*अब खाली खाते पर नहीं कटेगा पैसा : आम खाताधारकों को बड़ी राहत, कई बैंकों ने खत्म किया मिनिमम बैलेंस का झंझट*
बैंक में खाता रहना भारत में अनिवार्य है क्योंकि डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ता भारत सभी कामों को डिजिटल रूप में करने में लगा है। उसी दौर में बैंकिंग सेवा को भी डिजिटल रूप में बदल दिया गया है। बैंकिंग क्षेत्र में लगातार बदलाव होते जा रहे हैं तो और बड़े बदलाव हुए हैं भारत के कुछ बैंकों में। अब अगर आपके खाते में पैसा नहीं भी है, तो भी घबराने की ज़रूरत नहीं। देश के कई बड़े सरकारी बैंकों ने वह नियम ही खत्म कर दिया है, जिसके तहत खाताधारकों से मिनिमम बैलेंस न रखने पर हर महीने जुर्माना वसूला जाता था।
Canara Bank, PNB, Bank of India, Indian Bank और Bank of Baroda जैसे सरकारी बैंकों ने अपने सभी बचत खातों पर यह शर्त हटा दी है। यानी खाता खाली रहने पर भी पैसा कटेगा नहीं, और ग्राहक बिना किसी डर के अपना खाता चालू रख सकते हैं। RBI की नई गाइडलाइन में भी साफ कहा गया है कि बैंक खाताधारकों को माइनस बैलेंस में नहीं ले जा सकते। यानी अब कोई बैंक ग्राहक से जबरन शुल्क नहीं वसूल सकता।
यह फैसला खासतौर से उन लोगों के लिए बड़ी राहत है:
• जिनकी मासिक आमदनी कम है,
• जो ग्रामीण क्षेत्र या मजदूरी पर निर्भर हैं,
• बुज़ुर्ग पेंशनधारक,
• या वो लोग जो खाते को जरूरत के समय ही उपयोग करते हैं।
* बड़ी बात यह है —*
* अब बैंक का खाता रखने के लिए जेब ढीली करने की मजबूरी नहीं रही।
* यह ग्राहक के अधिकारों और विश्वास की जीत है, जिसे लंबे समय से नजरअंदाज किया जा रहा था।
भारतीय रिजर्व बैंक ने बहुत बड़ी पहल करते हुए मिनिमम बैलेंस का सिस्टम खत्म कर आम लोगों को बड़ी राहत दी। अब बैंकिंग से आम लोगों को जुड़ने का अच्छा अवसर मिलेगा।
भारतीय संविधान में भी वर्णित हैं कि आत्मरक्षा के लिए किया गया जघन्य अपराध को भी अपराध नहीं माना जाएगा
मलमलिया कौड़ियां की घटना दिल झकझोर देने वाला हुआ और ऐसी घटनाओं की हमेशा निंदा होनी चाहिए और साथ ही साथ ऐसा ना हो इसके लिए प्रयास होना चाहिए। इसके लिए प्रयास की जिम्मेवारी संवैधानिक रूप में समाज की होनी चाहिए और समाज के वो लोग जो उस क्षेत्र के जनप्रतिनिधी है जैसे - पंच, सरपंच, वार्ड, मुखिया, समिति, जिला परिषद आदि को लेनी चाहिए। इससे के आवश्यक होगा कि स्थानीय जनप्रतिनिधि को अधिकार दे और ताकत मिलनी चाहिए ताकि मजबूत निर्माण ले सकें और जब ताकत या ऐसी कोई भी बात जो उनके द्वारा नहीं संभाला जा रहा है तो वह थानों के माध्यम से उच्च अधिकारियों, न्यायालयों तक पहुंचाकर समाज को मजबूती प्रदान करें।
हम अक्सर देखते हैं कि भारतीय संविधान के द्वारा देश की आंतरिक सुरक्षा और शासन व्यवस्था को चलाने के लिए पुलिस की व्यवस्था की गई हैं। वहीं बिहार जैसे राज्य में बिहार पुलिस थानों में दलाल बनकर रखते हैं और किसी भी क्षेत्र के लोगों का आवेदन पत्र मिलता है तो उसकी चर्चा दलालों से पहले की जाती हैं। वहीं आवेदन को क्या करना है यह आराम से सोचा जाता है और उसमें दूसरे पक्ष की राजनीतिक मजबूती के आधार पर किया जाता हैं। जिसके कारण आम लोगों के किया गया आवेदन हमेशा एक कागज़ का टुकड़ा बनकर रह जाता हैं। इसी कड़ी का एक बड़ी घटना के रूप में सामने आती हैं वह हैं आज के हेडलाइन व, जिसमें कई लोगों की जिंदगी समाप्त हो गई।
आपको बता दें कि मलमलिया कौड़ियां वैश्यटोली घटना के बारे में जब स्थानीय लोगों से बात की गई तो उनका कहना है कि यह वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी। यह पुरानी रंजिश नहीं थी, तो आखिर मामला क्या था ? इसपर बात करते हुए लोगों ने सवालिया लहजे में बताया कि आप सोचिए कि 60 वर्षीय कोई व्यक्ति इतना बड़ा जघन्य अपराध कैसे कर सकता है? मृतक पक्ष के लोगों के द्वारा शत्रुघ्न सिंह को शराब का कारोबारी बताया जा रहा है। आतंकवादी की उपाधि तक दी जा रही है, तो मृतक पक्ष के लोगों से मेरा एक सवाल है कि क्या आपका कन्हैया सिंह मंदिर का पुजारी था। अगर आपका कन्हैया सिंह मंदिर का पुजारी था तो हाल में ही घटी घटना जहरीली शराब कांड में जेल क्यों गया था ?
वहीं आगे कहते हैं कि अब एक दो और तीखा सवाल अपनी राजनीतिक रोटी सेकने वालों से अगर यह कोई पुरानी रंजिश और वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी तो अखिलेश सिंह मुखिया (मृतक रोहित सिंह के पिता) 2005 में शत्रुघ्न सिंह के ऊपर गोली क्यों चलाया था? उसका भी F.I.R भगवानपुर हाट थाना में शत्रुघ्न सिंह के द्वारा किया गया था। जिसका कांड संख्या 94/05 है।
2005 से पूर्व भी 2001 में शत्रुघ्न सिंह के साथ मृतक पक्षों ने मार पीट की थी। जिसका F.I.R भगवान हाट थाना में शत्रुघ्न सिंह द्वारा किया गया है। जिसका कांड संख्या 32/01और 33/01 है।
जब ये पुरानी रंजिश और वर्चस्व की लड़ाई नहीं थी तो पुनः 20 साल बाद 16/06/2025 को 60 वर्षीय शत्रुघ्न सिंह पर जानलेवा हमला क्यों किया गया? उस हमला का भी F.I.R भगवानपुर हाट थाना में शत्रुघ्न सिंह के द्वारा किया गया है। जिसका कांड संख्या 272/25 है।
जब घटना पक्ष के लोग साधु हैं तो—04/07/2025 यानी घटना के दिन सुबह 07:00 बजे 20 से 30 लोग शत्रुघ्न सिंह के दरवाजे पे गाली गलौज और फायरिंग क्यों किए ? इसकी भी सूचना आवेदन के माध्यम से शत्रुघ्न सिंह की पत्नी रिंकी देवी थाना प्रभारी महोदय भगवानपुर हाट को दी थी।
04/07/2025 यानी घटना के दिन शाम को 04:00 बजे मलमलिया में शत्रुध्न सिंह को द्वितीय पक्ष द्वारा जब समझौता के लिए बुलाया गया था, तो द्वितीय पक्ष के लोग 20-30 की संख्या में मलमलिया में लाठी, डंडे, गोली-बंदूके लेके क्यों गए, इसके कारणों का ( इसका भी सबूत चाहिए तो कौड़ियां वैश्यटोली से लेके मलमलिया तक के बीच लगी CCTV कैमरा का जांच किया जाए) पता चल जाएगा।
इतना बड़ा घटना होने के बाद भी मृतक पक्ष के लोगों का मन नहीं भरा तो कानून को ताख पे रख के शत्रुघ्न सिंह और उनके बड़े भाई केदारनाथ सिंह के घर पे जाके महिलाओं के साथ छेड़छाड़ किया और उनके घर, दालान और दालान में लगी हुई ट्रैक्टर और 3 मोटरसाइकल को आग के हवाले भी कर दिया गया। इसके बाद शत्रुघ्न सिंह के बड़े भाई केदारनाथ सिंह के चिमनी को तोड़ दिया गया और चिमनी पर लगा CCTV कैमरा और हार्ड डिस्क का भी चोरी कर लिया गया। शत्रुघ्न सिंह के 3–3 हाईवा गाड़ी को तोड़-फोड़ कर दिया गया।
सच तो यह है कि 25 वर्षों से लगातार शत्रुघ्न सिंह को मृतक पक्ष द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था और उनके सामने ऐसी परिस्थितियों बनाई गई जिसके कारण 60 वर्षीय शत्रुघ्न सिंह को अपने आत्मसम्मान और आत्मरक्षा के लिए जघन्य अपराध और अपराधी बनने के लिए मजबूर किया गया।
यह कई लोगों के साथ हुई बातचीत के बाद निकाली गई घटना का एक निष्कर्ष हैं। वहीं इस घटना को जातिय रंग देना बहुत ही निम्न स्तर की राजनीति हैं। लगभग 25 वर्षों से यह सम्मान की लड़ाई होते हुए और जिला प्रशासन की अबतक सही जिम्मेवारी नहीं उठाने का परिणाम आज मौत का तांडव देखने को मिला।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में..........
बैठकी जमते हीं कुंवरजी बोल पड़े--"सरजी, धर्मनिरपेक्षता का हिंदूओं पर ऐसा प्रभाव पड़ा है कि आज के पढ़े लिखे, बड़ी बड़ी डिग्रीधारी लड़के लड़कियों से गायत्री मंत्र या हनुमान चालीसा हीं पुछिये तो नहीं बता पा रहा है। आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली और आजाद भारत में लगातार रहे मुस्लिम शिक्षा मंत्रियों ने हमारे गौरवशाली इतिहास और श्रेष्ठ संस्कृति को इस कदर तोड़ मरोड़ दिया कि हमारे बच्चे अपने धर्म एवं संस्कृति से दूर होते चले गये । इसके लिए फिल्म उद्योग एवं संचार के साधनों का भी भरपूर इस्तेमाल किया गया।"
कुंवरजी,इस धर्मनिरपेक्षता ने सिर्फ हिंदुओं के लिए ऐसे जहर का काम किया जिसने भारतीय समाज एवं संस्कृति की रीढ़ हीं झुका दी है। हमारी पीढ़ी को अपने पूर्वजों के गौरव, अस्मिता, संस्कृति, भाषा, धार्मिक प्रतिकों, आस्थाओं के प्रति शंकालु बना दिया है। धर्मनिरपेक्षता की सहज गति है कि यह अपने महान साहित्य, धरोहरों आदि की ओर से लगाव खत्म कर देता है।--मास्टर साहब हाथ चमकाये।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में.......... आज अच्छे यूनिवर्सिटी के नौजवानों से पुछिये कि प्रभु राम के पिता कौन थे तो नहीं बता पाते हैं। धर्मनिरपेक्षता का हमारे हिन्दू नौजवानों पर असर का हीं परिणाम है कि उसे भारत का हिंदू समाज, हिंदू रीति-रिवाज, घोर ब्राम्हणवादी, पतनोन्मुख, विभेदकारी, जातिवादी और अंधविश्वासी दिखने लगता है। उसे सभी पंडित ठग नजर आते हैं। मुस्लिम जालिम आक्रांताओं के अत्याचारों को और साम्राज्यवादी दहन को आम मध्यकालीन व्यवहार मानकर गंभीरता से नहीं लेता। अपनी महान और वैज्ञानिक भाषा, संस्कृत को सिर्फ पूजा पाठ की मृत भाषा समझता है। प्राचीन सनातनी ज्ञान, विज्ञान, दर्शन, गणित, ज्योतिष विद्या आदि को झुठ और बकवास समझता है जब कि आज नासा के वैज्ञानिक भी उसी सनातनी धर्मशास्त्रों को आधुनिक विज्ञान का आधार कबुल करते हैं।--उमाकाका भी साथ देते हुए।
काकाजी, जहां एक ओर हिंदू धर्मग्रंथों और आधुनिक विज्ञान में कोई विरोधाभास नहीं वहीं अन्य पंथों के धार्मिक ग्रंथ, विज्ञान से कोसो दूर हैं। जैसे मुस्लिम मौलाना, मौलवियों द्वारा मदरसे में,अपने धार्मिक ग्रंथों के आधार पर बच्चों को शिक्षा दी जाती है कि पृथ्वी चपटी है, सूर्य पृथ्वी का चक्कर लगाता है या चांद के दो टुकड़े हुए, आदि आदि। खैर, इतना तो आज साबित हो गया है कि स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस जनित सेक्युलरिज्म एवं समाजवाद, भारत की कुण्डली में राहु केतु की तरह आसन जमाये बैठे हैं।--डा. पिंटू भी बहस में।
डा. साहब, आजादी के साथ हीं कांग्रेस बड़ी चतुराई से हिंदुओं को नंगा करती रही, धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारे अधिकारों पर कैंची चलाती रही और हम हिन्दू, अपनी आंखें मुंदे सोते रहे। जैसे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर संविधान का अनुच्छेद 25 के माध्यम से धर्मांतरण को वैध बनाना। हिंदू तो धर्मांतरण कराता नहीं तो होगा किसका!! हिंदुओं का हीं न! हर साल हजारों हिंदू लड़कियां लव जिहाद और धर्मांतरण का शिकार हो रहीं हैं।
वाह रे! कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता!! आगे सुनिये,अनुच्छेद 28 के माध्यम से हिंदूओं से धार्मिक शिक्षा देने का अधिकार, कांग्रेस ने छीन लिया। वहीं अनुच्छेद 30 के माध्यम से मुसलमानों और ईसाईयों को अपनी धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता प्रदान की गई। हिंदुओं के देश भारत में ये कैसी धर्मनिरपेक्षता!!--सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।
भारत में मजहब के नाम पर मदरसों और मस्जिदों में चार साल की उम्र में हीं बच्चों को कट्टर मजहबी शिक्षा दी जाती है जो धर्मनिरपेक्षता नहीं बल्कि काफिरों के विरुद्ध हिंसात्मक होती है जो इनके इन मासूम बच्चों के मस्तिष्क से मानवीय मूल्यों और गुणों की जगह जिहादी चरित्र बनाती है जो हाई एजुकेशन लेने के बाद भी जेहन से नहीं निकलता। इन्हें कुरान की आयतों की शिक्षा दी जाती है जो गैर इस्लामियों के विरुद्ध हिंसा एवं अत्याचार का पाठ सिखाती है। यह कीड़ा ताउम्र इनके दिमाग से नहीं निकलता।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।
भला बतायीं! इ धर्मनिरपेक्ष देश में, अइसन नफरत के पढ़ाई पढ़ावे के अनुमतीये ना मिलेके चाहीं। बाकी हम सुनले बानी जे इहे कुल नफरती सोच वाला पढ़ावे खातीर, सरकार से मौलाना, मौलवी के सरकार तलबो देले।--मुखियाजी खैनी मलते हुए।
मुखियाजी,इस धर्मनिर्पेक्ष देश में एक ओर ऐसी संवैधानिक छूट अल्पसंख्यक के नाम पर इन्हें दी गई है दुसरी ओर सनातनी हिंदुओं के बच्चों को सामान्य स्कूलों में आपस में हम भाई, भाई हैं अर्थात भाईचारा का पाठ पढ़ाया जाता है। "अहिंसा परमो धर्म", "सर्व धर्म समभाव" की शिक्षा देते हैं। सच पुछिये तो हम बच्चों को जानवरों की तरह कट जाने, डरपोक बनने की ट्रेनिंग देते हैं। हम बच्चों को दया, क्षमा, अहिंसा,भौतिक सुख समृद्धि प्राप्त करने की ओर ले जाते हैं क्योंकि हमारा सनातन किसी के प्रति घृणा की सीख नहीं देता। हमें पढ़ाया गया है कि "मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना"।--डा.पिंटु गंभीर लगे।
मुखियाजी, ये तो कुछ भी नहीं! भारत एक ऐसा धर्मनिर्पेक्ष देश है जहां डर अल्पसंख्यक मुसलमानों को लगता और घर छोड़कर हिन्दू भागने को मजबूर होता है। चाहे कश्मीर हो या बंगाल।आज अब समय नहीं है,कल बताऊंगा कि कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद के नाम पर हिंदुओं के साथ कैसे कैसे पाप किये हैं! इस हिंदुओं के देश में हिंदुओं के खिलाफ इतने कानून बनें हैं कि उसे चुनौती देना तो दूर उसके बारे में चर्चा तक नहीं करते।अच्छा चला जाय।--कहकर सुरेन्द्र भाई उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.....!!!!!(क्रमशः)
तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद यादव के गुनाहों की दर्जनों बार मांफी मांग चुके हैं परंतु संस्कार में परिवर्तन नहीं हुआ
लोकतंत्र में विश्वास और विरोध बहुत महत्वपूर्ण स्तंभ होता हैं। जहां सरकार को नए कानून लाने और लागू करने से पहले जनमत संग्रह की व्यवस्था करनी चाहिए, तो वहीं विपक्ष में रहने वाले राजनीतिक दलों को भी जनमत संग्रह की लिखित व्यवस्था बनानी चाहिए। लेकिन आज़ाद भारत में जो भारत का संविधान बना वह राजनीतिक दलों और उनके साथ सदन में पहुंचने वालों पर लागू नहीं होता है। जिसका परिणाम यह है कि आज तक विरोध का शिकार सिर्फ और सिर्फ आम लोग होते हैं। हर राजनीतिक दल जैसे भाजपा हो, राजद हो, कांग्रेस हो या देश के हजारों पार्टियां वह सरकार और सत्ता का विरोध कभी नहीं करती हैं। बल्कि दोनों (सत्ताधारी और विपक्ष) मिलकर एक गठजोड़ सत्ता जनता के बीच लेकर जाती है कि एक पक्ष में रहेगा और दुसरा विरोध में, वहीं दोनों सड़कों पर उतर कर आम आदमी को उनके घरों में नज़रबंद कर देती आ रही हैं।
आज सोशल मीडिया के युग में भी सत्ता और विपक्ष के गठजोड़ को जनता भी नहीं समझ पाई है और जिसका परिणाम है कि आपस में जो एकसाथ रहकर बैठते हैं, चाय पीते और कभी पार्टी कर खाना पीना करते हैं वह आज जैसे बंदियों में एक दूसरे के खिलाफ सड़कों पर दिखाई देते हैं। आज पुनः बिहार में भारत सरकार के नेतृत्व में संचालित चुनाव आयोग के एक ग़लत फैसले की सज़ा बिहार के आम लोगों को भूगतना पड़ा। चुनाव आयोग का ग़लत फैसला इस मायने में हैं कि महज़ 13-14 महीने पहले भारत के लोकसभा का चुनाव हुआ और प्रधानमंत्री उसी मतदाताओं के मत से सत्ता भोग रहें हैं। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारी को ऐसा रूप दिया गया जिससे आम आदमी भारत सरकार से शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार, रोजगार, विदेश नीति, रात के अंधेरे में ऑपरेशन होने वाले तथ्यों पर बात ना करें तो बिहारियों को फोटोकॉपी योजना में फंसा दिया।
जैसा कि विपक्ष में बैठे लाभार्थी और राजनीतिक दलों को बिहार में किसी भी तरह सत्ता में आना है। जिसके लिए एक बड़ा दावा यह किया कि - "बिहार में करोड़ों दलितों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और गरीबों से उनका 'वोट का अधिकार' छीनने का षडयंत्र रचा जा रहा है। यह सरासर अन्याय है। यह बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर जी के संविधान पर हमला है। यह लोकतंत्र की आत्मा पर हमला है। हम यह किसी कीमत पर नहीं होने देंगे।"
जिसको लेकर भारत के संसद में नेता प्रतिपक्ष श्री राहुल गांधी, बिहार में राजद के प्राईवेट लिमिटेड पार्टी के अध्यक्ष पुत्र तेजस्वी यादव, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, CPI और माले ग्रुप से भी बंगाल से लोगों का हुजूम के साथ ही और INDIA गठबंधन के वरिष्ठ नेता व हजारों की संख्या में कार्यकर्ता तथाकथित अन्याय के खिलाफ सड़कों उतरे। जिसमें मुख्य वाहन पर जिसपर राहुल गांधी और तेजस्वी यादव चढ़ कर रैली का हिस्सा बने उसपर दर्जनों लोगों की मौजूदगी रही लेकिन पप्पू यादव जो लगभग 30 वर्षों से भी ज्यादा समय से बिहार से लेकर दिल्ली की राजनीति में सदन का सदस्य रहे और आज भी हैं को नहीं चढ़ने दिया गया और वहीं मौजूद INDIA गठबंधन के नेताओं में युवा और सबसे विद्वान कन्हैया कुमार को राहुल गांधी अपने साथ नहीं लेकर चल पाए।
राहुल गांधी ने बिहार की राजनीति को लालू प्रसाद यादव के एक जाति के संख्या और गुंडागर्दी के इतिहास के साथ जाना कांग्रेस की क़ब्र सीधे खोदने वाली दिखाई दी। लालू प्रसाद यादव और उनकी पत्नी राबड़ी देवी ने अपने 15 वर्षों के कार्यकाल में लोगों को जिन्हें असहाय और कमजोर कहकर आवाज़ देने का काम किया का दावा हकीकत में लोगों को गुंडा और अपराधी बनाने में मदद करते दिखाई देता है। आज के बिहार बंदी में भी पुरे बिहार से जो ख़बरें आ रही है उसमें यह स्पष्ट है कि लालू प्रसाद यादव और उनकी जाति के लगभग 80% लोग सड़कों पर आकर आज भी लूट और डकैती करने का काम किया। आज बिहार बंदी में अपने जाति के लोगों को तेजस्वी यादव ने माता-बहन योजना के तहत माता-बहनों के प्रतिष्ठा और सम्मान के साथ खिलवाड़ करने को बल दिया।
राहुल गांधी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है और ना ही सामान्य परिवार के सदस्य हैं। इसलिए राहुल गांधी को कांग्रेस को गठबंधन वह भी राजद जैसे गुंडागर्दी करने वाली पार्टी से दूरी बनाकर स्वतंत्र रूप से बिहार के चुनाव में आना चाहिए। बिहार को एक मजबूत और दृढ़ सरकार देने की किसी दल में क्षमता है तो वह कांग्रेस ही है और कमोवेश नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन के अंत के साथ अकेले अगर भाजपा चुनाव में रहे। लेकिन दोनों गठबंधन जातिवादी और जनसंख्या वृद्धि योजना के तहत देश और राज्यों का विकास छोड़कर सत्ताधारी बनने में आम लोगों को लेकर दंगाई बना रहीं। वहीं किसी पर FIR हो जाए तो कोई राजनीतिक दल किसी को पुछने तक नहीं जाती हैं।
आंदोलन के स्वरूप में बदलाव की जरूरत है अगर राजनीतिक दल करते हैं तो :-
आम लोगों के सहुलियत और उनके शुभ चिंतक बनकर आजाद भारत में भाजपा, कांग्रेस, राजद और जो भी राजनीतिक पार्टी हैं उन्होंने दंगा करने और आतंक फैलाने का काम किया। आम आदमी को जागरूक करने में किसी भी राजनीतिक दल ने आज तक भूमिका नहीं निभाई, बल्कि सभी ने जनता के ही संसाधनों को लेकर उन्हें ही लूटेरा और गुंडा बनाकर सत्ताधारी बनते रहे हैं।
अब समय आ गया है कि अगर किसी राजनीतिक दल को किसी भी तरह का विरोध करना है तो वह भारत सरकार और राज्य सरकार के कार्यालयों में ताला बंदी करें। सत्ता लोलुपता में जो भी सत्ताधारी पार्टी हैं उनके सांसद और विधायक को बंदी बनाये और नज़र बंद करें। वहीं बड़ा हौसला और दम रखते हैं तो राज्यपाल, मुख्यमंत्री, राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री का घेराव करें। वहीं सत्ताधारी पार्टी और सरकार को दिक्कत है तो सीधे विपक्ष के घरों में घुसकर दंगा फ़साद करें। अब राजनीति दल जनता को बकस दें।
धर्म के तीन अंग हैं-- 1-सापेक्ष, 2-अध्यात्म, 3-उपासना
बैठकी जमते हीं उमाकाका बोल पड़े --"सरजी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले के हालिया बयान कि "इमर्जेंसी काल में कांग्रेस द्वारा जबरन संविधान की प्रस्तावना में ठूंसे गये शब्द "धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद" को हटाया जाना चाहिए"। इस बयान ने एक नये विवाद को जन्म दे दिया है। सवाल ये है कि संविधान की प्रस्तावना में इन शब्दों को जोड़ने का औचित्य क्या था!! जबकि संविधान के निर्माण के समय हीं इसमें धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा निहित थी!"
काकाजी, संविधान की अवधारणा में निहित होने के बावजूद कांग्रेसी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी के दौरान,42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 के तहत, प्रस्तावना में संशोधन करते हुए पंथनिरपेक्षता को जोड़ा। पंथनिरपेक्षता का तात्पर्य धर्मनिरपेक्षता से है। जिसका अर्थ यह लगाया गया कि भारत सरकार न तो किसी धार्मिक पंथ का पक्ष लेगी और न हीं किसी पंथ का विरोध करेगी। लेकिन दुर्भाग्य है हिंदुओं का! जिस कांग्रेस पर हिंदुओं ने विश्वास किया वो संविधान की मूल भावना का गला घोंटने के क्रम में, इस्लामिक आधार पर विभाजित और हिंदुओं के हिस्से के भारत को गजवा-ए-हिंद करने के षड्यंत्र के तहत, संविधान को हीं इस्लामिक संविधान बना डाला।--मास्टर साहब मुंह बनाये।
एकदम सही बोले हैं मास्टर साहब, दो-दो पापीस्तान ईस्ट और वेस्ट बनाये गये तो बाकी बचे खुचे बीच के भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित होना चाहिए था लेकिन गांधी और नेहरू जैसों की षड़यंत्रकारी कांग्रेस ने वो कभी होने नहीं दिया बल्कि बंटवारे के बाद,वो सारे संवैधानिक प्रक्रम किये जिससे शेष भारत भी मुस्लिम राष्ट्र बन जाये।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।
मुखियाजी, आजादी के बाद से हीं कांग्रेस ने तुष्टीकरण का ऐसा खेल खेला कि आज धर्मनिरपेक्ष भारत में बहुसंख्यक हिंदुओं की ये स्थिति है कि इनके अयोध्या के श्रीराम मंदिर की सुरक्षा हेतु एनएसजी, काशी विश्वनाथ की सुरक्षा हेतु एटीएस का, वैष्णो देवी की सुरक्षा हेतु सीआरपीएफ की, बाबा अमरनाथ की यात्रा की सुरक्षा हेतु 70 हजार सुरक्षा कर्मी लगाना पड़ रहा है। जबकि एक भी मस्जिद नहीं जिसे सुरक्षा की आवश्यकता हो। --सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।
सरजी के पिताश्री स्व.पंडित शम्भु नाथ पाठक ने 1995 में एक पुस्तक "भारत में धर्मनिरपेक्षता,इस लोक के लिए श्राप" लिखा था जिसकी समालोचनात्मक विवेचना,तत्कालीन मुख्य मिडिया श्रोत,बीबीसी पर हुई थी। इस पुस्तक में उन्होंने सिद्ध किया था कि कोई धर्मनिरपेक्ष हो हीं नहीं सकता। सरजी, धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में उनके विचारों को रखिये न!!--डा.पिंटु मेरी ओर देखकर।
डा. साहब, पुस्तक के आधार पर कहा जा सकता है कि धर्मनिरपेक्ष का सही अर्थ बहुत कम लोगों को ज्ञात है। पुस्तक में वर्णित धर्मनिरपेक्षता को समझने के पहले संक्षेप में धर्म को समझिये--"प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए, समस्त बुराइयों से परहेज़ करते हुए, परिवार, समाज एवं राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, परमब्रह्म परमेश्वर से प्राणीमात्र के कल्याण की कामना हीं धर्म है।"
धर्म के तीन अंग हैं--
1-सापेक्ष,
2-अध्यात्म,
3-उपासना
धर्म में मुख्यतः दस गुणों की कल्पना की गई है जो सापेक्ष द्वारा प्रगट होता है। यथा सत्य, अहिंसा, त्याग, दया, क्षमा, नैतिकता आदि। :-- "धृति: क्षमा दयोऽ त्रेयं शोचं इन्द्रिय निग्रह:। धीर्विद्यता सत्यमऽ क्रोधो दशकर्म: धर्म लक्षणम्।।"
स्पष्ट है विश्व में सनातन हीं एकमात्र धर्म है बाकि ईसाइयत या इस्लाम किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रतिपादित व्यवहार के वो पुंज हैं जो निहित स्वार्थ की पूर्ति हेतु,धर्म के विपरित गुणों को धारित करते हैं। यही सनातन धर्म की विशेषता है कि किसी पंथ विशेष के विरुद्ध आजतक जबरन धर्मांतरण,हिंसा या जिहाद जैसे अमानवीय व्यवहार की आज्ञा नहीं देता। सनातन संस्कृति में "सर्व धर्म सम भाव","सर्वे भवन्तु सुखिन:","वसुधैव कुटुंबकम्","अहिंसा परमो धर्म" जैसे प्रतिमानों की प्रधानता है।--मैं चुप हुआ।
सरजी, आपके पिताश्री ने धर्मनिरपेक्षता को किस रूप में परिभाषित किया है!!इसे स्पष्ट किजिये!!--मास्टर साहब मेरी ओर देखकर।
हं, बात साफ करीं जे राउर पिताजी,धर्मनिर्पेक्ष के बारे में का कहनी!!--मुखियाजी भी उत्सुक दिखे।
मुखियाजी, पिताजी ने स्पष्ट किया है कि आम आदमी, निर्पेक्ष और नि:पक्ष को समान अर्थों में लेते हैं जबकि पेक्ष का अर्थ हीन होता है तो निर्पेक्ष का अर्थ विहीनऔर पक्ष का अर्थ एक तरफ या एक भाग होता है तो नि:पक्ष का अर्थ हुआ तटस्थ। कोई तटस्थ हो ही नहीं सकता या तो आप धार्मिक हैं अथवा अधर्मी। अंग्रेजी शब्द सेक्युलर का हिंदी में हमने अर्थ धर्मनिरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष मान लिया जो गुलामी से भी बदतर है। दुनिया के प्रायः सभी मान्य भाषाओं में सेक्युलर का जो अर्थ दिया हुआ है वो है--धर्मनिर्पेक्ष, धर्मविहीन, अधर्म,पापमय,दुनियावी, सांसारिक, धर्म से उदासीन, धर्म की अवहेलना आदि। हमारे ऋषि,मुनियों ने शास्त्रों में, बहुत पहले हीं धर्मनिरपेक्षता के अवगुणों एवं प्रभावों का वर्णन कर रखा है।----
"शुन:शेषोपनिषद, अध्याय-3,सुक्त-25" ------
"काम: क्रोधो मद: लोभस्य मोह: मत्सर: पशुवृति एव। अनियमन्ते पीड्यन्ति सर्वेषु, धर्मनिरपेक्षस्य षऽठ लक्षणम्।।" अर्थात,काम, क्रोध,मद, लोभ,मोह एवं मत्सर ये धर्मनिरपेक्षता के छः लक्षण हैं। संविधान में वर्णित धर्मनिरपेक्षता का भारत में केवल और केवल सनातनी हिन्दू हीं शिकार हुए और हो रहें हैं क्योंकि यहां न मुसलमान धर्मनिरपेक्ष होता है और न ईसाई। कांग्रेस ने आजादी के साथ ही ऐसे ऐसे संवैधानिक कानून बनाये जिससे हिंदू और उसकी पीढ़ियां अपने धर्म के प्रति उदासीन बनती जाय लेकिन दुसरी ओर अन्य पंथों को फलने फूलने का भरपूर अवसर मिले।--मैं रुका।
ए सरजी, कांग्रेस के शासनकाल का मैं वो दौर भी देखा हूॅं जिसमें कोई भी हिन्दू, चाहे नेता हो या अधिकारी,अपने या सनातन के पक्ष में कुछ भी कहने से हिचकता था भले हीं उनके विरुद्ध धार्मिक आधार पर,अत्याचार क्यों न हो रहा हो! क्योंकि तुरंत उसके सर पे, संप्रदायिक होने का ठप्पा मढ़ दिया जाता था, उसकी स्थिति कुजाति की बन जाती थी।--डा.पिंटु
हाथ चमकाये।
इसमें दो मत नहीं कि भारत में धर्मनिरपेक्षता का जो स्वरूप है वो पूर्णतः छद्म धर्मनिरपेक्षता है। क्योंकि यहां किसी पंथ विशेष के पक्ष में तो किसी धर्म विशेष के विरुद्ध बनाये गये धार्मिक कानून, समानता के सिद्धांत का घोर उल्लंघन करता है। खैर,संविधान में पंथनिरपेक्षता और समाजवाद घुसेड़ने के प्रभावों की समीक्षा कल करेंगे।आज इतना हीं, चला जाय।--कहकर मास्टर साहब उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी......!!!!!!
सैकड़ों वर्षों से सनातनी,जातिवाद का दंश झेलते आ रहें हैं। आजादी के बाद भी,गांधी और नेहरू की कांग्रेस ने सत्ता पर काबिज रहने और हिंदुओं में द्वेष फैलाने और उनके विनाश हेतु संविधान में जातिगत आरक्षण की कील ठोक दी है। उद्देश्य बताया गया कि आरक्षण से पिछड़े, दलितों, वंचितों को अवसर मिलेगा और वे आर्थिक रूप से विकास के मुख्य धारा में आ जायेंगे। लेकिन आज 10 बर्षो के लिए निर्धारित संवैधानिक आरक्षण, चिरंजीवी हीं नहीं हो गया बल्कि आजादी के 78 साल बाद इसका दायरा और भी बढ़ता जा रहा है। स्पष्ट है आरक्षण का उद्देश्य वंचितों को उपर उठाने का नहीं था। यदि संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया गया होता तो आज भारत विश्व में सबसे विकसित राष्ट्र होता लेकिन उद्देश्य तो हिंदुओं को बांटकर "गजवा-ए-हिंद" करना था।सच पुछिये तो जातिवाद भारतीय राजनीति का मुख्य आधार बन चूका है जिसपर जातिवादी पार्टियां और नेता अपनी रोटी सेंक सेंक कर सत्ता का सुख भोगते हैं। अबतक का इतिहास कहता है कि जातिवादी राजनीति का लाभ सिर्फ और सिर्फ तथाकथित नेता और उसका परिवार हीं उठाता रहा है लेकिन इसका दुष्परिणाम सभी हिन्दू और हिंदुस्तान झेल रहा है।
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद विपक्षियों के पास सत्ता तक पुनः पहुंच बनाने के टूल्स के रूप में एक मात्र,जातिवादी राजनीति हीं नजर आ रहा है तभी तो हिंदुओं में बहुसंख्यक तबका-- पिछड़े और दलीत को साधने की राजनीति हेतु जातिय जनगणना को मुद्दा बनाया गया लेकिन मोदी सरकार ने आने वाले जनगणना में जातिगत जनगणना कराने की बात कहकर उन्हें मुद्दा विहीन कर दिया।
लेकिन यूपी और बिहार में एमवाई अर्थात मुस्लिम और यादव की राजनीति करने वाले सपा के अखिलेश यादव और लालू लाल- तेजस्वी यादव को यूपी के इटावा में घटित यादव जाति के कथावाचकों की जातिय धूर्तता और अभद्र व्यवहार पर ब्राह्मणों द्वारा की गई प्रतिक्रिया, एक अवसर के रूप में दिखने लगा है। ये जातिवादी नेताओं को ये नहीं दिख रहा कि कथावाचन जैसे पवित्र पथपर आसीन व्यक्ति ने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार क्यों किया! यदि इनकी मंशा ठीक होती तो नकली आधार कार्ड बनाकर अपनी जाति ब्राह्मण क्यों दर्शाया!! अर्थात ये कथावाचक नहीं धूर्त हैं।
जब यह माना जाता है कि सनातन में कथावाचन करने हेतु जातिय बंधन नहीं है तो जाति छुपाने की क्या आवश्यकता थी!!
ब्राम्हणों द्वारा बनाये गये सन्मार्ग पर चलकर अन्य जातियों के भी साध्वी,संत की श्रेणी में आ गये हैं जिनका विरोध ब्राह्मणों ने किया हो, ऐसा तो नहीं सुना जैसे --- राम रहीम(जाट), रामपाल(जाट), आसाराम(धोबी, सिन्धी), स्वामी नित्यानंद(दलील), स्वामी चिन्मयानंद (दलील),राधे मां(खत्री,सिंधी), साध्वी ऋतम्भरा(लोधी), साध्वी उमा भारती (लोधी), ब्रह्मकुमारी लेखराज बचानी(सिंधी बनिया),संत गणेश्वर (दलील,पाशी), साध्वी प्रभा(यादव), साक्षी महाराज (कुर्मी, पटेल), साध्वी प्रज्ञा (मल्लाह, दलील), साध्वी चिदर्पिता (मोर्य), स्वामी रामदेव (यादव), आदि, आदि।
लेकिन यूपी में हीं इस तरह का वाकया क्या यह सिद्ध नहीं करता कि इसके पीछे हिंदुओं में जातिगत जहर बोने का सुनियोजित षड्यंत्र है!! वैसे भी बिहार में चुनाव सर पर है तो एमवाई समीकरण साधना राजल की मजबूरी है और यूपी में जातिवादी राजनीति के लिए "बांटोगे तो कटोगे" की काट खोजना सपा की मजबुरी है। खैर आइये जातिवाद का समाजशास्त्रीय सच आपके समक्ष रखता हूॅं -------------
हिंदूओं में जातिवाद से सामान्यत: तात्पर्य "जाति व्यवस्था" में कालांतर एवं परिस्थिति वश उपजे- नियमों, कायदे, कानुनों के नाकारात्मक पक्षों को विशेष अर्थों में संक्षिप्तिकरण से है जिसका उपयोग निहित स्वार्थ के मद्देनजर किया जाता है |यहाँ स्पष्ट कर दूं कि सिक्के के दो पहलू की तरह हर व्यवस्था के साकारात्मक एवं नाकारात्मक पक्ष होते हैं लेकिन जातिवाद में जातिव्यवस्था के साकारात्मक पक्ष से कोई लेना देना नहीं होता |
वैदिक काल से हीं हिंदू समाज, खुली व्यवस्था के तहत्, चार वर्णों में विभाजित था क्रमशः- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र |जिससे समाज अपनी चार मूलभूत आवश्यकताओं क्रमशः- ज्ञान, रक्षा, आजीविका एवं श्रम की आपूर्ति करता था |सामाजिक प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न, विसंगतियों के चलते ताकि मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति में बाधा न हो इसे जन्मना बनाया गया |फिर यही वर्ण समूहों ने भोगोलिक विस्तार, विभिन्न व्यवसायिक क्षेत्र विस्तार, रक्तशुध्दि की अवधारणा, प्रजातिय भेद आदि को समाहित करते हुए विभिन्न जातियों का स्वरूप लेता गया |
लेकिन इन विभिन्न जातियों के बीच मानवीय एवं सामाजिक सहयोगात्मक संबंध परस्पर निर्भरता एवं सामाजिक समरसता को परिलक्षित करता था |पुनः उत्तर वैदिक काल एवं मध्य काल के आरम्भ से ही विदेशी आक्रमणकारियों का आना शुरू हो गया |चूकि समाज की सुरक्षा का भार एक छोटे समूह,सिर्फ क्षत्रियों पर हीं अवलंबित होने के कारण और अन्य वर्ण की उदासीनता के चलते , आक्रमणकारियों को हिंदूस्तान में सत्ता स्थापित करने में आसानी हुई और बहुसंख्यक हिन्दूओं पर शासन करने का अवसर मिला जिसे स्थायित्व देने हेतु विदेशी आक्रमणकारियों ने बहुसंख्यक हिंदूओं में परस्पर फूट और घृणा के संचार हेतु जातिगत घृणा, व्यवसायिक भेदभाव, छूआछूत, सामाजिक दूराव आदि जैसे हिन्दू संगठनात्मक पहलूओं को कमजोर करने के अनेकों साजिश का सहारा लिया और कामयाब भी हुए जिसमें प्रमुख था - असली मनुस्मृति में परस्पर विभिन्न वर्णों के बीच भेद और घृणा उत्पन्न करने वाले श्लोकों की रचना कर ठूसना| असली मनुस्मृति में मात्र 630 श्लोक हीं थे जिसमें मुगलों और बाद में अंग्रेजों ने कृत्रिम घृणात्मक श्लोक भरे जबकि मनुस्मृति में चारों वर्णों को समान महत्व दिया गया था ||आज मनुस्मृति में हजारों श्लोक मिलेंगे| ये कहाँ से आये ❓ये जबरदस्त शाजिस थी जिसका लाभ मुगलों और अंग्रेजों की तरह,आज के जातिवादी राजनितिज्ञ भी उठा रहे हैं |
आरम्भ में शक आये, हुण आये लेकिन भारतीय संस्कृति ने उनका अलग अस्तित्व नहीं रहने दिया, उन्हें अपने में आत्मसात कर लिया लेकिन अरबों , मुगलों और फिर अंग्रेजों को आत्मसात नहीं कर पाये |इन लोगों ने हीं भारत में स्थायी शासन एवं सत्ता के क्रम में हिंदूओं के जातिव्यवस्था में परस्पर घृणा, छूआछूत जैसे अमानवीय व्यवहार को षणयंत्र के तहत्, सत्ता से चिपके हिंदूओं को माध्यम बना उल्लू सीधा किये |
जिस तरह अरबों,मुगलों और अंग्रेजों ने "जातिवाद"को हिंदूओं के सामाजिक संगठन को क्षतविक्षत करने हेतु,अपने स्वार्थ में उपयोग किया वही काम आजादी के 78 साल बाद भी राजनीतिक दलों एवं राजनीतिक नेताओं द्वारा किया जा रहा है😡😡 |आजादी के बाद इतने बरसों में जातिव्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आ चूका है लेकिन जनता को मूर्ख बनाने का सिलसिला आज भी कायम है | आजाद भारत में,जातिव्यवस्था का सहारा लेकर सत्ता सुख भोगने और वोट की राजनीति करने में जातिवाद एक सबसे शसक्त जरिया बन चुका है |
आइये देखते हैं जातिवाद कहाँ है !!! -- स्कूलों में है❓--नहीं ट्यूशन में है❓-- नहीं राशन की दूकान में है- नहीं बैंक में है❓-- नहीं होटलों में है❓-- नहीं थियेटरों में है❓--नहीं पान की दूकान पर है❓-- नहीं बस, ट्रेन, हवाईजहाज में है❓-- नहीं सब्जी मंडी में है❓-- नहीं विभिन्न राजनीति दलों में है❓-- नहीं शमशान में है❓-- नहीं बाजार में है❓-- नहीं किसी व्यवसाय में है❓-- नहीं विभिन्न उत्सवों के आयोजन के अवसर पर पार्टी होती है उसमें ❓-- नहीं चाय की दुकान पर है❓-- नहीं शहरों, देहातों में छूआछूत आदि दिखता है❓-- नहीं जब उपरोक्त कहीं जातिवाद दिखता नहीं है तो फिर !!!!!! ये कहाँ दिखता है❓-- जी, ये दिखता है ➡ ये दिखता है संबिधान में, ये दिखता है सरकारी नौकरियों में, ये दिखता है सरकारी लाभकारी योजनाओं में, ये दिखता है शिक्षा के क्षेत्र में, ये दिखता है सबर्णों को प्रताड़ित करने में (st/sc act), ये दिखता है राजनीतिक दलों एवं नेताओं के मुख में, ये दिखता है मिडिया के विभिन्न चैनलों में-- एक दलित या आरक्षित वर्ग की महिला या युवती के साथ बलात्कार हो जाय तो सारे मिडिया वाले और नेताओं का तांता लग जाता है और वहीं सैकड़ों सबर्ण महिला या युवती के साथ हो तो नेता और मिडिया गुंगे हो जाते हैं |
अब जातिवाद के नाम पर इस देश में कितना अमानवीय व्यवहार स्वीकृत है इसको ऐसे समझें--
हरिजन अपने को हरिजन कहे तो सरकारी नौकरी से लेकर सैकड़ों सरकारी सुविधाएं और यदि आप हरिजन को हरिजन कहें तो आपको संभवतः 10 साल के पहले हाईकोर्ट से बेल भी न मिले |
मैं तो राहत की सांस ले रहा हूॅं इस बात को लेकर कि जब इंदिरा गांधी ने 1984 में सोवियत इंटरकाॅसमाॅस कार्यक्रम के तहत सोयुज टी-11 पर यात्रा करने वाले प्रथम भारतीय राकेश शर्मा को चुना,जो एक ब्राह्मण थे। इस अवसर पर आरक्षण की बात नहीं की गई !! आश्चर्य है, मोदी ने जब एक ब्राह्मण, हिमांशु शुक्ला को अंतरीक्ष सेंटर पर जाने वाले प्रथम भारतीय के रूप में चुना तो ये जातिवादी नेता चुप क्यों थे!! यहां आरक्षण की बात क्यों नहीं किये!!
आज के भारत का ये है सच्चा जातिवाद
परिणाम- देश में भ्रष्टाचार से लेकर हर प्रकार की प्रगति में बाधा हीं बाधा| तो ये है इस तथाकथित आधुनिक भारत में जातिवाद का सच्चा स्वरूप जिससे न राष्ट्र का भला संभव है और न जनता का | हाँ अगर इससे किसी के अस्तित्व पर घोर संकट दिख रहा है तो वो है-- हिंदू और हिंदूस्तान
प्रशांत किशोर जी की पहल के साथ जुड़कर बिहार में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को मजबूत करने के लिए जन सुराज में जुड़े हैं : मनीष कश्यप
जन सुराज की व्यवस्था परिवर्तन के अभियान को आज एक नई ऊर्जा मिली जब चर्चित यूट्यूबर मनीष कश्यप औपचारिक रूप से जन सुराज परिवार में शामिल हो गए। मनीष कश्यप की पहचान सोशल मीडिया के माध्यम से जन सरोकार के विषयों को उठाने वाले की रही है।
पटना में जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने मनीष कश्यप का स्वागत करते हुए कहा, "मनीष कश्यप कोई नेता या सिर्फ यूट्यूबर नहीं हैं, वे बिहार में व्यवस्था परिवर्तन में अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं। वे हमेशा बिहार के उन लोगों के साथ खड़े रहे हैं जिनके साथ अन्याय हुआ है। उनका उद्देश्य समाज को कुछ देना है, न कि उसे नोचना। उनका जुड़ाव इस बात का संकेत है कि अब राजनीति में ईमानदारी और व्यवस्था परिवर्तन की बात ज़मीन पर असर कर रही है।"
प्रशांत किशोर जी की पहल के साथ जुड़कर बिहार में व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई को मजबूत करने के लिए जन सुराज में जुड़े हैं : मनीष कश्यप
इस अवसर पर मनीष कश्यप ने कहा, “बिहार में वास्तविक बदलाव लाने के लिए केवल सवाल पूछना ही नहीं, बल्कि खुद जवाब बनने की ज़रूरत है। इसी सोच के साथ मैं जन सुराज से जुड़ रहा हूं।” उन्होंने आगे कहा, “प्रशांत किशोर जी ने बिना जाति-धर्म के चश्मे से समाज को देखने की जो पहल की है और व्यवस्था परिवर्तन की बात को जन-जन तक पहुंचाया है, उनके साथ जुड़कर मैं स्वयं को जनसेवा के लिए समर्पित करना चाहता हूं।”
इस मौके पर जन सुराज के प्रदेश अध्यक्ष मनोज भारती, वरिष्ठ अधिवक्ता वाई. बी. गिरी, पूर्व विधायक किशोर कुमार, विधान पार्षद अफाक़ अहमद, महासचिव सरवर अली और युवा अध्यक्ष प्रोफेसर शांतनु उपस्थित थे।
भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख इंजीनियरिंग स्नातक तैयार होते हैं
कोई भी राष्ट्र तब तक स्थायी एवं समावेशी विकास नहीं प्राप्त कर सकता, जब तक वह अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) को अपनी नीतियों के केंद्र में स्थान नहीं देता। ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति, अमेरिका का 20वीं सदी में तकनीकी महाशक्ति के रूप में उदय,और चीन का हालिया प्रौद्योगिकी प्रभुत्व—ये सभी इस तथ्य के प्रमाण हैं कि जिन देशों ने विज्ञान एवं नवाचार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी, उन्होंने वैश्विक पटल पर अपनी अलग पहचान बनाई।
भारत ने हाल के वर्षों में राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान (एनआरएफ), सेमीकंडक्टर मिशन, क्वांटम प्रौद्योगिकी मिशन तथा उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) जैसी योजनाओं के माध्यम से विज्ञान-आधारित विकास की दिशा में महत्वपूर्ण पहल की है। किंतु सरकारी आँकड़े दर्शाते हैं कि भारत का आरएंडडी व्यय 2023 में 2.12 लाख करोड़ रुपये था, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का केवल 0.64% है। इसके विपरीत, चीन का आरएंडडी व्यय 24 लाख करोड़ रुपये (जीडीपी का 2.4%), दक्षिण कोरिया का 4.81%, अमेरिका का 3.45%, तथा इज़राइल का 5.44% तक पहुँच चुका है। यही कारण है कि वैश्विक नवाचार सूचकांक (2024) में भारत का स्थान 40वाँ, जबकि चीन का 12वाँ, अमेरिका का 3रा, और दक्षिण कोरिया का 5वाँ है।
विश्वविद्यालयों में शोध की वास्तविक स्थिति
भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग 15 लाख इंजीनियरिंग स्नातक तैयार होते हैं, परंतु उनमें से आधे से अधिक को अनुसंधान या नवाचार आधारित रोजगार के अवसर नहीं मिल पाते। यूजीसी और शिक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, देश में पीएचडी या एमफिल करने वाले विद्यार्थियों का अनुपात मात्र 15% है, जबकि अमेरिका, जर्मनी और दक्षिण कोरिया में यह आंकड़ा 30% से अधिक होता है।
भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रति अध्यापक औसत अनुसंधान अनुदान 30 लाख रुपये से कम है, जबकि अमेरिका में प्रति प्रोफेसर यह राशि 2 करोड़ रुपये और चीन में 1 करोड़ रुपये से अधिक पहुँचती है। इसके अलावा, भारत में पेटेंट आवेदन दर प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 12-15 पेटेंट है, जबकि चीन में यह 250, अमेरिका में 140 और जापान में 160 से भी अधिक है।
शोधकर्ताओं के सामने प्रमुख चुनौतियाँ-
विश्वविद्यालयों और उद्योगों के बीच सहयोग की कमी, जिससे शोधार्थियों के प्रायोगिक कार्य का औद्योगिक अनुप्रयोग सीमित रह जाता है। पेटेंट, बौद्धिक संपदा अधिकार और शोध फंडिंग की प्रक्रिया में पारदर्शिता और समयबद्धता का अभाव। शोध परियोजनाओं के लिए स्थायी वित्तीय सहायता एवं इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी, जिससे कई प्रतिभाशाली शोधार्थी विदेश पलायन कर जाते हैं। शोध परिणामों के व्यावसायीकरण के लिए स्टार्टअप्स और उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने वाली नीति की अपर्याप्तता।
आरडीआई योजना : संभावनाएँ और महत्व- भारत सरकार द्वारा 1 जुलाई 2025 को स्वीकृत अनुसंधान, विकास एवं नवाचार (RDI) योजना, 1 लाख करोड़ रुपये के विशेष कोष के माध्यम से उभरते और सामरिक क्षेत्रों में निजी निवेश को प्रोत्साहित करेगी। योजना के तहत क्वांटम प्रौद्योगिकी, स्वच्छ ऊर्जा, एयरोस्पेस, सेमीकंडक्टर इत्यादि में शोध करने के लिए निजी कंपनियों को शून्य या अत्यल्प ब्याज दर पर दीर्घकालिक ऋण अथवा इक्विटी निवेश की सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
यह योजना न केवल वित्तीय सहायता प्रदान करेगी, बल्कि सरकार स्वयं एंकर निवेशक के रूप में कार्य करेगी, जिससे विश्वविद्यालयों और निजी उद्योगों के बीच साझेदारी को प्रोत्साहन मिलेगा। इस योजना में पारदर्शी और प्रतिस्पर्धात्मक प्रक्रिया से फंड आवंटन की व्यवस्था की गई है, ताकि वास्तविक शोध परियोजनाओं को ही समर्थन मिल सके।
अंतरराष्ट्रीय अनुभव से सीख - अमेरिका की डीएआरपीए (DARPA) ने विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और निजी कंपनियों के सहयोग से इंटरनेट, सौर ऊर्जा, जैव चिकित्सा अनुसंधान आदि क्षेत्रों में क्रांति की। जापान के पूर्व एमआईटीआई ने शोध एवं उद्योग के बीच पुल बनाकर देश को 20वीं सदी में तकनीकी महाशक्ति बनने में सहायता की।चीन में अलीबाबा, हुआवेई जैसी कंपनियों ने पिछले दशक में आरएंडडी निवेश में तेजी से बढ़ोतरी की, और 2022 में चीन के निजी क्षेत्र का योगदान 70% से अधिक तक पहुँच गया।
शोधकर्ताओं के दृष्टिकोण से सुझाव-
विश्वविद्यालयों में पेटेंट सहायता केंद्र सक्रिय किए जाएँ, ताकि शोधार्थी अपने आविष्कारों का पेटेंट करा सकें। शोध अनुदान की प्रक्रिया को डिजिटल, पारदर्शी और समयबद्ध बनाया जाए। विश्वविद्यालयों में इंडस्ट्री-एकेडेमिया पार्टनरशिप को प्रोत्साहन दिया जाए, ताकि छात्र उद्योग के साथ शोध कर सकें। शोध फेलोशिप और छात्रवृत्ति योजनाओं में प्रतिस्पर्धात्मकता लाई जाए, जिससे प्रतिभाशाली विद्यार्थी प्रेरित हों।विश्वविद्यालय स्तर पर नवाचार आधारित स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिए इनक्यूबेशन केंद्र स्थापित किए जाएँ।
निष्कर्षत : यदि आरडीआई योजना को पूरी निष्ठा, पारदर्शिता और शोध-उन्मुख दृष्टिकोण से लागू किया गया और विश्वविद्यालयों में मौलिक शोध को सशक्त बनाने के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया गया, तो भारत 2047 तक आत्मनिर्भर और तकनीकी नवाचार का वैश्विक नेता बन सकता है। इसके लिए नीति-निर्माताओं, विश्वविद्यालयों, उद्योग और शोधकर्ताओं के बीच सहयोग को प्राथमिकता देना अत्यंत आवश्यक होगा, ताकि भारत की युवा शक्ति अपने ही देश में रहकर नवाचार करे और राष्ट्र को वैश्विक नेतृत्व प्रदान करे।
ऐसे में राज्य सरकार की यह प्राथमिकता है कि उन्हें विश्वस्तरीय संसाधन, प्रशिक्षण और अवसर मिले,” उन्होंने कहा
बिहार सरकार के खेल मंत्री श्री सुरेन्द्र मेहता ने कहा कि “बिहार की मिट्टी में अपार खेल प्रतिभा है, जिसे सिर्फ सही दिशा और संसाधनों की जरूरत है।” वे राजधानी पटना में देश की अग्रणी स्वदेशी खेल परिधान निर्माता कंपनी शिव नरेश स्पोर्ट्स प्रा. लि. के रीजनल वेयरहाउस के उद्घाटन अवसर पर संबोधित कर रहे थे। यह दिल्ली के बाहर कंपनी का पहला वेयरहाउस है, जो पूर्वी भारत के खिलाड़ियों और डीलरों के लिए एक नई सुविधा लेकर आया है।
मंत्री मेहता ने कहा कि बिहार के युवाओं ने खेल के हर क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई है। “आज हमारे खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन कर रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार की यह प्राथमिकता है कि उन्हें विश्वस्तरीय संसाधन, प्रशिक्षण और अवसर मिले,” उन्होंने कहा।
उन्होंने शिव नरेश वेयरहाउस की स्थापना को बिहार के खेल उद्यमियों और खिलाड़ियों के लिए “उत्कृष्ट अवसर” बताया और कहा कि इससे न सिर्फ खेलों को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि राज्य में खेल से जुड़ी आर्थिक गतिविधियों को भी बल मिलेगा। मंत्री ने भरोसा जताया कि इससे स्थानीय खेल संसाधनों की उपलब्धता बेहतर होगी और ग्रामीण क्षेत्रों तक खेल संस्कृति को प्रोत्साहन मिलेगा। कार्यक्रम में कंपनी के प्रबंध निदेशक श्री शिव प्रकाश सिंह ने भी कहा कि “पटना में वेयरहाउस खोलना हमारी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता का हिस्सा है।” उन्होंने बताया कि यह केंद्र पूर्वी भारत में स्टॉक की तेज़ डिलीवरी, स्थानीय कोचिंग संस्थानों को बेहतर सप्लाई और खिलाड़ियों को समय पर किट उपलब्ध कराने में सहायक होगा।
उद्घाटन कार्यक्रम में बिहार, झारखंड, बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश से आए डीलरों को सम्मानित किया गया। मंत्री मेहता ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि राज्य सरकार ऐसे प्रयासों को हरसंभव सहयोग देगी, ताकि बिहार खेल के क्षेत्र में देश का अगुवा बन सके।
सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि बिहार का है ग्लोबल भविष्य : विकास वैभव
बिहार एक बार फिर इतिहास रचने को तैयार है, लेकिन इस बार ज्ञान, संस्कृति और राजनीति नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार के मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए। "बिहार बिजनेस महाकुंभ 2025" का आयोजन 3 से 5 अगस्त तक पटना के ज्ञान भवन में होने जा रहा है। इस आयोजन का उद्देश्य है राज्य के स्थानीय उत्पादों और स्टार्टअप्स को वैश्विक पहचान दिलाना और बिहार को भारत के कारोबारी मानचित्र पर चमकता सितारा बनाना। उक्त जानकारी "बिहार बिजनेस महाकुंभ 2025" के संयोजकों ने विद्यापति भवन में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में दी।
यह आयोजन केवल एक ट्रेड फेयर नहीं, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक पुनर्जागरण है। इस मंच पर भागलपुरी सिल्क, मधुबनी पेंटिंग, जैविक कृषि उत्पाद, बांस-मिट्टी के शिल्प और ग्रामीण महिलाओं के बनाए उत्पाद "Made in Bihar" टैग के साथ "Marketed Globally" की दिशा में बढ़ेंगे। यह महाकुंभ बिहार के आत्मनिर्भरता की नई परिभाषा गढ़ेगा।
उक्त अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में आईपीएस अधिकारी श्री विकास वैभव ने कहा कि बिहार अब सिर्फ श्रमदानी नहीं, बल्कि उद्यमिता और नवाचार का गढ़ बनने को तैयार है। राज्य की MSMEs, युवाओं के स्टार्टअप और महिला स्व-सहायता समूहों को वैश्विक निवेशकों के सामने लाने का यह सुनहरा अवसर है। यह आयोजन बिहार को एक 'रोजगार मांगने वाले राज्य' से 'रोजगार देने वाले राज्य' में बदलने की दिशा में एक ठोस कदम है। इस तीन दिवसीय आयोजन में 250 से अधिक ब्रांड्स और स्टार्टअप्स हिस्सा लेंगे, जबकि 30,000 से अधिक आगंतुकों के आने की संभावना है। "ग्लोबल एक्सपोर्ट पवेलियन", "डिस्ट्रिक्ट इनोवेशन शोकेस", "यूथ स्टार्टअप हॉल", "वूमन एंटरप्राइज ज़ोन", और "स्किल टू स्टार्टअप" जैसे ज़ोन इसे एक अद्वितीय व इनक्लूसिव कार्यक्रम बनाते हैं। नीति-निर्माताओं, राजदूतों और उद्योगपतियों की भागीदारी इसे राष्ट्रीय-से-अंतरराष्ट्रीय मंच का रूप देती है।
बिजनेस महाकुंभ की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें ग्रामीण महिलाओं, युवाओं और स्थानीय नवोन्मेषकों को प्राथमिकता दी जा रही है। यह मंच न केवल उनके लिए प्रेरणा बनेगा, बल्कि निवेश और संभावनाओं के नए द्वार भी खोलेगा। इससे बिहार की आर्थिक संरचना को जमीनी स्तर पर मजबूती मिलेगी।
इस महाकुंभ के संयोजकों का स्पष्ट संदेश है कि “बिहार अब सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि ग्लोबल भविष्य भी है।” यह आयोजन राज्य के छुपे हुए टैलेंट, उत्पादों और उद्यमशीलता को दुनिया के समक्ष लाने का अभियान है। यह बिहार के युवाओं को नए सपने देखने और उन्हें पूरा करने का अवसर देगा। मौके पर सुमन कुमार, मोहन कुमार झा, शुभम यादव, निशा मदन झा, हर्ष राजपूत, नितिका कुमारी इत्यादि मौजूद थे।