. बंशी लाल मल्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली द्वारा “Genesis of Indian Art” विषय पर प्रस्तुति दी। सभागार में उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय सभ्यता सबसे प्राचीन और समृद्ध सभ्यता है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर धर्मों में अभिव्यक्ति को तस्वीरों के मदद से प्रदर्शित किया जाता है। आगे इन्होंने कहा कि भारतीय दर्शन पंच महाभूत से जुड़ा हुआ है। हम लोग प्रकृति से बहुत नजदीकी से जुड़े हुए हैं।
डॉ. एस. बी. ओटा, सेवानिवृत्त संयुक्त महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा “Earliest Inhabitants of Ladakh and Their Artistic Creativity” विषय पर वक्तव्य प्रस्तुत किया। अपनी प्रस्तुति के दौरान इन्होंने स्पष्ट किया कि लद्दाख में सबसे ज्यादा रॉक आर्ट है। डॉ. ऋचा नेगी, विभागाध्यक्ष, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली ने “Rock Art and Ethnoarchaeology” विषय पर विस्तृत व्याख्यान प्रस्तुत किया। अपने प्रस्तुति के दौरान इन्होंने कहा कि हमारी लोक परंपरा, लोकगीत और लोककलाओं में हमारा समृद्ध इतिहास छिपा है।
संगोष्ठी के दौरान उपस्थित छात्रों, शोधार्थियों और आम जनों ने विभिन्न सत्रों में अत्यंत रुचि दिखाई और संवाद-सत्रों में उत्साहपूर्वक भाग लिया।
कार्यक्रम का समापन सत्र अत्यंत गरिमामय वातावरण में संपन्न हुआ। इस अवसर पर कला, संस्कृति एवं युवा विभाग की विशेष कार्य पदाधिकारी सुश्री कहकशाँ द्वारा धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। यह संगोष्ठी बिहार में सांस्कृतिक और पुरातात्विक चेतना को व्यापक स्तर पर जागृत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल सिद्ध हुई।
समारोह की अध्यक्षता वैशाली जिला ईकाई के अध्यक्ष सी वी सिंह एवं संचालन जिला ईकाई के सचिव भी पी विमल जी ने किया
भारतीय स्टेट बैंक, हाजीपुर की मुख्य शाखा परिसर में भारतीय स्टेट बैंक पेंसनर्स एसोसिएशन पटना सर्किल के चयनित पदाधिकारियों, मुजफ्फरपुर के नेतागण एवं हाजीपुर के उत्कृष्ठ सेवाधारी वरिष्ठ पेंसनरो को बूके देकर स्वागत एवं अंग वस्त्र देकर सम्मानित करने का समारोह आयोजित किया गया । समारोह की अध्यक्षता वैशाली जिला ईकाई के अध्यक्ष सी वी सिंह एवं संचालन जिला ईकाई के सचिव भी पी विमल जी ने किया । सभा में मुख्य रुप से पटना सर्किल पेंसनर्स एसोसिएशन के सर्व मान्य नेता अध्यक्ष श्री सी पी सिंह, उपाध्यक्ष श्री टुनटुन बैठा एवं सबों के चहेते सचिव श्री हरेन्द्र प्रसाद जी के साथ-साथ पटना एवं मुजफ्फरपुर के दर्जन नेता पेन्शनर्स एसोसिएशन के प्रतिनिधि के रुप में उपस्थित रहे।
सबो को अंगवस्त्र एवं बूके तथा माला पहना कर स्वागत और सम्मानित किया गया । स्वागत सम्मान और अभिनंदन करते हुए पेंसनर्स एसोसिएशन के जिला ईकाई के उपाध्यक्ष एवं हिन्दी बज्जिका के वरिष्ठ साहित्यकार रवीन्द्र कुमार रतन ने सर्किल अध्यक्ष श्री सी पी सिंह को भारतीय स्टेट बैंक पेंसनर्स एसोसिएशन के सदस्यों का ' हिर्दय सम्राट ‘ कहा और उनकी भावना को अपने शब्दो मे कहा:- ’जीना तेरी गली में ,मरना तेरी गली में , मरने के बाद चर्चा भी तेरी गली (स्टेट बैंक समाज) में । सचिव श्री हरेन्द्र प्रसाद जी की तुलना डाॅ राजेन्द्र प्रसाद की सादगी ,सरलता एवं सहजता से करते हुए उन्हे सेवा और कर्मक्षेत्र का पुजारी कहा । समयाभाव के कारण बकिए सभी 25 चयनित और उत्कृष्ठ कार्य करने बालों सहित उपस्थित सारे लोगों का स्वागत औरअभिवंदन किया।
अपने अभिनंदन और स्वागत से अभिभूत हो नेता श्री सी पी सिंह ने कहा भारतीय स्टेट बैंक हमारा परिवार था ,है और रहेगा । बधाई हमारी नही आप सबकी है जिसके स्नेह ,सहयोग और प्यार के बल पर इस भारी जिम्मेवारी को निभाने की ताकत मिलेगा । वरिष्ठ सदस्य अनिल श्रीवास्तव, अमर नाथ सिंह, विमल जी, नरेन्द्र जी आदि ने सदस्यों की समस्या कीब ओर ध्यान आकृष्ट कराया जिसे दूर करने का सबने वादाकिया। सभा में मुख्य रुप से शैलेन्द्र यादव, अमरनाथ सिंह, लक्ष्मीनारायण लाल दास ,जवाहर लाल विद्यार्थी, नागदेव राय, आर बी दास,राम प्रवेश पटेल, जितेन्द्र सिंह, शैलेस कुमार सिंह ,बी पी सिंह, ब्रह्मचारी जी, जगन्नाथ प्रसाद, राजेन्द्र प्रसाद दास, अशोक कुमार सिंह, अनिल श्रीवास्तव, दिनेश कुमार, रामचन्द्र प्रसाद, चौधरी साहब, यू एन दास, रवीन्द्र कुमार रतन, भी पी विमल, सी वी सिंह , निरंजन सिंहा, काले बादल, नरेन्द्र सिंह आदि ने भी अपने- अपने विचार रखे ।
अन्त में नरेन्द्र कुमार सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन कर सबसे खाना खा कर ही जाने का अनुरोध कर सभा समाप्त होने की घोषणा की।
भाजपा देश के कई राज्यों में कमजोर पड़ती विधानसभा सीटों पर केंद्रीय मंत्रिमंडल से उठाकर व सांसदों को विधानसभा चुनाव लड़ा चुकी हैं
नरेंद्र दामोदर दास मोदी का दौड़ समाप्ति पर हैं और भाजपा के चाणक्य कहे जाने वाले गृहमंत्री भारत सरकार माननीय अमित शाह ने भी अपनी रिटायर्ड होने के संकेत दे दिए हैं। RSS ने नरेंद्र मोदी के साथ अमित शाह को लंबे समय तक भाजपा की बागडोर संभालने के लिए सुपूर्द किया लेकिन अब वह दौर समाप्त हो रहा है। RSS के प्रमुख सर सह संचालक मोहन भागवत ने एक अपने ब्यान में स्पष्ट कर दिया कि 75 की उम्र के बाद जगह स्वत: छोड़कर आने वाली पीढ़ियों को रास्ता देना जरूरी हो जाता हैं। इसके बाद बड़े बदलाव की स्थिति बन चुकी हैं और बहुत तेजी से बदलता हुआ संघ और भाजपा दिखने वाला है।
आपको जानना चाहिए कि जहां एक बड़ी सोशल मीडिया टीम भाजपा के पास हैं और उसका नेतृत्व नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ हैं तो वहीं दूसरी ओर मोहन भागवत का संघ को मजबूती प्रदान करने वाला घर-घर तक संगठन हैं। अब जब मोहन भागवत ने उम्र को लेकर बात उठाई तो भाजपा के ट्रोल टीम ने मोहन भागवत को भी ट्रोल का हिस्सा बनाने में कोताही नहीं बरती हैं। आपको बता दें कि 11 सितंबर को मोहन भागवत होंगे 75 साल के तो वहीं अगले 6 दिन बाद 17 सितंबर को नरेंद्र दामोदर दास मोदी होंगे 75 साल के।
नरेंद्र दामोदर दास मोदी को जिस तरह से संघ का साथ मिला और संघ ने हर क़दम पर मजबूती प्रदान किया उसी संघ से बड़े होने का दर्जनों बार नरेंद्र मोदी ने प्रयास किया है। जिसके कारण अब यह स्थिति बन गई है कि नरेंद्र मोदी और उनके भरोसे पर चलने वाले सांसदों की बहुत जबरदस्त राजनीतिक जीवन में बदलाव आने वाले हैं। जहां नरेंद्र दामोदर दास मोदी 75 साल के होने वाले हैं वहीं 2024 लोकसभा चुनाव में अपनी सीट बचाते बचाते बचें। वहीं बिहार में आधा दर्जन सांसद हैं जिनका राजनीतिक भविष्य बदलने वाला है क्योंकि उनके संसदीय क्षेत्र से आने वाले रिपोर्ट और 2024 में हारते-हारते बचकर संसद में पहुंचना मायने रखता है।
RSS कहें, संघ कहें या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक ही नाम बस अलग-अलग तरीके से हम जानते हैं। संघ ने 2024 लोकसभा चुनाव के बाद धरातलीय हकीकत को जानने में दिलचस्पी दिखाई और हर एक का रिपोर्टकार्ड तैयार करवाया। इसी में जैसा कि हमने अपने आलेख संख्या 40 में (लिंक - https://ahaannews.com/Blog/Details/40 ) बताया था कि हाजीपुर के पूर्व विधायक और वर्तमान सांसद उजियारपुर व केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री नित्यानंद राय का राघोपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना संभावित है।
वैसे ही हार को छू कर निकलने वाले और राजशाही व्यवहार रखने वाले सारण के सांसद राजीव प्रताप रूढ़ी का राजनीतिक सफ़र अब थमने वाला है। लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ बिहार में प्रमुख रूप से सवर्ण समाज वोट करता है और वहीं अन्य जातियों के जबरदस्त समर्थन के बावजूद राजीव प्रताप रूढ़ी ने लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्या से महज़ 13661 वोटों से ही जीत हासिल कर पाएं थें। वहीं समाज में एक संदेश तो स्पष्ट हो गया कि वर्तमान सरकार ने राजीव प्रताप रूढ़ी का क़द बहुत छोटा कर दिया है।
ख़बर सबसे मजेद्दार यह हैं कि अपनी पुत्री के लिए सोनपुर विधानसभा क्षेत्र का सीट चाहने वाले राजीव प्रताप रूढ़ी अब खुद ही इसी सीट से उम्मीदवार बनाये जा सकते हैं। आपको जानना चाहिए कि सोनपुर के पूर्व भाजपा विधायक लगातार 2015 और 2020 का चुनाव हार कर अपनी दावेदारी को कमजोर कर चुके हैं। इसी का फायदा उठाने के चक्कर में राजीव प्रताप रूढ़ी ने अपनी पुत्री के लिए सोनपुर विधानसभा क्षेत्र का सीट चाह रहे थे। जिसके कारण अब सोनपुर विधानसभा क्षेत्र में आपसी लड़ाई ना हो इसके लिए सोनपुर विधानसभा क्षेत्र से राजीव प्रताप रूढ़ी को लाने की तैयारी हैं।
भाजपा का कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय अध्यक्ष बने लेकिन संगठन ने कई स्तरों पर निर्माण लेने में संघ के भी सर्वे रिपोर्ट पर मंथन कर रही हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में अब तक दो बार नरेंद्र दामोदर दास मोदी के नेतृत्व में लड़ा गया लेकिन भाजपा का लगातार स्तर कम होता चला गया है वहीं तीसरे चुनाव में संघ अपनी उपस्थिति दर्ज करेगी ताकि भाजपा मजबूत हो। और इसीलिए कई सांसदों को लोकसभा से निकाल कर बिहार विधानसभा चुनाव में लाने की तैयारी कई राज्यों में हुए प्रयोग के आधार पर संभावित है।
धैर्य के साथ आने वाली बिहार विधानसभा चुनाव को लोगों को देखने की जरूरत है और यह समझते हुए कि - "हर दिन होत ना एक समाना"!
‘स्वाहा’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की एक मजबूत आवाज है।
बिहार की सांस्कृतिक और सामाजिक चेतना को उजागर करने वाली पहली पूर्णत: मगही भाषा में बनी फिल्म ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’ की विशेष स्क्रीनिंग आज पटना वीमेंस कॉलेज के प्रतिष्ठित वेरोनिका ऑडिटोरियम में हुई। यह आयोजन बिहार में इस फिल्म की पहली औपचारिक प्रदर्शनी थी और खासतौर पर राज्य की कामकाजी महिलाओं को समर्पित किया गया था। स्क्रीनिंग का विधिवत शुभारम्भ मुख्य अतिथि के रूप में बिहार के मुख्य सूचना आयुक्त श्री त्रिपुरारी शरण के साथ, गेस्ट ऑफ ऑनर के रूप में श्री परवेज अख्तर वरिष्ठ थिएटर डायरेक्टर, स्मिता कुमारी, डीन आर्ट्स एंड ह्यूमेनिटीज, पटना वीमेंस कॉलेज के द्वारा संयुक्त रूप से की गयी।
उक्त अवसर पर बिहार के मुख्य सूचना आयुक्त श्री त्रिपुरारी शरण ने कहा कि सिनेमा कला के एक माध्यम के रूप में समाज को प्रतिबिम्बित करता है। यह एक सशक्त माध्यम है किसी फिल्म को कहने का। उन्होंने कहा कि फिल्म ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’, मुंबईया सिनेमा नहीं है, मगर इसे बेहद गहराईयों से बहुत सोच – समझ कर बनाया गया है। यह आम फिल्मों से हट कर है, जिसमें आज हमारे समाज में औरतों का स्टेट्स क्या है, इस लाइन पर यह फिल्म केन्द्रित है। सबों को यह फिल्म देखनी चाहिए। मेरी बहुत सारी शुभकामनाएं हैं। मैं फिल्म के निर्देशक अभिलाष शर्मा और निर्माता विकास शर्मा को कहूँगा कि इस फिल्म को हर प्लेटफ़ॉर्म पर दिखाएँ। प्रजना फिल्म्स द्वारा निर्मित फिल्म ‘स्वाहा: इन द नेम ऑफ फायर’ का निर्माण बिहार (राजगीर और गयाजी) में किया गया है और यह एक ऐसी महिला की मार्मिक कहानी को बयां करती है जो भय, चुप्पी और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष करती है। फिल्म की पृष्ठभूमि बिहार की आत्मा से जुड़ी हुई है और यह महिला सशक्तिकरण की मजबूत आवाज बनकर उभरी है। इसको लेकर निर्देशक अभिलाष शर्मा ने बताया कि इस फिल्म की प्रेरणा मुझे उत्तर प्रदेश में बनी एक शार्ट एनिमेशन फिल्म देख कर मिली थी। इसमें बिहार के कलाकारों ने काम किया है। हमें उम्मीद है कि हमारी फिल्म को बिहार सरकार से भी प्रोत्साहन मिलेगी।
उन्होंने ‘स्वाहा’ मेरे लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं, आत्मा की आवाज़ है। इसकी प्रेरणा मुझे "Animator vs. Animation" जैसी शॉर्ट फिल्म से मिली, जहाँ रचनाकार और रचना के बीच संघर्ष को दिखाया गया था। यही विचार धीरे-धीरे एक माँ और उसके बच्चे के बीच संघर्ष की कहानी में बदल गया — एक ऐसी माँ जो समाज के बोझ तले दबती चली जाती है। यह फिल्म विशेष रूप से बिहार के वंचित समुदायों, खासकर मुसहर समुदाय की पीड़ा को उजागर करती है। मैं मानता हूँ कि धर्म, जाति और गरीबी मिलकर कैसे लोगों को हाशिए पर धकेलते हैं — यही 'स्वाहा' का असली मतलब है: बलिदान।
फिल्म को ब्लैक एंड व्हाइट में शूट करने का फैसला भावनात्मक प्रभाव को गहराई देने के लिए था। ‘स्वाहा’ पूजा की आग में नहीं, ज़िंदगी की आग में जलने की कहानी है — एक माँ की, जो अपने बच्चे और समाज के लिए खुद को होम कर देती है। यह फिल्म बौद्ध दर्शन — दुःख, करुणा और निर्वाण — से गहराई से प्रभावित है। छोटे बजट में बनी यह फिल्म इस बात का प्रमाण है कि सिनेमा का असली जादू संसाधनों में नहीं, बल्कि सच्ची भावना और ईमानदार दृष्टि में होता है। 'स्वाहा' बनाना मेरे लिए आत्मिक अनुभव था — एक यात्रा, जिसमें मैंने न सिर्फ एक कहानी कही, बल्कि खुद को भी जाना, समझा और बदला।
विदित हो कि फिल्म ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी जबरदस्त पहचान बनाई है। इसे अब तक 30 से अधिक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में प्रदर्शित किया जा चुका है और यह कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीत चुकी है। शंघाई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक और अभिनेता का ‘गोल्डन गोब्लेट अवॉर्ड’ से सम्मान, न्यूयॉर्क के सोशल्ली रेलेवेंट फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ कथा फिल्म और इमैजिन इंडिया इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (स्पेन) में 'लाइफ अवॉर्ड' जैसे सम्मान इसकी उत्कृष्टता के प्रमाण हैं।
स्क्रीनिंग से पूर्व ‘वूमन ऑफ सब्सटेंस’ सम्मान समारोह का आयोजन हुआ, जिसमें तीन प्रेरणादायी महिलाओं को उनके सामाजिक योगदान के लिए सम्मानित किया गया। पद्मश्री सुश्री सुधा वर्गीज (‘नारी गुंजन’), सुश्री ज्योति परिहार (‘किलकारी बिहार बाल भवन’) और सुश्री चेतना त्रिपाठी (‘चेतना फाउंडेशन’) को उनके अद्वितीय कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर वक्ताओं ने बिहार की क्षेत्रीय भाषाओं, खासकर मगही के माध्यम से सशक्त फिल्म निर्माण की दिशा में यह फिल्म मील का पत्थर साबित होने की बात कही। उन्होंने कहा कि यह फिल्म आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन सकती है, विशेषकर महिलाओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए।
‘स्वाहा’ सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव की एक मजबूत आवाज है। यह बिहार की मिट्टी, उसकी बोली और उसकी नारी शक्ति का प्रतीक है। आयोजकों ने मीडिया से अपील की कि वे इस फिल्म को राज्य के कोने-कोने तक पहुँचाने में सहयोग करें, ताकि यह सिनेमा बदलाव की एक नई लहर ला सके।
इस कार्यक्रम के साथ श्री अरविंद मोहन द्वारा लिखी पुस्तक "चंपारण में गांधी"का लोकार्पण भी तुषार गांधी के हाथों हुआ।
'बदलो बिहार, नई सरकार' अभियान के तहत आज महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी 12 जुलाई से 19 जुलाई तक 8 दिवसीय दौरे पर मुजफ्फरपुर पहुंचे। प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा बिहार के चुनाव को चोरी करने का जो षड्यंत्र किया जा रहा है, उसके प्रति बिहार के नागरिकों को सजग करने के लिए वे यह दौरा कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि बिहार ना केवल चंपारण आंदोलन की धरती है बल्कि संपूर्ण क्रांति के जनक लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नाम से भी जाना जाता है।
उन्होंने आशा व्यक्त की है कि ऐसे बिहार के जागरूक मतदाता इस साजिश को सफल नहीं होने देंगे। तुषार गांधी ने कहा कि मेरे परदादा महात्मा गांधी का जिस तरह का आत्मीय रिश्ता आजादी के आंदोलन के दौरान बिहार से रहा है, मैं उस रिश्ते की विरासत को आगे बढ़ाने आया हूँ l उन्होंने कहा कि मैंने महाराष्ट्र में जनादेश को चोरी होते हुए देखा है, उस चोरी को महाराष्ट्र के मतदाताओं ने पकड़ लिया था, इसके बावजूद भी चुनाव आयोग ने उनके साथ न्याय नहीं किया। बिहार में हम जनादेश चोरी नहीं होने देंगे।
तुषार गांधी ने कहा कि बिहार चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण का निर्देश दिया गया है यह गरीबों ,दलितों अतिपिछड़ों, अल्पसंख्यकों को मताधिकार से वंचित करने का प्रयास है। जबकि आजादी के बाद की सरकारों ने अधिकतम मतदाताओं को चुनाव से जोड़ने का काम किया था । उस पर सुप्रीम कोर्ट ने प्रमाण के तौर पर आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड जोड़ने का सुझाव दिया है। बेहतर होता कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को सुझाव देने की जगह आदेश देता। उन्होंने आशा व्यक्त की है कि 28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ऐसा फैसला देगा जिससे बिहार का एक भी मतदाता अपने मताधिकार से वंचित नहीं होगा।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग के माध्यम से सरकार नागरिकता के मुद्दे पर अहम निर्णय करने का प्रयास कर रही है, जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा है कि यह कार्य चुनाव आयोग का नही, गृह मंत्रालय का है।
उन्होंने कहा है कि देश में किसान आंदोलन एमएसपी की कानूनी गारंटी है और बिहार में मंडी व्यवस्था की बहाली की मांग कर रहे है। उसके समर्थन में किसानों को अपनी संगठित ताकत दिखानी चाहिए।
तुषार गांधी ने कहा कि बेरोजगारी युवाओं का सबसे बड़ा सवाल है। सरकार ने बेरोजगारी के सवाल को नजर अंदाज किया है, इस चुनाव में युवाओं को रोजगार को मुद्दा बनाकर मतदान करना चाहिए।
प्रेस वार्ता में समाजवादी चिंतक विजय प्रताप, किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सुनीलम, हम भारत के लोग से शेख अलाउद्दीन और गुड्डी, लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के मंथन और प्रवीर पीटर शामिल हुए। प्रेस वार्ता का संचालन मुजफ्फरपुर स्थानीय साथी शाहिद कमाल ने किया।
-एक हफ्ते में अपने घर के आसपास में जमे पानी को करें साफ
- सिविल सर्जन कार्यालय में डेंगू पर मीडिया कार्यशाला का हुआ आयोजन
-पिछले वर्ष 324 डेंगू के मरीज हुए थे प्रतिवेदित
बरसात के मौसम में डेंगू का खतरा बढ़ जाता है। आने वाला एक से डेढ़ महीना डेंगू के प्रसार से अहम है। यह वह समय है जब तापमान और नमी के कारण साफ पानी में डेंगू के लार्वा ज्यादा पनपते हैं। यह लार्वा एक हफ्ते में ही मच्छर के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। इससे डेंगू का खतरा बढ़ जाता है। अगर हम सामाजिक रूप से यह नियम बना लें कि हफ्ते में एक दिन अपने घर के आस-पास के छोटे कंटेनर का पानी उलट दें या निकाल दें, तो लार्वा को पनपने से रोका जा सकता है। ये बातें जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ गुड़िया कुमारी ने सिविल सर्जन कार्यालय में शुक्रवार को डेंगू पर मीडिया कार्यशाला के दौरान कही। जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ गुड़िया कुमारी ने बताया कि अभी का समय डेंगू के लिए काफी अहम है। डेंगू से कैसे बचें इस पर अभी ज्यादा बात करने की जरूरत है। इनके मच्छर साफ पानी में पनपते हैं और ज्यादातर दिन में ही काटते हैं। डेंगू के लिए सदर में 10, अनुमंदालिय अस्पताल में 5 तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर 2 मच्छरदानी सहित बेड का स्पेशल वार्ड तैयार किया गया है। यहाँ 24 घंटे चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध है।
डेंगू की पुष्टि के लिए एलाइजा टेस्ट ही मान्य:
डॉ गुडिया ने बताया कि डेंगू की पुष्टि के लिए सभी स्वास्थ्य केन्द्रों पर एनएस जांच किट उपलब्ध है। पॉजिटिव आने पर सदर अस्पताल में एलाइजा टेस्ट से उसकी पुष्टि होती है। सदर अस्पताल में सभी तरह की दवाएं मौजूद है। पॉजिटिव आने पर उसके घर के आस पास के करीब 100 मीटर के दायरे में फॉगिंग की जाती है।
इस वर्ष 2 केस हुए प्रतिवेदित:
डॉ गुड़िया कुमारी ने बताया कि वर्ष 2024 में कुल 324 केस प्रतिवेदित हुए थे। वहीं इस वर्ष अभी तक 2 केस प्रतिवेदित हुए हैं। दोनों ही मरीज ठीक होकर अपने घर जा चुके है। यह मामले पिछले वर्ष से काफी कम है। यह सिर्फ जागरूकता के कारण ही संभव हो पाया है। मौके पर जिला भीबीडीसी पदाधिकारी डॉ गुड़िया कुमारी, भीडीसीओ राजीव कुमार, भीबीडीसी धीरेन्द्र कुमार, कुमारी राधा, सीफार समन्वयक अमित कुमार सिंह, पिरामल पीएल पियूष कुमार एवं मीडिया कर्मी मौजूद थे।
डेंगू बुखार के लक्षण क्या है:
पेट दर्द, सिर दर्द, उल्टी, नाक से खून बहना, पेशाब या मल में खून आना, हड्डियों और जोड़ों में दर्द, तेज बुखार, थकावट, सांस लेने में दिक्कत, गंभीर मामलों में प्लेटलेट काउंट कम होना।
क्या डेंगू से बचा जा सकता है:
सही समय पर उचित कदम उठाने से डेंगू बुखार से आसानी से बचाव किया जा सकता है। डेंगू से बचने के लिए नीचे बताए गए उपाय किये जा सकते हैं: मच्छरदानी का उपयोग करें। घर में या आसपास पानी जमा न होने दें। कूलर का पानी रोज बदलें। पूरे बाजू के कपड़े पहने। मच्छर से बचने वाले रिप्लेंट, क्रीम या कॉयल का प्रयोग करें। पेड़ पौधों के पास जाएं या घर के बाहर निकलें तो शरीर को ढक कर जूते मोजे पहन कर निकलें। पानी की टंकी को ढक कर रखें। कीटनाशक और लार्वा नाशक दवाइयों का छिड़काव करें। अपने घर के आसपास साफ सफाई बनाए रखने में जागरूकता फैलाएं। स्वस्थ खान पान वाली जीवनशैली अपनाएं, जिससे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता अच्छी बनी रहे।
डेंगू बुखार से आसानी से बचाव किया जा सकता है, लेकिन सही कदम उठाने के बाद भी डेंगू के किसी प्रकार के लक्षण दिखाई देते हैं, तो खुद से दवा लेने की भूल न करें और फौरन डॉक्टर से परामर्श लें।
बिहार की राजनीति में जातिवादी व्यवस्थाओं को पहली बार अपने परिवार के लिए वोट करने को कहां तो वह हैं जन सुराज
बिहार की राजनीति देश में कुछ अलग ही चलता है। भारत को हर वक्त एक नया नेतृत्व देने के प्रयास में अव्वल रहती बिहार स्वयं के लिए कभी आवाज़ नहीं बन पाया। जातिवादी व्यवस्थाओं के कारण और द्वेष को बढ़ावा देकर बिहार से कई राष्ट्रीय नेता जरूर बने लेकिन सब अपने परिवार में ही सिमटकर रह गए। बिहार में दलितों के नेता के रूप में पिछले 50 वर्षों से राम विलास पासवान अकेले चेहरा बने हुए हैं और आज स्मृति शेष होने के बावजूद भी उनके पुत्र पिता का चेहरा लेकर अपने चाचा, भाई, बहनोई के अलावा कई रिश्ते को संसद से लेकर विभिन्न आयोगों में स्थापित कर दिया। वहीं दूसरी ओर देखेंगे तो दलितों के लिए दलित सेना बनाकर रामविलास पासवान ने पुरे समाज को जिन्हें दलितों के नाम से पुकारा और उन्हें एक जुटकर वंशज को सदनों में अय्याशी का हिस्सा बनाया और लगातार बनाये रखने का माध्यम बनाकर रखा हुआ है जो बीज के रूप में था वह फसल परिवार को ही फायदा पहुंचा रही हैं। स्मृति शेष रामविलास पासवान ने अपने भाईयों, दमादों, भतीजे और सारी शक्ति सभी से लेकर पुत्र चिराग पासवान को सुपूर्द कर दिया। वहीं चिराग पासवान ने जातिवादी व्यवस्थाओं को लेकर बिहार में पिता के विरासत को बढ़ाकर दलितों का उत्थान नहीं होने दे रहे हैं और शोषण के विभिन्न आयामों को केंद्रीय मंत्रिमंडल से लागू कराते हैं। दलितों के लिए मतदाता बनने का भी संकट मंडरा रहा है।
वहीं पिछड़ा और गरीब - गुरबों के नेता लालू प्रसाद यादव ने भी लगभग 50 वर्षों से बिहार से लेकर देश की राजनीति में गहरा प्रभाव डाला। यादवों की राजनीति करने वाले लालू प्रसाद यादव खुद एक अच्छी शिक्षा ली लेकिन बिहार के यादवों को दारू, बालू, चरस, गांजा जैसे अवैध धंधों में झोंके रखा और 15 साल संरक्षक बनकर उनकी तीन पीढ़ियों को बर्बाद कर दिया। अगर बिहार में यादवों में शिक्षित, व्यवसायी और सभ्यताओं के साथ ढ़ुढ़ेंगें तो 5-10% ही मिलेंगे और वह भी वो लोग हैं जो लालू प्रसाद यादव से कभी प्रभावित नहीं हुए और ना ही उस सिद्धांत पर चलने का प्रयास किया। लालू प्रसाद यादव ने खुद चारा घोटाले के बाद जेल जाते हुए पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया जिसका शिक्षा जैसे शब्द से कोई वास्ता नहीं था। इसी कारण अपने दोनों बेटे जो कि सभी बहनों में छोटे हैं पढ़ाई-लिखाई से वंचित रहें, क्योंकि जिस समय दोनों पुत्रों (तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव) का जन्म हुआ बिहार में शिक्षा के लिए जगह नहीं था।
कोई भी नेता यह नहीं कर सका जिसके लिए लोगों ने इतना बड़ा व्यक्तित्व बनाया उसने अपने ही जातियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, रोजगार और सुरक्षा से वंचित रखा। रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार यह सब देश की सत्ता से लेकर बिहार की सत्ता अपने जेब में रखा, लेकिन जनता के लिए ऐसा कोई काम नहीं किया जो याद रखें जाएं। दलितों, पिछड़े और गरीबों के उपरोक्त तीनों मसीहा स्वयंभू हुए लोगों के लिए सिर्फ भाषण दिए। वहीं इन तीनों के अलावें भी छिटपुट नेताओं का बिहार में आगमन हुआ और वह भी जाति के आधार पर जैसे उपेन्द्र कुशवाहा, नागमणि कुशवाहा, वहीं ताजा ताज़ा हुए मुकेश सहनी जो स्वयं के जातियों के लिए खतरा बने बढ़ें है। वहीं आपको याद होगा कि उपेन्द्र कुशवाहा नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ पहले कार्यकाल में केंद्रीय शिक्षा राज्यमंत्री, भारत सरकार रहें और शिक्षा पर ही आंदोलन करने सड़कों पर उतरे, जो बड़े आश्चर्य की बात रही। सदन और सत्ता में बैठकर मलाई खाने वाले उपेन्द्र कुशवाहा किसी ना किसी गठबंधन को जाति के आधार पर प्रभावित करतें हैं लेकिन जाति का भला से ज्यादा अपने लिए सत्ता लोलुपता का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
वहीं कांग्रेस के बाद भारत की राजनीति में हिन्दुत्व के मुद्दे के सहारे दुसरी बार केन्द्रीय सत्ता में आने वाले बड़ी राजनीतिक दल भाजपा हैं। भारतीय जनता पार्टी ने लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और नीतीश कुमार के सहयोगी बनकर बिहार को लगातार लूटने में लगे हैं। वहीं पिछले एक दशक में केंद्रीय नेतृत्व में बिहार से 80-90% तक लोकसभा सीट और विधानसभा चुनाव में 60-80% सीट लेने के बावजूद मजदूर सप्लाई राज्य बनाकर गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उत्तर प्रदेश (नोएडा), हरियाणा, राजस्थान के साथ देश के दर्जनों राज्यों को मजबूत करने का काम किया। भारतीय जनता पार्टी आज भारतीय जुगार पार्टी बनकर किसी भी तरह सत्ता हासिल करने के सिद्धांत के साथ लगातार 11 वर्षों से लगी है। भारत के राज्यों में डबल इंजन की सरकार बनाना ही लक्ष्य लेकर भाजपा चल रही है और उसमें कई बार देखा गया कि सत्तारूढ़ होने से वंचित हो गए मगर केन्द्रीय सत्ता के बल पर सत्ता को जबरदस्ती छिन्न - भिन्न कर प्राप्त किया।
भारतीय जनता पार्टी के पास लगभग 06 अप्रैल 1980 से आज तक बिहार में एक भी नेता तैयार नहीं कर सका। नवनिर्मित राजनीतिक दल के रूप में भाजपा ने पहले लालू प्रसाद यादव को मदद कर बिहार सरकार में स्थापित कराया तो वहीं लालू प्रसाद यादव से तंग होकर नीतीश कुमार को बिहार सरकार की बागडोर में सहयोगी बनी हुई हैं। आज भाजपा को जब से नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने संभाला हैं तब से राजद यानी लालू प्रसाद यादव के द्वारा सींचें गए गुलाम नेताओं को लेकर संगठन चला रही हैं। नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने भारतीय जनता पार्टी को भाजपा विहीन कर राजद युक्त बना दिया है। बिहार भाजपा के लगातार प्रदेश अध्यक्ष राजद से उधार लेकर बनाया गया है जिसका कोई भी फायदा अब तक नहीं हुआ और भाजपा के कोर वोटर व संगठनकर्ताओं को मार्गदर्शन मंडल में बैठने को मजबूर कर दिया है।
बिहार में एक सुदृढ़ सरकार की आवश्यकता है और आम आदमी भारतीय जनता पार्टी पर भरोसा कर भी रही थी क्योंकि लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के विकल्प में वहीं मौजूद थे। लेकिन भाजपा बिहार अपने पैरों पर 45 वर्षों में खड़ा नहीं हो सकी और संगठन को बर्बाद कर दिया गया जिसे सींचने में बिहार के महत्वपूर्ण लोगों का योगदान था।
लेकिन अब बिहार के लिए एक बड़ी उम्मीद और अंतिम उम्मीद जन सुराज और जन सुराज के सुत्र धार प्रशांत किशोर हैं।
अब तक बिहारियों के पास लालू प्रसाद यादव का डर था और उस डर के विपक्ष में नीतीश कुमार और भाजपा (NDA) पर भरोसा कर लेती थी। वहीं प्रशांत किशोर ने बिहारियों के अंतिम उम्मीद के रूप में आकर बिहार के लोगों को संजीवनी देने का काम किया है। यहीं प्रशांत किशोर हैं जिन्होंने दो विपरीत ध्रुवों को नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव को एकजुट कर नरेंद्र दामोदर दास मोदी के घमंड को चकनाचूर कर दिया था बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में। वहीं प्रशांत किशोर ने लालू प्रसाद यादव के दोनों बेटे को सदन में बिठाकर सुधरने का मौका दिया लेकिन परिवार से मिली लूट नीति काम और सैद्धांतिक सहमति के लिए बाधा बनकर खड़ी हो जाती है और राजनीतिक दृष्टिकोण से अब अंतिम दौर चल पड़ा है।
बिहार की राजनीति को समझने के लिए धरातल पर उतरने की आवश्यकता थी और हर घर तक जाकर बिहारियों को समझने के लिए उनके साथ समय देना आसान डगर नहीं था। लेकिन प्रशांत किशोर ने अमेरिका से लेकर भारत स्तर पर अपनी सोच़ और सुझबुझ का लोहा मनवाया है। बिहार में अब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार व (NDA) का विकल्प बनकर प्रशांत किशोर ने ऐसी लकीर खींच दी हैं कि अगर बिहारियों में थोड़ी भी समझ बची रही और स्वयं के साथ अपने परिवार के बारे में सोच़ ली तो सच मानिए बिहार में एक बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा। वहीं प्रशांत किशोर के नेतृत्व में बिहार एक ऐसी व्यवस्था के साथ जन सुराज पार्टी को विकल्प से हटाकर उम्मीद बनाकर रख देगी।
ए भाई,इ त हिंदुए के देश में हिंदुअने के संग,बड़ा घोर अन्याय आ धोखाबाजी हो रहल बा।--मुखियाजी गंभीर लगे।
सरजी, हमारे संविधान में "धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद" सिर्फ और सिर्फ हिंदुओं के हिस्से के देश से सनातन और सनातनियों को समाप्त करने के लिये हीं ठूंसा गया, जिसे देश की परिस्थितियां चीख चीखकर कर साबित कर रहीं हैं। देश का एक बड़ा तबका संविधान की जगह शरीयत को महत्व देता है, जिस देश में रहता है,सारी सुविधाओं का लाभ उठाता है,उस देश का जयकारा नहीं लगाता, भारत माता की जय कहने,राष्ट्रीय गीत गाने से परहेज़ करता है। ये कैसी धर्मनिरपेक्षता है जिसमें धर्म के आधार पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक की रेखा खींची गई है!! धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर एक समुदाय को, बहुसंख्यकों के प्रति, नफरती शिक्षा देने हेतु सरकारी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। उनके धार्मिक पर्यटन जैसे हज आदि करने के लिए सरकारी सहायता दी जाती है वही अन्य को नहीं।--सुरेंद्र भाई बैठते हीं अपनी कहे।
ये तो कुछ भी नहीं भाईजी, भारत में धर्मनिरपेक्षता की खुबसूरती देखिये! एचआर एण्ड सीई अधिनियम 1951(हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951) लागू करके लगभग चार लाख मंदिरों को और उन मंदिरों के पैसों को हिंदुओं से छीन लिया गया। इसके ठीक उलट मुसलमानों के मस्जिदों का और ईसाईयों के चर्चों का प्रबंधन स्वतंत्र रूप से उन्हीं समुदायों के हाथों में होता है। डा.अंबेदकर साहब ने भी ऐसे संशोधन को गैर सेक्युलर कहा था। यह अधिनियम और ऐसे हीं राज्य सरकारों द्वारा पारित कानून, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का स्पष्ट उल्लंघन है।--डा.पिंटु मुंह बनाये।
ए भाई,इ त हिंदुए के देश में हिंदुअने के संग,बड़ा घोर अन्याय आ धोखाबाजी हो रहल बा।--मुखियाजी गंभीर लगे।
मुखियाजी, बाहरी पंथ वाले आक्रांताओं द्वारा सदियों से छल बल से हिंदूओं पर अत्याचार होता आया है और धर्मांतरण कराते रहे हैं। जो हिंदुओं के साथ अत्याचार करते रहे हैं उन्हीं समुदायों को मंदिरों की आय से विषेश सहायता दी जाती है। आंध्र और कर्नाटक में हिन्दू मंदिरों की आय से हज सब्सिडी देने की बात,कई बार साबित हो चूकी है। धर्मनिरपेक्ष संविधान में मुस्लिम पार्टी कांग्रेस ने ऐसे संशोधन किये कि हिंदूओं को मुसलमानों और ईसाईयों की तुलना में कम धार्मिक, शैक्षणिक एवं कानूनी अधिकार हैं।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में...........
आज पुरे देश में हिन्दू युवतियों के विरुद्ध लव-जिहाद का षड्यंत्र चल रहा है फिर उनका धर्मपरिवर्तन कर दिया जाता है ताकि मुसलमानों की संख्या बढ़े और हिंदुओं की घटे। मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों का शिकार कर सके इसके लिए कांग्रेस ने 1954 में "विषेश विवाह अधिनियम लाया। छोड़िये न, हिंदू परिवार को नष्ट करने के लिये 1956 में कांग्रेस ने "हिंदू कोर्ट बिल" ले आयी ताकि हिंदू एक से अधिक विवाह न कर सकें और उनकी जनसंख्या सीमित रहे । लेकिन वहीं पर लाख गंदगी और बुराइयों के बावजूद "मुस्लिम पर्सनल लॉ" को नहीं छुआ गया। मुसलमानों को तीन-तीन, चार-चार विवाह की छुट रही ताकि जनसंख्या विस्फोट करके भारत का "गजवा-ए-हिंद" किया जा सके। जिसका परिणाम आज हिंदूओं के लिये चिंता का सबब बन गया है। जिस शहर या गांव में इनकी संख्या बीस प्रतिशत हुई नहीं कि हिंदूओं का जीना हराम कर रहें हैं।--उमाकाका हाथ चमकाये।
काकाजी,हम भुले नहीं है 1975 की इमरजेंसी। उस इमरजेंसी काल में कांग्रेस ने जबरन लाखों हिंदुओं नवजवानों की नसबंदी करवा दिया था ताकि भारत की डेमोग्राफी बदल दी जाय।आज उसका परिणाम दिख रहा है। रिपोर्ट के अनुसार हिंदुओं की जनसंख्या रेशियो साढ़े सात प्रतिशत के करीब घटा है वहीं मुसलमानों का साढ़े तैंतालीस प्रतिशत के करीब बढ़ा है।--सुरेंद्र भाई बोल पड़े।
कांग्रेस मुस्लिम परस्त पार्टी है इसमें अब किसी को शंका नहीं रह गई है। प्रमाणित है कि गांधी पुर्णत: मुस्लिम परस्त थे जबकि नेहरू छद्म हिंदू। इंदिरा गांधी ने भी अफगानिस्तान में बाबर के मकबरे पर जाकर इसे प्रमाणित किया है। देखा नहीं आपलोगों ने 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय करोड़ों बंग्लादेशी मुसलमानों को कांग्रेस ने भारत में शरण दी और राजीव गांधी ने भारतीय नागरिकता। कोई भी मुस्लिम राष्ट्र, मुस्लिम शरणार्थियों को शरण नहीं देता।वो गैर मुस्लिम देश में शरण लेते हैं और जबरदस्त जनसंख्या विस्फोट करके उसे जबरन इस्लामिक राष्ट्र बना देते हैं। 57 मुस्लिम राष्ट्र इसी ढ़र्रे पर बने हैं। छोड़िये न!! आज से 100 साल पहले परसिया नामक देश था। वहां 4 हजार मुसलमानों ने शरण ली। नतीजा!!वहां के मूल निवासी पारसी खत्म हो गये और आज वो इस्लामिक राष्ट्र "इरान" है।--डा. पिंटू पैर फैलाते हुए।
कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता देखिये! सिर्फ मुसलमानों के हितार्थ,भले हीं नाम सिख, ईसाई,जैन, बौद्ध का जुड़ा हो,1992 में अल्पसंख्यक आयोग कानून बनायी ताकि मुसलमानों को हर तरह का सरकारी संरक्षण एवं आर्थिक एवं कानूनी सुविधाएं मुहैया कराया जा सके। भला बताइये!! धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म और पंथ के नाम पर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक होता है क्या!! लेकिन उद्देश्य तो परोक्ष में दुसरा है। याद आया, इस्लामिक आक्रांताओं ने हजारों हिंदू मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बना दी हैं तो स्वतंत्र भारत में हिंदू, कानूनी तरीके से अपना मंदिर वापस न ले सके, इसके लिए धर्मनिर्पेक्ष देश में सत्ताधारी कांग्रेस ने पूजा स्थल अधिनियम-1992 लायी। फलस्वरूप हिंदुओं के 40 हजार मंदिर छीन लिये गये।--मास्टर साहब भी अपनी कहे।
ए मास्टर साहब, हमरा त बुझाता कि अब हमरो देश 25-30 बरीस के मेहमान रह गईल बा।--मुखियाजी निराश दिखे।
मुखियाजी,देख नहीं रहे हैं! हमारे देश में हिंदुओं के देवी-देवताओं पर भद्दी भाषा, देवियों की अश्लील चित्रकारी, रामायण जलाना, मनुस्मृति फाड़ना, हमारे सनातन धर्म को डेंगू और मलेरिया कहना, हिंदुओं की आस्था गौ माता की हत्या करना,आम बात हो गई है। हमारे देश में मुस्लिमों द्वारा,देश विरोधी नारे लगाना, दुश्मन देश पाकिस्तान की जयकारें लगाना, उनके लिए जायज है क्योंकि पाकिस्तान इस्लामिक देश है। इनके मुल्ला मौलवी कहते हीं हैं कि हमारे लिए संविधान नहीं शरीयत प्रमुख है। देश के कानून और न्यायालय को भी इसमें अभिव्यक्ति की आजादी दिखती है। लेकिन यदि कोई हिन्दू इन मुल्लों, इस्लाम परस्तों, उनके अमानवीय रसुलों, गंदे व्यवहार प्रतिमानों पर टिप्पणी करे तो सर धड़ से अलग करने की खुल्लमखुल्ला धमकी मिलती है। देश विरोधी घुसपैठियों के संरक्षण में कई मुस्लिम संगठन एक्टिव हैं। इनके पक्ष को लेकर कांग्रेस माइंडेड हिंदू वरिष्ठ वकील, न्यायालय में गुहार लगाते हैं और न्यायालय भी उनकी सुनता है। तो ऐसी धर्मनिरपेक्षता कहां दिखेगी!!--उमाकाका क्षुब्ध थे।
ए भाई लोग,आज अब अतने रहे दिल जाव। हमार मुड खराब हो गईल।--कहकर मुखियाजी उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.....!!!!