RSS और BJP एक ऐसा संगठन जहां कोई वक्तव्य देने से पहले संगठन की स्वीकृति लेनी आवश्यक है
भारतीय जनता पार्टी (BJP) का नेतृत्व जब से नरेन्द्र दामोदर दास मोदी को मिला नेतृत्व की जिम्मेवारी तो वहीं अमित शाह को मिला तब से संगठनात्मक संरचना बहुत मजबूत हुआ और जिसका परिणाम यह हुआ कि केंद्र की सत्ता के साथ ही राज्यों में डबल इंजन की सरकारें बनाई। नेतृत्व का प्रभाव ही इसे कहेंगे कि जिस भारतीय जनता पार्टी को सींचने में अटल और आडवाणी के साथ हर राज्य व जिला स्तरीय लोगों का प्रयास रहा जो आज बनकर मोदी और शाह को मिला। हिन्दू राष्ट्र बनाने में लगे रहने का ढोंग करते करते अब नरेंद्र दामोदर दास मोदी और अमित शाह जाति गिनने का काम शुरू कर दिया है।
बंटोगे तो कटोगें का नारा देने वाली राजनीति में भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान शीर्ष के नेताओं ने हर मर्यादा तोड़ कर रख दिया। नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने CAA पर बोलते हुए कहा था कि - "कपड़ों से पहचाने जा सकते हैं दंगाई कहकर एक नाकारात्मक विचार प्रधानमंत्री के रूप में देश को सौंपा। केन्द्रीय नेतृत्व में नरेंद्र दामोदर दास मोदी के आने के बाद मुस्लिम देशों का दर्जनों दौरा और पाकिस्तान में कई बार जाकर यह तो साबित कर दिया कि उनका कथनी और करनी में अंतर है। भारत के नागरिकों को नरेंद्र मोदी ने यह समझाया कि मैं हिंदू हूं और आम लोगों को मुस्लिम से नफ़रत करने की शिक्षा दी।
जैसा की आप सभी जानते हैं कि 22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में बड़ी आतंकवादी घटना हुई और उसके प्रतिशोध में भारतीय सेना के नेतृत्व में तीन-चार दिनों तक चलाया गया। वहीं चंद दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन कहा हैं। कर्नल सोफिया कुरैशी पहली बार दुनिया के सामने आई वह भी अधिकारिक तौर पर जब आपरेशन सिंदूर को लेकर जानकारी साझा करने की जिम्मेवारी सेना ने उन्हें दिया।
आपको जानना चाहिए कि विजय शाह हैं कौन जिसके खिलाफ हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक होकर प्राथमिकी दर्ज कराई, फिर भी वह मध्य प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री के पद पर विजय शाह गर्व के साथ बैठा हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर BNS की धारा 152 के तहत केस दर्ज हुआ मगर कार्यवाही के नाम पर भारतीय जनता पार्टी और आतंकवाद पर जीरो ड्रलेन्स रखने वाले नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने चुप्पी साध ली है।
अगर देश यह स्वीकार कर लिया है कि भारतीय सेना में शामिल और आपरेशन सिंदूर जिसके कंधों पर थी वह कर्नल सोफिया कुरैशी आतंकवादियों की बहन हैं तो यह सोच़ना पड़ेगा कि भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिन मुस्लिम लोगों को सदस्य बनाया गया या जिम्मेवारी सौंपी गई हैं वह आतंकवादियों के रिश्ते में क्या लगते हैं?
वर्तमान समय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बात करें तो उसने माइनोरिटी मंच बनाकर सैंकड़ों मुस्लिम लोगों को जिम्मेवारी सौंपी गई है तो उसमें सबसे पहली बार बेवसाइट पर प्राप्त हुआ तो श्री के साथ सभी के नाम सम्मान के साथ उपलब्ध है। श्री अब्दुल राशिद अंसारी को मंच का अध्यक्ष बनाया गया है।
आगे बढ़ते हैं तो वर्तमान बिहार राज्य में राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान जो कि मुस्लिम हैं और नाम से ही पहचाना जा सकता है उन्हें विजय शाह के शब्दों में आतंकवादियों का भाई क्यों ना माना जाए ?
वहीं नजमा हेपतुल्लाह जो भारतीय जनता पार्टी के माध्यम से सदन के सदस्यों के साथ जब मणीपुर को जलाया गया तो राज्यपाल थी। इन्हें विजय शाह के शब्दों में आतंकवादियों की बहन कहा जाए ?
और अगर आगे बढ़ते चले तो पाएंगे कि अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में चली पहली सरकार में सैयद शाहनवाज हुसैन को संसद का सदस्य ही नहीं बल्कि उन्हें केन्द्रीय राज्यमंत्री भी बनाया गया था और नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी के नेतृत्व में भले ही टिकट नहीं दिया भारतीय जनता पार्टी ने लेकिन 2020 में बिहार का उद्योग मंत्री पद पर बैठाया। तो नाम से जाना जाता है कि मुस्लिम समुदाय के आने वाले हुसैन को विजय शाह के शब्दों में आतंकवादियों का भाई क्यों ना माना जाए ?
और आगे बढ़ते हैं तो पता चलता है कि पीएम मोदी ने अपने पहले कैबिनेट में मुख्तार अब्बास नकवी मंत्री बनाया था। 2014 में केंद्रीय राज्यमंत्री और 2016 में कैबिनेट मंत्री बनाए गए। वहीं मोदी काल में 2019 में दोबारा केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री बनाए गए। थोड़ा और पीछे जाए तो अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री भी थे। वहीं मुख्तार अब्बास नकवी को भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था। तो आप समझते हुए आगे बढ़े तो विजय शाह के शब्दों में आतंकवादियों का भाई क्यों ना समझा जाए।
एक और नाम की ओर बढ़ते हैं तो पाते हैं कि सैयद ज़फ़र इस्लाम एक भारतीय राजनीतिज्ञ और उत्तर प्रदेश राज्य से राज्यसभा के पूर्व सांसद हैं । वह वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ताओं में से एक हैं। इस्लाम एक पूर्व निवेश बैंकर और ड्यूश बैंक की भारतीय सहायक कंपनी के पूर्व प्रबंध निदेशक हैं । उन्होंने 2017 से 2020 तक एयर इंडिया के गैर-आधिकारिक स्वतंत्र निदेशक के रूप में भी कार्य किया । ऐसे लोगों को जिन्हें भारतीय जनता पार्टी ने भारत में बड़े बड़े जिम्मेवारी सौंपी वैसे लोगों को भाजपा के लिए वर्तमान मध्य प्रदेश के मंत्री के शब्दों में आतंकवादियों का भाई क्यों ना समझा जाएं?
थोड़ा और नजदीक समय में देखते हैं तो रिकमन मोमिन को मेघालय बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष 2023 बनाया गया तो ऐसे को भी आतंकवादियों का भाई क्यों ना समझा जाएं।
आज का यह आलेख इस आधार पर लिखा गया हैं क्योंकि भारतीय न्याय संहिता ( BNS ) के आधार पर भारतीय न्यायपालिका के सर्वोच्च न्यायधीशों के द्वारा जब मध्य प्रदेश सरकार को आदेश दिया तो FIR में भी धोखाधड़ी किया गया और पुनः हाईकोर्ट ने आपत्ति जताई तो पुनः एक नया FIR हुआ और इसके आधार पर 7 साल की सज़ा मिल सकती हैं या कहें इस धारा के तहत 7 साल की सज़ा सुनिश्चित हैं।
लेकिन भारतीय जनता पार्टी के होने के कारण सजा और पद मुक्त करने की स्थिति नहीं दिखाई देती हैं। अगर मुस्लिम देश के लिए खतरा है तो नरेंद्र दामोदर दास मोदी का पाकिस्तान में बिना सूचना पहुंच कर बिरियानी खाना कैसा कदम था। वहीं नरेंद्र दामोदर दास मोदी अपने प्रधानमंत्री के रूप में दुनिया के दर्जनों मुस्लिम देशों का दौड़ा किया और वहां के सत्ताधीशों के साथ मिलकर मस्जिदों में नमाज अदा किया सर झुकाया इसे क्या कहेंगे?
देश का शासक ऐसा हो कि जो बोले वह करें।
कथनी और करनी में अंतर देश के लिए ही खतरा नहीं है बल्कि आतंरिक सुरक्षा और शांति के लिए भी खतरा है। जिसे लगातार देश महसूस कर रहा है। देश में लाखों युवाओं ने नरेंद्र दामोदर दास मोदी को अपना आदर्श मानकर हिन्दू धर्म सर्वोपरि के नारों के साथ छोटे छोटे क्षेत्रों में हिन्दुत्व को मजबूत करने का प्रयास करते रहे और सैकड़ों नवजवानों की बलि चढ़ा दी। वहीं उन नवयुवकों को 2014 के बाद हिन्दुत्व के काम के कारण कई बार जेल जाना पड़ा और दर्जनों मुकदमों से रोज गुजरना पड़ता है।
देश में अब धर्मवाद के बाद जातिवादी व्यवस्थाओं को मजबूती मिलने की तैयारी हैं और मारकाट की नींव रख दी गई हैं।
इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में......
बैठकी जमते हीं मास्टर साहब बोल पड़े--"सरजी, पाकिस्तान के साथ हुए तीन दिनों के युद्ध ने हम भारतियों को सोचने पर बाध्य कर दिया है कि अगर 16 मई 2014 को हमारे देश की जनता ने आदरणीय मोदीजी को देश का प्रधानमंत्री नहीं बनाया होता तो आज हमारी कितनी दुर्गत की स्थिति रहती!! जनता ने मोदीजी के कंधे पर देश चलाने की जिम्मेवारी सौंप दी। उसके बाद से हीं भारत हर क्षेत्र में सशक्त होता चला गया। चाहे वो अर्थव्यवस्था हो या राष्ट्रीय सुरक्षा व्यवस्था, गरीबी उन्मूलन हो या स्वास्थ्य सुविधा, यातायात व्यवस्था हो यां वैज्ञानिक अनुसंधान उपलब्धियां, कृषि उत्पादन हो या शिक्षा व्यवस्था, स्वदेशी उत्पादन हो या वैश्विक प्रस्थिति आदि आदि। आज जिसको जो भाषा समझ में आती है हम उसको,उसकी भाषा में हीं समझाने में सक्षम हैं। 11 बर्षों में हमारा भारत कितना बदल गया है!!"
मास्टर साहब, हमें आज से 12-13 साल पहले का, कांग्रेस के शासनकाल में हमारे सेना की कितनी दयनीय स्थिति थी वो याद है। भारतीय सेना के पास न हथियार थे और न गोला बारूद। पाकिस्तानी आंतकी हमारे सैनिकों के सिर काट कर उससे फुटबॉल खेलते थे लेकिन मनमोहन सिंह, लालू और मुलायम की सरकार खामोश रहती थी।--उमाकाका दुखी लगे।
काकाजी, मुझे भी याद है जब तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.के. सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह,को चिट्ठी लिखी थी कि हमारी सेना के पास गोला बारूद की कमी है,हमारा एयर डिफेंस सिरस्टम कमजोर है, हमारे सैनिकों के लिए न प्रयाप्त बुलेट प्रूफ हैं और न गाड़ियां,हालत चिंताजनक है। लेकिन सरकार ने ध्यान हीं नहीं दिया।कांग्रेस सरकार को देश की सुरक्षा की चिंता हीं नहीं थी।--कुंवरजी अखबार पलटते हुए।
अजी कांग्रेस सरकार में कोई भी रक्षा सौदा बगैर दलाली और कमिशनखोरी के होता हीं नहीं था। राफेल जैसे सौदे, कमिशन तय नहीं होने के चलते अटके रहे। बोफोर्स तोप घोटाला तो याद हीं होगा!!कांग्रेस सरकार में रक्षा सौदे बर्षों लटके रहते थे, स्वदेशी निर्माण के प्रति सरकार की रुचि हीं नहीं दिखी। देश की सुरक्षा से समझौता कर लिया जाता था लेकिन जेब भरने का लालच नहीं छोड़ा जाता था।--सुरेंद्र भाई मुंह बनाये।
अजी, कांग्रेस राज में लूट के प्रमाण समझने के संदर्भ में,सेना के लिए सिर्फ जुते खरीद की असलियत समझियेगा तो आप दंग रह जाएंगे!!जयपुर की कंपनी सेना के लिए जुते बनाती थी जो इजरायल खरीद लेता था फिर वही जुते भारत सरकार,सैनिकों के लिए खरीदती थी। इजरायल से भारत 25000 रुपये प्रति जोड़ी की दर से खरीदता था। मोदी सरकार में रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर वहीं जुते जयपुर की कंपनी से डायरेक्ट मात्र 2200 रुपये में सेना को उपलब्ध कराने लगे। अब आप सोचिये!! बर्षों तक कांग्रेस ने कैसी लूट मचा रखी थी।--मास्टर साहब बुरा सा मुंह बनाये।
ठीक बोले मास्टर साहब,2014 के बाद जब मोदी सरकार आयी तब जाकर, सेना की हालात में तेजी से सुधार होना शुरू हुआ। प्रधानमंत्री ने देश की सुरक्षा को गंभीरता से लिया और सेना को वो सारे साजो सामान उपलब्ध करायें जो उनकी जरूरत थी। मेक इंडिया के तहत भारत स्वदेशी हथियार बनाने और इस क्षेत्र में विकास पर ध्यान केंद्रित किया गया। नतीजतन तेजस फाइटर जेट, प्रचंड अटैक हैलिकॉप्टर, रुद्र,एचटीटी-40 ट्रेनर प्लेन, धनुष तोप, पिनाका रॉकेट सिस्टम,आकाश मिसाइल डिफेंस सिरस्टम, भारत ने खुद बनाया। रुस से मिलकर एके-203 रायफल और आज विश्व में तहलका मचाने वाला "ब्रह्मोस मिसाइल" बनाया गया। नौसेना को आइएनएस विक्रांत, वरुणास्त्र टॉरपीडो और अगली पीढ़ी के मिसाइल वेसल्स मिले जिससे हमारी समुद्री सुरक्षा ताकत बढ़ी। विदेशी सौदों में भी पार्दर्शिता रही और फ्रांस से राफेल जेट, इजरायल से एमक्यू -9 ड्रोन, अमेरिका से सी-295 ट्रांसपोर्ट विमान और रुस से एस-400 मिसाइल सिस्टम भारत आया। जिसका परिणाम हमलोगों ने हाल के पाकिस्तान के साथ हुए तीन चार दिनों के युद्ध में हीं देख लिया न!! नतीजतन भारत का लोहा विश्व मानने को मजबूर दिख रहा है।--डा. पिंटू हाथ चमकाये। इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में......
जनता को याद रखना चाहिए कि यही कांग्रेस और विपक्षी हैं जो राफेल और एस-400 को भारत लाने में कितने हाय तौबा और रोड़ै अटका रहे थे। राफेल को लेकर तो रोड़े अटकाने के क्रम में सुप्रीम कोर्ट तक चले गये थे। याद है न!! राफेल डील को लेकर यही राहुल बोला था कि चौकीदार चोर है जिसके लिए उसे कोर्ट से फटकार मिली थी। कहता था --"राफेल डील घोटाला है,एस-400 से ज्यादा जरूरी तो लंच टाइम डिबेट है"। आज देश की जनता सुरक्षित है क्योंकि मोदी ने अपनी 56 इंच की छाती सच में सिद्ध किया है। अन्यथा इन इंडी गठबंधन का राज होता तो हमारी आपकी हेकड़ी मलबे में दबी मिलती।--मास्टर साहब उत्तेजित लगे।
सरजी, मोदी सरकार और हमारी सेना ने सिद्ध कर दिया कि अगर सीमा पार से गोली चलेगी तो जबाब में इधर से गोला चलेगा। अगर तुम हमारे निर्दोषों की हत्या करोगे तो हम तुम्हारे आतंकी अड्डों को नष्ट कर देंगे चाहे पाकिस्तान के किसी कोने में छुपे हो। दुनिया ने देखा और अब तो खुद पाकिस्तानियों ने भी स्वीकार कर लिया है कि भारत ने उसके 9 आतंकी ठिकानों को पुरी तरह तबाह कर दिया है और 100 से अधिक आतंकियों को जहन्नुम में,132 फीट की 72 हूरों के पास भेज दिया है। भारत के ब्रम्होस मिसाइल ने पाकिस्तान के 11 एयरबेस को निष्क्रिय कर दिया है। इतना हीं नहीं जब देखो तब पाकिस्तान परमाणु बम की धमकी देता था। उसके इस अहंकार को भी हमारी सेना ने धूल में मिला दिया। जबकि सिंधु नदी जल समझौता को इतिहास में फेंक दिया। यहां तक कि पाकिस्तान को सीजफायर की रहम मांगनी पड़ी। भारत ने स्पष्ट कर दिया कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।--डा.पिंटू भी रंग में लगे।
ए भाई, इ सीजफायर के बाद कांग्रेसिया सब "आयर लेडी" कही के इंदिरा गांधी के तुलना करत रहले हा स।--मुखियाजी सोफे पर पहलु बदलते हुए।
हां मुखियाजी,चूकी 1971 के भारत और पाकिस्तान युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को बुरी तरह पराजित किया था और बंगलादेश के रूप में पाकिस्तान का विभाजन करवाया था। हां ये वही आयरन लेडी थी जो हजारों भारतीय सैनिकों की कुर्बानी से प्राप्त विजय को थाली में सजाकर जीती जमीन और 93000 हजार पाकिस्तानी सैनिक युद्धबंदियों को सम्मान के साथ वापस पाकिस्तान को सौंप दी थी लेकिन अपने 58 पायलट सहित लगभग 4000 हजार सैनिक युद्धबंदियों को पाकिस्तान के जेलों में यातना सहकर मरने को छोड़ दिया था। हां मुखियाजी, ये वही आयरन लेडी थी जिसने 1971 के युद्ध का हिरो रहे जनरल मानेकशॉ का पेंशन और भत्ते को रोक दिया था क्योंकि मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी के आदेश पर तुरंत हमला न करके,सैनिक कार्यवाही के अनुकूल समय देखकर हमला करना उचित समझा था और जीता भी। ये वही आयरन लेडी थीं जिन्होंने इमरजेंसी का जख्म भारत और भारतियों को दिया था और जबरन लाखों हिंदुओं को नसबंदी की थी ताकि भारत में हिंदुओं की संख्या घटे। छोड़िये, मूर्ख और लालची हिंदुओं के आगे आयर लेडी की क्या पर्दाफाश करुं! बस इतना हीं कहुंगा कि "मोदी" की तुलना इंदिरा से करना, हिंदुओं का मज़ाक़ उड़ाना है।--डा.पिंटू क्षुब्ध लगे।
मोदी सरकार और उसके पहले की कांग्रेस सरकार में अंतर,देश के रक्षा बजट की तुलना से हीं स्पष्ट हो जायेगा। कांग्रेस सरकार का बर्ष 2013-2014 में रक्षा बजट था--2.03 लाख करोड़, रक्षा निर्यात था--686 करोड़। तत्कालीन कांग्रेसी रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा था कि सैन्य हथियार खरीदने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं। जबकि मोदी सरकार का बर्ष 2025-26 का रक्षा बजट है--6.81 लाख करोड़ और रक्षा निर्यात है--23622 करोड़। केवल 5 बर्षों में भारत ने 2 लाख करोड़ के सैन्य हथियार खरीदे। अभी कल मोदी सरकार ने सेना को आवश्यकतानुसार गोला बारूद खरीदने के लिए 40 हजार करोड़ का गिफ्ट दे दिया है।--कुंवरजी अखबार रखते हुए।
जो भी हो, इतना तो सभी मानेंगे कि मोदी शासन के पहले फौज के हाथ बंधे होते थे जबकि आज फौज एक्शन लेने के लिए स्वतंत्र है। तेजस्वी वैज्ञानिकों की अज्ञात कारणों से मौत हो जाया करती थी और वैज्ञानिक कहते थे कि संसाधन उपलब्ध नहीं कराया जाता लेकिन आज हम चांद पर हैं। हमारे वैज्ञानिक देश को सशक्त बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। आज आतंकियों को मोदीजी कहते हैं कि घर में घुसकर मारेंगे जबकि आज आतंकियों से पुछिये तो कहेंगे कि कांग्रेस बहुत अच्छी थी,कांग्रेस ने हमें कभी नहीं रोका। आज हम विश्व की तेरहवीं से चौथी अर्थव्यवस्था बन चूकें हैं।--उमाकाका हाथ चमकाये।
काकाजी, मोदी सरकार का कमाल है कि आज पुरा विश्व भारत की ओर कान और आंख केंद्रीत किये है। खैर आज इतना हीं फिर कल।--कहकर मैं उठ गया और इसके साथ हीं बैठकी भी.....!!!!
स्टेडियम में रोहित शर्मा ने अपने स्टैंड का उद्घाटन अपने माता - पिता से करवाया, बहुत ही बेहतरीन दृश्य
रोहित शर्मा एक सिर्फ़ नाम नहीं बल्कि ब्रांड का नाम हैं।
पुरी दुनिया में बहुत और बहुत बेहतरीन क्रिकेटरों में सुमार हैं रोहित शर्मा। सबसे पहले बात करें तो रोहित शर्मा एक मात्र ऐसा खिलाड़ी हैं जिसने एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 1-2 नहीं बल्कि 3 दोहरे शतक से दुनिया को अपनी उपस्थिति का महत्व बताया।
रोहित शर्मा के संपूर्ण जीवन परिचय के साथ उनके कैरियर पर यह खास रिपोर्ट तैयार कर आपके बीच साझा कर रहा हूं -
जन्म :- 30 अप्रैल, 1987 (38 वर्ष) जन्म स्थान :- नागपुर, महाराष्ट्र उपनाम :- रोहित भूमिका :- बल्लेबाज बल्लेबाजी शैली :- दाएँ हाथ का बल्ला गेंदबाजी शैली :- दायाँ हाथ ऑफब्रेक
रोहित शर्मा का एक परिचय देने के लिए यहां से शुरू करते हैं कि एक स्पष्ट रूप से उत्साहजनक शब्द जो रोहित शर्मा के साथ छाया की तरह रहा है; यहां तक कि कभी-कभी उन्हें परेशान भी करता रहा। ऐसा लगता है कि यह एक बोझ है जिसे क्रिकेट जगत ने उन पर थोप दिया है और राष्ट्रीय स्तर पर एक दशक से अधिक समय के बाद, उन पर इस लेबल का बोझ बढ़ गया है। हर्षा भोगले ने घरेलू सर्किट में फुसफुसाहटों की बात की; कोच और स्काउट्स ने मुंबई के एक किशोर के सहज, मुक्त-प्रवाह वाले स्ट्रोक-प्ले को पहचान लिया। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 50 से अधिक की औसत के साथ शानदार प्रदर्शन करने के बाद, वह तब सुर्खियों में आए जब उन्होंने रणजी स्तर पर नाबाद तिहरा शतक बनाया।
यह सब 2007 के विश्व टी 20 में फॉर्म में चल रहे युवराज सिंह के चोटिल होने के बाद शुरू हुआ, जब रोहित को मेजबान टीम के खिलाफ लीग गेम खेलने के लिए अंतिम समय में आपातकालीन प्रतिस्थापन के रूप में बुलाया गया था। भारतीय पारी की शुरुआत में खराब प्रदर्शन के बाद, 20 वर्षीय खिलाड़ी किंग्समीड में उतरे और पोलक, एनटिनी और मोर्केल जैसे बल्लेबाजों के खिलाफ शानदार अर्धशतक बनाया, जैसे कि वह नेट सेशन कर रहे हों। उन्होंने पारी के अंत तक दबाव में टिके रहने के लिए आश्चर्यजनक परिपक्वता दिखाई, भारत को एक सम्मानजनक स्कोर तक पहुंचाया, जिसका उन्होंने अंततः बचाव किया और दक्षिण अफ्रीका को उनके ही घर में टूर्नामेंट से बाहर कर दिया।
भारतीय क्रिकेट के दीवाने प्रशंसकों को एक जैसे प्रतिस्थापन पसंद हैं। अधिक विशेष रूप से, उन्हें बीते दिनों के साथ समानताएं खोजने का शौक है। आंकड़ों के लिए निरंतर जुनून के साथ, एक क्रिकेट प्रेमी है जो मुंबई के एक शानदार दिखने वाले बल्लेबाज के विचार से अभिभूत हो जाता है, जो स्वतंत्र रूप से बल्लेबाजी करने की शैली के साथ है।
यह बात बहुत सही है कि - रोहित शर्मा को टेस्ट बल्लेबाजी लाइन-अप में नंबर 4 पर महान सचिन तेंदुलकर का लंबे समय से उत्तराधिकारी माना जाता था। आखिरकार, इससे यह तो तय हो गया: अपने शॉट्स खेलने के लिए बहुत समय, तेज गति के खिलाफ भी सहज स्ट्रोक बनाने की क्षमता और शॉट्स की एक विस्तृत श्रृंखला। यह तेंदुलकर के बाद के युग में क्रिकेट के लिए भगवान का उपहार होना चाहिए है न?
रोहित को विश्व टी20 में उनके शानदार प्रदर्शन और उनके प्रभावशाली रणजी ट्रॉफी रिकॉर्ड के बाद चयन के लिए एकदिवसीय टीम में चुना गया। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में सीबी सीरीज़ में अपनी छाप छोड़ी, जिसमें उन्होंने ब्रेट ली और स्टुअर्ट क्लार्क जैसे दिग्गजों और श्रीलंका के बेहतरीन आक्रमण के खिलाफ कुछ महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। विश्व टी20 और सीबी सीरीज़ में इन प्रेरित प्रदर्शनों ने चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें सीमित ओवरों की टीम में लंबे समय तक खेलने का मौका दिया।
हालांकि, असंगति और अपना विकेट गंवाने की आदत के कारण उन्हें टीम में अपनी जगह पक्की करने में संघर्ष करना पड़ा। आलोचकों ने बताया कि उनके पास एक ही गेंद पर बहुत सारे शॉट थे, और इसका मतलब था कि शॉट चयन उनके लिए एक समस्या बन गया था। इसके अलावा, कई विशेषज्ञों ने देखा कि उन्हें शॉर्ट बॉल खेलने में परेशानी होती थी क्योंकि उनका रुख बहुत साइड-ऑन था और उनके पास बैक-एंड-अक्रॉस ट्रिगर मूवमेंट नहीं था। 22 के उनके औसत बल्लेबाजी औसत के साथ कम स्कोर और बिना किसी बदलाव के शुरुआत का मतलब था कि वे 2011 क्रिकेट विश्व कप टीम में अपनी जगह पक्की करने में विफल रहे।
अपने करियर पर नज़र डालें तो रोहित शर्मा को इंडियन प्रीमियर लीग का शुक्रिया अदा करना चाहिए, जिसने उन्हें टीम में बनाए रखा और कई अन्य युवा और प्रतिभाशाली क्रिकेटरों की तरह बाहर नहीं किया, जो राष्ट्रीय स्तर पर उभरे, लेकिन उच्चतम स्तर पर बड़ा नाम नहीं बना सके। आईपीएल के पहले दो वर्षों में, उनका प्रदर्शन शानदार रहा, क्योंकि उन्होंने डेक्कन चार्जर्स के लिए हर बार 350 से अधिक रन बनाए और अपनी फ्रैंचाइज़ी के लिए अपनी योग्यता साबित की। इसके बाद उन्हें 2011 में मुंबई इंडियंस फ्रैंचाइज़ी में स्थानांतरित कर दिया गया और वे पिछले कुछ वर्षों में उनके सबसे लगातार बल्लेबाजों में से एक रहे हैं।
रोहित भारतीय एकादश में अंदर-बाहर होते रहे लेकिन टीम में खुद को स्थापित नहीं कर पाए, उन्हें एक अच्छी तरह से स्थापित भारतीय मध्य क्रम के बावजूद पर्याप्त अवसर दिए गए थे। अफसोस की बात है कि 2010 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ नागपुर टेस्ट के लिए प्लेइंग इलेवन में जगह बनाने के बाद, वह प्रतिष्ठित भारत की कैप प्राप्त करने के बहुत करीब पहुंचने के बाद वार्म-अप फुटबॉल खेल में दुखद रूप से घायल हो गए थे। बाद में घटनाओं के एक दिल दहला देने वाले मोड़ में उन्हें श्रृंखला से बाहर कर दिया गया और उन्हें अगले 4 वर्षों तक टेस्ट में अपनी योग्यता साबित करने का कोई और अवसर नहीं मिला।
रोहित ने 2011 में फिर से आईपीएल मंच पर खुद को साबित किया और वेस्टइंडीज दौरे के लिए एकदिवसीय टीम में वापसी की, जहां उन्होंने पांच मैचों में तीन अर्धशतक बनाए। हालांकि, यह एक और झूठी सुबह साबित हुई क्योंकि उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में सीबी श्रृंखला में कम स्कोर की एक श्रृंखला और श्रीलंका के बुरे सपने के साथ इसका पालन किया, जिसमें 5 पारियों में केवल 14 रन बनाए, जिसमें 2 शून्य शामिल थे। उन्हें पहले से ही अधिक-से-अधिक समय दिया गया था और वे एक निराशाजनक रूप से आकर्षक खिलाड़ी की एक अप्रिय प्रतिष्ठा बनाने लगे थे।
आम तौर पर अस्थिर चयनकर्ता, आश्चर्यजनक रूप से, उनका समर्थन करना जारी रखते थे। आखिरकार, वनडे में सलामी बल्लेबाज के स्थान के लिए दावेदारों की कमी के कारण, भारतीय कप्तान एमएस धोनी ने उन्हें सीमित ओवरों के प्रारूप में सलामी बल्लेबाज के रूप में आजमाने का फैसला किया।
'मास्टरस्ट्रोक' शब्द हमेशा से एक रहस्य रहा है, ऐतिहासिक रूप से इसका इस्तेमाल अस्पष्ट, परिणाम-आधारित तरीके से किया जाता रहा है। रोहित शर्मा को शीर्ष क्रम में पदोन्नत करने के कदम ने इसे मास्टरस्ट्रोक कहने के लिए पर्याप्त लाभ दिया है - भारत को आखिरकार ओपनर के स्थान के लिए एक उम्मीदवार मिल गया था, और रोहित ने लगभग 5 साल तक टीम से बाहर रहने के बाद आखिरकार बदलाव की पटकथा लिखी। सलामी बल्लेबाज के रूप में खुद को खेलने के लिए पर्याप्त समय के साथ, रोहित और धवन ने एक शानदार ओपनिंग साझेदारी बनाई, जिसने 2013 में भारत के अजेय और सफल चैंपियंस ट्रॉफी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर भी, प्रतिभाशाली टैग उनके साथ रहा, और रोहित - आखिरकार - ने इसे जीना शुरू कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एकदिवसीय श्रृंखला में रनों की बरसात करते हुए, रोहित ने 6 आउटिंग में 491 रन बनाए, जिसमें बैंगलोर में निर्णायक एकदिवसीय मैच में 209 रन की तूफानी पारी शामिल थी, जो सचिन तेंदुलकर और वीरेंद्र सहवाग की एकदिवसीय दोहरे शतकों की सूची में शामिल हो गया।
राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गजों के संन्यास लेने के बाद, टेस्ट बल्लेबाजों की एक नई फसल को निखारने की जरूरत थी, और टीम में नए रास्ते खोलने थे। रोहित ने आखिरकार अपने प्रसिद्ध 'पूर्ववर्ती' की विदाई श्रृंखला में ईडन गार्डन्स में वेस्टइंडीज के खिलाफ पहले टेस्ट में भारत के लिए टेस्ट कैप हासिल की। रोहित इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे और उन्होंने तुरंत टेस्ट मैदान को अपनाया, अपनी पहली पारी में रोहित की तरह 177 रन बनाए; मैच के संदर्भ में यह एक महत्वपूर्ण पारी थी, जिसने भारत को गति प्रदान की। उन्होंने अगले टेस्ट में नाबाद 111 रन बनाकर चयनकर्ताओं के समक्ष अपने प्रतीकात्मक बयान को पुख्ता किया, सचिन तेंदुलकर के विदाई टेस्ट मैच में आंसू भरे वानखेड़े को मंत्रमुग्ध कर दिया और वेस्टइंडीज के गेंदबाजी आक्रमण को शांत किया।
चोट के कारण ब्रेक के बाद, रोहित ने खोए हुए समय की भरपाई करने के लिए, ईडन गार्डन्स में एकदिवसीय मैच में 264 रनों की पारी खेली, जिसमें उन्होंने श्रीलंका के असहाय आक्रमण को तहस-नहस कर दिया। उन्होंने पूरी श्रीलंकाई टीम से तेरह रन अधिक बनाए । हालांकि, कोलकाता में उनके शानदार प्रदर्शन के बाद चयनकर्ताओं द्वारा ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुने जाने के बाद एक चिंताजनक प्रवृत्ति जारी रही: कम चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में सफेद गेंद के प्रदर्शन के आधार पर उन्हें विदेशी टेस्ट दौरों के लिए चुना जाना। उन्हें 2013 के अंत में दक्षिण अफ्रीका दौरे के लिए 209 रन बनाने के बाद चुना गया था और वे सीमिंग परिस्थितियों में तकनीकी रूप से अयोग्य दिखे, गेंद की लाइन पर बहुत जल्दी आ गए और ऐसे खेले जैसे कि यह एक असली विकेट हो। वनडे में जल्दी लेंथ पहचानने की उनकी ताकत टेस्ट मैचों में अभिशाप बन गई इसी तरह, 264 रन की पारी के आधार पर आस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुने जाने के बाद, उन्होंने 6 पारियों में सिर्फ एक अर्धशतक बनाया, तेज गति वाले आस्ट्रेलियाई आक्रमण के सामने वे पूरी तरह से असहाय नजर आए, लगातार शरीर से दूर खेलते हुए, पार्श्व गति के लिए अनुकूल परिस्थितियों में लाइन के माध्यम से हिट करने का प्रयास करते हुए और ऑफ-स्टंप के प्रति खराब जागरूकता दिखाते हुए।
फिर भी उन्होंने वनडे में अपना सुनहरा दौर जारी रखा और 2015 विश्व कप अभियान का समापन भारत के दूसरे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी के रूप में किया, जिसमें कुल 330 रन शामिल थे, जिसमें बांग्लादेश के खिलाफ क्वार्टर फाइनल में शतक और दो अर्द्धशतक शामिल थे।
वनडे खिलाड़ी रोहित ने आखिरकार 2016 की शुरुआत में ऑस्ट्रेलिया के एक सीमित ओवरों के दौरे में एक सलामी बल्लेबाज के रूप में एक सफल प्रदर्शन किया, जिसमें उन्होंने लगातार दो शतक और श्रृंखला में 99 रन बनाए और आखिरकार चयनकर्ताओं और अपने कप्तान के भरोसे का जवाब दिया। वह एक दिवसीय राक्षस बन गए थे, जिन्होंने एक आदत बना ली थी - अपनी वनडे पारी की शुरुआत धीमे और स्थिर तरीके से करते थे, लेकिन एक बार जम जाने के बाद वास्तव में किसी भी गेंदबाजी आक्रमण की धज्जियां उड़ा सकते थे। एक विस्तारित घरेलू सत्र के साथ, रोहित को टेस्ट में मौके मिलते रहे और उन्होंने अपनी तकनीक में व्यापक सुधार दिखाया, अपनी पिछली 5 पारियों में चार अर्द्धशतक और एक शतक के साथ, उन्होंने श्रीलंकाई आक्रमण के खिलाफ़ एक अभूतपूर्व तीसरे एकदिवसीय दोहरे शतक के साथ एक शानदार घरेलू सत्र का समापन किया।
अपने सहयोगियों के रूप में प्रतिभाशाली तकनीक और सुस्त लालित्य के साथ, रोहित ने निरंतरता का मार्ग पाया और 2018 से टेस्ट सेट-अप में एक नियमित विशेषता रहे हैं। हालाँकि, उनकी सफ़ेद गेंद की क्षमता ने 2019 में एक और ऊँचाई देखी, जब वे इंग्लैंड में एकदिवसीय विश्व कप में 9 मैचों में 81 की औसत से 648 रन बनाकर सबसे अधिक रन बनाने वाले खिलाड़ी बने, जिसमें 67 चौके और 14 छक्के शामिल थे। 2021 टी20 विश्व कप से ठीक एक महीने पहले, विराट कोहली ने टी20I कप्तान के रूप में पद छोड़ दिया, और इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं था कि अगला कप्तान कौन होगा, रोहित शर्मा सबसे पसंदीदा थे। कुछ महीने बाद, BCCI ने रोहित को 2021-22 के दक्षिण अफ्रीका दौरे के लिए एकदिवसीय कप्तान के रूप में नामित किया। चोट के कारण पूरे दौरे से बाहर रहने के बाद, रोहित ने अहमदाबाद में भारत के 1000वें वनडे (06 फरवरी 2022 को वेस्टइंडीज के खिलाफ) में पूर्णकालिक कप्तानी संभाली। कुछ हफ़्ते बाद, और उम्मीद के मुताबिक, रोहित ने कोहली से टेस्ट कप्तानी संभाली और भारत को श्रीलंका और बांग्लादेश (इंग्लैंड में 2021-22 में इंग्लैंड के साथ सीरीज ड्रॉ) पर अब तक (मार्च 2023 तक) सीरीज जीत दिलाई।
रोहित 2022 टी 20 आई विश्व कप में भारत के कप्तान थे, जहां उनकी टीम को सेमीफाइनल में इंग्लैंड ने बुरी तरह से हरा दिया था। उस हार के बाद, उन्होंने टीम की संस्कृति को बदलने और अपने लड़कों के बीच निडर क्रिकेट का एक ब्रांड स्थापित करने का बीड़ा उठाया। रोहित ने 2023 के वनडे विश्व कप में आगे बढ़कर नेतृत्व किया और टीम को अधिकांश खेलों में धमाकेदार शुरुआत दी। उन्होंने व्यक्तिगत रिकॉर्ड की बहुत अधिक परवाह किए बिना तेजी से रन बनाए और भारत ने अजेय रहते हुए फाइनल में प्रवेश किया। दुर्भाग्य से उन्हें फाइनल में ऑस्ट्रेलिया ने हरा दिया।
रोहित शर्मा को कुछ महीने बाद टी 20 आई विश्व कप में वापसी का मौका मिला। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ग्रुप गेम में भारत के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और फिर इंग्लैंड के खिलाफ सेमीफाइनल में उन्होंने बड़ी पारी खेली और विपक्षी टीम को खेल से बाहर कर दिया। उनकी कप्तानी में ही भारत ने आखिरकार 11 साल के ट्रॉफी के झंझट को खत्म किया और बारबाडोस में 2024 टी 20 आई विश्व कप जीता। रोहित शर्मा ने विश्व कप जीतने के बाद टी 20 आई से संन्यास ले लिया। विश्व कप के बाद, रोहित का फॉर्म थोड़ा खराब रहा, खासकर टेस्ट क्रिकेट में, क्योंकि भारत को न्यूजीलैंड के हाथों 3-0 से घरेलू सफाया झेलना पड़ा और फिर बॉर्डर गावस्कर सीरीज भी हार गई। उन्होंने बीजीटी के अंतिम सिडनी टेस्ट के लिए कप्तान होने के बावजूद खुद को टीम से बाहर कर दिया।
रोहित ने एक बार फिर से फॉर्म हासिल कर लिया जब सफेद गेंद का क्रिकेट फिर से शुरू हुआ, क्योंकि उन्होंने घरेलू द्विपक्षीय श्रृंखला में इंग्लैंड के खिलाफ शानदार शतक बनाया। उन्होंने उस फॉर्म को चैंपियंस ट्रॉफी में भी जारी रखा, और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन फाइनल के लिए बचा कर रखा, जहां उन्होंने भारत के लिए सर्वाधिक रन बनाकर मैन ऑफ द मैच का खिताब जीता और टीम को नौ महीने के अंतराल में दूसरी आईसीसी ट्रॉफी भी जिताई।
अप्रैल 2025 में, टेस्ट टीम के कप्तान रहते हुए, रोहित शर्मा ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की और इस तरह उनके 12 साल के करियर का अंत हो गया।
वर्षों से आईपीएल
आईपीएल ने रोहित शर्मा के लिए बहुत कुछ किया है। जब वह एक युवा, प्रतिभाशाली बल्लेबाज थे, जो निरंतरता के साथ संघर्ष करते थे, तो आईपीएल ने उन्हें प्रासंगिक बने रहने का मौका दिया और उन्होंने 2008-2010 के दौरान डेक्कन चार्जर्स के साथ अपने समय के दौरान इसे दोनों हाथों से पकड़ लिया, और तीनों सीज़न में प्रत्येक में 350 से अधिक रन बनाए। फिर आईपीएल उन्हें वापस उनके घर मुंबई ले गया मुंबई इंडियंस के साथ उनके आँकड़े 2011-13 से उत्तरोत्तर बेहतर होते गए और आखिरकार 2013 में उनका सर्वश्रेष्ठ आईपीएल सीजन - जहाँ उन्होंने 538 रनों के साथ टूर्नामेंट समाप्त किया - एमआई की पहली खिताबी जीत के साथ मेल खाता था।
और अंत में, आईपीएल ने रोहित शर्मा के नेतृत्व वाली एक ऐसी टीम को सामने लाने में मदद की जिसने बहुत से लोगों को प्रभावित किया है। रोहित ने मुंबई इंडियंस को पांच आईपीएल खिताब दिलाए जो एक अद्भुत उपलब्धि है। रोहित आईपीएल में सर्वकालिक शीर्ष रन बनाने वालों में भी शामिल हैं, जो केवल विराट कोहली और शिखर धवन से पीछे हैं। 2024 में, रोहित को मुंबई इंडियंस ने कप्तान के रूप में हटा दिया और गुजरात टाइटन्स से स्थानांतरित होने के बाद वापसी करने वाले हार्दिक पांड्या को कप्तानी सौंपी।
रोहित शर्मा को आईपीएल 2025 के लिए मेगा नीलामी से पहले फ्रैंचाइज़ी ने बरकरार रखा
बात करें रोहित शर्मा के टेस्ट क्रिकेट करियर के बारे में तो वह देश के लिए 2013 से 2024 के बीच 67 टेस्ट मुकाबले खेलने में कामयाब रहे. इस बीच उनके बल्ले से 116 पारियों में 40.57 की औसत से 4301 रन निकले. रोहित के नाम टेस्ट क्रिकेट में 12 शतक और 18 अर्धशतक दर्ज है।
रोहित शर्मा का वनडे क्रिकेट में एक शानदार करियर रहा है। उन्होंने 273 वनडे मैचों में 11,168 रन बनाए हैं, जो 48.76 की औसत से है. उन्होंने दो बार दोहरे शतक बनाए हैं और 13 नवंबर 2014 को श्रीलंका के खिलाफ 264 रन बनाकर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैच में सबसे ज्यादा रन बनाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया था.
रोहित शर्मा का टी20 कैरियर 2007 में शुरू हुआ था और 2024 में समाप्त हुआ, जिसमें उन्होंने 159 टी20 मैच खेले। इस दौरान उन्होंने 4,221 रन बनाए, औसत 32.05 और स्ट्राइक रेट 140 से ऊपर रहा. उनके नाम टी20I में सबसे ज्यादा 5 शतक हैं, जो भारत के लिए सबसे अधिक है. रोहित शर्मा ने बतौर खिलाड़ी 2007 टी20 विश्व कप जीता था और 2024 में कप्तान के रूप में भी विश्व कप जीता।
रोहित शर्मा का आईपीएल कैरियर काफी सफल रहा है। उन्होंने अपनी शुरुआत डेक्कन चार्जर्स के साथ की थी, और बाद में मुंबई इंडियंस में शामिल हो गए। वह मुंबई इंडियंस के लिए एक अभिन्न अंग बन गए और उनके नेतृत्व में टीम ने पांच आईपीएल खिताब जीते। रोहित शर्मा आईपीएल इतिहास में सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने 262 पारियों में 6,921 रन बनाए हैं। उनके शानदार प्रदर्शन में दो शतक और 46 अर्धशतक शामिल हैं।
भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने जब शुक्रवार 16 मई को रोहित शर्मा स्टैंड का उद्घाटन किया। तो उसी समय से जब तक क्रिकेट रहेगा रोहित शर्मा का नाम हमेशा उनके स्टैंड के रुप में याद किया जाएगा। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में यह स्टैंड ये दर्शाता है की वास्तव में रोहित शर्मा ने बतौर कप्तान और बतौर खिलाड़ी के रुप में क्या पाया या प्राप्त किया है जब रोहित को दो शब्द कहने के लिए आमंत्रित किया गया तो रोहित इमोशनल हो गए आंखों में आंसू लिए रोहित ने वहां उपस्थित सभी फैन्स का आभार व्यक्त किया। उस समय उनकी पत्नी रितिका सजदेह भी मौजूद थीं। यह रोहित और उनकी फैमिली के लिए यह बहुत गर्व महसूस कराने वाला पल था।
रोहित शर्मा को जितनी बधाई दी जाए वह शब्दों में कम ही होगा। वहीं क्रिकेट जगत में इतना बढ़िया और मिलनसार क्रिकेटर और कप्तान मिलना बहुत आसान ना होगा। परिवार, दोस्तों और राष्ट्रीय धर्म को गहराई से समझने वाले रोहित शर्मा हमेशा दिलों पर राज करते रहेंगे।
कॉल-बेल की आवाज से उत्साहित दरवाजा खोला। सामने मुस्कुराते हुए,बैठकी के लोग खड़े हैं। फिर तो जमनी थी, बैठकी जम गई।
सरजी, पहलगाम में पाकिस्तान पोषित आतंकवादियों ने 22 अप्रैल को 26 निर्दोष नागरिकों का धर्म पुछकर (हिंदुओं का) नरसंहार किया था। बदले की आग में जलते भारत ने,एयर स्ट्राइक किया और 100 से अधिक आतंकी मारे गये। हमने न सिर्फ पहलगाम का बदला लिया बल्कि इतिहास में हुए आतंकी हमलों के आरोपियों को भी मारा। आतंकी ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, पाकिस्तानी सेना के ठिकाने उड़ाये और सबसे बड़ी बात पाकिस्तान के 11 एयरबेस उड़ाये। अब खबर आ रही है कि हमारे ब्रम्होस मिसाइल ने अपना जलवा दिखाया और पाकिस्तानी न्युक्लियर अड्डों को भी नुकसान पहुंचाया है। अब दोनों देशों के बीच सीजफायर है। तो विचारणीय प्रश्न है कि भारत के परिप्रेक्ष्य में,पहलगाम की आतंकी घटना से लेकर सीजफायर तक की स्थिति क्या कहती है!!--उमाकाका बैठते हीं मुद्दा रख दिये।
आप्रेशन सिंदूर से ये स्पष्ट हो गया है कि भारत का युद्ध सिर्फ पाकिस्तान से नहीं है बल्कि पाकिस्तान के साथ साथ चीन, तुर्की, अमरीकी डीप स्टेट एवं भारत के आंतरिक शत्रुओं से एक साथ है। पाकिस्तान मात्र सहायक की भूमिका में है। शत्रुओं की योजना वही थी जो यूक्रेन ने रुस के साथ किया है। रुस के विरुद्ध अमेरिका, तुर्की, ब्रिटेन और नाटो के सदस्य इस युद्ध को पीछे से लड़ रहे हैं। ये सभी भारत को भी रुस की तरह युद्ध में उलझाकर, भारत की प्रगति एवं भारतियों के सुख शांति को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करना चाहते हैं। भारत के विरुद्ध ये मंडली पहले बंगलादेश से भारत को भिड़ाने की चाल चली थी लेकिन मोदी सरकार के सूझ-बूझ ने इसे असफल कर दिया तो पुनः पाकिस्तान से उलझाकर रुस की स्थिति में भारत को लाने की गोटी फीट की गई। महाभारत युद्ध में इतिहास भले हीं पाण्डवों को विजयी मानता हो लेकिन पाण्डवों ने अभिमन्यु सहित सभी पुत्रों को गंवाकर विजय प्राप्त की जिसका औचित्य हीं नहीं रहा। इस तीन दिनों के युद्ध में मोदी शासन में भारतीय सैन्य तंत्र ने जो कारनामें किये हैं उसे सदियों तक याद रखा जायेगा। हमारे सतर्क सैन्य कौशल ने मात्र तीन दिनों में शत्रु को छकाकर उनके मनसूबों को तहस-नहस कर दिया। इनके युद्ध कौशल ने हमें रुस-यूक्रेन की नियति में जाने से बचा लिया। हम इजरायल की हालत में जाने से भी बच गये। जो आज भी हमास से युद्ध में उलझा हुआ है। दुसरी ओर सारा विश्व,हमारी रक्षा प्रणाली एवं सरकार की डिप्लोमेसी से स्तब्ध है।जिस मानसिकता से पाकिस्तान अस्तित्व में आया वो भारत के भीतर भी तेजी से फल-फूल रहा है। ये आंतरिक, अलग लड़ाई है जिससे निपटना और भी कठीन एवं जटिल है। ऐसी मानसिकता के साथ सह-अस्तित्व संभव हीं नहीं। आज भारत जिन मायावी शत्रुओं से घीरा है वैसी स्थिति में हम,पारम्परिक युद्ध के तौर-तरीकों से नहीं जीत सकते। भारत को रहना है तो पाकिस्तान को तो एक दिन मरना हीं होगा। पाकिस्तान को उस मुकाम तक ले जाना होगा जहां खुद छटपटाते हुए दम तोड़ दे।लेकिन हम अपनी क्षति की कीमत पर नहीं चाहेंगे। इस तीन दिनों के युद्ध ने पाकिस्तान को ऐसे जख्म दे दिया है जो भविष्य में उसके अस्तित्व को हीं समाप्त कर देगा और यही उसके सहयोगियों की असली हार होगी।--मैं चुप हुआ। इसबीच बेटी चाय का ट्रे रख गई और हमसभी एक एक कप उठाकर पुनः वार्ता में........
बाप रे!! भारत आ सनातनी के खिलाफ,अतना खतरनाक षड्यंत्र!! भगवान के लाख-लाख धन्यवाद बा जे "मोदी" निहन छतरी देश के मिल गईल बा।--मुखियाजी हाथ जोड़कर भगवान का शुक्रिया अदा करते हुए।
मुखियाजी, अभी थोड़ा ठहरिये!मोदी के डंडे की आवाज, पाकिस्तान को अब तड़पायेगी। मुस्लिम परस्त नेहरू ने जानबूझकर पाकिस्तान के साथ "सिंधु नदी जल समझौता" करके भारत के गले में फंसती डाल दी थी। मोदीजी ने भारत को इस समझौते से मुक्त करके, बगैर मिसाइल दागे हीं उठाकर पटक दिया है। देश के विभाजन के साथ हीं पाकिस्तान का भारत के साथ किये गये करनी का फल, उसे पानी के लिए तड़पाकर दिया जायेगा।--मास्टर साहब मुंह बनाये।
मुखियाजी, पहलगाम कांड के बाद मोदी सरकार द्वारा पाकिस्तानियों का वीजा रद्द करने और फौरन भारत छोड़ने के हुक्म के साथ हीं एक बड़े षड्यंत्र का भी खुलासा हो गया।--सुरेंद्र भाई बोले पड़े।
उ का एक मास्टर साहब!!--मुखियाजी पुछे।
हम मुस्लिम घुसपैठियों में बंग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठ हीं जानते थे लेकिन दशकों से भारत में 5 लाख से भी अधिक मुस्लिम महिलाएं हैं जो औसतन अपने 6 बच्चों के साथ भारत में रहतीं हैं और निकाह अर्थात विवाह पाकिस्तानियों से की हैं। उनके बच्चे भी माता पिता बन चूकें हैं।इन सबकी जनसंख्या एक करोड़ से भी अधिक हो चूकी है।ये पाकिस्तानी पुरुषों से विवाहित स्त्रियां, अपनी नागरिकता भारत की हीं रखीं हैं और ये सभी मुस्लिम महिलाएं और बच्चे अवैध रूप से भारत में रहते हुए भारत में हिंदुओं के टैक्स के हजारों करोड़ की नागरिक सुलभ सुविधाओं का उपभोग भी करते रहे हैं।--सुरेंद्र भाई स्पष्ट किये।
एकरा मतलब इ भईल कि हमारे पइसा प, हमरे खा के, करोड़ से उपर जिहादी हमरे देश में बाड़े। हे भगवान! इ कांग्रेस तो "गजवा ए हिंद" के पुरा व्यवस्था बांध देले बिया।--मुखियाजी दुखी लगे।
सरजी, आपने जो आंतरिक मोर्चे की बात की है वो बिल्कुल साफ हो गया। अब समझ में आया कि क्यों पहलगाम की घटना के बाद क्यों देश के सारे मुस्लिम मौलाना, मौलवी, यहां तक की ओबैसी जैसा मुस्लिम परस्त नेता हीं नहीं सारे इंडी गठबंधन वाले मोदीजी को पाकिस्तान से बदला लेने के लिए ललकारते नजर आये और जब सीजफायर हुआ तो सीजफायर पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करने लगे। अर्थात चीन और अन्य की तरह विपक्षी भी चाहते हैं कि भारत युद्ध में उलझकर अपनी अर्थव्यवस्था चौपट कर ले। आज भारतीय डिप्लोमेसी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सैन्य शक्ति का जो माहौल बना है उससे कुछ खास विषेश पीड़ित हैं। एक तो स्वयं पाकिस्तान और दुसरा विपक्षी पार्टियां खासतौर पर कांग्रेस। मोदी की दूरदर्शिता ने एक साथ पाकिस्तान, चीन, अमरीकी डीप स्टेट और आंतरिक मोर्चे को निराश कर दिया है।--डा.पिंटु मुस्कुराये।
मुखियाजी, मुस्लिम देशों पर विश्वास करना गुनाह है।यही तुर्की है जहां जब भयानक भूकंप आया था तो भारत,तुर्की को उस त्रासदी से उबरने में भारत सबसे बड़ा सहायक बना था लेकिन जब भारत अपने मरे लोगों को न्याय देना चाहा तो तुर्की हत्यारों के साथ खड़ा हो गया और उसे सिर्फ "खलिफा" का सपना याद रहा जो पुरे विश्व के इस्लामीकरण की सोंच रखता है। पाकिस्तान को हमारे विरुद्ध आधुनिक शक्तिशाली ड्रोन, हथियार मुहैया कराया। इससे तो उसकी नियत साफ झलकती है।--मास्टर साहब मुंह बनाये।
मास्टर साहब, पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर जो सैनिकों का गढ़ होने के साथ साथ पाकिस्तान का न्यूक्लियर स्टोरेज भी है,पर भारत के मिसाइल अटैक का खतरा देखते हीं अमरीका बिलबिला उठा और "मान न मान, मैं तेरा मेहमान" की तर्ज पर सीजफायर करवाने के लिए कूद पड़ा। इससे तो साफ हो गया है कि पाकिस्तान स्वयं में परमाणु शक्ति नहीं अपितु अमरीका द्वारा स्थापित परमाणु ठिकाने हैं वहां। पाकिस्तान में अमरीकी परमाणु ठिकाने बने रहे इसी के मद्देनजर अमरीका अतीत से आजतक पाकिस्तान को आर्थिक मदद देता आया है। पाकिस्तान आतंकवाद की जन्मस्थली है और भारत के विरोध के बावजूद आईएमएफ द्वारा हाल में पाकिस्तान को बीसवीं बार एक अरब डॉलर से अधिक का कर्ज देना क्या कहता है!!--उमाकाका हाथ चमकाये।
ठीक बोले काकाजी, इस तीन चार दिनों के युद्ध ने भारत और सनातनियों के बाहरी और अंदरूनी दुश्मनों की पहचान और कली तो खोल कर रख दी हीं है, साथ साथ यह भी सिद्ध कर दिया कि आज का भारत किसी ऐरु-गैरु के हाथों नहीं है। आज का भारत बदला हुआ भारत है जो हर मोर्चे पर विश्व में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर रहा है। ये मोदी है तो, ना मुमकिन नहीं। मोदी है तो मुमकिन है। अच्छा अब चला जाय।कहकर कुंवरजी उठ गये और इसके साथ हीं बैठकी भी.......!!!!!
डोनाल्ड ट्रांप को अपना प्रिय मित्र कहने वाले नरेंद्र मोदी आज मोदी की इज्जत को पूरी दुनिया में धुमिल करने में कोई कस़र नहीं छोड़ रहे डोनाल्ड ट्रांप।
कतर में पहुंचे डोनल्ड ट्रांप ने पुनः कहा कि मैंने ही सीजफ़ायर कराया। वहीं एक दो क़दम आगे बढ़ते हुए कहा कि भारत - पाकिस्तान बच्चों की तरह लड़ रहे थे तो हमने कहा व्यापार करों झगड़ा नहीं करों। आगे डोनाल्ड ट्रांप ने कहा कि ट्रेंड वार से हमने एटमी वार को रोका ताकि भारत - पाकिस्तान में शांति के साथ व्यापार बढ़िया हो सकें। लगातार डोनल्ड ट्रांप का जो ब्यान आ रहा है उससे यह स्पष्ट है कि भारत - पाकिस्तान के बीच होने वाले युद्ध को रूकवाने में उनकी ही भूमिका हैं।
वहीं दो क़दम आगे बढ़ते हुए प्रेस वार्ता में डोनाल्ड ट्रांप ने कहा कि - मैंने Apple के CEO टिम कुक से साफ कह दिया है- भारत में iPhone ना बनाएं। यह बात अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कतर में कहते हुए इतरा रहे थे।
इस पर सवाल खड़ा होता है कि लगातार डोनाल्ड ट्रांप भारत सरकार की इज्जत उतार रहे हैं और मोदी सरकार कहां है ? क्या प्रधानमंत्री इस बयान की निंदा करेंगे?
आपको बता दें कि पहले डोनाल्ड ट्रंप ने हमारी संप्रभुता पर हमला किया। यहां तक डोनाल्ड ट्रांप ने कहा कि व्यापार के लिए भारत ने सीजफायर कर दिया और अब हमारे निवेश पर भी आंख गड़ाए बैठे हैं। वहीं इस पर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी सरकार को इसपर ब्यान जारी कर स्थिति साफ करनी चाहिए।
डोनाल्ड ट्रांप ने हर रोज भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी पर घटिया ब्यान दे रहा है तो इसे खुले तौर पर स्वीकार करें या खुले मंच से विरोध कर दुनिया को एक बड़ा संदेश दें। अगर नरेंद्र दामोदर दास मोदी यह भी स्पष्ट कर दें कि डोनाल्ड ट्रांप को सर पर बैठा लिया है ???
भारत का हर एक नागरिक जब देश आरपार के मूड में, और आप सीमा पार समझौता कर बैठे? नरेंद्र दामोदर दास मोदी से पुरा देश यह सवाल कर रही हैं कि ये आपने क्या किया?
22 अप्रैल 2025 का पहलगाम आतंकी हमला देश के दिल पर चोट था। 28 मासूमों की जान लेने वाले आतंकियों और उनके आका पाकिस्तान के खिलाफ देश एकजुट था। सड़कों से सोशल मीडिया तक, हर भारतीय का खून खौल रहा था। “छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं” का नारा गूँज रहा था।
ऑपरेशन सिंदूर के साथ जब भारत ने 7 मई को पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर हमला किया, तो लगा कि अब पाकिस्तान को सबक मिलेगा। 9 आतंकी ठिकाने तबाह, 100 आतंकी और 40 पाक सैनिक ढेर—देश को उम्मीद जगी। वहीं 12 मई 2025 को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के संबोधन से कुछ समय पहले ही अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप ने X पर पोस्ट कर बता दिया कि हमने भारत - पाकिस्तान से लंबी बातचीत कर सीजफ़ायर कराया है।
वहीं जब भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने अपने संबोधन में कहीं भी डोनाल्ड ट्रांप के ब्यान को लेकर कोई चर्चा नहीं की। लेकिन पहली बार नरेंद्र मोदी को डरे और सहमें हुए ब्यान देखा गया। जब भारत की 100% आबादी और देश का विपक्ष भी आरपार के मूड में था, और नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने सीमा पार समझौता कर बैठे!
बहुत महत्वपूर्ण सवाल जो आजकल लोगों के बीच घुम रहा है वह यह है कि -
1. कहाँ चूक हो गई नरेंद्र दामोदर दास मोदी से ?
2014 में देश ने नरेंद्र दामोदर दास मोदी को चुना, उम्मीद थी कि मोदी पाकिस्तान को कड़ा जवाब देंगे। लेकिन 10 मई को युद्धविराम और आपके 12 मई के संबोधन ने देश को हैरान कर दिया। मोदी ने कहा, “ऑपरेशन सिंदूर स्थगित है,” लेकिन देश पूछ रहा है—क्यों? जब पाकिस्तान घुटनों पर था, जब भारत ने उसका एयरस्पेस बंद कर दिया, सिंधु जल समझौता सस्पेंड कर दिया, तो फिर ये रुकावट क्यों? क्या देश की भावना से ज्यादा पाकिस्तान और अमेरिका की भावना का ख्याल रखा गया?
2.पाकिस्तान का दबाव या अमेरिका की साजिश?
नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने संबोधन में अमेरिका या ट्रंप का नाम तक नहीं था, लेकिन क्या देश इतना भोला है? सूत्र बता रहे हैं कि अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने आपसे फोन पर बात की। पाकिस्तान ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के सामने गिड़गिड़ाया। और फिर अचानक युद्धविराम? यह वहीं पाकिस्तान है, जो दशकों से आतंक का पर्याय रहा। वही पाकिस्तान, जिसके पीएम शहबाज शरीफ ने युद्धविराम को अपनी “जीत” बताया। और हम? हम चुपचाप मध्यस्थता स्वीकार कर बैठे। देश पूछ रहा है—क्या भारत की ताकत अब वाशिंगटन की मर्जी से चलेगी?
3. ऑपरेशन सिंदूर: अधूरी जीत या मजबूरी?
ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को नुकसान पहुँचाया, लेकिन मोदी जी इसे “स्थगित” क्यों किया? क्या यह संदेश नहीं जाता कि भारत ने आधा-अधूरा जवाब देकर पाकिस्तान को फिर मौका दे दिया? नरेंद्र दामोदर दास मोदी जी आपके शब्दों में “आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस” की बात थी, लेकिन यह युद्धविराम क्या जीरो टॉलरेंस है? देश को लग रहा है कि “पाकिस्तान का ये कर देंगे, वो कर देंगे” जैसे डायलॉग सिर्फ हवा-हवाई हैं। जब मौका था, तब क्यों हाथ खींच लिया?
4. देश की भावना को ठेस पहुंची है?
पहलगाम हमले के बाद देश एकजुट था। हर हिंदुस्तानी चाहता था कि पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया जाए कि वह फिर कभी आँख उठाने की हिम्मत न करे। लेकिन आपके संबोधन ने उस जज्बे को ठेस पहुँचाई। सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं, “मोदी जी, हम आपको ताकतवर समझते थे, लेकिन आप सियारों से समझौता कर बैठे।” यह गुस्सा, यह निराशा इसलिए है, क्योंकि देश ने आपसे निर्णायक कार्रवाई की उम्मीद की थी। लेकिन यह युद्धविराम उस उम्मीद का मुँह चिढ़ाता है।
5. पाकिस्तान को फिर मौका क्यों?
पाकिस्तान ने कभी सुधरने की कोशिश नहीं की। 1999 में कारगिल से लेकर 2025 में पहलगाम तक — हर बार उसने भारत को छला। फिर भी, आपने बातचीत और समझौते की राह क्यों चुन ली? आपके संबोधन में कहा गया कि “पाकिस्तान से बात केवल आतंकवाद और पीओके पर होगी।” लेकिन क्या इतिहास हमें यह नहीं सिखाता कि पाकिस्तान बातचीत का इस्तेमाल केवल समय खरीदने के लिए करता है? देश पूछ रहा है—क्या हम फिर से वही गलती दोहरा रहे हैं?
6. मोदी जी, अब क्या?
देश आपसे जवाब माँग रहा है। अगर ऑपरेशन सिंदूर स्थगित है, तो कैसे और क्यों भरोसा करें कि भविष्य में भारत पाकिस्तान से ताकत से निपटेगा? या यह सब केवल आपकी चुनावी मजबूरी का खेल है? मोदी जी देश ने आप पर आंख बंद करके जो भरोसा किया था, वह भरोसा अब सवालों के घेरे में है। देश को बताइए कि यह युद्धविराम मजबूरी थी या गलती।
7. आखिरी सवाल ?
मोदी जी, देश आपके भाषणों और जुमलों से भ्रमित हो गया और आपको एक ताकतवर नेता समझने लगा, लेकिन आपके एक फैसले ने कई नकाब उतार दिये हैं। पाकिस्तान और अमेरिका के सामने आपकी चुप्पी और किसी को हज़म नही होने वाले युद्धविराम ने देश को सोचने पर मजबूर कर दिया। क्या आप वाकई वही नेता हैं, चुनावी मंचों से पाकिस्तान को ललकारते देखे गये हैं? क्या वो सभी बातें भी केवल जुमला थीं? देश पाकिस्तान को जवाब देने का इंतजार कर रहा था, आप जनता को बरगलाने आ गए। देश आपको कभी मांफ नहीं करेगा।*
वहीं कतर में मुकेश अंबानी का डोनाल्ड ट्रांप से हाथ मिलाना और खड़े - खड़े भी चंद मिनटों की बातचीत से यह स्पष्ट हो गया कि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप सीजफ़ायर कराया नहीं बल्कि किया और व्ययापार के लिए देश की प्रतिष्ठा से खेलने का अधिकार नरेंद्र दामोदर दास मोदी के पास नहीं है। आज 100% सत्य हो गया कि डोनाल्ड ट्रम्प ने जो किया वह कहा भी हैं।
शेखर कम्मुला की कुबेरा में धनुष ‘देवा’ के रूप में गंभीर हो गए हैं
कुबेरा के निर्माताओं ने फिल्म से धनुष का एक नया आकर्षक लुक जारी किया है, जो ‘देवा’ के रूप में उनके परिवर्तन की एक शक्तिशाली झलक पेश करता है। सिनेमा में उनके 23वें वर्ष के अवसर पर अनावरण किए गए इस पोस्टर में एक परतदार, गंभीर दृश्य दिखाया गया है - जो आंतरिक संघर्ष, एकांत और ताकत का संकेत देता है।
निर्माताओं द्वारा इंस्टाग्राम पर साझा किया गया यह कैप्शन उत्सव और प्रत्याशा दोनों को दर्शाता है - जो कि धनुष के इंडस्ट्री में मील के पत्थर के क्षण के साथ बिल्कुल सही समय पर है: "एक उल्लेखनीय अभिनेता के 23 साल जिनकी कड़ी मेहनत, जुनून और समर्पण की यात्रा प्रेरणा देती है ✨ @DhanushKRaja #Deva के रूप में #SekharKammulasKuberaa में दिल जीतने के लिए पूरी तरह तैयार हैं 💥 अधिक अपडेट जल्द ही लोड हो रहे हैं... देखते रहिए! * 20 जून, 2025 को दुनिया भर में रिलीज़ हो रही है।"
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता शेखर कम्मुला द्वारा निर्देशित, कुबेरा फिल्म निर्माता और धनुष के बीच पहला सहयोग है। पोस्टर में धनुष को एक शक्तिशाली दोहरे दृश्य में दिखाया गया है - प्रोफ़ाइल में चिंतनशील और गहन, जबकि समुद्र तट पर नंगे पैर चलते हुए, कमजोरी और धैर्य दोनों को दर्शाता है। यह देवा के रूप में उनकी भूमिका की एक झलक है, और प्रशंसक एक ऐसे किरदार की उम्मीद कर सकते हैं जो उन्होंने पहले कभी नहीं निभाया है। श्री वेंकटेश्वर सिनेमा एलएलपी और एमिगोस क्रिएशंस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रस्तुत, कुबेरा 20 जून, 2025 को दुनिया भर में रिलीज़ होने के लिए तैयार है। देवी श्री प्रसाद द्वारा संगीत और एक शक्तिशाली प्रोडक्शन टीम के साथ, फिल्म पहले से ही ऑनलाइन हलचल मचा रही है।
कार्यक्रम का उद्देश्य नर्सों के अथक परिश्रम और समर्पण को सम्मान देना था
पटना, संवाददाता। ग्लोबल इंस्टिट्यूट ऑफ़ नर्सिंग एंड पैरामेडिकल साइंसेज़, पटना में अंतर्राष्ट्रीय नर्सिंग दिवस के अवसर पर भव्य समारोह का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में पटना मेदांता अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग के निदेशक ने रंजन कुमार ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक सौरभ शर्मा और श्रुति मेहरोत्रा कर रही थीं।
इस कार्यक्रम में कृष्णमोहन पासवान (मुखिया, नरही पीरही पंचायत), मुमताज़ अंसारी एवं सर्वेश यादव (जिला पारषद, दुल्हिनबाजार प्रखंड) तथा अखिलेश्वर प्रसाद यादव (पैक्स अध्यक्ष, नरही पीरही पंचायत) की गरिमामयी उपस्थिति रही। छात्रों ने रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियों और लघु नाटकों के माध्यम से नर्सिंग पेशे की महत्ता, सेवा भावना और समाज में उनके योगदान को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का उद्देश्य नर्सों के अथक परिश्रम और समर्पण को सम्मान देना था। संस्थान के निदेशक मंडल ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए यह संकल्प लिया कि आने वाले समय में संस्थान की ओर से और अधिक समर्पित स्वास्थ्यकर्मी समाज को उपलब्ध कराए जाएँगे।
हाजीपुर में ट्रिपल इंजन की सरकार फिर भी 25 वर्षों में नहीं बनी सड़कें, चुनाव आने वाला है इसलिए मौत की दुकान बंद करने का नया ड्रामा
आप अक्सर यह सुनते हैं कि डबल इंजन की सरकार होगी तो विकास राज्यों में डबल हो जाएगा। वहीं जब आप जानेंगे कि जब देश में कांग्रेस गठबंधन की सरकार थी और बिहार में आज की गठजोड़ वाली राजनीति दल की सरकार रही तब बिहार सरकार ने मजबूत और दृढ़ संकल्प के साथ काम किया।
नीतीश कुमार के नेतृत्व में 2005 से NDA सरकार लगातार 21वें साल में हैं जिसमें से दो टुकड़ों में 3 साल हटा दें तो आज की सत्ताधारी गठजोड़ में रही है। बिहार के लोगों से अगर बात होती है तो नीतीश कुमार का प्रथम चरण यानी 2005-2010 ही काम युक्त रहा है।
भारतीय जनता पार्टी के सफ़र में जबर्दस्त उछाल देखा गया और पिछले 11 वर्षों से बिहार में भी सत्ता का हिस्सा बनी हुई है लेकिन नरेंद्र दामोदर दास मोदी के साथ पुरा बिहार खड़ा रहा और तीनों लोकसभा चुनाव में लगभग 100% लोकसभा सीट दिया। वहीं बिहार का विकास इसी काल खंड में शुन्य और नौकरशाही के साथ साथ दलाली परम्परा मजबूत हुई है।
हां हम आप का जो शीर्षक दिए हैं अब उसपर आते हुए कहना है कि हाजीपुर में एक नगर परिषद क्षेत्र हैं और पिछले 11 वर्षों में यहां की भी सत्ता भारतीय जनता पार्टी (BJP) के साथ या कहें उन्हीं की रही है जिसमें मात्र दो साल से भी कम बिना राजनीतिक संरक्षण के रही उसमें शहर की व्यवस्था में बड़े बदलाव हुए मगर विकास की गाड़ी कभी पटरी पर नहीं लाई गई।
नगर परिषद हाजीपुर के पूर्व कार्यपालक अधिकारी पंकज कुमार ने एक बार बताया था कि पिछले 12 वर्षों से सड़क के मामले में एक भी काम नहीं हुआ। सड़क निर्माण में पिछले 12 वर्षों में एक भी सड़क निर्माण नहीं हुआ है वहीं यह बात पंकज कुमार द्वारा कहे हुए भी लगभग अब दो साल हो चुके हैं।
आज वर्तमान परिस्थितियों में हम देखें तो हाजीपुर शहर यानी नगर परिषद हाजीपुर में एक भी सड़क मौजूद नहीं है। वहीं जिसे सरकारों ने सड़क के नाम पर जमीन कब्जा कर रखी है उसमें हर एक हाथ पर 10-20 गड्ढें बना दिए गए हैं। इसलिए यह कहना ज्यादा सही है कि नगर परिषद हाजीपुर में आज गड्ढों में ही सड़क की खोज की जा रही हैं।
नगर परिषद हाजीपुर में वर्तमान सभापति भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा पोषित हैं और हर रोज सभापति को भारतीय जनता पार्टी (BJP) का झंडा बुलंद करते हुए देखा जाता हैं। इसमें सही भी है क्योंकि समर्थन प्राप्त तो भाजपा से ही मिला था।
भारतीय जनता पार्टी (BJP) का एक ऐसा इतिहास हैं हाजीपुर में कि सन् 2000 से आज 2025 तक यानि 26वें साल में भी अकेला उन्हीं का विधायक हैं। सन् 2000 से 2014 तक जो विधायक रहे उनका व्यक्तित्व इतना बड़ा हैं कि उनके बारे में कोई बात कर सकता है तो सिर्फ गुलामी जैसी लगनी चाहिए नहीं तो जीवन के लिए संकट हो जाता हैं। वहीं 2014 में जब वो उजियारपुर लोकसभा से सांसद चुने गए तो उन्होंने अच्छे भाजपा नेताओं को जगह नहीं लेने दिया और अपने मुंशी व संबंध के साले को हाजीपुर से टिकट दिया और भाजपा के नाम पर और पूर्व विधायक के डर से भाजपा उम्मीदवार की जीत लगातार आज तक हो रही है।
लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि 26वें साल में पहली बार ऐसा महसूस हो रहा है कि पूर्व विधायक व सांसद उजियारपुर व केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री को हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र अपने हाथ से जाते दिख रहा है। पिछली बार भी महज़ 2000 वोट के आस पास से ही जीत मिली थी। इसलिए अब जब बिहार में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद और नगर परिषद सभापति भी सत्ताधारी के होने के बावजूद यानि ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बाद भी सत्ता जाती दिख रही है तब कुछ होने की उम्मीद जगी हैं।
आज हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र में 4 साल 6 महीने बाद सड़क बनाने का आश्वासन विधायक और सभापति के द्वारा दिलाया जा रहा है। आजकल हाजीपुर से विधायक बिहार के पथ निर्माण मंत्री के यहां फेसबुक पर दौड़ा करते दिखाई रहे हैं। जबकि यह दौड़ा और सड़कों का निर्माण 3 साल पहले ही पर निर्माण मंत्री के साथ मिलकर हाजीपुर विधायक ने कहा था। उस समय भी खुब अखबारों में सड़क निर्माण पर चर्चा थी।
पुनः चुनाव आने के समय सड़क निर्माण पर फोटो सूट किया जा रहा है। आज हाजीपुर शहर में कोई ऐसा सड़क नहीं है जो टूटा फूटा जर्जर स्थिति में ना हो। भारतीय जनता पार्टी (BJP) का इतिहास अब बहुत शानदार हो गया हैं जब सत्ता में नहीं रहती है तब बड़े वादे करती है और जब उसको विभाग मिलता है काम करने के लिए तब उसका सुस्त चाल देख लीजिए कि अपने ही विधायकों के विधानसभा क्षेत्र में काम नहीं करवा पा रही।
अब बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गई है और 2 महीने बाद आचार संहिता लगनी है। विधायक परेशान जरूर दिख रहे हैं लेकिन उनके हाथ में विधायक की ताकत नहीं है। वर्तमान विधायक पूर्व विधायक के अनुकंपा पर विधायक हैं जो सर्वविदित है और किसी भी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के कार्यकताओं में इतनी क्षमता नहीं है कि वह वर्तमान विधायक से एक रूपए का भी काम करा सकें। वहीं केन्द्रीय गृहराज्यमंत्री को पता यह हैं कि लालू प्रसाद यादव के नाम पर हाजीपुर की जनता को पुनः डरा कर भाजपा के गुलाम वोटरों को लुभाने में हम सफल ही रहेंगे। इसलिए सड़कों पर लोगों को होने वाली परेशानियों को लेकर गंभीरता नहीं है।
हाजीपुर नगर परिषद और विधानसभा की जनता को खुद सोचना होगा कि 26 सालों से जिन्हें जिम्मेवारी सौंपी वह बिल्कुल नाकारा साबित हुआ। वहीं जनता की बात सुनने का जिस विधायक और सभापति में समय नहीं हो वैसे को पुनः चुनना कितना सही होगा यह जनता विचार कर रही है। इस बार का हाजीपुर विधानसभा क्षेत्र दिल्ली को बड़ा संदेश देने को भीतर ही भीतर तैयारी कर रही है।
प्रथम बिहारी अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला उनकी पत्नी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरांगना राधिका देवी
28 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे को चूमने वाले प्रथम बिहारी अमर शहीद बैकुंठ शुक्ला उनकी पत्नी महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी वीरांगना राधिका देवी तथा चाचा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का विराट व्यक्तित्व नरम दल गरम दल दोनों को स्वीकार एवं क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्रोत हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी के संस्थापक योगेंद्र शुक्ला की गौरव गाथा नाम - बैकुंठ शुक्ल पिता- राम बिहारी शुक्ला जन्म - 15 मई 19 07 जन्म स्थान- ग्राम जलालपुर जिला मुजफ्फरपुर वर्तमान में वैशाली जिला मृत्यु - 14 मई 1934 को फांसी मृत्यु स्थान - केंद्रीय कारागार गया *जीवन काल- 28 वर्ष लगभग _______________________________ वर्तमान वैशाली जिला जो पहले मुजफ्फरपुर के अंतर्गत आता था के ग्राम जलालपुर में अयाचक ब्राह्मण कुल में किसान राम बिहारी शुक्ला के पुत्र के रूप में 15 मई 1907 को एक बालक ने जन्म लिया। दादा मनु शुक्ला ने बालक का नाम वैकुंठ शुक्ला रखा। बचपन से ही बैकुंठ शुक्ला प्रतिभाशाली एवं होनहार थे। जिस कार्य को करते उसको पूरा करके ही छोड़ते थे। बैकुंठ शुक्ला की प्रारंभिक शिक्षा मथुरापुर प्राथमिक विद्यालय में हुआ जो उनके गांव के पास में ही था। मिडिल की परीक्षा पास करने के बाद बैकुंठ शुक्ला ने शिक्षक प्रशिक्षण का भरनाकूलर कोर्स किया। शारीरिक दक्षता में वह एक मजबूत और गठीले बदन के स्वामी थे। अत्यंत फुर्तीला चमकता ललाट से उनका तेज झलकता था ।ललाट पर चंदन और मोटी शिखा उस तेज को चौगुना करता था। पास की गंडक नदी में घंटो -घंटो तैरते रहते वह एक कुशल तैराक थे। बैकुंठ शुक्ला के जीवन पर चाचा योगेंद्र शुक्ला का गहरा प्रभाव पड़ा। स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला जो योगेंद्र शुक्ला के सीने में धधक रही थी ज्योति से ज्योति जलाने के क्रम में वही आग बैकुंठ शुक्ल के सीने में भी जलने लगी।बैकुंठ शुक्ला ने अपना कदम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम मे अंग्रेजों के दासता से मुक्ति के लिए बढ़ाना शुरू किया। योगेंद्र शुक्ला भतीजे बैकुंठ शुक्ला को साथ नहीं रखना चाहते थे। क्रांतिकारी बनने के मजबूत इरादे और दृढ़ निश्चय पर आगे बढ़ते हुए बैकुंठ शुक्ला के इरादे को उनके पिता ने भाप लिया। इनके पिता राम बिहारी शुक्ला ने मथुरापुर के प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक की नौकरी लगवा दिया। मथुरापुर में ही राज नारायण शुक्ला के घर पर इनके रहने खाने की व्यवस्था करा दिए। इसके साथ ही वह उनके घर के बच्चों को भी पढ़ाते थे। इस प्रकार इनका यह क्रम चलने लगा। तब इनके पिताजी ने इनकी शादी करने का मन बनाया। 11 मई 1927 को बैकुंठ शुक्ला(20 वर्ष) की शादी राधिका देवी (17 वर्ष )से संपन्न हुई। राधिका देवी का त्याग बलिदान आंतरिक वेदना की कहानी कम नहीं है ।भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भारत को स्वतंत्र कराने के लिए अपने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चली। वीरांगना राधिका देवी का जन्म सारण जिले के ग्राम महमदपुर थाना परसा पिता चक्रधारी सिंह के पुत्री के रूप 1910 को पौष मास की अमावस्या तिथि को हुआ। राधिका देवी कक्षा 7 तक पढी थी। पढ़ी लिखी होने के साथ भारत की गुलामी से मुक्त कराने का सपना सजाई थी ।क्रांतिकारी परिवार में शादी होने से पहले स्वतंत्रता का बीज सीने में था। यहां आते ही उचित वातावरण और पोषण से अंकुरित हो गया । इस समय तक देश में आजादी की अलख जग गई थी। हाजीपुर में जगदानंद झा ने एक गांधी आश्रम की स्थापना की 7 दिसंबर 1920 को गांधीजी चंपारण जाने के क्रम में यहां आए थे ।तब स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। वैशाली जिले का गांधी आश्रम उत्तर बिहार के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का प्रमुख केंद्र था। बाबू किशोरी प्रसन्न सिंह जय नंदन झा अक्षयवट राय प्रमुख थे। यह नरम दल और गरम दल दोनों का केंद्र था। 1925 तक यह आश्रम अपना विराट रूप पकड़ लिया। भगत सिंह चंद्रशेखर आजाद सहित देश के बड़े-बड़े क्रांतिकारियों का योगेंद्र शुक्ला के यहां आना-जाना होने लगा। 9 सितंबर 1928 को योगेंद्र शुक्ला और भगत सिंह ने मिलकर बिहार बंगाल और पंजाब के क्रांतिकारियों ने मिलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी का गठन किया। जिसका उद्देश्य भारत को शीघ्र स्वतंत्र कराना था । योगेंद्र शुक्ला और भगत सिंह इसके प्रमुख थे। विनोद सिंह मलखा चौक और फणींद्र घोष बिहार उड़ीसा प्रांत के प्रभारी बनाए गए।
1929 में मुजफ्फरपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष बाबू राम दयालु सिंह बने उन्होंने 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन की हाजीपुर क्षेत्र का संपूर्ण जिम्मेदारी किशोरी प्रसन्न सिंह अक्षयवट राय और बाबू दीप नारायण सिंह सिंह को सौंपी। जिस के क्रम में यह लोग गांव-गांव घूमकर कार्यकर्ताओं की भर्ती करने लगे क्रांतिकारी योगेंद्र शुक्ला और बसावन सिंह हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकआर्मी (एचएसआरए )से जुड़ने के बाद उनका कार्यक्षेत्र बढ़ गया बनारस दिल्ली लाहौर मैं अधिक समय रहने के कारण क्षेत्रीय आंदोलन की जिम्मेदारी किशोरी प्रसन्न सिंह और उनकी पत्नी सुनीति देवी पर पड़ा। यह निरंतर भ्रमण कर युवाओं में चेतना का प्रवाह करने लगे। एक दिन किशोरी प्रसन्न सिंह मथुरापुर के राज नारायण शुक्ला के घर गए जहां बैकुंठ शुक्ला रहते थे। वहीं पर किशोरी प्रसन्न सिंह की मुलाकात बैकुंठ शुक्ला से हुई। बैकुंठ शुक्ला की लंबी शिखा और त्रिपुंड चंदन हर किसी को आकर्षित कर लेता था। बैकुंठ शुक्ला तो पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी करने के लिए तैयार बैठे थे। बैकुंठ शुक्ला के सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी कि उनकी शादी हाल ही में हुई थी। इसको लेकर वह काफी परेशान थे। बैकुंठ शुक्ला ने किशोरी प्रसन्न सिंह से प्रस्ताव रखा।किसी तरह पत्नी को भी तैयार करवाइए। पत्नी तैयार हो जाए तो दोनों मिलकर राष्ट्र की सेवा करेंगे सार्वजनिक जीवन का ही परित्याग कर देंगे। किशोरी प्रसन्न सिंह ने इस काम के लिए अपनी पत्नी सुनीता देवी को लगाया। सुनीता देवी और बैकुंठ शुक्ला की पत्नी राधिका देवी के दो मुलाकात में ही तैयार हो गई अपना सर्वस्व न्योछावर कर संपूर्ण जीवन देश की सेवा में लगाने का संकल्प ले लिया। सुनीति देवी और राधिका देवी गांव से भागकर हाजीपुर आश्रम पर पहुंची जो पहले से तय था। वही बैकुंठ शुक्ला और राधिका देवी रहने लगे। भारत को अंग्रेजी दासता से मुक्ति दिलाने हेतु संकल्पित होकर बैकुंठ शुक्ला नौकरी से त्यागपत्र दे दिए। शिक्षक की नौकरी छोड़कर हाजीपुर आश्रम पर पत्नी के साथ देश सेवा में लग गए। आश्रम पर सुनीति देवी के अलावा शारदा देवी कृष्णा देवी सहित कई महिलाएं रहती थी ।राधिका देवी के आने से यहां की व्यवस्था और सुदृढ़ हो गई। क्योंकि यह बहुत जिम्मेदार और समय की पाबंद थी इसके साथ ही अत्यंत दयालु और मिलनसार थी ।यहां चरखे पर सूत काटना अन्य लोगों को सूत काटने के लिए प्रेरित करना रुई देना धागा लेना था। इसके साथ ही प्रचार करना लोगों को जोड़ने का काम भी इनको मिल गया जो अपने पति के साथ बखूबी करती थी।
सर्वप्रथम बैकुंठ शुक्ला को चरखा समिति के प्रचार का जिम्मा दिया गया। बैकुंठ शुक्ला और पत्नी राधिका देवी हाजीपुर मुजफ्फरपुर सारण मलखाचक महनार दलसिंहसराय के चरखा केंद्रों की जिम्मेदारी दी गई। अन्यत्र जाने के लिए राधिका देवी ने भी साइकिल चलाना सीख लिया।जल्द ही स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों से निरंतर बढ़ते संपर्क के क्रम में बैकुंठ शुक्ला और राधिका देवी की पहचान बन गई। सुनीति देवी और राधिका देवी व प्रभावती देवी अब दूर-दूर के कार्यक्रमों में भी जाने लगी। हाजीपुर आश्रम पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों और क्रांतिकारियों का जमावड़ा रहता था ।योगेंद्र शुक्ला? बटुकेश्वर दत्त चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह का आना जाना लगा रहता था। 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू होने से पूर्व बिहार के प्रथम सत्याग्रही श्री कृष्ण सिंह गांधी आश्रम हाजीपुर आए। श्री कृष्ण के यहां की महिलाओं का कार्य देखकर बहुत प्रभावित हुए और सुनीति देवी और राधिका देवी की कार्यों की बहुत प्रशंसा किए। सविनय अवज्ञा आंदोलन के शुरुआत में आश्रम पर नमक कानून तोड़ने पर इतनी ज्यादा भीड़ हुई कि अंग्रेज सिपाही चाह कर भी विरोध नहीं कर पाए बाद में घुड़सवार पुलिस ने आकर आंदोलनकारियों को पकड़ कर ले जाने लगी। आंदोलनकारियों के गिरफ्तारी के समय यहां उपस्थित महिला जत्था ने जोरदार विरोध किया। अंग्रेज सिपाही महिलाओं पर टूट पड़े उनके डंडे के प्रहार से राधिका देवी का बाया हाथ टूट गया। और उनको चोटे आई ।बैकुंठ शुक्ला सहित 72 स्वयंसेवकों को पुलिस ने पकड़ कर बांकीपुर कैंप जेल भेज दिया। इसके 6 महीना बाद गांधी जी और इरविन के बीच हुए समझौते के कारण सभी आंदोलनकारियों को छोड़ दिया गया। बैकुंठ शुक्ला की मुख्य भूमिका जून 1930 को योगेंद्र शुक्ला बसावन सिंह काकोरी षड्यंत्र केस और सिर्फ षड्यंत्र केस में गिरफ्तार कर लिए जाने के पश्चात हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी की कमान को बैकुंठ शुक्ला ने अपने नेतृत्व में ले लेकर कमान संभावना प्रारंभ किया। 1931 आते आते अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को दबाने का निश्चय किया और क्रांतिकारी आंदोलन को कुचलना शुरू कर दिया। 27 फरवरी 1931 को जब चंद्रशेखर आजाद एक विशेष व्यक्ति से मिलकर भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए सम्मिलित (नरम दल गरम दल) आंदोलन चलाने को कहा। तथा कांग्रेस द्वारा फांसी रुकवाने की पहल करने को कहा पर सहमति नहीं बनी और बातचीत के दौरान तल्ख़ियां बढ़ गई। वहीं से हुई मुखबिरी के कारण इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में चंद्रशेखर आजाद को अंग्रेजों ने घेर लिया दोनों तरफ से गोलियां चलने लगी। क्रॉस फायरिंग में जब चंद्रशेखर आजाद के पास आखरी गोली बची तो उन्होंने स्वयं को मार कर आजाद नाम को जीवित रखा। वे देश का तथा कथित नरम दल द्वारा भगत सिंह की फांसी रोके जाने पर पहल न करने पर काफी क्षुब्ध थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को फांसी की सजा तख्ते पर लटका दिया गया। इस तिहरे फांसी ने क्रांतिकारियों को झकझोर कर रख दिया। 1931 में गांधीजी के आवाहन पर मुजफ्फरपुर के ऐतिहासिक तिलक मैदान में बैकुंठ शुक्ला और उनकी पत्नी राधिका देवी ने तिरंगा ध्वज फहराया बैकुंठ शुक्ला गिरफ्तार कर लिए गए। लेकिन उनकी पत्नी राधिका देवी भागकर हाजीपुर आश्रम पर पहुंच गई। 1933 में उनकी पत्नी राधिका देवी भी गिरफ्तार कर ली गई। जेल में बैकुंठ शुक्ला और पत्नी राधिका देवी के ऊपर बहुत जुल्म ढाए गए। लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह राजगुरु सुखदेव को 23 मार्च 1931 फांसी होने के बाद देश में कोहराम मच गया। इन क्रांतिकारियों को फांसी की सजा पूर्व में क्रांतिकारी रहे गद्दार फणींद्र घोष की गवाही पर हुआ। देश के क्रांतिकारियों ने फणींद्र घोष को सजा-ए-मौत का फरमान जारी किया। फणींद्र घोष अंग्रेजों से इनाम पाकर बेतिया में पुलिस संरक्षण में रह रहा था। अक्टूबर 1932 में पंजाब की क्रांतिकारियों ने बिहार के क्रांतिकारियों को एक मार्मिक पत्र लिखा जिसका मूल था *कलंक धोवोगे कि ढोवोगे यह बात बिहार के क्रांतिकारियों को चुभ गई उन्होंने संकल्प लिया कि गद्दार फणींद्र घोष मौत की सजा दे कर मानेंगे। पंजाब के क्रांतिकारियों के संदेश का बिहार के क्रांतिकारियों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा। जिसमें क्रांतिकारियों की एक बैठक हुई गद्दार फणींद्र घोष को सजा-ए-मौत देने के लिए क्रांतिकारियों में होड़ मच गई सुनीति देवी कहती थी कि हम जाएंगे अक्षयवट राय उनको समझाएं तब भी सुनीतिदेवी नहीं मानी तब लाटरी की प्रक्रिया अपनाई गई लॉटरी मैं बैकुंठ शुक्ला का नाम निकला बैकुंठ शुक्ला का नाम निकला तो वह उछल पड़े बैकुंठ शुक्ला ने कहा ना हम गद्दारी करते हैं और ना गद्दारों को माफ करते हैं। इस काम में उनके साथी बने चंद्रमा सिंह बैकुंठ शुक्ला ने सबके सामने फणींद्र नाथ घोष को अंजाम तक पहुंचाने का संकल्प लिया। बेतिया जाने के लिए मुजफ्फरपुर मोतिहारी के रास्ते बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा सिंह एक साइकिल से चले क्योंकि पकड़े जाने का डर था। दरभंगा में रात्रि विश्राम गोपाल नारायण शुक्ल के यहां हुआ। जो वहां पढ़ाई कर रहे थे ।बैकुंठ शुक्ला के गांव के थे। जाते समय गोपाल नारायण शुक्ल से बैकुंठ शुक्ला ने एक धोती मांग लिए साइकिल से ही तीसरे दिन बेतिया पहुंचे।
9 नवंबर 1932 को बेतिया मीना बाजार में 7 बजे सायं साथी चंद्रमा सिंह को रुकने का इशारा करके फणींद्र नाथ घोष की दुकान पर पहुंच गए। वहां पहुंचते ही धोती में रखे कटार को निकालकर गद्दार फणींद्र नाथ घोष के सीने पर जोरदार प्रहार करते हुए भारत माता की जय का नारा लगाए दुकान से निकलते समय गणेश प्रसाद गुप्ता ने बैकुंठ शुक्ला को पकड़ लिया। बैकुंठ शुक्ला ने गणेश प्रसाद गुप्ता के सीने में वही कटार उतार दिया और वह वहीं पर गिरकर तड़फडाने लगा एक और व्यक्ति ने बैकुंठ शुक्ला को पकड़ने का प्रयास किया तो उसे भी कटार का शिकार बना दिए। बेतिया मीना बाजार में भगदड़ मच गया चारों तरफ कोहराम हो गया। बैकुंठ शुक्ला भारत माता की जय के नारे लगाते हुए चंद्रमा सिंह के साथ भागने में सफल हुए। गंडक नदी पार कर छपरा पहुंच गए। अंग्रेजों द्वारा फणींद्र नाथ घोष के सुरक्षा में लगाए गए सिपाही सहदेव सिंह के बयान पर वहां के थाने में केस नंबर 8/ 1932 दर्ज हुआ फणींद्र नाथ घोष की दिनदहाड़े पुलिस सुरक्षा में हुई हत्या से अंग्रेज काफी भयभीत हुए। उन्होंने पकड़ने वाले को इनाम देने की घोषणा कर दी। फणींद्र नाथ घोष को गंभीर रूप से घायल होने के कारण अस्पताल में भर्ती किया गया लेकिन वह इतना भयभीत था कि बैकुंठ शुक्ला का नाम लेने से डरता रहा 17 नवंबर को अस्पताल में उसकी मृत्यु हो गई लेकिन उसने बैकुंठ शुक्ला का नाम नहीं लिया। 20 नवंबर को गणेश गुप्ता भी दम तोड़ दिया। बैकुंठ शुक्ला साइकिल से आते समय अपने गांव के पढ़ाई कर रहे छात्र के यहां दरभंगा में ठहरे थे और उससे एक धोती लिए थे। घटना के समय वह धोती वही छूट गई जिसके सहारे पुलिस ने दरभंगा के गोपाल नारायण शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया पुलिस के भय से उन्होंने बैकुंठ शुक्ला का नाम बता दिया। 15 जनवरी 1933 को चंद्रमा सिंह को कानपुर से गिरफ्तार किया गया। इनाम राशि बढ़ाने के बाद भी पुलिस बैकुंठ शुक्ला को गिरफ्तार करने में विफल रही अंग्रेज के आला अधिकारी स्थानीय पुलिस पर दबाव बनाने लगी पूरे राज्य में बैकुंठ शुक्ला के गिरफ्तारी के लिए अभियान चलाया गया। 6 जुलाई 1933को बैकुंठ शुक्ला हाजीपुर गंडक पुल जबरदस्त नाकेबंदी करके पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा सिंह को मोतिहारी जेल में रखा गया। मुजफ्फरपुर जिला न्यायालय में टी ल्यूबि सत्र न्यायाधीश के समक्ष सम्राट बनाम बैकुंठ शुक्ला आदि के नाम से मुकदमा चला फणींद्र घोष और उसके साथी के हत्या के आरोप में बैकुंठ शुक्ला और चंद्रमा को मोतिहारी जेल में रखा गया। लेकिन मुकदमा मुजफ्फरपुर सेशन कोर्ट में चला मुकदमे के दौरान सरकार की तरफ से 91 अभियोजन साक्ष्य बैकुंठ शुक्ला के विरोध में पेश किया गया और न्यायालय में बैकुंठ शुक्ला को भयानक दुर्दांत अपराधी के रूप में पेश किया गया। इस मुकदमे में गोपाल नारायण शुक्ला ने बैकुंठ शुक्ला के विरुद्ध गवाही दिया। इसके पुरस्कार में गोपाल नारायण शुक्ला को पुलिस में दरोगा बना दिया गया। मुकदमा ट्रायल के दौरान बैकुंठ शुक्ला ने अपना कोई वकील नहीं रखा। जिस वजह से अभियुक्त के बचाव के लिए जिला मजिस्ट्रेट ने जेएस बनर्जी को उनका वकील नियुक्त किया। अभियुक्त ने 50 सफाई साक्ष्य की सूची दी लेकिन एक भी गवाह को पेश करने की अनुमति नहीं दी गई। 22 फरवरी 1934 को सेशन कोर्ट ने 3 सदस्यों ने बैकुंठ शुक्ला चंद्रमा सिंह को फणींद्र नाथ घोष और उनके साथी की हत्या में दोषी नहीं माना सिर्फ एक ने दोषी माना। लेकिन सेशन जज ने बैकुंठ शुक्ला को फणींद्र नाथ घोष और उनके साथी की हत्या के जुर्म में फांसी की सजा सुनाई और 24 फरवरी 1934 को पटना उच्च न्यायालय को सजा कंफर्मेशन के लिए पत्र लिखा। लेकिन बैकुंठ शुक्ला द्वारा इसके खिलाफ कोई अपील दाखिल नहीं किया गया वह इसके लिए अपने पत्नी को मना भी किए थे। उनका कहना था भारत को स्वतंत्र कराने के लिए पुनर्जन्म लूंगा । पटना कोर्ट में 17 अप्रैल 1934 को सेशन कोर्ट के फैसले की पुष्टि किया गया। घटना की पूरी जिम्मेदारी बैकुंठ शुक्ला ने अपने ऊपर ले रखी थी। इसलिए चंद्रमा सिंह को रिहा किया गया। बैकुंठ शुक्ला को केंद्रीय कारागार गया में ले आया गया और उन्हें विशेष सुरक्षा के तहत काल कोठरी में रखा गया। बैकुंठ शुक्ला को फांसी होने के एक दिन पहले 13 मई 1934 को हाजीपुर गांधी आश्रम से बैकुंठ शुक्ला की पत्नी राधिका देवी गया सेंट्रल जेल अपने पति से मिलने हेतु पहुंची लेकिन उनको मिलने नहीं दिया गया। क्रूर अंग्रेजों ने अंतिम इच्छा भी पूर्ण नहीं होने दिया। मृत्यु से पहले पति-पत्नी तब को मिलने से रोका गया कितना करुण और हृदय विदारक घटना रही होगी। 13 मई 1934 को फांसी से 1 दिन पहले बैकुंठ शुक्ला जेल में स्वतंत्रता के जागरण गीतों को गाते रहे। फांसी से पहले खुदीराम बोस द्वारा गाए गए गीतों को गाते रहे ।अंत में वंदे मातरम सुनाएं पड़ोस के बैंरकों में बंद कैदियों ने भी उनका साथ दिया। जेल का वातावरण वंदे मातरम के नारों से गूंज उठा। बैकुंठ शुक्ला को देखने और सुनने पर लगता ही नहीं था कि उनकी फांसी होने वाली है। अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक बैकुंठ शुक्ला के चेहरे पर जो तेज झलक रहा था। उसमें कोई भय पश्चाताप नहीं दिखा यह अंग्रेजों को बहुत दुखित करने वाला क्षण था कि जिसको फांसी होने वाला है। वह जरा सा भी विचलित नहीं है। उस दिन किसी कैदी ने खाना नहीं खाया। समस्त कैदियों ने उपवास रखकर उनके शहादत को नमन किया। 14 मई 1934 को बैकुंठ शुक्ला ने फांसी से पहले भारत माता का उद्घोष करते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया। उनके अंतिम शब्द थे अब जा रहा हूं लौट के आऊंगा भारत आजाद तो नहीं हुआ वंदे मातरम फांसी से पूर्व उनके चेहरे की तेज निर्भयता देखकर वहां का सारा वातावरण अचंभित था। फांसी के बाद बैकुंठ शुक्ला के शव को उनके परिवार रिश्तेदार को नहीं सौंपा गया बैकुंठ शुक्ला के पार्थिव शरीर को कुछ सिपाहियों ने सरकार के हुक्म पर फल्गु नदी के किनारे अंतिम संस्कार कर दिया है ऐसा बताया गया। तब उनकी वीरांगना पत्नी राधिका देवी ने बिना रोए फल्गु नदी में स्नान कर अपने पति को तर्पण अर्पित कर पुनः हाजीपुर लौट आई। बैकुंठ शुक्ला के मौत के बाद उनके मायके वाले उन्हें अपने गांव ले गए। लेकिन कुछ माह के बाद ही वह पुनः वापस आश्रम लौट आई। आश्रम में 1936 में सुनीति देवी की मृत्यु हो गई जो यक्षमा से पीड़ित थी। सुनीति देवी के मृत्यु के बाद राधिका देवी अकेली हो गई। 1937 में योगेंद्र शुक्ला अंडमान निकोबार मे काला पानी की कठोर सजा काटकर लौटे।तब राधिका देवी को समझा-बुझाकर जलालपुर ले आए। वहां बैकुंठ शुक्ला के चाचा सूरज शुक्ला जो शिक्षक थे उन्होंने प्रयास करके राधिका देवी को खंजहाचक प्राइमरी स्कूल के शिक्षक के रूप में रखवा दिया। राधिका देवी अपने घर से साइकिल द्वारा आती जाती थी। देश आजाद होने पर बिहार के मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह ने राधिका देवी के नाम पहलेजा घाट से बसई तक बस का रोड परमिट दिलवा दिया जिस परमिट पर चांदपुर के राघव बाबू का नीरजा बस चलता था। वह उन्हें ₹1000 महीने देते थे। 1969 में राधिका देवी शिक्षक पद से सेवानिवृत्त हुई। 1984 में उन्हें स्वतंत्रता संग्राम का पेंशन मिलना शुरू हो गया। राधिका देवी बैकुंठ शुक्ला के छोटे भाई अपने देवर हरिद्वार शुक्ल के चारों लड़के और एक लड़की के साथ रहती थी और उन्होंने उनके साथ अपना फर्ज निभाती रही। राधिका देवी और उनके पति बैकुंठ शुक्ला व चाचा योगेंद्र शुक्ला ने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया राधिका देवी बैकुंठ शुक्ला के शहीद स्थल निर्माण के लिए संघर्ष करती रही गया केंद्रीय जेल का नाम वैकुंठ शुक्ला के नाम पर किए जाने के लिए अनेक प्रयास किए लेकिन कोई सफलता नहीं मिली उन्होंने इसके लिए कई बार मुजफ्फरपुर की सड़कों पर धरना भी दिया स्मारक बनाने का सपना 2017 में पूरा हुआ जिसे वह देख ना सकी 24 जनवरी 2004 को ही स्वर्ग सिधार गई। गया केंद्रीय कारागार का नाम बैकुंठ शुक्ला के नाम पर किए जाने की राधिका देवी की मांग आज भी अधूरी है। बैकुंठ शुक्ला के पैतृक गांव जलालपुर में बैकुंठ शुक्ला की प्रतिमा स्थापित है जहां सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा 14 मई को उनका शहादत दिवस मनाया जाता है। मुजफ्फरपुर शहर के बैरिया गोलंबर पर शहीद बैकुंठ शुक्ला कि सरकार द्वारा आदम कद प्रतिमा लगाई गई है जहां 14 मई को शहादत दिवस और 15 मई को जन्म जयंती मनाई जाती है। केंद्र की अटल बिहारी बाजपेई सरकार ने बैकुंठ शुक्ला योगेंद्र शुक्ला पर डाक टिकट जारी किया गया। हाजीपुर जीरोमाइल रामाशीष चौक गोलंबर पर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का नाम शहीद स्तंभ और बैकुंठ शुक्ला का नाम सर्वप्रथम अंकित है
वैशाली की धरती शुरू से ऊर्जावान रही है। विश्व का पहला गणतंत्र वैशाली। 16 महाजनपदों में एक वैशाली। 24 वे तीर्थंकर महावीर की जन्मभूमि कुंड ग्राम वैशाली। बुद्ध का अंतिम उपदेश वाला वैशाली भगवान बुध यहां तीन बार आए और जीवन में एक लंबा समय व्यतीत किए। साहित्य जगत में वैशाली की नगरवधू आम्रपाली की गूंज। वैशाली ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जो योगदान दिया वह भारत के स्वर्णिम इतिहास सुनहरे पन्ने पर अंकित है। उसी वैशाली का लाल बैकुंठ शुक्ला जो भारतीय आन बान और शान के प्रतीक थे। 28 की उम्र में भारत माता की जय के उद्घोष के साथ फांसी के फंदे को चूम कर बिहार के प्रथम बलिदानी बने पत्नी वीरांगना राधिका देवी का महान योगदान रहा और चाचा योगेंद्र शुक्ला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कोहिनूर है।बैकुंठ शुक्ला योगेंद्र शुक्ला और वीरांगना राधिका देवी का स्मरण होते ही बरबस चाफेकर बंधुओं की याद आती है। एक परिवार का संपूर्ण योगदान भारतीय इतिहास में यदा-कदा ही दिखता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगेंद्र शुक्ला एक बहुत बड़ा नाम है 10 बरस की काला पानी की सजा काटने के बाद योगेंद्र शुक्ला कभी विचलित नहीं हुए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का गठन योगेंद्र शुक्ला ने किया बिहार बंगाल पंजाब के क्रांतिकारियों को एक प्लेटफार्म दिया। बैकुंठ शुक्ल भारती के फंदे से विचलित नहीं हुए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर भारत माता की जय बोलते हुए चढ गये। तो उनकी पत्नी राधिका देवी भी कभी विचलित नहीं हुई ।भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में यह एक अद्भुत मिसाल है। योगेंद्र शुक्ला के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किए गए योगदान शौर्य और पराक्रम को चंद पन्नो पर नहीं लिखा जा सकता वह साहस शौर्य और धैर्य के प्रतीक थे। साबरमती आश्रम में योगेंद्र शुक्ला जब रहते थे वे गांधीजी के अत्यंत निकटवर्ती थे।प्रतिदिन होने वाली प्रार्थना सभा में आश्रम के सभी लोगों की उपस्थिति अनिवार्य होती थी। चाहे वह कोई हो आश्रम के एक अति महत्वपूर्ण व्यक्ति ने गांधी जी से जाकर कहा योगेंद्र शुक्ला कभी प्रार्थना सभा में नहीं आते।
गांधीजी से कहा प्रार्थना करने पर जो शक्ति प्राप्त होती है।वह शक्ति उससे पहले से प्राप्त है। अयाचक ब्राह्मणों की शक्ति गांधी जी को पहले से पता थी। 1934 भूकंप के बाद गांधी जी जब हाजीपुर आए तब उन्होंने योगेंद्र शुक्ला से मिलने की अपनी इच्छा जाहिर की और उनके घर का पता पूछा। मैं उनके घर जाकर उनसे मिलना चाहते है। उस समय वह अंग्रेजों की आंखों की किरकिरी बन चुके थे और अंडमान निकोबार सेल्यूलर जेल में काला पानी की सजा काट रहे थे।
गांधीजी के अत्यंत करीबी थे योगेंद्र शुक्ला। 1938 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष बने दोबारा अध्यक्ष के चुनाव पर गांधीजी नहीं चाहते थे कि सुभाष चंद्र बोस दोबारा अध्यक्ष बने।गांधी जी ने अबुल कलाम आजाद चुनाव लड़ने के लिए कहा। लेकिन वह सुभाष चंद्र बोस के खिलाफ तैयार नहीं हुए ।जब गांधी जी ने नेहरू जी को चुनाव लड़ने के लिए कहा। नेहरू जी भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हुए क्योंकि उन्हें सुभाष चंद्र बोस की लोकप्रियता का पता था। इसलिए शहीद नहीं होना चाहते थे।लेकिन गांधीजी को एक नाम सुझाया पट्टाभि सीतारमैया (आंध्र प्रदेश )को चुनाव लड़ाने हेतु कहा। 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष के होने वाले चुनाव में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के विरुद्ध गांधी जी ने पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदवार बनाया 29 जनवरी 1939 को चुनाव होना था । लेकिन उससे पहले कांग्रेस पार्टी ने एक पत्र जारी किया गया जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस को पुनः विचार करने के लिए कहा गया। पत्र का उद्देश्य था कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपना पर्चा वापस ले ले और पट्टाभि सीतारमय्या निर्विरोध अध्यक्ष हो जाए। नेता जी ने कहा कि इस तरह किसी एक का पक्ष लेना उचित नहीं है। इसमें पक्षपात झलक रहा है ।जिससे बात नहीं बनी। कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता जब गांधी जी के साथ थे तब योगेंद्र शुक्ला खुलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस का साथ दिया। 29 जनवरी 1939 को अध्यक्ष पद का चुनाव हुआ नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पक्ष 1580 मत पड़े जबकि गांधी समर्थित पट्टाबी सीतारमैया को 13 77 वोट मिले। प्रत्यक्ष रूप से नेताजी सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभि सीतारमैया चुनाव लड़ रहे थे लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से यह लड़ाई नेताजी सुभाष चंद्र बोस और गांधी जी की थी। पूरे देश में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पक्ष में हवा चल रही थी उनकी लोकप्रियता चरम पर थी जिससे अंग्रेज बहुत भयभीत थे। गांधी ने इस हार को स्वयं की हार कहा। गांधी जी सहित देश के तमाम बड़े नेता पट्टाभि सीतारमैया के साथ थे। तब नेताजी सुभाष चंद्र बोस के सारथी या प्रबल समर्थक योगेंद्र शुक्ला स्वामी सहजानंद सरस्वती और शीलभद्र याजी के कठिन प्रयासों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस चुनाव जीतने में सफल रहे।उसके बाद इन लोगों के विरुद्ध जो षड्यंत्र हुआ वह किसी से छिपा नहीं है। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन के समय योगेंद्र शुक्ला जयप्रकाश नारायण जेल में बंद थे जयप्रकाश नारायण बहुत ही बीमार थे योगेंद्र शुक्ला जेल से भागने की रणनीति बनाएं मजबूत कद काठी और हिम्मत के धनी योगेंद्र शुक्ला ने जेल की कैदियों के धोती के सहारे जेल की 17 फीट की दीवाल पर चढ़ गए और जयप्रकाश नारायण सहित छह साथियों को जेल से भगाने में सफल रहे जयप्रकाश नारायण की बीमारी हालत में चलने की स्थिति नहीं थी योगेंद्र शुक्ला 124 किलोमीटर कंधे पर लादकर जयप्रकाश नारायण को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाएं। हाजीपुर सेंट्रल जेल के अभेद्य सुरक्षा को तार-तार कर दिया। काकोरी कांड आगरा कैंट के आगे चलती रफ्तार ट्रेन से कूदना अंग्रेजों से घिरा होने पर सोनपुर की उफनती गंगा में छलांग लगाना उनके शौर्य साहस और पराक्रम को दर्शाता है भारत को स्वतंत्र कराने के लिए उनके अंदर जो साहस और जज्बा दिखा वैसा तो कोई लाखों में एक ही होगा। ऐसे अनेक साहस और बहादुरी के उनके कारनामे भरे पड़े हैं। 15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली परंतु स्वतंत्रता के बाद इस महानायक को वह स्थान नहीं मिला जिसके वह हकदार थे।
आतंकवाद के साथ बात और व्यापार नहीं होगा : नरेंद्र दामोदर दास मोदी
शनिवार शाम 5:33 मिनट पर डोनल्ड ट्रांप ने X पर बताया कि अब जंग नहीं होगा। आदेश के लहज़े में डोनल्ड ट्रांप ने सुझाव या मध्यक्षता की बात नहीं कि बल्कि X पर पोस्ट कर कहा कि - मैं घोषणा करता हूं कि भारत - पाकिस्तान के बीच सीज फायर करेगा।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी ने आज यह नहीं कहा कि मोदी सरकार आपरेशन सिंदूर की, बल्कि आज भारत सरकार कहकर संबोधित किया जो बहुत बड़ी बात रही। प्रधानमंत्री ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप की भूमिका पर कुछ नहीं बोला कि किस आधार पर आदेश के लहज़े में X पर पोस्ट किया गया था। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रांप ने जो आदेश दिए उसमें महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार से है कि -
युद्धविराम के लिए तैयार भारत - पाकिस्तान
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का बड़ा बयान
डोनाल्ड ट्रम्प ने सोशल मीडिया पर डाला अपना बयान
भारत और पाकिस्तान तुरंत और पूर्ण सीजफायर के लिए तैयार
ट्रम्प का दावा, हमने दोनों देशों के बीच कराई मध्यस्थता
ट्रम्प ने कहा, काफी लंबी चर्चा के बाद युद्धविराम के लिए तैयार हुए दोनों देश
फिलहाल ये ट्रम्प का विडियो संवाद में दोनों देशों की तरफ से पहले ऐसी कोई अधिकृत जारी नहीं की गई थी। लेकिन दोपहर से ही बड़ी ख़बर के रूप में सामने आया कि आज रात 8 बजे भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी देश को संबोधित करेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी के लगभग 20 मिनट के भाषण में अनर्गल बातें कर भारत माता की जय, भारत माता की जय के नारे के साथ अपनी बात खत्म कर दिया।
मोदी ने जिस तरह भारत के अधिकारिक ब्यान दिए और उसपर विचार करें तो उन्होंने अपने संवाद में अपनी ज़मीर को डोनल्ड ट्रांप के सामने घुटने टेक दिए हैं। ट्रंप का ट्वीट, वीडियो और मोदी का संबोधन सुन कर फिर से देश में गोरों की गुलामी वाली व्यवस्था को नरेंद्र दामोदर दास मोदी ने स्वीकार कर लिया है।
मोदी जिस तरह से भारत में चुनाव लड़ते हैं उस स्तर का भी उनका पाकिस्तान और अमेरिका के खिलाफ अपने विचार रखने की हिम्मत नहीं कर पाए। इससे स्पष्ट है कि मोदी कहना चाहते हैं कि - युद्ध नहीं चुनाव लड़ेगी भाजपा!